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आनंदघनजी कृत पद. हसती तबलु बिरानीया, देखी तन मन बीज्यो हो। समजी तब एती कही, को नेह न कीज्यो हो ॥ ॥ पीया ॥२॥ प्रीतम प्राणपति विना, प्रिया कैसे जीव हो ॥प्रान पवन विरहा दसा, जयंगम पीवं हो ॥ पिया० ॥३॥ शीतल पंखा कुम कुमा, चंदन कहा लावे हो ॥ अनल न विरहानल ये है, तन ताप ब. ढावे हो ॥ पीया ॥ ४ ॥ फागुन चाचर इक निसा, होरी सिरगानी हो ॥ मैरे मन सब दिन जरे, तन खाख उडानी हो ॥ पीया ॥ ५ ॥ समता महेल बिराज है, वाणी रस रेजा हो ॥ बलि जानं आनंद, धन प्रनु, ऐसें नितुर नव्हेजा हो ॥ पीया ॥६॥ ॥ पद बेंतालीशमुं ॥ राग सारंग अथवा बाशावरी ॥
॥ अब हम अमर नये न मरेंगे ॥ ०॥या का रन मिथ्यात दीयो तज, क्युं कर देह धरेंगे । अ० ॥१॥राग दोसे जग बंध करत है, इनको नास करेंगे। मस्यो अनंत कालतें प्रानी, सो हम का ल हरेंगे ॥ अ॥२॥ देह विनासी हूं अविनासी, अपनी गति पकरेंगे॥ नासी जासी हम थिर वासी, चोखे व्है निखरेंगे ॥ अ० ॥ ३ ॥ मयो अ नंत वार बिन समज्यो, अब सुख दुःख विसरेंगे।
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