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३० आनंदघनजी कृत पद. क्योंकर गजपद तोला ॥ आनंदघन प्रनु आय मिलो तुम, मिट जाय मनका जोला ॥ देखो० ॥ ४॥
॥ पद अपवनमुं॥ राग वसंत ॥ ॥ प्यारे आय मिलो कहायेंतें जात, मेरो विरह व्यथा अकुलात घात ॥ प्यारे ॥ १ ॥ एक पेसान र न नावे नाज, न नूषण नही पट समाज ॥ प्यारे ॥ ॥ मोहन रास न दूसत तेरी आसी, मदनो जय है घरकी दासी॥ प्यारे॥३॥ अनुजव जाहके करो विचार, कद देखे दै वाकी तनमें सार ॥ प्यारे ॥४॥ जाय अनुनव जर समजाये कंत, घर आये आनंदघन नये वसंत ॥ प्यारे ॥ ५ ॥ इति पदं ॥
॥ पद उगपशामुं ॥ राग कल्याण ॥ ॥ मोकू कोक केसी ढूंतको, मेरे काम एक प्रान जीवनसं, और नावे सो बको ॥ मो० ॥ १ ॥ में आयो प्रनु सरन तुमारी, लागत नाही. धको ॥ नु ज न उठाय कहूं औरनसं,करहुँ जकरहीसको।मो॥ ॥ ॥ अपराधि चित्त गन जगत जन, कोरिक नां त चको ॥ आनंदघन प्रचु नहचे मानो, इह जन रावरो थको ॥ मो० ॥३॥ इति पदं ॥
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