Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 940020590092ESO902 17 NOISONYLION: 225c 1900 VOCKEECIA महामुनि श्रीमानंदघनजी तथा श्रीचिदानंदनी विरचित बहोतेरी तेमनी साथै केटलाएक बीजा प्राध्या त्मिक पदो मेलवी प्रथमावृत्तिथी क्वचित् वधारो करीने श्री मोहमयीमध्ये श्रावक नीमसिंह माणकें निर्णयसागर प्रेसमां छपावी प्रसिद्ध करी. संवत् १ ए४४ वैशाख वदि त्रयोदर्श Jain Educationa internationalb00500 For Personal and Private Use Onl @ 20 R GAPPS Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्य ग्रंथस्यानुक्रमणिका ॥ पदांक. १ ॥ प्रथम नैरव रागमां गवातां पढ़ो || पदनां नामो. १ विरथाजनम गमायो ॥ मूरख वि० चि० २ जग सपनेकी माया रेनर जग० चि० ३ लाल ख्याल देख तेरे, अचरि० ४ जाग रे बटान यब, नई जोर 0 चि० चि० चि० ५ चालणां जरूर जाकूं, ताकूं कैसा० ६ जाग अवलोक निज, शुद्धता..... चि० ७ अजित जिनंद देव, थिरचित्त० चि० Jain Educationa International कविनाम पृष्ठांक. .... २ ॥ विनास रागमां गवातां पदो ॥ १ जूठी जगमाया नर केरी काया .... चि० २ देखो नवि जिनजीके जुंग चरन० चि० ३ ॥ बिलावल रागमां गवातां पदो ॥ १ क्या सोवे उठ जाग बावरे. ग्रानं ० यानं० २ रे घरियारे बावरे. .... ३ जीय जाने मेरी सफल घरी री.... यानं ० .... For Personal and Private Use Only .... ६५ ६५ 26 9 G ७. ८ १ 1915 ६३ m ६४ MM श् Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदांक. पदनां नामो. कविनाम. पृष्ठांक. ४ सुहागण जागी अनुनव प्रीत. आनं० २ ५ पिया बिनु सुध बुध नूली हो .... आनं० १. ६ मुलडो थोडो नाश्व्याजडो घणो. आनं० २७ ७ मान कहा अब मेरा मधुकर चि०.६६ G फुलह नारी तुंबडी बावरी..... आनं० १० ए ताजोगें चित्त व्यावं रे वाहाला. आनं० १० मंद विषय शशी दीपतो...... ....चि० ११ जोग जुगति जाण्याविना..... .... चिo १२ आज सखी मेरे वालमा.... ....चि १३ वस्तुगतें वस्तुको लक्षण..... .... चि० ४॥ प्रजाती रागमां गवातां पदो। १ ऐसा झान बिचारो प्रीतम. चि० २ विषय वासना त्यागो चेतन. ....चि० ५॥याशावरी रागमां गवातां पदो॥ १ अवधू नट नागरकी बाजी. ....आनं० २ अवधूं क्या सोवे तनमनमें. ....यानं० । ३ आज सुहागन नारी अवधू .... यानं० ११ ४ अवधू अनुजव कलिका जागी. आनं० १३ ५ अवधू क्या मागुं गुनहीना. ...आनं० १,४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदांक, पदनां नामो. कविनाम. पृष्ठांक ६ अवधू राम राम जग गावे. ....आनं० १४ ७ आशा औरनकी क्या कीजें. ....आनं० १५ अवधू नाम हमारा राखे. ....आनं० . १५ ए साधो नाश् समतारंग रमीजें..... आनं० १६ १० अब हम अमर नये न मरेंगे..... यानं० २२ ११ देखो एक अपूरव खेला. .... आनं० ए १५. साधुनाई अपनारूप जब देखा. यानं० ३५ १३ राम कहो रहेमान कहो कोन आनं० १४ साधुसंगति बिनुं कैसें पश्यें. .... आनं० १५ अवधू सो जोगी गुरु मेरा. .... थानं० ५१ १६ अवधू ऐसो झानबिचारी. .... आनं० ५२ १७ बेहेर बेहेर नहिं आवे औसर आनं० ५२ १७ मनुप्यारा मनुप्यारा रिखना आनं० १ए हनीली आंख्यां टेक न मेटे. आनं० ५३ २० अवधू निरपद विरला कोइ...... चि० । १झान कला घटनासी जाकू०.... चि० २२ अनुभव आनंद प्यारोअब मो० चि० २३ घट विरासत वार नलागे..... चिन २५ अवधू पीयो अनुनव रस प्याला. चि० ७५ mmmm Ww Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) पदांक.... पदनां नामो. - कविनाम. पृष्ठांक. १५ मारग साचा कोन न बतावे..... चि० ७५ १६ अवधू खोलि नयन अब जोवो..... चि० ७६ २७ अवधू वैराग बेटा जाया. .... आ० ५५ १७ मिडोलागेकंतडोनेखाटोलागेलोक.० १ ६॥ रामग्री रागमां गवातां पदो॥ १ महारोबालुडो संन्यासी. .... आनं. ३ २ खेले चतुर्गति चौपर, पानी मेरो.आनं० ७ ३ मुने महारो कब मलशे मन मेलु. आनं० १३ ४ क्यारेमुने मलशे महारो संत सनेही.या० १३ ५ जगत गुरु मेरा में जगतका चेरा. आ० ४१ ६ हमारी लयलागी प्रजुनाम .... आनं० ४० ७ ॥ सामेरी रागमां गवातां पदो ॥ १ नितुर नये क्युं ऐसें, पिया तुम आनं० १७ ५ ॥ धन्याश्री रागमां गवातां पदो ॥ १ अनुनव प्रीतम कैसे मनासी..... आनं० २६ २ चेतन अप्पा कैसें लहो री..... आनं० २७ ३ बालुडी अबला जोर किश्युं करे. आनं० २७ ४ चेतन सकल वियापक होइ. .... आनं० ४६ ५ अरि मेरो नाहेर अतिवारो. .... आनं० ५० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) पदांक. पदनां नामो. ६ मूल्यो नमत कहा वे प्रजान..... ७ संतो चरिज रूप तमासा. कर ले गुरुगम ज्ञान विचारा. कविनाम पृष्ठांक. चि० ६७ चि० ६ ७ चि० चि० Jain Educationa International .... २३ ए अब हम ऐसी मनमें जाली. ए । टोडी रागमां गवातां पढ़ो || १ परम नरम मति और न यावे..... या० २ प्रांतम अनुभव रीति वरी री..... यानं ० ३ मेरी तुं मेरी तुं कांही मरे री. यानं० २३ ४ तेरी हूं तेरी हूं एती कडुं री.... यानं ५ ठगोरी गोरी लगोरी जगोरी..... यानं ० ६ चेतन चतुर चोगान लरी री..... यानं० ७ पिय बिन निशदिन फूरुं खरी री. आनं० प्रभु तो सम अवरन कोइ खलकुमें. खा० ए सोहं सोहं सोहं सोहं. १० अब लागी अब लागी अब लागी० चि० चि० .... ११ प्रीतम प्रीतम प्रीतम प्रीतम. चि० १२ कथली कथे सहु को ..... चि० .... १० ॥ मालसिरि रागमां गवातां पढ़ो | 3 वारे नाह संग मेरो युंही जोवन यानं ० .... .... ६८ ६८ For Personal and Private Use Only 19 19 ६ २३ २४ 15 D ६ २४ ४३ ६ ए १ ६ ए MY22 90 ७ ‍ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदांक.. पदनां नामो.. कविनाम. पृष्ठांक. ॥११ सारंग रागमां गवातां पदो॥ १ अनुनव नाथकुं क्युं न जगावे. आनं ५ २ नाथ निहारो आप मतासी. .... आनं ५ ३ अनुनव हम तो रावरी दासी.....आनं० ७ ४ अनुनव तुं है हेतु हमारो. .... आनं० ७ ५ मेरे घट ग्यान जानु जयो नोर. आनं० ७ ६ अब मेरे पति गति देव निरंजन. आ० ३१ ७ चेतन शुधातमकू ध्यावो. .... आनं ४ ७ चेतन ऐसा झान विचारो. .... आनं० ४२. १२॥ गोडी रागमां गवातां पदो॥ १ रीसानी आप मनावो रे... .... आनं० १० २ निशानी कहा बताएं रे..... .... आनं० ११ ३ विचारी कहा विचारे रे. .... .... आनं० १२ ४ मिलापी थान मिलावो रे. .... आनं० १७ ५ देखो आली नटनागरको सांग. आनं० १७ ६ पिया बिन कौन मिटावे रे. .... आनं० ३४ . १३॥ कल्याण रागमां गवातां पदो ॥ १ मोकू कोल केसी ढूंतको. .... आनं० ३० २ या पुजलका क्या विसवासा..... आनं० ५० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदांक. पदनां नामो. कविनाम. पृष्ठांक. ॥ १४ अलश्या वेलावल रागमां गवातां पदो ॥. १ प्रितकी रीत नहिं हो प्रीतम..... आनं० ३६ २ ऐसे जिनचरने चित्त ल्यानं रेमना.यानं० ए १५॥श्मन रागमां गवातां पदो॥ लागी लगन हमारी. .... .... आनं० ४४ __ १६ ॥ केदारा रागमां गवातां पदो ॥ १ मेरे माजी मजीती सुण एक वात.आनं० ३७ २ नोले लोगाईरहुं तुम नला दासा.आनं० ३ए १७ ॥ कान्दरा रागमां गवातां पदो ॥ • १ करे जारे जारे जारे जा. .... आनं० १॥ २ दरिसन प्रानजीवन मोहे दीजें. आनं० १७ १७॥ बिहाग रागमां गवातां पदो॥ १ लघुता मेरे मन मानी, लश् गुरु० चि० । २ पिया पिया पिया बोल मत .... चि ? १ए॥ मारु रागमा गवातां पदो॥ १ निश दिन जो तारी वाटडी० आनं० ए २ मनसा नट नागरगुं जोरी हो.....यानं० २० ३ पिया बिनु सुध बुझ नूली हो. आनं० २१ मायडीमुने निरपरख किरणहीन. आनं० २५ Ho७१ D ME Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) पदांक.. पदनां नामो. कविनाम. पृष्ठांक. ५ पिया बिन सुध बुद्ध मूंदी हो. .... आनं० ३१ ६ ब्रजनाथसें सुनाथ विण. .... आनं० ३२ ७ अनंत अरूपी अविगत सासतोहो. ३७ G निःस्टह देश सोहामणो..... ....आनं० ४३ - ए वारो रे कोई परघर रमवानो ढाल. आ० ४७ १० पिया पर घर मत जावो रे.. .... चि० ५६ ११ पिया निज महेल पधारो रे. .... चि० ५७ १२ सुअप्पा आप विचारो रे. .... ....चि० ५७ १३ बंध निज आप नदीरत रे. .... चि० ५८ २० ॥ श्रीरागमां गवातां पदो ॥ । १ कितजान मते हो प्रान नाथ..... आनं० १७ १॥ जंगला काफी रागमांगवातां पदो॥ १ जगमें नहिं तेरा कोश. .... ....चि ७५ २ जूठी जगतकी माया..... .... ....चि० ७५ ॥ जयजयवंती रागमां गवात पदो॥ १ तरसकी जई द कौ दश की आनं० २१ २ मेरे प्रान आनंद घन:... .... आनं० २७ ३ मेरीसुं तुमतें जुं कहा दूरी के आनं० ३१ ४ जैसी कैसी घर वसी. .... .... आनं० १ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदांक. पदनां नामो. कविनाम. टष्ठांक. २३॥ मालकोश रागमां गवातां पदो॥ १ पूरव पुस्य उदय करीचेतन, नीका चि० ए७ २४ ॥ काफी रागमां गवातां पदो॥ १ वारी हुँ बोलडे मीठडे. .... .... आनं० ४४ २ अकल कला जगजीवन तेरी.....चि० एए ३ जौंलो तत्त्व न सूज पडे रे. . .... चि ६० ४ आतम परमातम पद पावे. .... ५ अरज एक गवडीचा स्वामी. .... चि० ६ ए जिनजिके पायलागरे, तुने कथा ७ जौंलों अनुनव ज्ञानरे, घटमें ....चि ७ अकथकथा कुणजाणे हो, तेरी ....चि० ७३ ए अलख लख्या किम जावे हो. ...चि०७३ २५॥ नट रागमां गवातां पदो ॥ १ सारा दिल लागा हे बंसीवारेस्र. आनं० २७ २ किनगुन नयो रे उदासी. आनं० १०० २६ ॥ काफीहोरीमां गवातां पदो ॥ १ मतिमत एम विचारो रे... ...चि०. २ अनुनव मित्त मिलाय दे मोकुं. ....चि०७४ ३ एरि मुखहोरी गावो री. .... .... चि० ७४ FEEEEEEEEEEEEEEEEE Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) पदांक.. पदनां नामो, कविनाम. पृष्ठांक. २७ ॥ मलार रागमां गवातां पदो॥ १ ध्यानघटा धन बाए सुदेखो .... चि० ए० २ मत जावोरे जोर बिडोर...... ..... चि० ए० ॥ सोरत रागमां गवातां पदो॥ १ बोराने क्युं मारे ले रे. ........ आनं० ए २ कंचनवरणो नाह रे मुने को२० आनं० २६ ३ महोटी वढूयें मन गमतुं की . आनं० ४७ ४मुने माहारा नाहलीयाने मलवानोण्या ४७ ५ निराधार केम मूकी मुरे श्याम आनं० भए ६ आतमध्यान समान जगतमें .... चि० ७६ ७ प्रनु मेरो मनडो दटक्यो न माने. चि० ७६ तारोजी राज तारोजी राज. .... चि० ७ ए आवोजी राज यावोजीराज..... चि० ७ १० गढगिरनार रूडो लागे जी० .... चि. GG ११ क्या तेरा क्या मेरा. ..... .... चि० एए ए ॥ वसंत रागमां गवातां पदो॥ १ प्यारे श्राप मिलो कहा एते जात. आ० ३० २ अब जागो परम गुरु० .... यानं० ३३ ३ बबीले लालन नरम कहे. ... आनं० ३७ 5 5 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) पदांक. पदनां नामो. कविनाम. पृष्ठांक. ४ या कुबुद्धि कुमरी कौन जात आनं० ३ए ५ लालन बिन मेरो कुन हवाल. आनं० ४० ६ प्यारे प्रानजीवन ए साच जान. यानं० ४० ७ तुम ज्ञान विनो फूली बसंत आनं० १०० ३० ॥ धमालरागमां गवातां पदो॥ १ नाउकी रात काती सी वहे..... आनं० २६ २ सलूणे साहेब आवेंगे मेरे बालीरी.आनं० ४५ ३ विवेकी वीरा सह्यो न परे. .... यानं० ४५ .४ पूजीयें अाली खबर नहीं आये. यानं० ४६ ३१ ॥ सोयणी रागर्मा गवातां पदो॥ १ सरण तिहारे गही जे. ... .... चि० ए २ अनुजव ज्योति जगीजे. .... .... चि० नए ३॥ केरबा रागमां गवातां पदो॥ १ प्रनु नज ले मेरा दिल राजी. आ० ५४ २ अखियां सफल नइ अलि निरखत. चि० ६५ ३ समज परी मोहे समज परी,जग चि० नए ४ हारे चित्तमें धरो प्यारे चित्तमेंधरो....चि० ए० ३३ ॥ साखीमां बोलाता दोहा ॥ १.आतम अनव रसिकको. ....आनं० ३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) पदांक. . पदनां नामो. कविनाम. पृष्ठांक. २ जगाशा जंजीरकी. .... ....आनं० . ४ ३ आतम अनुजव फूलकी..... .... आनं० ५ ४ कुबुद्धि कुबजा कुटिलगति. .... आनं० ६ ५ रास ससितारा कला, वली :... आनं० ३४ ६ आतम अनुजव रस कथा. ....यानं० ३७ ७ अण जोवंतांलाख, जोवे तो .... आनं०. ४७ ३५॥ देशीयोमां गवातां पदो॥ १ परमातम पूरणकला. .... ..... चि० ए१ २ श्रीशंखेश्वर पास जिनंदके........ चि० ए३. ३ अजित अजित जिन ध्याश्यें. चिए३ लग्या नेह जिनचरण हमारा...... चि० ए४ ५ हो प्रीतमजीप्रीतकी रीत .... चि० ए५ ६ चंवदनी मृगलोयणी ॥गईली..... चि० ए६ ७ अनुनव अमृत वाणी हो पास जिन.चित्र ए७ G मणिरचित सिंहासन, स्तुति..... चि० ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री आनंदघनाय नमः ॥ ॥ अथ श्री आनंदघनजी माहाराजकृत बहुत्तेरी आदिकनां पद प्रारंनः॥ ॥ पद पहेलु॥ राग वेलावल ॥ ॥ क्या सोवे उठ जाग बानरे ॥ क्या० ॥ ए आं कणी॥अंजलि जल ज्युं आयु घटत हे, देत पहोरीयां घरिय धान रे ॥ क्या ॥१॥६६ चं नागिं मुनि चले, कोण राजा पति साह राउ रे ॥ नमत जमत जवजलधि पायकें, नगवंत जजनविन नाक नान रे॥ क्या ॥ २॥ कहा विलंब करे अब बानरे, तरी नवजलनिधि पार पाउ रे ॥ आनंदघन चेतनमयमूर ति, शुक्ष निरंजन देव ध्यान रे ॥क्या॥३॥इति पदं। ॥ पद बीजं ॥राग वेलावल ॥ एकताली ॥ ___ ॥रे घरिया रे बानरे,मत घरीय बजावे ॥ नर सिर बांधत पाघरी, तुं क्या घरीय बजावे ॥रे० ॥१॥ केवल काल कला कले, पै तुं अकल न पावे ॥ अकल कला घटमें घरी, मुज सो घरी जावे ॥रे० ॥ २ ॥ आतम अनुजव रस जरी, यामें और न मावे ॥श्रा नंदघन अविचल कला, विरला कोई पावे ॥रे ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद त्रीजं ॥ राग वेलावल ॥ ॥जीय जाने मेरी सफल घरीरी॥जीया एयां कणी ॥ सुत वनिता धन यौवन मातो, गर्नतणी वेद न विसरीरी॥जीय॥१॥ सुपनको राज साच करी माचत, राचत बांह गगन बदरीरी॥ा अचानक काल तोपची, गहेगो ज्यु नाहर बकरी री॥जी॥ ॥ ॥ अतिही अचेत कबु चेतत नाहि, पकरी टेक हारिल लकरीरी॥आनंदघन हीरो जन बांकी, नर मोह्यो माया ककरीरी॥जीय॥३॥इति पदं॥ पद चोथु ॥ राग वेलावल ॥ . ॥ सुहागण जागी अनुनव प्रीत ॥ सुहा० ॥ए आं कणी॥निंदयज्ञान अनादिकी,मिट गई निजरीतासुन ॥१॥ घट मंदिर दीपक कियो, सहज सुज्योति सरूप॥ आप पराश्यापही, गनत वस्तु अनूप ॥ सु० ॥२॥ कहादिरवावु योरकू, कहा समजान नोर ॥ तीरथ चूक है प्रेमका, लागे सो रहे तोर ॥सु॥३॥नादवि खुको प्राणकू, गिने न तृण मृगलोय ॥ आनंदघन प्रर्नु प्रेमकी, अकथ कहानी कोय ॥ सु॥४॥ . ॥ पद पांचमुं॥ राग याशावरी॥ ॥अवधू नट नागरकी बाजी, जाणे न बांजण का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानंदघनजी कृत पद. ३ जी ॥ ० ॥ ए यांकणी ॥ थिरता एक समयमें ठाने, उपजे विसे तबही ॥ उलट पलट ध्रुवसत्ता राखे, या हम सुनी न कबही ॥ ० ॥ १ ॥ एक अनेक अनेक एक फुनी, कुंमल कनक सुनावें ॥ जलतरंग घटमाटी रविकर, अगनित ताहि समावे ॥ श्र० २ ॥ है नांही है वचन अगोचर, नय प्रमाण सत्तनंगी ॥ निरपख होय लखे कोई विरला, क्या देखे मत जंगी ॥ श्र० ॥ ३ ॥ सर्वमयी सरवंगी माने, न्यारी सत्ता जावे ॥ आनंदघन प्रनु वचनसुधारस, परमारथ सो पावे ॥ ० ॥ पद बहुं ॥ ॥ साखी ॥ श्रातम अनुभव रसिकको, जब सुन्यो विरतंत ॥ निर्वेद वेदन करे, वेदन करे अनंत ॥ १ ॥ ॥ राग रामग्री ॥ ॥ माहारो बालुडो संन्यासी, देह देवल मठवासी ॥ मा० ॥ १ ॥ ए झांकणी ॥ इमा पिंगला मारग त जयोगी, सुखमना घर वासी ॥ ब्रह्मरंध्र मधि यास न पूरी बाबु, अनहद तान बजासी ॥ मा० ॥ २ ॥ यम नियम आसन जयकारी, प्राणायाम अन्यासी ॥ प्रत्याहार धारणाधारी, ध्यान समाधि समासी ॥ मा हा०० ॥ ३॥ मूलउत्तरगुण मुाधारी, पर्यकासन वासी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. रेचक पूरक कुंनक सारी, मन इंडिय जयकासी॥मा० ॥४॥ थिरता जोग युगति अनुकारी, बापो श्राप वि मासी॥आतम परमातम अनुसारी, सीजे काज स मासी॥ मा० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥पद सातमुं॥ ॥साखी॥जग आशा जंजीरकी, गति उलटी कुल मोर ॥ ऊकस्यो धावत जगतमें, रहे बूटो इक तोर ॥१॥ ॥राग आशावरी॥ ॥ अवधू क्या सोवे तन मठमें, जाग विलोक न घटमें ॥ अवधू॥ ए आंकणी ॥ तन मनकी परतीत न कीजें, ढहि परे एक पलमें ॥ हल चल मेट खबर ले घटकी, चिन्हे रमता जलमें ॥ अवधू० ॥ १ ॥ मतमें पंचनूतका वासा, सासाधूत खवीसा ॥ बिन बिन तोही बलनकू चाहे, समजे न बौरा सीसा ॥ वधू ॥ ॥ शिरपर पंच वसे परमेसर, घटमें सूबम बारी॥आप अन्यास लखे को विरला, निरखे धूकी तारी॥अवधू०॥३॥याशा मारीथासन घर घटमें, 'अजपा जाप जपावे ॥ आनंदघन चेतनमयमूरति, नाथ निरंजन पावे ॥ श्रवधू ॥ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानंदघनजी कृत पद. ॥ पद आठमुं॥ साखशातम अनजव फलकी.नवली कोकरीत नाक न पकरे वासना, कान ग्रहे न प्रतीत ॥१॥ ___॥राग धन्याश्री अथवा सारंग ॥ ॥अनुनव नाथकू क्युं न जगावे ॥ ममता संग सो पाय अजागल, थनतें दूध उहावे ॥ ॥१॥ मैरे कहेतें खीज न कीजें, तुंही ऐसी सीखावे ॥ बहोत कहेतें लागत ऐसी, अंगुली सरप दिखावे ॥ अग ॥ ॥ औरनके संग राते चेतन, चेतन आप ब तावे ॥ आनंदघनकी सुमति आनंदा, सिंह सरूप कहावे ॥ अ० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद नवमुं॥ राग सारंग ॥ ॥नाथ निहारो आपमतासी, वंचक शठ संचक शीरीतें,खोटो खातो खतासी॥ नाथ ॥१॥ आप विगूचण जगकी हांसी, सियानप कौन बतासी॥नि जजन सुरिजन मेला ऐसा, जैसा दूधपतासी ॥ ना थ ॥ २ ॥ ममता दासी अहित करि हर विधि, वि विध नांति संतासी ॥ आनंदघन प्रनु विनति मानो, और नहिं तूं समतासी॥ नाथ ॥३॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रानंदघनजी कृत पद. ॥ पद दशमुं ॥ राग टोडी ॥ ॥ परम नरममति और न थावे ॥ प० ॥ मोहन गुन रोहन गति सोहन, मेरी बैरन ऐसें निठुर लिखावे ॥ परमं० ॥ १ ॥ चेतन गात मनातन एतें, मूल वसात जगात बढावे ॥ कोन न दूती दलाल विसीवी, पा रखी प्रेम खरीद बनावे ॥ परम० ॥ २ ॥ जांघ उघारी अपनी कहा एते, विरहजार निस मोही संतावे ॥ एती सुनी आनंदघन नावत, चौर कहा कोक मूंग बजावे ॥ परम० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ पद अगीयारमुं ॥ राग मालकोश वेलावल, टोडी ॥ ॥ श्रातम अनुभव रीति वरी री ॥ ० ॥ ए यां कणी | मोर बनाए निजरूप निरूपम, विवन रुचिकर तेग धरी री ॥ तम ॥ १ ॥ टोप सन्नाह शूरको बानो, एकतारी चोरी पहिरी री ॥ सत्ता यलमें मोह विदारत, ऐ ऐ सुरिजन मुह निसरी री ॥ तम ॥ २ ॥ केव ल कमला अपवर सुंदर, गान करे रस रंग जरी री ॥ जीत निशान बजाइ विराजे, यानंदघन सर्वंग धरी री ॥ तम ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बारमुं ॥ ॥ साख ॥ कुबुद्धि कुंजा कुटिल गति, सुबुद्धि राधिका ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ७ नारी ॥ चोपर खेले राधिका, जीते कुबजा हीर ॥१॥ ॥ राग रामग्री॥ ॥ खेले चतुर्गति चौपर ॥ प्रानी मेरो खे ॥ ए यांकणी॥ नरंद गंजीफा कौंन गिनत है, माने न लेखे बुद्धिवर ॥ प्रा०॥ १ ॥ राग दोष मोहके पासे, आप बनाए हितकर ॥ जैसा दाव परे पासेका, सारी चलावे विलकर ॥ प्रा० ॥२॥ पांच तलें है या जाइ, बका तले है एका ॥ सब मिल होत बराबर लेखा, यह विवेक गिनवेका ॥ प्रा० ॥३॥ चनरा सीमाचे फिरे नीली, स्याह न तोरी जोरी लाल जरद फिर आवे घरमें,कबद्धंक जोरी विजोरी॥प्रा॥ ॥ ४ ॥ नाव विवेकके पान न आवत, तब लग काची बाजी ॥ आनंदघन प्रनु पान देखावत, तो जीते जीय गाजी ॥ प्रा० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद तेरमुं॥ राग सारंग ॥ ॥अनुजव हम तो रावरी दासी॥अ॥आ कहां तें माया ममता,जानुं न कहांकी वासी॥अनु॥१॥ रीज परें वाके संग चेतन, तुम क्युं रहत नदासी॥ व रज्यो न जाय एकांत कंतकों, लोकमें होवत हांसी ॥ अनु० ॥ २॥ समजत नांही नितुर पति एती, पल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G . आनंदघनजी कृत पद. एक जान बमासी॥ आनंदघन प्रनु घरकी समता, घटकली और लबासी॥ अनु० ॥ ३ ॥ इति पदं । ____॥ पद चौदमुं॥ राग सारंग ॥ ॥ अनुभव तूं है हेतु हमारो ॥ अंनु० ॥ ए आं कणी ॥ आय उपाय करो चतुराइ, औरको संघ नि वारो ॥ अ॥ १॥ तृष्णा राम नामकी जाइ, कहा घर करे सवारो ॥ शठ ठग कपट कुंटुंबही पोखे, म नमें क्युं न विचारो ॥ पागंतर ॥ उनकी संगति वा रो॥०॥ ॥ कुलटा कुटिल कुबुदि संग खेलकें, अपनी पत क्युं हारो॥आनंदघन समता घर यावे, वाजे जीत नगारो ॥ १० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद पंदरमुं ॥ राग सारंग ॥ ॥ मेरे घट ग्यान जानु जयो नोर ॥ मेरे॥चेतन चकवा चेतन चकवी, नागो विहरको सोर ॥ मेरे॥१॥ फैली चिटुंदिस चतुरा नाव रुचि, मिट्यो नरम तम जोर ॥ आपकी चोरी आपही जानत, औरे कहत न चोर ॥ मेरे ॥ २ ॥ अमल कमल विकच जये जूतल, मंदविषय शशिकोर ॥ आनंदघन एक वलन लागत, और न लाख किरोर ॥ मेरे ॥३॥ इति.॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद शोलमुं॥ राग मारु॥ ॥ निशदिन जो तारी वाटडी, घरे आवो.रे ढो ला ॥ निश० ॥ मुज सरिखा तुज लाख है, मैरे तूंही ममोला ॥ निश ॥ १ ॥ जवहरी मोल करे लालका, मेरा लाल अमोला ॥ज्याके पटंतर को नही, उसका क्या मोला ॥ निशम् ॥ २॥ पंथ निहारत लोयणे, झग लागी अमोला ॥ जोगी सुरत समाधिमैं, मुनि ध्यान ऊकोला ॥ निश॥॥३॥ कौन सुनै किनकू कद, किम माहूं मैं खोला ॥ तेरे मुख दी। टले, मेरे मनका चोला ॥ निश ॥ ४ ॥ मित्त विवेक वातें कहै, सुमता सुनि बोला ॥ आनंदघन प्रनु आवशे, सेजडी रंग रोला ॥ निश० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ पद सत्तरमुं ॥ राग शोरत ॥ ॥ बोराने क्युं मारे ने रे, जाये काट्या मेण॥ बोरो महारो बालो नोलो, बोले ने अमृत वयण ॥ बो रा० ॥१॥.लेय लकुटियां चालण लागो, अब कांश फूटा डे नेण ॥ तूंतो मरण सिराणे सूतो, रोटी देशे कोण ॥ बोरा० ॥ ॥ पांच पची पचासां कपर, बोले के सूधा वेण ॥ आनंदघन प्रनु दास तिहारो, जनम जनमके सेण ॥ बोरा ॥३॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद-अढारमुं॥ राग मालकोश, रागणी गोडी॥ - रीसानी आप मनावो रे, विच वसीठ न फेर । री॥ सौदा अगम है प्रेमका रे, परख न बजे कोय ॥ ले देवाही गम पडे प्यारे, और दलाल न होय ॥ रीसा॥१॥ दो बातां जीयकी करो रे, मेटो मनकी आंट ।। तनकी तपत बूजाश्ये प्यारे, बचन सुधारस बांट ॥ रीसा ॥ २ ॥ नेक नजर निहारी रे, उजर न कीजें नाथ ॥ तनक नजर मुजरे मले प्यारे, अ जर अमर सुख साथ ॥ रीसा ॥३॥ निसि अं धियारी धनघटा रे, फावं न वाटके फंद ॥ करुणा करो तो वढं प्यारे, देखुं तुम मुख चंद ॥ रीसा ॥ ॥ ४ ॥ प्रेम जहां सुविधा नही रे, मेट कुराहित राज ॥ आनंदघन प्रठ बाय बिराजे, आपही सम तासेज ॥ रीसा० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद उगणीशमुं ॥ राग वेलावन ॥ ॥ उलह नारी तूं बडी बावरी, पिया जागे तूं सो वे ॥ पिया चतुर हम निपट अयानी, न जानें क्या होवे ॥ उल ॥१॥धानंदघन पिया दरस पियासें, खोल बूंघट मुख जोवे ॥ उल० ॥ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ११ ॥पद वीशमुं ॥ राग गोडी, आशावरी ॥ ॥याज सुहागन नारी,अवधू आज एमांकगी। मेरे नाथ आप सुध लीनी, कीनी निज अंगचारी॥ ॥अवधू ॥१॥प्रेम प्रतीत राग रुचि रंगत, पहिरें जीनी सारी॥ महिंदीनक्ति रंगकीराची, नाव अंज न सुखकारी॥ अवधू ॥ २॥ सहिज सुनाव चूरी मैं पेनी, थिरता कंकन नारी ॥ ध्यान उरवसी नरमें राखी, पिय गुनमाल आधारी ॥ अवध ॥३॥ सुरत सिंदूर मांग रंग राती, निरतें वेनी समारी॥ पजी ज्योत उद्योत घट त्रिभुवन, पारसी केवल का री ॥ अवधू ॥ ४ ॥ उपजी धुनि अजपाकी अनह द, जीत नगारेवारी ॥ जडी सदा आनंदघन बरखत, बिन मोर एकन तारी ॥ अवधू ॥ ५॥इति पदं ॥ पद एकवीशमुं॥राग गोड़ी॥ ॥ निसानी कहा बताएं रे, तेरो अगम अगोचर रूपए आंकण रूपी कहूं तो कबु नही रे, बंधे कैसे अरूप ॥रूपारूपीजो कहूं प्यारे,ऐसे न सिह अनूप ॥निसा ॥१॥ शुरू सनातन जो कहुँ रे, बंधन मो द विचार ॥ न घटे संसारी दिसा प्यारे, पुण्य पाप अवतार ॥ निसा० ॥ २ ॥ सिम सनातन जो कहुँ रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ आनंदघनजी कृत पद. उपजे विनसे कौन ॥ उपजे विनसे जो कहूँ प्यारे, नित्य अबाधित गौन ॥ निसा ॥३॥ सर्वागी सब नयधनी रे, माने सब परमान ॥नयवादी पल्लो ग्रही प्यारे, करे लरा नगन ॥ निसा ॥ ४ ॥ अनुनव अ गोचर वस्तु हे रे,जांनबो एही रे लाज॥ कहन सुननको कलु नही प्यारे, आनंदघन महाराज ॥ निसा ॥५॥ ॥पद बावीशमुं॥राग गोडी॥ ॥ विचारी कहा विचारे रे, तेरो आगम अगम थ थाह॥विण॥ए आंकणी॥ बिनु आधे आधा नही रे, बिन आधेय आधार ॥ मुरगी बिन इंमा नहीं प्यारे,या बिन मुरगकी नार ॥ वि० ॥१॥ नुरटा बीज विना नही रे, बीज न चुरटा टार ॥ निसि बिन दिवस घटे नही प्यारे, दिन बिन निसि निरधार ॥ वि० ॥२॥ सिम संसारी बिन नहि रे, सिम बिना संसार ॥ कर तां बिन करनी नहि प्यारे, बिन करनी करतार ॥ ॥वि०॥३॥ जामन मरण बिना नही रे, मरण न जनम विनाश ॥ दीपक बिन परकाशता प्यारे, बिन दीपक परकाश ॥ वि० ॥४॥ आनंदघन प्रनु वचन की रे, परिणतिधरोरुचिवंत ॥शाश्वत नाव विचारके प्यारे, खेलो अनादि अनंत ॥ वि०॥५॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कत पद. ॥ पद त्रेवीशमुं॥ राग आशावरी ॥ ॥ अवधू अनुनव कलिका जागी॥ मति मेरी या तम समरन लागी॥०॥ए आंकणी॥ जाये न क हुँ उरढिग नेरी, तेरी विनता वेरी ॥ मायाचेरी कुंटुंब करी हाथे, एक मेढ दिन घेरी ॥ ॥१॥ जरा जनम मरन वस सारी, असरन उनियां जेती॥ देढव कांइन बागमें मीयां, किसपर ममता एती॥ ॥१०॥ २ ॥ अनुनव रसमें रोग न सोगा, लोक वाद संबं मेटा॥ केवल अचल अनादि अबाधित, शिव शंकरका नेटा ॥ अ० ॥ ३॥ वर्षा बुंद समुश् समा नी, खबर न पावे कोई ॥ आनंदघन ठहै ज्योति स मावे, अलख कहावे सोई॥ अ० ॥४॥ इति पदं ॥ पद चोवीशमुं ॥ राग रामग्री ॥ ॥ मुने महारो कब मिलसे मनमेलू॥मु० ॥मनमे लुविण केलि न कलिये, वाले कवल कोश्वेतू ॥मु०१॥ आप मिव्याथी अंतर राखे, सुमनुष्य नही ते लेतू ॥ आनंदघन प्रनु मन मलियाविण,कोनवि विलगेचेन। ॥ पदपञ्चीशमुं ॥ राग रामग्री॥ ॥क्यारें मुने मिलशे माहारो संत सनेही क्यारे॥ ॥ टेक ॥ संत सनेही सूरिजन पाखे,राखे न धीरज दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ आनंदघनजी कृत पद. ही ॥ क्यारे॥१॥ जन जन आगल अंतरगतनी, वातडली कहूँ केही ॥ आनंदघन प्रनु वैद्य वियोगें, किम जीवे मधुमेही ॥ क्या ॥२॥ इति पदं ॥... ॥ पद बबीशमुं॥ राग आशावरी ॥ ॥ अवधू क्या मामु गुनहीना, वे गुन गनि न प्रवी ना॥अाए अांकणी॥गाय न जानुं बजाय न जानु, न जानुं सुर नेवा॥रीज न जानुं रीजाय न जानु,न जा नुं पदसेवा ॥ अ॥१॥ वेद न जानुं किताब न जानु, जानुं न लबन बंदा ॥ तरकवादविवाद न जानु, न जानुं कवि फंदा ॥ ॥॥जाप न जानु जुवाबन जानु, न जानुं कविवाता ॥ नाव न जानु नगति न जानु, जानुं न सीरा ताता॥०॥३॥ ग्यान न जानुं विग्यान न जानु, न जानुं जजनामां पागंतर॥ न जानु पदनामा ॥ आनंदघन प्रनुके घरछारे, रटन करूं गुणधामा ॥०॥४॥ इति पदं ॥ ॥ पद सत्तावीशमुं॥ राग आशावरी॥ ॥अवधू राम राम जग गावे, विरता अलख लखावे ॥अ॥एयांकणी॥ मतवाला तो मतमें माता, मठ वाला मराता ॥ जटा जटाधर पटा पटाधर, बता उता धर ताता॥०॥१॥ आगम पढि आगमधर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानंदघनजी कृत पद. १५ थाके, माया धारी बाके || दुनियांदार डुनीसें लागे, दासा सब शाके ॥ ० ॥ २ ॥ बहिरातम मूढा जगजेता, मायाके फंद रहेता ॥ घट अंतर परमातम नावे, दुर्जन प्राणी तेता ॥ ० ॥ ३ ॥ खगपद ग गन मीनपद जलमें, जो खोजे सो बौरा ॥ चित पं कज खोजे सो चिन्हे, रमता यानंद चौंरा ॥ श्र०॥४॥ ॥ पद अहावीशमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ याशा औरनकी क्या कीजें, ग्यान सुधारस पी जें ॥० ॥ ए यांकण ॥ नटके द्वारद्वार लोकनके, कूकर याशाधारी ॥ श्रातम अनुभव रसके रसीया, उतरे न कबहुं खुमारी ॥ आशा ० ॥ १ ॥ याशा दा सीके जे जाये, ते जन जगके दासा ॥ याशा दासी करे जे नायक, लायक अनुभव प्यासा ॥ आशा० ॥ ॥ २ ॥ मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अनि पर जाली ॥ तन जाती श्रंवटाइ पिये कस, जागे अनुभव लाली ॥ आशा० ॥ ३ ॥ अगम पीयाला पीयो मत वाला, चिन्ही अध्यातम वासा ॥ श्रानंदघन चेतन है खेले, देखे लोक तमासा ॥ श्राशा ० ॥ ४॥ इति पदं ॥ ॥ पद गात्रीशमुं ॥ राग श्राशावरी ॥ ॥ अवधू नाम हमारा राखे, सो परम महारस चा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. खे॥०॥ ए बांकणी ॥ नही दम पुरुषा नहि हम नारी, वरन न जात हमारी॥ जाति न पांति न सा धन साधक, नही हम लघु नही नारी ॥ अ०॥१॥ नही हम ताते नही हम सीरे,नही दीर्घ नही बोटा॥ नही हम नाइ नही हम नगिनी, नही हम बाप न बेटा ॥अ॥२॥ नही हम मनसा नही हम शब्दा, नही हम तरणकी धरणी ॥ नही हम नेख नेख धर नांही, नही हम करता करणी॥अ॥३॥ नही हम दरसन नही हम परसन,रस न गंध कल नांही॥आनं दघन चेतनमय मूरति, सेवकजन बलि जाहीं ॥४॥ ॥ पद त्रीशमुं॥ राग आशावरी॥ ॥साधो नाइ समता रंग रमीजें,अवधू ममता संग न कीजें ॥ सा॥ ए आंकणी ॥ संपति नांहिं नाहिं ममता में,ममतामा मिस मेटेखाट पाट तजी लाख खटाउ, अंत खाखमें लेटे ॥ सा० ॥ १ ॥धन धर तीमें गाडे बोरे, धूर आप मुख व्यावे ॥ मुखक साप होवेगो आखर, तातें अलहि कहावे ॥ सा ॥२॥ समता रतनागरकी जा,अनुजव चंद सुनाइ॥ का लकूट तजी नावमैं श्रेणी, आप-अमृत ले आइ॥सा ॥३॥ लोचन चरन सहस चतुरानत, श्नतें बहुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. १७ मराइ ॥ श्रानंदघन पुरुषोत्तम नायक, हित करी कंठ लगाइ ॥ सा० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकत्रीभुं ॥ श्रीराग ॥ ॥ कित जांनमतें हो प्राननाथ, इत याय नि हारो घरको साथ ॥ कि० ॥ १ ॥ उत माया काया कब न जात, यहु जड तुम चेतन जग विख्यात ॥ कि० ॥ उत करम नरम विष वेलि संग, इत परम नरम मति मेलि रंग ॥ किं० ॥ २ ॥ उत काम कपट मंद मोह मान, इत केवल अनुभव अमृत पान ॥ अनि कहे समता उत दुःख अनंत, इत खेले यानंदघन वसंत ॥ कि० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बत्रीशमुं ॥ राग सामेरी ॥ ॥ निठुर नये क्यूं ऐसें, पीया तुम ॥ निठुर० ॥ ए यांकणी ॥ मेंतो मन वच क्रम करी राजरी, राजरी रीत नेसें ॥ नि ॥ १ ॥ फूल फूल नमर कैसी जांबरी जरत डुं, निव प्रीत क्यूं ऐसें ॥ मेंतो पीयुतें ऐसी मलि थाली, कुसुम वास संग जैसें ॥ नि० ॥ २ ॥ ऐंटी जान कहा परे एती, नीर निवहियें जैसें ॥ गुन यव गुन न विचारो खानंदघन, कीजियें तुमहो तैसें ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद तेत्रीशमुं ॥ राग गोडी॥ ___॥ मिलापी आन मिलावो रे, मेरे अनुनव मीठडे मित्त ॥ मि ॥ चातक पीन पीन रटे रे, पीउ मिलाव न यान ॥ जीव पीवन पीन पीठ करे प्पारे, जीन नीन आन ए यांन ॥ मि० ॥१॥ मुखीयारी निस दिन रहूं रे, फिरूं सब सुध बुछ खोय ॥ तन मनकी कबहुँ लडं प्यारे, किसें दिखा रोय ॥ मि ॥ ॥ निसि अंधारी मुहि हसे रे, तारे दांत दिखाय ॥ नादो कादो में कीयो प्यारे, असुअन धार वहाय ॥ मि ला॥३॥ चित्त चातक पीन पीन करे रे, प्रणमे दो कर पीस ॥ अबलागुं जोरावरी प्यारे, एती न कीजें रीस ॥ मिला० ॥४॥अातुर चातुरता नही रे, सुनि समता टुक बात ॥ आनंदघन प्रनु आय मिले प्यारे, आज घरे हर जांत ॥ मिला० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद चोत्रीशमुं ॥ राग गोडी॥ ॥ देखो बाली नट नागरको सांग ॥ दे॥ और ही और रंग खेलति तातें, फीका लागत अंग ॥ देण ॥१॥ औरह तो कहा दीजें बहुत कर, जीवित है जह ढंग ॥ मैरो और विच अंतर एतो, जैतो रू रंग ॥ दे॥३॥ तनु सुध खोय घूमत मन ऐसें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानंदघनजी कृत पद. १ ए मानुं कबुक खाई जंग ॥ एते पर श्रानंदघन नावत, और कहा कोन दीजें संग ॥ दे० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद पांत्रीशमं ॥ राग दीपक अथवा कान्हरो ॥ ॥ करे जारे जारे जारे जा ॥ करें ० ॥ सजि सपगार बनाये नूखन, गइ तब सूनी सेजा ॥ करें० ॥ १ ॥ विरहव्यथा कबु ऐसी व्यापति, मानुं कोई मारति बेजा ॥ अंतक अंत कहांलूं जेगो प्यारे, चाहे जीव तूं लेजा ॥ करे० ॥ २ ॥ कोकिल काम चंद चूता दिक, चेतन मत है जेजा ॥ नवल नागर खानंदघन प्यारे, या यमित सुख देजा ॥ करे ० ॥ ३ ॥ इतिपदं ॥ ॥ पद छत्रीशमं ॥ रागं मानसिरि ॥ ॥ वारे नाद संग मेरो, यूंही जोवन जाय ॥ ए दिन हसन खेलनके सजनी, रोते रेन विहाय ॥ वा रे० ॥ १ ॥ नग भूषणसें जरी जातरी, मोतन कबु न सुहाय ॥ इक बुद्ध जीयमें ऐसी आवत है, लीजें री विष खाय ॥ वारे० ॥ २ ॥ नां सोवत है लेत न सास न, मनही में पिबताय ॥ योगिनी हुयकें निक घरतें, खानंदघन समजाय ॥ वारे ॥ ३ ॥ इतिपदं ॥ ॥ पद साडीमुं ॥ राग वेलावल ॥ • ॥ ता जोगें चित्त व्यानं रे वाहाला ॥ ता० ॥ समकित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० आनंदघनजी कृत पद. दोरी शील लंगोटी, घुल घुल गांव घुलाचं ॥ तत्त्व गु फामें दीपक जोनं, चेतन रतन जगाचं रे वहाला॥ता ॥१॥ अष्ट करम कंमैकी धूनी, ध्याना अगन जला नं ॥ उपशम बनने जसम बणावं, मली मली अंग लगांचं रे वहाला ॥ ता० ॥ २ ॥ आदि गुरुका चेला हो कर, मोहके कान फरावं ॥ धरम शुकल दोड मुश सोहे, करुणा नाद बजाउं रे वहाला.॥ तास ॥ ३ ॥ इह विध योग सिंहासन बैग, मुगति पुरीकू ध्यानं ॥ आनंदघन देवेंसें जोगी, बदुर न कलिमें आ रे वहाला ॥ ता० ॥ ४ ॥ ॥पद आडत्रीशमुं ॥ राग मारु ॥ ॥मनसा नटनागरसूं जोरी हो।म॥ नटनागरसूं जोरी सखी हम, और सबनसों तोरी हो ।म॥१॥लो क लाजतूं नांहीं न काज, कुल मरयादा बोरी हो। लोक बटान हसो बिरानो, अपनो कहत न कोरी हो ॥ म० ॥ ॥ मात तात अरु सजान जाति, वात क रत है जोरी हो॥चाखे रसकी क्युं करि लूटे, सुरिजन सुरिजन टोरी हो ॥ ३ ॥ औरहनो कहा कहावत और, नांहि न कीनी चोरी हो॥कान कल्यो सो ना चत निवहे, और चाचर चर फोरी हो ॥म० ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद ५१ ग्यानसिंधू मथित पाइ, प्रेम पीयूष कटोरी हो। मोदत आनंदघन प्रनु शशिधर, देखत दृष्टि चकोरी हो॥५॥ ॥ पद गणचालीशमुं॥राग जयजयवंती ॥ ॥ तरसकीज दरको दश्की सवारी री, तीक्ष्ण क टाद बटा लागत कटारीरी॥तर ॥१॥ सायक लाय • क नायक प्रानकोपहारीरी,काजर काज न लाज बाज न कहुँ वारीरी॥ तर॥॥ मोहनी मोहन ठग्यो जगत उगारीरी,दीजीयें यानंदघन दाह हमारी॥तर० ३॥ ..॥ पद चालीशमुं॥ राग आशावरी ॥ .. . ॥ मीठडो लागे कंतडोने, खाटो लागे लोक ॥ तविहूणी गोठडी, ते रण मांहै पोक ॥ मी० ॥ १ ॥ कंतडामें कामण, लोकडामें शोक ॥ एकतामें केम र हे, दूध कांजी थोक ॥ मी० ॥ २ ॥ कंतविण चन गति, आणुं मानुं फोक ॥ उघराणी सिरड फिर ड, नाणुं तेजें रोक ॥ मी०॥३॥ कंत विना मति मारी, अहवाडानी बोक ॥ धोक झुं आनंदघन, अवरने ढोक ॥ मी० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकतालीशमुं ॥ वेलावल अथवा मारु ॥ ॥पीया बिनु सुन बुझ नूती हो, आंख लगा ३ःख महेलके, जरूखे फूली हो ॥ पीया ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. हसती तबलु बिरानीया, देखी तन मन बीज्यो हो। समजी तब एती कही, को नेह न कीज्यो हो ॥ ॥ पीया ॥२॥ प्रीतम प्राणपति विना, प्रिया कैसे जीव हो ॥प्रान पवन विरहा दसा, जयंगम पीवं हो ॥ पिया० ॥३॥ शीतल पंखा कुम कुमा, चंदन कहा लावे हो ॥ अनल न विरहानल ये है, तन ताप ब. ढावे हो ॥ पीया ॥ ४ ॥ फागुन चाचर इक निसा, होरी सिरगानी हो ॥ मैरे मन सब दिन जरे, तन खाख उडानी हो ॥ पीया ॥ ५ ॥ समता महेल बिराज है, वाणी रस रेजा हो ॥ बलि जानं आनंद, धन प्रनु, ऐसें नितुर नव्हेजा हो ॥ पीया ॥६॥ ॥ पद बेंतालीशमुं ॥ राग सारंग अथवा बाशावरी ॥ ॥ अब हम अमर नये न मरेंगे ॥ ०॥या का रन मिथ्यात दीयो तज, क्युं कर देह धरेंगे । अ० ॥१॥राग दोसे जग बंध करत है, इनको नास करेंगे। मस्यो अनंत कालतें प्रानी, सो हम का ल हरेंगे ॥ अ॥२॥ देह विनासी हूं अविनासी, अपनी गति पकरेंगे॥ नासी जासी हम थिर वासी, चोखे व्है निखरेंगे ॥ अ० ॥ ३ ॥ मयो अ नंत वार बिन समज्यो, अब सुख दुःख विसरेंगे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ आनंदघनजी कृत पद. आनंदघन निपट निकट अकर दो, नहीं समरे सो मरेंगे ॥ ०॥ ॥पद तालीशमुं। राग टोडी॥ ॥ मेरी तुं मेरी तुं कांहीं मरेरी॥मेरी॥कहे चेतन समता सुनि आखर,और मैढदिन जून लरे री॥मेरी॥ ॥१॥एतीतो हुँ जानुं निह,रीरी पर न जरान जरे री॥ जब अपनौ पद आप संजारत, तब तेरे परसंग परे री॥ मेरी० ॥ औसर पा अध्यातम सैली, परमातम निज योग धरे री॥ सक्ति जगावे निरुपम रूपकी, आनंदघन मिति केलि करे री ॥ मेरी० ॥ ॥ इति पदं ॥ ॥पद चुम्मालीशमुं॥ राग टोडी॥ ॥ तेरी हुँ तेरी एती कहूं री, इन बातमें दगो तुं जाने, तो करवत कासी जाय गहूं री॥ तेरी॥१॥ वेद पुराण कितेब कुरानमें, आगम निगम कबु न लहूं री॥ वाचा फोर सिखाइ सेवनकी, में तेरे रस रंग रहूं री तेरी॥॥ मैरे तो तुं राजी चहियें, औ रके बोल में लाख सहूरी॥आनंदघन पिया वेग मि लो प्यारे, नहीं तो गंग तरंग वहूं री॥ तेरी० ॥३॥ वापद पीस्तालीशमुं॥राग टोडी॥ ॥गोरी गोरी लगोरी जगोरी,ए आंकणीममता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ आनंदघनजी कृत पद. माया बातमलेमति,अनुनव मेरी और दगोरी ।गो . ॥१॥नात न तात न मात न जात न,गात न वात न लागत गोरी ॥ मैरें सबदिन दरसन परसन,तान सुधा रस पान पगोरी॥ गो० ॥१॥ प्रान नाथ विबरेकी वेदन, पार न पावू अथग थगो री॥आनंदघन प्रनु द शंन औघट, घाट उतार न नाव मगोरी॥ गो॥३॥ ॥पद तालीशमुं॥ राग टोडी॥ .. ॥ चेतन चतुर चोगान लरीरी॥चे॥ जीत लै मोहरायको लसकर, मिसकर बांक अनाद धरी री॥ ॥चे॥१॥ नांगी काढले ताड ले उसमन, लागे का ची दोय घरीरी॥ अचल अबाधित केवल मनसुफ, पावे शिव दरगाह नरी री ॥ आ॥२॥और लराई लरे सो बावरा,सूर पाडे नांचं अरीरी॥धरम मरम कहा बूजे न औरें,रहे आनंदघन पद पकरीरी॥आ०३ ॥ पद सुडतालीशमुं॥ राग टोडी॥ ॥ पिय बिन निस दिन फूलं खरी री॥पिय॥ ए आंकणी ॥ लगुडी वडीकी कहानी मिटा ॥धारतें आंखे कवन टरीरी॥पिय॥१॥पट नूखन तन नौंक न उढे, नावे न चोंकी जरा जरीरा॥ शिवकमला आ ली सुख नन पावत,कौन गिनत नारी अमरी॥पियू० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. श्‍ ॥ २ ॥ सास विसास उसास न राखे, निपद- निगो जोर तरीरी ॥ और तबीब न तपत बुफावत, आनंद घन पीयूषऊरी री ॥ पिया० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद अडतालीशमुं ॥ राग मारु, जंगलो ॥ ॥ मायडी मुने निरपख किाही न मूकी ॥ निर पख० ॥ माय० ॥ निरपख रहेवा घणुंही फूरी, धीमे निजमति फूकी ॥ माय ॥ १ ॥ योगीयें मलीने योगा कीनी, यतियें कीनी यतणी ॥ जगतें पकडी जगताली कीनी, मतवाले कीनी मतणी ॥ माय ॥ २॥ केणे मूकी के जूंची, केणे केसें लपेटी ॥ एकपखो में कोई न देख्यो, वेदना किाही न मेटीं ॥ माय० ॥ ३॥ राम न ए रहीमान नपाई, अरिहंत पाठ पढाई ॥ घरघरने ढुं धंधे वलगी, अजगी जीव सगाई ॥ माय ॥ ४ ॥ केणे ते थापी के नथापी, केणे चलावी कि रा रखी ॥ केणे जगाडी केणे सूखाडी, कोईनुं कोई नयी साख ॥ माय० ॥ ५ ॥ धींग दुर्बलने ठेलीजें, गंगे वींगो वाजे ॥ अबला ते केम बोली शकियें, वड योधाने राजे ॥ माय० ॥ ६ ॥ जे जे कीधुं जे जे कराव्युं, तेह कहेती हूं. लाजुं ॥ थोडे कहे घणुं प्रीटी लेजो, घरगुं तीरथ नहीं बीजुं ॥ माय० ॥ ७ ॥ चाप वीती कहेतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ आनंदघनजी कृत पद. रीसावे, तेथी जोर न चालायानंदघन वाहालो बाद डी जाले,तो बीजु सघर्बु पाले ॥ माय॥ ॥ इति॥ ॥ पद गणपञ्चाशमुं॥ राग सोरठ ॥ ॥ कंचन वरणो नाह रे, मुने कोय मिलावो॥॥ अंजन रेख न आंख न जावे, मंजन शिर पडो दाह रे। मुने कोय ॥१॥ कौन सेन जाने पर मनकी, वेदन विरह अथाह ॥ थरथर भ्रूजे देहडी मारी, जिम वानर नरमाह रे ॥मुने ॥२॥ देह न गेह न नेह न रेह न, नावे न दूहा गाहा ॥ आनंदघन वालो बां हडी जाले, निशदिन धरूं उमाहा रे ॥ मुने ॥ ३ ॥ ॥ पद पच्चारामुं॥ राग धन्याश्री॥ ॥ अनुनव प्रीतम कैसे मनासी ॥ १०॥ बिन नि र्धन सधन बिन निर्मल, समत रूप बतासी॥ अनु ॥१॥ बिनमें शक तक फुनि बिनमें, देखें कहत अनासी ॥ विरज न विच आपा हितकारी, निर्धन त खतासी ॥ अनु० ॥ ॥ तोहि तूं मैरो मैं हि तुं तेरी, अंतर का हैं जनासी ॥आनंदघन प्रनु आन मिलावो, नहितर करो धनासी ॥ अनु० ॥ ३ ॥ ॥ पद एकावनमुं॥ राग धमाल ॥ ॥नाउंकी राति कातीसी वहे, गतीय बिन बिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानदधनजी कृत पद. १७ बीना ॥ नाई ॥ १ ॥ प्रीतम सब बबी निरखके हो, पीन पीच पीच कीना । वाही बिच चातक करे हो, प्रान हरे परवीना ॥ ना० ॥ २ ॥ एक निसि प्रीतम नांचंकी हो, वि सर गई सुध नाउ ॥ चातक चतुरविना रही हो, पीन पीठ पीठ पीठ पाठ ॥ नाई ० ॥ ३ ॥ एक समे यालापके हो, कीने खडाने गान ॥ सुघर बपीहा सुर धरे हो, देत है पीठ पीन तान ॥ जाडुं० ॥ ४ ॥ रात विनाव विज्ञात है हो, उदित सुनाव सुजान ॥ सुमता साच मते मिले हो, खाए यानंदघन मान ॥ नाई ॥ ५ ॥ ॥ पद बावनमुं ॥ राग जयजयवंती ॥ || मेरे प्रान यानंदघन तान यानंदघन ॥ ए यां की || मात खानंदघन तात यानंदघन, गात यानं दघन जात यानंदघन ॥ मे० ॥ १ ॥ राज यानंदघन काज यानंदघन, साज आनंदघन लाज आनंदघन ॥ मे० ॥ २ ॥ यान यानंदघन गान आनंदघन, नान यानंदघन जान यानंदघन ॥ मे० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद त्रेपनमुं ॥ राग सोरठ मुलतानी ॥ ॥ नटरागिणी ॥ सहेली ॥ ॥ सास दिल लगा है, बंसीवारेसूं ॥ बंसीवारें प्रान प्यारें ॥ सा० ॥ मोर मुकुट मकराकृतकुंमल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. आनंदघनदी कृत पद. पीतांबर पटवारेसं ॥सा॥१॥चंद चकोर जये प्रान पपईया, नागरनंद दूंलारेतूं ॥ इन सखीके गुन गंश्प गावे, आनंदघन उजीयारेसं ॥ सा ॥२॥ इति ॥ ॥ पद चोपनमुं॥ राग प्रजाती आशावरी ॥रातडी - रमीने किहांथी आविया ॥ ए देशी॥ ॥ मूलडो थोडो नाई व्याजडो घणो रे, केम करी दीधो रे जाय ॥ तलपद पूंजी में आपी संघली रे, तोहे व्याज पूरूं नवि थाय॥मू॥१॥व्यापार नागो जलव ट थल वटें रे, धीरे नहीं नीसानी माय ॥ व्याज बो डावी कोश खंधा परग्वे रे, तो मूल आपुं सम खाय ॥मू॥॥ हाटडं मांडं रूडा माणक चोकमां रे, सा . जनीयांनुं मनडुं मनाय ॥ आनंदघन प्रनु शेत शिरो मणि रे, बांहडी जालजो रे आय॥ मू॥३॥ इति ॥ ॥ पद पंचावनमुं ॥ राग धन्याश्री॥ . ॥ चेतन आपा कैसें लहो ॥ चे॥ सत्ता एक अ खंम अबाधित, शह सिद्धांत पख जो॥चे ॥१॥ न्वय अरु व्यतिरेक हेनको, समज रूप चम खोया रोपित सब धर्म और है,आनंदघन तत सोशाचे॥२॥ ॥ पद उप्पनमुं॥ राग धन्याश्री॥ ॥ बालुडी अबला जोर किश्यं करे, पीनडो ,पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. २ए घर जाय ॥ पूरवदिसि पलिम दिसि रातडो, रवि अ स्तंगत थाय ॥ बा ॥ १ ॥ पूनम ससी सम चेतन जाणीयें, चंशतप सम जाण ॥ वादल नर जिम दल थिति आणीये,प्रकृति अनावृत जाण ॥ बा० ॥ २ ॥ परघर जमतां स्वाद किशो लहे, तन धन यौवन हा ए ॥ दिन दिन दीसे अपयश वाधतो, निज जन न माने कांण ॥ बा ॥३॥ कुलवट बांमी अवट कवट पडे,मन मेहूवाने घाट ॥ आंधो आंधे मिले बे जण, कोण देखाडे वाट ॥ बा॥४॥ बंधु विवेकें पीनडो बूजव्यो, वास्यो परघर संग ॥ आनंदघन समताघर आणे, वाधे नव नव रंग ॥ बा० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद सत्तावनमुं ॥राग आशावरी ॥ ॥ देखो एक अपूरव खेला, आपही बाजी आप ही बाजीगर, थाप गुरु आप चेला । देखो॥१॥ लोक अलोक बिच आप बिराजित, ग्यान प्रकाश अकेला ॥ बाजी गंम तहां चढ बैठे, जिहां सिंधुका मेला ॥ देखो ॥२॥ वाग्वाद खटनाद सढुमें, किसके किसकें बोला॥पाहाणको नार कांही उठावत,एक तारें का.चोला ॥ देखो॥३॥षटपद पदके जोगसिरिखस, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० आनंदघनजी कृत पद. क्योंकर गजपद तोला ॥ आनंदघन प्रनु आय मिलो तुम, मिट जाय मनका जोला ॥ देखो० ॥ ४॥ ॥ पद अपवनमुं॥ राग वसंत ॥ ॥ प्यारे आय मिलो कहायेंतें जात, मेरो विरह व्यथा अकुलात घात ॥ प्यारे ॥ १ ॥ एक पेसान र न नावे नाज, न नूषण नही पट समाज ॥ प्यारे ॥ ॥ मोहन रास न दूसत तेरी आसी, मदनो जय है घरकी दासी॥ प्यारे॥३॥ अनुजव जाहके करो विचार, कद देखे दै वाकी तनमें सार ॥ प्यारे ॥४॥ जाय अनुनव जर समजाये कंत, घर आये आनंदघन नये वसंत ॥ प्यारे ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद उगपशामुं ॥ राग कल्याण ॥ ॥ मोकू कोक केसी ढूंतको, मेरे काम एक प्रान जीवनसं, और नावे सो बको ॥ मो० ॥ १ ॥ में आयो प्रनु सरन तुमारी, लागत नाही. धको ॥ नु ज न उठाय कहूं औरनसं,करहुँ जकरहीसको।मो॥ ॥ ॥ अपराधि चित्त गन जगत जन, कोरिक नां त चको ॥ आनंदघन प्रचु नहचे मानो, इह जन रावरो थको ॥ मो० ॥३॥ इति पदं ॥ - .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद शाउमुं॥ राग सारंग ॥ ॥ अब मेरे पति गति देवनिरंजन ॥ अ० ॥ जट कू कहा कहा सिर पटकू, कहा करूं जन रंजन ॥ ॥ १०॥ १ ॥ खंजन दृगन दृगन लगावं, चाहूं न चितवन अंजन ॥ संजन घट अंतर परमातम, सकल मुरित जय नंजन ॥ अ० ॥ २ ॥ एह काम गवि एह काम घट, एही सुधारस मंजन ॥ आनंद घन प्रनु घटवनके हरि, काम मतंग गज गंजन ॥ अ० ॥३॥इति पदं ॥ ॥ पद एकशमुं॥ राग जयजयवंती॥ ____॥ मेरी सुं तुमतें जूं कहा, दूरीके होने सबैरी री॥ ॥ मे॥१॥ रूठेसें देख मेरी, मनसा फुःख घेरी री॥ जाके संग खेलो सोतो, जगतकी चेरी री॥ मे ॥२॥ शिरवेदी आगे धरे, और नहीं तेरी री॥आनंदघन कीसो, जो कहुँ ढुं अनेरी री॥ मे ॥३॥ इति पदं ॥ पद बाशवमुं ॥ राग मारु ॥ ॥ पीयाबिन सुधबुछ मूंदी हो, विरह नुयंग नि सा समे, मेरी सेजडी बूंदी हो ॥ पी० ॥ १ ॥ नो यण पान कथा मिटी, किसकुं कहुँ सूधी हो ॥ आ ज,काल घर आनकी, जीव आस विजुड़ी हो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ आनंदधनजी कृत पद. ॥ पी० ॥ २ ॥ वेदन विरह अथाह है, पाणी नव नेजा हो ॥ कौन हबीब तबीब है, टारे कर करेजा हो ॥ पी० ॥ ३ ॥ गाल हथेली लगायके, सुरसिंधु समेली हो ॥ असुअन नीर वहायकें, सींचूं कर वे ली हो॥पी०॥४॥ श्रावण नाउँ घनघटा, बिच बीज बूका हो ॥ सरिता सरवर सब नरे, मेरा घ टसर सब सूका हो ॥ पी० ॥ ५॥ अनुनव बात बनायकें, कहे जैसी नावे हो ॥ समता टुक धीरज धरे, आनंदघन आवे हो ॥पी॥ ६ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद त्रेशमें ॥ राग मारु॥ . - ॥ब्रजनाथसें सुनाथ विण, हाथो हाथ विकायो । बिचकों कोन जनकपाल, सरन नजर नायो॥ व ॥ ॥ १॥ जननी कहुँ जनक कहुँ, सुत सुता कहायो॥ ना कहुँ नगिनी कहूं, मित्र शत्रु नायो ॥ ॥२॥ रमणी कढुं रमण कडं, राज रज उतायो । सेवकप ति इंद चंद,कीट नुंग गायो ॥ ७ ॥३॥ कामी कहुं नामी कहूं, रोग जोग मायो ॥ निशपतिधर देह गेह,धरि विविध विध धरायो॥७॥४०॥ विधिनि षेध नाटक धरी, नेख आठ बायो॥जाषा षट् वेद चार, सांग गुरु पढायो ॥॥५॥ तुमसें गजरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ज पाय, गर्दन चढी धायो ॥ पायस सुग्रहको विसा री, नीख नाज खायो ॥ ७० ॥ ६ ॥ लीलाचुंह टुक न चाय, कहोजु दास आयो । रोमरोम पुलकित हूं, परम लान पायो ॥७॥७॥ एरि पतितके नधारन तुम, कहिसो पीवत मामी ॥ मोसुं तुम कब उधा रो, क्रूर कुटिल कामी ॥ ७० ॥ ७ ॥ और पतित के ३ नधारे, करणी बिनुं करता ॥ एक काही नावं ले लं, जूठे बिरुद धरता ॥७॥ए ॥ करनी करी पा र जए, बहोत निगम साखी ॥ शोना दर तुमकू ना श्र, अपनी पत राखी॥ ब्र॥ १०॥ निपट अज्ञानी पापकारी, दास है अपराधी॥ जानु जो सुधार हो,थ ब नाथ लाज साधी॥ ७० ॥ ११॥औरको उपासक ढूं, कैसें को उधारूं ।। उविधा यह राखो मत,या वरी विचारूं॥ ॥१॥ गई सो तो गइ नाथ, फेर नहिं कीजें ॥धारे रह्यो ढीग दास, अपनो करी लीजें ॥ ॥७॥१३॥ दासकों सुधारी लेदु, बदुत कहा कहियें। , आनंदघन परम रीत, नालंकी निवहियें॥ ॥१४॥ ॥पद चोशमुं॥ राग वसंत ॥ ॥ अब जागो परमगुरु परमदेव प्यारे, मेटदु हम तुमः बिच नेद ॥०॥१॥ बाली लाज निगोरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ आनंदघनजी कृत पद. गमारी जात, मुहि आन मनावत विविध नात ॥ अ॥२॥ अलि पर निर्मली कुलटी कान, मुहि तुहि मिलन बिच देत हान ॥ अ॥३॥ पति म तवारे और रंग, रमे ममता गणिकाके प्रसंग ॥ ॥४॥ जब जड तो जड वास अंत, चित्त फूले था नंदघन जय वसंत ॥ अ ॥ ५॥ इति पदं॥ ॥ पद. पांशतमुं॥ . . ॥साखी॥रास ससी तारा कला, जोसी जोड्ने जोस ॥रमता सुमता कब मिले॥ (पाठांतर ॥ातम मित्ता किम मिले) नांगे विरहा सोस ॥१॥ • ॥ गोडी रागमां ॥ ॥पीया बिन कौन मिटावे रे, विरहव्यथा असरा लाप ॥१॥ निंद नीमागी आंख तेरे, नाती मुज दुःख देख ॥ दीपक शिर मोले खरो प्यारे, तन थिर धरे न निमेष ॥ पी० ॥२॥ ससि सरिण तारा जगी रे, विनगी दामिनी तेग ॥ रयणी दयण मते दगो प्यारे, मयण सयण विनु वेग ॥पी० ॥३॥ तनपिंज र फरे पस्यो रे, कडी न सके जोन हंस ॥ विरहानल जाला जली प्यारे, पंख मूल निरवंस ॥पी ॥४॥ सासासें वढाककों रे, वाद वदे निशि राम ॥ न भने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. कसासा मनी प्यारे, हटकै न रयणीमांम॥ पी०॥॥ इह विधि जे जे घरधणी रे, उससुं रहे उदास ॥ हर विध आई पूरी करे प्यारे, आनंदघन प्रनु आसपी० ॥६॥ ॥ पद बाशमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥साधु नाश् अपना रूप जब देखा ॥ साधु ॥ करता कौन कौन फुनी करनी, कौन मागेगो लेखा। ॥ साधु ॥ १ ॥ साधुसंगति अरु गुरुकी कृपातें, मिट ग कुलकी रेखा ॥आनंदघन प्रनु परचो पायो, कतर गयो दिल जेखा ॥ साधु ॥ २ ॥ इति पदं । ॥ पद सडशठमुं ॥ राग आशावरी ॥ ____॥राम कहो रहेमान कहो कोउ,कान कहो महादेव री॥ पारसनाथ कहो कोउ ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव री॥राम॥१॥नाजन नेद कहावत नाना, एक मृत्ति का रूपरी ॥ तैसें खंम कल्पना रोपित, आप अखंम स रूपरी॥ राम ॥२॥ निजपद रमे राम सो कहियें, र हिम करे रहेमान री॥करशे करम कान सो कहियें,म हादेव निर्वाण री॥राम॥३॥ परसे रूप पारस सो कहियें, ब्रह्म चिन्हे सो ब्रह्म री॥ह विध साधो श्राप आनंदघन, चेतनमय निःकमरी॥राम॥॥इतिपदं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद अडशमुं ॥ राग अशावरी ॥ ... ॥ साधुसंगति बिनु कैसें पैयें, परम महारस धाम री॥ ए आंकणी ॥ कोटि उपाय करे जो बौरो, अनुनव कथा विशराम री॥ साधु०॥१॥ शीतल स फल संत सुरपादप, सेवे सदा सुबां री ॥ वंबित फ ले टले अनवनित, नवसंताप बजाइर। ॥ साधु० ॥ ॥ २ ॥ चतुरविरंची विरंजन चाहे, चरणकमल मक रंद री ॥ को हरि नरम विहार दिखावे, शुक्ष निरंज न चंद री ॥ साधु० ॥३॥ देव असुर इंश पद चादु न, राज न काज समाजरी ॥ संगति साधु निरंतर पावं, आनंदघन महाराज री॥ साधु०॥४॥ इति ॥ ॥ पद उगणोतेरमुं॥ राग अलहियो, वेलावल ॥ ॥प्रीतकीरीत नही होप्रीतम॥प्रीत॥ मैं तो अ पनो सरव श्रृंगारो, प्यारेकी न लई हो ॥ प्री० ॥ ॥१॥ मैं वस पियके पिय संग औरके, या गति कि न सीखई ॥ नपगारी जन जाय मनावो, जो कबुन ई सो नई हो ॥ प्री० ॥ २ ॥ विरहानलजाला अ तिहि कठिन है, मोपें सही न गई ॥ आनंदधन यूं सघ म धारा, तबही दे पत हो ॥प्रीत॥३॥इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ३७ ॥ पद सीतेरमुं॥ सारखी ॥ आतम अनुजव रस कथा, प्याला पिया न जाय ॥ मतवाला तो ढहि परें,निमता परे पचाय॥१॥ ॥ राग वसंत, धमाल ॥ ॥ नबिले लालन नरम कहे, अाली गरम करत कहा बात ॥ टेक॥ माके आगें मामुकी कोई, वरनन करय गिवार ॥ अज हू कपटके कोथरी हो, कहा करे सरधा नार ॥ ब० ॥ १ ॥ चगति महेल न बारिही हो, कैसें आत जरतार ॥ खानो न पीनो इन बातमें हो, हसत जानन कहा हाड ॥ २० ॥ २ ॥ ममता खाट परे रमे हो, और निंदे दिन रात ॥ लैनो न देनो इन कथा हो, जोरही आवत जात ॥ ॥३॥ कहे सरधा सुनि सामिनी हो,एतो न कीजें खेद॥ हेरे हेरे प्रनु आवही हो, वदे आनंदघन मेद ॥ ॥४॥ .. ॥पद एकोतेरसुं ॥ राग मारु ॥ ॥ अनंत अरूपी अविगत सासतो हो, वासतो वस्तु विचार ॥ सहज विलासीहासी नवी करे हो अविनाशी अविकार ॥ अनं० ॥ १ ॥ ज्ञानावरणी पंच प्रकारको हो,दरशनना नव नेद ॥ वेदनी मोहनी दोस दोय जाणीय हो, आयुखं चार विल्लेद ॥ अ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७. आनंदघनजी कृत पद. नं॥२॥ गुन अगुन दोय नाम वखाणीयें हो, नीच नंच दोय गोत ॥ विघ्न पंचक निवारी थापथी हो, पंचम गति पति होत ॥ अनं० ॥ ३ ॥ युगपदनावि गुण जगवंतना हो, एकत्रीश मन आण ॥ अवर अ नंता परमागमथकी हो, अविरोधी गुण जाण ॥ अ नं० ॥ ४ ॥ सुंदर सरूपी सुनग शिरोमणि हो, सुण मुज बातमराम ॥ तन्मय तनय तसु नक्तं करी हो, यानंदघन पद ठाम ॥ अनं० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद बहोतेरमुं॥ राग केदारो॥ ॥ मेरे माजी मजीठी सुण एक वात, मीठडे लाल न विन न रहुँ रतीयात ॥ मे ॥१॥ रंगीत चूनडी ख़डी चीडा, काथा सोपारी अरु पानका बीडा ॥ मांग सिंदूर सदल करे पीडा, तन का मांकोरे विरहा कीडा ॥ मे ॥ ॥ जहां तहां ढुढं ढोल न मित्ता पण जोगी नरविण सब युग रीता ॥ रयणी विहाणी दहाडा थीता, अजहू न आवे मोहि बेहा दीता ॥ मे ॥ ३ ॥ तनरंग फूंद नरमली खाट, चून चुन कलीयां विq घाट ॥ रंग रंगीली फूली पहेरंगी नाट, यावे आनंदघन रहे घर घाट ॥ मे॥४॥इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ३॥ ॥ पद होतेरसु ॥ राग केदारो ॥ ॥ नोले लोगा हूं रडूं तुम नला हांसा, सलूणे साजन विण कैसा घर वासा ॥ नोले० ॥ १ ॥ सेज सुहाली चांदणी रात, फूलडी वाडी नर सीतल वात ॥ सघली सहेली करे सुख साता, मैरा तन ताता मूथा विरहा माता ॥ जो ॥ २॥ फिर फिर जोनं धरणी आगासा, तेरा निपणा प्यारे लोक तमासा ॥ न वले तनतें लोही मांसा, सांडानी बे घरणी बोडी निरासा ॥जो० ॥३॥ विरह कुनावसों मुज कीया, खबर न पावो तो धिग मेराजीया॥दही वायदो जो बतावै मेरा कोपीया, आवे आनंदघन करूं घर दीया॥नो०॥४॥ ॥ पद चम्मोतेरमुं॥ राग वसंत ॥ ॥या कबडकमरी कौन जात, जहां रीजे चेतन ग्यान गात ॥ या ॥ १ ॥ कुत्सित साख विशेष पा य, परम सुधारस वारि जाय ॥ या॥ ॥ जीया गु न जानो और नांही, गले पडेंगी पलक मांहि ॥ या० ॥३॥ रेखा बेदे वाही ताम, पढीयें मीठी सुगुण धा म ॥ या ॥४॥ ते आगें अधिकेरी ताही, आनंद घन अधिकेरी चाही ॥ या० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४0 आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद पंचोतेरसुं ॥ राग वसंत ॥ . ॥ लालन बिन मेरो कुन हवाल, समजे न घटकी ' नितुर लाल ॥ ला॥१॥ वीर विवेकजुं मांजि मांहि, कहा पेट दई यागें बिपाई॥ ला॥॥ तुम नावे जो सो कोजें वीर, सोश्ान मिलावो लालन धीर ॥ ला० ॥३॥ अमरे करे न जात आध, मन चंच लता मिटे समाध ॥ ला॥४॥ जाय विवेक विचार कीन, आनंदघन कीने अधीन ॥ला ॥५॥ इति॥ ॥ पद बहोतेरमुं ॥ राग वसंत ॥ . .. ॥ प्यारे प्रान जीवन ए साच जान, उत बरकत नांही न तिलसमान ॥ प्यारे ॥ १ ॥ ननसें न मांगु दिन नांहि एक, इत पकरिलाल बरि करि विवे क ॥ प्यारे ॥२॥ नत शठता माया मान मंब, इत रुजुता मृउता जानो कुटुंब ॥ प्यारे॥३॥ उत आसा तृष्णा लोन कोह, श्त शांत दांत संतोष सोह ॥ प्या रे० ॥ ४ ॥ नत कला कलंकी पाप व्याप, इत खेले आनंदघन नूप आप ॥ प्यारे ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद सत्योतेरमुं ॥ राग रामग्री॥ ..॥ हमारी लय लागी प्रचु नाम ॥ ॥ अंब खास अरु गोसल खाने, दर अदालत नहीं काम ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ४१ ॥ह ॥ १ ॥ पंच पचीश पच्चास हजारी, लाख कि रोरी दाम् ॥ खाय खरचे दीये विनु जात है, आनन कर कर श्याम ॥॥॥ इनकेननके शिवके नजीके, नरज रहे विनु ठाम ॥ संत सयाने कोय बतावे, आ नंदघन गुनधाम ॥ ह ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद असोतेरसुं ॥ राग रामग्री ॥ ॥ जगत गुरु मेरा में जगतका चेरा, मिट गया वा द विवादका घेरा ॥ ज० ॥ १ गुरुके घरमें नवनि घि सारा, चेलेके घरमें निपट अंधारा ॥ ज ॥ गुरुके घर सब जरित जराया, चेलेकी मढीयांमें बपर बाया ॥ ज० ॥ २ ॥ गुरु मोही मारे शब्दकीलाठी, चेलेकी मति अपराधनी काठी ॥ ज० ॥ गुरुके घरका मरम न पाया, अकथ कहांनी आनंदघन नाया ॥ज॥३॥ ॥ पद उगण्याएंशीमुं ॥राग जयजयवंती॥ - ॥ ऐसी कैसी घरवसी, जिनस अनेसीरी॥ याही घर रहिसें जगवाही, आपद है इसी री ॥ ऐ॥१॥ परम सरम देसी, घरमेंन पेसी री॥याही तें मोहनी मैसी, जगत सगैसी री ॥ ऐ ॥ ॥ कौरीसीगरज नेसी, गरज न चखेसी री ॥ आनंद घन सुनो सीबंदी, अरज कहेसी री ॥ ऐ० ॥ ३ ॥ इति पदं॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. . . ॥ पद एंशीमु ॥ राग सारंग ॥ ॥चेतन शुभातमकू ध्यावो, परपरचे धामधूम स दाई, निज परचे सुख पावो ॥ चे ॥ १ ॥ निजघर में प्रजुता है तेरी, परसंग नीच कहावो। प्रत्यक्ष रीत लखी तुम ऐसी, गहियें आप सुहावो ॥ चे ॥२॥ यावत् तृष्णा मोह है तुमको, तावत् मिथ्या जावो॥ स्वसंवेद ग्यान लही करिवो, बंमो नमक विनावो॥ ॥चे ॥ ३ ॥ सुमता चेतन पतिकू णविध, कहे निज घरमें आवो ॥ आतम नन्न सुधारस पीये, सुख आनंद पद पावो ॥ चे ॥४॥ इति पदं॥ . . ॥ पद एकाशी ॥ राग सारंग ॥ . ॥ चेतन ऐसा ग्यान विचारो, सोहं सोहं सोहं सोहं, सोहं अणुनबीया सारो॥चे॥१॥निश्चय स्वल क्षण अवलंबी, प्रज्ञा बैनी निहारो॥ इह बैनी मध्य पाती सुविधा, करे जड चेतन फारो ॥चे ॥३॥ तस छैनी कर ग्रहीयें जो धन,सो तुम सोहंधारो॥ सो हं जानि दटो तुम मोहं, व्है है समको वारो॥चे॥ ॥३॥ कुलटा कुटिल कुबुदि कुमता, बंमो व्है निज चारो ॥ सुख आनंद पदे तुम बेसी, स्वपस्ळू निस्ता रो ॥ चे॥ ४ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ४३ ॥ पद बाशीमुं॥ राग सूरति टोडी॥ ॥ प्रजु तोसम अवर न कोइ खलकमें, हरिहर ब्र ह्मा विगते सोतो, मदन जीत्यो तें पलकमें ॥प्र०॥ ॥१॥ ज्यों जल जगमें अगन बजावत, वडवानल सो पीये पलकमें॥ आनंदघन प्रजुवामा रे नंदन,तेरी हाम न होत हलकमें ॥ प्र० ॥ ५ इति पदं ॥ ॥ पद त्राशीमुं॥ राग मारु ॥ ॥ निःस्टह देश शोहामणो, निर्नय नगर नदार हो ॥ वसे अंतरजामी ॥ निर्मल मन मंत्री वडो, रा जा वस्तुविचार हो । वसे ॥ १॥ केवल कमला गार हो, सुण सुण शिवगामी ॥ केवल कमलानाथ हो, सुण सुण निःकामी ॥ केवल कमलावास हो, सुण सुण गुनगामी॥आतमा तूं चूकीश मां,साहेबा तूं चूकीश मां,राजिंदा तूं चूकीश मां,अवसर लही जी॥ए आंकणी ॥ दृढ संतोषकामामोदसा, साधु संगत दृढ पोल हो ॥ वसे ॥पोलियो विवेक सुजागतो, आगम पायक तोल हो ॥ वसे ॥ ५॥ दृढ विशवास विता गरो, सुविनोदी व्यवहार हो ॥ वसे ॥ मित्र वैराग विहडे नही,क्रीडा सुरति अपार हो ॥ वसे ॥३॥ जावना बार नदी वहे, समता नीर गंजीर हो ॥ व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ आनंदघनजी कृत पद. हो ॥ वसे से || ध्यान चहिवचो नखो रहे, समपन नाव समीर ॥ ४ ॥ उचालो नगरी नहीं, डुष्टडुःकाल नीति व्यापे नही, या ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ इमन राग ॥ न योग हो । वसे० ॥ इति नंदघन पद जोग हो ॥ वसे ॥ पद चोराशीभुं ॥ ॥ लागी लगन हमारी, जिन राज सुजस सुन्यो में ||ला ॥ टेक ॥ काढूके कहे कबहूं नहि बूटे, लोक लाज सब मारी ॥ जैसें अमलि अमल करत समे, लाग रही ज्युं खुमारी ॥ जि० ॥ १ ॥ जैसें योगी योगध्यान में, सुरत टरत नहीं टारी ॥ तैसें आनंद घन अनुहारी, प्रचुके हूं बलिहारी ॥ जि० ॥ २ ॥ ॥ पद पंचाशीमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ वारी हुं बोलडे मीठडे, तुजबिन मुज नहि सरे रे सूरिजन, लागत और अनीवडे || वा ॥ १ ॥ मेरे मनकूं जक न परत है, बिनु तेरे मुख दीवडे ॥ प्रेम पीयाला पीवत पीवत, लालन सबदिन नीवडे ॥ वा० ॥ २ ॥ पूलूं कौन कहासूं ढूंढूं, किसकूं नेजुं चीवडे ॥ श्रानंदघन प्रभु सेजडी पाउँतो, नागे यान वसीवडे || वा० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ४५ ॥ पद बासीमुं राग धमाल ॥ ॥ सखूणे साहेब आवेंगे मेरे, आलीरी वीर विवेक कहो साच ॥ स० ॥ मोसुं साच कहो मेरी सुं, सुख पायो के नाहिं ॥ कहांनी कहा कहुं कहांकी, हिंमोरे चतुरगति मांहि ॥ स० ॥ १ ॥जली नई इत आव ही हो, पंचम गतिकी प्रीत ॥ सिम सिहंत रस पा ककी हो, देखे अपूरव रीत ॥ स॥२॥ वीर कहे एती कढुं हो,आए आए तुम पास ॥ कहे समता परिवारसुं हो, हम है अनुनव दास ॥ स॥३॥ सरधा सुमता चेतना हो, चेतन अनुभव आंहि ॥ सगति फोरवे निज रूपकी हो, लीने आनंदघन मांहि ॥ स॥४॥ ॥ पद सत्त्याशीमुं राग धमाल ॥ ॥ विवेकी वीरा सह्यो न परे, वरजो क्युं न आपके मित्त ॥ वि॥ टेक॥ कहा निगोडी मोहनी हो, मोहत लाल गमार ॥ वाके पर मिथ्या सुता हो, रीज पडे क हा यार ॥ वि० ॥१॥ क्रोध मान बेटा नये हो, देत चपेटा लोक ॥ लोन जमाई माया सुता हो, एह बढ्यो पर मोक ॥ न० ॥ ॥ गई तिथि· कहा बंजणा हो, पू. सुमता नाव ॥ घरको सुत तेरे मतें हो, कहालौं करत बढाव ॥ वि० ॥३॥ तव समत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ आनंदघनजी कृत पद. उद्यम कीयो हो, मेट्यो पूरव साज ॥ प्रीत परमसुं जोरिकें हो, दीनो आनंदघन राज॥ वि०॥॥ इति ॥ ॥पद अग्याशीमुं॥राग धमाल ॥ ॥ पूजीयें पाली खबर नहीं, आये विवेक वधाय ॥पू०॥ ए आंकणी॥महानंद सुखकी बरनीका, तुम आवत हम गात ॥प्रानजीवन आधारकी हो, खेम कुशल कहो बात ॥ पू०॥१॥अचल अबाधित देवकू हो, खेम शरीर लखंत ॥ व्यवहारि घटवध कथा हो, निह. सरम अनंत ॥ पू० ॥ २ ॥ बंधमोख निहचें नही हो, विवहारे लख दोय ॥ कुशल खेम अना दिही हो, नित्य अबाधित होय ॥ पू० ॥ ३ ॥ सुन विवेक मुखतें नही हो, बानी अमृत समान॥सरधा समता दो मिली हो, व्याई आनंदघन तान॥पू॥४॥ ॥ पद नेव्याशीमुं ॥ राग धन्याश्री॥ ॥चेतन सकल वियापक होइ॥ सकल॥चे॥ सत असत गुन परजय परनति, नाव सुनाव गति दोश् ॥ चे ॥ १ ॥ ॥ स्व पर रूप वस्तुकी सत्ता, सीके एक न दो।। सत्ता एक अखंम अबाधित,यह सिद्धांत परख होई॥ चे ॥ २ ॥ अनवय'व्यतिरेक हेतुको, समजी रूप चम खोई ॥ आरोपित सब धर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. १७ और है, आनंदघन तत सोई॥चे॥३॥ इति पदं॥ ॥ पद नेवुमुं ॥ राग शोर ।। ॥ साखी सोरठो ॥ ॥अण जोवंता लाख,जोवे तो एक नहीं ॥ लाधी जोवन साख, वाहाला विण एलें ग॥१॥ ॥महोटी वहूयें मन गमतुं कीg ॥ म ॥ म॥ए आंकणी ॥ पेटमें पेशी मस्तक रेहेंसी, वेरी साही स्वामीजीने दीधुं ॥ म० ॥ १ ॥ खोले बेसी मीतुं बोले, का अनुभव अमृत जल पीधुं । बानी बानी बरकडा करती, बरती आंखें मनडुं वींध्यं ॥ मो॥ ॥ २ ॥ लोकालोक प्रकाशक डैयुं, जणता कारज सीधुं ॥ अंगो अंगें रंगनर रमतां, आनंदघन पद लीधुं ॥ म० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकाणुमुं॥ राग मारु॥ ॥वारो रे को परघर रमवानो ढाल, न्हानी व दुने परघर रमवानो ढाल ॥ ए आंकणी ॥ परघर रम तां था जूग बोली, देशे धणीजीने बाल ॥ वारो॥ ॥१॥ अलवे चाला करती हीमे, लोकडां कहे ने बी नाल ॥ संजडा जण जणना लावे, हैडे नपासे शा ल॥ वारो ॥ २ ॥ बारे पडोसण जुने लगारेक, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. फोकट खाशे गाल ॥यानंदघन प्रनु रंगें रमतां, गोरे गाल बूके काल । वारो॥३॥इति पदं ॥ ॥पद बाए॥राग कानडो॥ ॥ दरिसन प्रानजीवन मोहे दीजें ॥ बिन दरिसन मोहि कल न परतु है, तलफ तलफ तन बीजे ॥दरि. ॥ १ ॥ कहा कहुँ कळू कहत न यावत, बिन सेजा क्युं जीजें ॥ सोढुं खाइ सखी कादु मनावो,यापही आप पतीजें ॥ दरि० ॥ २ ॥ देनर देरानी सासु जे गनी, मुंही सब मिल खीजें ॥ आनंदघन बिन प्रान न रहे बिन, कोडी जतन जो कीजें ॥ दरि० ॥३॥. ॥ पद त्राणुमं ॥ रांग शोरत ॥ मुने महारा माधवीयाने मलवानो कोड ॥ ए देशी ॥ ॥ मुने महारा नाहलीयाने मलवानो कोड ॥ हुँ राखं माडी कोइ मुने बीजो वलगो जोड ॥ मुने ॥ ॥१॥ मोहनीया नाहलीया पांखे महारे, जग स वि जड जोड ॥ मीठा बोला मन गमला नाहजी विण, तन मन थाये चोड ॥ मुने ॥ ॥ कां ढोलीयो खाट पडी तलाई, नावे न रेसम सोड ॥ अवर सवे महारे जलारे जलेरा, महारे आनंदघन शिरमोड ॥ मुने ॥ ३ ॥ इति पद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजीकृत पद. ॥ पद चोराणुमुं॥ राग शोरत ॥ ॥ निराधार केम मूकी, श्याम मुने निराधार केम मूकी ॥ कोइ नही हूं कोणा बोलू, सदु आलंबन ट्रंकी ॥ श्या० ॥ १ ॥ प्राणनाथ तुमें दूर पधास्या, मूकी नेह निराशी ॥ जजणना नित्य प्रति गुण गातां, जनमारो किम जासी ॥ श्या ॥ २ ॥ जेह नो पद लहीने बोलु, ते मनमां सुख आणे ॥जेह नो पद मूकीने बोलु, ते जनम लगें चित्त ताणे ॥ श्या० ॥ ३ ॥ वात तमारी मनमां आवे, कोण आगल जई बोलु ॥ ललित खलित खल जो ते देखु, आम माल धन खोलु ॥ श्या०॥४॥ घटें घटें बो अंतरजामी,मुजमां कां नवि देखुं॥जे देखु ते नजर न आवे, गुणकर वस्तु विशे ॥ श्या ॥ ५ ॥ अवधे केहनी वाटडी जोनं, विण अवधे. अति फूलं ॥ आनंदघन प्रनु वेग पधारो, जिम मन आशा पूरूं ॥ श्या० ॥ ६ ॥ इतिपदं ॥ ॥ पद पचाणुमुं॥ राग अलश्यो वेलावल ॥ ॥ऐसे जिनचरने चित्त व्यानं रे मना ॥ ऐसे अरिहंतके गुन गा रे मना ॥ ऐसे जिन ॥ ए आंकणी ॥ उदर नरनके कारणे रे, गौवां वनमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० च्यानंदघनजी कृत पद. जाय ॥ चार चरे चिहुं दिस फिरे, वाकी, सुरति व रुयामहे रे | ऐसे जिन० ॥ १ ॥ सात पांच सहे लीयां रे, दिल मिल पाणी जाय ॥ ताली दीये खड खड हसे रें, वाकी सुरति गगरुग्रामांहे रे | ऐसे जिन० ॥ २ ॥ नटुआ नाचे चोकमें रे, लोक करे लख सोर ॥ वांस यही वरतें चढे, वाको चित्त न चले कटुं वोर रे | ऐसे जिन० ॥ ३ ॥ जूधारी मनमें जूत्रा रे, कामीके मन काम ॥ यानंदघन प्रभु युं कहे, तुमे ल्यो जगवंतको नाम रे ॥ ऐसे जि० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद उन्नुमुं ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ री मेरो नाहेरी प्रतिवारो | मैं ले जोबन कि त जावं, कुमति पिता बंजना अपराधी, ननवादै व जमारो ॥ घरी० ॥ १ ॥ नलो जानीके सगाई कीनी, कौन पाप उपजारो || कहा कहियें इन घर के कुटुंबतें, जिन मैरो काम बिगारो ॥ अ० ॥ २ ॥ ॥ पद सत्ताणुमुं ॥ राग कल्यास ॥ ॥ या पुजनका क्या विसवासा, हे सुपने का वासा रे ॥ या० ॥ ए यांकणी ॥ चमतकार विजली दें जैसा, पानी बिच पतासा ॥ या देहीका गर्व न कर नां, जंगल होयगा वासा ॥ या० ॥ १ ॥ जूते तन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. ५१ धन जूते जोबन, जूते है घर वासा ॥ आनंदघन कहे सबही जूते, साचा शिवपुर वासा ॥ या० ॥ ५ ॥ ॥ पद अजयुमुं॥ राग आशावरी॥ ॥ अवधू सो जोगी गुरु मेरा, श्न पदका करे रे निवेडा ॥ अवधू॥ ए आंकणी ॥ तरुवर एक मूल बिन बाया, बिन फूलें फल लागा ॥ शाखा पत्र नही कबू ननकू, अमृत गगने लागा॥ अ०॥ ॥ तरुवर एक पंडी दोन बेठे, एक गुरु एक चेला ॥ चेलेने जुग चुण चुण खाया, गुरु निरंतर खेला ॥ अ० ॥ ॥ २॥ गगन मंमलके अधबिच कूवा, उहां हे अमीका वासा ॥ सुगुरा होवे सो जर नर पीवे, नगुरा जावें प्यासा ॥ अ॥३॥ गगन मंमलमें गन्यां बिहानी, धरती दूध जमाया ॥ माखन था सो विरला पाया, बासें जगत नरमाया ॥ अ० ॥ ४ ॥ थड बिनुं पत्र पत्र बिनुं तुंबा, बिन जीन्या गुण गाया ॥ गावन वा लेका रूप न रेखा, सुगुरु सोही बताया ॥ अ० ॥५॥ आतम अनुनव बिन नहीं जाने,अंतर ज्योति जगावे ॥ घट अंतर परखे सोही मूरति, आनंदघन पद पावे.॥ अ० ॥ ६ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनंदघनजी कृत पद. || पद नवाणुमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ अवधू ऐसो ज्ञान बिचारी, वामें कोण पुरुष कोण नारी ॥ अवधू० ॥ ए आंकणी ॥ बम्मनके घर न्हाती धोती, जोगी के घर चेली ॥ कलमा पढ पढ नई रे तुरकड़ी तो, यापही याप अकेली ॥ श्रवधू० ॥ ॥ १ ॥ ससरो हमारो बालो जोलो, सासू बाल कुंवा री ॥ पीयुजी हमारो होढे पारणीए तो, में हुं फूला वन हारी ॥ अवधू० ॥ २ ॥ नहीं हुं परणी नहीं हुं कुंवारी, पुत्र जणावनहारी ॥ काली दाढीको में कोई नहीं बोड्यो तो, हजुर हुं बाल कुंवारी ॥ अवधू०॥ ॥ ३ ॥ दी दीपमें खाट खटूली, गगन शीकुं तला ई ॥ धरतीको बेडो यानकी पीबोडी, तोय न सोड नराई ॥ अवधू ॥ ४ ॥ गगन मंगलमें गाय वी प्राणी, वसुधा, दूध जमाई ॥ सबरें सुनो नाइ वलोएं क्लोवे तो, तत्त्व मृत कोइ पाई ॥ अवधू ॥ ५ ॥ नहीं जाउं सासरीये ने नहीं जानं पीयरीये, पीयुजीकी सेज बिठाई ॥ नंदधन कहे सुनो भाई साधु तो, ज्योतसें ज्योत मिलाई ॥ अवधू ॥ ६ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशोमं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ बेहेर बेहेर नही यावे, अवसर बेहेर बेहेर नही For Personal and Private Use Only ५‍ Jain Educationa International Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च्यानंदघनजी कृत पद. ५३ यावे ॥ ज्युं जाणे त्युं कर ले जलाई, जनम जनम सुख पावे ॥ श्रवस ॥ १ ॥ तन धन जोबन सबही जूठो, प्राण पलक जावे ॥ अवसरणं ॥ २ ॥ तन लूटे धन कौन कामको, कायकूं कृपण कहावे ॥ अवसर ० ॥ ३ ॥ जाके दिल में साच बसत है, ताकूं जूठ न जावे ॥ अवसर० ॥ ४ ॥ यानंदघन प्रभु चलत पंथमें, समरी समरी गुण गावे ॥ अवसर० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो एकमुं ॥ राग श्राशावरी ॥ ॥ मनुष्यारा मनुष्यारा, रिखन देव मनुप्यारा ॥ ए यांकणी ॥ प्रथम तीर्थकर प्रथम नरेसर, प्र थम यतिव्रतधारा ॥ रिखने० ॥ १ ॥ नानिराया मरुदेवीको नंदन, जुगला धर्मनिवारा ॥ रिखन० ॥ ॥ २ ॥ केवल लइ प्रभु मुंगतें पोहोता, यावागम न निवारा || रिखन० ॥ ३ ॥ आनंदघन प्रभु इतनी विनति, या जब पार उतारा ॥ रिखन ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो बेमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ ए जिनके पाय लाग रे, तुने कहीयें केतो ॥ ए जिनके ॥ ए की ॥ यागे जाम फिरे मदमा तो, मोहजिंदरीयाशुं जाग रे ॥ तुने० ॥ १ ॥ प्रभु जी. प्रीतम विन नही कोई प्रीतम, प्रभुजीनी पूजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ च्यानंदघनजी कृत पद. घणी माग रे ॥ तुने ॥ २॥ नवका फेरा वारी करो जि नचंदा, यानंदघन पाय लाग रे ॥ तुने ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो त्रमुं ॥ राग केरबा ॥ ॥ प्रत्रु नज ले मेरा दील राजी रे ॥ प्र० ॥ ए यांकणी ॥ या पोहोरकी चोशठ घडीयां, दो घडीयां जिन सा जीरे ॥ प्र० ॥ १ ॥ दान पुण्य कबु धर्म कर ले, मोह मायाकुं त्याजी रे ॥ प्र०॥ २ ॥ आनंदघन कहे समज समज जे, प्रखर खोवेगा बाजी रे ॥ प्र०॥३॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो चारमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ हठीली यांख्यां टेक न मेटे, फिर फिर देखा जानं ॥ हविए की ॥ बयल बबीली प्रिय बबि, निरखित तृपति न होई || हट करिंक हटकूं कनी, देत नगोरी रोई ॥ ० ॥ १ ॥ मांगर ज्यों टमाके रही, पी सी के धार ॥ लाज मांग मनमें नही, काने पढेरा मार ॥ ॥ ०॥ २ ॥ अटक तनक नही काहूका, हटक न इक तिल कोर || हाथी याप मने अरे पावे न महावत जोर ॥ ६० ॥ ३ ॥ सुन अनुभव प्रीतम बिना, प्राण जात इह हि ॥ जन धातुर चातुरी, दूर आनंद घन नांहि ॥ ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानंदघनजी कृत पद. पद एकशो पांचमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ अवधू वैराग बेटा जाया, वाने खोज कुटुंब सब खाया ॥ ० ॥ जेसे ममता माया खाई, सुख डुःख दोनों जाई ॥ काम क्रोध दोनोकुं खाई, खाई तृष्णा बाई ॥ ० ॥ १॥ दुर्मति दादी मत्सर दादा, मुख देखतही मूया || मंगलरूपी बधाइ वांची, ए जब बेटा हूवा ॥ ० ॥ २ ॥ पुण्य पाप पाडोशी खाये, मान काम दोन मामा ॥ मोह नगरका राजा खाया, पीछेंही प्रेम ते गामा ॥ ० ॥ ३ ॥ नाव नाम धरो बेटाको, महिमा वरण्यो न जाई ॥ श्रानं दघन प्रभु नाव प्रगट करो, घट घट रह्यो समाइ ॥ ॥ ० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ BAAAAAAAA ॥ इति महामुनि श्री प्रानंदघनजी माहाराज कृत बहोंतेरी श्रादि कनां पढ़ो समाप्त ॥ ତତ୍ତ୍ wwwwwwww Jain Educationa International Ww For Personal and Private Use Only ५५ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री चिदानंदाय नमः ॥ ॥ अथ श्री चिदानंदजी अपर नाम । ॥ कपूरचंदजी कृत बहोतेरीनां पद ॥ ॥प्रारंनः॥ ॥ पद पहेलु ॥ राग मारु ॥ ॥ पिया परघर मत जावो रे, करि करुणा महा राज ॥ पिया०॥ ए अांकणी ॥ कुल मरजादा लो पकें रे, जे जन परघर जाय॥तिणकुं उनय लोक सुर्ण प्यारे, रंचक शोना नांय ॥ पिया ॥ १ ॥ कुमतार्स गें तुम रहे रे, आयु काल अनाद ॥ तामें मोह दिखा बहु प्यारे, कहा निकाल्यो स्वाद ॥ पिया ॥ ॥ लगत पिया कह्यो माहरो रे, अशुन तुमारे चित्त ॥ पण मोथी न रहाय रे प्यारे, कह्या विना सुण मित्त ॥ पिया ॥३॥ घर अपने वालम कहो रे, कोण वस्तुकी खोट ॥ फोगट तद केम लीजीयें प्यारे, शीश नरमकी पोट ॥ पिया० ॥ ॥ सुनि समताकी विनति रे, चिदानंद महाराज ॥ कुमता नेह निवारकें प्यारे, लीनो शिवपुर राजापिया॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ॥ पद बीजुं ॥ राग मारु ॥ || पिया निज महेल पधारो रे, करी करुणा महा राज ॥ ए यांकणी ॥ तुम बिन सुंदर साहेबा रे, मो मन यति दुःख थाय ॥ मनकी व्यथा मनहीं मन जानत, केम मुखथी कहेवाय ॥ पिया० ॥ १ ॥ बाल जाव अब वीसरी रे, ग्रह्यो उचित मरजाद ॥ यात म सुख अनुभव करो प्यारे, नांगे सादि नाद ॥ पिया ॥ २ ॥ सेवककी लता सूधी रे, दाखी साहेब हाथ || तोसी करो विमासला प्यारे, अम घर याव त नाथ || पिया || ३ || मम चित्त चातक घन तुमे रे, इस्यो जाव विचार || याचक दानी उजय मल्या प्यारे, शोने न ढील लगार ॥ पिया० ॥ ४ ॥ चिदानंद प्रभु चित्त गमी रे, सुमताकी अरदास ॥ निजघर घरणी जाके प्यारे, सफल करी मन यास ॥ पिया० ॥ ५॥ ॥ पद त्रीजुं ॥ राग मारुं ॥ ५७ ।। सुपा याप विचारो रे, पर पख नेह निवार ॥ सु० ॥ ए यांकणी ॥ पर परणीत पुजन दिसा रे, तामें निज निमान ॥ धारत जीव एही कह्यो प्यारे, बंधहेतु भगवान || सु० ॥ १ ॥ कनक उपलमें नित्य रहे रे, दूध मांहे फुनी घीव ॥ तिलसंग तेल सुवास For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एज चिदानंदजी कृत पद. कुसुम संग, देह संग तेम जीव ॥ सु॥२॥ रहत दुताशन काष्ठमें रे, प्रगटे कारण पाय ॥ लही कारण कारजता प्यारे, सहेजें सिदि थाय ॥ सु॥३॥ खीर नीरकी निन्नता रे, जैसें करत मराल ॥ तैसें नेद ज्ञा नी लह्यां प्यारे, कटे कर्मकी जाल । सु० ॥४॥ अज कुलवासी केहरी रे, लेख्यो जिम निजरूप ॥ चिदा नंद तिम तुमहू प्यारे, अनुनव शुक्ष स्वरूप ॥ सु॥५॥ ॥ पद चोथु ॥ राग मारु॥ .. ॥ बंध निज श्राप उदीरत रे, अजा कृपाणी न्या य ॥ बंध० ॥ ए आंकणी ॥ जकज्यां किणें तोहैं सांकलां रे, पकड्या किणे तुव हाथ ॥ कोण नूपके पहरुये प्यारे, रहत तिहारे साथ ॥ बंध ॥ १ ॥ बांदर जिम मदिरा पोये रे, वीलू अंकित गात ॥ जूत लगे कौतुक करे प्यारे, तिम चमको उतपात ॥ बंध० ॥ २ ॥ कीर बंध्या जिम देखीयें रे, नलिनी चमर संयोग ।। णविध नया जीवकू प्यारे, बंधन रूपी रोग ॥ बंध० ॥३॥ नम आरोपित बंधथी रे, परपरिणति संग एम ॥ परवशता कुःख पावते प्यारे, मर्कट मूठी जेम ॥ बंध० ॥ ४ ॥ मोह दशा अलगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ५‍ करो रे, धरो सु संवर नेख ॥ चिदानंद तब देखीयें प्यारे, शशि स्वनावकी रेख | बंध० ॥ ५ ॥ ॥ पद पांचमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ मतिमत एम विचारो रे, मत मतीयनका जाव ॥म०॥ एत्र्यांकणी ॥ वस्तुगतें वस्तु लहो रे, वाद वि वाद न कोय ॥ सूर तिहां परकाश पीयारे, अंधकार न वि होय ॥ म० ॥ १ ॥ रूप रेख तिहां नवि घटे रे, मुड़ा नेख न होय ॥ नेद ज्ञान दृष्टि करी प्यारे, दे खो अंतर जोय ॥ म० ॥ २ ॥ तनता मनता बचनता रे, परपरिणति परिवार ॥ तन मन बचनातीत पी यारे, निजसत्ता सुखकार ॥ म० ॥ ३ ॥ अंतर शु 5 स्वनावमें रे, नहिं विनाव लवलेश ॥ भ्रम चारो पित लक्ष्यी प्यारे, हंसा सहत कलेश ॥ म० ॥ ४ ॥ अंतर्गत निचें गही रे, कायाथी व्यवहार ॥ चिदा नंद तव पामीयें प्यारे, जव सायरको पार ॥ म० ॥ ५॥ ॥ पद बहुं ॥ राग काफी अथवा वेलावल ॥ ॥ कलकला जगजीवन तेरी ॥ कल० ॥ ए यांकणी ॥ अंत उदधिथी अनंत गुणो तुव, ज्ञान महा लघु बुद्धि ज्युं मेरी ॥ अक० ॥ १ ॥ नय अरु जंग नि केप विचारत, पूरवधर थाके गुण हेरी ॥ विकल्प For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. करत थाग नवि पाये, निर्विकल्पतें होत नये ॥ ॥ अ० ॥ ॥ अंतर अनुनय विनुं तुव पदमें, युक्ति नही कोन घटत अनेरी॥ चिदानंद प्रनु करि किरपा अब, दीजें ते रस रीज जलेरी॥ अ॥३॥ इति ॥ ___॥ पद सातमुं ॥ राग काफी तथा वेलावल ॥ ॥ जौंलौं तत्त्व न सूज पडे रे ॥ जौं ॥ तौलौं मू ढ नरम वश जूल्यो, मत ममता ग्रही जगथी लडे रे॥ जो० ॥१॥ अकर रोग गुन कंप अगुन लख, नवसायर ण नांत रडे रे ॥ धान काज जिम मूर ख खित्तहड, नखर नूमिको खेत खडे रे ॥ जौं ॥२॥ नचित रीत लिख विण चेतन,निशिदिन खो टो घाट घडे रे॥ मस्तक मुकुट नचित मणि अनु पम, पग जूषण अज्ञान जडे रे ॥ जौं ॥३॥ कु मता वश मन वक्र तुरंग जिम, गहि विकल्प मगमां हि अडे रे ॥ चिदानंद निज रूप मगन जया, तब कु तर्क तोहे नांहि नडे रे॥ जौं ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ || पद आठमुं॥ राग काफी तथा वेलावल ॥ ॥आतम परमातम पद पावे, जो परमातम गुं लय लावे ॥श्रा० ॥ सुणके शब्द कीट नंगीको, नि ज तन मनकी शुदि बिसरावे॥ देखहु प्रगट ध्यानकी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ६१ महिमा, सोई कीट नंगी हो जावे ॥ आ॥१॥ कुसुम संग तिल तेल देख फुनि, होय सुगंध फूलेल कहावे ॥ शुक्ति गर्नेगत स्वाति उदक होय, मुक्ताफल अति दाम धरावे ॥ ॥॥ पुन पिचुमंद पला शादिकमें, चंदनता ज्युं सुगंधथी आवें ॥ गंगामें जल आण याणके, गंगोदककी महिमा जावे ॥ ० ॥३॥पारसको परसंग पाय फुन, लोहा कनक स्वरू प लिखावे ॥ ध्याता ध्यान धरत चित्तमें इम,ध्येयरूप में जाय समावे। आ॥४॥ जज समता ममताकुं तज जन, गुरु स्वरूपथी प्रेम लगावे ॥ चिदानंद चित्त प्रेम मगन जया, सुविधा नाव सकल मिट जावे ॥ आ० ॥ ५ ॥ इति पदं॥ ॥ पद नवमुं ॥राग काफी तथा वेलावल ॥ . ॥ अरज एक घवडीचा स्वामी, मुगढुं कृपानिधि अंतरजामी॥०॥ अति आनंद जयो चंड वदन तुम दर्शन पामी॥ ॥ १ ॥ ढुं संसा र असार उदधि पडयो, तुम प्रनु नये पंचम गति गा मी। कबहूं उचित नही स्वामीकू,चित्त धरवी सेवककी खामी ॥ अ॥॥ढुं रागी तुं निपट निरागी, तुम हो निरीह निर्मम निष्कामी॥ पण तोहे कारण रूप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ चिदानंदजी कृत पद. निरख अम, बातम जयो आतम गुणरामी॥०॥ ॥३॥ गोप बिरुद निरजामक माहण, प्रगट धयो तुम त्रिवन नामी॥ तातें अवश्य तारजो मोकू, श्म विलोकि धीरज चित्त नामी॥०॥४॥ युग प्ररण निधान शशि संवत, (१९०२) नावनगर नेटे गुण धामी ॥ चिदानंद प्रनु तुम किरपाथी, अनुनव सा यर सुख विसरामी॥०॥५॥ इति पदं ॥ ॥ पद दशमुं ॥ राग वेलावल ॥ ___॥ मंदविषय शशी दीपतो, रवि तेज घनेरो ॥ आतम सहज स्वनावथी,विनाव अंधेरो॥मंद ॥१॥ जाग जीया अब परिहरो, नववास वसेरो ॥ नववा सी याशा ग्रही, नयो जगको चेरो ॥ मंद ॥ ३॥ आश तजी निराशता, पद सास ताहेरो ॥ चिदानंद निज रूपको, सुख जाण नलेरो ॥ मंद ॥३॥ति॥ ॥ पद अगीधारमुं॥ राग वेलावल ॥ ॥ जोग जुगति जाण्या विना, कहा नाम धरावे॥ रमापति कहे रंककू, धन हाथ न आवे ॥ जो ॥ १ ॥ नेख धरी माया करी, जग· नरमावे ॥ पूरण परमानंदकी, सुधि रंच न पावे ॥ जो ॥ २ ॥ मन मुंमया विन मुंमकू, अति घेट मुंगावे ॥ जटाजूट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ६३ शिर धारकें, कोन कान फरावे ॥ जो ॥३॥ ऊर्ध्व बादु अधोमुखें, तन ताप तपावे ॥ चिदानंद समज्या विना, गिणती नवि आवे ॥ जो ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥पद बारमुं ॥ राग वेलावल ॥ ॥आज सखी मेरे वालमा, निज मंदिर आये ॥ अति आनंद हिये धरी, हसी कंठ लगाये ॥ आ॥ ॥१॥ सहज स्वभाव जलें करी,रुचि धर नवराये ॥ थाल जरी गुण सुखडी, निज हाथ जिमाये ॥ आ॥ ॥ २॥ सुरनि अनुजव रस नरी, बीडा खवराये ॥ चिदानंद मिल दंपती, मनोवंबित पाये ॥ आ॥३॥ ॥पद तेरमुं ॥ रागं विनास ॥ ॥ जूती जगमाया नर केरी काया, जिम बादरकी बाया मारी ॥ ए आंकणी ॥ ज्ञानांजन कर खोल नयण मम, सद्गुरु श्णे विध प्रगट लखाइ री॥जू॥ ॥ १ ॥ मूल विगत विषवेल प्रगटिक, पत्ररहित त्रिनुवनमें बारी॥ तास पत्र चुंग खात मिरगवा, मुखबिन अचरिज देख हुँ आइ री ॥ ॥ ॥ पुरु ष एक नारी निपजाइ, तेतो नपुंसक घरमें समा री ॥ पुत्र जुगल जाये तिण बाला, ते जगमांहे अ धिक उखदाइ री॥ जू० ॥३॥ कारण बिन कार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ चिदानंदजी कृत पद. जकी सिदि, केम नई मुख कही नवि जारी॥ चिदानंद एम अकल कलाकी, गति मति कोउ विरले जन पारी॥ जू० ॥४॥ इति पदं॥ ॥पद चौदमुं॥ राग विनास ॥ ॥ देखो नवि जिनजीके जुग, चरन कमल नीके ॥ देखो० ॥ ए आंकणी॥ जिम उदयाचल उदय जयो रवि,तिम नख माननके ॥ देखो॥१॥ नीलोत्पल सम शोन चरण बबि, रिष्ट रतनहूके ॥ देखो० ॥ २ ॥ सुरनि सुमनवर यदकर्दम कर, अर्चित देवनके ॥ देखो० ॥३॥ निरख चरन मन हरख नयो अति, वामा नंदजूके ॥ देखो० ॥ ४ ॥ चिदानंद अब सकल मनोरथ, सफल नये मनके ॥ देखो० ॥ ५॥ ॥ पद पन्नरमुं ॥ राग केरबो॥ ॥ अखीयां सफल नई, अलि निरखत नेमिजिनं द ॥ अ० ॥ ए आंकणी ॥ पद्मासन आसन प्रनु सोहत, मोहत सुरनर रूंद ॥ घूघरबाला अलख अ नोपम, मुख.मानुं पूनम चंद ॥ अ॥ १ ॥ नयन कमलदल शुकमुख नासा, अधर बिंब सुख कंद ॥ कुंदकली ज्यु दति पति, रसना दल शोना अमंद ॥ अ॥२॥ कंबुग्रीव नुज कमल नालकर, रक्तोत्पल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ६५ अनुचंद ॥ हृदय विशाल थाल कटि केहरी, नानिस रोवर खंद ॥अ॥३॥ कदली खंन युग चरनसरोज जस, निशिदिन त्रिनुवन वंद ॥ चिदानंद आनंद मूर ति, ए शिवादेवीनंद । अ० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद शोलमुं ॥ राग नैरव ॥ ॥ विरथा जनम गमायो ॥ मूरख विर॥ ए यां कणी ॥ रंचक सुखरस वश होय चेतन, अपनो मू ल नसायो॥ पांच मिथ्यात धार तुं अजहुँ, साच नेद नवि पायो ॥ मू॥१॥ कनक कामिनी अरु एहथी, नेह निरंतर लायो ॥ तादुथी तुं फिरत सोरांनो, क नकबीज मार्नु खायो ॥ मूळ ॥ २ ॥ जनम जरा मरणादिक फुःखमें, काल अनंत गमायो । अरहट घटिका जिम कहो याको, अंत अजहुँ नवि आयो॥ मू० ॥ ३ ॥ लख चोराशी पेहेया चोलना, नव नव रूप बनायो ॥ बिन समकित सुधारस चारख्या, गि ती कोउ न गिणायो ॥ मू॥४॥ एती पर नवि मानत मूरख,ए अचरिज चित्त आयो॥ चिदानंद ते धन्य जगतमें, जिणे प्रचुरुं मन लायो॥ मू ॥५॥ ॥ पद सत्तरमुं॥राग भैरव ॥ ॥ जग सपनेकी माया रे॥ नर जग ॥ ए आंक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ चिदानंदजी कृत पद. णी ॥ सुपने राज पाय कोन रंक ज्यु, करता काज मन नाया ॥ नघरत नयन हाथ लख खपर, मन ढुं मन पडताया रे ॥ नर जग ॥ १ ॥ चपला चमत्कार जिम चंचल, नरनव सूत्र बताया॥अंजलि जलसम जगपति जिनवर, आयु अथिर दरसाया रे॥नर जग॥॥ यौवन संध्याराग रूप फुनि, मल मलिन अति काया ॥ विरासत जास विलंब न रंच क, जिम तरुवरकी बाया रे॥ नर जग ॥३॥स रिता वेग समानजु संपति, स्वारथ सुत मित जाया॥ आमिष बुब्ध मीन जिम तिन संग, मोहजाल बंधा या रे॥नर जग॥४॥ ए संसार असार सार पण, यामें इतना पाया ॥ चिदानंद प्रनु सुमरनसेंती,धरीयें नेह सवाया रे॥नर जग॥५॥ इति पदं ॥ ॥ पद अढारमुं॥ राग प्रजाती॥ ॥ मान कहा अब मेरा मधुकर ॥ मान ॥ ए यांकरणी ॥ नानिनंदके चरण सरोजमें,कीजें अचल बसेरारे ॥ परिमल तास लहत तन सहेजें, त्रिविध पाप उतेरारे ॥ मान॥१॥नदित निरंतर ज्ञान जान जिहां, तिहां न मिथ्यात अंधेरारे ॥ संपुट होत नही तातें कहा, सांज कहा सवेरार ॥मान॥॥ नहिंतर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. परतावोगे आखर,बीत गया यो वेरारे ॥ चिदानंद प्रनु पदकज सेवत, बहुरिन होय नव फेरारे॥मा॥३॥ ॥पद उगणीशमुं॥ राग धन्याश्री॥. ॥ नूल्यो नमत कहा बे अजान ॥ नूट्यो न०॥ए आंकणी॥बाल पंपाल सकल तज मूरख, कर अनुन व रस पान ॥ नू० ॥१॥आय कृतांत गहेगो इकदिन, हरि मृग जेम अचान॥होयगो तन धनथी तूं न्यारो, जेम पाक्यो तरुपान ॥ नू ॥२॥ मात तात तरुणी सुतसेंती, गरज न सरत निदान ॥ चिदानंद ए वचन हैमारो, धर राखो प्यारे कान ॥ नू॥३॥ इति पदं॥ ॥ पद वीशर्मु ॥ राग धन्याश्री॥ ॥ संतो अचरिज रूप तमासा ॥ संतो ॥ ए यां कणी ॥ कीडीके पग कुंजर बांध्यो, जलमें मकर पी यासा ॥ संतो० ॥१॥ करत हलाहल पान रुची धर, तज अमृत रस खासा ॥चिंतामणि तजी धरत चि त्तमें, काचशकलकी यासा ॥ संतो० ॥ २ ॥ बिन बादर बरखा अति बरसत, बिनदिग वहत बतासा ॥ वज गलत हम देखा जलमें, कोरा रहत पतासा ॥ ॥ संतो० ॥ ३ ॥ बेर अनादि पण ऊपरथी, देखत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ चिदानंदजी कृत पद. लगत बगासा ॥ चिदानंद सोही जन उत्तम, काप त याका पासा ॥ संतो० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकवीरामुं ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ कर ले. गुरुगम ज्ञान विचारा || कर ले० ॥ ए यांकली ॥ नाम अध्यातम ठवण इव्यथी, नाव य ध्यातम न्यारा ॥ कर० ॥ १ ॥ एक बुंद जलथी ए प्रगटया, श्रुत सायर विस्तारा ॥ धन्य जिनोनें उलट न दधिकूं, एक बुंदमें मारा ॥ कर० ॥ २ ॥ बीज रुची धर ममता परिहर, नही यागम अनुसारा ॥ परपख श्री लस्ट इविध अप्पा, यहिकंचुक जिम न्यारा ॥ ॥ कर० ॥ ३ ॥ नास परत जम नासहु तासढु, मि य्या जगत पसारा ॥ चिदानंद चित्त होत अचल २ म, जिम नन धूका तारा ॥ कर० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बावीशमं ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ अब हम ऐसी मनमें जाली ॥ ० ॥ ए यां कणी ॥ परमारथ पथ समज विना नर, वेद पुराण क हाणी ॥ अ० ॥ १ ॥ अंतरल विगत उपरथी, क ष्ट करत बहु प्राणी ॥ कोटि यतन कर तूप लहत न हिं, मयतां निशिदिन पाणी ॥ अ० ॥ ३ ॥ लवण पूतली याह लेणकूं, सायरमांहि समाणी ॥ तामें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ६ए मिल तडुप नई ते, पलट कहे कोण वाणी ॥ अ० ॥ ३ ॥ खटमत मिल मातंग अंग लख, युक्ती बहुत वखाणी ॥ चिदानंद सरवंग विलोकी, तत्त्वा रथ त्यो ताणी ॥ अ० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद त्रेवीशमं ॥ राग टोडी॥ ॥सोहं सोहं सोहं सोहं, सोहं सोहं रटना लगी री सो॥ए आंकणी॥ इंगला पिंगला सुखमना सा धके, अरुण प्रतिथी प्रेम पगी री॥ वंकनाल खट चक नेदके, दशमे हार गुन ज्योति जगी री॥सोहं॥ ॥ १ ॥ खुलत कपाट घाट निज पायो, जनम जरा नय नीति नगी री ॥ काच शकल दे चिंतामणि ले, कुमता कुटिलकू सहज उगी री॥ सोहं ॥ २ ॥ व्यापक सकल स्वरूप लख्यो श्म, जिम ननमें मग लहत खगी री॥ चिदानंद आनंद मूरति, निरख प्रेम जर बुद्धि थगीरी॥ सोहं ॥३॥ इति पदं । ॥ यद चोवीशमुं ॥ राग टोडी ॥ ॥ अब लागी अब लागी अब लागी अब लागी, अब लागी अब लागी अब प्रीत सही री॥अब०॥ ए आंकगी॥ अंतर्गतकी बात अली सुन, मुखथी मोपें न जात कही री॥चंदचकोरकी उपमा इण समे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०. चिदानंदजी कृत पद. साच कई तोहे जात वही री॥५॥१॥जलधर बुंद समुह समाणी, निन्न करत कोउ तास मही री॥ द्वैत जावकी टेव अनादि, जिनमें ताकुं आज दही री॥अ॥२॥ विरहव्यथा व्यापत नही बाली, प्रेम धरी पियु अंक ग्रही री॥ चिंदानंद चूके किम चातुर, ऐसो अवसर सार सही री॥अ॥३॥इति पदं ॥ .. ॥ पद पच्चीशमुं॥ राग टोडी॥ ॥प्रीतम.प्रीतम प्रीतम प्रीतम, प्रीतम प्रीतम क रती में हारी॥प्री०॥ ए आंकणी॥ऐसे नितर नये तुम कैसे, अजहुँ न लीनी खबर हमारी ॥ कवण नां त तुम रीफ़त मोपें, लंख न परत गति रंच सिंहा री॥प्री० ॥१॥ मगन नए नित्य मोह सुता सं ग, विचरत हो स्वबंद विहारी ॥ पण इण वातनमें सुण वालम, शोना नही जगमांहि तिहारी ॥ प्री० ॥२॥ जो ए वांत तात मम सुणी, मोहरायकी क रीहे खुवारी॥ मम पीयर परिवारके आगल, कुम 'ता कहा ते रंक बिचारी॥प्री॥३॥ कोटि जतन करी धोवत निशदिन, उजरी न होवत कामर कारी॥ तिम ए साची शिखामण मनमां, धारत नांही नेक अना री॥प्री० ॥ ४ ॥ कहत विवेक सुमति सुण जिम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. १ तिम, आतुर होयने बोलत प्यारी॥चिदानंद निज घ र आवेंगे, दोय दिनांमें उमर सारी ॥प्री० ॥ ५ ॥ ___॥ पद बबीशमुं॥ राग आशावरी तथा गोडी॥ ॥ अवधू निरपद विरला को॥ देख्या जग सदु जोई ॥ अवधू ॥ एआंकणी ॥ समरस नाव जला चित्त जाके, थाप नथाप न होई ॥ अविना शीके घरकी बातां, जानेंगे नर सोई॥ अव ॥१॥ राव रंकमें नेद न जाने, कनक उपल सम लेखे ॥ नारी नागणीको नही परिचय, तो शिवमं दिर देखे ॥ अव ॥ २ ॥ निंदा स्तुति श्रवण सुणी ने, हर्ष शोक नवि आणे ॥ ते जगमें जोगीसर पूरा, नित्य चढते गुणगणे ॥अव० ॥३॥ चंद समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंजीरा ॥ अप्रमत्तें नारं म परें नित्य, सुरगिरि सम शुचि धीरा ॥ अव० ॥ ॥४॥ पंकज नाम धराय पंकगुं, रहत कमल जिम न्यारा-॥ चिदानंद इस्या जन उत्तम, सो. साहे बका प्यारा ॥ अव ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद सत्तावीशमुं॥ राग बिहागवा टोडी ॥ ॥ लघुत्ता मेरे मन मानी, लश् गुरुगम ज्ञान नि शानी ॥ लघु ॥ ए आंकणी ॥ मद अष्ट जिनोंने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजीकत पद. धारे, ते. उर्गति गये बिचारे ॥ देखो जगतमें प्रानी, कुःख लहत अधिक अनिमानी ॥ लघु ॥ १॥ शशी सूरज बडे कहावे, ते रादुके बस आवे ॥ तारा गण लघुता धारी, स्वरजानु नीति निवारी ॥ लघु०॥२॥ गेटी अति जोयणगंधी, लहे खटरस स्वाद सुगं धी॥ करटी मोटाइधारे, ते बार शीश निज मारे ॥लघु ॥३॥ जब बालचंद हो यावे, तब सदु जग देखण धावें ॥ पूनमदिन बडा कहावे, तव खीण कला होय जावे ॥ लघु ॥ ४ ॥ गुरुवाइ मनमें वेदे, उप श्रवण नासिका दे॥अंगमांहे लघु कहावे, ते कारण चरण पूजावे ॥ लघु ॥ ५॥ शिशु राजधा ममें जावे, सखी हिलमिल गोद खिलावे ॥ होय बडा जाण नवि पावे, जावे तो सीस कटावे ॥ लघु॥६॥ अंतर मद जाव वहावे, तब त्रिजुवन नाथ कहावे ॥ श्म चिदानंद ए गावे, रहणी बिरला कोन पावे ॥ लघु० ॥ ७ ॥ इति पदं ॥ . . ... ॥ पद अहावीशमुं ॥ राग टोडी॥ ॥ कथणी कथे सह को, रहणी अतिपुर्तन हो ३॥ कथम् ॥ ए अांकणी ॥ शुक रामको नाम वखा रो, नवि परमारथ तस जाणे ॥ या विध जगी वेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ७३ सुणावे, पण अकल कला नवि पावे ॥ कथ॥१॥ षत्रीश प्रकारें रसोई, मुख गणतां तृप्ति न हो। शिशु नाम नही तस लेवे, रस स्वादत मुंख अति लेवे ॥ कथा ॥२॥ बंदीजन कडखा गावे, सुणी सूरा सीस कटावे ॥ जब रुंढमूमता नासे, सदु आगल चारण नासे ॥ कथ०॥ ३ ॥ कहणी तो जगत मजू री, रहणी हे बंदी हजूरी ॥ कहणी साकर सम मीठी, रहणी अति लागे अनीठी॥ कथ ॥४॥ जब रह गीका घर पावे, कथणी तब गिणती आवे ॥ अब चिदानंद श्म जोई, रहणीकी सेज रहे सोई ॥ ॥ कथ० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद गणत्रीशमुं॥ राग आशावरी ॥ ॥ ज्ञानकला घट जासी॥ जाकू झा ॥ ए आंक णी॥ तन धन नेह नही रह्यो ताकू, बिनमें जयो उ दासी॥ जा ॥१॥ अविनाशी नाव. जगतके, निश्चे सकल. विनाशी ॥ एहवी धार धारणा गुरुगम, अनुजव मारग पासी ॥ जाण ॥ २ ॥ में मेरा ए मो ह जनित जस, ऐसी बुद्धि प्रकाशी ॥ ते निःसंग पग मोह सीस दे, निश्चें शिवपुर जासी ॥ जा ॥३॥सुम ता.नई सुखी श्म सुनके, कुमता नई उदासी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ चिदानंदजी कृत पद. चिदानंद यानंद लह्यो इम तोर करमकी पासी ॥ जा० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद त्रीशमं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ अनुभव यानंद प्यारो ॥ यब मोहे, अनुन व० ॥ ए आंकणी ॥ एवं विचार धार तूं जडथी, कन क उपल जिम न्यारो ॥ ० ॥ १ ॥ बंधहेतु रागा दिक परिणती, लख परपख सहु न्यारो ॥ चिदा नंद प्रभु कर किरपा अब, जव सायरथी तारो ॥ ॥ अ० ॥ २ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकत्रीशमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ ॐ घट विरासत वार न लागे ॥ घ०॥ ए यां कणी ॥ याके संग कहा अब मूरख, बिन बिन अ धिको पागे ॥ जं० ॥ १ ॥काचा घडा काचकी शीशी, लागत का जांगे ॥ सडा पडा विध्वंस धरम जस, तसयी निपुण नीरागे ॥ ३० ॥ २॥ श्रधि व्या धि व्यथा दुःख इा जव, नरकादिक फुनिं यागें ॥ मगदु न चलत संगविणा पोष्या, मारगडुमें त्यागे ॥ जं० ॥ || ३ || मदलक बाक गहेल तज विरला, गुरु किरपा कोन जागे ॥ तन धन नेह निवारि चिदानंद, चली यें ताके सागे ॥ जं० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International · For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ७५ ॥ पद बत्रीशमुं॥ राग आशावरी ॥. ॥अवधू पियो अनुनच रस प्याला, कहत प्रेम मतिवाला ॥ अ॥ ए यांकणी ॥ अंतर सप्तधात रस नेदी, परम प्रेम उपजावे ॥ पूरव नाव अवस्था पलटी, अजब रूप दरसावे ॥श्र॥१॥ नख शिख रहत खुमारी जाकी, सजल सघन धन जैसी। जिन ए प्याला पिया तिनकू, और केफरति कैसी॥०॥ ॥॥ अमृत होय हलाहल जाकू, रोग शोक नवि व्यापे ॥ रहत सदा गरकाव निसामें, बंधन ममता कापे॥१०॥३॥ सत्य संतोष हीयामें धारे,बातम काज सुधारे ॥ दीन नाव हिरंदे नही आणे, अपनो बिरुद संजारे। अ०॥४॥जावदया रणथंन रोप के, अनहद तूर बजावे ॥ चिदानंद अतुलीबल राजा, जीत अरि घर आवे ॥ अ० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥पद तेत्रीशमुं॥ राग आशावरी॥ ॥ मारग साचा कोन न बतावे। जासुंजाय पूबी ये तेतो, अपनी अपनी गावे ॥ मारग ॥ ए अांक पी॥ मतवारा मतवाद वाद धर, थापत निज मत नीका ॥ स्यादवाद अनुनव बिन ताका, कथन स का ॥मा० ॥१॥ मतवेदांत ब्रह्मपद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ चिदानंदजी कृत पद. ध्यावत; निश्चय पख नरधारी ॥ मीमांसक तो कर्म बदे ते, उदय नाव अनुसारी ॥ मा० ॥ २ ॥ कहत बौछ ते बुआ देव मम,क्षणिक रूप दरसावे ॥ नैया यिक नयवाद ग्रही ते, करता कोन ठेरावे ॥ मा० ॥३॥ चारवाक निज मनःकल्पना, शून्य वाद कोन ठाणे ॥तिनमें नये अनेक नेद ते.अपणीअपणी ताणे ॥ मा० ॥ ४ ॥ नय सरवंग साधना जामें, ते सरवंग कहावे ॥ चिदानंद ऐसा जिन मारग, खोजी होय सो पावे ।। मा० ॥ ५ ॥ ॥ पद चोत्रीशमुं॥ राग आशावरी ॥ ___॥ अवधू खोलि नयन अब जोवो ॥ गि मुश्ति कहा सोवो ॥ अवधू ॥ ए आंकणी ॥ मोह निंद सोवत तूं खोया, सरवस माल अपाणा ॥ पांच चोर अजहुँ तोय लूंटत, तास मरम नहिं जाण्या ॥ अवधू ॥ १ ॥ मली चार चंमाल चोकडी, मंत्री नाम धराया ॥ पाई केफ पीयाला तोहे,सकल मुलक ग खाया ॥ अवधूळ ॥ २ ॥ शत्रुराय महाबल जोमा, निज निज सेन सजाये ॥ गुणगणेमें बांध मोरचे, घेखा तुम पुर आये ॥ अवधू॥ परमादी तूं होय पियारे, परवशता दुःख पावे ॥ गया राज पुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ७.७ सारथसेंती, फिर पाबा घर आवे ॥ अवधू॥४॥ सांजली वचन विवेक मित्तका, जिनमें निजदल जो डया ॥ चिदानंदएसी रामत रमतां, ब्रह्म बंका गढ तोडया ॥ अवधू० ॥ ५॥ इति पदं ।' ॥पद पांत्रीशमुं॥राग प्रमाती॥ ॥ वस्तुगतें वस्तुको लक्ष्य,गुरुगम विण नही पा वे रे ॥ गुरुगम विन नवि पावे कोन, नटक नटकन रमावे रे॥व॥१॥ ए आंकणी॥नवन आरीसे श्वान कूकडा, निज प्रतिबिंब निहारे रे ॥ इतर रूप मनमां हे बिचारी, महा जुझ विस्तारे रे ॥ व ॥२॥नि मैल फिटक शिला अंतर्गत, करिवर लख परगंहि रे ॥ दसन तुराय अधिक उःख पावे, क्षेष धरत दिल मांहि रे ॥व०॥३॥ ससले जाय सिंहकू पकडयो, दूजो दीयो देखाई रे ॥ निरख हरि ते जाण दूसरो, पडयो ऊप तिहां खाई रे ॥ व ॥ ॥ निजलाया वेताल जरस धर, मरत बाल चित्तमांहिं रे ॥ रज्जु सर्प करी कोन मानत, जौंलों समजत नांहिं रेव०॥ ॥ ५॥ नलिनी चम मर्कट मूवी जिम, चमवश अति मुःख पावे रे ॥ चिदानंद चेतन गुरुगम विन, मृग त ष्णा धरी धावे रे ॥ व ० ॥६॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ॥ पद त्रीशमं ॥ राग भैरव ॥ ॥ लाल ख्याल देख तेरे, प्रचरिज मन यावे ॥ ला ल० ॥ ए यांकणी ॥ धारे बहु रूप बिन्न, मांहे होय रंक नूप ॥ यापतो खरूप सदु, जगमें कहावे ॥ला ० ॥ ॥ १ ॥ करता करताडु, हरताके नरता ज्युं ॥ ए सा है जो कोण तोहे, नाम ले बतावे ॥ ॥ ला०॥२॥ एकदुमें एक है, अनेक है अनेक डुमें || एक न अनेक कबु, को नही जावे ॥ ना० ॥ ३ ॥ उपजे न उपज त, मू न मरत कबु ॥ खटरस जोग करे, रंचहु न खावे ॥ लाल० ॥ ४ ॥ परपरणीत संग, करत अनो बेखे रंग ॥ चिदानंद प्यारे, नट बाजीसी दिखावें ॥ ॥ जा० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ 3G ॥ पद साडीशमं ॥ राग भैरव ॥ ॥ जाग रे बटान अब, नई जोर वेरा ॥ जा० ॥ ॥ ए यांकणी ॥ नया रविका प्रकाश, कुमुदहू थए वि कास ॥ गया नाश प्यारे मिथ्या, रेनका अंधेरा ॥ ॥ जा० ॥ १ ॥ सूता केम यावे घाट, चालवी जरूर वाट ॥ कोइ नांदी मित्त, परदेश में ज्युं तेरा ॥ जा० ॥ ॥ २ ॥ अवसर वीत जाय, पीछें पिबतादो थाय ॥ चिदानंद निहचें, ए मान कहा मेरा ॥ जा० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ॥ पद पाडत्रीशमुं॥ राग नैरव ॥ ॥ चालणां जरूर जाकू, ताकू कैसा सोवणां ॥ ॥ चा० ॥ ए आंकणी ॥ नया जब प्रातःकाल, मा ता धवरावे बाल ॥ जग जन करत हे, सकल मुख धोवां ॥ चा ॥ १ ॥ सुरनिके बंध लूटे, बूंवड नये अपूते ॥ ग्वाल बाल मिलकें,बिलोवत वलोवणां। चा० ॥२॥ तज परमाद जाग, तूंनी तेरे काजलाग ॥ चिदानंद साथ पाय, वृथा न आयु खोवणां॥३॥ ॥पद उंगणचालीशमुं॥ राग नैरव ॥ ॥जाग अवलोक निज, शुद्धता स्वरूपकी ॥ जा ग ॥ ए बांकणी ॥ जामें सैंप रेख नाही, रंच पर पंच बांही ॥धारे नही ममता, सुगुण नवकूपकी॥ ॥ जा ॥ १ ॥ जाकी है अनंत ज्योत, कबहुं न मंद होत ॥ चार ज्ञान ताके सोत, उपमा अनूपकी॥ ॥ जा ॥ २ ॥ उलट पलट ध्रुव जान, सत्तामें बिराजमान. ॥ शोना नांहि कहि जात, चिदानंद नूपकी ॥॥ जा ॥३॥ इति पदं ॥ ॥ पद चालीशमुं ॥ राग प्रनाती ॥ ॥ ऐसा ग्यान बिचारो प्रीतम, गुरुमुख शैली धा रीरे ॥ ऐ॥ ए आंकणी ॥ स्वामीकी शोना करे सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० चिदानंदजी कृत पद. री, तेतो बाल कुमारी रे॥जे स्वामी ते तात तेहनो, कह्यो जगत हितकारी रे ॥ ऐसा ॥ १ ॥ अष्ट दी करी जाई बाला, ब्रह्मचारिणी जोवे रे ॥ परणावी पू रणचंदाथी, एक सेज नवि सोवे रे ॥ ऐसा ॥२॥ अष्ट कन्याका सुत वली जाये, हादश ते वली सोई रे ॥ ते जगमाहे अजनमे कहीयें, करता नवि तस कोई रे ॥ ऐ० ॥ ३ ॥ मात तात सुत एकदिन जन मे, बोटे बडे कहावे रे ॥ मूल तिनोंका सदु जग जाणे,शाखा नेद न पावे रे ॥ ऐसा॥४॥जो इण के कुल केरी शाखा, जाणे खोज गमावे रे॥खोज जा य जगमे तो पण ते, सदुथी बडे कहावे रे.॥ ऐसा ॥५॥ अथवा नर नारी नपुंसक, सढुकी ए माता रे ॥ षटमतबाल कुमारी बोलत, ए अचरिजकी बा ता रे ॥ऐसा ॥ ६ ॥ लोक लोकोत्तर सद कारजमें, या बिन काम न चाले रे॥ चिदानंद ए नारिंगुं रमण, मुनि मनथी नवि टाले रे ॥ ऐसा ॥७॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकतालीशमुं॥राग प्रजाती ॥ उठोने मोरा .. आतमराम, जिनमुख जोवा जश्ये रे ॥ ए देशी॥ ॥ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग लागो रे॥ ए आंकणी ॥ तप जप संजम दानादिक सङ, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. .८१ गिति एक नावे रे | इंद्रिय सुखमें जौंलों एं मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे ॥ विषय ० ॥ १ ॥ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत दुःख पावे रे ॥ तेतो प्रगटपणे ज गदीश्वर, इस विध नाव लखावे रे ॥ विषय० ॥ २ ॥ मन्मथ वश मातंग जगतमें, परवशता दुःख पावे रे || रसनालुब्ध होय ऊख मूरख, जाल पड्यो पिबतावे रे ॥ वि० ॥ ३ ॥ घ्राण सुवास काज सुन जमरा, संपुट मांहे बंधावे रे ॥ ते सरोज संपुट संयुत फुन, करटीके मुख जावे रे ॥ वि० ॥ ४ ॥ रूप मनोहर देख पतंगा, पडत दीपमां जाई रे || देखो याकूं दुःख कारनमें, न यन नये है सहाई रे ॥ विं० ॥ ५ ॥ श्रोत्रे दिय यासक्त मिरगला, बिनमें शीश कटावे रे | एक एक यासक्त जीव एम, नानाविध दुःख पावे रे ॥ वि० ॥ ॥ ६ ॥ पंच प्रबल वर्ते नित्य जाकूं, ताकूं कहा ज्युं कहीये रे ॥ चिदानंद ए वचन सुणीने, निज स्वनाव में रहीयें रे || वि० ॥ ७ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बर्हेतालीशमं ॥ राग नैरव ॥ ॥जित जिनंद देव, थिरचित्त ध्यायें ॥ ० ॥ थिरचि त ध्यायें, परम सुख पाईयें ॥ जि० ॥ ए यांकी। यति नीको नाव जल, विगत ममत मल ॥ ऐसो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ज्ञानसरथी, सुजल नर लायें ॥अजि ॥१॥ के शर सुमति घोरी, जरी जावना कचोरी॥ कर मन नो री अंग, अंगीयां रचायें ॥अजि० ॥ २ ॥ अजय अखंम क्यारी, सींचके विवेक वारी ॥ सहज सुनावमें, सुमन निपजाईयें ॥ श्रजि० ॥३॥ ध्यान धूप ज्ञान दीप, करी अष्टकर्म जीप ॥ उविध सरूप तप, नैवेद्य चढायें ॥ अजि ॥ ४ ॥ लीजीयें अमल दल, ढो ईयें सरस फल ॥ अक्षत अखंम बोध, स्वस्तिक लखाई यें ॥ अजि० ॥ ५ ॥अनुनव नोर नयो, मिथ्यामत दूर गयो ॥ करि जिन सेव श्म, गुण फुनि गायें॥ जि० ॥६॥णविध नाव सेव, कीजियें सुनित्यमेव।। चिदानंद प्यारे श्म, शिवपुर पाईयें ॥ अजि०॥७॥ ॥ पद तालीशमुं॥ राग काफी ॥ . . ॥ जौंलौं अनुनव ज्ञान घटमें प्रगट जयो न हीं । जौंलों॥ए आंकणी॥ तौलों मन थिर होत न ही बिन, जिम पीपरको पान ॥ वेद नस्यो पण नेद विना शत, पोथी थोथी जाणरे ॥ १० ॥१॥ रस नाजनमें रहत इव्य नित्य,नहिं तस रस पहिचान रे॥ तिम श्रुतपाठी पंमितकू पण, प्रवचन कहत अज्ञान ॥ घम् ॥ ५ ॥ सार लह्या विण नार कह्यो श्रुत, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ८३ खर दृष्टांत प्रमाण ॥ चिदानंद अध्यातमसैली; समज परत एक तान रे ॥ घ० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद चुंमालीशमं ॥ राग काफी ॥ ॥ कथ कथा कु जाणे हो, तेरी चतुर सनेही ॥ कथ० ॥ ए कणी ॥ नयवादी नयपक्ष ग्रहीने, जूता ऊगडा ठाणे ॥ निरपख लख चख स्वाद सुधा को, तेसो तनक न तारो हो । तेरी ॥ १ ॥ बिनमें रूप रचत नानाविध, आप व्यरूप बखाने ॥ बिन मूरख ज्ञान होये बिनमें, न्याय सकल बिन जाये हो ॥ तेरी० ॥ २ ॥ चोर साध कबु कह्यो न परतु है, लख नाना गुणगणे ॥ जैसो हेतु तैसो चिदा नंद, चित्त श्रद्धा इम या हो ॥ तेरी० ॥ ३ ॥ ॥ पद पीस्तालीशमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ अलख लख्या किम जावे दो, ऐसी कोन जुग ति बतावे ॥ ० ॥ ए यांकणी ॥ तन मन वचना तीत ध्यान धर, अजपा जाप जपावे ॥ होय मोल लोलता त्यागी ज्ञान सरोवर न्हावे हो ॥ ऐसी० ॥ ॥ १ ॥ शुद्ध स्वरूपमें शक्ति संचारत ममता दूर व हावे ॥ कनक उपल मल निन्नता काजे, जोगानल उपजावे हो ॥ ऐसी० ॥ २ ॥ एक समय समश्रेणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ चिदानंदजी कृत पद. रोपी, चिदानंद श्म गावे ॥ अलख रूप दो अलख समावे, अलख नेद एम पावे हो ॥ ऐसी० ॥ ३ ॥ ॥ पद तालीशमुं॥ राग काफीनी होरी॥ ॥अनुनव मित्त मिलायदे मोकू, श्याम सुंदर वर मेरा रे॥ अनु० ॥ ए यांकणी॥शीयल फाग पिया संग रमूंगी, गुण मानुंगी में तेरा रे ॥झान गुलाल प्रेम पीचकारी, शुचि श्रमा रंग नेरा रे ॥ ॥१॥ पंच मिथ्यात निवार धरुंगी में,संवर वेश नलेरा रे॥ चिदानंद ऐसी होरी खेलत, बदुरि न होय नव फेरा रे ॥ अ० ॥ २ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद सुडतालीशमुं॥ राग काफीनी दोरी॥ ॥एरि मुख होरी गोवो री,सहज श्याम घर आए॥ सखी मुख० ॥ ए आंकणी ॥ नेद ज्ञानकी कुंजगल नमें, रंग रचावोरी ॥ सखी मुख०॥१॥ शुम श्रदान सुरंग फूलके, मंझप बावोरी ॥ एरि घर मंझप बावो री॥ सखी०॥२॥ वास चंदन शुजनाव अरगजा, अंग लगावो री॥ एरि पीया अंग लगावोरी॥स खी० ॥३॥ अनुनव प्रेम पीयाले प्यारी, नर नर पावोरी॥ कंतकू जर जर पावोरी ॥ सरवी ॥४॥ चिदानंद समता रस मेवा, हिल मिल खावो री ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद ५ सहज श्याम घर आए, सखी मुख होरी गावो री॥५॥ ॥ पद अडतालीशमुं ॥ राग जंगलो काफी ॥ ॥ जगमें नहिं तेरा कोई, नर देखदु निहचें जोई॥ जग ॥ ए आंकणी ॥ सुत मात तात अरु नारी, सद् स्वारथके हितकारी ॥ बिन स्वारथ शत्रु सोई॥ जग ॥ १ ॥ तुं फिरत माहा मदमाता, विषयन संग मूरख राता ॥ निज संगकी सुधबुरखोई॥जग ॥ ॥ घट झानकला नवि जाकू, पर निज मानत सुन ताकू ॥आरखर परतावा होई ॥ जग ॥३॥ नवि अनुपम नरजव हारो, निज शुरू स्वरूप निहा रो॥अंतर ममता मल धोई॥ जग० ॥ ४ ॥ प्रनु चिदानंदकी वाणी, धार तूं निचे जग प्राणी ॥ जिम सफल होत नव दोई॥ जग० ॥५॥इति पदं॥ पद ओगणपचाशमुं॥राग जंगलो काफी॥ ॥ जूनी जूती जगतकीमाया, जिन जाणीनेद तिन पाया ॥ जू ॥ ए आंकणी ॥ तन धन जोबन सुख जेता,सदु जागहुँ अथिर सुख तेता।नर जिम बादलकी बाया ॥ जू० ॥ १ ॥ जिम अनित्य नाव चित्त आ या, लख • गलित वृषनकी काया ॥ बूजे करकंमूरा या ॥ जू० ॥२॥ म चिदानंद मनमांही, कबु करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ चिदानंदजी कृत पद. ये ममता नांदी॥ सद्गुरु ए नेद लखाया। जू॥३॥ ॥पद पच्चासमुं॥ राग सोरठ ॥ ॥ बातम ध्यान समान ॥ जगतमें ॥ श्रा० ॥ साधन नवि कोन थान ।। जग ॥ ए अांकणी॥ रूपातीत ध्यानके कारण, रूपस्थादिक जान ॥ ता हमें पिमस्थ ध्यान पुन, ध्याताकू परधान ॥ जग॥ ॥१॥ ते पिंमस्थ ध्यान किम करियें, ताको एम विधान ॥ रेचक पूरक कुंजक शांतिक, कर सुखमन घर आन ॥ जग ॥ ॥ प्रान समान उदान व्यानकू, सम्यक् ग्रहहुँ अपान ॥ सहज सुनाव सुरंग सनामें, अनुन अनहद तांन ॥ जग ॥ ॥ ३ ॥ कर आसन धर शुचि सममुसा, ग्रही गुरुगम ए ज्ञान॥अजपा जाप सोहं सु समरनां,कर. अनुजव रस पान ॥ जग ॥४॥ बातम ध्यान जरतचक्री लह्यो, नवन आरीसा ज्ञान ॥ चिदानंद गुन ध्यान जोग जन, पावत पद निरवाण ॥जग॥५॥ इति ॥ ॥ पद एकावनमुं॥ राग शोरत गिरनारी॥ ... ॥प्रनु मेरो मनडो हटक्यो न माने ॥प्रनु०॥ ए यांकणी ।। बहुत नांत समजायो याकू, चोडेहू अरु गने ॥ पण श्म शीखामण कबु रंचक,धारत नवि नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ज काने ॥ प्र० ॥१॥ जिनमें रुष्ट तुष्टहोय जिनमें, रा व रंक बिनमांहि ॥ चंचल जेम पताका अंचल, तेह विगत ऋण मांहि ॥ प्रजु ॥ ३ ॥ वक्र तुरंग जिम सुलटी शिक्षा, तज उलटी हु ताने । विषमगति अति याकी साहेब, अतिशयधर कोन जाने ॥प्रनु० ॥३॥ अति गतियें कहुं हुं तुमथी,तुम बिन कोन न सिया ने ॥ चिदानंद प्रनु ए विनतिकी, अब तो लाज ने थां ने ॥ प्रनु० ॥४॥ इति पदं॥ .. ॥ पद बावनमुं॥ राग सोरठ मलार ॥ .. . ॥ तारोजी राज तारोजी राज, दीनानाथ अब मोहे तारो जी राज॥ ए आंकणी ॥ पूरव पुण्य उदय तुम नेटे, तारण तरण जिहाज ॥ दीना ॥ १ ॥ पतित उधारण तुम पण धास्यो, हुँ पतितन सिरता ज॥दी० ॥॥श्रागें अनेक नधारे तदपिन,क विनताम व्यो आजादी॥३॥णे अवसर जिम करी रखीयें, बिरुद ग्रहेकी लाजादी॥४॥ चिदानंद सेवक जिन साहेब,नीको बन्यो हे समाज॥दी॥५॥ ॥ पद त्रेपनमुं॥ राग शोरत ॥ . ॥ श्रावोजी राज यावोजी राज, साहेबा थें महा रे मोलें आवोजी राज ॥ ए आंकणी ॥ सीस नमाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन चिदानंदजी कृत पद. कर जोड कहतद्वं, जरतेकों न जरावो ॥ दस हस नाथ जरे पर अब तुम, काहेकू लौन लगावो॥ साहे ॥ १ ॥ हमळू त्याग पिया शोक्य सदन तुम, बिना बोलाए जावो ॥ जा कारनही मेर नहीं आवत, ते कोन चूक दिखावो ॥ साहे० ॥ २ ॥ कुमता कुटि लके बस इम साहेब, काहेकू लोक हसावो ॥ तुमकू कवन शिखावे तुम तो, औरनकू समजावो ॥ साहे" ॥३॥ वाके वस वरति तुम नायक, जे जे विध दुःख पावो ॥ ते सदु बानो नहीं कोउ मोथी, काहेकू प्रगट कहावो ॥ साहे॥ ४ ॥ चिदानंद सुमताके बचन सुन,नेज्यो हे हरख वधावो ॥ तुम मंदिर आवत प्रनु प्यारी,करीयें न मन पडतावो॥साहे॥५॥इति पदं॥ ॥ पद चोपनमुं ॥ राग शोर ॥ ॥ गढगिरनार,रूडो लागे जी, थांको गढ गिरना र ॥ ए आंकणी ॥नार अढार अपार कियो तिहां,व नराजी विस्तार ॥ निर्मल नीर समीर वदत नित्य, प थिक जन मनोहार ॥ रूडो० ॥१॥ शुभ समाधि वि गत उपाधि,जोगीसर चित्त धार ॥ करत गंजीर गुहामें निशदिन, गुरुगम झान बिचार ॥ रूडो० ॥ ३ ॥क व्याण कढू त्रस्य तिहां रे, शोनत जगदाधार ॥ चिदा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ॥ नंद प्रनु अब मोहे तारो, जिम तारी निज ना र ॥ रूडो० ॥३॥ इति पदं ॥ ॥ पद पञ्चावनमुं॥ राग सोयणी॥ ॥ अनुनव ज्योति जगी, हीये हमारे बे॥ ॥ ॥ ए आंकणी॥ कुमता कुटिल कहा अब करिहा, सु मता हमारी संगी॥०॥१॥ मोह मिथ्यात निकट नवि आवे जव परिणत ज्युं पगी ॥ ॥अ॥ ॥ चिदानंद चित्त प्रचुके नजनमें, अनु पम अचल लगी ॥अ॥३॥ इति पदं॥ - ॥ पद उप्पन्नमुं॥ राग सोयणी॥ ॥सरण तिहारे गही , चंदाप्रनुजी बे॥स ॥ ॥ ए आंकणी ॥ जनम जरा मरणादिक केरी, पीडा बदुत सही छे । स० ॥१॥ परःख नंजन नाथ बि रुद तुव, तातें तुमकों कही २ ॥ स० ॥ ॥ चि दानंद प्रनु तुमारे दरसथी, वेदना अशुन दही २ ॥ स ॥३॥ इति पदं ॥ ॥ पद सत्तावनमुं ॥ राग केरबो ॥ .. .. ॥समज परी मोहे समज परी, जग माया अब जूठी मोहे समज ॥ ए यांकणी ॥ काल काल तूं क्या करे मूरख, नांही नरुसा पल एक घरी ॥ स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए. चिदानंदजी कृत पद. ॥ १॥ गांफिल लिन नर नांही रहो तुम, शिरपर घूमे तेरे काल अरी॥ स॥ २ ॥ चिदानंद ए बात हमारी प्यारे, जाणो मित्त मनमांहे खरी॥स॥३॥ .... ॥ पद अजवनमुं॥ राग केरबो॥ ॥ हारे चित्तमें धरो प्यारे चित्तमें धरो, एती शीख हमारी, प्यारे अब चित्तमें धरो ॥ ए आंक णी॥ थोडासा जीवनके काज अरे नर, काहेकू बल परपंच करो ॥ एती॥१॥ हारे कूड कपट परोह करत तुम, अरे नर परजवयीन मरो॥ एती० ॥२॥ चिदानंद जो ए नही मानो तो, जनम मरण नव मुःखमें परो ॥ एती० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ..॥ पद ओगणशाउमुं ॥ राग मलार ।। ॥ ध्यानघटा घन गए, सु देखो माई ॥ ध्यान ॥ ए यांकणी॥ दम दामिनी दमकति ददु दिस अत्ति, अनहद गरज सुनाए ॥ सु० ॥१॥ मोटी मोटी बुद खिरत वसुधा शुची,प्रेम परम जर लाए. ।। सु॥ ॥॥ चिदानंद चातक अति तलपत, गुदगुदाजल पाए ॥ सु० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ पद शापमुं॥ राग मल्हार॥ • ॥ मत जावो जोर बिजोर, वालम थब ॥ मत॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. १ ए आंकणी ॥ पोन पोन पीन रटत बपैया, गरजत धन अति घोर ॥ वालम०॥१॥चम चम चम चम चमकत चपला, मोर करत मिल सोर॥वालम॥२॥ समग चली सरिता सायर मुख, जर गए जल चिटुं थोर ॥ वालम॥३॥ नठी अटारी रयण अंधारी, विरही करत ऊकजोल वालम ॥४॥ चिदा नंद प्रनु एक वार कह्यो, जाणो वार करोर ॥ वालम ॥५॥ ॥ पद एकशमुं॥ राग बिहाग ॥ .॥पीया पीया पीया, बोल मत पीया पीया पीया। पी॥एयांकणी॥रे चातुक तुम शब्द सुणत मेरा, व्याकुल होत हे जीया ॥ फूटत नांहि कठिन अति घन सम, नितुर नया ए हीया।बो० ॥१॥एक शोक्य उःखदायी कंत जिने, कर कामण वस कीया ॥ दूजे बोल बोल खग पापी,तुं अधिका कुःख दीया ॥ बो॥ ॥॥ कर्ण प्रवेश नती होइ व्याकुल, विरहानल जल तिया ॥ चिदानंद प्रनु इन अवसर मिल, अधिक जगत जस लीया ॥ बो० ॥३॥ इति पदं॥ पद बाशसमुं॥अजित जिणंदा प्रीतडीए देशी ॥ ॥ परमातम पूरण कला, पूरण गुण हो पूरण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एश् चिदानंदजी कृत पद. जन आश ॥ पूरण दृष्टि निहालीयें, चित्त धरिये हो अमची अरदास ॥ परमा० ॥ १ ॥ सर्व देश घाती सदु,अघाती हो करी घात दयाल ॥ वास कीयो शिव मंदिरें, मोहे वीसरी हो जमतो जग जाल ॥ परमा० ॥ २ ॥ जग तारक पदवी सही, तास्या सही हो अ पराधी अपार ॥ तात कहो मोहे तारतो, किम की नी हो इणे अवसर वार ॥ परमा॥३॥ मोहमहा मद बाकथी, ढुंबकीयो हो नांहि सूध लगार ॥ तु चित सही णे अवसरें, सेवकनी हो करवी संजाल॥ परमा० ॥ ४ ॥ मोह गयां जो तारशो, तिणवेला हो कहा तुम नपगार ॥ सुख वेला सऊन घणां, सुख वेला हो विरला संसार ॥ परमा ॥ ५॥ पण तुम दरिसन जोगथी, थयो हृदयें हो अनुभव परकाश ॥ अनुनव अन्यासी करे, उःखदायी हो सदु कर्म विना श ॥ परमा० ॥ ६॥ कर्मकलंक निवारीने, निजरू पें हो रमे रमता राम ॥ लहत अपूरव नावथी,श्ण रीतें हो तुम पद विश्राम ॥ प० ॥ ॥त्रिकरण जोगें वीन, सुखदायो दो शिवादेवी नंद ॥.चिदानंद मनमें सदा, तुमे आपो हो प्रनु नाण दिणंद ॥ परमा॥॥ ' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. १३ ॥ पद त्रेशनमुं॥ उम नमरा कंकणीपर बैता ॥ ॥ नथणीसें ललकारंगी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीशंखेसर पासजिनंदके, चरणकमल चित्त ला नंगी॥ सुपजो रे सऊन नित्य ध्यानंगी॥ए अांक णी ॥ एहवा पण दृढधारी हियामें, अन्यछार नहि जाउंगी ॥ सु० ॥ १ ॥ सुंदर सुरंग सलूनी मूरत, नि रख नयन सुख पाउंगी॥सु०॥२॥ चंपा चंबेली आन मोघरा, अंगीयां अंग रचानंगी॥ सु० ॥३॥ शीलादिक शणगार सजी नित्य, नाटक प्रनुकू दे खानंगी।सु० ॥४॥ चिदानंद प्रनु प्राण जीवनकू, मोतियन थाल वधानंगी ॥ सु० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद चोशनमुं ॥ अजितजिणंदरांप्रीतडी॥ ए देशी॥ ॥अजित अजित जिन ध्याश्यें, धरि हिरदे हो नवि निर्मल ध्यान ॥ हृदय सरोजामें रह्यो, सुरजी सम हो लही तास विज्ञान ॥ अजित॥१॥कीटध्या नगी तणो,निज धरतां हो ते नूंगी निदान ॥ अकल धौत स्वरूपता, लोह फरसत हो पारस पारवान ॥ अ॥२॥ पुन पिचुमंदादिक सहि, होय चंदन हो म लयागरु संग ॥ सैंधव क्यारीमें पड्यो, जिम पा लट्टे हो वस्तुनो रंग ॥ अ० ॥ ३ ॥ ध्येयरूपनी एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ चिदानंदजी कृत पद. कतक ० ॥ ४ ॥ ता, करे ध्याता हो धरे ध्यान सुजान ॥ करे मलनिन्नता, जिम नासे हो तम उगते जान ॥ पुष्टालंबन योगथी, निरालंबता हो सुख साधन जेह ॥ चिदानंद विचल कला, दमांहे हो जवि पावे तेह ॥ ० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद पांशठमुं ॥ निर्मल होई जज ले प्रभु प्यारा ॥ ए देशी ॥ || लाग्या नेह जिनचरण हमारा, जिम चकोर चि नचंद पीयारा ॥ सुनत कुरंग नाद मन लाई, प्राण तजे पण प्रेम निजाई ॥घन तज खानन जावत जोई, एखग चातुक केरी बडाइ ॥ सा० ॥ १ ॥ जलत निः शंक दीपके मांहि, पीर पतंगळं होत के नांहि ॥ पी डा तदपण तिहां जाहि, शंक प्रीतिवश यानत नां हि ॥ ना० ॥ २ ॥ मीन मगन नवि जलथी न्यारा, मानसरोवर हंस आधारा ॥ चोर निरख निशि यति अंधियारा, केकी मगन फुन सुन गरजारा ॥ ला० ॥ ३ ॥ प्रणव ध्यान जिम योगी याराधे, रस रीती रससाधक साधे ॥ अधिक सुगंध केतकी में लाघे, मधु कर तस संकट नवि वाधे ॥ जा० ॥ ४ ॥ जाका चित्त जिहां थिरता माने, ताका मरम तो तेहिज जाने ॥ जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद, ए५ नक्ति हिरदयमें गने, चिदानंद मन आनंद आने ॥ ता० ॥ ५ ॥ इति पदं। ॥पद बारामुं॥ .. ॥ हो वांसलडी वेरण थइ लागी रे वजनीनारने॥ ए देशी॥ हो प्रीतमजीप्रीतकीरीत अनित्य तजी च त धारीयें। हो वालमजी वचन तणो अति उंमो म रम विचारीयें ॥ ए बांकणी ॥ तुमें कुमतिके घर जा वो बो, निज कुलमें खोट लगावो बो, धिक एव जग तनी खावो डो॥ हो प्री० ॥१॥ तमें त्याग अमी विष पीयो बो, कुगतिनो मारग लीयो बो, एतो का ज अजुगतो कीयो डो॥ हो प्री - ॥॥ एतो मोह रायकी चेटी , शिव संपत्ति एहथी बेटी ने, ए तो साकरतें गल पेटी॥ हो प्री० ॥३॥ एक शंका में रेमन आवी ने, किण विध ए तुम चित्त नावीने,एतो माकण जगमें चावी ॥ हो प्री० ॥४॥ सदुशदि तुमारी खाईने, करी कामण मति नरमाई, तुमें पु एय जोगें ए पाई ॥ हो प्री० ॥५॥ मत प्रांब काज बावल बोवो, अनुपम नव विस्था नवि खोवो, अब खोल नयण प्रगट जोवो॥होप्री०॥६॥णविध स मता बहु समजावे, गुण अवगुण कही सहु दरसा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६ चिदानंदजी कृत पद. वे, सुणि चिदानंद निज घर आवे ॥ दो प्री० ॥॥ ॥पद सडशपमुं ॥ गहूंली॥ ॥ चंवदनी मृग लोयणी, एतो सजी शोल शण गार रे ॥ एतो आवी जगगुरु वांदवा, धरी हियडे ह रख अपार रे॥ अ॥१॥ हारे एतो मुक्ताफल मूली नरी, रचे गहूंली परम नदार रे ॥ जिहां वाणी योजनगामिनी, घन वरसे अखंमित धार रे अ॥ ॥ २ ॥ हारे जिहां रजत कनक रतनना, सुरर चित त्रण प्राकार रे ॥ तस मध्य मणिसिंहासने, शो नित श्री जगदाधार रे॥ अ॥३॥ हारे जिहां नर पति खगपति लखपति, सुरपति युत परखदा बार रे॥लब्धि निधान गुण आगरु, जिहां गौतमसें गण धार रे ॥०॥ ४॥ हारे जिहाँ जीवादिक नवतत्त्व नो, षटव्य नेद विस्तार रे॥ एतो श्रवण सुणी नि मेल करे, निज बोधबीज सुखकार रे ॥०॥ ५ ॥ हारे जिहां तीन बत्र त्रिवन नदित, सुर ढालत चा मर चार रे ॥ सखी चिदानंदकी बंदना, तस होजो वारंवार रे ॥१०॥६॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. ॥ पद अडशन्मुं॥ ॥ हो कुंथुजिन मनहुँ किणही न बाजे ॥ए देशी॥ ॥अनुनव अमृतवाणी हो।पास जिन ॥अासु रपति जयो जे नाग श्रीमुखथी, ते वाणी चित्त आणी हो पा॥१॥ स्यादवाद मुश मुश्ति शुचि, जिम सुर सरिता पाणी॥अंतर मिथ्या नावलताजे, बेदण तास कृपाणी हो॥पा॥॥ अहोनिश नाथ असंख्य मल्या तिम, तिरगळे अचरिज एही ॥ लोकालोक प्रकाश अं श जस,तस उपमा कहो केही हो।पा०॥३॥ विरदवि योगहरणी ए दंती, संधी वेग मिलावे ॥याकी अनेक अवंचकतायी, बाणा विमुख कहावे हो॥पा॥४॥ अदर एक अनंत अंश जिहां, लेप रहित मुख जांखो। तास दयोपशम नाव बंध्याथी, शुभ वचन रस चा खो हो ॥ पा०॥ ५॥ चाख्याथी मन तृप्त थयुं नवि, शे माटे लोनावो ॥ कर करुणा करुणा रस सागर, पेट जरी ते पावो हो ॥पा०॥६॥ ए लवलेश लह्या विण साहिब, अशुन युगलगति वारी॥चिदानंद वा मासुत केरी, वाणीनी बलिहारी हो ॥ पा० ॥ ७ ॥ ॥पद उगएणोतेरमुं॥राग मालकोश ॥ .॥पूरव पुण्य उदय करी चेतन,नीका नरजव पाया रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए चिदानंदजी कृत पद. ॥पू॥ए आंकणी॥ दीनानाथ दयाल दयानिधि,उर्लन अधिक बताया रे॥ दश दृष्टांतें दोहिला नरनव, उत्तरा ध्ययनें गाया रे॥पू॥१॥अवसर पाय विषय रस राच त,तेतो मूढ कहाया रे॥काग नमावण काज विप्र जि म,मार मणि पडताया रे ॥पू॥२॥ नदी घोल पाखान न्याय कर,अवाट तो आया रे॥ अई सुगम आगल रंही तिनकू, जिन कबु मोह घटाया रे ॥पू०॥३॥ चेतन चार गतिमें निश्चे,मोछार ए काया रे॥करत का मना सुर पण याकी, जिनकू अनर्गल माया रे॥पून ॥५॥ रोहण गिरि जिम रतनखाण तिम, गुण सदु यामें समाया रे ॥ महिमा मुखथी वरणत जाकी ,सुरं पति मन शंकाया रे॥पू० ॥ ५ ॥ कल्पवृद सम सं यम केरी,अति शीतल जिहां गया रे ॥ चरण करण गुण धरण महामुनि,मधुकर मन लोनाया रे॥पू॥६॥ या तन विण तिहुँ काल कहो किन, साचा सुख निप जाया रे ॥ अवसर पाय न चूक चिदानंद, सतगुरु यूं दरसाया रे॥ ॥ ७ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद सित्तेरसुं ॥ पयूषण स्तुति ॥ ॥मणि रचित सिंहासन, बेठा जगदाधार ॥ पयूष ण केरो, महिमा अगम अपार ।। निजमुखथी दाखी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिदानंदजी कृत पद. एए साखी सुर नर वृंद ॥ ए पर्व पर्वमां, जिम तारामां चंद ॥१॥ नागकेतुनी परें, कल्प साधना कीजें ॥ त नियम याखड़ी, गुरुमुख अधिकी लीजें ॥ दोय ने दें पूजा, दान पंच परकार ॥ कर पडिक्कमणां धर, शि यल अखंमित धार ॥२॥ जे त्रिकरण शुदें, बाराधे नवकार ॥ नव सात आठ अव, शेषे तास संसार ॥ सद सूत्र शिरोमणि, कल्पसूत्र सुखकार ॥ ते श्रव । सुगीने, सफल करो अवतार ॥३॥ सत् चैत्य जुहारी, खमत खामणां कीजें ॥करी साहामीवत्सल, कुगति चार पट दीजें॥अ महोत्सव, चिदानंद चि तं लाई ॥ इम करतां संघने, शासन देव सहाई ॥४॥ ॥ पद एकोतेरमुं॥ राग सोरत ॥ ॥क्या तेरा क्या मेरा, प्यारे सदु पडाइरहेगा॥ पंडी आय फिरत दडं दिशथी, तरुवर रेन बसेरा ॥ सद्ध आपणे आपणे मारगतें, होत जोरकी वेरा॥ प्या॥ ॥१॥ इंश्जाल गंधर्व नगर सम,मेढ दिनाका घेरा॥सु पन पदारथ नयन खुल्या जिम, जरत न बदुबिध हेत्या ॥ प्या० ॥ ॥ रविसुत करत शीशपर तेरे, निशिदिन बाना फेरा ॥ चेत सके तो चेत चिदानंद, समज श ब्दए मेरा ॥ प्या० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) ॥ अथ श्री आनंदघनजी कृतपद १०६ मुं॥ रागनट्ट ॥ किनगुन नयो रे उदासी नमरा ॥कि ॥ पंख तेरी कारी मुख तेरा पीरा, सब फूलनको वासी ॥न ॥ कि० ॥१॥ सब कलियनको रस तुम लीनो, सो क्यूं जाय निरासी ॥ ॥ किं॥२॥ आनंद घन प्रनु तुमारे मिलनकुं, जाय करवत न्यूं कासी ॥ नम् ॥ कि० ॥३॥ ॥अथ श्री आनंदघनजी कृतपद १०७ मुं॥ सगवसंत ॥तुम झान विनो फूली बसंत,मन मधुकरही सु खसों रसंत ॥ तु ॥ १ ॥ दिन बडे नये बैरागना व, मिथ्यामति रजनीको घटाव ॥ तु० ॥ ॥ बढ़ फूली फेली सुरुचि वेल, ग्याताजनसमतासंगकेल ॥ तु० ॥३॥ द्यानत बानी पिक मधुररूप, सुर नर पशु यानंद घन सरूप ॥ तु० ॥४॥ ॥ इति मुनि श्री आनंदघनजी तथा मुनि श्री ___ चिदानंदजी कृत पद समाप्त ॥' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only