________________
७५ चिदानंदजी कृत पद. रोपी, चिदानंद श्म गावे ॥ अलख रूप दो अलख समावे, अलख नेद एम पावे हो ॥ ऐसी० ॥ ३ ॥
॥ पद तालीशमुं॥ राग काफीनी होरी॥
॥अनुनव मित्त मिलायदे मोकू, श्याम सुंदर वर मेरा रे॥ अनु० ॥ ए यांकणी॥शीयल फाग पिया संग रमूंगी, गुण मानुंगी में तेरा रे ॥झान गुलाल प्रेम पीचकारी, शुचि श्रमा रंग नेरा रे ॥ ॥१॥ पंच मिथ्यात निवार धरुंगी में,संवर वेश नलेरा रे॥ चिदानंद ऐसी होरी खेलत, बदुरि न होय नव फेरा रे ॥ अ० ॥ २ ॥ इति पदं ॥
॥ पद सुडतालीशमुं॥ राग काफीनी दोरी॥ ॥एरि मुख होरी गोवो री,सहज श्याम घर आए॥ सखी मुख० ॥ ए आंकणी ॥ नेद ज्ञानकी कुंजगल नमें, रंग रचावोरी ॥ सखी मुख०॥१॥ शुम श्रदान सुरंग फूलके, मंझप बावोरी ॥ एरि घर मंझप बावो री॥ सखी०॥२॥ वास चंदन शुजनाव अरगजा, अंग लगावो री॥ एरि पीया अंग लगावोरी॥स खी० ॥३॥ अनुनव प्रेम पीयाले प्यारी, नर नर पावोरी॥ कंतकू जर जर पावोरी ॥ सरवी ॥४॥ चिदानंद समता रस मेवा, हिल मिल खावो री ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org