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३२ आनंदधनजी कृत पद. ॥ पी० ॥ २ ॥ वेदन विरह अथाह है, पाणी नव नेजा हो ॥ कौन हबीब तबीब है, टारे कर करेजा हो ॥ पी० ॥ ३ ॥ गाल हथेली लगायके, सुरसिंधु समेली हो ॥ असुअन नीर वहायकें, सींचूं कर वे ली हो॥पी०॥४॥ श्रावण नाउँ घनघटा, बिच बीज बूका हो ॥ सरिता सरवर सब नरे, मेरा घ टसर सब सूका हो ॥ पी० ॥ ५॥ अनुनव बात बनायकें, कहे जैसी नावे हो ॥ समता टुक धीरज धरे, आनंदघन आवे हो ॥पी॥ ६ ॥ इति पदं ॥
॥ पद त्रेशमें ॥ राग मारु॥ . - ॥ब्रजनाथसें सुनाथ विण, हाथो हाथ विकायो । बिचकों कोन जनकपाल, सरन नजर नायो॥ व ॥ ॥ १॥ जननी कहुँ जनक कहुँ, सुत सुता कहायो॥ ना कहुँ नगिनी कहूं, मित्र शत्रु नायो ॥ ॥२॥ रमणी कढुं रमण कडं, राज रज उतायो । सेवकप ति इंद चंद,कीट नुंग गायो ॥ ७ ॥३॥ कामी कहुं नामी कहूं, रोग जोग मायो ॥ निशपतिधर देह गेह,धरि विविध विध धरायो॥७॥४०॥ विधिनि षेध नाटक धरी, नेख आठ बायो॥जाषा षट् वेद चार, सांग गुरु पढायो ॥॥५॥ तुमसें गजरा
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