SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ चिदानंदजी कृत पद. कतक ० ॥ ४ ॥ ता, करे ध्याता हो धरे ध्यान सुजान ॥ करे मलनिन्नता, जिम नासे हो तम उगते जान ॥ पुष्टालंबन योगथी, निरालंबता हो सुख साधन जेह ॥ चिदानंद विचल कला, दमांहे हो जवि पावे तेह ॥ ० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद पांशठमुं ॥ निर्मल होई जज ले प्रभु प्यारा ॥ ए देशी ॥ || लाग्या नेह जिनचरण हमारा, जिम चकोर चि नचंद पीयारा ॥ सुनत कुरंग नाद मन लाई, प्राण तजे पण प्रेम निजाई ॥घन तज खानन जावत जोई, एखग चातुक केरी बडाइ ॥ सा० ॥ १ ॥ जलत निः शंक दीपके मांहि, पीर पतंगळं होत के नांहि ॥ पी डा तदपण तिहां जाहि, शंक प्रीतिवश यानत नां हि ॥ ना० ॥ २ ॥ मीन मगन नवि जलथी न्यारा, मानसरोवर हंस आधारा ॥ चोर निरख निशि यति अंधियारा, केकी मगन फुन सुन गरजारा ॥ ला० ॥ ३ ॥ प्रणव ध्यान जिम योगी याराधे, रस रीती रससाधक साधे ॥ अधिक सुगंध केतकी में लाघे, मधु कर तस संकट नवि वाधे ॥ जा० ॥ ४ ॥ जाका चित्त जिहां थिरता माने, ताका मरम तो तेहिज जाने ॥ जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005372
Book TitleAnandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy