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श्री शांतिनाथ भगवान
चैत्यवंदन दर्शन ज्ञान चारित्रथी, साची शांति थावे; शांतिनाथ शांति वर्या, रत्नत्रयी स्वभावे. तिरोभाव निज शांतिनो, अविर्भाव जे थाय शुद्धातम शांति प्रभु, स्वयं मुक्तिपद पाय. बाह्य शांतिनो अंत छे ए, आतम शांति अनंत; अनुभवे जे आत्ममां, प्रभुपद पामे संत.
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हम.२
स्तवन हम मगन भये प्रभु ध्यान में, बिसर गई दुविधा तन-मन की, अचिरा सुत गुणगान में. हरिहर ब्रह्मा पुरन्दर की ऋद्धि, आवत नहीं कोउ मान में; चिदानन्द की मोज मची है, समता रस के पान में. इतने दिन तुम नाहीं पिछान्यो, मेरो जन्म गमायो अजान में; अब तो अधिकारी होई बैठे, प्रभु गुण अखय खजान में. गयी दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में; प्रभु गुण अनुभव रस के आगे, आवत नहीं कोई मान में. जिनहीं पाया तिनही छिपाया, न कहे कोउ के कान में; ताली लागी जब अनुभव की, तब समझे कोइ सान में. प्रभु गुण अनुभव चन्द्रहास ज्यूं, सो तो न रहे म्यान में; वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लिओ हे मेदान में.
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स्तुति शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे; सुमित्रने घेर पारj, भव पार उतारे विचरंता अवनीतले, तप उग्र विहारे; ज्ञान ध्यान एक तानथी, तिर्यंचने तारे.१
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