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यानंदघनजी कृत पद.
॥ पद आठमुं॥ साखशातम अनजव फलकी.नवली कोकरीत नाक न पकरे वासना, कान ग्रहे न प्रतीत ॥१॥
___॥राग धन्याश्री अथवा सारंग ॥
॥अनुनव नाथकू क्युं न जगावे ॥ ममता संग सो पाय अजागल, थनतें दूध उहावे ॥ ॥१॥ मैरे कहेतें खीज न कीजें, तुंही ऐसी सीखावे ॥ बहोत कहेतें लागत ऐसी, अंगुली सरप दिखावे ॥ अग ॥ ॥ औरनके संग राते चेतन, चेतन आप ब तावे ॥ आनंदघनकी सुमति आनंदा, सिंह सरूप कहावे ॥ अ० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥
॥ पद नवमुं॥ राग सारंग ॥ ॥नाथ निहारो आपमतासी, वंचक शठ संचक शीरीतें,खोटो खातो खतासी॥ नाथ ॥१॥ आप विगूचण जगकी हांसी, सियानप कौन बतासी॥नि जजन सुरिजन मेला ऐसा, जैसा दूधपतासी ॥ ना थ ॥ २ ॥ ममता दासी अहित करि हर विधि, वि विध नांति संतासी ॥ आनंदघन प्रनु विनति मानो, और नहिं तूं समतासी॥ नाथ ॥३॥ इति पदं ॥
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