________________
चिदानंदजी कृत पद. ६१ महिमा, सोई कीट नंगी हो जावे ॥ आ॥१॥ कुसुम संग तिल तेल देख फुनि, होय सुगंध फूलेल कहावे ॥ शुक्ति गर्नेगत स्वाति उदक होय, मुक्ताफल अति दाम धरावे ॥ ॥॥ पुन पिचुमंद पला शादिकमें, चंदनता ज्युं सुगंधथी आवें ॥ गंगामें जल आण याणके, गंगोदककी महिमा जावे ॥ ० ॥३॥पारसको परसंग पाय फुन, लोहा कनक स्वरू प लिखावे ॥ ध्याता ध्यान धरत चित्तमें इम,ध्येयरूप में जाय समावे। आ॥४॥ जज समता ममताकुं तज जन, गुरु स्वरूपथी प्रेम लगावे ॥ चिदानंद चित्त प्रेम मगन जया, सुविधा नाव सकल मिट जावे ॥ आ० ॥ ५ ॥ इति पदं॥
॥ पद नवमुं ॥राग काफी तथा वेलावल ॥ .
॥ अरज एक घवडीचा स्वामी, मुगढुं कृपानिधि अंतरजामी॥०॥ अति आनंद जयो चंड वदन तुम दर्शन पामी॥ ॥ १ ॥ ढुं संसा र असार उदधि पडयो, तुम प्रनु नये पंचम गति गा मी। कबहूं उचित नही स्वामीकू,चित्त धरवी सेवककी खामी ॥ अ॥॥ढुं रागी तुं निपट निरागी, तुम हो निरीह निर्मम निष्कामी॥ पण तोहे कारण रूप
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org