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३६ आनंदघनजी कृत पद.
॥ पद अडशमुं ॥ राग अशावरी ॥ ... ॥ साधुसंगति बिनु कैसें पैयें, परम महारस धाम री॥ ए आंकणी ॥ कोटि उपाय करे जो बौरो, अनुनव कथा विशराम री॥ साधु०॥१॥ शीतल स फल संत सुरपादप, सेवे सदा सुबां री ॥ वंबित फ ले टले अनवनित, नवसंताप बजाइर। ॥ साधु० ॥ ॥ २ ॥ चतुरविरंची विरंजन चाहे, चरणकमल मक रंद री ॥ को हरि नरम विहार दिखावे, शुक्ष निरंज न चंद री ॥ साधु० ॥३॥ देव असुर इंश पद चादु न, राज न काज समाजरी ॥ संगति साधु निरंतर पावं, आनंदघन महाराज री॥ साधु०॥४॥ इति ॥ ॥ पद उगणोतेरमुं॥ राग अलहियो, वेलावल ॥
॥प्रीतकीरीत नही होप्रीतम॥प्रीत॥ मैं तो अ पनो सरव श्रृंगारो, प्यारेकी न लई हो ॥ प्री० ॥ ॥१॥ मैं वस पियके पिय संग औरके, या गति कि न सीखई ॥ नपगारी जन जाय मनावो, जो कबुन ई सो नई हो ॥ प्री० ॥ २ ॥ विरहानलजाला अ तिहि कठिन है, मोपें सही न गई ॥ आनंदधन यूं सघ म धारा, तबही दे पत हो ॥प्रीत॥३॥इति पदं ॥
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