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आनंदघनजी कृत पद. आनंदघन निपट निकट अकर दो, नहीं समरे सो मरेंगे ॥ ०॥
॥पद तालीशमुं। राग टोडी॥ ॥ मेरी तुं मेरी तुं कांहीं मरेरी॥मेरी॥कहे चेतन समता सुनि आखर,और मैढदिन जून लरे री॥मेरी॥ ॥१॥एतीतो हुँ जानुं निह,रीरी पर न जरान जरे री॥ जब अपनौ पद आप संजारत, तब तेरे परसंग परे री॥ मेरी० ॥ औसर पा अध्यातम सैली, परमातम निज योग धरे री॥ सक्ति जगावे निरुपम रूपकी, आनंदघन मिति केलि करे री ॥ मेरी० ॥ ॥ इति पदं ॥
॥पद चुम्मालीशमुं॥ राग टोडी॥ ॥ तेरी हुँ तेरी एती कहूं री, इन बातमें दगो तुं जाने, तो करवत कासी जाय गहूं री॥ तेरी॥१॥ वेद पुराण कितेब कुरानमें, आगम निगम कबु न लहूं री॥ वाचा फोर सिखाइ सेवनकी, में तेरे रस रंग रहूं री तेरी॥॥ मैरे तो तुं राजी चहियें, औ रके बोल में लाख सहूरी॥आनंदघन पिया वेग मि लो प्यारे, नहीं तो गंग तरंग वहूं री॥ तेरी० ॥३॥
वापद पीस्तालीशमुं॥राग टोडी॥ ॥गोरी गोरी लगोरी जगोरी,ए आंकणीममता
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