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आनंदघनजी कृत पद.
हो ॥ वसे
से || ध्यान चहिवचो नखो रहे, समपन नाव समीर ॥ ४ ॥ उचालो नगरी नहीं, डुष्टडुःकाल नीति व्यापे नही, या ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ इमन राग ॥
न योग हो । वसे० ॥ इति नंदघन पद जोग हो ॥ वसे ॥ पद चोराशीभुं ॥ ॥ लागी लगन हमारी, जिन राज सुजस सुन्यो में ||ला ॥ टेक ॥ काढूके कहे कबहूं नहि बूटे, लोक लाज सब मारी ॥ जैसें अमलि अमल करत समे, लाग रही ज्युं खुमारी ॥ जि० ॥ १ ॥ जैसें योगी योगध्यान में, सुरत टरत नहीं टारी ॥ तैसें आनंद घन अनुहारी, प्रचुके हूं बलिहारी ॥ जि० ॥ २ ॥ ॥ पद पंचाशीमुं ॥ राग काफी ॥
॥ वारी हुं बोलडे मीठडे, तुजबिन मुज नहि सरे रे सूरिजन, लागत और अनीवडे || वा ॥ १ ॥ मेरे मनकूं जक न परत है, बिनु तेरे मुख दीवडे ॥ प्रेम पीयाला पीवत पीवत, लालन सबदिन नीवडे ॥ वा० ॥ २ ॥ पूलूं कौन कहासूं ढूंढूं, किसकूं नेजुं चीवडे ॥ श्रानंदघन प्रभु सेजडी पाउँतो, नागे यान वसीवडे || वा० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥
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