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G . आनंदघनजी कृत पद. एक जान बमासी॥ आनंदघन प्रनु घरकी समता, घटकली और लबासी॥ अनु० ॥ ३ ॥ इति पदं ।
____॥ पद चौदमुं॥ राग सारंग ॥
॥ अनुभव तूं है हेतु हमारो ॥ अंनु० ॥ ए आं कणी ॥ आय उपाय करो चतुराइ, औरको संघ नि वारो ॥ अ॥ १॥ तृष्णा राम नामकी जाइ, कहा घर करे सवारो ॥ शठ ठग कपट कुंटुंबही पोखे, म नमें क्युं न विचारो ॥ पागंतर ॥ उनकी संगति वा रो॥०॥ ॥ कुलटा कुटिल कुबुदि संग खेलकें, अपनी पत क्युं हारो॥आनंदघन समता घर यावे, वाजे जीत नगारो ॥ १० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥
॥ पद पंदरमुं ॥ राग सारंग ॥ ॥ मेरे घट ग्यान जानु जयो नोर ॥ मेरे॥चेतन चकवा चेतन चकवी, नागो विहरको सोर ॥ मेरे॥१॥ फैली चिटुंदिस चतुरा नाव रुचि, मिट्यो नरम तम जोर ॥ आपकी चोरी आपही जानत, औरे कहत न चोर ॥ मेरे ॥ २ ॥ अमल कमल विकच जये जूतल, मंदविषय शशिकोर ॥ आनंदघन एक वलन लागत, और न लाख किरोर ॥ मेरे ॥३॥ इति.॥
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