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३४ आनंदघनजी कृत पद. गमारी जात, मुहि आन मनावत विविध नात ॥ अ॥२॥ अलि पर निर्मली कुलटी कान, मुहि तुहि मिलन बिच देत हान ॥ अ॥३॥ पति म तवारे और रंग, रमे ममता गणिकाके प्रसंग ॥ ॥४॥ जब जड तो जड वास अंत, चित्त फूले था नंदघन जय वसंत ॥ अ ॥ ५॥ इति पदं॥
॥ पद. पांशतमुं॥ . . ॥साखी॥रास ससी तारा कला, जोसी जोड्ने जोस ॥रमता सुमता कब मिले॥ (पाठांतर ॥ातम मित्ता किम मिले) नांगे विरहा सोस ॥१॥ •
॥ गोडी रागमां ॥ ॥पीया बिन कौन मिटावे रे, विरहव्यथा असरा लाप ॥१॥ निंद नीमागी आंख तेरे, नाती मुज दुःख देख ॥ दीपक शिर मोले खरो प्यारे, तन थिर धरे न निमेष ॥ पी० ॥२॥ ससि सरिण तारा जगी रे, विनगी दामिनी तेग ॥ रयणी दयण मते दगो प्यारे, मयण सयण विनु वेग ॥पी० ॥३॥ तनपिंज र फरे पस्यो रे, कडी न सके जोन हंस ॥ विरहानल जाला जली प्यारे, पंख मूल निरवंस ॥पी ॥४॥ सासासें वढाककों रे, वाद वदे निशि राम ॥ न भने
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