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वैमानिक देवों का संक्षिप्त स्वरूप
आचार की अपेक्षा से परमात्मा ने वैमानिक देवों को दो वर्गों में बाँटा हैं(१) कल्पोपपन्न (२) कल्पातीत।
जिन देवों में इंद्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि विशेष और सामान्य रूप में व्यवस्था रूप आचार हैं; जिन देवों में छोटे बड़े का भाव है, वे कल्पोपपन्न देव कहलाते हैं; और जिन देवों में इंद्र, सामानिकादि देवों जैसी कोई विशेष और कोई सामान्य जैसी व्यवस्था ही नहीं; सभी देवता स्वयं को अहमिंद्र (मैं ही इंद्र हूँ) ही मानते हैं; वे कल्पातीत देव कहलाते हैं।
बारह देवलोकों में कल्प संबंधी व्यवस्था है; जबकि नव ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर देवों में कल्प संबंधी कोई व्यवस्था ही नहीं; वहाँ व्यवस्था की कोई आवश्यकता भी नहीं है। बारह देवलोकों के नाम
(१) सौधर्म देवलोक (२) ईशान देवलोक (३) सनत्कुमार देवलोक (४) माहेन्द्र देवलोक (५) ब्रह्म देवलोक (६) लातंक देवलोक (७) महाशुक्र देवलोक (८) सहस्रार देवलोक (९) आनत देवलोक (१०) प्राणत देवलोक (११) आरण देवलोक (१२) अच्युत देवलोक।
कल्पातीत देवों के दो भेद हैं - (१) ग्रैवेयक (२) अनुत्तरोपपातिक ग्रैवेयक देवताओं के नव भेद हैं
(१) अधस्तन-अधस्तन (२) अधस्तन-मध्यम (३) अधस्तन-उपरितन (४) मध्यम-अधस्तन (५) मध्यम-मध्यम (६) मध्यम-उपरितन (७) उपरिम-अधस्तन (८) उपरिम-मध्यम (९) उपरितन-उपरितन
अनुत्तरोपपातिक देवों के पाँच भेद है
(१) विजय (२) वैजयंत (३) जयंत (४) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्ध । कल्प संबंधी परिचय
(१) इन्द्रः- सामानिक आदि सभी देवों का स्वामी इंद्र कहलाता है। चारों प्रकार के देवों में कुल ६४ इंद्र हैं। बारह देवलोकों में से नवमें और दसवें देवलोक
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जो व्रत, पच्चक्वाण लेता है वह बेवजह के पापों से बच जाता है.