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आनंदघनजी कृत पद. दोरी शील लंगोटी, घुल घुल गांव घुलाचं ॥ तत्त्व गु फामें दीपक जोनं, चेतन रतन जगाचं रे वहाला॥ता ॥१॥ अष्ट करम कंमैकी धूनी, ध्याना अगन जला नं ॥ उपशम बनने जसम बणावं, मली मली अंग लगांचं रे वहाला ॥ ता० ॥ २ ॥ आदि गुरुका चेला हो कर, मोहके कान फरावं ॥ धरम शुकल दोड मुश सोहे, करुणा नाद बजाउं रे वहाला.॥ तास ॥ ३ ॥ इह विध योग सिंहासन बैग, मुगति पुरीकू ध्यानं ॥ आनंदघन देवेंसें जोगी, बदुर न कलिमें आ रे वहाला ॥ ता० ॥ ४ ॥
॥पद आडत्रीशमुं ॥ राग मारु ॥ ॥मनसा नटनागरसूं जोरी हो।म॥ नटनागरसूं जोरी सखी हम, और सबनसों तोरी हो ।म॥१॥लो क लाजतूं नांहीं न काज, कुल मरयादा बोरी हो। लोक बटान हसो बिरानो, अपनो कहत न कोरी हो ॥ म० ॥ ॥ मात तात अरु सजान जाति, वात क रत है जोरी हो॥चाखे रसकी क्युं करि लूटे, सुरिजन सुरिजन टोरी हो ॥ ३ ॥ औरहनो कहा कहावत
और, नांहि न कीनी चोरी हो॥कान कल्यो सो ना चत निवहे, और चाचर चर फोरी हो ॥म० ॥४॥
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