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आनंदघनजी कृत पद.
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मराइ ॥ श्रानंदघन पुरुषोत्तम नायक, हित करी कंठ लगाइ ॥ सा० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥
॥ पद एकत्रीभुं ॥ श्रीराग ॥ ॥ कित जांनमतें हो प्राननाथ, इत याय नि हारो घरको साथ ॥ कि० ॥ १ ॥ उत माया काया कब न जात, यहु जड तुम चेतन जग विख्यात ॥ कि० ॥ उत करम नरम विष वेलि संग, इत परम नरम मति मेलि रंग ॥ किं० ॥ २ ॥ उत काम कपट मंद मोह मान, इत केवल अनुभव अमृत पान ॥ अनि कहे समता उत दुःख अनंत, इत खेले यानंदघन वसंत ॥ कि० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बत्रीशमुं ॥ राग सामेरी ॥
॥ निठुर नये क्यूं ऐसें, पीया तुम ॥ निठुर० ॥ ए यांकणी ॥ मेंतो मन वच क्रम करी राजरी, राजरी रीत
नेसें ॥ नि ॥ १ ॥ फूल फूल नमर कैसी जांबरी जरत डुं, निव प्रीत क्यूं ऐसें ॥ मेंतो पीयुतें ऐसी मलि थाली, कुसुम वास संग जैसें ॥ नि० ॥ २ ॥ ऐंटी जान कहा परे एती, नीर निवहियें जैसें ॥ गुन यव गुन न विचारो खानंदघन, कीजियें तुमहो तैसें ॥३॥
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