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आनंदघनजी कृत पद. कसासा मनी प्यारे, हटकै न रयणीमांम॥ पी०॥॥ इह विधि जे जे घरधणी रे, उससुं रहे उदास ॥ हर विध आई पूरी करे प्यारे, आनंदघन प्रनु आसपी० ॥६॥
॥ पद बाशमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥साधु नाश् अपना रूप जब देखा ॥ साधु ॥ करता कौन कौन फुनी करनी, कौन मागेगो लेखा। ॥ साधु ॥ १ ॥ साधुसंगति अरु गुरुकी कृपातें, मिट ग कुलकी रेखा ॥आनंदघन प्रनु परचो पायो, कतर गयो दिल जेखा ॥ साधु ॥ २ ॥ इति पदं ।
॥ पद सडशठमुं ॥ राग आशावरी ॥ ____॥राम कहो रहेमान कहो कोउ,कान कहो महादेव री॥ पारसनाथ कहो कोउ ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव री॥राम॥१॥नाजन नेद कहावत नाना, एक मृत्ति का रूपरी ॥ तैसें खंम कल्पना रोपित, आप अखंम स रूपरी॥ राम ॥२॥ निजपद रमे राम सो कहियें, र हिम करे रहेमान री॥करशे करम कान सो कहियें,म हादेव निर्वाण री॥राम॥३॥ परसे रूप पारस सो कहियें, ब्रह्म चिन्हे सो ब्रह्म री॥ह विध साधो श्राप आनंदघन, चेतनमय निःकमरी॥राम॥॥इतिपदं।
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