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४0 आनंदघनजी कृत पद.
॥ पद पंचोतेरसुं ॥ राग वसंत ॥ . ॥ लालन बिन मेरो कुन हवाल, समजे न घटकी ' नितुर लाल ॥ ला॥१॥ वीर विवेकजुं मांजि मांहि, कहा पेट दई यागें बिपाई॥ ला॥॥ तुम नावे जो सो कोजें वीर, सोश्ान मिलावो लालन धीर ॥ ला० ॥३॥ अमरे करे न जात आध, मन चंच लता मिटे समाध ॥ ला॥४॥ जाय विवेक विचार कीन, आनंदघन कीने अधीन ॥ला ॥५॥ इति॥
॥ पद बहोतेरमुं ॥ राग वसंत ॥ . .. ॥ प्यारे प्रान जीवन ए साच जान, उत बरकत नांही न तिलसमान ॥ प्यारे ॥ १ ॥ ननसें न मांगु दिन नांहि एक, इत पकरिलाल बरि करि विवे क ॥ प्यारे ॥२॥ नत शठता माया मान मंब, इत रुजुता मृउता जानो कुटुंब ॥ प्यारे॥३॥ उत आसा तृष्णा लोन कोह, श्त शांत दांत संतोष सोह ॥ प्या रे० ॥ ४ ॥ नत कला कलंकी पाप व्याप, इत खेले आनंदघन नूप आप ॥ प्यारे ॥ ५ ॥ इति पदं ॥
॥ पद सत्योतेरमुं ॥ राग रामग्री॥ ..॥ हमारी लय लागी प्रचु नाम ॥ ॥ अंब खास अरु गोसल खाने, दर अदालत नहीं काम ॥
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