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चिदानंदजी कृत पद. करत थाग नवि पाये, निर्विकल्पतें होत नये ॥ ॥ अ० ॥ ॥ अंतर अनुनय विनुं तुव पदमें, युक्ति नही कोन घटत अनेरी॥ चिदानंद प्रनु करि किरपा अब, दीजें ते रस रीज जलेरी॥ अ॥३॥ इति ॥ ___॥ पद सातमुं ॥ राग काफी तथा वेलावल ॥
॥ जौंलौं तत्त्व न सूज पडे रे ॥ जौं ॥ तौलौं मू ढ नरम वश जूल्यो, मत ममता ग्रही जगथी लडे रे॥ जो० ॥१॥ अकर रोग गुन कंप अगुन लख, नवसायर ण नांत रडे रे ॥ धान काज जिम मूर ख खित्तहड, नखर नूमिको खेत खडे रे ॥ जौं ॥२॥ नचित रीत लिख विण चेतन,निशिदिन खो टो घाट घडे रे॥ मस्तक मुकुट नचित मणि अनु पम, पग जूषण अज्ञान जडे रे ॥ जौं ॥३॥ कु मता वश मन वक्र तुरंग जिम, गहि विकल्प मगमां हि अडे रे ॥ चिदानंद निज रूप मगन जया, तब कु तर्क तोहे नांहि नडे रे॥ जौं ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ || पद आठमुं॥ राग काफी तथा वेलावल ॥
॥आतम परमातम पद पावे, जो परमातम गुं लय लावे ॥श्रा० ॥ सुणके शब्द कीट नंगीको, नि ज तन मनकी शुदि बिसरावे॥ देखहु प्रगट ध्यानकी
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