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आनंदघनजी कृत पद.
॥ पद शोलमुं॥ राग मारु॥ ॥ निशदिन जो तारी वाटडी, घरे आवो.रे ढो ला ॥ निश० ॥ मुज सरिखा तुज लाख है, मैरे तूंही ममोला ॥ निश ॥ १ ॥ जवहरी मोल करे लालका, मेरा लाल अमोला ॥ज्याके पटंतर को नही, उसका क्या मोला ॥ निशम् ॥ २॥ पंथ निहारत लोयणे, झग लागी अमोला ॥ जोगी सुरत समाधिमैं, मुनि ध्यान ऊकोला ॥ निश॥॥३॥ कौन सुनै किनकू कद, किम माहूं मैं खोला ॥ तेरे मुख दी। टले, मेरे मनका चोला ॥ निश ॥ ४ ॥ मित्त विवेक वातें कहै, सुमता सुनि बोला ॥ आनंदघन प्रनु आवशे, सेजडी रंग रोला ॥ निश० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥
पद सत्तरमुं ॥ राग शोरत ॥ ॥ बोराने क्युं मारे ने रे, जाये काट्या मेण॥ बोरो महारो बालो नोलो, बोले ने अमृत वयण ॥ बो रा० ॥१॥.लेय लकुटियां चालण लागो, अब कांश फूटा डे नेण ॥ तूंतो मरण सिराणे सूतो, रोटी देशे कोण ॥ बोरा० ॥ ॥ पांच पची पचासां कपर, बोले के सूधा वेण ॥ आनंदघन प्रनु दास तिहारो, जनम जनमके सेण ॥ बोरा ॥३॥ इति पदं ॥
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