________________
श्री पद्मप्रभस्वामि भगवान
चैत्यवंदन
नवधा भक्तिथी खरी, पद्मप्रभुनी सेवा; सेवामां मेवा रह्या, आप बने जिनदेवा. नवधा भक्तिमां प्रभु, प्रगटपणे परखाता, आठ कर्म पडदा हठे, स्वयं प्रभु समजाता. पद्मप्रभुने ध्यावतां ए, पूर्ण समाधि थाय; हृदय पद्ममां प्रकटता, आत्मप्रभुजी जणाय.
स्तवन
पद्म प्रभु प्राण से प्यारा, छुडावो कर्म की धारा. कर्म-फंद तोडवा धोरी, प्रभुजी से अरज है मोरी. लघु वय एक थे जीया, मुक्ति में वास तुम किया. न जानी पीड थे मोरी, प्रभु अब खेंच ले दोरी. विषय सुख मानी मोरे मन में, गयो सब काल गफलत में. नरक दु:ख वेदना भारी, निकलवा ना रही बारी. परवश दीनता कीनी, पाप की पोट सिर लीनी. भक्ति नहीं जाणी तुम केरी, रह्यो निश दिन दुःख घेरी. इण विध विनती मोरी, करूं में दोय कर जोरी. आतम आनंद मुज दीजो, वीर नुं काम सब कीजो.
१
२
३
पद्म.१.
पद्म.२.
पद्म.३.
पद्म.४.
पद्म.५.
स्तुति
पद्मप्रभुने देखतां देखवानुं न बाकी, पद्मप्रभुने ध्यावतां बने आतम साखी; पद्मप्रभुमय थई जातां, कोई कर्म न लागे. देह छतां मुक्ति मळे, जीत डंको वागे. १