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यानंदघनजी कृत पद.
१ ए
मानुं कबुक खाई जंग ॥ एते पर श्रानंदघन नावत, और कहा कोन दीजें संग ॥ दे० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥
॥ पद पांत्रीशमं ॥ राग दीपक अथवा कान्हरो ॥ ॥ करे जारे जारे जारे जा ॥ करें ० ॥ सजि सपगार बनाये नूखन, गइ तब सूनी सेजा ॥ करें० ॥ १ ॥ विरहव्यथा कबु ऐसी व्यापति, मानुं कोई मारति बेजा ॥ अंतक अंत कहांलूं जेगो प्यारे, चाहे जीव तूं लेजा ॥ करे० ॥ २ ॥ कोकिल काम चंद चूता दिक, चेतन मत है जेजा ॥ नवल नागर खानंदघन प्यारे, या यमित सुख देजा ॥ करे ० ॥ ३ ॥ इतिपदं ॥
॥ पद छत्रीशमं ॥ रागं मानसिरि ॥
॥ वारे नाद संग मेरो, यूंही जोवन जाय ॥ ए दिन हसन खेलनके सजनी, रोते रेन विहाय ॥ वा रे० ॥ १ ॥ नग भूषणसें जरी जातरी, मोतन कबु न सुहाय ॥ इक बुद्ध जीयमें ऐसी आवत है, लीजें री विष खाय ॥ वारे० ॥ २ ॥ नां सोवत है लेत न सास न, मनही में पिबताय ॥ योगिनी हुयकें निक घरतें, खानंदघन समजाय ॥ वारे ॥ ३ ॥ इतिपदं ॥ ॥ पद साडीमुं ॥ राग वेलावल ॥
• ॥ ता जोगें चित्त व्यानं रे वाहाला ॥ ता० ॥ समकित
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