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६६ चिदानंदजी कृत पद. णी ॥ सुपने राज पाय कोन रंक ज्यु, करता काज मन नाया ॥ नघरत नयन हाथ लख खपर, मन ढुं मन पडताया रे ॥ नर जग ॥ १ ॥ चपला चमत्कार जिम चंचल, नरनव सूत्र बताया॥अंजलि जलसम जगपति जिनवर, आयु अथिर दरसाया रे॥नर जग॥॥ यौवन संध्याराग रूप फुनि, मल मलिन अति काया ॥ विरासत जास विलंब न रंच क, जिम तरुवरकी बाया रे॥ नर जग ॥३॥स रिता वेग समानजु संपति, स्वारथ सुत मित जाया॥
आमिष बुब्ध मीन जिम तिन संग, मोहजाल बंधा या रे॥नर जग॥४॥ ए संसार असार सार पण, यामें इतना पाया ॥ चिदानंद प्रनु सुमरनसेंती,धरीयें नेह सवाया रे॥नर जग॥५॥ इति पदं ॥
॥ पद अढारमुं॥ राग प्रजाती॥ ॥ मान कहा अब मेरा मधुकर ॥ मान ॥ ए यांकरणी ॥ नानिनंदके चरण सरोजमें,कीजें अचल बसेरारे ॥ परिमल तास लहत तन सहेजें, त्रिविध पाप उतेरारे ॥ मान॥१॥नदित निरंतर ज्ञान जान जिहां, तिहां न मिथ्यात अंधेरारे ॥ संपुट होत नही तातें कहा, सांज कहा सवेरार ॥मान॥॥ नहिंतर
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