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आनंदघनजी कृत पद. रीसावे, तेथी जोर न चालायानंदघन वाहालो बाद डी जाले,तो बीजु सघर्बु पाले ॥ माय॥ ॥ इति॥
॥ पद गणपञ्चाशमुं॥ राग सोरठ ॥ ॥ कंचन वरणो नाह रे, मुने कोय मिलावो॥॥ अंजन रेख न आंख न जावे, मंजन शिर पडो दाह रे। मुने कोय ॥१॥ कौन सेन जाने पर मनकी, वेदन विरह अथाह ॥ थरथर भ्रूजे देहडी मारी, जिम वानर नरमाह रे ॥मुने ॥२॥ देह न गेह न नेह न रेह न, नावे न दूहा गाहा ॥ आनंदघन वालो बां हडी जाले, निशदिन धरूं उमाहा रे ॥ मुने ॥ ३ ॥
॥ पद पच्चारामुं॥ राग धन्याश्री॥ ॥ अनुनव प्रीतम कैसे मनासी ॥ १०॥ बिन नि र्धन सधन बिन निर्मल, समत रूप बतासी॥ अनु ॥१॥ बिनमें शक तक फुनि बिनमें, देखें कहत अनासी ॥ विरज न विच आपा हितकारी, निर्धन
त खतासी ॥ अनु० ॥ ॥ तोहि तूं मैरो मैं हि तुं तेरी, अंतर का हैं जनासी ॥आनंदघन प्रनु आन मिलावो, नहितर करो धनासी ॥ अनु० ॥ ३ ॥
॥ पद एकावनमुं॥ राग धमाल ॥ ॥नाउंकी राति कातीसी वहे, गतीय बिन बिन
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