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चिदानंदजी कृत पद.
ज्ञानसरथी, सुजल नर लायें ॥अजि ॥१॥ के शर सुमति घोरी, जरी जावना कचोरी॥ कर मन नो री अंग, अंगीयां रचायें ॥अजि० ॥ २ ॥ अजय अखंम क्यारी, सींचके विवेक वारी ॥ सहज सुनावमें, सुमन निपजाईयें ॥ श्रजि० ॥३॥ ध्यान धूप ज्ञान दीप, करी अष्टकर्म जीप ॥ उविध सरूप तप, नैवेद्य चढायें ॥ अजि ॥ ४ ॥ लीजीयें अमल दल, ढो ईयें सरस फल ॥ अक्षत अखंम बोध, स्वस्तिक लखाई यें ॥ अजि० ॥ ५ ॥अनुनव नोर नयो, मिथ्यामत दूर गयो ॥ करि जिन सेव श्म, गुण फुनि गायें॥ जि० ॥६॥णविध नाव सेव, कीजियें सुनित्यमेव।। चिदानंद प्यारे श्म, शिवपुर पाईयें ॥ अजि०॥७॥
॥ पद तालीशमुं॥ राग काफी ॥ . . ॥ जौंलौं अनुनव ज्ञान घटमें प्रगट जयो न हीं । जौंलों॥ए आंकणी॥ तौलों मन थिर होत न ही बिन, जिम पीपरको पान ॥ वेद नस्यो पण नेद विना शत, पोथी थोथी जाणरे ॥ १० ॥१॥ रस नाजनमें रहत इव्य नित्य,नहिं तस रस पहिचान रे॥ तिम श्रुतपाठी पंमितकू पण, प्रवचन कहत अज्ञान ॥ घम् ॥ ५ ॥ सार लह्या विण नार कह्यो श्रुत,
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