SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७. आनंदघनजी कृत पद. नं॥२॥ गुन अगुन दोय नाम वखाणीयें हो, नीच नंच दोय गोत ॥ विघ्न पंचक निवारी थापथी हो, पंचम गति पति होत ॥ अनं० ॥ ३ ॥ युगपदनावि गुण जगवंतना हो, एकत्रीश मन आण ॥ अवर अ नंता परमागमथकी हो, अविरोधी गुण जाण ॥ अ नं० ॥ ४ ॥ सुंदर सरूपी सुनग शिरोमणि हो, सुण मुज बातमराम ॥ तन्मय तनय तसु नक्तं करी हो, यानंदघन पद ठाम ॥ अनं० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद बहोतेरमुं॥ राग केदारो॥ ॥ मेरे माजी मजीठी सुण एक वात, मीठडे लाल न विन न रहुँ रतीयात ॥ मे ॥१॥ रंगीत चूनडी ख़डी चीडा, काथा सोपारी अरु पानका बीडा ॥ मांग सिंदूर सदल करे पीडा, तन का मांकोरे विरहा कीडा ॥ मे ॥ ॥ जहां तहां ढुढं ढोल न मित्ता पण जोगी नरविण सब युग रीता ॥ रयणी विहाणी दहाडा थीता, अजहू न आवे मोहि बेहा दीता ॥ मे ॥ ३ ॥ तनरंग फूंद नरमली खाट, चून चुन कलीयां विq घाट ॥ रंग रंगीली फूली पहेरंगी नाट, यावे आनंदघन रहे घर घाट ॥ मे॥४॥इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005372
Book TitleAnandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy