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चिदानंदजी कृत पद.
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गिति एक नावे रे | इंद्रिय सुखमें जौंलों एं मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे ॥ विषय ० ॥ १ ॥ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत दुःख पावे रे ॥ तेतो प्रगटपणे ज गदीश्वर, इस विध नाव लखावे रे ॥ विषय० ॥ २ ॥ मन्मथ वश मातंग जगतमें, परवशता दुःख पावे रे || रसनालुब्ध होय ऊख मूरख, जाल पड्यो पिबतावे रे ॥ वि० ॥ ३ ॥ घ्राण सुवास काज सुन जमरा, संपुट मांहे बंधावे रे ॥ ते सरोज संपुट संयुत फुन, करटीके मुख जावे रे ॥ वि० ॥ ४ ॥ रूप मनोहर देख पतंगा, पडत दीपमां जाई रे || देखो याकूं दुःख कारनमें, न यन नये है सहाई रे ॥ विं० ॥ ५ ॥ श्रोत्रे दिय यासक्त मिरगला, बिनमें शीश कटावे रे | एक एक यासक्त जीव एम, नानाविध दुःख पावे रे ॥ वि० ॥ ॥ ६ ॥ पंच प्रबल वर्ते नित्य जाकूं, ताकूं कहा ज्युं कहीये रे ॥ चिदानंद ए वचन सुणीने, निज स्वनाव में रहीयें रे || वि० ॥ ७ ॥ इति पदं ॥
॥ पद बर्हेतालीशमं ॥ राग नैरव ॥ ॥जित जिनंद देव, थिरचित्त ध्यायें ॥ ० ॥ थिरचि त ध्यायें, परम सुख पाईयें ॥ जि० ॥ ए यांकी। यति नीको नाव जल, विगत ममत मल ॥ ऐसो
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