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आनंदघनजी कृत पद.
ज पाय, गर्दन चढी धायो ॥ पायस सुग्रहको विसा री, नीख नाज खायो ॥ ७० ॥ ६ ॥ लीलाचुंह टुक न चाय, कहोजु दास आयो । रोमरोम पुलकित हूं, परम लान पायो ॥७॥७॥ एरि पतितके नधारन तुम, कहिसो पीवत मामी ॥ मोसुं तुम कब उधा रो, क्रूर कुटिल कामी ॥ ७० ॥ ७ ॥ और पतित के ३ नधारे, करणी बिनुं करता ॥ एक काही नावं ले लं, जूठे बिरुद धरता ॥७॥ए ॥ करनी करी पा र जए, बहोत निगम साखी ॥ शोना दर तुमकू ना श्र, अपनी पत राखी॥ ब्र॥ १०॥ निपट अज्ञानी पापकारी, दास है अपराधी॥ जानु जो सुधार हो,थ ब नाथ लाज साधी॥ ७० ॥ ११॥औरको उपासक ढूं, कैसें को उधारूं ।। उविधा यह राखो मत,या वरी विचारूं॥ ॥१॥ गई सो तो गइ नाथ, फेर नहिं कीजें ॥धारे रह्यो ढीग दास, अपनो करी लीजें ॥ ॥७॥१३॥ दासकों सुधारी लेदु, बदुत कहा कहियें। , आनंदघन परम रीत, नालंकी निवहियें॥ ॥१४॥
॥पद चोशमुं॥ राग वसंत ॥ ॥ अब जागो परमगुरु परमदेव प्यारे, मेटदु हम तुमः बिच नेद ॥०॥१॥ बाली लाज निगोरी
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