________________
आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद शाउमुं॥ राग सारंग ॥ ॥ अब मेरे पति गति देवनिरंजन ॥ अ० ॥ जट कू कहा कहा सिर पटकू, कहा करूं जन रंजन ॥ ॥ १०॥ १ ॥ खंजन दृगन दृगन लगावं, चाहूं न चितवन अंजन ॥ संजन घट अंतर परमातम, सकल मुरित जय नंजन ॥ अ० ॥ २ ॥ एह काम गवि एह काम घट, एही सुधारस मंजन ॥ आनंद घन प्रनु घटवनके हरि, काम मतंग गज गंजन ॥ अ० ॥३॥इति पदं ॥
॥ पद एकशमुं॥ राग जयजयवंती॥ ____॥ मेरी सुं तुमतें जूं कहा, दूरीके होने सबैरी री॥ ॥ मे॥१॥ रूठेसें देख मेरी, मनसा फुःख घेरी री॥ जाके संग खेलो सोतो, जगतकी चेरी री॥ मे ॥२॥ शिरवेदी आगे धरे, और नहीं तेरी री॥आनंदघन कीसो, जो कहुँ ढुं अनेरी री॥ मे ॥३॥ इति पदं ॥
पद बाशवमुं ॥ राग मारु ॥ ॥ पीयाबिन सुधबुछ मूंदी हो, विरह नुयंग नि सा समे, मेरी सेजडी बूंदी हो ॥ पी० ॥ १ ॥ नो यण पान कथा मिटी, किसकुं कहुँ सूधी हो ॥ आ ज,काल घर आनकी, जीव आस विजुड़ी हो ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org