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च्यानंदघनजी कृत पद.
जाय ॥ चार चरे चिहुं दिस फिरे, वाकी, सुरति व रुयामहे रे | ऐसे जिन० ॥ १ ॥ सात पांच सहे लीयां रे, दिल मिल पाणी जाय ॥ ताली दीये खड खड हसे रें, वाकी सुरति गगरुग्रामांहे रे | ऐसे जिन० ॥ २ ॥ नटुआ नाचे चोकमें रे, लोक करे लख सोर ॥ वांस यही वरतें चढे, वाको चित्त न चले कटुं वोर रे | ऐसे जिन० ॥ ३ ॥ जूधारी मनमें जूत्रा रे, कामीके मन काम ॥ यानंदघन प्रभु युं कहे, तुमे ल्यो जगवंतको नाम रे ॥ ऐसे जि० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद उन्नुमुं ॥ राग धन्याश्री ॥
॥ री मेरो नाहेरी प्रतिवारो | मैं ले जोबन कि त जावं, कुमति पिता बंजना अपराधी, ननवादै व जमारो ॥ घरी० ॥ १ ॥ नलो जानीके सगाई कीनी, कौन पाप उपजारो || कहा कहियें इन घर के कुटुंबतें, जिन मैरो काम बिगारो ॥ अ० ॥ २ ॥ ॥ पद सत्ताणुमुं ॥ राग कल्यास ॥
॥ या पुजनका क्या विसवासा, हे सुपने का वासा रे ॥ या० ॥ ए यांकणी ॥ चमतकार विजली दें जैसा, पानी बिच पतासा ॥ या देहीका गर्व न कर नां, जंगल होयगा वासा ॥ या० ॥ १ ॥ जूते तन
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