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आनंदघनजी कृत पद. ७ नारी ॥ चोपर खेले राधिका, जीते कुबजा हीर ॥१॥
॥ राग रामग्री॥ ॥ खेले चतुर्गति चौपर ॥ प्रानी मेरो खे ॥ ए यांकणी॥ नरंद गंजीफा कौंन गिनत है, माने न लेखे बुद्धिवर ॥ प्रा०॥ १ ॥ राग दोष मोहके पासे, आप बनाए हितकर ॥ जैसा दाव परे पासेका, सारी चलावे विलकर ॥ प्रा० ॥२॥ पांच तलें है या जाइ, बका तले है एका ॥ सब मिल होत बराबर लेखा, यह विवेक गिनवेका ॥ प्रा० ॥३॥ चनरा सीमाचे फिरे नीली, स्याह न तोरी जोरी लाल जरद फिर आवे घरमें,कबद्धंक जोरी विजोरी॥प्रा॥ ॥ ४ ॥ नाव विवेकके पान न आवत, तब लग काची बाजी ॥ आनंदघन प्रनु पान देखावत, तो जीते जीय गाजी ॥ प्रा० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥
॥ पद तेरमुं॥ राग सारंग ॥ ॥अनुजव हम तो रावरी दासी॥अ॥आ कहां तें माया ममता,जानुं न कहांकी वासी॥अनु॥१॥ रीज परें वाके संग चेतन, तुम क्युं रहत नदासी॥ व रज्यो न जाय एकांत कंतकों, लोकमें होवत हांसी ॥ अनु० ॥ २॥ समजत नांही नितुर पति एती, पल
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