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आनंदघनजी कृत पद. ३७
॥ पद सीतेरमुं॥ सारखी ॥ आतम अनुजव रस कथा, प्याला पिया न जाय ॥ मतवाला तो ढहि परें,निमता परे पचाय॥१॥
॥ राग वसंत, धमाल ॥ ॥ नबिले लालन नरम कहे, अाली गरम करत कहा बात ॥ टेक॥ माके आगें मामुकी कोई, वरनन करय गिवार ॥ अज हू कपटके कोथरी हो, कहा करे सरधा नार ॥ ब० ॥ १ ॥ चगति महेल न बारिही हो, कैसें आत जरतार ॥ खानो न पीनो इन बातमें हो, हसत जानन कहा हाड ॥ २० ॥ २ ॥ ममता खाट परे रमे हो, और निंदे दिन रात ॥ लैनो न देनो इन कथा हो, जोरही आवत जात ॥ ॥३॥ कहे सरधा सुनि सामिनी हो,एतो न कीजें खेद॥ हेरे हेरे प्रनु आवही हो, वदे आनंदघन मेद ॥ ॥४॥
.. ॥पद एकोतेरसुं ॥ राग मारु ॥
॥ अनंत अरूपी अविगत सासतो हो, वासतो वस्तु विचार ॥ सहज विलासीहासी नवी करे हो अविनाशी अविकार ॥ अनं० ॥ १ ॥ ज्ञानावरणी पंच प्रकारको हो,दरशनना नव नेद ॥ वेदनी मोहनी दोस दोय जाणीय हो, आयुखं चार विल्लेद ॥ अ
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