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च्यानंदघनजी कृत पद.
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यावे ॥ ज्युं जाणे त्युं कर ले जलाई, जनम जनम सुख पावे ॥ श्रवस ॥ १ ॥ तन धन जोबन सबही जूठो, प्राण पलक जावे ॥ अवसरणं ॥ २ ॥ तन लूटे धन कौन कामको, कायकूं कृपण कहावे ॥ अवसर ० ॥ ३ ॥ जाके दिल में साच बसत है, ताकूं जूठ न जावे ॥ अवसर० ॥ ४ ॥ यानंदघन प्रभु चलत पंथमें, समरी समरी गुण गावे ॥ अवसर० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥
॥ पद एकशो एकमुं ॥ राग श्राशावरी ॥ ॥ मनुष्यारा मनुष्यारा, रिखन देव मनुप्यारा ॥ ए यांकणी ॥ प्रथम तीर्थकर प्रथम नरेसर, प्र थम यतिव्रतधारा ॥ रिखने० ॥ १ ॥ नानिराया मरुदेवीको नंदन, जुगला धर्मनिवारा ॥ रिखन० ॥ ॥ २ ॥ केवल लइ प्रभु मुंगतें पोहोता, यावागम न निवारा || रिखन० ॥ ३ ॥ आनंदघन प्रभु इतनी विनति, या जब पार उतारा ॥ रिखन ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो बेमुं ॥ राग काफी ॥
॥ ए जिनके पाय लाग रे, तुने कहीयें केतो ॥ ए जिनके ॥ ए की ॥ यागे जाम फिरे मदमा तो, मोहजिंदरीयाशुं जाग रे ॥ तुने० ॥ १ ॥ प्रभु जी. प्रीतम विन नही कोई प्रीतम, प्रभुजीनी पूजा
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