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श्रानंदघनजी कृत पद. ॥ पद दशमुं ॥ राग टोडी ॥
॥ परम नरममति और न थावे ॥ प० ॥ मोहन गुन रोहन गति सोहन, मेरी बैरन ऐसें निठुर लिखावे ॥ परमं० ॥ १ ॥ चेतन गात मनातन एतें, मूल वसात जगात बढावे ॥ कोन न दूती दलाल विसीवी, पा रखी प्रेम खरीद बनावे ॥ परम० ॥ २ ॥ जांघ उघारी अपनी कहा एते, विरहजार निस मोही संतावे ॥ एती सुनी आनंदघन नावत, चौर कहा कोक मूंग बजावे ॥ परम० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥
पद अगीयारमुं ॥ राग मालकोश वेलावल, टोडी ॥
॥ श्रातम अनुभव रीति वरी री ॥ ० ॥ ए यां कणी | मोर बनाए निजरूप निरूपम, विवन रुचिकर तेग धरी री ॥ तम ॥ १ ॥ टोप सन्नाह शूरको बानो, एकतारी चोरी पहिरी री ॥ सत्ता यलमें मोह विदारत, ऐ ऐ सुरिजन मुह निसरी री ॥ तम ॥ २ ॥ केव ल कमला अपवर सुंदर, गान करे रस रंग जरी री ॥ जीत निशान बजाइ विराजे, यानंदघन सर्वंग धरी री ॥ तम ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बारमुं ॥
॥ साख ॥ कुबुद्धि कुंजा कुटिल गति, सुबुद्धि राधिका
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