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आनंदघनजी कृत पद. ११ ॥पद वीशमुं ॥ राग गोडी, आशावरी ॥ ॥याज सुहागन नारी,अवधू आज एमांकगी। मेरे नाथ आप सुध लीनी, कीनी निज अंगचारी॥ ॥अवधू ॥१॥प्रेम प्रतीत राग रुचि रंगत, पहिरें जीनी सारी॥ महिंदीनक्ति रंगकीराची, नाव अंज न सुखकारी॥ अवधू ॥ २॥ सहिज सुनाव चूरी मैं पेनी, थिरता कंकन नारी ॥ ध्यान उरवसी नरमें राखी, पिय गुनमाल आधारी ॥ अवध ॥३॥ सुरत सिंदूर मांग रंग राती, निरतें वेनी समारी॥ पजी ज्योत उद्योत घट त्रिभुवन, पारसी केवल का री ॥ अवधू ॥ ४ ॥ उपजी धुनि अजपाकी अनह द, जीत नगारेवारी ॥ जडी सदा आनंदघन बरखत, बिन मोर एकन तारी ॥ अवधू ॥ ५॥इति पदं ॥
पद एकवीशमुं॥राग गोड़ी॥ ॥ निसानी कहा बताएं रे, तेरो अगम अगोचर रूपए आंकण रूपी कहूं तो कबु नही रे, बंधे कैसे अरूप ॥रूपारूपीजो कहूं प्यारे,ऐसे न सिह अनूप ॥निसा ॥१॥ शुरू सनातन जो कहुँ रे, बंधन मो द विचार ॥ न घटे संसारी दिसा प्यारे, पुण्य पाप अवतार ॥ निसा० ॥ २ ॥ सिम सनातन जो कहुँ रे,
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