SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिदानंदजी कृत पद. ७.७ सारथसेंती, फिर पाबा घर आवे ॥ अवधू॥४॥ सांजली वचन विवेक मित्तका, जिनमें निजदल जो डया ॥ चिदानंदएसी रामत रमतां, ब्रह्म बंका गढ तोडया ॥ अवधू० ॥ ५॥ इति पदं ।' ॥पद पांत्रीशमुं॥राग प्रमाती॥ ॥ वस्तुगतें वस्तुको लक्ष्य,गुरुगम विण नही पा वे रे ॥ गुरुगम विन नवि पावे कोन, नटक नटकन रमावे रे॥व॥१॥ ए आंकणी॥नवन आरीसे श्वान कूकडा, निज प्रतिबिंब निहारे रे ॥ इतर रूप मनमां हे बिचारी, महा जुझ विस्तारे रे ॥ व ॥२॥नि मैल फिटक शिला अंतर्गत, करिवर लख परगंहि रे ॥ दसन तुराय अधिक उःख पावे, क्षेष धरत दिल मांहि रे ॥व०॥३॥ ससले जाय सिंहकू पकडयो, दूजो दीयो देखाई रे ॥ निरख हरि ते जाण दूसरो, पडयो ऊप तिहां खाई रे ॥ व ॥ ॥ निजलाया वेताल जरस धर, मरत बाल चित्तमांहिं रे ॥ रज्जु सर्प करी कोन मानत, जौंलों समजत नांहिं रेव०॥ ॥ ५॥ नलिनी चम मर्कट मूवी जिम, चमवश अति मुःख पावे रे ॥ चिदानंद चेतन गुरुगम विन, मृग त ष्णा धरी धावे रे ॥ व ० ॥६॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005372
Book TitleAnandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy