Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग सुत्ताणि आयारो . सूयगडा . ठाणं. समयाओ VAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVI 72 वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी in Education Internatio WAVAY संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निग्गंयं पावयणं भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में अंग सुत्ताणि १ आयारो • सूयगडो • ठाणं • समवाओ वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस ) पृष्ठांक ११०० मूल्य : ८५ / मुद्रक एस. नारायण एण्ड संस ( प्रिंटिंग प्रेस ) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI AYĀRO SŪYAGADO. THANAM • SAMAWAO. (Original text Critically edited) Vāćanā PRAMUKHA ACĂRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreecbaud Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kartic Kșishna 13 2500th Nirvaņa Day Pages 1100 Rs. 85 - Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj. Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुग्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्झाग - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स प्पणिहाणपुग्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स घारा, गणे समत्थे मम माणसे वि। जो हेउभूओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में। हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम- निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तुलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के महुधमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है--- संपादक : पाठ-संशोधन : सहयोगी : 33 17 33 मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी मुनि मधुकर मुनि हीरालाल Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है । आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुँचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था । मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में 'गांधी विद्या मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है। 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे। सुझाव पर विचार हुआ। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ ( सरदारशहर ) को बम्बई बुलाया गया । सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दृष्टि से 'गांधी विद्या मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से श्री गोपीचन्दजी चोपड़ा और में तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आच्छा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए | श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे । सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर सरदारशहर 'जैन विश्व भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा । आगे के कदम इसी ओर बढ़े । आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से बोले "जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कंसा सुन्दर शान्त वातावरण है ।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिखर पर कांच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे। मैं उनके सामने बैठा था । वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .܀ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी ( उटकमण्ड) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनू ( राजस्थान ) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को हाथ में लिया। कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० श्री के दर्शन प्राप्त हुए कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए । मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-- “ ऐसा हो प्रकाशन ईप्सित है ।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही- की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी २०१३ में लाइन में आचार्य दशर्वकालिक सूत्र के अपने १. आगम-मुल ग्रन्थमाला मूलपाठ, पाठान्तर शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम कथा ग्रन्थमाला आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत - आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में - (१) दसवेआलिय तह उत्तरभवणाणि (२) आयारो तह आधारचूला, (३) निसीभयणं, (४) उबवाइये और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो ( प्रथम श्रुतस्कन्ध ) का मुद्रण कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए । दूसरी ग्रन्थमाला में – (१) दसवेलियं एवं (२) उत्तरभयणाणि (भाग १ और (भाग २) प्रकाशित हुए समवायांग का मुद्रण कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पांचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)। उक्त प्रकाशन-कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा। अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गूंज रहे हैं"धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा। कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसूताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय-ये प्रथम चार अंग हैं। दुसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रंथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है; जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन मूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) को समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजीहंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चुना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है । मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन अन विश्व-भार तो Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय आयारो आचारांग का जो पाठ हमने स्वीकार किया है, उसका आधार कोई एक आदर्श नहीं है। हमने पाठ का स्वीकार प्रयुक्त आदर्शी, चूणि और वृत्ति के संदर्भ में समीक्षापूर्वक किया है। 'आयारो' के प्रथम अध्ययन के दूसरे उद्देशक के तीन सूत्र (२७-२६) शेष पांच उद्देशकों में भी प्राप्त होते हैं। पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों तथा आचारांग वृत्ति में यह प्राप्त नहीं है। आचारांग चूणि में 'लज्जमाणा पुढो पास' (आयारो, १।४०) सूत्र से लेकर 'अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए' (आयारो, ११५३) तक ध्रुवकण्डिका (एक समान पाठ) मानी गई है। चूर्णि में प्राप्त संकेत के आधार पर हमने द्वितीय उद्देशक में प्राप्त तीन सूत्र (२७-२६) शेष पांचों उद्देशकों में स्वीकृत किए हैं। आठवें अध्ययन के दूसरे उद्देशक (सू० २१) की चूणि' में 'कुंभारायतणंसि वा' के स्थान पर अनेक शब्द उपलब्ध होते हैं, जैसे-'उवट्टणगिहे वा, गामदेउलिए वा, कम्मगारसालाए वा, तंतवायगसालाए वा, लोहगारसालाए वा ।' बुणिकार ने आगे लिखा है-'जचियाओ साला सव्वाओ भाणियवाओ ।' यहां प्रतीत होता है कि 'कुंभारायतणंसि वा' शब्द अन्य अनेक शाला या गृहवाची शब्दों से यूक्त था, किन्तु लिपि-दोष के कारण कालक्रम से शेष शब्द छूट गए। चूर्णि के आधार पर पाठ-पद्धति का निश्चय करना संभव नहीं था इसलिए उसे मूलपाठ में स्वीकृत नहीं किया गया। हमने संक्षिप्त पाठ की पूर्ति भी की है। पाठ-संक्षेप की परम्परा श्रुत को कंठाग्र करने की पद्धति और लिपि की सुविधा के कारण प्रचलित हुई। पं० वेचरदास दोशी ने ८-१२-६६ को आचार्यश्री तुलसी के पास एक लेख भेजा था। उसमें इस विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने १. देखें--आयारो, १०७ पादटिप्पण ७; १०६ पादटिप्पण ३०; पृ० १० पादटिप्पण १; पृ०११ पादटिप्पण ६; पृ० १२ पादटिप्पण १, पृ० १३ पादटिप्पण ५; .०१४ पादटिप्पण ८; पु० १५ पादटिप्पण १; २. पाचारांग चूणि, पृ० २६०-२६१ 1 ३. वही, पृ० २६१। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिखा है-'प्राचीन जैन-श्रमण लिखने-लिखाने की प्रवृत्ति को आरंभ-रूप समझते थे, फिर भी शास्त्रों की रक्षा के लिए उन्होंने लिखने-लिखाने के आरंभ-रूप मार्ग को भी अपवाद समझकर स्वीकार किया ! पर जितना कम लिखना पडे, उतना अच्छा, ऐसा समझकर उन्होंने शास्त्र की रक्षा के लिए ही, हो सके वहां तक कम आरंभ करना पड़े, ऐसा रास्ता शोधने का जरूर प्रयास किया। इस रास्ते की शोध से 'वण्णओं' और 'जाव' दो नए शब्द उनको मिले । इन दो शब्दों की सहायता से हजारों श्लोक व सैकडों वाक्य कम लिखने से उनका आरंभ कम हो गया और शास्त्र के आशय में भी किसी प्रकार की न्यूनता नहीं हुई।' श्रुत को कंठस्थ करने की पद्धति, लिपि की सुविधा और कम लिखने की मनोवृत्ति-पाठसक्षेप के ये तीनों कारण संभाव्य हैं । इनसे भले ही आशय की न्यूनता न हुई हो, किन्तु ग्रंथ-सौन्दर्य अवश्य न्यून हुआ है। पाठक की कठिनाइयां भी बढ़ी हैं। जिन मुनियों के समग्र आगम-साहित्य कण्ठस्थ था, वे 'जाव' या 'वण्णग' द्वारा संकेतित पाठ का अनुसंधान कर पूर्वापर की सम्बन्ध-योजना कर सकते हैं। किन्तु प्रतिलिपियों के आधार पर पढ़ने वाला मुनि-वर्ग ऐसा नहीं कर सकता। उसके लिए 'जाव' या 'वष्णग' द्वारा संकेतित पाठ बहुत लाभदायी सिद्ध नहीं हुआ है। इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। इसी कठिनाई तथा ग्रन्थ-सौंदर्य की दृष्टि से हमारे वाचना-प्रमुख आचार्यश्री तुलसी ने चाहा कि संक्षेपीकृत पाठ की पुनः पूर्ति की जाए। हमने अधिकांश स्थलों में संक्षिप्त पाठ की पूर्ति की है। उसकी सूचना के लिए बिन्दु-संकेत दिया गया है । आयारो तथा आयार-चूला के पूर्ति-स्थलों के निर्देश की सूचना प्रथम परिशिष्ट में दी गई है। पं० बेचरदास दोशी के अनुसार पाठ संक्षेपीकरण देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने किया था। उन्होंने लिखा है—'देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रंथ-बद्ध करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखीं। जहां-जहां शास्त्रों में समान पाठ आए वहां-वहां उनकी पुनरावत्ति न करते हए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया। जैसे----'जहा उवधाइए' 'जहा पण्णवणाए' इत्यादि। एक ही ग्रन्थ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः पुनः न लिखते हए 'जाव' शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया। जैसे--'णागकुमारा जाव विहरन्ति', 'तेण कालेणं जाव परिसा णिग्गया' इत्यादि। इस परम्परा का प्रारंभ भले ही देवद्धिगणि ने किया हो, किन्तु इसका विकास उनके उत्तरवर्ती काल में भी होता रहा है। वर्तमान में उपलब्ध आदशों में संक्षेपीकृत पाठ की एकरूपता नहीं है। एक आदर्श में कोई सूत्र संक्षिप्त है तो दूसरे में वह समग्र रूप से लिखित है । टीकाकारों ने स्थान-स्थान पर इसका उल्लेख भी किया है। उदाहरण के लिए औपपातिक सूत्र में "अयपायाणि वा जाव अण्णयराई वा" तथा 'अयबंधणाणि वा जाव अण्णयराई वा'--ये दो पाठांश मिलते हैं। वत्तिकार के सामने जो मुख्य आदर्श थे, उनमें ये दोनों संक्षिप्त रूप में थे, किन्तु दूसरे आदर्शों में ये १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ० ८१। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समग्र रूप में भी प्राप्त थे । वृत्तिकार ने इसका उल्लेख किया है। लिपिकर्ता अनेक स्थलों में अपनी सुविधानुसार पूर्वागत पाठ को दूसरी बार नहीं लिखते और उत्तरवर्ती आदर्शों में उनका . अनुसरण होता चला जाता । उदाहरण स्वरूप---रायपसेणइय सूत्र में 'सविढीय अकालपरिहीणा' (स्वीकृत पाठ-हीण) ऐसा पाठ मिलता है। इस पाठ में अपूर्णता-सूचक संकेत भी नहीं है। 'सव्विड्डीए' और 'अकालपरिहीणं' के मध्यवर्ती पाठ की पूर्ति करने पर समग्र पाठ इस प्रकार बनता है'सव्विड्डीए सव्वजुत्तीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सम्वविभूसाए सब्व विभूइए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फ वत्थ-गंध-मल्लालंकरण सम्वदिव्वतुडियसहसन्निवाएणं महया इड्ढीए महया जुइए महया बलेणं मह्या समुदएणं महया वरतुडियजमगसमयपदुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-मल्लरिखरमुहि-हुहुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुभि-निग्धोस-नाइयरवेणं णियग परिवाल सद्धि संपरिबुडा साइं-साई जागविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं ।' आयार-चूला ५११४ में ‘महद्धणमोल्लाई' तथा १५११६ में ‘महव्वए' के आगे भी अपूर्णता सूचक संकेत नहीं हैं। प्रमादवश कहीं-कहीं अपूर्णता सूचक 'जाव' का विपर्यय भी हुआ है, यथा--- फास्यं..""""""लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा । (आयारचूला १११०१) बहकंटगं...........""लाभे संते जाव णो........... ! (आयारचूला १११३४) समर्पण-सूत्र-- संक्षिप्त पद्धति के अनुसार आयार वूला में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैंजाव-अकिरियं जाब अभूतोवघाइयं (४.११) तहेव - अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य (७११६-२०) अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव (७।३४,३५) एवं—एवं णायव्वं जहा सद्दपडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रुवपडियाए वि (१२।२-१७) जहा---पाणाई जहा पिंडेसणाए (५५५) संख्या--थूणंसि वा (४) (७।११) असणं वा (४) (१११२) से भिक्खू वा २ १. औपपातिक वृत्ति, पन १७७ : पुस्तकान्तरे समग्रमिदं सूत्रद्वयमस्त्येदेति । २. देखे--पं० बेचरदास दोशी द्वारा संपादित 'रायपसेणइयं, पृष्ठ ७३ । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तं चेव-तं चेव भाणियब्वं वरं च उत्याए जाणतं (१११४६-१५४) सेसं तं चेव एवं ससरक्खे (१९६५) हेट्ठिमो--एवं हेट्ठिमो गमो पायादि भाणियन्वो (१३।४०-७५) आचारांग का वाचना-भेद समवायांग में आचारांग की अनेक वाचनाओं का उल्लेख मिलता है। वाचना का अर्थ है-अध्यापन या सूत्र और अर्थ का प्रदान | संक्षिप्त वाचना-भेद अनेक मिलते हैं, किन्तु वर्तमान में मुख्य दो वाचनाएं प्राप्त हैं- एक प्रस्तुत-वाचना और दूसरी नागार्जुनीय-वाचना। चूणि और टीका में नागार्जुनीय वाचना-सम्मत्त पाठों का उल्लेख किया गया है। देखें--'आयारों' पृष्ठ २० पादटिप्पण संख्यांक १०, पृष्ठ २१ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३० पाद टिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३१ पादटिप्पण संख्यांक ७, पृष्ठ ३५ पादटिप्पण संख्यांक ५, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ४० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५२ पादटिप्पण संख्यांक ६ और ८, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक ६, पृष्ठ ५५ पादटिप्पण संख्यांक ८, पृष्ठ ६६ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ७३ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ७५ पादटिप्पण संख्यांक ४ । आचारांग के उद्धृत पाठ-- उत्तरवर्ती अनेक ग्रंथों में आचारांग के पाठ उद्धृत किए गए हैं। अपराजितसूरि ने मूलाराधना की टीका में आचारांग के कुछ पाठ उद्धृत किए हैं। शोध करने पर ऐसा ज्ञात हआ है कि कई पाठ आचारांग में नहीं हैं, कई पाठ शब्द-भेद से और कई पाठ आंशिक रूप में मिलते हैं। तुलनात्मक अध्ययन की दष्टि से दोनों के पाठ नीचे दिए जा रहे हैं आचारांग मूलाराधना तथा चोक्तमाचाराङ्ग:सुदं मे आउस्सन्तो भगत्रदा एव मक्खादं । इह खलु संयमाभिमुखा दुविहा इत्थी पुरिसा जादा भवंति । तं जहा-सव्व समण्णा गदे णो सब्द समागदे चेव । तत्थ जे सव्व समपणागदे थिराग हत्थ पाणि पादे सव्विदिय समण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारि १. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० १३६ । २. मूलाराधना ४।४२१, टीका पन ६१२। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं परिहिउं एवं अण्णत्थ एगेण पडिलेहगेण । अह पुण एवं जाणिज्जा-उपातिकते हेमंते गिम्हे सुपडिवणे से अथ पडिजुण्णमुवधि पदिट्ठावेज्ज। --४।४२१ टीका, पत्र ६११ अह पुण एवं जाणेज्जा--उवाइक्कते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापरिजुन्नाइं वत्थाइ परिवेज्जा। आयारो ६।५०, ६६, ७२ । पडिलेहर्ण, पादपंछणं, उग्गहें कडासणं अण्णदरं उधि पावेज्ज । -४।४२१ टीका, पत्र ६११ वत्थं पडिग्गहं कंबल, पायछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेव जाणेज्जा । आयारो २।११२ । तथावत्थेसणाए-वृत्तं तत्थ एसे हिरिमणे सेगं वत्थं वा धारेज्ज पडिलेहणगं विदियं, तत्थ एसे जुग्गिदे देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणगं तदियं तत्थ एसे परिसाइं अणधिहासस्स तओ वत्थाणि धारेज्ज पडिलेहणं चउत्थं । -.४१४२१ टीका, पत्र ६११ जे णिग्गंथे तरुणे जगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारेज्जा णो बितियं 1 आयारचूला ५२। से भिक्खू वा भिक्खूणी वा अभिकखेज्जा पायं एसित्तए। तथा पाएसणाए कथितंहिरिमणे वा जुग्गिदे चाविअण्णगे वा तस्स ण कप्पदि वस्थादिकं पुनश्चोक्तं सत्रैव-पादचरित्तए। आलावु पत्तं वा दारुग पत्तं वा मट्रिगपत्तं वा, अप्पाणं अप्पबीजं अप्पसरिदं तथा अप्पकारं पत्तलाभे सति पडिग्गहिस्सामि । ४।४२१ टीका, पत्र ६११ तं जहा–अलाउपायं वा दारुपायं वा, मट्टिया पायं वा तहप्पगार पायं ।--- (आयारचूला ६।१) फासुपं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। आयारचूला ६.२२ भावनायां चोक्तं-- चरिमं चीवरधारी तेण परम चेलके तु जिणे। ४।४२१ टीका, पत्र ६११ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रति परिचय (अ.) आचारांग (दानों श्रु तस्कंध) यह प्रति जैन-भवन, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ की श्री श्रीचन्द जी रामपुरिया द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र १८५ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १-२७ तक पंकियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४०-४५ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर वत्ति लिखी हुई है। प्रति सुन्दर व कलात्मक है। संवत् आदि नहीं है। (क.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६७ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। पंक्तियां १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में ५०-५२ तक अक्षर हैं। प्रति के अंत में लिखा हैं---- संवत् १६७६ वर्षे आषाढ सुदि द्वितीय ४ भौम । श्री मालान्वये राक्याणगोत्रे सं० जटमल पुत्र सं० वेणीदास पुस्तक प्रदत्तं श्री मद्नागपुरीय तपागच्छ सं० श्रीमानकोतिसूरि शिष्य माधव ज्योतिविद् । अंत के अक्षर किसी अन्य व्यक्ति के मालूम होते हैं। प्रति के बीच में बावडी तथा तीन बड़े-बड़े लाल टीके हैं। (ख.) आचारांग टब्बा (प्रथम श्रुतस्कन्ध) यह प्रात गधैया पुस्तकालय से गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके ४६ पत्र हैं। पंक्तियां पाठ की ७ तथा टब्बे की १४ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक पाठ के अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है-- संवत् १७३२ वर्षे श्रावणमासे कृष्णपक्षे पंचमी तिथौ गुरु वासरे। लिखितं पूज्य ऋषिश्री ५ अमराजी तशिष्येण लिपिकृतं मुनिविकी आत्मार्थो शुभं भवतु कल्याणमस्तु । सेहुरीया ग्रामे संपूर्ण मस्ति ।। (ग.) आचारांग (प्रथमश्र तस्कन्ध) पंच पाठी (बालावबोध) यह प्रति गधया पुस्तकालय से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके १० पत्र हैं। प्रथम ३ तथा छठा पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। मूलपाठ को पंक्तियां ५ से १० तक हैं। अक्षर ३० से ३३ तक हैं। अन्तिम प्रशस्ति नहीं है। (घ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध (जीर्ण) यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसके ३७ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १३॥ इंच लम्बा, ५ इंच चौड़ा है। पक्तियां १७ तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है--.. शुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥छ।। संवत् १५७३ वर्षे १० मंगलवार समत्तं ।।छ।। छ।। श्री 1 छ।। प्रति के दीमक लगने से अनेक स्थानों पर छिद्र होगए हैं। (च.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध, यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई ज्ञान भंडार से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हई है। इसके ७५ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४७ तक अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। बीच में बावड़ी है। (छ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध, वृत्ति सहित (त्रिपाठी) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से मोठीजी द्वारा प्राप्त है । इसके २६० पत्र हैं । प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है मूलपाठ की पंक्तियां १ से १७ तथा ४५ से ४७ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैं संवत् १८६६ वर्षे श्रावणशुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथी श्रीविक्रमपुरमध्ये लिपिकृतं ।। श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । शुभं भूयादिति ॥ (ब.) आचारांग द्वितीय श्रु तस्कन्ध टब्बा (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ८४ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा १०३ इंच चौड़ा है। मूलपाठ की पंक्तियां ४ से १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में २५ से ३३ तक अक्षर हैं। बीच-बीच में बावड़ियां हैं। अन्तिम प्रशस्ति निम्तोक्त है-- संवत् १७५२ वर्षे भादपदमामे पंचम्यां तिथी ओरस गच्छे भट्टारक श्रीकक्चसूरि तत्पट्टे वर्तमान भट्टारकदेव गुप्तसूरिभिहीता नागोरी तपागच्छीय पं० श्री दयालदास पार्वान् पंचचत्वारिंशत् ४५ वर्षात्तरात महतोद्यमेन । (व), (वृपा) मुद्रित, प्रकाशिका~-श्रीसिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति विक्रम संवत् १६६१ । (च), (चूपा) मुद्रित-श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी, रतलाम, वि १६६८ । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूयगडो हमने सूत्रकृत का पाठ किसी एक आदर्श को मान्य कर स्वीकार नहीं किया है। उसका स्वीकार पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शो, चूणि तथा वृत्ति के पाठों के तुलनात्मक अध्ययन तथा समीक्षापूर्वक किया गया है। . प्राचीनकाल में लिखने की पद्धति बहुत कम थी। प्रायः सभी ग्रन्थ कंठस्थ परम्परा में सुरक्षित रहते थे । इसीलिए घोषशुद्धि (उच्चारणशुद्धि) को बहुत महत्व दिया जाता था ! शिष्यों की घोषशुद्धि करना आचार्य का एक कर्तव्य था। दशाश्र तस्कन्ध सूत्र में लिखा है'--'घोषशुद्धि कारक होना आचार्य की एक संपदा है।' पाठ और अर्थ के मौलिक रूप की सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था थी। छेदसूत्रों से उसकी पूर्ण जानकारी मिलती है। ज्ञानाचार के आठ प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें तीन आचारों का उक्त व्यवस्था से सम्बन्ध है । वे ये हैं १. व्यंजन--सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु और शब्दों को यथावत् बनाए रखना। २. अर्थ---सूत्र के आशय को यथावत् बनाए रखना । ३. व्यंजन-अर्थ-~-सूत्र और अर्थ---दोनों को मौलिक रूप में सुरक्षित रखना। चूर्णिकार ने उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है:--'धम्मो मंगलमूक्किटठं'---यह प्राकृत भाषा है। इसका 'धर्मो मंगलमुत्कृष्टम्' इस प्रकार संस्कृत में पाठ करना भाषागत व्यंजनातिचार हैं। 'सव्वं सावज जोगं पच्चक्खामि'-इसकी मात्रा बदलकर जैसे---सवे सावज्जे जोगे पच्चक्खामि', उच्चारण करना मात्रागत व्यंजनातिचार है। 'णमो अरहंतागं' का 'णमो अरहताण' इस प्रकार प्राप्त बिन्दु को छोड़कर उच्चारण करना, णमो अरहताणं' इस प्रकार 'र' के साथ अप्राप्त बिन्दु का उच्चारण करना---यह बिन्दुगत व्यंजनातिचार है। १. दशाश्रुतस्कन्ध, दशा ४। २. निशीथभाष्य, गाथा ८, भाग-१, पु०६: काले विणये बहुमाने, उवधाने सहा अणिण्हवणे । वंजण अत्थतदुभए, अट्ठविधो णाणमायारो॥ ३. वही, गाथा १७, भाग १, पृ. १२ । सक्कयमत्ताबिंदू, अण्णाभिधाणेण वा वितं प्रत्यं । बजेति जेण प्रत्यं, वंजणमिति भण्णते सुत्तं ॥ ४, निशीथभाष्य चूणि, भाग १, पृ० १२ । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ 'धम्मो मंगल मुक्कट्ठे अहिंसा संजमो वबो इनके मौलिक शब्दों को हटाकर वहां उनके पर्यायवाची शब्दों की योजना करना, जैसे--पुण्णं कल्लाणमुक्कसं, दयासंवरणिज्जरा । यह अन्याभिधान नामक व्यंजनातिचार है । सूत्र के अक्षर-पदों का हीन या अतिरिक्त उच्चारण करना अथवा उनका अन्यथा उच्चारण करना भी व्यंजनातिचार है। इस सारे विवरण का निष्कर्ष यह है कि सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु, शब्द, शब्दसंख्या और पाठ्यक्रम मौलिकता सुरक्षित रहनी चाहिए इस व्यवस्था के अतिक्रमण के लिए प्रायश्चित की व्यवस्था की गई। भाषा, मात्रा, बिन्दु आदि का परिवर्तन करने पर लघुमासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है सूत्रपाठ को अन्यथा करने पर लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है'। चूर्णिकार ने विषय के उपसंहार में लिखा है-सूत्रभेद अर्थभेद, अर्थभेद से चरणभेद, चरणभेद से मोक्ष असंभव हो जाता है । वैसा होने पर दीक्षा आदि कर्म प्रयोजन- शून्य हो जाते है । इसलिए व्यंजन-भेद नहीं करना चाहिए । इसी प्रकार अर्थभेद भी नहीं करना चाहिए । जो अर्थ अनुक्त और अघटित हो, वह नहीं करना चाहिए अर्थ का परिवर्तन करने पर गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है। सूत्र और अर्थ दोनों का एक साथ परिवर्तन करने पर पूर्वोक्त दोनों प्रायश्चित्त प्राप्त होते हैं । * सूत्र और अर्थ के मौलिक स्वरूप के सुरक्षित रखने की दिशा में आगमों के रचनाकाल में चिन्तन प्रारंभ हो गया था। प्रस्तुत सूत्र में इसका स्पष्ट निर्देश है । ग्रन्थाध्ययन में मुनि को सावधान किया गया है कि वह सूत्र और अर्थ की अन्यरूप में योजना न करे । अथवा १. भाष्य गाव १८, चूर्णि भाग १, १०१२। २. निशी भाष्य गाथा १५, चूर्णि भाग १, पृ० १२ : सुतभेया प्रत्यमेओ । प्रत्यमेया चरणभेओ । चरणभेया ग्रमोक्खो मोक्खाभावा दिखादयो किरियाभेदा अफला भवन्ति । तम्हा वंजणभेदो ण कायब्वो । ३. निशी भाष्य चूर्णि भाग १ ० १३ ४. वही; Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ करें 1 उसका अन्यथा प्रतिपादन न इसकी व्याख्या में चूर्णिकार ने लिखा है--सूत्र को सर्वथा ही अन्यथा न करे अर्थ वही करे जो स्वसिद्धान्त से अविरुद्ध है। वृतिकार ने लिखा है' — सूत्र में स्वमति से न जोड़े अथवा सूत्र और अर्थ को अन्यथा न करे । उक्त विवरण से ज्ञात होता है कि सूत्र अर्थ के मौलिक स्वरूप की सुरक्षा का तीव्र प्रयत्न किया गया था । फलतः एक सीमा तक उसकी सुरक्षा भी हुई है। फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि उसमें परिवर्तन नहीं हुआ है। वह उसके कारण भी प्राप्त हैं। जैसे१. विस्मृति, २ लिपिपरिवर्तन, ३. व्याख्या का मूल में प्रवेश, ४. देश-काल का व्यवधान | शीलांकसूरि सूत्रकृतांग की वृत्ति लिख रहे थे तब उनके सामने उसके आदर्श और प्राचीन टीका -- दोनों विद्यमान थे । दूसरे अ तस्कन्ध के दूसरे अध्ययन के एक स्थल में आदर्शों में एक 'जैसा पाठ नहीं था और टीका में जो पाठ व्याख्यात था उसका संवादी पाठ किसी भी आदर्श में नहीं था इसलिए उन्होंने एक आदर्श को मान्य कर पचित अंश की व्याख्या की। । कुछ स्थानों पर हमने चूर्णि के पाठ स्वीकृत किए हैं। आदर्शों और वृत्ति की अपेक्षा से वे अधिक संगत प्रतीत होते हैं । २।६।४५ में 'जिहो णिसं' पाठ है। वह वृत्ति में 'णिवो णिसं' इस प्रकार व्याख्यात है । वहां हमने चूर्णि का पाठ स्वीकृत किया है।" पादटिप्पणों में हमने पाठ-परिवर्तन व उनके कारणों की चर्चा की है। वैदिक परम्परा में भी वेदों के मौलिक पाठ की सुरक्षा के लिए तीव्र प्रयत्न किए थे। किन्तु उनके पाठों में भी कालजनित अतिक्रमण हुए हैं। डा० विश्वबन्धु ने लिखा है ' - - "यह सर्वमान्य तथ्य है १. सुगडो, १।१४ २६ : श्री सुमत्यं च करेग्न ―― २. सूत्रकृतांगणि, पृ० २६६ : मसूलमन्यत् प्रद्वेषेण करोरन्यथा था, जहा रणो भनि उज्वलानो नामार्थः कुर्यात् जहा 'आयंती के अवंती - एके यावंती तं लोगो विप्परामसंति' सूत्रं सर्वचैवान्यथा न कर्त्तव्यं, अर्थविकल्पस्तु विषयः स्यात् । ३. सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्र २५८ : न च मन्यत् स्वमतिविकल्पनतः स्वपरत्राची कुर्वीतान्यथा वानं तदर्थं वा संसारात्त्रायताणशीलो जन्तूनां न विदधीत । ४. वही, पत्र ७६ । इह प्रायः वाद नानाविधानि सुवाणि दृश्यन्ते न च टीकायाप्यस्माभिरादर्शः समुपलम्योत एकमादर्श मंगीकृत्यास्माभिविवरणं क्रियते । ५. देखें- २२६१४५ का पादटिप्पण ६. अचिन भारतीय प्राच्यविद्या-सम्मेलन, चौवीसन अधिवेशन वाराणसी १९६० मुख्याध्यक्षीय भाषण, पृष्ठ ८, १ । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ कि लगभग ५ हजार वर्षों से इस देश में वैदिक ग्रन्धों के प्राचीन पाठों को उनके मौलिक शुद्ध रूप में सुरक्षित रखने के लिए उन्हें परम सावधानी और उत्कृष्ट श्रद्धा के साथ कण्ठस्थ करने का इतना घोर प्रयत्न होता रहा है कि जिसका किसी भी दूसरे देश के साहित्यिक इतिहास में उदाहरण नहीं है। किन्तु ऐसा होने पर भी, जैसा कि इस वैदिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कार्य करने वाले हमारे पूर्ववर्ती विद्वानों को देखने में संयोगवश कुछ-कुछ और गत चालीस वर्षों के सतत शोध कार्य के मध्य में हमारे देखने में, विस्तृत रूप में आया है कि ये ग्रन्थ भी कालकृत विध्वंस और मानवकृत संक्रमण की अपूर्णता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । यदि ऐसा बहुधा होता तो सचमुच यह एक अविश्वसनीय चमत्कार ही होता।" कण्ठस्थ-परंपरा से चलने वाले तथा प्रलंब अवधि में लिपि-परिवर्तन के युग में संक्रमण करने वाले प्रत्येक ग्रन्थ के कुछ स्थल मौलिकता से इतस्ततः हुए हैं। प्रतिपरिचय (क) सूत्रकृतांग मूलपाठ ___ पह प्रति 'धेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसकी पत्र संख्या ६४ व पृष्ठ संख्या १८८ है। प्रत्येक पत्र मे ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३७ तक अक्षर है। प्रति की लम्बाई ११॥ इंच व चौड़ाई ४॥ इच है । प्रति शुद्ध व बड़े अक्षरों में स्पष्ट लिखी हई है। यह प्रति संवत् १५८१ में लिखी हुई है। इसके अन्त में निम्न प्रशस्ति है।-- संवत् १५८१ वर्षे पत्तन नगरे श्री खरतरगच्छे श्री जिनवर्द्धनसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि । श्री जिनसागरसूरि । श्री जिनसुन्दरसूरि पट्ट पूर्वाचल सहस्रकरावतार श्री जिनहर्षसूरिपट्टे श्री जिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन ऊकेशवशे साधुशाखायां । सो० जीवाभार्या श्रावारुपुत्ररत्न मो० महिवाल सो गांगाख्यो सा० तंत्र सो गांगा भार्या श्रा० धीरुपूत्र सो० पदमसी सो. हरिचंदविद्यमानपुत्र सो० शिवचन्द सो० देवचंद्राभ्या श्री एकादशांगी सूत्राणि अलेखिषत तत्रेदं श्री सूत्रकृतांगसूत्रं ! सम्पूर्ण: ॥श्री रस्तु।। (ख) सूत्रकृतांग बालावबोध प्रथमश्रुतस्कन्ध (त्रिपाठी) यह प्रति ‘गधैया पुस्तकालय' सरदाशहर की है । मध्य में पाठ व दोनों तरफ वातिका लिखी हुई है। इसके पत्र ४३ व पृष्ठ २६ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ५-६ करीब *ब प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ६०-६२ करीब हैं। प्रति की लम्बाई १०२ च व चौडाई ४१ इंच है। अनुमानतः यह प्रति १७वीं शताब्दि की लगती है। प्रति के अन्त में प्रशस्ति नहीं है। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ (ग) सूत्रकृतांग द्वितीय बालावबोध (त्रिपाठी) यह प्रति 'धेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसके पत्र ६५ व पृष्ठ १३० है। मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ४ से १२ तक हैं व प्रत्येक में ४५ से ५० तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इच व चौड़ाई ४३ इंच करीब है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है--- मूलपाठ प्रशस्ति---सूयगडस्स बीयं खंधो सम्मत्ते । श्री सूगडांग द्वितीय श्रु तस्कन्धः सूत्र संपूर्ण समाप्तः ।। सुभं भवतु, कल्याणमस्तु । श्री रस्तुः ।। ब ।। ब ॥ पंड्या भवान सूत मेधज्जी लक्षतं ।। बालावरोध प्रशस्ति--सूत्रकृतं आदित: सर्वमध्ययनं २३। श्री साधुरत्तशिष्येण पाशचन्द्रेण वृत्तितः वालावबोधार्थ द्वितीयांगस्यवात्तिक सम्पूर्णः ॥ ब॥ सूभ भवतुः । कल्याणमस्तु: श्रीरस्तु ॥ संवत् ।। १६६३ वर्षे फागुणवदि ८ बुधे प्रति सूगडांगनी पूरी कोधी प्रति ठीक है। (क्व) सूत्रकृतांग बालावबोध पंचपाठी यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से प्राप्त, पत्र संख्या ६८ व पष्ठ १३६ । पाठ की पंक्तियां एक से १३ तक व प्रत्येक पंक्ति में ३४ से ३७ करीव अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इंच व चौड़ाई ४३ इच करीब है । संवत् व प्रशस्ति नहीं है। आनुमानिक सं० १७वीं शदी। (क्व) सूत्रकृतांग (मूलपाठ) नियुक्ति सहित ___ यह प्रति 'गधया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ४२ व पृष्ठ संख्या ८४ है। प्रत्येक पत्र में १६ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ६३ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १३ इंच व चौड़ाई ४३ इंच है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति हैसयगडस्स निज्जुत्ती सम्मत्ता । पद्मोपमं पत्रपरं परान्वितं, वर्णोज्जलसूक्तमरदं सुन्दरं मुमुक्षभंगप्रकरस्यवल्लभं, जीयाच्चिरं सूत्रकृदंग पुस्तकं ॥ संवत १५१२ वर्षे आसोज ऊएसगच्छे भट्टारक श्रीकक्कसूरीणां ।। विक्रमपुरे ।। (व) सूत्रकृतांग वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति 'गधया पुस्तकालय' सरदारशहर की है। इसके पत्र १० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६७ के करीब अक्षर है। इसकी लम्बाई १०३ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रति सुन्दर व सूक्ष्म अक्षरों में लिखी हई है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है-- शुभं भवतु संवत् १५२५ वर्षे श्री यवनपुर नगरे। श्रीखरतरगच्छे । श्रीजिनभद्रसूरिपट्रालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये! श्री कमल संयमे । महोपाध्यायः स्ववाचनार्थ ग्रंथोयं लेखितः Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ॥ श्रीः ॥ ब ||श्रीः || श्री पदुमकीर्त्त्यपाठकेभ्यः पं० महिमसारगणिना प्रतिरियं प्रदत्ता स्वपुण्यार्थं ॥ ( वृ०) सूत्रकृतांग वृत्ति मुद्रित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन देरासर पेढी । ( च०) सूत्रकृतांग चूणि मुद्रित श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्वर संस्था रतलाम । ठाणं प्राकृत में एक शब्द के अनेक रूप बनते हैं । आगमों में वे अनेक रूप प्रयुक्त भी हैं । आगम का संपादन करने वाले कुछ विद्वानों का यह आग्रह रहा है कि पाठ-संपादन में विभिन्न रूपों में एकरूपता लानी चाहिए। हमने पाठ संपादन की इस पद्धति को मान्य नहीं किया है । यद्यपि प्रस्तुत सूत्र में ' नकार' और 'णकार' की एकता स्वीकार कर सर्वत्र 'णकार' का ही प्रयोग किया है; पर रूप-भेदों में एकता लाने के सिद्धान्त का सर्वत्र उपयोग नहीं किया है । ३।३७३ में 'सुगती' और 'सुग्गती' -- ये दो रूप मिलते हैं । ३।३७५ में 'सोगता', 'सुगता ' और 'सुग्गता' - ये तीन रूप मिलते हैं। हमने उन्हें यथावत रखा है। ग्रंथकार प्रयोग करने में स्वतन्त्र हैं । वे एकरूपता के नियम से बंधे हुए नहीं हैं, फिर संपादन कार्य में एकरूपता का प्रयत्न अपेक्षित नहीं लगता । आगमों में अनेक भाषाओं और वर्णादेशों के विविध प्रयोग मिलते हैं । उनमें एकरूपता लाने पर विविधता की विस्मृति की संभावना हो सकती है। 'वाए ं', 'कायसा' -- ये दोनों रूप प्रयुक्त होते हैं । 'अंडजा' के 'अंडया' और 'अंडगा' तथा 'कर्मभूमिजा' के 'कम्मभूमिया' और 'कम्मभूमिगा' – ये दोनों रूप बनते हैं । जिस स्थल में जो रूप प्राप्त हो उस स्थल में उसे रखना संपादन की त्रुटि नहीं है । प्रति परिचय (क) ठाणांग मूलपाठ (हस्त लिखित ) गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त। इसके पत्र ७४ तथा पृष्ठ १४८ हैं । प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां, प्रत्येक पंक्ति में ६० के करीब अक्षर हैं । यह प्रति १०॥ इंच लम्बी ४॥ इंच चौड़ी है। प्रति प्रायः शुद्ध है । लिपि संवत् १५६५ । प्रशस्ति में लिखा है- शुभं भवतु ॥छ। श्री खरतरगच्छे श्री सागरचन्द्राचार्यान्विये वा० दयासागरगणिभिः स्वशिष्य वा० ज्ञानमन्दिरगणिवाचनार्थं ग्रंथोऽयं लेखयांचक्रे ।। संवत् १५६५ वर्षे जिनश्रीवर्धमानसंवत् २०३५ वर्षे चैत्रप्रयमाष्टम्यां श्री वोहिथिरागोत्रे मंत्रीश्वरवच्छराज नंदन प्रधान शिरोमणि मं० वरसिंहगेहिन्या मंत्रिणी वीऊलदेवी श्री विकया पुत्र मं० मेघराज मं० भोजराज मं० नगराज मं० हरिराज मं० अमरसिंह मं० डूंगरसिंह पुत्रिका वीराई Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभृति पौत्रादि परिवारपरिवृतया मृपुण्यार्थं श्री ज्ञानभक्तिनिमित्तं श्री स्थानांग सूत्रवृत्तिसहितं लेखयित्वा बिहारितं श्रीखरतरगच्छे वृहतिथीवीकानयरे श्रीजिनहससूरि विजयिराज्ये वा० महिम राजगणीद्राणां शिष्य वा० दयासागगणीवराणां शिष्य वा. ज्ञानमन्दिरगणिदेवतिलकादिपरिवृतानां वाच्यमानं चिरं नंदतु । शुभं वोभोतु श्री चतुर्विध श्री संघाय ॥छ।। श्री रस्तु । (ख) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित) घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़ से प्राप्त । इसके पत्र १०८ और पृष्ठ २१६ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां । प्रत्येक पंक्ति में ४५ करीव अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध तथा स्पष्ट है । लिपि संवत् १६८५ है । गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त (वृत्ति की प्रति)। इसके पत्र २८३ और पृष्ठ ५६६ हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच है तथा चौड़ाई ४६ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५८ से ६० तक अक्षर हैं। (घ) ठाणांग (मूलपाठ) यह प्रति लालभाई भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद) की है। इसके पत्र ६६ तथा पृष्ठ १३२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। पत्रों के दोनों ओर कलात्मक वापिका है। अन्त में लिखा है--- संवत् १५१७ वर्षे ठाणांग सूत्रं लेखयित्वा तेषामेव गुरुणामुपकारिता। साधुजनैर्वा चिरं नंदतात् ॥छ। 1100 समवाओ प्रस्तुत सूत्र का पाठ-संशोधन तीन आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। कूल स्थलों में पाठ-संशोधन के लिए अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३४) में प्रयुक्त आदर्शों में 'अस्ससेणे' पाठ नहीं है। यह चतुर्थ चक्रवर्ती के पिता का नाम है। इसके बिना अगले नामों की व्यवस्था विसंगत हो जाती है। उल्लिखित सूत्र की संग्रह गाथाओं में पद्मोत्तर नाम अतिरिक्त है। इसे पाठान्तर रूप में स्वीकार किया गया है। आवश्यक नियुक्ति (३९६) में 'अस्ससेणे पाठ उपलब्ध है। उसके आधार पर 'अस्ससेणे' मूल-पाठ के रूप में स्वीकृत किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३०) की संग्रह गाथा में बलदेव वासुदेव के पिता के नाम है। उक्त गाथा में स्थानांग (९।१६) तथा आवश्यक नियुक्ति (४११)के आधार पर संशोधन Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ किया गया है। तीसरे बलदेव वासुदेव के पिता का नाम रुद्द है, किन्तु समवायांग की हस्तलिखित वृत्ति में 'रुद्द' के स्थान में 'सोम' है । वस्तुतः 'सोम' के बाद रुद्द ' होता चाहिए । समवाय ३० (सूत्र १, गाथा २६ ) में सभी सभी आदर्शों में 'सज्झायवायें' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने भी उसकी स्वाध्यायवाद -- इस रूप में व्याख्या की है । अर्थ की दृष्टि से यह संगत नहीं है । दशाश्रु तस्कन्ध ( सूत्र २६ ) में उक्त गाथा उपलब्ध है । उसमें 'सज्झायवाय' के स्थान पर 'सम्भाववाय' पाठ है । दशाश्रु तस्कन्ध के वृत्तिकार ने इसका संस्कृत रूप 'सद्भाववाद' किया है । अर्थ-मीमांसा करने पर यह पाठ संगत प्रतीत होता है ।" प्राचीन लिपि में संयुक्त 'भकार' और संयुक्त 'मकार' एक जैसे लिखे जाते थे । इस प्रकार के लिपिहेतुक पाठ-परिवर्तन अनेक स्थानों में प्राप्त होते हैं । प्रति परिचय (क) समवायांग मूलपाठ यह प्रति जैसलमेर भंडार की ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मदनचन्दजी गोठी, सरदारशहर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ६४ तथा पृष्ठ १२८ हैं किन्तु २४ वां पत्र नहीं है । प्रत्येक पृष्ठ में ४ या ५ पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ११० अक्षर हैं । लिपि सं० १४०१ । (ख) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों ओर वृत्ति लिखी हुई है । इसके पत्र १०६ तथा पृष्ठ २१२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ में 8 पंक्तियां तथा प्रत्येक पक्ति में ३०, ३२ अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४३ इंच चौड़ी है । इसके अन्त में संवत् दिया हुआ नहीं है । किन्तु पत्रों की जीर्णता व लिपि के आधार पर यह पन्द्रहवीं - सोलहवीं शताब्दी के लगभग की है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है-||छ। समवाउ चउत्थमंग || || अंकतोपि ग्रंथाग्र १६६७ || || (ग) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) । यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों तरफ वृत्ति लिखी हुई है । इसके पत्र ८१ तथा पृष्ठ १६२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ में ५ से १२ पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४७ तक अक्षर हैं । यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है । लिपि संवत् १३४५ लिखा है; पर संवत् की लिखावट से कुछ संदिग्ध सा लगता है । फिर भी प्राचीन है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है १. देखें, समवाश्री, पइण्णगसभवाओ सू० २३० का पाद-टिप्पण । २. देखें, समवाश्रो, समवाय ३०, सू० १, गाया २६ का दूसरा पाद-टिप्पण | Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ |छ । समवाउ चउत्थमंग संमत्तं ॥ छ ॥ ग्रंथाग्र १६६७ ||छ | इस प्रति में पाठ बहुत संक्षिप्त है । अनेक स्थानों पर केवल प्रथम अक्षर ही लिखे गए हैं। श्रीमदभयदेवसूरिवृत्ति: ( मुद्रित ) - प्रकाशक -- श्रेष्ठी माणिकलाल चुन्नीलाल, कान्तिलाल, चुन्नीलाल- अहमदाबाद | संपादक -- मास्टर नगीनदास, नेमचन्द । सहयोगानुभूति - जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज ये १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी । आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण तटस्थदृष्टि समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप - सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ । हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापनकर्म के अनेक अंग हैं- पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्यश्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है । मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार-मुक्त होऊं, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं प्रस्तुत ग्रन्थ के पाठ संपादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि शुभकरणजी इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रतिशोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ परिमाण मुनि मोहनलाल जी (आमेट) ने तैयार किया है । कार्य निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ । आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम के प्रबंध संपादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ये कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगमसेवा में लगा रहे हैं। 'बंगमुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। २९ जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री सेमचन्द सेठिया जैन विश्व भारती के कार्यालय तथा आदर्श साहित्य संघ के कार्यालय के कार्यकर्ताओं ने पाठ- सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है । एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार-पूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत-बिहार नई दिल्ली २५०० व निर्वाण दिवस मुनि नथमल Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका १. आगमों का वर्गीकरण जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम है । समवायांग में आगम के दो रूप प्राप्त होते हैंद्वादशांग गणिपिटक' और चतुर्दश पूर्व नन्दी में श्रुत-ज्ञान (आगम) के दो विभाग मिलते हैं-- अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य। आगम-साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पर्यों से संबंधित हैं। जैसे १. सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने वाले----'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, प्रथम वर्ग) यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषय में प्राप्त है। 'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पंचम वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि की शिष्या पद्मावती के विषय में प्राप्त है । 'सामाइयमाझ्याई एक्कारसअंगाई अहिजई' (अंतगड, अष्टम वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् महावीर की शिष्या काली के विषय में प्राप्त है । 'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पष्ठ वर्ग १५वां अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान महावीर के शिष्य अतिमुक्तककुमार के विषय में प्राप्त है। २. बारह अंगों को पढ़ने वाले--'दारसंगी' (अंतगड, चतुर्थ वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य जालीकुमार के विषय में प्राप्त है। ३. चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले--चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ (अंतगड, तृतीय वर्ग, नवम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य सुमुखकुमार के विषय में प्राप्त है। 'सामाइय माइयाई चोद्दसपुबाई अहिज्जइ' (अंतगड, तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयसकुमार के विषय में प्राप्त है। १, समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०५८। २, वही, समवाय १४, सू०२। ३. नन्दी, सू०४३। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान् पार्श्व के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे। भगवान् महावीर के तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे । समवायांग और अनुयोगद्वार में अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य का विभाग नहीं है। सर्व प्रथम यह विभाग नन्दी में मिलता है। अंग-बाह्य की रचना अर्वाचीन स्थविरों ने की है। नंदी को रचना से पूर्व अनेक अंग-बाह्य ग्रन्थ रचे जा चुके थे और वे चतुर्दश-पूर्वी या दस-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचे गये थे। इस लिए उन्हें आगम की कोटि में रखा गया। उसके फलस्वरूप आगम के दो विभाग किए गए--अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । यह विभाग अनुयोगद्वार (वीर-निर्वाण छठी शताब्दी) तक नहीं हुआ था । यह सबसे पहले नंदी (वीर-निर्वाण दसवीं शताब्दी) में हुआ है। नंदी की रचना तक आगम के तीन वर्गीकरण हो जाते हैं--पूर्व, अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । आज 'अंग-प्रविष्ट' और 'अंग-बाह्य' उपलब्ध होते हैं, किन्तु पूर्व उपलब्ध नहीं हैं । उनकी अनुपलब्धि ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्शनीय है। २. पूर्व जैन परम्परा के अनुसार श्रुत-ज्ञान (शब्द-ज्ञान) का अक्षयकोष 'पूर्व' है। इसके अर्थ और रचना के विषय में सब एक मत नहीं हैं। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार 'पूर्व' द्वादशांगी से पहले रचे गए थे, इसलिए इनका नाम 'पूर्व' रखा गया। आधुनिक विद्वानों का अभिमत यह है कि 'पूर्व' भगवान पावं की परम्परा की श्रुत-राशि है। यह भगवान महावीर से पूर्ववर्ती है, इसलिए इसे 'पूर्व' कहा गया है। दोनों अभिमतों में से किसी को भी मान्य किया जाए, किन्तु इस फलित में कोई अन्तर नहीं आता कि पूर्वो की रचना द्वादशांगी से पहले हुई थी या द्वादशांगी पूर्वो की उत्तरकालीन रचना है। वर्तमान में जो द्वादशांगी का रूप प्राप्त है, उसमें 'पूर्व' समाए हुए हैं। बारहवां अंग दृष्टिवाद है । उसका एक विभाग है--पूर्वगत । चौदह पूर्व इसी 'पूर्वगत' के अन्तर्गत हैं। भगवान महावीर ने प्रारंभ में पूर्वगत-श्रुत की रचना की थी। इस अभिमत से यह फलित होता है कि चौदह पूर्व और वारहवां अंग--ये दोनों भिन्न नहीं हैं। पूर्वगत-श्रुत बहुत गहन था। सर्वसाधारण के लिए वह १. समबाओ, पइयणगसमवाओ, सू०१४ । २. वही, सू० १२ ३. समवायांग वृत्ति, पत्र १०११ प्रथनं पूर्व तस्य सर्वप्रवचनात् पूर्व क्रियमाणत्वात् । ४. नन्दी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० : अन्ये तु व्याचक्षते पूर्व पूर्वगतसूत्रार्थमहन् भाषते, गणघरा अपि पूर्व पूर्वगतसूत्रं विरचन्ति, पश्चादाचारादिकम्। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलभ नहीं था। अंगों की रचना अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए की गई। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने बताया है कि 'दृष्टिवाद में समस्त शब्द-ज्ञान का अवतार हो जाता है। फिर भी ग्यारह अंगों की रचना अल्पमेधा पुरुषों तथा स्त्रिया के लिए की गई । ग्यारह अगों को दे ही साधु पढ़ते थे, जिनकी प्रतिभा प्रखर नहीं होती थी। प्रतिभा सम्पन्न मुनि पूर्वो का अध्ययन करते थे । आगम-विच्छेद के कम से भी यही फलित होता है कि ग्यारह अंग दृष्टिवाद या पूर्षों से सरल या भिन्न-क्रम में रहे हैं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार वीर-निर्वाण वासठ वर्ष शद केवली नहीं रहे। उनके बाद सौ वर्ष तक श्रुत-केवली (चतुर्दश-पूर्वी) रहे। उनके पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष तक दशपूर्वी रहे। उनके पश्चात दो सौ बीस वर्ष तक ग्यारह अंगधर रहे। उक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि जब तक आचार आदि अंगों की रचना नहीं हुई थी, तब तक महावीर की श्रत-राशि 'चौदह पूर्व' या 'दृष्टिवाद' के नाम से अभिहित होती थी और जव आचार आदि ग्यारह अंगों की रचना हो गई, तब दृष्टिवाद को बारहवें अंग के रूप में स्थापित किया गया। यद्यपि बारह अंगों को पढ़ने वाले और चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले ये भिन्न-भिन्न उल्लेख मिलते हैं, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि चौदह पूर्वो के अध्येता बारह अंगों के अध्येता नहीं थे और बारह अंगों के अध्येता चतुर्दश-पूर्वी नहीं थे। गौतम स्वामी को 'द्वादशांगवित्' कहा गया है। वे चतुर्दश-पूर्वी और अंगधर दोनों थे। यह कहने का प्रकार-भेद रहा है कि श्रुतकेवली को कहीं 'द्वादशांगवित्' और कहीं 'चतुर्दश-पूर्वी' कहा गया है । ग्यारह अंग पूर्वो से उद्धृत या संकलित हैं । इसलिए जो चतुर्दश-पूर्वी होता है, वह स्वाभाविक रूप से द्वादशांगवित होता है। बारहवें अंग में चौदह पूर्व समाविष्ट हैं। इसलिए जो द्वादशांगवित होता है, वह स्वभावतः चतुर्दश-पूर्व होता है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आगम के प्राचीन वर्गीकरण दो ही हैं--चौदह पूर्व और ग्यारह अंग । द्वादशांगी का स्वतन्त्र स्थान नहीं है। यह पूर्वो और अंगों का संयुक्त नाम है। कुछ आधुनिक विद्वानों ने पूर्वो को भगवान् पार्श्वकालीन और अंगों को भगवान् महावीरकालीन माना है, पर यह अभिमत संगत नहीं है। पूर्वो और अंगों की परम्परा भगवान् अरिष्टनेमि और भगवान पार्श्व के युग में भी रही है। अंग अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए रचे गए, यह पहले बताया जा चुका है। भगवान् पार्व के युग में सब मुनियों का प्रतिभा-स्तर समान था, यह कैसे ---- -------------- १. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ५५४ : जइवि य भूतावाए, सव्वस्स वयोगयस्स भोयारो। निज्जूहणा तहावि हु, दुम्मेहे पप्प इत्थी य ।। २. जयधवला, प्रस्तावना पृष्ठ ४६ । ३. देखिए-भूमिका का प्रारम्भिक भाग। ४. उत्तयध्ययन, २३७॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माना जा सकता है ? प्रतिभा का तारतम्य अपने-अपने युग में सदा रहा है। मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि से विचार करने पर भी हम इसी बिन्दु पर पहुंचते हैं कि अंगो की अपेक्षा भगवान् पाश्व के शासन में भी रही है, इसलिए इस अभिमत की पुष्टि में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है कि भगवान पार्श्व के युग में केवल पूर्व ही थे, अंग नहीं । सामान्य ज्ञान से यही तथ्य निष्पन्न होता है कि भगवान महावीर के शासन में पूर्वो और अंगों का युग की भाव, भाषा, शैली और अपेक्षा के अनुसार नवीनीकरण हुआ। 'पूर्व पार्श्व की परम्परा से लिए गए और 'अंग' महावीर की परम्परा में रचे गए, इस अभिमत के समर्थन में सम्भवतः कल्पना ही प्रधान रही है। ३. अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य भगवान महावीर के अस्तित्व-काल में गौतम आदि गणवरों ने पूर्वो और अंगों की रचना की, यह सर्व-विश्र त है । क्या अन्य मुनियों ने आगम ग्रन्थों की रचना नहीं की। यह प्रश्न सहज ही उठता है। भगवान महावीर के चौदह हजार शिष्य थे। उनमें सात सौ केवली थे, चार सौ वादी थे। उन्होंने ग्रन्थों की रचना नहीं की, ऐसा सम्भव नहीं लगता। नंदी में बताया गया है कि भगवान् महावीर के शिष्यों ने चौदह हजार प्रकीर्णक बनाए थे। ये पूर्वो और अंगो से अतिरिक्त थे। उस समय अम-प्रविष्ट और अंग-बाह्य ऐसा वर्गीकरण हुआ, यह प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् अर्वाचीन आचार्यों ने ग्रंथ रचे तब संभव है उन्हें आगम की कोटि में रखने या न रखने की चर्चा चली और उनके प्रामाण्य और अप्रामाण्य का प्रश्न भी उठा। चर्चा के बाद चतुर्दश-पूर्वी और दश-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचित ग्रन्थों को आगम की कोटि में रखने का निर्णय हुआ किन्तु उन्हें स्वत: प्रमाण नहीं माना गया। उनका प्रामाण्य परत: था। वे द्वादशांगी में अविरुद्ध है, इस कसौटी से कसकर उन्हें आगम की संज्ञा दी गई। उनका पतः प्रामाण्य था, इसीलिए उन्हें अंग-प्रविष्ट की कोटि से भिन्न रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई। इस स्थिति के सन्दर्भ में आगम की अंग-बाह्य कोटि का उद्भव हुआ। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य के भेद-निरूपण में तीन हेतु प्रस्तुत किए हैं--- १. जो गणधर कृत होता है, २. जो गणधर द्वारा प्रश्न किए जाने पर तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है. १. समवाओ, समवाय १४, सू० ४। २. नन्दी, सू०४८: चोदसपइन्नग सहस्साणि भगवप्रो वदमाणस। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. जो ध्रुव - शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित होता है, सुदीर्घकालीन होता है - वही श्रुत अंग-प्रविष्ट होता है'। इसके विपरीत। १. जो स्थविर-कृत होता है, २. जो प्रश्न पूछे बिना तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है, ३. जो चल होता है, तात्कालिक या सामयिक होता है उस श्रुत का नाम अंग बाह्य है । अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य में भेद करने का मुख्य हेतु वक्ता का भेद है । जिस आगम के वक्ता भगवान् महावीर है और जिसके संकलयिता गणधर है, वह श्रुत-पुरुष के मूल अंगों के रूप में स्वीकृत होता है इसलिए उसे अंग-प्रविष्ट कहा गया है। सर्वार्थसिद्धि के अनुसार वक्ता तीन प्रकार के होते हैं- १. तीर्थंकर २. श्रुत- केवली (चतुर्दश-पूर्वी) और ३. आरातीय' आरातीय आचायों के द्वारा रचित आगम ही अंग बाह्य माने गए हैं। आचार्य अकलंक के शब्दों में आरातीय आचार्य-कृत आगम अंग-प्रतिपादित अर्थ से प्रतिबिम्बित होते हैं इसीलिए वे अंग बाह्य कहलाते हैं । अंग बाह्य आगम -पुरुष के प्रत्यंग या उपांग- स्थानीय है। । ४. अंग द्वादशानी में संगर्भित बारह आगमों को अंग कहा गया है। अंग शब्द संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के साहित्य में प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य में वेदाध्ययन के सहायक ग्रन्थों को अंग कहा गया है। उनकी संख्या छह है— १. शिक्षा-शब्दों के उच्चारण-विधान का प्रतिपादक ग्रन्थ २. कहर - वेदविहित कर्मों का क्रमपूर्वक व्यवस्थित प्रतिपादन करने वाला पा ३. व्याकरण-पद-स्वरूप और पदार्थ निश्चय का निमित्त-शास्त्र । ४. निरुक्त पदों की व्युत्पत्ति का निरूपण करने वाला शास्त्र । ५. छन्द - मन्त्रोच्चारण के लिए स्वर-विज्ञान का प्रतिपादक-शास्त्र | ६. ज्योतिष-यज्ञ-याग आदि कार्यों के लिए समय-शुद्धि का प्रतिपादक शास्त्र १. विशेषावश्यकभाष्य गाथा ५५२ ३४ गणहर-थेरकथं वा, आएसा मुक्क- वागरणओ वा धुव चल विसेसमो वा अंगाणंगेसु नाणत्तं ॥ २. सत्यार्थभाव्य १:२०: वक्तु - विशेषाद् द्वैविध्यम् । ३. सर्वार्थसिद्धि १.२० : यो वक्तारः सर्वशस्तीपंकरः इतरो वा केवल आरातीयश्वेति 3 - ४. तस्वार्थ राजवार्तिक, ११२० : कारातीयाचार्यकृतांगावं प्रत्यासन्नरूपमंगवाह्मम् । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ वैदिक साहित्य में वेद-पुरुष की कल्पना की गयी है । उसके अनुसार शिक्षा वेद की नासिका है, कल्प हाथ, व्याकरण मुख, निरुक्त श्रोत्र, छन्द पर और ज्योतिष नेत्र है। इसीलिए ये वेदशरीर के अंग कहलाते हैं। पालि-साहित्य में भी, 'अंग' शब्द का उपयोग किया गया है । एक स्थान में बुद्धवचनों को नवांग और दूसरे स्थान में द्वादशांग कहा गया है। नवांग-- १. सुत्त-भगवान् बुद्ध के गद्यमय उपदेश । २. गेय्य-~-गद्य-पद्य मिश्रित अंश । ३. वैय्याकरण-व्याख्यापरक ग्रन्थ । ४. गाथा-पद्य में रचित ग्रन्थ । ५. उदान --बुद्ध के मुख से निकले हुए भावमय प्रीति-उद्गार । ६. इतिवृत्तक-छोटे-छोटे व्याख्यान, जिनका प्रारम्भ 'बुद्ध ने ऐसा कहा' से होता है। ७. जातक-युद्ध की पूर्व-जन्म-सम्बन्धी कथाए। ८. अन्भूतधम्म -- अद्भूत वस्तुओं या योगज-विभूतियों का निरूपण करने वाले ग्रन्थ । है. वेदल्ल-वे उपदेश जो प्रश्नोत्तर की शैली में लिखे गए हैं। द्वादशांग--- १. सूत्र, २. गेय, ३. व्याकरण, ४. गाथा, ५. उदान, ६. अवदान ७. इतिवृत्तक, ८. निदान, ६. वैपुल्य, १०. जातक, ११. उपदेश-धर्म और १२. अद्भुत-धर्म'। जैनागम बारह अंगो में विभक्त हैं--१. आचार, २. सूत्रकृत, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. भगवती, ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७. उपासकदशा, ८, अन्तकृतदशा, ६. अनुत्तरोपपातिकदशा, १०. प्रश्न: व्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद । "अंग' शब्द का प्रयोग भारतीय दर्शन की तीनों प्रमुख धाराओं में हुआ है। वैदिक और बौद्ध साहित्य में मुख्य ग्रन्थ वेद और पिटक हैं। उनके साथ 'अंग' शब्द का कोई योग नहीं है। जैन साहित्य में मुख्य ग्रन्थों का वर्गीकरण गणिपिटक है। उसके साथ 'अंग' शब्द का योग हआ है। गणिपिटक के वारह अंग हैं-'दुवालसंगे गणिपिडगे" । १. पाणिनीयशिक्षा, ४१।१२। २. सद्धर्मपुंडरीक सूत्र, पृ० ३४ ३. बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ 'अभिसमयालंकार' की टीका' पृ० ३५ : सूत्रं गेयं व्याकरणं, गायोदानावदानकम् । इतिवृत्तकं निदानं, वैपुल्यं च सजातकम् । उपदेशाद्भुतौ धर्मो, द्वादशांग मिदं वचः ।। ४. समवामो पइग्णगसमवाओ, सूत्र १८ । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-परम्परा में श्रत-पुरुष की कल्पना भी प्राप्त होती है। आचार आदि बारह आगम श्रुत-पुरुष के अंगस्थानीय हैं। संभवतः इसीलिए उन्हें बारह अंग कहा गया। इस प्रकार द्वादशांग 'गणिपिटक' और 'श्रुत-पुरुष'-दोनों का विशेषण बनता है। आयारो नाम-बोध--- प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पहला अंग है। इसमें आचार का वर्णन है, इसलिए इसका नाम 'आयारो' (आचार) है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं----आयरो और आयारचला। विषय-वस्तु समवायांग और नन्दी में आचारांग का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके अनुसार प्रस्तुत सुत्र आचार, गोचर, विनय, वैनयिक (विनय-फल), स्थान (उत्थितासन, निषण्णासन, और शयितासन), गमन, चंक्रमण, भोजन आदि की मात्रा, स्वाध्याय आदि में योग-नियुंजन, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त-पान, उद्गम-उत्थान, एषणा आदि की विशुद्धि, शुद्धाशुद्ध-ग्रहण का विवेक, व्रत, नियम, तप, उपधान आदि का प्रतिपादक है। आचार्य उमास्वाति ने आचारांग के प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया है। वह क्रमश: इस प्रकार है-- १. षड्जीवकाय यतना। २. लौकिक संतान का गौरव-त्याग । ३. शीत-ऊष्ण आदि परीपहों पर विजय : ४. अप्रकम्पनीय सम्यक्त्व। ५. संसार से उद्वेग! ६. कर्मों को क्षीण करने का उपाय । ७. वैयावृत्य का उद्योग। ८. तपस्या की विधि। है. स्त्री-संग-त्याग । १. मूलाराधना, ४१५६६ विजयोदया : श्रुतं पुरुषः मुखचरणाचंगस्थानीयत्वादंगशब्देनोच्यते । २. (क) समवाओ, पइण्णग समवानो, सू० ८६ । (ख) नंदी, सू००। ३. प्रशभरति प्रकरण, ११४-११७ । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. विधि-पूर्वक भिक्षा का ग्रहण । ११. स्त्री, पशु, क्लीव आदि से रहित शय्या ! १२. गति-शुद्धि । १३. भाषा-शुद्धि । १४. वस्त्र की एषणा-पद्धति । १५. पात्र की एषणा-पद्धति । १६. अवग्रह-शुद्धि । १७. स्थान-शुद्धि । १८. निषद्या-शुद्धि । १६. व्युत्सर्ग-शुद्धि । २०. शब्दासक्ति परित्याग । २१. रूपासक्ति-परित्याग । २२. परक्रिया-वर्जन । २३. अन्योन्यक्रिया-वर्जन । २४. पंच महाव्रतों की दृढ़ता। २५. सर्वसंगों से विमुक्तता। नियुक्तिकार ने नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों के विषय इस प्रकार बतलाए हैं--- १. सत्थपरिणा-जीव संयम । २. लोगविजय-बंध और मुक्ति का प्रबोध । ३. सीओसणिज्ज-सुख-दुःख-तितिक्षा। ४. सम्मत्त---सम्यक-दृष्टिकोण ! ५. लोग सार–असार का परित्याग और लोक में सारभूत रत्नत्रयी को आराधना । ६. धुय---अनासक्ति। ७. महापरिणामोह से उत्पन्न परीषहों और उपसर्गों का सम्यक सहन । ८. विमोक्ख-निर्याण (अंतक्रिया) की सम्यक -आराधना । ६. उ वहाणसुय--- भगवान् महावीर द्वारा आचरित आचार का प्रतिपादन। १. आचारांग नियुक्ति, गाथा ३३, ३४ : जिअसंजमी अ लोगो जह बज्झइ जह य तं पजहियव्वं । सुहदुक्खतितिक्खाबिय, सम्मत्तं लोगसारो य॥ निस्संगया य छठे मोहसमुत्या परीसहुक्सम्मा। निजाणं अठ्ठमए नवमे य जिणेण एवंति । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य अकलंक के अनुसार आचारांग का समग्र विषय चर्या-विधान तथा अपराजित सुरि के अनुसार रत्नत्रयी के आचरण का प्रतिपादन है। जैन-परम्परा में 'आचार' शब्द व्यापक अर्थ में व्यवहृत होता है । आचारांग की व्याख्या के प्रसंग में आवार के पांच प्रकार बतलाए गए हैं-१. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चरित्राचार, ४. तपाचार और ५. वीर्याचार' । प्रस्तुत सूत्र में इन पांचों आचारों का निरूपण है सूयगडो नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का दूसरा अंग है। इसका नाम 'सूयगडो' है। समवाय, नंदी और अनुयोगद्वार-जीनों आगमों में यही नाम उपलब्ध होता है। नियुक्तिकार भद्रबाहस्वामी ने प्रस्तुत आगम के गुण-निष्पन्न नाम तीन बतलाए हैं १. सूतगड-सूतकृत २. सूत्तकड-सूत्रकृत ३. सूयगड-सूचाकृत प्रस्तुत आगम मौलिक दृष्टि से भगवान महावीर से सूत (उत्पन्न) है तथा यह ग्रन्थरूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूतकृत' है । इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सुत्रकृत' है। इसमें स्व और पर समय को सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' है। वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय-ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। आकार भेद होने के कारण तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई है। १. तत्वार्थ राजवार्तिक, १२० : ___ आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टकपंचसमितिनिगुप्तिविकल्पं कथ्यते । २. भूलाराधना, आश्वास २, ग्लोक १३०, विजयोदया: रत्नत्रयाचरणनिरूपणपरतया प्रथममंगमाचारशब्देनोच्यते । ३. समवाओ, पइण्णग समवाओ, सू० ८९: से समासमो पंचविहे पं० २–णाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वोरियायारे । ४. (क) समवाओ, पदण्णगसमवायो, सू० ८८ (ख) नंदी, सू०८०। (ग) अणुप्रोगदाराई, सू० ५० । ५. सूत्रकृतॉगनियुक्ति, गाथा २: सूतगडं मुत्तकडं सूयगडं चेव गोण्णाई। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभी अंग मौलिक रूप में भगवान् महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थरूप में प्रणीत हैं । फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही सूत्रकृत नाम क्यों ? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है। प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है। क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्वसमय और परसमय की तुलनात्मक सूत्रता के सन्दर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका संबंध सूचना से है। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है --'सूयगडे णं ससमयासूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमय-परसमया सूइज्जति । जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है। सूत्रकृत के नाम के सम्बन्ध में एक अनुमान और किया जा सकता है। वह वास्तविकता के निकट प्रतीत होता है । दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयो।, पूर्वगत और चूलिका। ___ आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है। प्रस्तुत आगम की रचना उसी के आधार पर की गई इसलिए इसका सूत्रकृत नाम रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। सूतगड' और बौद्धों के 'सुत्तनिपात' में नामसाम्य प्रतीत होता है। अंग और अनुयोग द्वादशांगी में प्रस्तुत आगम का स्थान दूसरा है । अनुयोग चार हैं१. चरणकरणानुयोग, २. धर्मकथानुयोग, ३. गणितानुयोग। ४. द्रव्यानुयोग। चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार शास्त्र) है । शीलांकसूरि ने इसे द्रव्यानुयोग (द्रव्य शास्त्र) की कोटि में रखा है। उनके अनुसार आचारांग प्रधानतया चरणकरणानुयोग तथा सुत्रकृतांग प्रधानतया द्रव्यानुयोग है। १. (क) समवाओ, पइग्णगसमवायो, सू० ६० । (ख) नंदी, सू० ८२। २. कसायपाहुह, भाग १, पृ.० १३४ । ३. सूत्रकृतांगचूणि पृ०५। इह चरणाणुगोगे ण अधिकारो। ४. सूत्रकृतॉग वुत्ति, पत्न १ तनाचाराङ्ग चरण करणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्यसूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्ग व्याख्यातुमारभ्यते । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय तथा नन्दी में द्वादशांगी का विवरण दिया हआ है। वहां सभी अंगों के विवरण के अंत में एवं चरणकरणपरूवणता' पाठ मिलता है। अभयदेवसूरी ने 'चरण' का अर्थ श्रमण धर्म और 'करण' का अर्थ पिण्डविशुद्धि, समिति आदि किया है। चुणिकार ने कालिकश्रुत को चरणकरणानुयोग तथा दृष्टिवादको द्रव्यानुयोग माना है।' द्वादशांगी में मुख्यतः द्रव्यशास्त्र दष्टिवाद है। शेष अंगों में द्रव्य का प्रतिपादन गौण है। द्रव्यशास्त्र में भी गौणरूप में आचार का प्रतिपादन हुआ है । चूर्णिकार ने मुख्यता की दृष्टि से प्रस्तुत आगम को आचार शास्त्र माना है और वह उचित भी है। वृत्तिकार ने इसमें प्राप्त द्रव्य विषयक प्रतिपादन को मुख्य मानकर इसे द्रव्यशास्त्र कहा है। इन दोनों वर्गीकरणों में सापेक्ष दृष्टिभेद है। ठाणं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का तीसरा अंग है। इसमें संख्या-क्रम से जीव, पुद्गल आदि की स्थापना की गई है इसलिए इसका नाम ठाणं है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में 'स्वसमय' (अर्हत् का दर्शन), 'परसमय' तथा स्वसमय और परसमयदोनों की स्थापना की गई है। जीव और अजीव, लोक और अलोक की स्थापना की गई है। इसमें संग्रह नय की दृष्टि से जीव की एकता और व्यवहार नय की दृष्टि से उसकी भिन्नता प्रतिपादित है । संग्रह नय के अनुसार चैतन्य की दृष्टि से जीव एक है । व्यवहार नय के दृष्टिकोण से प्रत्येक जीव विभक्त होता है, जैसे-ज्ञान और दर्शन की दष्टि से वह दो भागों में विभक्त है । कर्मचेतना, कर्मफल चेतना और ज्ञान चेतना की दृष्टि से अथवा ध्रौव्य, उत्पाद और १. समवायांग वृत्ति, पन १०२: चरणम्--ब्रतश्रमणधर्मसंयमाद्यनेकविधम् । करणम्--पिण्डविशुद्धिसमित्याधनेकविधम् । २. सूत्रकृतांगणि, पु०५। कालियसुर्य चरणकरणाणुयोगो, इसिभासिओत्तरायणाणि धम्माणुयोगो, सूरपण्णत्तादि गणितानुयोगो, दिठ्ठ वातो दवाणुजोगोत्ति । ३. समवायो, पइयणगसमवाओ, सू० ६१॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनाश की दृष्टि से वह तीन भागों में विभक्त है। गति-चतुष्टय में परिभ्रमण करने के कारण वह चार भागों में विभक्त है। पारिणामिकआदि पांच भावों की दष्टि से वह पांच भागों में विभक्त है। भवान्तर में संकमण के समय पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उध्वं और अध:----इन छह दिशाओं में गमन करने के कारण वह छह भागों में विभक्त है। स्यादस्ति, स्यादनास्ति की सप्तभंगी की दष्टि से वह सात भागों में विभक्त है। आठ कर्मों की दृष्टि से वह आठ भार्गो में विभक्त है। नौ पदार्थों में परिण मन करने के कारण वह नौ भागों में विभक्त है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रिय जाति की दृष्टि से वह दस भागों में विभक्त है।' इसी प्रकार प्रस्तुत आगम पुद्गल आदि के एकत्व तथा दो से दस तक के पर्यायों का वर्णन करता है। पर्यायों की दष्टि से एक तत्व अनन्त भागों में विभक्त हो जाता है और द्रव्य की दृष्टि से वे अनन्त भाग एक तत्त्व में परिणत हो जाते हैं। प्रस्तुत आगम में इस अभेद और भेद की व्याख्या उपलब्ध है। समवाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का चौथा अंग है। इसका नाम समवाओ है। इसमें जीव-अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समवतार है, इसलिए इसका नाम समवाओ है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का सादृश्य-सामान्य के द्वारा निर्णय किया गया है; इसलिए इसका नाम समवाओ है। समवाओ में द्वादशांगी का वर्णन है । यह द्वादशांगी का चौथा अंग है; इसलिए इसमें इसका विवरण भी प्राप्त है। द्वादशांगी का क्रम-प्राप्त विवेचन नन्दी सूत्र में है। उसके अनुसार समवाओ की विषयसूची इस प्रकार है १. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास । १. कसायपाहुड भाग पृ० १२३ २. समवायांग वृत्ति, पत्न १: समिति-सम्यक् अवेत्याधिक्येन अयनमयः-परिच्छेदो जीवाजीवादिविविधपदार्थसाधस्य यस्मिन्नसो समवायः, समवयन्ति वा-समवसरन्ति संमिलन्ति नाना विद्या आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसो समवाय इति । गोमटसार, जीवकाण्ड, जीवप्रबोधिनी टीका, गाथा ३५६ : "सं-संग्रहेण सादृश्यसामाग्येन प्रवेयंते ज्ञायन्ते जीवा दिपदार्था द्रव्य कालभावनाश्रित्य अस्मिम्मिति समवायाङ्गम् ।" Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. द्वादशांग गणिपिटक का वर्णन । समवायांग के अनुसार समवाओ की विषय सूची इस प्रकार है१. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास । ३. द्वादशांग-गणिपिटक का वर्णन। ४. आहार १४. योग ५. उच्छ वास १५. इन्द्रिय ६. लेश्या १६. कषाय ७. आवास १७. योनि ८. उपपात १८. कुलकर है. च्यवन १६. तीर्थंकर १०. अवगाह २०. गणधर ११. वेदना २१. चक्रवर्ती १२. विधान २२. बलदेव-वासुदेव । १३. उपयोग दोनों विषय-सूचियों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि समवायांग की नदि- त.विषय-सूची संक्षिप्त है जौर समवाओ-गत विषय-सूची विस्तृत । विषय-सूची के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का आकार भी छोटा और बड़ा हो जाता है। दोनों विवरणों में 'सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है' इसका उल्लेख है । अने कोतरिका वृद्धि का दोनों में उल्लेख नहीं है। नन्दीचूर्णी, हारिभद्रीयावृत्ति तथा मलयगिरीयावृत्ति-इन तीनों में अनेकोतरिका वृद्धि का कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने अनेकोतरिका वृद्धि की चर्चा की है। उनके अनुसार सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है और उसके पश्चात् अनेकोतरिका वृद्धि होती है। वृत्तिकार का यह उल्लेख समवायांग के विवरण के आधार पर नहीं, किन्तु उपलब्ध पाठ के आधार पर है-ऐसा प्रतीत होता है। १. नन्दी, सू० ८३: से कि तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिज्जति, अजीवा समासिजति जीवाजीवा समासिज्जति । ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय-गरसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ, अलोए समासिरजइ, लोयालोए समासिज्जइ । समवाएणं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयं-निवढ़ियाणं भावाणं परूवणा आधविज्जइ, दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लयम्ये समासिज्जइ ! २. समवानो, पइण्णगसमवाओ, सू०६२। ३. समवायांग, वृत्ति, पन्न १०५ : 'च शब्दस्य चान्यत्र सम्बन्धादेकोतरिका अनेकोतरिका च, तत्र शतं यावदेकोतरिका परतोऽनेकोत्तरिकेति।' Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ दोनों विवरणों की समीक्षा करने पर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं १. नन्दी में समवायांग का जो विवरण है, उससे उपलब्ध समवायांग क्या भिन्न नहीं है ? २. क्या उपलब्ध समवायांग देवघराणी की वाचना का है ? यदि है तो समवायांग के दोनों विवरणों में इतना अन्तर क्यों ? प्रथम प्रश्न के समाधान में यह कहा जा सकता है कि नन्दीगत समवायांग विवरण के अनुसार समवायांग सूत्र का अन्तिमविषय द्वादशांगी के आगे अनेक विषय प्रतिपादित हैं। इससे ज्ञात होता है कि समवायांग का वर्तमान आकार नन्दीगत समवायांग विवरण से भिन्न है। दूसरे प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर देना कठिन है, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि आगमों की अनेक वाचनाएं रही हैं। इसीलिए प्रत्येक अंग के विवरण में अनेक वाचनाओं (परित्ता वाणा) का उल्लेख किया गया है । अभयदेवसूरि ने समवायांग की वृहद वाचना का उल्लेख किया है'। इससे अनुमान किया जा सकता है कि नन्दी में लघु वाचना वाले समवायांग का विवरण है ! अभयदेवसूरि को प्रस्तुत सूत्र के वाचनान्तर प्राप्त थे, ऐसा उनकी वृत्ति से ज्ञात होता है। समवायांग परिवर्धित आकार के विषय में दो अनुमान किये जा सकते हैं १. प्रस्तुत सूत्र देवधिगणी की वाचना से भिन्न वाचना का है । २. अथवा द्वादशांगी के उत्तरवर्ती अंश देवगिणी के पश्चात् इसमें जोड़े गए हैं। यदि प्रस्तुत सूत्र भिन्न याचना का होता तो इस विषय में कोई अनुभूति मिल जाती। ज्योतिकरण्ड माधुरी वाचना का है - यह अनुश्रुति वराबर चलती आ रही है । उपलब्ध समवायांग भी यदि माधुरी वाचना का होता तो उस विषय को कोई अनुश्रुति मिल जाती। प्रथम अनुमान की पुष्टि की संभावना कम होने पर दूसरे अनुमान की संभावना बढ़ जाती है किन्तु भगवती तथा स्थानांग से दूसरे अनुमान का भी निरसन हो जाता है। भगवती में कुलकर, तोकर आदि के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है'। इसी प्रकार स्थानांग में भी बलदेव- वासुदेव के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है। इससे ज्ञात होता है कि परिशिष्ट भाग देवधिगणी के जोड़ा गया था । समय में ही १ (क) माग वृत्ति पत्र ५८ वाचनायामन्यं नाधीयते। (ब) वही पत्र ५२ बृहद्वचनायामिदमादतिपक्षी २.वृति पत्र १४४ वाचनान्तरे तु पाकोक्तमेत्यमिलिम ३. भगवई शतक ५, उद्देशक ५ ४. ठाणं ६।१६, २० Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक आगम के लिए एक संकलनकार के द्वारा दो प्रकार के विवरण (समवायांग तथा नंदी में) दिए गए--यह विचित्र बात है। माथूरी और वल्लभी-ये दो मुख्य वाचनाएं थीं। गौण वाचनाए अनेक थीं। इसीलिए अनेक वाचनान्तर मिलते हैं। ये वाचनान्तर संभवत: व्याख्यांश या परिशिष्ट जोड़ने से हो जाते। समवायांग में द्वादशांगी का उत्तरवर्ती भाग उसका परिशिष्ट भाग है-ऐसी कल्पना की जा सकती है। परिशिष्ट का विवरण समवायांग के विवरण में परिवधित किया गया, इसलिए उसकी विषयसूची नन्दीगत समवायांग की विषय-सूची से लम्बी हो गई। परिशिष्ट भाग में प्रज्ञापना के ग्यारह पदों का संक्षेप है, ये किस हेतु से यहां जोड़े गए, यह अन्वेषण का विषय है। कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तरहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता हो पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। __मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधु-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Editorial Ayaro The text of the Āćāränga, adopted by us, does not depend on one specimen only. We have adopted it on the review with reference to the specimens in use, the Ćūrņi and the Vșitti. The three sūtras (27-29) in the second 'Uddeśaka' of the first Adhyayana of the 'Āyāro' are found in all the other five Uddeśakas also. In the specimens used in the redemption of the text as well as in the Acaranga Vșitti they are not found. In the Aćārānga Curņi, commenciog from the Sütrā "lajjamāņā pudhopasa' (Āyāro, Sü. 16, page 4) to the Sūtra 'Appege Sampamärae, Appege Uddawae' (Āyāro, Sū. 29, page 6), it is considered as Dhruvakandikā' (the one and the same text). On the basis of the indications found in the Čurņi, we have adopted the three Sütras in the second Uddeśaka in the rest five Uddeśakas. In place of Kumbhārāyatanamsi wā, in the Ćūrņia of the second Udde. saka (Sū. 21) of the cighth Adhyayana, many a word is found, e.g. 'uwattanagihe wā, gāmdeulie wā, kammagārasālāe wa, tantuwāyagasālāe wā, lohagarasālāe wā'. The Cūrnikāra further writes-Jaciyāo Sālā Sawwāo māniyawwão", Here it appears that the word 'Kumbhārāyatanamsi wā' was added with many other words meaning 'Sālā' or house but, in the course of time due to the faulty scribing, all the other words were left out. It is not possible to decide the text-system on the basis of the Curņi only. This is why it has not been included in the text. 1. See - Ayaro, page 8, footnote no 2, page 11 ; footnote no. 2, page 14; footnotc no 1, page 16; footnote no. 3, page 19; footnote no. 4. 2. Acaranga Curni, page 260 261 3. Acaranga Curni, page 261. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 We have completed the abridged text, too. The tradition to abridge the text was in vouge due to learning of the Sruta by heart and making the scribing easy. Pandit Bećar Das Joshi had written to Acarya Tulsi, throwing light on this topic in an article, on 8th December 1966. He observes, "The traditional Jain Sramanas considered the tendency to write and get written as sinful activities. They, nevertheless, adopted this path as an acception to safe-guard the scriptures. The less writing, the better. Taking this they, surely, tried to search out the way to reduce the sinful. activity to the least for the safeguard of the scriptures. In the search of this path they found two novel words as "Wannao' and 'Jawa. With the help. of these two words, they could abridge thousands of Slokas and hundreds of sentences and their beginning was shortened as well as to deficiency occured in understanding the meaning of the scripture." Three reasons-the system to learn the Śruta by heart, convenience by the script and the intention to write briefly, are probable to cause the abridgement of the text. It has undoubtly, caused no deficiency in the meaning, but it has marred the charm of the text. The difficulties of the reader have also increased. The Munis, having the whole Agama literature learnt by heart, can make out the antecedents and precedents referred to by the words Jawa' and 'Wannaga' but the class of Munis learning with. the help of the manuscripts cannot do so. The text, having the references of Jawa' and 'Wannaga', has not proved to be much beneficial to them. We, too have been experiencing this difficulty apparently. To solve this difficulty and bring back the beauty of the text Acarya Tulsi, our Vaćanä-head, desired that the abridved text be recompleted. We have accordingly, completed the abridged text in most places. To indicate that 'dot-marks' have been given. In the first and the second appendices, the tables to point out the places of completion in the 'Ayaro' end the 'Ayara-cüla" have been added. According to Bećara Das Joshi, the text-abridgement was done by Devardhigani Kamäśramana. He writes-"Devardhigani Kéamáśramana, while reducing the Agamas in writing, kept some important points in mind. Where ever he found similar readings he avoided the later one by using the words c.g. Jaha Uwawaie', 'Jaha Pannawanae' etc. to denote the omitted text, When some statement occured again and again in a work, he used the word "Jawa' and wrote the last word of it refraining from the repetition, e. g. 'Naga Kumārā Jawa wiharanti', 'Tena Kalena Jawa Parisa Niggaya' etc." 1. Jain Sahitya ka Vrihat Itihas, page 81. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The process of abridgement might have been started by Devar dhigani, but it developed in later period. In the specimens, available at present, the abridged text is not uniformal. A Sūtra has been abridged in one specimen but written in its full version in the other. The commentators have also mentioned it in many places. In the Aupapatik Sūtra, for example, these two passages, “Ayapāyāņi wā Jāwa Annayarāin wä" and 'Ayabandhanani wā Jāwa Annayarāin wä' are found. They were in the abridged form in the main specimens the Vțittikāra had, but their ful version too, was found in other specimens. The commentator himself has noted it! Many a time, the scribes, according to their own convenience did not write the preceding text again others followed them in the later specimens. SŪYAGADO We have adopted the text of the Sūtra Kpita depending not on one specimen only. It has been redeemed after the comparative study, based on the specimens used in the text-redemption, the Cūrni and the readings of the Vțitti, and their critical review as well. The system to write was little popular in ancient times. Almost all the scriptures were maintained traditionally learnt by heart. This is why the 'Ghoša-Suddhi' (correctness of pronounciation) was much stressed upon. This was a pious duty of the Ācārya to correct the seat of utterence of the disciples. The Daśāśrutaskandha Sutra says? ---to become 'Ghosa-Sudhi-Kārka' is one of the virtues of an Ācārya. Special arrangement was there to maintain the text and the meaning in the original form. The Ćhedasūtras throws full light on it. Eight kinds of the lñānālära have been enumerated'. Of them, the three Aláras are concerned with the said arrangement. They are 1, (a) Aupapatika Vritti, patra 177, (b) Pustakantare Samagramidam Sutradwayamastyeveti. 2. Dasasrutaskandha, Dasa 4. 3. Nisithabhasya, Gatha 8, part 1, page 6: Kale vinaye bahumano, uwadhane taha aninhawane, wanjana-atthatadubhac, atthawidho nanamayaro. Ibid, gatha 17, part 1, page 12: Sakkayamattabindu Annabhidhanena wa witam Attham, Wanjoti Jena Attham, wanjanamiti bhannate suttam. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 1. Vyanjana-To maintain the language, vowel-marks, nasal points and words of the text of Sūtra, as it is. 2. Artha --To maintain the purport (meaning) of the sutra as it is. 3. Vyanjana as well as artha-To maintain the Sutra and its meaning both in the original form. The Curņikära makes it clear with examples', 'Dhammoma ngalam mukkittham' is expressed in Prākļit language. To render this reading in Sanskrit “Dharmo Mangalamutkristam' as such is a dialectical sin of Vyanjana. In the same way, to utter 'Sawwam sāwwajjam Jogam paććakkhāami' as 'Sawwesāwajje joge paććakkhami' by changing its vowels is a diacritical sin of Vyanjana. likewise, to utter 'Namo arahantāṇani' as 'Namo arahantäna' omitting the therepotent point of nasal sound and also to pronounce 'Namo aramhantäņam' adding the point of nasal sound with 'ra' when it is not there, is a nasal-point-change sin of vyanjana. To bring in the synonyms, in piace of the original words of 'Dhammo mangalam mukkittham', such as “Puņım Kalläņa mukk osam' is also a different-word-sin of Vyanjana. The conclusion of all this account is to stress upon that the originality of language, vowel mark, point of nasal sound, word, word-number, and textorder must be maintained in all respects. Rules were laid down to expiate the sin against this arrangement. On changing the language, the vowelmark or the point of nasal sound one has to undergo the specified atonen.ent, On doing the Sütra-Pātha otherwise an expiation of four months followed. In the conclusion of the topic, the Cürnikära writes-A change of Sūtra causes a change of meaning, a change of meaning causes a change of 1. Nisithabhasya curni, Part I, page 12. Toid. 3. Nisithbhasya, Gatha 18, Curnjbhasya ), page 12. Suttabheya atthabheo, atthabheya caranabheyo, caranabheya amokkho. Mokkhabhawat dikkhadayo Kiriyabheda aphala bhawanti. Taha vanjanabhedo па kауаwwо. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49 conduct and the change of conduct makes the salvation impossible. In that case all the rites, such as Dikśă etc. become futile. A change of Vyanjana, therefore, be not done. Likewise, a change of meaning also be not made. The meaning that is uncouth and not applicable be not carried out. On changing the meaning, an expiation for four months follows'. Similarly, on changing the Sūtra and its meaning together, both the aforesaid expiations fall on. A deep thinking had taken place to maintain the originality of the Sūtras and their meaning even in the period of composition of the Agamas. In the present Sūtra, it is clearly stated. A muni studying the work has been alerted that he in no way is set up a Sutra and its meaning differently or expound it otherwise. The Cūrņikāra annotates it thus". In no way a Sutra be dono otherwise. The meaning and that meaning only be carried out which is consistant with its own principle. The Vrittikara writess-A Sūtra be not added to intentionally or a Sútra or its meaning be not done otherwise. From the aforesaid account it is learnt that it was keenly endeavoured to maintain the Sutra and its meaning in its original form. As a result, it has been maintained also to some extent. We can, nevertheless, not say that it has not been changed. It has been done and the reasons for it are also there, e.g. 1. Forgetfulness 1. Nisithbhasya Curni, part 1, page 13. 2. Ibid. 3. Sutrakrita 1/14/26. No Suttamattha cakarcjja annam. 4. Sutrakrita Curni, page 296. Na Sutramanyat praddhesena karotyanyathawa. Jaha ranno bhattansino ujjawalaprasno namarthas tamapi nanyatha kuryat; Jaba "Awantike Awantieke Yawanti tamtogo wipparmsapti'. Sutram sarwathaiwanyatha na Kartawyam, arthavikalxastu swasiddhantavinuddho aviruddah syat. 5, Suttrarkitavitel, page 258. Na ca Sutramanyat Swamativikalpa natah swarparatrayi Kuritanyatha wa suttram todartha wa sansarattrayitrana sito jantunam na vidadhita. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. Change of script 3. Assimilation of the coinmentary with the text. 4. Intervention of time and place. When Silānkarsūri wrote his Vșitti on the "Sūtrakrita', he had its specimens and ancient commentary (Tika) both. In one place of the second Addhyayna of the second Srutāskandha, the reading was not similar to that of the specimens, and the reading, that was commented on, was not found consistant with that of any specimen. He, therefore, commented on the said passage honouring only one specimen. We have adopted the readings of the Cūrni in some places. In comparision to that of the specimens and the VỊitti they appear more relevant. In 2/6/45 the reading is ‘niho nisam'. It has been commented on in the Vțitti as 'ņiwo nisam'. We have adopted the reading of the Cūrni there? . We have discussed the changes in the text and their causes under the footnotes. It was keenly endeavourcd in the Vedic tradition also to maintain the originality of the text of the Vedas. But in their texts, too, there have been timely violations. Dr. Vißwabandhu writes__-"It is a fact accepted by all that great pains, which kuow no parallel in the world history of literature, were taken in this country to maintain the texts of the Vedic literature in their original and correct form by learning them by heart with great care and utmost reverence during the past five thousand ycars. Nevertheless, as the scholars, preceding to us, inicidently found here and there as we have largely seen during our incessant research work for the past forty years, these works, too, could not be saved from the effects of time bound damages and insufficient human hurlings. Had it becn mostly the other way, truly, it would be an incredible miracle." Continuing with the tradition of cramming and passing from one to the other age of script-change in the prolonged period. Some places of every work have deviated from their originality 1. Suttrakritavritti, page 79: That ca pravah sutradarsesu nanabbidhani Suttrabi drisyante, na ca tika sambadhckapyasmabhiradarsah samuphabdhot e kamadarsamangikrityasmabhi viwaranam kriyate. 2. See, Footnote on 2/6/45. 3. Akhilabharatiya praciya vidya Sammelan, Twentifourth gathering, Varanasi 1968, Mukhyadyaksiya speech, page, 8-9. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 51 THANAM A word has different forms in Präkrit, and these different forms are used, too, in the Agamas. Some scholars, engaged in the editing work of the Agamas, have stressed upon that the uniformity in the form of words should be brought up. We have not adopted this method of editing. Although accepting the sameness of the sound 'na' and 'na', only 'a' has been used in all the places, the principle to bring up uniformity in different forms everywhere has not been observed. In 3/373 two forms 'Sugati' and 'Suggati' are found; in 3/375 'Sogata', 'Sugata' and 'Suggata', three forms are found. We have adopted them as they are. The authors are free in their usages. As they are not the bondsmen of the rule of uniformity, to try to bring uniformity in the editing-work does not seem desirable. The Agamas contain the usages of different languages and syllable changes. In bringing up uniformity in them, the probability to forget the multiformity may arise. 'Wayenam' as well as 'Kamasa' both the forms are used. 'Andaya' as well as 'Andaga' for 'Andajâh' and 'Kammabhumiya' as well as 'Kammabhumiga' for 'Karmabhumijah' both the forms are formed. To keep up the form as found in a particular place is not a fault of editing. SAMAWÃO The text redemption of this Sutra is based on three specimens and the Vritti as well. In some places other works, too, have been used to redeem the text. In the specimens of the 'Prakirpa Samawaya' (Sütra 234) the reading 'Assasene' is not found. This is the name of the father of fourth Cakrawarti. In the absence of it, the arrangement of further names becomes inconsistent. In the Sangraha Gathas of the said Sutra, the name 'Padmottara' is in excess. It has been taken as a recension. The reading 'Assasene' is found in the Awalyaka Niryukti (399). Basing on it 'Assasene" has been adopted as the text-reading. In the Sangraha Gatha of the Prakirpa Samawäya (Sutra 230) BaldevaVasudeva's father's name are given. Basing on the Sthānanga (9/19) and the Awasyaka Niryukti the amendment has been carried out. The name of the third Baladeva-Vasudeva's father is 'Rudda', but the manuscript of the Vritti of Samawayanga mentions it as 'Soma' instead of 'Rudda'. In fact, 'Rudda' should follow Soma'. 1. See, Samawao, painnagasamawao, Sutra. 230, the first footnote, Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ In all the specimens of the Samawāya 30 (Sütra 1, gatha 26) it reads Sajjhayawāyam'. The vrittikära, too, explains it as 'Swadhyāyawādam'. But it is not relevent as far as the meaning is concerned. The said 'gātha' is found in the Daśāşrutaskandha (Sūtra 26) where the reading is 'Sabbhāwawäyam' instead of 'Sajjhayawayam'. The Vțittikära of 'Daśāsrutaskandha' has given its Sanskrit form as 'Sadbhāwa wādam'. On reviewing the meaning critically, this reading appears to be relevent. 1, See, Samawao, Samawaya 30, Sutra, 1, the second footnote of Sutra 230, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Forward The Classification of the Agamas The most ancient part of the Jain literature is the Āgama. The Samawāyānga mentions two forms of the Āgama, such as, 1. Dwadasanga ganipitaka’ and 2. Caturadaśapūrwa?, In the Nandi, two divisions of the Śruta-Jyana (Agama) have been given. 1. Anga Pravişta and Angavāhya lhe accounts, found regarding the Adhyayanas of the Sadhus and Sadhwis (monks and nuns), pertain to the Angas and purwas, as 1. The readers of the eleven Angas beginning from the Sāmayika Sāmáiyamāiyāin ekkarasa-angāin ahijajai (Antagaça, Prathama Varga). This statement is found regarding Gautama, the disciple of lord Ariştanemi. Sāmāiyamáiyain ekkarasa angāin Ahijajai (Antāgada, Panćam Varga, Prathama Adhyayana). This statement relates to Padmavati, the disciple of lord Aristānemi. Sāmāiyamãiyāin ckkarasa-angăin (Antagada, Astama Varga, Prathama Adhyayana). This statement pertains to Kāli, the disciple of lord Mahavira. Sāmāiyamāiyain ekkarasa-angāin Ahijajai (Antagada Sasta Varga, 15th Adhyayana). This statement has been given regarding Atimuktakumara, the disciple of lord Mahavira, 2. The readers of the twelve Aogas The statement regarding Jālīkumāra, the disciple of lord Ariştanemi, is given as such Bārasangi (Antagada, Caturtha Varga, Prathama Adhyayana). 1. Samawayanga, Prakirnaka, Samawaya, Sutra. 88. 2. Ibid, Samawaya 14, Sutra. 2. 3. The Nandi, Sutra. 43. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. The readers of the fourteen Purwas Čauddasapuwwain ahijjai (Antagada, tritiya Varga, Navama Adhyayana). This is the statement found regarding Sumukhakumara the disciple of lord Aristanemi. 54 Samaiyamaiyain Čauddasapuwwain ahijjai (Antagada, triya Varga, Prathama Adhyayana). This statement is found regarding Aniyasakumāra, the disciple of lord Ariştanemi. There were three hundred and fifty Caturdaśa-pürw! munis of lord Pārśwa. There were three hundred éaturdașa- pürwi munis of lord Mahavira. The division, Anga-Pravista and Anga-Vahya, have not been given in the Samawayanga and Anuyogadwara. This division first have been made. in the Nandi. The later sthaviras composed the Anga-Vähya. Many angavahyas had been composed before the composition of the Nandi and they were done by the catûrdasa-pürwi or daša-pürwi sthaviras. They were, therefore, taken as solemn as the Agama and two divisions were made of it such as, 1. Anga-pravişta and 2. Anga-Vahya. This division is not found in the Anuyogdwära (sixth century of the Vira-Nirwana). This was first done in the Naudi (tenth century of the Vira-Nirwana) When the Nandi was composed, the Agama was classified threefold, 1. Parwa, 2. Anga-Pravista and 3. Anga-Vahya. What we have today is only Anga-Pravista and 'Anga-vahya'. The 'purwas' are extinct. Their extinction is a subject of delibration from the historical point of view. PURWA According to the Jaina tradition, the Purwa is the Aksaya-Kosa (in exhaustible lexicon) of the Śruta-Jyaña (word knowledge). All do not hold one and the same view about the meaning of the title and their composi tion. The ancient Adaryas hold that as they were composed before the 'Dwadasang they were given the title Purwa" But the modern, scholars 1. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 14. 2. Ibid, Sutra. 12. 3. Samawayanga vritti, Patra 101: Prathamam Purwam tasya Sarwa pravacnat purwam Kriyamanatwat. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ view that the ‘Pūrwa' was the Śruta- Rasi of the tradition of lord Pārswa and preceding to Lord Mahavira, it was, therefore called 'Purwa'. Whatever view of the two is accepted, the conclusion is the same that the Purwas' were composed before the 'Dwadaśāngi' or the 'Dwādaśangi' is a later composition than the 'Purwas". In the form the 'Dwādaśāngi' is now found, the 'Pūrwas' are assimilated. The twelfth Anga is 'Driştiwada'. One of its divisions is "Pūrwagata'. The fourteen 'Purwas' are included in it. The opinion that lord Mahāvira first composed the 'Purwagata Sruta', leads us to the conclusion that the forteen 'Purwas' and the twelfth Anga are one and the same. The 'Purwaśruta was very difficult to understand. The common people could not follow it. The Angas were composed for the benefit of less intelligent persons. Jinabhadra-gani Kšamāśramana says "The Dșiștiwāda contains all the word-knowledge (sabda-Jyaña). The eleven Angas, nevertheless, have been composed for the good of less intelligent people. The eleven Angas were studied only by those monks (Sadhus) who were not very intelligent. The intelligent munis studied the 'Pūrwas'. From the order of classification of the Agama, it is concluded that the eleven Angas are easier than Dţiştiwada or Purwas or have been in a different order from theirs. According to tbe Digambara tradition the Kewalis became extinct after 62 years of Vira-nirwāņa'. After that, for a hundred years only SrūtaKewalis (Caturdaśa-Pärwis) were found. Beyond that for one hundred and eightythree years only Daśapūrvīs were found. And, later to them for a period of two hundred and twenty years only the eleven-Angadharas were found.3 The discussion, given above, makes it quite clear that so long as the Ācāra etc. Angas were not composed, the Sruta-Rasî of lord Mahavira was called 'Caudaha Purwaś or 'Dțiştiwada'. When the eleven Acara 1. Nandi, Malayagiri vritti, Patra 240. Adye tu wyacaksate purwam purwagatasutrarthamarhan bhaste, Ganadhara api purwam purwagata Sutram Vira cayanti, Pascadaearadikam. Visesawasyaka Bhasya, Gatha 554. Ja-i-wi ya Bhutawa-e sawwassa waogayassa Nijjuhana Tahawi hu, dummehe pappa itthi oyaro ya. 3. Jayadhawala, Prastawapa, Page 49. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ etc. Angas were composed, the Dristiwada was given in the form of the twelfth Anga. 56 Though the two different accounts', such as, 'readers of the twelve Angas' and 'readers of the fourteen Purwas' are found, it cannot be said that the scholars in the fourteen Purwas were not scholars in the twelve Angas and vice-versa. Gautama Swami was called Dwadasangavit. He was a 'caturdasa-pūrvi' as well as 'Angadhara'. A 'śruta-kewali was somewhere called 'Dwadasangavit and sometimes 'caturdaśa-pûrvi' as well. As the eleven Angas are taken from or a collection of the Purwas, a 'caturdasa-pürvi' is, of course, a 'Dwadasangi' also. As the fourteen Purwas are incorporated in the twelfth Anga, a 'Dwadaśängavit' too. We, therefore, reach this conclusion that the Agama had only two ancient classifications 1. the Fourteen Purwas and 2. the eleven Angas. The 'Dwadasangi' had no independent standing. This is the title given to the Pürwas and the Angas jointly. Some modern scholars hold the Parwas, to be of the period of lord Pārśwa and the Angas of lord Mahavira. But this view is not correct. The tradition of the Purwas and the Angas was prevelent at the time of lord Arişṭanemi and lord Parśwa too. That the Angas were composed for the use of less intelligent people has been told before. That the intelligence quotient of all the Munis at the time of lord Parśwa was equal is incredible. The intelligence quotients have always differed in each and every age. Considering from the psychological and practical view, we reach the conclusion that the necessity of the Angas prevailed in the order of lord Pariwa too. To support this view that at the time of lord Pärśwa only the Purwas and not the Angas existed, no evidence is, therefore, found. By common sense this fact is estabilished that the Purwas and the Angas were renovated according to the purport, language, style and necessity of the age in the order of lord Mahavira. Fancy has, perhaps, played a main role to support the view that the Purwas were received traditionally from lord Pärswa and the Angas were composed in the tradition of Lord Mahavira. 3. Anga-Pravişta and Anga-Vähya It is heard by all that the gapadharas Gautama etc., composed the Purwas and the Angas at the time of lord Mahavira. A simple question 1. See the beginning of the preface. 11ttaradhvavana 23/7 2 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 57 arises if other Munis did not compose thc Agama works. There had been fourteen thousand desciples of lord Mahāvīra'. Of them seven hundred were 'Kewalīs' and four hundred 'Wādīs'. That they did not take part in the composition of the Āgamas does not seem credible. The Nandi says that the disciples of Lord Mahāvīra composed fourtcen thousand Prakirnakas'? besides the aforesaid 'Purwas' and 'Angas'. Nothing proves that the classification, such as 'Anga-Pravişta' and 'Aoga-Vābya' was done at that time. When the later Aćāryas compiled the works after the 'Nirwana' of lord Mabāvīra, the discussion was, perhaps, held to classify them under the Angamas or not and the question of their authenticity too, arose. After the discussion it was decided to classify the works, composed by the 'caturdasa-pūrvi' and the 'Dasa-pürvi' sthaviras, under the Agama but they were not considered authentic by themselves. Their authenticity depended on others. That they are consistent with the Dwādaśāngi was the touch-stone to give them the title of the Āgama. As their authenticity was dependent, the necessity was felt to keep them out of the class of the 'Anga Praviştà' and, in this content only, the 'AngaVabya' class of the Āgama took place. Jinabhadragani Kşmașramana ascertains the kinds of 'Anga-Pravista and 'Anga-Vahya' on three grounds, such as 1. That which is composed by a gañadhara. 2. That which is expounded by a Tirthankara on the query of a ganadhara. 3. That which is pertaining to the firm-eternal truths, and is perpetual and permanent; and that Sruta only is entitled as "Anga-Pravista'. Contrary to this 1. that Sruta which is composed by a Sthavira. temporary or suited to the times only is entitled as 'Anga-Vahya". The main ground to differenciate the Anga-Pravişta from the Anga 1. Samawayanga, Samawaya 14, Sutra 4. 2. Nandi, Sutra. 78. Coddaspa-i-onagasasahassani Bhagwa. Baddhamanassa, 3. Viscsavasyakabhasya, Gatha 552. Gapahara-therakatham wa, Aesa. Mukka-wagarana-O wa. Dhuva-cala visesawa, Anganamgesu Nanattam. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vähya is based on the difference of the person who has spoken it! The Agama delivered by Lord Mahavira and compiled by the ganadharas, is accepted as the basic Angas of the Śruta-Purușa. It is, therefore called the "Anga-Pravista,' According to Sarvárthsiddhi the speakers are of three kinds, 1. the Tirthankara, 2. the Sruta-Kewaii and 3. the Ārātiya?. The Āgamas Composed by the Ārātiya Aćāryas are regarded as 'Anga-Vähya'. According to Ācārya Akalanka, the Āgamas composed by the ArātiyaĀćārya reflect the meaning supported by the Angas'. They are, therefore, called the 'Anga-Vähyas.' The Anga-Vähya Agamas are as good as the Pratyanga or Upānga of the Śruta-purusa. ANGA The twelve Agamas incorporated in the Dwādaśãngi are called Angas. The word 'Anga' is found in the literature of Sanskrit and Prakrit both. In the Vedic literature the works assisting the study of Vedas are given the title of Abga' 'They are six 1. Siksa--The work that expounds the rules of utterence of the words. 2. Kalpa-The scripture that expounds the vedic rites and rituals in an order and agreement. 3. Vyakarana--The scripture that expounds the theories of morphology and meaning of the words. 4. Nirukta-The scripture that expounds etamology of the words. 5. Chandas - The scripture that expounds the theories of morpheme to recite the Mantras. 6. Jyotis--The scripture that expounds the theories to find correct time for the rites of Yajna-Yäga etc. The Vedas have been personified in the Vedic-literature. Accordingly the Sikşā' has been regarded as nose, the kalpa' as hands, the "Vyakarana' as mouth. the "Nirukta' as ears, the Chandas as feet and the Jyotis as eyes of the Veda-person. They are therefore, called the parts of the body of Vedas in the Pali-literature, too, the word 'Anga' has beenu sed. At one place the Buddha-Vaćanas' have been called 'Nawānga' and 'Dwadasānga' at the other. 1. Tatwartha-bhasya, 120. Waktri-viscsad dwaividhyam. 2. Sarvarthasiddhi. 1/20 Trayo waktaran - Sarvajna Tirthankarah, itaro wa Srutakewali Aratis asceti. 3. Tattwartha - Rajavaritika, 1/20. Aratiayacarya Kritangarthapratyasannarupamangavahyam. 4. Papipiyasiksa, 41, 12. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Nawanga 1. Sutta-The sermons of lord Buddha in prose. 2. Geyya - The mixed portion of prose and verse. 3. Vaiyyakaraga - The works containing explanation. 4. Gatha – The works composed in verse. 5. Udana-The gistful and affectionate expressions deliverud from the mouth of lord Buddha. 6. Itibuttaka-Small lectures begianing with the words, 'Lord Buddha said thus'. 7. Jataka-The stories of the former births of lord Buddha. 8. Abbbutadhamma- The work that explains the mysterious things of the superhuman powers born of the "Yoga'. 9. Vedalla-Those sermons which have written in the form of dialogues. Dwadasanga 1. The Sutra, 2. the Geyya, 3. the Vyakarane, 4. the Gatha, 5. the Udana, 6. the Awadana, 7. The Itivșittáka, 8. The Nidura, 9. the Vaipālya 10. The Jataka, 11. the Upadeśa-dharma and, 12. the Adbhuta-dharma.? The Jaināgama has been divided into twelve Angas 1. The Aćara 2. The Sūtrakṣita 3. The Sthāpa 4. The Samawāya 5. The Bhagawati 6. The Jynātā Dharmekatha 7. the Upasakadaśa 8. the Antaksita 9. the Anuttaro papātika 10. the Prasaa-Vyākarana 11. the Vipāka and 12. the Dţiştiwada. The word 'Anga' has been used in the three chief Indian philosophical schools. The main works of the Vedic and Buddhist literature are the Vedas and the Pitakas respectively. Nowhere the word "Anga' has been added to them. The main works in the Jain literature have been classified as the Ganipitaka. The Ganipitaka has the twelve Angas-Duwälasange ganipitage 1. Saddharma Pundakrika Sutra, page 34. 2. Buddha Sanskrit Grantha 'Achisamayalankar' Kitika, Page, 35. Sutrama Geyam Vyakaranam, Gathoanavadacakam. Itibrittakam Nidanam, Vaipulayam ca Sajatakam. Upadesadbhutau dharman, Dwadasangamidam vacah. 3. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra 88. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The personification of "Sruta-Purusa' too, is found in the Jain-tradition. The twelve Agamas, Ācara etc., are like the parts of the 'Gruta Puruşa'. They are, therefore, called the twelve Angas. So the Dwādaśānga becomes the adjective of the Gaņipitaka and the Śruta-Purușa' both. AYĀRO The title This Agama is the first Anga of the 'Dwādaśāngi. As it contains the account of the conduct (Alära), the title 'AYĀRO' It has two Srutaskandhas-1. AYĀRO, 2. ĀYĀRAČULA The Contents The Samawâyānga and the Nandi give an account of the Āćārānga. According to that the present Sutra explains the Acara, Gocar. Vinava Vainavika (fruit of vinaya), (Utthitãsana, Nişaņāsana and Sayitäsana), Gamana, eamkramana, Dose of food etc.application of Yoga in self study ste language, Samiti, Gupti, Sayya, Upadhi, Bhakta-Päna (edibles and Udgama-Utthana, the purity of 'cşņā (motives) etc. the discernment of taking Suddhāśuddha, Vpita, Niyama, Tapas, Updhan etc. Akarya Umāswāti has expounded the topics of every Adhyayana in the Ācārāpga in brief That is given in the order as under :3 1. Sahajivakāya Y@tnã. 2. Renunciating the glory of the wordly off-springs. 3. Winning over of the Parişahas, such as cold-hot etc. 4. Vodaunted Samyaktwa. 5. Udvegas of the world, 6. The means of nullifying the 'Karmas' (deeds). 7. The endeavour to `Vaiyavritya'. 8. The way to penance. 1. Mularadhta 4/599, Vijayodaya : Srutam Purusah Mukhcaranadyangasthaniyatwadangasabdenocyate. 2. (a) Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 89. (b) Nandi, Sutra. 80, 3. Prasamarati Prakarana,114-117, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 61 9. Renunciation of passion for woman. 10. Rules to receive the aims. 11. Bed without woman, Creature, eunuch et. 12. Purity in movement. 13. Purity of language. 14. Method of begging cloth. 15. Method of begging bowls. 16. Purity of habit (Avagraha). 17. Purity of Place (Sthāna). 18. Purity of 'Visadya'. 19. Purity of "Vyutsarga'. 20 Renunciation of attachment to sound 21. Renunciation of attachment to form. 22. Giving up ‘Parakriya'. 23. Giving up Anyonya-kriya'. 24. Steadfastness to the Five Mahāvsitas. 25. Libration from 'Sarvasangas' (all associations). The Niryuktikāra has enumerated the topics of the nine Adhyayanas ol Brahmacarya as under : 1. Satya Parinna-Jiva Samyama. 2. Loga Vijaya-Knowledge of bondage and libration. 3. Siosanijja--Equanimity of pleasure and pain. 4. Sammatta–Right vision. 5. Loga-Sara-Renunciation of worthless and adoration of the Ratna trayi, worthy in the world. Acaranga Niryukti, Gatha 33-34 : Jiyasamjamo a logo jaha bajjhai jaba ya am pajabiyay vam, Suhadukkhatitikkhaviya samimattam logasaro ya. Nissangaya ya chatthe mohasamuttha parisahuwasagga, Nijjatam atthamac nawame ya jinena evamti. 2, Tatwartha Rajavarttika, 1/20. Acare carya-vidhanam sudhyastaka paniasamiti-triguptivikalpam kathyate, Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 6. Dluya--non-attachment. 7. Mahaparinna-Enduring properly the Parişahas and Upsargas born of 'Moha'. 8. Vimokkha --- Proper observanes of 'Niravaņā' (the final state). 9. Urahanasuya--Explanation of the conduct observed by lord Mahā viral. Acārya Akala ka bolds that the total matter of the Acūränga is concerning the Carya-Vidhana' (mode of behaviour and conduct). While Aparăjit Suri opines that it is the ascertainment of the conduct of the *Ratna-trayi' SUYAGADO The Title This Āgāma, the second part of the Dwadasângi, is given the title as Süyagado'. The Samawaya, the Nandi and the Anuyogadwar, all the three Āgāmas have this title only for it.2 Bhadrawähu-Swāmi, the Niryuktikāra has given three titles of this Agama according to its tributes. 1. Sūtagada--Sūtaksita 2. Suttakada-Sütrakrita 3. Süyagada-Sūćäkrita Originally this Agama is 'Sūta' (hails from) by lord Mahavira and was given the form of a work by ganadhara. This is, therefore, entitle as 'Sutakrita'. As the truth in it has been ascertained according to the 'Sütrā', it is 'Sutraksita'. As the 'Sućana' of 'Swa' and 'Para' Samaya has been given in it. it is called 'Suća-krita.' 1, Mularadhna, Aswasa 2, Stoka 130, vijayodaya : Ratnatrayacarana nirupanaparataya prathamabhangamacare sabdenocyate. 2. (a) Samawao, Paissagamawao, Sutra. 88. (b) Nandi, Satra. 80. (c) Anuogadwarain, Sutra. 50. 3. Sutrakritanga-oiryukti, Gatha 2: Sutagadam, suttakadam, suyagadam cewa gonna-in. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'Süta', 'Sutta' and 'Saya' are as a matter of fact, the Prakrit forms of 'Sutra' only. These different formations led to the imagination of the three attributive titles. Originally, all the Angas were delivered by lord Mahavira and brought into a composed form by Ganadhara. Then, how can this Agama only be called 'Sütrakrita"? Similarly, the second title, too, is common to all the Angas. The third is the significant basis of the title of this 'Agama'. As the conduct has been ascertained in the context of a comparative preception (Sūtrna) in this Āgama, it is concerned with 'Suéana'. The Samawiya and the Nandi clearly state this Sayagade nam sasamayasuhajjanti, Parasamaya Sühajjanti sasamayaparasamaya suhajjanti. What is preceptive is called a 'Sutra'. The background of this Agama mainly consists of preceptive element. Its title is, therefore, 'Sutrakrita". 63 Another thought, which seems to touch the "reality more closely, can be put forth regarding the title 'Sutrakrita'. The Dristiwada is five fold- Parikarma 1. 2. Sutra 3. 4. Parwägata 5. Calika Parwanuyoga According to Acarya Virasena the Sutra has an account of other philosophers. As this Agama was composed on that basis only, it was given the title 'Sütrakrita. This meaning seems to be more logical than the other etomological meanings of the word "Sütrakrita'. The 'Suttagada and the 'Suttanipata of the Budhists seem to be identical in their titles. Anga and Anuyoga This Agama has the second place in the Dwadasangi. There are four kinds of Anuyoga- 1. Caranakaranänuooga. 2. Dharmakathānuyoga. 3. Ganitänuyoga. 4. Drawyanuyoga. 1. (a) Samawao, paissagasamawao, Sutra 90. (b) Nandi, Sutra. 82. 2. Kasayapahuda, Part 1, page 134. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 The Curņikāra holds that this Āgama is 'ćaranakaraṇānuyoga (treatise on conduct). Silänkasűri has classified it under Drawyānuyoga' (treatise on substances). According to him the Ācārānga is primarily a čaraņakaranayoga while 'Sūtrakritānga' is primarily a 'Drawyānuyoga", The Samawāya and the Nandi give an account of the 'Dwādaśängi." At the end of the account of the Angas, the lines read 'ewam carņakaranaparuwanayā'. Abhayadeva Súri connotes the meaning of 'carana' as Sramaņa-dharma' and of Karana' as 'Pinda-vićuddbi, Samiti etc.' The currikara has regarded the Kalikasrata as a 'caraṇakaranayoga' and the 'Driştiwäda' as a 'drawyanuyoga'.' The Dwadasangi primarily expounds the Driştiwāda, treatise on substances and secondarily the code of conduct. The Currikara legimately regards this Āgama primarily as a treatise on the code of conduct while the Vrittikāra lying stress upon its ascertainment of Dravya (substance), calls it Dravyašastra (a treatise on substance). Both of these classifications have a dialectical variation. THANAM The title This Agama is the third part of the Dwādaśāngi. It sets up the Jiva, Pudgala etc., in number-order. Hence the title , Thanam'. The Contents Swa-samaya (Achat-philosophy), Para-Samaya as well as swa-samaya and Para-samaya both have been set up in this Agama. The Jiya and the Ajīva, the Loka and the Aloka have been founded here. 5 One-ness of the Jiva and its sevarality, according to the views of the 'Sangraha Naya' and the "Vyavahāra Naya,' have been expounded 1. Sutrakritainga Curni, page 5. iha carananu-o-gena adhikaro. 2. Srirakritangaritti, page, 1. Tatracaranga carnakaranam pradhanyena Vyakhyatam, adhuna awasara yatam drawya pradhanyena sutrakritakhyam dwitiyamangam Vyakbyatumarabhyate. 3. Samawayangayritti, Patra 102. Caranam - Vratasramanadharma Samyamadyanekavidhan. Karanam-Pindavisuddhi Samityadyaneka vidham. Sutrakritanga CursiKaiyasuyam caranakarananuyogo isibhslottar ajjhayanani dhammanuyogo, Surpannattadi ganitanuyogo; ditthiwado dawwanujogotti. 5. Samawao, painnagasamawao, Sutra. 92 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 65 in it. According to the Sangraha Naya, the Jiva is one and the same far as the soul is concerned. From the view point of the 'vyavahāra-naya' each and every Jiva is parted with, i.e. it is divided into two parts according to the knowledge and appaerance, into three parts according to the 'Karma-letna' or 'Phrowge-utpāda' and 'Vināśa', into four parts because of its wandering in the four-fold motion; into five parts from the view point of Pariņāmikādi' five states; into six parts due to the accession to the six directions, such as the East, West, North, South, up-ward and down-ward at the time of transgression to other birth; into seven parts according to the seven kinds of 'Syādasti-Syádnāsti'; into eight parts according to the eight *Karmas'; into nine parts as it changes into the aine substances; and into ten parts from the view point of the *Prithivi-Kāyika', 'Jala Kāyika', 'Agni-Käyika', 'Wāyu-Kāyika', 'Pratyeka Vanaspati-Kāyika', 'Sadhārana Vanaspati-Káyika' species having two organs, species having three organs, species having four organs, and species having five organs. Likewise, this Agama gives an account of one-ness of "Pudgala' etc. and their various Paryāyas' (modifications) counting from two to ten. From the view of 'Paryāyas', one and the same element parts with into innumerable and unlimited parts, and, from the view point of the matter (Dravya), these innumerable parts conform into one and the same element. This exposition of conformity and deformity is well found in this Agama. Samawão The title The Agama is the fourth part of the 'Dwädaśāngi' having the title "Samawao'. The substances, Jiva-Ajiva etc., have been put into divisions or brought down properly in this Agama, therefore, the title “Samawão'. According to the Digamber literature, this Agama speaks of similarity of the Jivadi substances therfore, called the 'Samawão'. The 'Samawao' 1. Kasayapahuda, part 1, page 123. 2. Samawao-Vrithi, patra 1, Samit-Samyaka avetyadhikyena ayanamayah Paticchedo Jivajivadi-vividhapadartha Sarthasya yasaminnasan Samawayah Samawayanti wa, Samawasaranti Samuilanti nanawidha Atmadayo Bhawa Bhawa abhidheya.aya Yasminnasan Samawaya iti. 3. Gommatasara Jivakanda Jiyaprabodhni Tika, gatha 356. **Sam-Sangrahena Sadrisya-Samanyena Avayante joayante jivadipadartha dravya kalabhavan a sritya asmitnniti 'Samawayangam. Nandi, Sutra. 83 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ gives an account of the 'Dwadasangi". And, as it is the fourth part of the 'Dwadasangi', it narrates the 'Samawão, too. The Nandi-Satra discusses the 'Dwadasangi in order. The table of contents of the 'Samawão' has been given in it as under: 1. The description of the Jiva-Ajiva, Loka-Aloka and Swa-Samaya as the well as Para-samaya. 2. The evolution of the number beginning from one to hundred. 3. The account of the Dwadasanga ganipitaka. According to the 'Samawayanga' the table of contents of the 'Samawa-o' is as follows: 1. The description of Jiva-Ajiva, Loka-Aloka and swa-samaya as well as Para-samaya, 66 2. The evolution of the number beginning from one to hundred 3. The account of the 'Dwadasanga-gani- pitaka". 4. Áhära 5. Uéchwäsa 6. Lesya 7. Awasa 8. Upapāta 9. Čyawana 10. Awagaha 11. Vedanä 12. Vidhana 13. Upayoga 14. Yoga 15. Indriya (organs) 16. Kaşaya 17. Yoni 18. Kulakara 1. Se kim tam samawae nam jiva samasijjanti, ajiva samaanjsa jti jivajiva samasijjanti. Sasamae samasijjai, para-samaye samasijjai, sasamaya para sama-e samasijja-i. Loc sa masijiai, aloc samasijjai, lo-a-loe samasijjai, samawaenam ega-i-yanam eguttariyanam thanasaya-niwaddhiyanam bhawanam paruwana adhhawijja-i duwalasa vihassa ya ganipidagssa pallawagge samasijja-i. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19. Tirathankara 20. Ganadhara 21. Cakrawarti 22. Baladeva-Vasudeva!. A comparative study of both the tables of contents makes it clear that the table of contents given in the Nandi is a brief one, and that of the 'Samawa-o' large. The volume of the Sūtra, too, becomes short and long according to the tables of contents. That the 'ekoitarika Vriddhi' (Increasing one by one) takes place upto hundred is mentioned in both the accounts. In either of them, there is no mention of the 'Anekottarika Vriddhi'. The Anekottarika Vriddhi has not at all been mentioned in the Nandi Čūrni, Haribhadriya Vritti and the Malaya Giriyavritti, all the three Abhayadeva Sūri has discuss the Anekottarika Vriddhi in his Vșitti of Samawāyānga. According to him, the Ekottarika Vșiddhi takes place upto huodred and beyond that the Anekottarikā Vriddhi.2 It appears that the Vșittikāra has discussed it not on the account given in the 'Samawāyānga' but on the text then available to him. On reviewing both the accounts, two questions arise 1. Is not the present Samawāyānga different from the account of the Samawāyānga given in the Nandi ? 2. Is the present Samawāyānga is of the Vaćna by Devardhigani ? If so, why then such a variation in both the accounts of the 'Sama wäyānga'? In reply to the first question, it can be said that 'Dwādasānngi' is the final content of the Samawāyānga-Sutra according to the account, relating to the Samawāyānga, given in the Nandi. Many a content has been expounded beyond the 'Dwadaśangi in the present Samawāyānga. It is therefore, established that the present volume of the 'Samawāyānga' is different from that of the account of the Samawāyanga given in the Nandi. 1. Samawa-o, pa-i-nnagasawawo, Sutra. 92. 2. Samawa-o Vritts, patra 105. *ca sabdasya canyatra samband hatdkottarika anekottarika ca, tatra satam yawa tekottarika parata gnekottariketi, Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 Difficult it is to give an assertive answer to the second question. So much, nevertheless, can be said that there had been various Vacanás of the Agamas. This is why a mention of various Vaćanäs (Paritta Vāyaṇā) has been made while giving the account of each and every 'Anga'. Abhayadeva Suri gives a mention of the large (Brihat) Vaćana of the Samawayanga1. From it, this may be inferred that the Nandi gives an account of the Samawayánga relating to the short 'Vaćana." It is established from the Vritti written by him, that Abhayadeva Suri had with him various Vacanäs of this Sütra. There can be two likelihoods regarding the enlarged edition of the "Samawäyänga." 1. That this Sutra is based upon the Vaćana different from that of the Vaćana of Dewardhigani,' or 2. That the portions beyond the 'Dwadasangi' have been added to it after 'Devardhigani'. Had this Sūtra depended on some different 'Vaćana,' there would have been some tradition mentioned. This agelong traditional mention has been coming down that the Jyotis-Kanda is based upon the 'Mathurt Vaćana'. Had the present Samawayanga, too, been based on the Mäthuri Vacanã, there would have. been some traditional mention of it. The first likelihood lacking the probablity of its support, the second. likelihood gains the ground. But it too, is refuted by the Bhagwati, and the Sthänänga. The Bhagwati refers to the final part of the Samawayanga for the full account of Kulakar, Tirathankar etc. Likewise, the final part of the Samawayanga has been referred to for the full account of the BaldevaVasudeva by the Sthänänga also. It is, therefore, obvious that the appendix 1. (a) Samawan Vritti, Patra 58: Brihadvacanayamanantaroktamatisayadwayamcradhi yate. (b) Ibid, Patra 69: Brihadvacanayamidamanyadatisayadwayamadhiyate. 2. SamaWao Vritti, Patra 144 Vacanantaretu paryasana Kalpo tasramentyabhi hitam. 3. Bhagwati Satara 5; Uddesaka 5. 4. Sthananga, 9/19-20. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ was added in the time of Devardhigani only. It is strange that one and the same editor gave two different accounts (in the Samawayanga and the Nandi) of one and the same Agama. 69 There were two main Vacanãs, the Mäthuri and the Vallabhi. There were many other secondary Valanäs also. This is why there are many different readings. These different readings, probabily occured on adding the explanation or appendix portions. This can well be inferred that the later. part of the Dwadasangi in the Samawayanga is its appendix. The account of the appendix was added to the account of the Samawayanga with the result that its table of contents swelled more than the table of the Samawayanga found in the Nandi. There is a summary of eleven stenzas of the 'Prajñāpna' in the appendix. It is a matter of investigation why they were added here ? Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Agama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Agamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसयाणुक्कम आयारो पढमं अभयणं सू० १-१७७ पृ० १-१६ अप्पणी अत्थित-पदं १, आस्सव-पदं ६, संवर- पदं ७, आस्सव परिणाम पदं ८, कम्म-सोय-पदं 8, संवर- साहणा-पद ११, अण्णाण-पदं १३, पुढवि-काइया हिंसा-पदं १५, पुढविकाइयाणं जीवत्तवेदनाबोध- पदं २८, हिंसाविवेग-पदं पद- ३१, समप्पण-पदं ३५, आउकाइयाणं अस्थित्तअभयदान-पदं ३८ आउकाइयहिंसा-पदं ४०, आउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ५१, हिसाविवेग- पदं ५४ तेउकाइयाणं अस्थित्त-पदं ६६, तेउकाइयहिंसा-पदं ६६, तेउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध- पदं ८२ हिंसाविवेग-पदं ८५, गिहचाइणो वि गिहवास-पदं ६३, वणस्सइकाइयहिंसा-पदं ६, वणस्सइकाइयाणं जीवत्त- वेदणाबोध- पदं १९०, artaइजीवाणं माणुसे तुला- पद ११३ हिंसाविवेग-पदं ११४, संसार- पदं ११८, तसकाइयहिंसा-पदं १२३, तसकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध - पदं १३७, हिंसाविवेग पदं १४०, अत्ततुला- पद १४५, वाउकाइर्याहंसा-पदं १५०, वाउकाइयाणं जीवत्त-वेदणावोध - पदं १६१, हिंसाविवेग-पदं १६४, मुणि-संबोध-पदं १६६, हिसाविवेग-पदं १७६ । बीयं अयणं सू० १-१८६ पृ० १७-२७ आसत्ति-पदं, असरणाणुपेहापुव्वं अप्पमाद-पदं ४, अरति-निवत्तण-पदं २७, अणगार-पदं ३६, दंड- समादाण-पदं ४०, हिसाविवेग-पदं ४६, अणासत्ति-पदं ४७, समत्त - पदं ४६, परिग्गह- तद्दोस - पदं ५७, भोग- भोगि-दोस-पदं ७५, आहारस्स अणासत्ति-पदं १०४, कामअणासत्ति-पदं १२१, तिगिच्छा-पदं १४०, परिग्गह परिच्चाय- पदं १४८, अणासत्तस्स ववहारपदं १६०, बंध - मोक्ख पदं १७१, धम्मकहा-पदं १७४ । तइयं अभयणं सू० १-८७ पृ० २८-३३ सुत्त- जागर-पदं १, परमबोध-पदं २६, अणेगचित्त-पदं- ४२, संजमाचरण -पदं ४४, अज्झत्थपद ५१, कसायविरइ-पदं ७१ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ चत्थं अयणं सू० १-५३ पृ० ३४-३८ सम्मावाए अहिंसा-पदं १, सम्मानाने अहिंसापरिक्खापदं १२ सम्मातव पदं २७, कसायविवेग-पदं ३४, सम्माचरित पदं ४० । पंचमं अभयणं सू० १-१४० पृ० ३६-४७ काम-पदं १, अप्पमादमग्ग-पदं १६, परिग्गह-पदं ३१, अपरिग्गह- कामनिव्वेयण-पदं ३६, अवियत्तस्स एगल्लविहार-पदं ६२, इरिया-पदं ६६, कम्मणो बंध-विवेग पदं ७१, बंभचेर-पदं ७५, आयरिय-पदं ८६, सद्धा-पदं १३, मज्झत्थ- पदं १६, अहिंसा-पदं ६६, आय पदं १०४, मग्गदंसण-पदं १०७, सच्चस्स अणुसीलण पद ११६, परमप्प-पदं १२३ । छट्ठ अभयणं सू० १-११३ पृ० ४८-५६ नाणस्स निरूवण-पदं १, अणतपणा अवसाद-पदं ५ पाणि-किलेस - पदं १२, तिमिच्छाप संगे अहिंसा-पदं १५ सयणपरिच्चायधुत-पदं २४, कम्मपरिच्चायधुत पदं ३०, उवगरणपरिच्चायधुत-पदं ५६, सरीरलाघवधुत - पदं ६६, संजमधुत-पदं ७०, विषयधुत-पदं ७४, गोरवपरि चाय धुत पदं ७६ तितिक्वाघुत-पदं ६६, धम्मोवदेसधुत-पदं १००, कसाय परिचायतपद १०६ । अट्ठ अभय सू० १-१३० श्लोक १-२५ पृ० ५७-७१ अणविमोक्ख पदं १, असम्मायार-पदं ३, विवेग-पदं ६, अहिंसा-पदं १७, अणाचरणीयविमोक्ख पदं २१, पव्वज्जा-पदं ३०, अपरिग्गह-पदं ३२, आहारहेउ-पदं ३४, अगणि-असेवणपदं ४१, उवगरण - विमोक्ख पदं ४३, शरीर-विमोक्ख पदं ५७, उवगरण - विमोक्ख पदं ६२, गिलाणस्स भत्तपरिण्णा-पदं ७५ वेयावच्चपकप्प-पदं ७६, उवगरण- विमोक्ख पदं ८५, एगत्तभावणा-पदं ९७, अणासाय- लाघव पदं १०१, संलेहणा-पदं १०५, इंगिणिमरण-पदं १०६, उवगरण-विमोक्ख-पदं १११, वेयावच्चपकप्प-पदं ११६, पाओवगमण-पदं १२५, अणसण-पदं श्लो० १, भक्त्तपच्चकखाण-पदं श्लो० २, इंगिणिमरण-पदं श्लो० १२, पाओवगमणपदं श्लो० १६ । नवमं अभयणं • श्लोक ७० पृ० ७२-७६ पढमो उद्देसो-- भगवओ चरिया- पद श्लोक १-२३, बीओ उद्देसो--- भगवओ सेज्जा-पदं श्लोक १-१६, तइओ उद्देसो- भगवओ परीसह उवसग्ग-पदं श्लोक १-१४, चउत्थो उद्देसोभगवओ अतिरिच्छा-पदं श्लोक १-३, भगवओ आहार चरिया - पदं श्लोक ४-१७ आयारचूला पढमं अभयणं सू० १-१५६ पृ० ८३-११६ सचित्त-संसत्त असणादिपदं १, ओसहि-आदि-पदं ४, अण्णउत्थिय-गारत्थिय-सद्धि-पदं, Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्सिपडियाए-पदं १२, समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-पद १६, कुल-पदं १६, अदमी-आदि-पध्वपदं २१, कुल-पदं २३, महामह-पद २४, संखडि-पदं २६, विचिगिच्छा-समावण्ण-पो 15 सव्वभंडगमायाए-पद.३७, कुल-पद ४१, संखडि-पद ४२, खीरिणी-गावी-पदं४४ मा पदं ४६, विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ५०, वियाल-परक्कम-पदं ५२, विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ५३. कंटक-बोंदिय-पदं ५४, अणावायमसलोय-चिटण-पदं ५५, परिभायण-संभुजण-पदं ५७, पव्व. पविट्समणादि-उवाइक्कमण-पदं ५८, भत्तट्ठ-समुदितपाणाणं उज्जुगमण-पदं ६१, गाहावइकलपविएस्स अकरणिज्ज-पदं ६२, पुरेकम्म-आदि-पदं ६३, पिहुय-आदि-कोण-पदं १२. लोक पदं १३. अगणि-णिक्खित्त-पदं ८४, मालोहड-पदं ८७, मट्टिओलित्त-पदं १०. पढविकारपइट्ठिय-पदं ६२, आउकाय-पइट्ठिय-पदं ६३, अगणिकाय-पइट्ठिय-पदं ६४, अच्चुसिग-बीयणपदं ६६, वणस्सइकाय-पइट्ठिय-पदं ९७, तसकाय-पइट्ठिय-पदं ६८, पाणग-जाय-पदं हर गंध-आघायण-पदं १०५, साल्य-आदि-पदं १०६, पिप्पलि-आदि-पदं १०७, पलंब-जाय-प १०८, पवाल-जाय-पदं १०६, सरदुय-जाय-पदं ११०, मंथु जाय-पदं १११, आमडाग-आदिपदं ११२, उच्छ्र-मेरग-आदि-पदं ११३, उप्पल-आदि-पदं ११४, अग्गबीय-आदि-पदं ११५. उच्छु-पदं ११६, लसुण-पदं ११७, अस्थिय-आदि-पदं ११८, कण-आदि-पदं ११६, पच्छाकम्मपदं १२१, पुरापच्छासंथुय-कुल-पदं १२२, गिलाण पदं १२४, माइट्ठाण-पदं १२५, बहियानीहड. पदं १२८, माइट्ठाण-पदं १३०, बहुउज्झिय-धम्मिय-पदं १३३, अजाणया-लोण-दाण-पदं १३६. माइट्ठाण-पदं १३८, मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३६, सत्त पिंडेसणा सत्त पाणेसणा-पदं १४०।। बीयं अज्झयणं सू० १-७७ पृ० १२०-१३८ उवस्सयएसणा-पदं १, अस्सिपडियाए उवस्सय-पदं ३, समण-माहणाइ-समूहिस्स-उवस्सयपदं ७, परिकम्मिय-उवस्सय-पदं १०, बहिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४, अंतलिक्ख-जायउवस्सय-पदं १८, सागारिय-उवस्सय-पदं २०, तण-पलालाच्छाइय-उवस्सय-पदं ३१, वज्जियन्व-उवस्सय-पदं ३३, कालाइक्कंत-किरिया-पदं ३४, उवट्ठाण-किरिया-पदं ३५, अभिक्कतकिरिया-पदं ३६, अणभिक्कंत-किरिया-पदं ३७, वज्ज-किरिया-पदं ३८, महावज्ज-किरियापदं ३६, सावज्ज-किरिया-पदं ४०, महासावज्ज-किरिया-पदं ४१, अप्पसावज्ज-किरिया-पदं ४२, उवस्सय छलण-पदं ४४, उवस्सय-जयण-पदं ४५, उबस्सय-जायणा-पदं ४७, सेज्जायरनाम-गोय-जायणा-पदं ४८, उवस्सय-विसुद्धि-पदं ४६, संथारग-पदं ५७. संथारग-पडिमापदं ६२, संथारग-पच्चप्पण-पदं ६८, उच्चारपासवण-भूमि-पदं ७०, सयण-विहि-पदं ७२। . तइयं अज्झयणं सू०१-६२ पृ० १३६-१५२ वासावास-पदं १, गामाणुगाम-विहार-पदं ४, नावा विहार-पदं १४, नाबा-विहार-पदं २४, जंघासंतारिम-उदग-पदं ३४, विसमद्राण-परक्कम-पदं ४१, अभिणिचारिय-पदं ४४, पडिपहिय-पदं ४५, अंगचेद्वापुव्वं निभाण-पदं ४७, आयरिय-उवज्झाय-सद्धि विहार-पदं ५०, आहारातिणिय-सद्धि-विहार-पदं ५२, पाडिपहिय-पदं ५४, वियाल-पदं ५६, आमोसगपदं ६०। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ चत्थं अभय सू० १-३६ पृ० १५३-१६० वइ-अणायार-पदं १, सोडस- वयण-पदं ३, अणुवोइ - णिट्टाभासि - पदं ५, भाज्जात-पदं ६, सावज्ज - भासा - पदं १०, असावज्ज-भासा-पदं ११, आमंतणी भासा -पदं १२, विधि-निसिद्धभासा-पदं १६, कक्कस -भासा-पदं १६, अकवकस भासा - पदं २०, सावज्ज असावज्ज-भासा-पद २१, अणुवी - णिट्टाभासि-पदं ३८ । पंचमं अभयणं सू० १-५१ पृ० १६१-१७२ वत्थजाय-पदं १, अद्धजोयण-मेरा-पदं ४, अस्सि पडियाए वत्थ-पद ५, समण- माहणाइसमुद्दिस्स- वत्थ-पदं, भिक्खु-पडियाए-कीय माइ वत्थ - पदं १२, महद्ध णमुल्लवर-पदं १४, अजिवत्थ-पदं १५, वत्थपडिमा पद १६, संगार - वयणपुव्वं वत्य-पदं २२, वत्थ- आसण पदं २३, वत्थ - उच्छोलण-पदं २४, वत्थ-विसोहण-पदं २५, वत्थ-पडिलेहण-पद २६, सअंडाइवत्थ-पदं २८, अप्पंडाइ-वत्थ - पदं २६, वत्य-परिकम्म-पदं ३१, वत्थ आयावण-पदं ३५ णो धोएज्जा एज्जा-पदं ४१, सव्वचीवरमायाए- पदं ४२, पाडिहारिय- वत्थ-पद ४६, वत्थविक्किया-पद ४८, आमोसग पदं ४६ । छट्ठ अज्झणं सू० १-५६ पृ० १७३ १८४ पायजाय-पदं १, एगपाय-पदं २, अद्धजोयण- मेरा-पदं ३, अस्सिपडियाए पाय-पदं ४, समणमाहणाइ समुद्दिस्स पाय-पदं ८ भिक्खु-पडियाए कीयमाइ पदं ११, महद्वणमुल्लपाय-पदं १३, पाय- बंधण पद १४, पाय-पडिमा पद १५, संगार-वयणपुर्व पाय-पदं २१, पाय अभंगणपद २२, पाय - आघसण-पद २३, पाय उच्छोलण-पदं २४, पाय विसोहण-पदं २५, सपाणभोयण-डिग्गह- पदं २६, पडिग्ग्रह - पडिलेहण-पदं २७, सअंडाइ- पाय-पदं २६, अप्पंडा-पायपदं ३०, पाय-परिकम्मपदं ३२, पाय- आयावण-पदं ३८, पडिग्गह- पेहा-पदं ४४, सीओदगादिसंजुत्तपाय-पद ४६, सपडिग्गमायाए- पदं ५०, पाडिहारिय-पडिग्गह-पदं ५४, पायविकिकयापदं ५६, आमोसग पदं ५७ । सत्तमं अज्झयणं सू० १-५८ पृ० १८५-१९४ अदिन्नादाण - पच्चक्खाण-पदं १, ओग्गह-पद ३, अंबओग्गह-पदं २५, उच्छुओग्गह-पदं ३२, लसुण-ओग्गह- पदं ३६, ओग्गह- पदं ४६, ओम्ग्रह - पडिमा पदं ४८, पंचविह-ओग्गह-पदं ५७ । अट्ठमं अज्झयणं सू० १-३१ पृ० १६५-१६६ ठाण एसणा-पदं १, अस्सिपडियाए ठाण-पदं ३, समण-माहणाइ समुद्दिस्स-ठाण-पदं ७, परिकम्मिय ठाण-पदं १०, बहियता निस्सारिय ठाण-पद १४, ठाण-पडिमा पद १६, संथारपृच्चप्पण-पदं २२, उच्चारपासवण भूमि-पदं २४, ठाण-विहि-पद २६ । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं सू० १-१७ पृ० २००-२०३ णिसीहिया-एसणा-पदं १. अस्सिपडियाए णिसीहिया-पदं ३, समण-भाहणाई-समुद्दिस्स णिसीहिया-पदं ७. परिकम्मिय-णिसीहिया-पदं १०, बहिया निस्सारिय-णिसीहिया-पदं १४ ।। दसमं अज्झयणं सू० १-२६ पृ० २०४-२०८ पाय-पुंछण-पदं १, थडिल-पदं २। एक्कारसमं अज्झयणं पृ० २०६-२१२ वितत-सह-कण्णसोय-पडिया पदं १, तत-सह-कपणसोय-पडिया-पदं २, ताल-सह-कण्णसोयपडिया-पदं ३, झसिर-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं ४, विविह-सद्द-कण्णसोय-पडिया-पदं ५. सद्दासत्ति-पदं १६ । बारसमं अज्झयणं सू०१-१७ पृ० २१३-२१५ विविह-रूव-चक्खूदंसण-पडिया-पदं १. रूवासत्ति-पदं १६ । तेरसमं अज्झयणं सू० १-८० पृ० २१३-२२३ किरिया-पदं १, पाद-परिकम्म-पदं २, काय-परिकम्म-पदं १२, वण-परिकम्म-पदं १६, गंड-परिकम्म-पदं २८, मल-णीहरण-पदं ३५, वाल-रोम-पदं ३७, लिक्ख-जूया-पदं ३८, पादपरिकम्म-पदं ३६, काय-परिकम्म-पदं ४६, वण-परिकम्म-पदं ५६, गंड-परिकम्म-पदं ६५, मल-णीहरण पदं ७२, वाल-रोम-पदं ७४, लिक्ख-जूया-पदं ७५, आभरण-आविंधण-पदं ७६, पाद-परिकम्म-पदं ७७, तिगिच्छा-पदं ७८ । चउद्दसमं अज्झयणं सू०१-८० पृ० २२४-२३० किरिया-पदं १, पाद-परिकम्म-पदं २, काय-परिकम्म पदं १२, वण-परिकम्म-पदं १६, गडपरिकम्म-पदं २८, मल-णीहरण-पदं ३५, बाल-रोम-पदं ३७, लिक्ख-जूया-पदं ३८. पादपरिकम्म पदं ३६, काय-परिकम्म-पदं ४६, वण-परिकम्म-पदं ५६, गंड-परिकम्म-पदं ६५, मल-णीहरण-पदं ७२, बाल-रोम-पदं ७४, लिक्ख-जूया-पदं ७५, आभरण-आबिंधण-पदं ७६. पाद-परिकम्म-पदं ७७, तिगिच्छा-पदं ७८ । पनरसमं अज्झयणं सू०१-७८ पृ०२३१-२४८ भगवओ-चवणादि-णक्खत-पदं १, गम्भ-पदं ३, चवण-पदं ४, गब्मसाहरण-पदं ५, जम्मपदंर, नामकरण-पदं १२, बाल-पदं १४, बिवाह-पदं १५, नाम-पदं १६, परिवार-पदं १७, माउ-पिउ-काल-पदं २५, अभिणिक्खमणाभिप्पाय-पदं २६, देवागमण-पदं २७, अलंकरण-सिबिया करण-पदं २८, अभिणिक्खमण-पदं २६, लोय-पदं ३०, सामाइयचरित्त-गहण-पदं ३२, मणपज्जवनाण-लद्धि-पदं ३३, अभिग्गह-पदं ३४, विहार-पदं ३५, Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ केवलनाण-लद्धि-पदं ३८, देवागमण - पदं ४०, धम्मोवदेस-पदं ४१, अहिंसा महत्वय-पदं ४३, अहिंसामहव्वयस्स भावणा-पदं ४४, सच्च महव्वय-पदं ५०, सच्च महव्वयस्स भावणा-पदं ५१, तेणगमहव्वय-पदं ५७, अतेणग महव्वयस्स भावणा-पदं ५८, बंभचेर महव्वय-पदं ६४, बंभचेरमव्वय स्वभावणा-पदं ६५, अपरिग्गहमहन्वय-पदं ७१, अपरिग्गहमहन्वयस्स भावणा-पदं ७२ । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं सत्यपरिणा पढमो उद्देस अप्पणी अत्थित-पदं १. सुयं मे आउस ! तेणं भगवया एवमक्खायं' - इहमेगेसि नो सण्णा भवइ, तं जहा वा पुरत्थिमाओ वा दाहिणाओ पच्चत्थिमाओवा उत्तराओ वा उड्डाओ वा वा दिसाओ' 'अहे 'अण्णयरीओ वा दिसाओ अणुदिसाओ वा २. एवमेगेसि णो णातं भवति - अस्थि मे दिसाओ दिसाओ दिसाओ आगओ दिसाओ आगओ दिसाओ आगओ आगओ १. ० मखायं ( ख ) 1 २. अहे दिसाओ वा (क, ख, ग, घ, च) अहो दिसाओ वा (छ) । ३. अण्णयरीओ वा दिसाओ वा अणुदिसायो (क, ग, छ ) ; अण्णयरीओ दिसाओ वा अणु आगओ अहमंसि आगओ अहमंसि अहमंसि अहमंसि अहमंसि अहमंसि अहमंसि अहमंसि ३ आगओ आगओ ओववाइए, के अहं आसी ? के वा इओ चुओ' इह पेच्चा भविस्सामि ? आया ओववाइए, णत्थि मे आया दिसाओ वा (घ ); अण्णतराए दिसाओ वा ओवा (च ) | भवति, तं जहा (चू) । ओववाहिते ( क ) ; उववादिए (च) । ४. ५ ६. चुते (घ ) । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो ३. सेज्जं पुण जाणेज्जा--सहसम्मुइयाए', परवागरणेणं, अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा तं जहा पुरस्थिमाओ' वा दिसाओ आगओ अहमंसि, *दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्डाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि, ४. एवमेगेसिं जं णातं भवइ-अस्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ 'दिसाओ अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ', सन्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ 'जो आगओ अणुसंचरइ,' सोहं ! ५. से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई ।। अहे आस्सव-पदं ६. अकरिस्सं चहं, कारवेसुं चहं, करओ यावि समणुण्णे भविस्सामि ॥ संवर-पदं ७. एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्म-समारंभा परिजाणियव्वा भवति ।। आस्सव-परिणाम-पवं ८. अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसानो वा अणुसंचरइ, सव्वारे दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ सहेति, अणेगरूवाओ जोणीओ संधेई", विरूवरूवे फासे य" पडिसंवेदेइ ।। १. संमदियाए (क); सहसंमुइयाओ (घ); ७. X (क, ख, ग, च)। सहस्समुइए (च)। ८. काराविस्सं (क, ख, ग); कारावेस्स (घ); २. पुरिस्थि° (ख, च)। कारावेस्सं (च)। ३. सं० पा०-अहमंसि जाव अण्णयरी। ६. कम्मा (क, घ)। ४. णाणं (ख); णायं (घ)। १०. संधावती (चू); संधेइ (चूपा); संधावइ ५. दिसाओ वा अणु दिसाओ (ख, छ); दिसाओ (वृपा)। वा अणुदिसाम्रो य (चू, वृ)। ११. x (ख, ग, घ, च)। ६. अणुसंसरइ अणुसंभरति (चूपा); अणुसंसरइ १२. ° संवेतेइ (क); ° संवेदयइ (घ, च)। (वृपा)। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (सत्थपरिण्णा-बीओ उद्देसो) कम्म-सोय-पदं ६. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया || १०. इमस्स चैव जीवियस्स, परिवंदण माणण-पूरणाए, जाई- मरण- मोयणाए, दुक्ख पडिघाय हेउं ॥ संवर-साहणा-पदं ११. एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्म-समारंभा परिजाणियव्वा भवंति ॥ १२. जस्सेते लोगंसि कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे । --त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो अण्णाण-पदं १३. अट्टे लोए परिजुष्णे, दुस्संबोहे अविजाणए ॥ १४. अस्सिं लोए पव्चहिए | पुढविकाइयहिंसा-पदं १५. तत्थ तत्थ पुढो पास', आतुरा' परितावेंति ॥ १६. संति पाणा पुढो सिया || १७. लज्जमाणा पुढो पास ॥ १८. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ॥ १६. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहि पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे " अणे वगरूवे पाणे विहिंसति ।। २०. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया ॥ २१. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण माणण- पूयणाए, जाई- मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं ॥ २२. से सयमेव पुढवि -सत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा पुढवि-सत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा पुढवि-सत्थं समारंभंते' समजुजाणइ । २३. तं से अहियाए, तं से अबोहीए ॥ २४. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए ॥ १. ° भोयणाए (चु, वृपा ) 1 २. पच्चविए (च ) 1 ३. पासे (क, घ) । ४. मातुरा अस्सि (वृ) । ५ ५. संभारंभमाणा ( ख, ग, छ) । ६. अणेग (घ, च) । ७. समारंभमाणे (घ ) । 0 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो २५. सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु गरए । २६. इच्चत्थं गढिए लोए । २७. जमिणं 'विरूवरूवेहि सत्थेहि" पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिसइ ।। पुढविकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं २८. से बेमि-अप्पेगे अंधमन्भे', अप्पेगे अंधमच्छे । २६. अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे 'गुप्फमन्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे अप्पेगे जाणमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, अप्पेगे णाभिमब्भे, अप्पेगे णाभिमच्छे, अप्पेगे उयरमब्भे, अप्पेगे उयरमच्छ, अप्पेगे पासमन्भे, अप्पेगे पासमच्छे, अप्पेगे पिट्ठमब्भे', अप्पेगे पिटुमच्छे, अप्पेगे उरमब्भे, अप्पेगे उरमच्छे, अप्पेगे हिययमब्भे, अप्पेगे हिययमच्छे, अप्पेगे थणमब्भे, अप्पेगे थणमच्छे, अप्पेगे खंधमन्भे, अप्पेगे खंधमच्छे, अप्पेगे बाहुमब्भे, अप्पेगे बाहुमच्छे, अप्पेगे हत्थमन्भे, अप्पेगे हत्थमच्छे, अप्पेगे अंगुलिमब्भे, अप्पेगे अंगुलिमच्छे, अप्पेगे णहमन्भे, अप्पेगे णहमच्छे, अप्पेगे गीवमब्भे, अप्पेगे गीवमच्छे, अप्पेगे हणुयमब्भे अप्पेगे हणुयमच्छे, अप्पेगे होट्रमब्भे", अप्पेगे हो?मच्छे, अप्पेगे दंतमब्भे, अप्पेगे दंतमच्छे, अप्पेमे जिब्भमब्भे, अप्पेगे जिब्भमच्छे, अप्पेगे तालुमब्भे, अप्पेगे तालुमच्छे, अप्पेगे गलमब्भे, अप्पेगे गलमच्छे, अप्पेगे गंडमब्भे, अप्पेगे गंडमच्छे, अप्पेगे कण्णमब्भे, अप्पेगे कण्णमच्छे, अप्पेगे णासमन्भे", अप्पेगे णासमच्छे, अप्पेगे अच्छिमब्भे, अप्पेगे अच्छिमच्छे, अप्पेगे भमुहमब्भे, अप्पेगे भमुहमच्छे, अप्पेगेणिडालमन्भे, अप्पेगे णिडालमच्छे, अप्पेगे सीसमन्भे', अप्पेगे सीसमच्छे ।। ३०. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । १. ४ (घ)। जाणुभन्भे (च)। २. निरए (क, ख, घ, च)। ८. पुट्ठि° (क); पिट्टि (ख, ग, च); पट्टि ३. ° रूवेसु सत्येसु (क, च, छ)। ४. समारंभमाणे (क, ख, ग, च, छ)। ६. हणुम° (क, ध, च, छ)। ५. अत्त° (च)। १०. उट्ठ ° (घ)। ६. मच्चे (घ)। ११. नक्क° (ध, च)। ७. पुप्फमब्भे अप्पेगे एवं जंघापुप्फगमन्भे अप्पेगे १२. सिर ° (च) । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (सत्थपरिणा-तइओ उद्देसो) हिंसाविवेग-पदं ३१. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति ॥ ३२. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति ॥ ३३. तं परिणाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवण्णेहिं पढवि-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा ।। ३४. जस्सेते पुढवि-कम्म-समारंभा परिण्णाता भवंति, से हु मुणी परिण्णात-कम्मे । -त्ति बेमि ॥ तइओ उद्देसो समप्पण-पदं ३५. से बेमि---से' जहावि अणगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे', अमायं कुब्वमाणे वियाहिए। ३६. जाए सद्धाए णिक्खंतो, तमेवअणुपालिया' । 'विजहित्तु विसोत्तियं ॥ ३७. पणया वीरा महावीहि । आउकाइयाणं अत्थित्त-अभयवाण-पदं ३८. लोगं च आणाए अभिसमेच्चा' अकुतोभयं ।। ३६. से बेमि-णेव सयं लोग अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइखेज्जा। जे लोयं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोयं अब्भाइक्खइ॥ आउकाइयहिंसा-पदं ४०. लज्जमाणा" पुढो पास ।। ४१. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा।। ४२. जमिण विरूवरूवेहि सत्थेहि उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। १. °काय° (च)। २. X (क, छ)। ३. निकाय ° (चू, वृपा)। ४. तामेव (घ, च); अणु पालेज्जा (७) । ५. विजहिता (ख, ग, घ, च); तिन्नोहुसि विसोत्तियं (च); विजहिता पुव्वसंजोगं (वृपा)। ६. ° समिच्चा (ख, घ)। ७. अट्टे लोए परिजुण्णे, दुस्संबोहे अविजागए, अस्सि लोए पब्वहिए, तत्थ-तत्थ पुढो पास, आतुरा परितावेति । एस आढतं पुढविक्काइयउद्देसयगमेणं धुवगंडिया सुत्तत्थतो भाणिय व्वा अप्पेगे अंधमन्भे (च)। ८. अणेग (ग, घ)। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो ४३. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता ॥ ४४. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं ॥ ४५. से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अण्णे वा' उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति ।। ४६. तं से अहियाए, तं से अबोहीए। ४७. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए । ४८. सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा' अंतिए इहमेगेसिं गायं भवति -- एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए । ४६. इच्चत्थं गढिए लोए। ५०. जमिणं 'विरूवरूवेहि सत्थेहि" उदय-कम्म-समारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे' पाणे विहिंसति ।। आउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ५१. से बेमि-~'अप्पेगे अंधमन्भे, अप्पेगे अंधमच्छे ।। ५२. अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे ।। ५३. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए" ॥ हिसाविवेग-पदं ५४. से बेमि–संति पाणा उदय-निस्सिया जीवा अणेगा । ५५. इहं च खलु भो ! अणगाराणं उदय-जीवा वियाहिया ॥ ५६. सत्थं चेत्थ अणुवीइ पासा ।। ५७. 'पुढो सत्थं पवेइयं ॥ ५८. अदुवा अदिण्णादाणं ॥ ५६. कप्पइ णे", कप्पइ णे पाउं, अदुवा विभूसाए । १.४ (ख, ग) निर्देशेन गृहीतानि सन्ति । पूर्णपाठार्थ २. X (ध, च)। द्रष्टव्यम्-१२२८-३० । ३. x (क, ख, ग)। ७. इह (छ)। ४. ° रूवेसु सत्थेसु (च) ८. चेत्यं (क, ख, छ)। ५. अणेग° (घ, च)। ६. पास (घ, च)। ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ); एतानि १०. पुढोऽपासं (वृपा)। श्रीणि सूत्राणि वृत्तौ न व्याख्यातानि प्रतिष्वपि ११. णो (प)। नोपलभ्यन्ते, केवलं चूर्णादेव ध्रवकण्डिका Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय (सत्यपरिण्णा --- चउत्थो उद्देसो) ६०. पुढो सत्थेहि विउट्टंति ॥ ६१. एत्थवि तेसि णो णिकरणाए । ६२. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवति ॥ ६३. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति || ६४. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं उदय सत्थं समारंभेज्जा, जेवन्नेहि उदय-सत्यं समारंभावेज्जा, उदय-सत्थं समारंभंतेवि अण्णे ण समणुजाणेज्जा | ६५. जस्सेते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिष्णात कम्मे । -त्ति बेमि ॥ चउत्थो उद्देसो व सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, शेव अत्ताणं अब्भाइवखेज्जा ।। जे लोगं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ । जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ ॥ ते काइयाणं अस्थित्त-पदं ६६. ' से बेमि" जे दी लोग - सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे । जे असत्यस्स खेयणे, से दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे || ६८. वीरेहिं एवं अभिभूय दिट्ठ, संजतेहि सया जतेहि सया अप्पमत्तेहिं ॥ ६७. काय हिंसा-पदं ६६. जे पमत्ते गुणट्टिए, से हु दंडे पवुच्चति ॥ ७० तं परिणाय मेहावी इयाणि जो जमहं पुव्वमकासी पमाएणं ॥ ७१. लज्जमाणा पुढो पास' ॥ ७२. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ।। ७३. जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अण्णे वगरूवे पाणे विहिंसति ॥ ७४. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया | ७५. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण माणण- पूयणाए, जाई- मरण-मोयणाए, दुक्ख पडिघाउ || ७६. से सयमेव अगणि- सत्यं समारंभइ, अण्णेहिं वा अगणि-सत्यं समारंभावेइ, अण्णे वा अगणि-सत्थं सभारंभमाणे समणुजाणइ || १. सेयं मि (च) । २. गुणट्ठी (क, वृ) ; गुणट्ठीए ( ख, ग ) । ३. ध्रुवगंडियं भणिऊणं जाव से बेमि (च्) । ४. × (च) 1 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० आयारो ७७. तं से अहियाए, तं से अबोहीए॥ ७८. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए । ७६. सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेहि णायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए । इच्चस्थं गढिए लोए॥ ८१. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहि अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सस्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥ तेउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ८२. से बेमि-अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे ।। ८३. अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे ॥ ८४. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । हिंसाविवेग-पदं ८५. से बेमि-संति पाणा पुढवि-णिस्सिया, तण-णिस्सिया, पत्त-णिस्सिया, कट्टपिस्सिया, गोमय-णिस्सिया, कयवर-णिस्सिया। संति संपातिमा पाणा, आहच्च संपयंति य'। अणि च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जति ।। जे तत्थ संघायमावज्जति, ते तत्थ परियावज्जंति' । जे तत्थ परियावज्जति, ते तत्थ उद्दायति ।। ८६. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्छेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ।। ८७. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति ।। ८८. तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं अगणि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवण्णेहि अगणि-सत्थं समारंभावेज्जा, अगणि-सत्थं समारंभमाणे अण्णे न समणुजाणेज्जा ॥ ८६. जस्सेते अगणि-कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे। -त्ति बेमि॥ १. द्रष्टव्यम्- ११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. X (क, ख, ग, च)। ३. विज्जति (क, ख, छ)। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (सत्थपरिण्णा-पंचमो उद्देसो) पंचमो उद्देसो अणगार-पदं ६०. तं' णो करिस्सामि समुट्ठाए॥ ६१. मंता' मइमं अभयं विदित्ता॥ १२. तं जे णो करए एसोवरए, एत्थोवरए एस अणगारेत्ति पवुच्चइ ।। गिहचाइणो वि गिहवास-पदं १३. जे गुणे से आवटे, जे आवट्टे से गुणे ॥ १४. उड्ढं अहं तिरियं पाईणं 'पासमाणे रूवाइं पासति", 'सुणमाणे सद्दाइं सुणेति। ६५. उड्ढं अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सद्देसु आदि ।। ६६. एस लोए वियाहिए ।। ६७. एत्थ अगुत्ते अणाणाए । १८. पुणो-पुणो गुणासाए, वंकसमायारे, पमत्ते गारमावसे ॥ वणस्सइकाइय हिंसा-पदं ६६. लज्जमाणा पुढो पास। १००. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ।। १०१. जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभ माणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। १०२. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता।। १०३. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं ।। १०४. से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वणस्स इ-सत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ ॥ १०५. तं से अहियाए, तं से अबोहीए । १०६. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। १०७. सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसि णायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए । १. ते (च)। ५. सुणिमाणि सुणेति (चू); सुणमाणो सदाई २. मत्ता (क, घ, च)। सूणेति । एवं गंधरसफासे हि वि भाणियग्वं ३. अवं (१); अहे य (ख)। (चूपा)। ४. पासियाई दरिसेति (चू); पस्समाणो रूवाई ६. धुवगंडिया (चू) ! पासइ (चूपा)। ७. अणेग° (ख, ग, च)। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ १०८. इच्चत्थं गढिए लोए । १०६. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्स इ-सत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥ areसइकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ११०. से बेमि - अप्पेगे अंधमन्भे, अप्पेगे अंधमच्छे || १११. अप्पे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे'॥ ११२. अप्पेगे संपमारए अप्पे उद्दव || वणस्सजीवाणं माणुस्सेण तुलणा-पदं ११३. से बेमि - इमपि जाइधम्मयं एयंपि जाइधम्मयं । इमपि बुड्डिधम्मयं, एपि धम्मयं । इमं चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं । इमपि छिन्नं मिलाति, एपि छिन्नं मिलाति । इमपि आहारगं, एयंपि आहारगं । इमंपि अणिच्चयं, एयंपि अणिच्चयं । इमंपि असासयं, एयंपि असासयं । इमंपि चयावचइयं, एपि चयावचइयं । इमपि विपरिणामधम्मयं एयंपि विपरिणामधम्मयं ॥ हिंसाविवेग-पर्व ११४. एत्थ सत्यं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवति ॥ ११५. एत्थ सत्यं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति || ११६. तं परिण्णाय मेहावी - मेव सयं वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं वणस्स - सत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे वणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा | ११७. जस्सेते वणस्सइ सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णाय -कम्मे । -त्ति बेमि ॥ आयारो छट्टो उद्देस संसार-पदं ११८. से बेमि - संतिमे तसा पाणा, तं जहा - अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओववाइया || ११६. एस संसारेति पवुच्चति ॥ १. द्रष्टव्यम् - ११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. ओवचइयं (क, घ, च, छ, चू); चयावचयं ( ख, ग ) । ३. संसारित्ति (क, ख ) । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (सत्थपरिणा-छट्टो उद्देसो) १३ १२०. मंदस अवियाणओ॥ १२१. णिज्झाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं ॥ १२२. सव्वेसि पाणाण सव्वेसिं भूयाण सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अस्सायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति बेमि ॥ तसकाइयहिंसा-पदं १२३. तसंति पाणा पदिसोदिसासु य॥ १२४. तत्थ-तत्थ पुढो पास, आउरा परितार्वेति' । १२५. संति पाणा पुढो सिया ।। १२६. लज्जमाणा पुढो पास ॥ १२७. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ॥ १२८. जमिणं विरूवरूदेहि सत्थेहिं तसकाय-समारंभेणं तसकाय-सत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥ १२६. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । १३०. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं ॥ १३१. से सयमेव तसकाय-सत्थं समारंभति, अण्णेहि वा तसकाय-सत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा तसकाय-सत्थं समारंभमाणे समणुजाण ॥ १३२. तं से अहियाए, तं से अबोहीए॥ १३३. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए ॥ १३४. सोच्चा भगवओ, अणगाराणं 'वा अंतिए" इहमेगेसि णायं भवइ-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए । १३५. इच्चत्थं गढिए लोए॥ १३६. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय-समारंभेणं तसकाय-सत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। तसकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं १३७. से बेमि-अप्पेगे अंघमन्भे, अप्पेगे अंधमच्छे । १३८. अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे । १३६. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । १. आसयं (क्व)। ४. X (क)। सर्वत्र नास्ति । २. अट्टा 'ते जाव परितावेंति' धुवगंडिया (चू)। ५. द्रष्टव्यम् - ११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. वि (घ)। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो हिंसाविवेग-पद १४०. से बेमि-अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति,' अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, अप्पेगे हिययाए वहंति, अप्पेगे पित्ताए वहंति, अप्पेगे वसाए वहंति, अप्पेगे पिच्छाए बहंति, अप्पेगे पुच्छाए वहंति, अप्पेगे बालाए वहंति, अप्पेगे सिंगाए वहंति, अप्पेगे विसाणाए वहंति, अप्पेगे दंताए वहंति, अप्पेगे दाढाए वहंति, अप्पेगे नहाए वहंति, अप्पेगे हारुणीए वहंति, अप्पेगे अट्ठीए वहंति, अप्पेगे अट्ठिमिजाए वहंति, अप्पेगे अट्टाए वहंति, अप्पेगे अणट्ठाए ° वहंति, अप्पेगे 'हिंसिसु मेत्ति वा" वहंति, अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति ॥ १४१. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ।। १४२. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति ॥ १४३. तं परिणाय मेहावी व सयं तसकाय-सत्थं समारंभेज्जा, गेवण्णेहिं तसकाय सत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे तसकाय-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा । १४४. जस्सेते तसकाय-सत्थ-समारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे । -~~-त्ति बेमि ।। सत्तमो उद्देसो अत्ततुला-पदं १४५. 'पहू एजस्स" दुगंछणाए ॥ १४६. आयंकदंसो अहियं ति नच्चा ॥ १४७. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ । जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ ।। १४८. एयं तुलमण्णेसि ॥ १४६. इह संतिगया दविया, णावखंति वीजि ॥ वाउकाइयहिंसा-पदं १५०. लज्जमाणा पुढो पास ॥ १. हणंति (च); वधंति (क); हिंसंति (घ)। ६. इति (चूपा)। २. सं. पा.----एवं हिययाए पित्ताए वसाए ७. जीवियं (क, छ); जीविङ (ख, ग, घ, च, पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए वृ); मूलपाठः चूधिारेण स्वीकृतोस्ति । दंताए दाढाए नहाए हारुणीए अट्रीए अट्रि- 'दसवेआलिय' सूत्रम्य (६३७) श्लोकेनास्य मिजाए अट्ठाए अणट्टाए । पुष्टिर्जायते । ३. हितयाए (क, च)। ८. अटा परिजण्णा आकंपिता जाव आतूरा ४. हिसिम इति वा (ख, ग)। परिताविता धुवगंडिया (चू)। ५. पहू य एगस्स (वृ); पभू एयस्स (क) । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (सत्यपरिण्णा - सत्तमो उद्देसो) १५१. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा । १५२. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहि वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे अण्णे वगरूवे पाणे विहिंसति ॥ १५३. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया || १५४. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण - माणण- पूयणाए, जाई- मरण-मोयणाए, दुक्ख पडिघायहेरं ।। १५५. से सयमेव बाउ-सत्थं समारंभति, अण्णेहि वा वाउ- सत्यं समारंभावेति, अण्णे वा वाउ- सत्यं समारंभंते समणुजाणइ || १५६. तं से अहियाए, तं से अबोहीए ॥ १५७. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए । १५८. सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए इमेगेसि णायं भवइ - एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए | १५६. इच्चत्थं गढिए लोए ।। १६०. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ- सत्थं समारंभमाणे अणे वगरूवे पाणे विहिंसति ॥ वाउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं १६१. से बेमि - अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे | १६२. अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे' ॥ १६३. अप्पेगे संपमारए, अप्पे उद्दवए । १५ हिंसाविवेग-पदं १६४. से बेमि - संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति य ॥ फरिसं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति || जे तत्थ संघायमावज्जति, ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जति, ते तत्थ उद्दायति ॥ १६५. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ॥ १६६. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ॥ १६७ तं परिणाय मेहावी व सयं वाउ-सत्यं समारंभेज्जा, ठेवण्णेहिं वाउ- सत्थ समारंभावेज्जा, ठेवणे वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा | १६८. जस्सेते वाउ- सत्य-समारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णाय - कम्मे त्ति बेभि ॥ १. द्रष्टव्यम् - ११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो मुणि-संबोध-पदं १६९. एत्थं पि जाणे उवादीयमाणा॥ १७०. जे आयारेन रमंति ॥ १७१. आरंभमाणा विणयं वियंति ॥ १७२. छंदोवगोया अउझोववण्णा॥ १७३. 'आरंभसत्ता पकरेंति संग"। १७४. से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं ॥ १७५. तं' णो अण्णेसि ।। हिंसाविवेग-पदं १७६. तं परिणाय मेहावी णेव सयं छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभेज्जा, णेवणेहि छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे छज्जीवणिकाय-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा॥ १७७. जस्सेते छज्जीव-णिकाय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे। –त्ति बेमि ।। १. 'आरंभसत्ता पकरेंति संग', अस्य पाठस्यानन्तरं चूया निम्नः पाठ उपलभ्यते-'एत्थ वि जा अणुवाइयमाणा, जे आयारे रमंति, अणारंभमाणा विणयं वदंति, पसत्थ छंदो वणीता, तत्थेव अज्झोववण्णा आरंभे असत्ता णो पगरेंति संग' । २.४ (ख, ग, छ)। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati अभयणं लोगविजओ पढमो उद्देसो आसत्ति-पदं १. जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे ॥ २. इति से गुणट्ठी महता परियावेणं' वसे पत्ते - माया मे, पिया में, भाया मे, भणी मे, भज्जा मे पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि सयण-संगंथ संथया मे, विवित्वगरण - परियण-भोयण- अच्छायण" मे, इत्थं' गढिए लोए-वसे मत्ते ॥ ३. अहो य राओ य परितप्यमाणे, कालाकाल - समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुपे सहसक्का, विणिविट्ठचित्ते, एत्थ सत्थे" पुणो- पुणो ॥ असरणाणुपेहापुव्वं अप्पमाद-पदं ४. अप्पं च खलु आउं इहमे गेसिं" माणवाणं, तं जहा- सोय - परिष्णाणेहिं परिहायमाणेहिं चक्खु-परिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, घाण-परिणाणेहि परिहायमाणेहि, रस- परिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, फास-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं ॥ १. ० वेणं पुणो पुणो (छ); चूर्णो वृत्तौ च नैतत् पदं व्याख्यातमस्ति । २. पत्ते, तं जहा (क, ख, ग, घ, च) । ३. मे, सहाया मे (घ) 1 ४. विचित्तो ० ( खच) । इच्चत्थं एत्थ से (च ) 1 ७. X ( क, ख, ग, घ ) । ८. सहसाकारे (क, ख, ग, छ); सहस्सकारे (च ) | ९. ० चिट्ठे (नू, वृच ) 1 १०. सत्ते ( चू, बुषा); सत्थे ( चुपा ) | ११. इधम्मेसि चि (च) 1 ५. च्छायणं ( क ) ; अच्छादयणं (च्) । ६. इन्वत्थं से (क); इच्चत्थं इत्थं से ( ग ); १२. ० पण्णाणेणं ( . क ) । १७ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो . ५. अभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए । ६. तओ से एगया मूढभावं जणयंति' ।। ७. जेहिं वा सद्धि संवसति' 'ते वा णं एगया णियगा तं पुदिव परिवयंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिवएज्जा।। ८. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तमं पि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा ।। ६. से ण हस्साए", ण किड्डाए, ण रतीए, ण विभूसाए ।। १०. इच्चेवं समुट्टिए अहोविहाराए। ११. अंतरं च खलु इमं संपेहाए'-धीरे मुहत्तमवि णो पमायए। १२. वयो अच्चेइ जोधणं व ॥ १३. जीविए इह जे पमत्ता ।। १४. से हंता छेत्ता भेत्ता लुपित्ता विलुपित्ता उद्दवित्ता उत्तासइत्ता ॥ १५. अकडं करिस्सामित्ति मण्णमाणे ।। १६. जेहिं वा सद्धि संवसति ते वाणं" एगया णियगा तं पुट्विं पोसेंति, सो वा ते नियगे पच्छा पोसेज्जा। १७. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा । तमपि तेसिं नालं ताणाए वा. सरणाए वा ॥ १८. उवाइय-सेसेण" वा सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ, इहमेगेसिं असंजयाणं" भोयणाए। १६. तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जति ॥ २०. जेहिं वा सद्धि संवसति ते वा णं एगया णियगा तं" पुवि परिहरंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिहरेज्जा ।। २१. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा ।। ___ तुमंपि तेर्सि नालं ताणाए वा, सरणाए वा ॥ १. अहिक्कंतं (क); अहिकंतं (घ); अतिकतं ७. सपेहाए (क, ख, च); वृत्ति कृता पचमसूत्रे सप्रेक्ष्य इति व्याख्यातम, अत्र च संप्रेक्ष्य । २. सपेहाए (क, घ, छ); वत्तो 'स पेहाए' इति ८. वओ (क,ख,ग)। पदद्वयं पृथग व्याख्यातम्-प्रेक्ष्य पर्यालोच्य १. त एव वा णं (व); ते व गं (ख)। से इति प्राणी (वृ)। १०. उवादीत (क, च)। ३. जणयति (व); जणयंति (वृपा)। ११. सेसं तेण (क, ख, घ, च, छ)। ४. सवसंति (घ,च,छ)। १२. किज्जइ (ख, ग, छ) । ५ ते वर्ण (क,छ); ते विणं (घ); त एव णं (बू)। १३. माणवाणं (च)! ६ हासाए (क,ख,ग,छ)। १४. X (क, ख, ग, घ)। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-बीओ उद्देसो) २२. जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ॥ २३. अणभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए । २४. खणं जाणाहि पंडिए! २५. जाव सोय-'पण्णाणा अपरिहीणा," जाव णेत्त-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव घाण-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव जीह-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव फास-पण्णाणा अपरिहीणा ।। २६. इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहोणेहि आयटुं सम्मं समणुवासिज्जासि। -त्ति बेमि ॥ बीओ उद्दसो अरति-निव्वत्तण-पदं २७. अरइं आउट्टे से मेहावी ॥ २८. खणंसि मुक्के । २६. अणाणाए पुट्ठा 'वि एगे"णियम॒ति ।। ३०. मंदा मोहेण पाउडा ।। ३१. "अपरिग्गहा भविस्सामो" समुट्ठाए, लद्धे कामेहिगाहंति" । ३२. अणाणाए मुणिणो पडिलेहति ।। ३३. एत्थ मोहे पुणो पुणो सम्णा ॥ ३४. णो हवाए णो पाराए । ३५. विमुक्का हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो॥ अणगार-पदं ३६. लोभं अलोभेण दुगंछमाणे, लद्धे कामे नाभिगाहई। ३७. विणइत्तु" लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति ।। १. पत्तेय (क, ख, ग, घ, च) । २. अणतिक्तं (क)। ३. सपेहाए (क, ख, ग, घ, च)। ४. परिणाणेहिं अपरिहायमाणेहिं (क,ख,ग,घ,छ) सर्वत्र। ५. अपरिहीयमाणेहिं (क,ख,ग,ध,छ.वृ)। ७. अभिग्गाहति (क); ° अभिग्गहति (ख,छ); अभिगाहति (ग)। ८. विमुत्ता (क,ख,ग,घ,छ) । ६. गोभिगाहइ (क, च)। १०. विणावि (क, ग, छ, वृ)। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो ३८. पडिलेहाए णावकंखति । ३६. एस अणगारेत्ति पवुच्चति ॥ दंड-समादाण-पदं ४०. अहो य राओ य' परितप्पमाणे, कालाकालसमुहाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुपे सहसक्कारे, विणिविट्ठचित्ते, एत्थ सत्थे पुणो-पुणो ।। ४१. से आय-बले, से णाइ-बले', से मित्त-बले, से पेच्च-बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अतिहि-बले, से किवण-बले, से समण-बले ।। ४२. इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं 'दंड-समायाणं ।। ४३. सपेहाए भया कज्जति ।। ४४. पाव-मोक्खोत्ति मण्णमाणे ।। ४५. अदुवा आसंसाए । हिंसाविवेग-पदं ४६. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभेज्जा, णेवण्ण एएहि ___ कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, ‘णेवणं एएहि कज्जेहिं दंड समारंभतं समणुजाणेज्जा" ॥ अणासत्ति-पदं ४७. एस मग्गे आरिएहि पवेइए। ४८. जहेत्थ कुसले णोवलिपिज्जासि । ---त्ति बेमि॥ तइओ उद्देसो समत्त-पदं ४६. 'से असई उच्चागोए, असई णीयागोए। णो हीणे, णो अइरित्ते", णो पीहए"। १. x (क,ख): ७. व अन्नेहिं (छ)। २. सहसाकारे (क, ख, ग)। ८. एएहि कज्जेहिं दंडं समारंभंते वि अण्णे ण ३. बले, से सयण-बले (क, ख, ग, घ, च)। समणुजाणिज्जा (क, ख, ग, घ, च)। ४. किविण (क, ख, ग)। ६. आयरिएहिं (क, ख, घ)। ५. संपेहाए (क, ख, ग, घ, च, छ); 'संप्रेक्षया' १०. नागार्जुनीया--एगमेगे खलु जीवे अईअद्धाए पर्यालोचनया एवं संप्रेक्ष्य वा (वृ)। असई उच्चागोए असई णीयागोए कंडगट्ठयाए ६. दंड समारभति (च); दंड-समायाण.. णो हीणे नो अहरिते (चु, ७) । कग्जइ (चूपा)। ११. पीहेइ (ख, ग)। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-तइओ उद्देसो) ५०. इति' संखाय के गोयावादी ? के माणावादी ? कंसि वा एगे गिज्झे ? ५१. तम्हा पंडिए णो हरिसे, णो कुज्झे ।। ५२. भूएहि जाण पडिलेह सातं" ।। ५३. समिते एयाणुपस्सी। ५४. तं जहा-- अधत्तं बहिरत्तं मूयत्तं काणत्तं कुंटत्तं खुज्जत्तं वडभत्तं सोमत्तं सबलत्तं ॥ ५५. सहपमाएणं अणेगरूवाओ जोणीओ संधाति', विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ ।। ५६. से अबुज्झमाणे 'हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे ।। परिग्गह-तद्दोस-पदं ५७. जीवियं पुढो पियं इहमेगेसि माणवाणं, खेत्त-वत्थु ममायमाणाणं ॥ ५८. आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता ।। ५६. ण एत्थ तवो वा, दमो वा, णियमो वा दिस्सति ।। ६०. संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ । ६१. इणमेव पावकंखंति, जे जणा धुवचारिणो। जाती-मरणं परिणाय, चरे संकमणे दढे ।। ६२. पत्थि कालस्स णागमो।। ६३. सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा॥ ६४. सन्वेसि जीवियं पियं ।। ६५. तं परिगिझ दुपयं चउप्पयं अभिमुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ-अप्पा वा बहुगा वा॥ ६६. से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए । ६७. तओ से एगया विपरिसिटुं संभूयं महोवगरणं भवइ ।। १. एवं (चू)। ३. संधाएति (ख, ग, च)। २. नागार्जुनीया :-पुरिसेणं खलु दुक्खविवाग- ४. परि० (घ, वृ)। गवेसएणं पुटिव ताव जीवाभिगमे कायव्वे, ५. हतोवहते विणिविट्ठ चित्ते एत्थ सत्ते पुणो पुणो जाइंच' इच्छिताणिच्छे, तं सातासात विया- (च)। णिया हिसोवरती कायव्वा (चू)। ६. विप्परियासमुवेइ (ख, ग, घ, छ)। नागार्जुनीया :-पुरिसे णं खलु दुक्खुब्बय- ७. पियायया (वृपा)। सुहेसए (वृ)। ८. विविहं परिसिटुं (क, ख, ग, घ, च)। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ आयारो ६८. तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति,' रायाणो वा से विलुपंति, णस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ ।। ६६. इति से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माई बाले पकुब्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ ।। ७०. मुणिणा हु एयं पवेइयं ।। ७१. अणोहंतरा एते, नो य ओहं तरित्तए। अतीरंगमा एते, नो य तीरं गमित्तए। अपारंगमा एते, नो य पारं गमित्तए । ७२. आयाणिज्जं च आयाय, तम्मि ठाणे ण चिट्ठइ। वितहं पप्पखेयण्णे, तम्मि ठाणम्मि चिट्ठह ।। ७३. उद्देसो पासगस्स णस्थि ॥ ७४. बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्से अणुपरियट्टइ। -त्ति बेमि ॥ चउत्थो उद्देसो भोग-भोगि-दोस-पदं ७५. तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जति ॥ ७६. जेहिं वा सद्धि संवसति ते वा णं एगया णियया पुचि परिवयंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिवएज्जा ।। ७७. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा ।। ७८. जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ।। ७६. भोगामेव अणुसोयंति ॥ ८०. इहमेगेसि माणवाणं ।। ८१. तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ-अप्पा वा बहुगा वा ॥ ८२. से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए । ८३. ततो से एगया विपरिसिटुं संभूयं महोवगरणं भवति ।। १. अदत्ताहारा (ख, ग)। २. अवहरंति (ख, ग)। ३. संमूढे (क, ५)। ४. विप्परियासमवेति (ख, ग, घ, च, छ)। ५. अखेतण्णो (पू)। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (लोगविजओ----चउत्यो उद्देसो) ८४. तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति', रायाणो वा से विलुपति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ ।। ८५. इति से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे' विप्परियासुवेइ ।। ५६. आसं च छंदं च विगिच' धीरे ।। ८७. तुमं चेव तं सल्लमाह१ ।। ८. जण सिया तेण णो सिया।। ८६. इणमेव णावबुज्झति, जे जणा मोहपाउडा ।। ६०. थीभि लोए पवहिए। ११. ते भो वयंति--एयाइं आयतणाई।। ६२. से दुक्खाए मोहाए माराए णरगाए णरग-तिरिक्खाए। ६३. सततं मूढे धम्म णाभिजाणइ॥ ६४. उदाहु वीरे-अप्पमादो महामोहे ॥ ६५. अलं कुसलस्स पमाएण।। ६६. संति-मरणं संपेहाए', भेउरधम्म संपेहाए । ६७. णालं पास ॥ १८. अलं ते एएहिं ।। ६६. एयं पास मुणी ! महब्भयं ।। १००. णाइवाएज्ज कंचणं ।। १०१. एस वीरे पसंसिए', जे ण णिविज्जति आदाणाए । १०२. “ण मे देति" ण कुप्पिज्जा,थोवं लडुं न खिसए। 'पडिसेहिओ परिणमिज्जा" ॥ १०३. एयं मोणं समणुवासेज्जासि । -त्ति बेमि॥ १. हति (क, छ)। २. संमूढे (क, घ, च)। ३. विविच्च (क)। ४. तिरियाए (ध)। ५. न जानाति (वृ)। ६. सपेहाए (क, च)। ७. नमंसिते (चूपा)। ८. पडिलाभिओ (वृपा)। है. पडिलाभितो परिणमे, णवोवासं चेव कूज्जा (चूपा)। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ आयारो oroor Mor पंचमो उद्देसो आहारस्स अणासत्ति-पदं १०४. जमिणं विरूवरूवेहिं 'सत्थेहि लोगस्स कम्म-समारंभा" कज्जति, तं जहा-- अप्पणो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं णातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्म कराणं कम्मकरीणं आएसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पाय रासाए । १०५. सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए॥ १०६. समुट्ठिए अणगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी 'अयं संधीति अदक्खु" ॥ १०७. से गाइए, णाइआवए, ण समणुजाण ॥ १०८. सव्वामगंध' परिण्णाय, णिरामगंधो परिव्वए । १०६. अदिस्समाणे कय-विक्कएसु । से ण किणे, णकिणावए, किणंतं ण समणुजाणइ ।। ११०. से भिक्खू कालपणे बलपणे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे' विणयण्णे समयण्णे' भावणे, परिग्गहं अममायमाणे, कालेणुट्ठाई, अपडिण्णे ।। १११. दुहओ छेत्ता नियाइ॥ ११२. वत्थं पडिग्गह, कंबलं पायपुछणं, उग्गहं च कडासणं । एतेसु चेव जाएज्जा ॥ ११३. लद्धे आहारे अणगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं ।। ११४. लाभो त्ति न मज्जेज्जा ।। ११५. अलाभो त्ति ण सोयए। ११६. बहुं पि लर्बु ण णिहे ।। ११७. परिग्गहारो अप्पाणं अवसक्केज्जा ।। ११८. 'अण्णहा णं पासए परिहरेज्जा" ॥ ११६. एस मग्गे आरिएहिं पवेइए । १२०. जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि त्ति बेमि ॥ काम-अणासति-पदं १२१. कामा दुरतिक्कमा । १. सत्थेहि विरूवरूवाणं अट्ठाए (चूपा)। ६. समयण्णे परसमयण्णे (ध, च); ससमयण्णे २. अयं संधिमदक्खु (वृपा); ° अक्खु (क, ख, परसमयण्णे (छ)। ___ग, छ)। ७. जाणेज्जा (क, ख, ग, घ, च, वृ)। ३. गंधे, (घ, च)। ८. सोएज्जा (ख, ग, च, छ)। ४. बालण्णे (क, घ, च, वृ)। ६. अण्णतरेण पासाएण परिहरिज्जा (चूपा)। ५. खणण्णो (चू)। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीनं अन्झयणं (लोगविजओ--पंचमो उद्देसो) १२२. जीवियं दुष्पडिवूहणं'। १२३. कामकामी खलु अयं पुरिसे ।। १२४. से सोयति जूरति तिप्पति पिड्डुति' परितप्पति ।। १२५. आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भाग जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ ॥ १२६. गढिए अणुपरियट्टमाणे ।। १२७. संधि विदित्ता इह मच्चिएहि ।। १२८. एस वीरे पसंसिए, जे बद्ध पडिमोयए । १२६. जहा अंतो तहा बाहि, जहा बाहिं तहा अंतो।। १३०. अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताई ।। १३१. पंडिए पडिलेहाए । १३२. से मइमं परिण्णाय, मा य हु लालं पच्चासी ॥ १३३. मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए ।। १३४. कासंकसे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई, कडेण मूढे पुणो तं करेइ लोभं ॥ १३५. वेरं वड्ढेति अप्पणो॥ १३६. जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए । १३७. अमरायइ महासड्डी।। १३८. अट्टमेतं पेहाए । १३६. अपरिण्णाए कंदति ॥ तिगिच्छा-पदं १४०. 'से तं जाणह जमहं बेमि" ।। १४१. 'तेइच्छं पंडिते" पवयमाणे ॥ १४२. से" हंता 'छेत्ता भेत्ता" 'लुपइत्ता विलुपइत्ता" उद्दवइत्ता ॥ १. वहगं (ध. चू)। ८. उपेहाए (चू); तु पेहाए (क, घ, च, छ)। २. तप्पति (चू)। ६. से एव मायाणह जं बेमि (चू); से एवं ३. पिट्टा (क, ख, ग); X (च, चू)। ___ मायाणह ज महं बेमि (क, ख, ग)। ४. गढिए लोए (ख, ग, घ)। १०. सेइच्छपंडितो (चू)। ५. कासंकसे य (घ); कासंकासे (वृ); इमं अज्ज ११. x (चू)। करेमि इमं हिज्जो काहामि (चू)। १२. भेत्ता छेत्ता (ख, ग, घ, च, छ)। ६. पडिहणछाए (वृ, छ)। १३. लुंपित्ता विलुपित्ता (ख, ग, च, छ)। ७. अमराइ (घ, च)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो १४३. अकडं करिस्सामित्ति मण्णमाणे॥ १४४ जस्स वि य णं करेइ ।। १४५. अलं बालस्स संगेणं ।। १४६. जे वा से कारेइ बाले ॥ १४७. 'ण एवं" अणगारस्स जायति । -त्ति बेमि ॥ छट्ठो उद्देसो परिग्गह-परिच्चाय-पदं १४८. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए । १४६. तम्हा पानं कम्म, णे व कुज्जा न कारवे ॥ १५०. सिया से एगयरं विप्परामुसइ', छसु अण्णय रंसि कप्पति ।। १५१. सुहट्ठी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमवेति ।। १५२. सएण विप्पमाएण, पुढो वयं पकुव्वति ॥ १५३. जंसिमे पाणा पव्व हिया । पडिलेहाए णो णिकरणाए ।। १५४. एस परिण्णा पवुच्चइ ।। १५५. कम्मोवसंती॥ १५६. जे ममाइय-मति जहाति, से जहाति ममाइयं ।। १५७. से हु दिठ्ठपहे मुणो, जस्स पत्थि ममाइयं ॥ १५८. तं परिण्णाय मेहावी॥ १५९. विदित्ता लोगं, वंता लोगसण्णं, से मतिमं परक्कमेज्जासित्ति बेमि॥ अणासत्तस्स ववहार-पदं १६०. णारति सहते वीरे, वीरे णो सहते रति । जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे ण रज्जति ॥ १६१. सद्दे य फासे अहियासमाणे ॥ १६२. व्विद दि इह जीवियस्स। १. ण हु एवं (चू)। २. तत्थ (क, ख, ग, घ, छ, वृ)। ३. विपरामुसति (क)। ४. णिकरणयाए (ख, ग)। ५. चयइ (क, ख, ग, च)। ६. दिट्ठभये (घ, च, चूपा, वृपा)। ७. स मइमं (ख); स इति मुनिः (वृ)। ८. परक्कमेज्जा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. णो रइं (क, च)। १०. ४ (ख, ग, च, छ) । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-छट्ठो उद्देसो) १६३. मुणी मोणं समादाय, धुणे' कम्म-सरीरगं ॥ १६४. पंतं लूहं सेवंति, वीरा समत्तदंसिणो॥ १६५. एस ओघंतरे मुणी, तिग्णे मुत्ते विरते, वियाहिते ति बेमि ॥ १६६. दुव्वसु मुणी अणाणाए । १६७. तुच्छए गिलाइ वत्तए । १६८. एस वीरे पसंसिए॥ १६६. अच्चेइ लोयसंजोयं ॥ १७०. एस गाए पवुच्चइ' । बंध-मोक्ख-पदं १७१. जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति ॥ १७२. इति कम्म परिण्णाय सव्वसो।। १७३. जे अणगणदंसी, से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे, से अणण्णदंसी ॥ धम्मकहा-पदं १७४. जहा पुण्णस्स कथइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ । जहा तुच्छस्स कत्थइ, तहा पुण्णस्स कत्थइ । १७५. अवि य हणे अणादियमाणे ॥ १७६. एत्थंपि जाण, सेयंति णत्थि ॥ १७७. के यं पुरिसे? कं च गए? १७८. एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए॥ १७९. उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सवपरिणचारी॥ १८०. ण लिप्पई छणपएण वीरे। १८१. से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमण्णेसी॥ १५२. कुसले पुण णो बद्धे, णो मुक्के ।। १८३. से जं च आरभे, जं च णारभे, अणारद्धं च णारभे॥ १८४. छणं छणं परिणाय, लोगसपणं च सव्वसो॥ १८५. उद्देसो पासगस्स पत्थि ॥ १८६. बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्से अणुपरियट्टइ। -त्ति बेमि॥ १. धूण (चू)। ४. पतिण्ण ° (छ)। २. सम्मत्त ° (वृपा, चू)। ५. x (चू)। ३. स वच्चड (घ)। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं सीओसणिज्ज पढ़मो उद्देसो सुत्त-जागर-पदं १. सुत्ता अमुणी सया', मुणिणो सया' जागरंति ।। २. लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं ॥ ३. समयं लोगस्स जाणित्ता, एत्थ सत्थोवरए । ४. जस्सिमे सदा य रूवा य गंधा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति, से 'आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बंभव।। पण्णाणेहि परियाणइ लोय, 'मुणीति वच्चे", धम्मविउत्ति अंजू ।। ६. आवट्टसोए संगमभिजाणति ।। ७. सीओसिणच्चाई से निग्गथे अरइ-रइ-सहे फरुसियं णो वेदेति ।। ५. जागर-वेरोवरए वीरें। ६. एवं दुक्खा पमोक्खसि ।। १०. जरामच्चुवसोवणीए णरे, सययं मूढे धम्म णाभिजाणति । ११. पासिय आउरें पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए । १. x (चू, च)। ५. उजू (क, च, छ)। २. सततमनवरतम् (वृ)। ६. फरसयं (चू)। ३. आतवि वेदवि धम्मवि बंभवि (चू); आतवं. ७. धीरे (छ)। (चूपा); आयवी गाणवी वेदवी धम्मवी ८. पमुच्चसि (क, ख, ग, घ, छ)! बंभवी (वृपा)। ६. आतुरे मो (चू)। ४. मुणी वच्चे (दृ, छ)। २८ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ तइयं अज्झयणं (सीओसणिज्ज–बीओ उद्देसो) १२. मंता एवं मइमं ! पास ॥ १३. आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा ।। १४. माई पमाई पुणरेइ गम्भं ।। १५. उवेहमाणो सह-रूवेसु अंजू, माराभिसंको मरणा पमुच्चति ।। १६. अप्पमत्तो कामेहि, उवरतो पावकम्मेहि, वीरे आयगुत्ते 'जे खेयण्णे"। १७. जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयपणे ॥ १८. अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ ।। १६. कम्मुणा उवाही जायइ ।। २०. कम्मं च पडिलेहाए । २१. 'कम्ममूलं च जं छणं ।। २२. पडिलेहिय सव्वं समायाय ॥ २३. दोहि अंतेहिं अदिस्समाणे ।। २४. तं परिण्णाय मेहावी ॥ २५. विदित्ता लोगं.वंता लोगसण्णं से मइमं परक्कमेज्जासि । --त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो परमबोध-पदं २६. जाति च ड्ढि च इहज्ज ! पासे ।। २७. भूतेहिं जाणे पडिलेह सातं ।।। २८. तम्हा तिविज्जो' परमति णच्चा, समत्तदंसी" ण कति पावं ।। २६. उम्मच पासं इह मच्चिएहिं ।। ३०. आरंभजीवी 'उ भयाणुपस्सी ॥ ....---- -- -- - --....-. १. पमाया (घ)। गाथाचतुष्कमङ्कितमस्ति । २. मारावसक्की (चूपा)। ६. चूर्णी एतत पदं द्विधा व्याख्यातमस्ति विज्जत्ति हे विद्वन ! अहवा अतिविज्जू । ४. कम्मणा (क, ख, ग)। वृत्ती केवलं 'अतिविज्ज' पदं व्याख्यात५. उवही (चू)। मस्ति-अतीव विद्या-तत्त्वपरिच्छेत्री ६. कम्ममाहूय (चूपा, वृपा) । यस्यासावतिविद्यः । ७. मेहावी (ख, ग, च)। १०. सम्मत्त० (क, वपा)। ८. आदर्शेषु २६ सूत्रादारभ्य ३५ सूत्रपर्यन्तं ११. उभयाणुपस्सी (वृ)। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ३१. कामेसु गिद्धा णिचयं करेंति, संचिचमाणा पुणरेंति गर्भ ॥ ३२. अवि से हासमासज्ज, हंता गंदीति मन्नति । अलं बालस्स संगेण, वरं वड्ढेति' अप्पणो ॥ ३३. तम्हा तिविज्जो परमंति णच्चा, आयंकदंसी ण करेति पावं ॥ ३४. 'अग्गं च मूलं च विगिच धीरे " ॥ ३५. पलिच्छिंदिया णं णिक्कम्मदंसी || ३६. एस मरणा पमुच्चइ ॥ ३७. से हु दिट्ठपहे' मुणी ॥ ३८. लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवो उवसंते, समिते सहिते सयाजए कालकंखी परिव्वए ॥ ३६. बहुं च खलु पावकम्मं पगडं ॥ ४०. सच्चंसि धितिं कुरुवह ॥ ४१. एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावकम्मं झोसेति ॥ अगचित्त-पदं ४२. अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे से केयणं अरिहए पूरइत्तए || ४३. से अण्णवहाए अण्णपरियावाए' अण्णपरिग्गहाए, जणवयवहाए" जणवयपरियावाए' जणवयपरिगहाए || संजमाचरण-पदं ४४. आसेवित्ता एतमट्ठ, इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवए" ॥ ४५. णिस्सारं पासिय पाणी, उववायं चवणं" णच्चा । अणणं चर माहणे ! ४६. से ण छणे ण छणावए, छणतं णाणुजाइ ॥ ४७. गिव्विद गंदि अरते पयासु ॥ ४८. अणोमदंसी 'णिसन्ने पावेहिं कस्मेहिं ॥ १. वड्ढति (क, ख, ग ) । २. ० वीरे (क, ग, च, चू); मूलं च अग्गं च विइत्तु वीरो ( चुपा ) | नागार्जुनीया: – मूलं च अग्गं च विएत्तु वीरे, कम्मासवं चेइ विमोक्खणं च (चु) । आयारो ६. ० परियावणाए ( च, छ); ° परियावए ( क, ख, ग ) जाणवय ० ( ख, ग, च) ७. ८. परिवाया (क, ख, ग, च, वृ) 1 ९. बीयं ( ख, ग, घ, च) । ३. दिभए (क, ख, ग, घ, च, छ, चूपा, वृ); १०. सेवे (क, ख, ग, घ ) 1 fagan ( ) | ११. चयणं (क, ख, ग, घ, चू) । १२. माणुमोदए ( चु) । ४. समिते अप्पमाई (ती) (घ, छ) । ५. सोसेइ (घ) १३. तेसु कम्मेसु पावं ( चूपा ) | o Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (सीओसणिज्जं -- तइओ उद्देसो) ४६. कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महंतं । तम्हा हि वीरे विर वहाओ, 'छिंदेज्ज सोयं लहुभूयगामी" ॥ ५०. गंथं परिण्णाय इहज्जेव वीरे, सोयं परिण्णाय चरेज्ज दंते । उम्मग्ग' लधुं इह माणवह, जो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि । तइओ उद्देसो ५५. समयं तत्थुवेहाए, अप्पाणं विप्पसायए । ५६. अणण्णपरमं नाणी, णो पमाए कयाइ वि । अज्झत्थ-पदं ५१. संधि लोगस्स जाणित्ता ॥ ५२. आयओ बहिया पास ॥ ५३. तम्हा ण हंता ण विधायए ।। ५४. जमिणं अण्णमण्णवितिगिच्छाए पडिलेहाए ण करेइ पावं कम्मं, कि तत्थ मुणो कारणं सिया ? आयगुत े सया वीरे, जायामायाए जावए । ५७. 'विरागं रूवेहिं गच्छेज्जा, महया खुड्डएहि वा ॥ ५८. आगतिं गतिं परिण्णाय, दोहिं वि अंतहि अदिस्समा । से ण छिज्जइ ण भिज्जइ ण उज्झइ, ण हम्मद कंचणं सव्वलोए ॥ ५६. 'अवरेण पुळां ण सरंति एगे, किमस्सतीतं ? कि वागमिस्सं ? भासंति एगे इह माणवा उ, जमस्तीतं आगमिस्सं " || ६०. जातीतमट्ठ" ण य आगमिस्सं अट्ठं नियच्छंति तहागया उ । विधूत कप्पे एयाणुपस्सी, णिज्भोसइत्ता 'खवगे महेसी ॥ १. य ( ख, ग, घ ) 1 २. छिदिज्ज सोतं न हु भूतगाम ( चुपा ) । ३. घोरे (क, ख, ग, घ, छ) । ४. उम्मुज्ज (क, ख, ग ); उम्मुग (घ, छ) 1 ५. रूवेसु (क, ख, ग ) । ६. य ( ख, ग, घ, च) ७. नागार्जुनीया: – विसयपंचगम्मि वि, दुविहम्मितियं तियं । भावओ सुट्टु जाणित्ता, से न लिप्पइ दोसु वि (चू); नागार्जुनीया:विसयंमि (वृ) ३१ -त्ति बेमि ॥ ११. ० मद्धं (च) । १२. X ( क, घ, च) । ८. अदितमाणेहिं (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ)। तीत त ( ख ); ° तीतं किं (घ ) । १०. अवरेण पुव्वं किह से अईयं, ६. किह आगमिस्सं न सरंति एगे । भासंति एगे इह माणवा उ, जह से श्रयं तह आगमिस्सं ॥ ( चुपा, वृपा) 1 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो ६१. का अरई ? के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे' चरे। सव्वं हासं परिच्चज्ज, आलीण-गुत्तो परिव्वए । ६२. पुरिसा! तुममेव तुम मित्त, कि बहिया मित्तमिच्छसि ? ६३. जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं । जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥ ६४. पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ॥ ६५. पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि । ६६. सच्चस्स आणाए 'उवट्ठिए से'' मेहावी मारं तरति ।। ६७. सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति ॥ ६८. दुहओ जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जंसि एगे पमादेति ।। ६६. 'सहिए दुक्खमत्ताए" पुट्ठो णो झंझाए ॥ ७०. पासिमं दविए' लोयालोय-पवंचाओ मुच्चइ। -त्ति बेमि॥ चउत्यो उद्देसो कसायविरइ-पदं ७१. से वंता कोहं च, माणं च, भायं च, लोभं च ।। ७२. एयं पासगस्स दंसणं 'उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स' । ७३. आयाणं [णिसिद्धा ? ] सगडभि" । ७४. जे एग जाणइ, से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ ।। ७५. सव्वतो पमत्तस्स भयं, सव्वतो अप्पमत्तस्स नस्थि भयं ।। ७६. 'जे एगं नामे, से बहुं नामे, जे बहुं नामे, से एग नामे" ।। ७७. दुक्खं लोयस्स जाणित्ता॥ ७८. बंता लोगस्स संजोग, जंति वोरा महाजाणं । परेण परं जंति, नावखंति जीवियं ।। ७. द्रष्टव्यम् सू० ८६ । १. अगरहे (चू)। २. जाणहि (क); जाणेहि (च)। ३. से उवट्ठिए से (क, ख, ग); से समुट्ठिए (घ); से उवट्ठिए (च)। ४. सहिते धम्ममादाय (च); सहिते दुक्खमत्ताते (चूपा); ° मेत्ताते (क); ° माताते (च)। ५. दविए लोए (छ)। ६. कडस्स (क)। ६. जे एगनामे, से बहुनामे, जे बहुनामे, से एगनामे (क); द्वादशारनयचक्रवृत्तौ 'एगणामे बहणामे' इति पाठो विवृतोस्ति-~-यद् एकस्य भावः तत् सर्वस्यापि, यत् सर्वस्य तद एकस्यापि (प. ३७५)। १०. धीरा (क)। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाइयं अज्झयणं (सीओसणिज्ज-चउत्थो उद्देसो) ३३ ७६. एगं विगिचमाणे पुढो विगिचइ, पुढो विगिंचमाणे एगं विगिचइ ।। ८०. सड्ढी आणाए मेहावी॥ १. लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकतोभयं ॥ ८२. अस्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्थं परेण परं ।। ८३. जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी। जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी। जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी। जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी। जे जम्मदंसो से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी। जे निरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी ॥ ५४. से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा' कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसंच, मोहं च, गन्भं च, जम्मं च, मारं' च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च ।। ८५. एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स। ८६. आयाणं 'णिसिद्धा सगडभि । ८७. किमत्थि उवाही' पासगस्स ण विज्जइ" ? णत्थि '। --त्ति बेमि॥ १. निन्दद्वैज्जा (क, घ, छ)। २. मरणं (ख, ग)। ३. उवही (धी) (क, घ, छ)। ४. ४ (चू)। ५. 'चतुर्थाध्ययनस्य ५३ सूत्रस्य 'अह णत्थि'. 'णत्थि वा' इति पाठान्तरद्वयं लभ्यते । तदाधारण 'पासगस्स' इति पदानन्तरं 'मह' इति पदं अध्याहार्यम् । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अभयणं सम्मत पढमो उद्देसो सम्मावाए अहिंसा-पदं १. से बेमि-जे' अईया, जे य पड़प्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता' भगवंतो' ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं परूवंति-सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा,ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उहवेयव्वा ॥ २. एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहि पवेइए। ३. तं जहा- उठ्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा । उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा । उवरय दंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा । सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा । संजोगरएसु वा, असंजोग रएसु वा ॥ ४. तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सि चेयं पवुच्चइ॥ ५. तं आइइत्तु ण णिहे ण णिक्खिवे, जाणित्तु धम्म जहां तहा ।। ६. दिहि णिव्वेयं गच्छेज्जा। ७. णो लोगस्सेसणं चरे॥ ८. जस्स णस्थि इमा णाई, अण्णा तस्स कओ सिया? ६. दिटुं सुयं मयं विण्णायं, जमेयं परिकहिज्जइ । १. जे य (ख, ग, घ, छ)। २. अरिहंता (ख, घ)। ३. भगवंता (घ, च)। ४. सुद्धे धुवे (घ)। ५. खेत्तन्नेहिं (च)1 ६. आइत्तु (ख, ग, च, छ, वृ)। ७. अहा (घ)। ८. कुतो (च)। ६. जं लोए (च)। ३४ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ चउत्थं अज्झयणं (सम्मत्तं-बीओ उद्देसो) १०. समेमाणा पलेमाणा', पुणो-पुणो जाति पकप्पेति ॥ ११. अहो य राओ य' 'जयमाणे, वीरे" सया आगयपण्णाणे। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परक्कमेज्जासि । -त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो सम्मानाणे अहिंसापरिक्खा-पदं १२. जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते आसवा, जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा-एए पए संबुज्झमाणे, लोयं च आणाए अभिस मेच्चा पुढो पवेइयं ।। १३. आघाइ' गाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं ।। १४. अद्रा वि संता अदुआ पमत्ता॥ १५. अहासच्चमिणं ति बेमि ॥ १६. नाणागमो मच्चुमुहस्स अस्थि, इच्छापणीया वंकाणिकया। ___ कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, 'पुढो-पुढो जाई पकप्पयंति" ॥ १७. 'इहमेगेसि तत्थ-तत्थ संथवो भवति । अहोववाइए फासे पडिसंवेदयंति ॥ १८. चिट्ठ कूरेहि कहि चिट्ठ परिचिट्ठति । ___ अचिट्ठ कूरेहि कम्मेहि, णो चिट्ठ परिचिट्ठति ॥ १६. एगे वयंति अदुवा वि गाणी, गाणी वयंति अदुवा वि एगे। १. पालेमाणा (क, च); चलेमाणा (शु)। ° पकप्पेंति (क); ° पकप्पन्ति (ख, ग, च;) २. X (ख, ग, छ)। ° पकुप्पंति (छ)। ३. धीरे (ख, ग, घ, वृ)। 'पुढो पुढो जाई पकप्पयन्ति' पंक्तिस्थाने ४. जताहि एवं वीरे (चू)। शुबिग संपादिते पुस्तके एतादृश पाठान्तरम्५. अक्खाइ (घ); नागार्जनीयाः आघाइ धम्म एत्थ मोहे पुणो पुणो, इहमेगेसि तत्थ तत्थ खलु से जीवाणं, तंजहा -संसारपडिवन्नाणं संथवो भवइ, अहोववाइए फासे पडिसंवेयमणुस्सभवत्थाणं आरंभविणईणंदु दुक्खुव्वे- यन्ति ; असुहेसगाणं धम्मसवणगवेसगाणं निक्खित्त- चित्तं कुरेहि कम्मेहि, चित्तं परिविचिट्ठाइ, सत्थाण सुस्सूसमाणाणं पडिपुच्छमाणाणं अचित्तं कूरेहिं कम्मेहि, नो चित्तं परिविविन्नाणपत्ताणं (चू, वृ)। चिट्ठइ । ६. अत्रकपदे दीर्घत्वम्, वनक=का। ८. परिविचिट्ठई (क, चू) । ७. पुढो पुढो जाई पकरेंति (चू); एत्थ मोहे ६. परिविचिट्ठई (क)। पुणो पुणो, पुढो पुढो जाइं पगप्पेंति (चूपा); १०. X (शु) । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो २०. आवंति केआवंति लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वदंति-से दिटुं च णे, सयं च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो सुपडिलेहियं च णे- “सव्ये पाणा 'सव्वे भूया सव्वे जीवा" सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतव्वा, परियावेयव्वा', उद्दवेयव्वा । एत्थ' वि जाणह णत्थित्थ दोसो।।" २१. अणारियवयणमेयं ॥ २२. तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी-से दुद्दिटुं च भ, दुस्सुयं च भ, दुम्मयं च भे, दुविण्णायं च भे, उडढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो दुप्पडिलेहियं च भे, जण्णं तुन्भे एवमाइक्खह, एवं भासह, एवं 'परूवेह, एवं पण्णवेह - "सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतब्वा, परियावेयव्वा, उद्दवेयवा। एत्थ वि जाणह 'णत्थित्थ दोसों॥" २३. वयं पुण एवमाइक्खामो, एवं भासामो, एवं परूवेमो, एवं पण्णवेमो- “सव्वे पाणा सव्वे भूया सवे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परियावयव्वा, ण उद्दवेयव्वा । एत्थ वि जाणह णस्थित्थ दोसो॥" २४. आरियवयणमेयं ॥ २५. पुव्वं निकाय समयं पत्तेयं पुच्छिस्सामो-हंभो पावादुया ! किं भे सायं दुक्खं उदाह असायं? २६. समिया पडिवन्ने यावि एवं व्या-सव्वेसि पाणाणं सन्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महदभयं दुक्खं। --त्ति वेमि ।। तइओ उद्देसो सम्मातव-पदं २७. उवेह एणं बहिया य लोयं, से सव्वलोगंसि जे केइ विण्ण । अणुवीइ" पास णिक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति ॥ २८. नरा" मुयच्चा धम्म विदु त्ति अंजू ।। १. अहेयं (क)। ___ ८. पवादिया (छ); समणा माहणा (चू) 1 २. सव्वे जीवा सवे भूया (वृ, क, घ, छ) 1 ६. पडिवण्णे (च)। ३. परियावेयव्वा किलामेयत्वा (क, ख, ग)। १०. उवेहणं (क, घ); उवेहेणं (ख, ग); उव्वे४. एत्थं पि (ख, ग, घ)। हेणं (च, छ)। ५. पन्नवेह, एवं परूवेह (चू, क)। ११. अणु वितिय (क, च); अणुचितिय (छ) । ६. नथिस्थ दोसो । अणारियवयणमेयं (क, ख, १२. जहंति (चू, छ)। ग, घ, च, छ)। १३. नरे (क, ख, ग, घ, च)। ७, पत्तेयं-पत्तेयं (ख, ग, च, छ)। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सम्मत्तं-चउत्थो उद्देसो) २६. आरंभजं दुक्खमिणंति णच्चा, एवमाहु समत्तदंसिणो ॥ ३०. ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति ।। ३१. इति कम्म परिणाय सव्वसो।। ३२. इह आणाकंखी पंडिए अणिहे एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं,' कसेहि' अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं॥ ३३. जहा जुण्णाई कट्ठाई, हव्ववाहो पमत्थति, एवं अत्तसमाहिए अणिहे ॥ कसाय-विवेग-पदं ३४. विगिच कोहं अविकंपमाणे, इमं णिरुद्धाउयं संपेहाए । ३५. दुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं ॥ ३६. पुढो फासाइं च फासे ।। ३७. लोयं च पास विष्फंदमाणं ॥ ३८. जे णिव्वुडा पार्वहिं कम्मेहि, अणिदाणा ते वियाहिया ॥ ३६. तम्हा तिविज्जो' णो पडिसंजलिज्जासि । -त्ति बेमि ।। चउत्थो उद्देसो सम्माचरित्त-पदं ४०. आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं ॥ ४१. तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। ४२. दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियट्टगामीणं ।। ४३. विगिच मंस-सोणियं ॥ ४४. एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए। जे धुणाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥ ४५. णेत्तहि पलिछिन्नहि, आयाणसोय-गढिए बाले। अव्वोच्छिन्नबंधणे, अणभिक्कंतसंजोए । तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो णत्थि त्ति बेमि ॥ ४६. जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया ? ४७. से हु पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए । १. सम्मत्त (क, वपा)। २. सरीरगं (वृ)। ३. किसेहि (चू); कम्मे हि जरेहिं (ख)। ४. हव्ववाहू (घ, च, छ)। ५. बहु (क)। ६. फासए (क, छ)। ७. द्रष्टव्यम् -- ३।२८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ८. निष्फीलए (क, घ)। ९. अंधस्स तमस्स (चू); तमंसि (चूपा)। १०. कुओ (क, च, छ)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो KC - ४८. सम्ममेयंति पासह ॥ ४६. जेण बंधं वहं घोरं, परितावं च दारुणं ॥ ५०. पलिछिदिय बाहिरगं च सोयं, णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहि ।। ५१. 'कम्मुणा सफलं" दट्टे, तओ णिज्जाइ चेयवी॥ ५२. जे खलु भो! वीरा समिता सहिता सदा जया संघडदसिणो' आतोवरया अहा-तहा' लोगमुवेहमाणा, पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं इति सच्चंसि परिचिट्ठिसु, साहिस्सामो' गाणं वीराणं समिताणं सहिताणं सदा जयाणं संघडदंसिणं आतोवरयाणं अहा-तहा लोगमुवेहमाणाणं ।। ५३. किमत्थि उवाधी' पासगस्स 'ण विज्जति ? णत्थि ॥ त्ति बेमि ॥ १. कम्माण सफलतं (वृ)। २. सत्थड (च); संथड (च) । ३. तह (क)। ४. परिविचिट्ठिसु (क, ख, ग, च, छ); विपरि- चिट्ठिसु (चू)। ५. अग्घातिस्सामो (च)। ६. उवही (क, घ, च, छ)। ७. अह णस्थि ? ण विज्जति (च);णस्थि वाण विज्जति (छ) । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयणं लोगसारो पढमो उद्देसो काम-पदं १. 'आवंती के आवंति लोयंसि विप्परामुसंति, अट्ठाए अणट्टाए वा", एएसु चेव विप्परामुसंति ॥ २. गुरू से कामा ॥ ३. तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे ॥ ४. णेव से अंतो, गेव से दूरे ॥ ५. से पासति फुसियमिव, कुसग्गे पणुन्नं णिवतितं वातेरितं । एवं बालस्स जीवियं, मंदस अविजाणओ ॥ ६. कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ' || ७. मोहेण गब्भं 'मरणाति एति ॥ ८. एत्थ मोहे पुणो-पुणो ॥ ६. संसयं परिजाणतो, संसारे परिण्णाते भवति, संसयं अपरिजाणतो, संसारे अपरिष्णाते भवति ॥ १०. जे छेए से सागारियं ण सेवए || १. X ( ख, ग, घ, च, छ); नागार्जुनीया जाति के लोए छक्कायवहं समारभंति अट्ठाए अट्टाए वा (बृ.) । २. बाहि (चू) । -- ३६ ३. विप्परियासमुवेति (क, ख, ग, छ); ० समेति ( च, चू) । ४. मरणादुवेति ( चुपा ) | Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो ११. 'कट्ट एवं अविजाणओ" बितिया मंदस्स बालया ।। १२. लद्धा हरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणयाए-त्ति बेमि ।। १३. पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे ॥ १४. 'एस्थ फासे" पुणो-पुणो ॥ १५. आवंती केआवंती लोयंसि आरंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी ॥ १६. एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहि कम्मेहि, 'असरणे सरण' ति मण्णमाणे ॥ १७. इहमेगेसि एगचरिया भवति--से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहे बहुरए बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे, आसवसक्की पलिउच्छन्ने, उठ्ठियवायं पवयमाणे “मा मे केइ अदक्खू" अण्णाण-पभाय-दोसेणं, सययं मूढे धम्म णाभिजाणइ ।। १८. अट्टा पया माणव ! कम्मकोविया जे अणुवरया, अविज्जाए पलिमोक्खमाहु, आवट्ट' अणुपरियटृति । —त्ति बेमि।। बीओ उद्देसो अप्पमादमग्ग-पदं १६. आवंती केआवंती लोयंसि अणारंभजीवी, एतेस चेव मणारंभजीवी ॥ २०. एत्थोवरए तं झोसमाणे 'अयं संधी' ति अदक्खु ॥ २१. जे 'इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति मन्नेसी ॥ २२. एस मम्गे आरिएहिं पवेदिते ॥ २३. उठ्ठिए णो पमायए॥ २४. जाणित्त दुक्खं 'पत्तयं सायं ॥ २५. पुढोछंदा इह माणवा, पुढो दुक्खं पवेदितं ॥ १. अवयाणतो (चू); ° अवियाणतो (चूपा); ४. चूर्णिकृता 'बहुसढे' इति न व्याख्यातम् । नागार्जुनीया:--जे खलु विसए सेवई ५. कम्मअकोविता (चू) । से वित्ता वा णालोएइ, परेण वा पुट्ठो निण्हवइ ६. आवट्टमेव (ख, ग, च) । अहवा तं परं सरण वा दोसेण उलिपिज्जा ७. तेसु (वृ)। (दृ, चू)। ८. अणारंभ ° (ग, च)। २. एत्थ मोहे (चू, वृपा); तत्थ फासे (चूपा)। ६. अन्नेसि (ख, ग, च)। ३. परिवच्चमाणे (च); परितप्पमाणे (छ,चू,वृ); १०. पत्तेय-सायं (क, च, छ)। परिपच्चमाणे (चूपा, वृपा)1 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयणं (लोगसारो— तइओ उद्देसो) २६. से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो' फासे विप्पणोल्लए | २७. एस समिया - परियाए वियाहिते ।। २८. जे असत्ता पावेहिं कम्मेहिं, उदाहु ते आयंका फुसंति ॥ इति उदाहुवीरें' 'ते फासे पुट्ठो हियासए' ॥ २६. से पुव्वं पेयं पच्छा पयं भेउर धम्मं, विद्वंसण धम्मं, अधुवं, अणितियं, असासयं, चयावचइयं विपरिणाम- धम्मं, पासह एवं 'रूवं ॥ ३०. संधि" समुप्पेहमाणस्स एगायतण' - रयस्स इह विप्यमुक्कस्स, णत्थि मग्गे विरयस्स त्ति बेमि ॥ परिग्गह-पदं ३१. आवंती के आवंती लोगंसि परिग्गहावंती-- से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा एतेसु चेव परिग्गहावंती ॥ ३२. एतदेवेगेसि' महत्भयं भवति, लोगवित्तं च णं उदेहाए || ३३. एए संगे अविजाणतो ॥ ३४. से 'सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति णच्चा", पुरिसा ! परमचक्खू ! विपरक्कमा " ।। ३५. एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि ॥ ३६. से सुयं च मे अज्झत्थियं" च मे, "बंध-पमोक्खो तुम्भ" अज्झत्थेव " ॥ ३७. एत्थ विरते अणगारे, दोहरायं तितिक्खए । पमत्त बहिया पास, 'अप्पमत्तो परिव्वए "" ॥ ३८. एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि । तइओ उद्देस अपरिग्गह- कामनिव्वेयण-पदं ३६. आवंती के आवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएस चेव अपरिग्गहावंती ॥ १. पुढो ( ख, ग, घ ) ( अशुद्धम् ) । २. धीरे (क, ख, ग, छ, चू) ३. चयो ० ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. रूव-संधि (क, च, छ, वृ, चू) 1 ५. एगायण (घ) 1 ६. बहुयं (क, घ, च, छ) । ७. एय मेगेसि ( ख, ग ); एयमेवेगेसि (घ ) | ८. लोगं वित्तं ( ख, ग, छ) 1 ४१ (क्व) । ४ ( ख, ग, घ, छ) । ६. सुपडिबद्धं ० ( ऋ, घ, छ, वृ); सुतं अणुविचितेति जच्चा (चुपा) । १०. विपरक्कम ( ख, ग, च) | ११. अज्झत्थं ( क, ख, ग, घ, च); अज्झत्थयं -त्ति बेमि ॥ १२. १३. अप्पमाय सुसिवखेज्जा (चू) । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ आयारो ४०. सोच्चा वई मेहावी, पंडियाणं णिसामिया । समियाए' धम्मे, आरिएहि पवेदिते ॥ ४१. जहेत्थ मए संधी झोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्झोसिए भवति, तम्हा बेमि णो णिहेज्ज वीरियं ।। ४२. जे पुन्वट्ठाई, णो पच्छा-णिवाई । जे पुवट्ठाई, पच्छा-णिवाई। जे णो पुवुट्ठाई, णो पच्छा-णिवाई ॥ ४३. सेवि तारिसए सिया', जे परिणाय लोगमणुस्सिओ॥ ४४. एवं णियाय मुणिणा पवेदितं-इह आणाकंखी पंडिए अणिहे, पुवावरराय जयमाणे, सया सीलं संपेहाए, सुणिया भवे अकामे अझंझे । ४५. इमेणं चेव जुज्झाहि, कि ते जुज्झेण बज्झओ? ४६. 'जुद्धारिहं खलु दुल्लह ॥ ४७. जहेत्थ कुसलेहि परिणा-विवेगे भासिए । ४८. चुए हु बाले गब्भाइसु रज्जइ । ४६. अस्सि चेयं पब्वुच्चति, रूवंसि वा छणंसि वा ।। ५०. से हु एगे संविद्धपहे मुणी, अण्णहा लोगमुवेहमाणे ।। ५१. इति कम्मं परिण्णाय, सध्वसो से ण हिंसति । संजमति णो पगब्भति ॥ ५२. उवेहमाणो पत्तेयं सायं ॥ ५३. वण्णाएसी णारभे कंचणं सव्वलोए ।। ५४. एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे, निम्विन्नचा अरए पयासु ॥ ५५. से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्ज पाव कम्मं ॥ ५६. तं णो अन्नेसि ॥ ५७. जं सम्म ति पासहा", तं मोणं ति पासहा । जं मोणं ति पासहा, तं सम्मं ति पासहा ॥ १. वति (क, ख, ग); वातं (छ)। ६. जुद्धारियं च दुल्लह (वृपा)। २. समया (घ, च)। ७. रिज्जइ (वृ, चूपा)। ३. णिहणिज्ज (ख, ग); निण्हवेज्ज (शु)। ८. संविद्धभए (चू, वृपा); संविद्धपहे (चूपा) । ४. चेव (चू)। ६. X(चू, घ, च)। ५. ° मण्णेसति (चू, क); ° मष्णुसिया (ख, ग, १०. अन्नेसी (क, ख, ग, घ, च) । छ); ° मण्णेसिति (च); °मणु स्सिते ११. पासह (ख, ग) (सर्वत्र)। (चूपा)। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (लोगसारो-चउत्यो उद्देसो) ५८. ण इमं सक्कं सिढिलेहि अद्दिज्जमाणेहि गुणासाएहिं वंकसमायारेहि पमत्तेहि गारमावसंतेहिं ।। ५६. मुणी मोणं समायाए, धुणे कम्म-सरीरगं' ॥ ६०. पंतं गुहं सेवंति, वीरा समत्तदसिणो' ॥ ६१. एस ओहंतरे मुणी, तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए। -त्ति बेमि॥ चउत्थो उद्देसो अवियत्तस्स एगल्लविहार-पदं ६२. गामाणुगाम दुइज्जमाणस्स दुज्जातं दुप्परक्कंतं भवति अवियत्तस्स' भिक्खणो॥ ६३. वयसा वि एगे बुझ्या कुप्पंति माणवा ॥ ६४. उन्नयमाणे य णरे, महता मोहेण मुज्झति ॥ ६५. संबाहा वहवे भुज्जो-भुज्जो दुरतिक्कमा अजाणतो अपासतो॥ ६६. एयं ते मा होउ ॥ ६७. एयं कुसलस्स दंसणं॥ ६८. तद्दिट्ठीए तम्मोत्तीए तप्पुरवकारे, तस्सण्णी तन्निवेसणे॥ इरिया-पदं ६६. जयंविहारी चित्तणिवाती' पंथणिज्झाती पलीवाहरे, पासिय पाणे गच्छेज्जा॥ ७०. से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्रमाणे संपलिमज्जमाणे" ॥ कम्मणो बांध-विनेग-पदं ७१. एगया गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायति । ७२. इहलोग-वेयण वेज्जावडियं ॥ ७३. जं 'आउट्टिकयं कम्म", तं परिण्णाए" विवेगमेति ॥ ७४. एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किट्टति वेयवी ॥ १, आदिज्ज ° (क); अदिज्ज ° (ख, ग, घ, च, ७. चित्तणिधायी (चपा)। ८. पलिबहिरे (क, ग); पलिबाहरे (च); बलि२. 'कम्म' नास्ति (क, घ, च, छ)। ____ बाहिरे (शु); पलिबाहिरे (ख, घ, छ, वृ)। ३. सम्मत्त (क, वपा, चू)। ६. संकुच ° (च)। ४. अव्वत्तस्स (क)। १०. संपलिज्ज° (ख)। ५. बुज्झति (चू पा)। ११. आउट्टीकम्म (क, च); आवट्टीकम्म (घ)। ६. तम्मुत्तिए (क, च)। १२. परिन्नाय (क, ख, ग, घ, च, छ)। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ आयारो बंभचेर-पदं ७५. से पभूयदंसी पभूयपरिणाणे उक्संते समिए सहिते सया जए दर्छ विप्पडिवेदेति अप्पाणं.. ७६. किमेस जणो करिस्सति ? ७७. 'एस से" परमारामो, जाओ लोगम्मि इत्थीओ॥ ७८. मुणिणा हु एतं पवेदितं, उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहि७६. अवि णिब्बलासए।। ८०. अवि ओमोयरियं कुज्जा ।। ८१. अवि उड्डंठाणं ठाइज्जा ।। ८२. अवि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ८३. अवि आहारं वोच्छिदेज्जा ।। ८४. अवि चए इत्थीसु मणं ॥ ८५. पुवां' दंडा पच्छा फासा, पुवं फासा पच्छा दंडा ।। ८६. इच्चेते कलहासंगकरा भवंति । पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासे वणाए त्ति बेमि।। ८७. से णो काहिए णो पासणिए णो संपसारए णो ममाए' णो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्प-संवुडे परिवज्जए सदा पावं ।। ८८. एतं मोणं समणुवासिज्जासि । -त्ति बेमि ॥ पंचमो उद्देसो आयरिय-पदं ८६. से बेमि-तं जहा। अवि हरए पडिपुण्णे, 'चिठ्ठइ समंसि भोमे" । __उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठति सोयमझगए ।। ६०. से पास सव्वतो गुत्ते, पास लोए महेसिणो, जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरया ॥ ६१. सम्ममेयंति पासह ॥ ६२. कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेमि ।। १. एसे (सो) (क, घ, च)। ४. समंसि भोमे चिट्टइ (च)। २. पुब्बिं (ध)। ५. पासहा (क, च, छ)। ३. ममायए (छ); मामए (शु)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झवणं (लोगसारो-पंचमो उद्देसो) सद्धा-पदं ६३. वितिगिच्छ'-समावन्नेणं अप्पाणणं णो लभति समाधि ।। १४. सिया वेगे अणगच्छंति. असिया वेगे अणगच्छंति. अणुगच्छमाणेहि अणणुगच्छमाणे कहं ण णिबिज्जे ? ६५. तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहि पवेइयं ॥ मझत्थ-पदं ६६. सविस्स णं समणुष्णस्स संपन्वयमाणस्स समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ । समियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ । असमियंति मणमाणस्स एगया समिया होइ। असमियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ । समियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होइ उवेहाए । असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होइ उवेहाए । ६७. उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहा हि समियाए । १८. इच्चे तत्थ संधी झोसितो भवति ।। अहिंसा-पदं ६६. उट्टियस्स ठियस्स गति समणपासह ।। १००. एथवि वालभावे अप्पाणं णो उवदंसेज्जा ।। १०१. तुमंसि नाम सच्चेव ज 'हंतव्वं' ति मन्नसि, नाम सच्चेव जं 'अज्जावेयव्वं' ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं 'परितावेयव्व' ति मन्नसि, "तुमंसि नाम सच्चेव जं 'परिघेतव्वं' ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं 'उद्दवेयव्वं' ति मन्नसि ।। १०२. अंजू चेय-पडिबुद्ध"-जीवी, तम्हा ण हंता ण विधायए। १०३. अणुसंवेयणमप्पाणणं, जं 'हंतव्यं' ति णाभिपत्थए । आय-पदं १०४. जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया । जेण विजाणति से आया ॥ १. वितिगिंछ (छ); विगिछ (शु)। २. तं चेव (क, घ, च)। ३. सं० पा०-एवं जे 'परिघेतब्वं' ति मनसि जं। ४. चेयं (क, ख, ग, च, च, छ) । ५. पडिबुझ (क, च, चू)। ६. X(ख, ग, घ, च, छ)। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो १०५. तं पडुच्च पडिसंखाए । १०६. एस आयावादी समियाए-परियाए वियाहिते । ---त्ति बेमि ।। छट्ठो उद्देसो मग्गदसण-पदं १०७. अणाणाए एगे सोवट्ठाणा, आणाए एगे निरुवट्ठाणा ॥ १०८. एतं ते मा होउ। १०६. एयं कुसलस्स दंसणं ॥ ११०. तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए, तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे ॥ १११. अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालवणयाए। ११२. जे महं' अबहिमणे ।। ११३. पवाएणं पवायं जाणेज्जा !! ११४. सहसम्मइयाए', परवागरणणं अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा ।। ११५. णिद्देसं णातिवद्देज्जा मेहावो ॥ सच्चस्स अणुसीलण-पदं ११६. सुपडिलेहिय' सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव' समभिजाणिया ।। ११७. इहारामं परिण्णाय, अल्लीण-गुत्तो परिव्वए । णिठ्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि त्ति बेमि ।। ११८. उड्ढं सोता अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिया, एते सोया वियक्खाया, जेहिं संगति पासहा ।। ११६. 'आवटें तु उवेहाए", 'एत्थ विरमेज्ज वेयवी" ॥ १२०. विणएत्त सोयं णिक्खम्म, एस महं अकम्मा जाणति पासति ।। १२१. पडिलेहाए णावकंखति, इह आगति गति परिणाय ।। १२२. अच्चेइ जाइ-मरणस्स वट्टमग्ग" वक्खाय-रए । १. अहं (चू)। उवेहाए (च)। २. ° सम्मुई (ति) याए (क, घ, च, छ)। ८. विवेगं किट्टइ वेदवी (चू. वृपा); एत्थ ३. लेयिं (च)। विरमेज्ज वेयवी (चूपा)। ४. सव्वत्ताए (च); सर्वांत्मना (व) । ६. विणएत्ता (चूपा)। ५. °मेतं (चू)। १०. णिक्कम्म (घ, छ)। ६. ज्जा (घ)। ११. वदुमग्गं (क); वहुमग्गं (च, शु)। ७. आवट्टमेयं तु पेहाए (ख, ग, घ); अट्टमेयं १२. विक्खाय (क, ख, ग, घ, च, छ)। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झषण (लोगसारो - बट्टो उद्देसो) परमप्प-पदं १२३. सव्वे सरा णियति ॥ १२४. तक्का जत्थ ण विज्जइ ॥ १२५. मई तत्थ ण गहिया ॥ १२६. ओए अप्पतिद्वाणस्स' खेयन्ने || १२७. से ण दोहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमण्डले ! १२८. ण किण्हे, न णीले, ण लोहिए', ण हालिदे, ण सुक्किल्ले ॥ १२६. ण सुब्भिगंधे, ण दुरभिगंधे ॥ १३० ण तित्ते, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे ॥ १३१. ण कक्खडे, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण गिद्धे, ण लुक्खे ॥ १३२. ण काऊ !! १३३. ण रुहे ।। १३४. ण संगे ।। १३५. ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णा ॥ १३६. परिणे सणें ॥ १३७. उवमा ण विज्जए ॥ १३८. अरूवी सत्ता ॥ १३६. अपयस्स पयं णत्थि || १४०. सेण सद्दे ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव | १. वृत्तिकृता एतत्पदं षष्ठ्यन्तं व्याख्यातम्, तेन अर्थस्य जटिलता जाता । प्राकृतशैल्या एतत् विभक्तिपरिवर्तनपूर्वकं प्रथमान्तं व्याख्यायते, तदा अर्थसारल्यं स्यात् । ४७ -त्ति बेमि ॥ २. हुस्से (क, घ, च); रहस्से (ख); हरस्से (छ) । ३. सुरहि० (क, ख, ग ) । ४. कक्कडे (घ, छ) । ५. सव्वओ (चू); X (घ) 1 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें अज्झयणं धुय पढमो उद्देसो नाणस्स निरूवण-पदं १. ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ' से णरे !। २. जस्सिमाओ जाईओ सव्वओ सुपडिले ह्यिाओ भवंति, अक्खाइ से णाणमणेलिसं॥ ३. से किट्टति तेसि समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं ।। ४. एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति ।। अणत्तपण्णाणं अवसाद-पदं पासह एगेवसीयमाणे' अणत्तपण्णे ।। ६. से बेमि–से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते, पच्छन्न-पलासे, उम्मग' से णो लहइ॥ भंजगा इव सन्निवेसं णो चयंति, एवं पेगे'-- 'अणेगरूवेहि कुलेहि" जाया, 'रूवेहिं सत्ता कलुणं थणंति, णियाणाओ ते ण लभंति मोक्खं ॥ १. अक्खाति (क, ख, ग, घ); अग्घाति (च)। २. विसीय (क, ख, ग, घ, चू)। ३. उम्मुग्ग (क, घ, छ)। ४. वेगे (च)। ५. अणेगगोतेसु कुलेसु (च)। ६. रूवेसु गिद्धा (च)। ४८ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (धुयं-पढमो उद्देसो) ४६ ८. अह पास 'तेहि-तेहि कुलेहि आयत्ताए जाया गंडी अदुवा कोढी', रायंसी अवमारियं । काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा ॥ उरि पास मूयं च, सूणिअं च गिलासिणि । वेवई पीढसप्पि च, सिलिवयं महुमेहणि ॥ सोलस एते रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो। अह णं फुसंति आयंका, फासा य असमंजसा ॥ मरणं तेसि संपेहाए', उववायं चयर्ण च णच्चा। परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा॥ ६. संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया ।। १० तामेव सई असई अतिअच्च" उच्चावयफासे पडिसंवेदेति ॥ ११. बुद्धेहिं एयं पवेदितं ।। पाणि-किलेस-पदं १२. संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो ।। १३. पाणी पाणे किलेसंति ॥ १४. पास लोए महाभयं ॥ तिगिच्छापसंगे अहिंसा-पदं १५. बहुदुक्खा हु जंतवो॥ १६. सत्ता कामेहि माणवा ॥ १७. अबलेण वहं गच्छंति, सरीरेण पभंगुरेण ॥ १८. अट्टे से बहुदुक्खे, इति बाले पगब्भइ"॥ १. तेहिं (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ)। ११. अतिगच्च (क)। २. x (चू)। १२. वेदेति (क, ख, घ, च, छ) । ३. कोट्ठी (ग, छ)। १३. कामेसु (च)। ४. मूई (क, घ, चू)। १४. पकुवइ (क, ख, ग, घ, च, छ, व, च); ५. वेवयं (क, ख, ग, च); वेवइयं (घ)। पगब्भइ (चूपा); वृत्तौ चूर्णी च 'पकुवइ' ६. सिलेबई (ध, च)। पाठो व्याख्यातोस्ति । किन्तु उत्तराध्ययनस्य ७. मधुमेहणं (छ)। पञ्चमाध्ययने सप्तमे श्लोके 'इइ बाले ८. सपेहाए (क, घ, च); पेहाए (ख, ग)। पगब्भई' एवं पाठोस्ति। चूणिकृता ६. परियागं (ख, ग, घ) (अशुद्ध); पलिपागं पाठान्तरत्वेन एष पाठो व्याख्यात: । अर्थ मीमांसयासी अधिक संगच्छते। तेनासौ १०, तमसि (क, घ)। मूले स्वीकृतः । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो १६. एते रोगे बहू णच्चा, आउरा परितावए ।। २०. णालं पास ॥ २१. अलं तवेएहिं ।। २२. एयं पास मुणी ! महन्भयं ।। २३. णातिवाएज्ज कंचणं ॥ सयणपरिच्चायधुत-पदं २४. आयाण भो ! सुस्सूस भो ! 'धूयवादं पवेदइस्सामि" ॥ २५. इह खलु अत्तत्ताए तेहि-तेहिं कुलेहिं अभिसेएण' अभिसंभूता, अभिसंजाता, अभिणिव्वट्टा, अभिसंवुड्डा', अभिसंबुद्धा अभिणिक्खंता, अणुपुत्वेण महामुणी ।। २६. तं परक्कमंतं परिदेवमाणा, "मा णे चयाहि" इति ते वदंति ॥ छंदोवणीया अज्झोववन्ना, अक्कंदकारी जणगा रुवंति । २७. अतारिसे मुणी, णो' ओहंतरए, जणगा जेण विप्पजढा ।। २८. सरणं तत्थ णो समेति । किह णाम से तत्थ रमति ? २६. एयं' गाणं सया समणुवासिज्जासि । त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो कम्मपरिच्चायधुत-पदं ३०. आतुरं लोयमायाए, 'चइत्ता पुव्वसंजोग' हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरम्मि __ वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा, 'अहेगे तमचाइ कुसीला॥ ३१. वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिज्जा" ॥ ३२. अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए ।। ३३. कामे ममायमाणस्स इयाणि वा मुहुत्त" वा अपरिमाणाए भेदे । १. नागार्जुनीया:-धूयोवायं पवेयइस्सामि (च); ६. एवं (च) (अशुद्ध) 1 धूतोवायं पवेयंति (ब)। ७. जहित्ता पुश्वमायतणं (च) । २. X(घ, च)। ८. हिच्चा इह (चू)। ३. x (क, छ); ° संवड्ढा (ख, ग); अभिबुद्धा १. जहा (ख) । (घ)। १०. विओ° (छ)। ४. जहाहि (चू)। ११. मुहुत्तेण (ख, ग, च, छ, व) । ५. X(क, घ, च, छ)। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (धुयत्रीओ उद्देसो) ३४. एवं से अंतराइएहिं कामेहिं आकेवलिएहि अवितिण्णा' चेए । ३५. 'अहेगे धम्म मादाय" 'आयाणप्पभिई सुपणिहिए" चरे ॥ ३६. अपलीयमाणे दढे॥ ३७. सव्वं गेहि परिण्णाय, एस पणए महामुणी ॥ ३८. अइअच्च सव्वतो संगं “ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि ।" ३६. जयमाणे एत्थ विरते अणगारे सव्वओ मुंडे रीयंते ।। ४०. जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति" ओमोयरियाए ।। ४१. से अक्कुठे व हए व लूसिए" वा ॥ ४२. पलियं पगंथे अदुवा पगंथे ॥ ४३. अतहेहि सद्द-फासेहि, इति संखाए । ४४. एगतरे अण्णयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए ॥ ४५. जे य हिरी, जे य अहिरीमणा" ! ४६. चिच्चा सव्वं विसोत्तियं, 'फासे फासे समियदसणे ॥ ४७. एते भो ! णगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अणागमणधम्मिणो॥ ४८. आणाए मामगं धम्मं ॥ ४६. एस उत्तरवादे, इह माणवाणं वियाहिते ॥ ५०. एत्थोवरए तं भोसमाणे ।। ५१. आयाणिज्ज परिण्णाय, परियारण विगिचइ ॥ ५२. 'इहमेगेसिं एगचरिया होति ।। ५३. तत्थिय राइयरेहि कुले हि सुद्धसणाए सव्वेसणाए ।। ५४. से मेहावी परिव्वए॥ १. अकेवलि (च)। ७. अय्प (क, ग, घ, छ)। २. अवतिन्ना (ग, छ, क)। ८. गिहि (ग्व, घ); गधं (थं) (चू)। ३. एताणि विवज्जतेण पढिज्जति अत्थआसा- १. रीयते (क, ध, च)। वातो--अहेगे तं चाई सुसीले वत्थं पडिग्गहं १०. ० जसिते (छ): (च)। कंबलं पाय-पुंछणं अविउसिज्ज, अणुपुव्वेण ११. संचिट्टति (छ)। अहियासमाणो परीसहे दुरहियासओ, कामे १२. वा (ख, च, छ)। अममायमाणस्स इदाणि वा मुहुत्ते वा १३. लुंचिए (ख, ग, छ, वृ) । अपरिमाणाए भेदे । एवं से अंतराइएहिं १४. पकत्थ (क); पकथे (ख, ग, च); पगत्थ कामेहि आकेवलिएहिं वितिन्ना चेए (च)। (छ)। ४. सहिए धम्ममायाय (चूपा)। १५. °माणे (णा) (ख, घ, च, छ) । ५. पभितिसु पणि' (क, ख, ग, च, छ, व)। १६. फासे (ख, घ); संफासे फासे (च)। ६. उवदेसमेव चर (च)। १७. X(च)। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ५५. सुभि अदुवा दुब्भि || ५६. अदुवा तत्थ मेरवा ॥ ५७. पाणा पाणे किलेसंति ॥ ५८. ते फासे पुट्ठो धारो' अहियासेज्जासि । तइओ उद्देसो उवगरणपरिच्चायधुत पर्द ५६. 'एयं खु मुणो” आयाणं सया सुअक्खायवम्मे विधूतकप्पे णिज्भोसइत्ता' ॥ ६०. जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स गो एवं भवइ - परिजुण्णे' मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्aसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि ॥ ६१. अदुवा] तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, ते उफासा संति, दंसमसग फासा फुसति ॥ ६२. एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले || ६३. 'लाघवं आगममाणे 11 ६४. तवे से अभिसमण्णा गए भवति || ६५. जहेय' भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो' सव्वत्ताए समत्तमेव ' समभिजाणिया | ६७. आगयपण्णाणाणं किसा बाहा" भवंति पयणुए य मंससोणिए । ६८. विस्सेणि कट्टु, परिण्णाए ।। १. वीरो (रे) (क, च) २. एस मुणी (चू) । ३. ० सत्ता ( क, ख, ग, छ, वृ) । जिणे (घ, छ) । ४. सरीरलाघवधुत-पदं ६६. एवं तेसि महावीराणं चिरराई पुव्वाई वासाणि रीयमाणाणं दवियाणं पास अहियासि ॥ ५. X ( क, घ, च ) 1 ६. नागार्जुनीया:- एवं खलु से उवगरण कम्मक्खयकारणं लाघवियं तवं (चू, वृ) 1 आयारो -त्ति बेमि ॥ करेइ १२. ०ण्णाय ( ख, ग, च, छ ) । ७. से जहेयं (च ) । ८. नागार्जुनीयाः सव्वं । ६. सम्मत्तमेव (ख, ग, घ, च, छ, वृ); समत्तमेव (वृपा) । १०. ० जाणित्ता ( ख, ग, च) । ११. वाधा (क, च); बाहवो (छ) 1 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AN छटुं अज्झयणं (धुर्य-चउत्थो उद्दसा) ६९. एस तिपणे मुत्ते विरए वियाहिए त्ति बेमि ।। संजमधुत-पदं ७०. विरयं भिक्खु रीयंतं, चिररातोसियं, अरती तत्थ किं विधारए ? ७१. संधेमाणे समुट्ठिए । ७२. जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे 'आयरिय-पदेसिए । ७३. 'ते अणवकंखमाणा'' अणतिवाएमाणा' दइया मेहाविणो पंडिया ।। विणयधुत-पदं ७४. एवं तेसि भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दिया-पोए । ७५. एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइय। –त्ति बेमि ॥ चउत्थो उद्देसो गोरवपरिच्चायधुत-पदं ७६. एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइया 'तेहिं महावीरेहि"" पण्णाणमंतेहि ॥ ७७. तेसितिए" पण्णाणमुवलब्भ हिच्चा उवसमें 'फारुसियं समादियंति'३ ।। ७८. वसित्ता बंभचेरंसि आणं 'तं णो' त्ति मण्णमाणा ।। ७६. अग्धाय" तु सोच्चा णिसम्म समणुण्णा जीविस्सामो एगे णिक्खम्म ते असंभवंता विडज्झमाणा, कामेहि गिद्धा अज्झोववण्णा । समाहिमाघायमझोसयता, सत्थारमेव फरुसं वदंति ॥ ८०. सोलमंता उवसंता, संखाए रीयमाणा। असोला अणुवयमाणा ॥ ८१. बितिया मंदस्स बालया ॥ १. न धारए (चूपा)। ८. आणुट्टाणे (चू)। २. संधणाए (च); संधेमाणे (चपा)। ६. दिय (ग)। ३. °ट्ठाय (ख, ग, च, छ)। १०. तेसि महावीराणं (च) । ४. आरिय-देसिए (क, च, चू)। ११. तेसंतिए (क, च); तेसिमंतिए (छ) । ५. ते अवयमाणा भावसोया (चू); ते अणव- १२. °पइलब्भ (चू)। कखेमाणा (चूपा)। १३. अहेगे फारुसियं समारभंति (चूपा); अहेगे ६. पाणे अणति° (ख, ग, छ, 4); अणतिवरते- फारुसियं समारहति (वृपा) । माणा जाव अपरिगिण्हेमाणा (चू)। १४. आघायं (क, ख, घ, च)। ७. चियत्ता (चू)। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो ८२. णियट्टमाणा वेगे आयार-गोयरमाइक्खंति णाणभट्ठा दंसणलूसिणो । ८३. णममाणा एगे जीवितं विप्परिणामेंति ।। ८४. पुट्ठा वेगे णियलैंति, जीवियस्सेव कारणा' ।। ८५. णिक्वंतं पि तेसिं दुन्निक्खंतं भवति ।। ८६. बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो-पुणो जाति पकति ॥ ८७. अहे संभवंता विद्दायमाणा, अहमंसी विउक्कसे ।। ८८. उदासीणे' फरुसं वदति ॥ ८६. पलियं पगंथे अदुवा पगंथे अतहेहिं ।। १०. तं महावी जाणिज्जा धम्म ॥ ६१. अहम्मट्ठी तुमंसि णाम बाले, आरंभट्टी, अणुवयमाणे, हणमाणे, घायमाणे, हणओ यावि समणुजाणमाणे, धोरे धम्मे उदीरिए, उवेहइ णं अणाणाए । १२. एस विसण्णे वितद्दे वियाहिते त्ति बेमि ॥ ६३. किमणेण भो! जणेण करिस्सामित्ति मण्ण माणा' --'एवं पेगे वइत्ता', मातरं पितरं हिच्चा, णातओ य परिग्गहं । 'वीरायमाणा समुहाए, अविहिंसा सुव्वया दंता ॥ १४. अहेगे पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे" ॥ ६५. वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवंति ।। १. कारणाए (क, घ, छ) । २३०) अस्य पाठस्य संवादिविवरणं लभ्यते-- २. गन्भाइ (च)। 'पुढविकाइयादि जीवे हणसि हणावेसि ३. मंसीति (ख, ग, च)। हणंतोवि' योगत्रिककरणत्रिगेण । ४. उदासोणा (छ)। ६. मण्णमाणे (क, ख, घ, च, छ)। ५. हण पाणे (क, ख, ग, घ च); हयमाणे ७. एवमेगे विदित्ता (क); एवं एगे विभत्ता (छ); 'छ' प्रती 'हयमाणे' इति पाठान्तरं (चूपा); विदित्ता (छ) । लभ्यते । अस्याधारेण 'हणमाणे' इति पाठस्य ८. माणे (क, घ, च, छ) । कल्पना जायते । अर्थसमीक्षयापि 'हणमाणे' . नागार्जुनीया--समणा भविस्सामो अणगारा इति पाठः समीचीनः प्रतिभाति । 'घाय माणे' अकिंचणा अपुत्ता अपसूया अविहिंसगा अत्र कारितम्य 'हणओयावि समणुजाणमाणे' सुव्वया दंता परदत्तभोइणो पावं कम्मन अत्रानुमोदनस्यार्थोस्ति । अस्मिन् संदर्भे यदि करिस्सामो समुदाए (च, व)। हणमाणे' पाठः स्यात् तदा कृतकारिता- १०.४(क, ख, ग, घ, च, छ, व)। नुमोदनस्य संगतिर्जायते। चर्णावपि (प० ११. पडियमाणे (च, छ)। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (धुयं-पंचमो उद्देसो) ६६. अहमेगेसि सिलोए' पावए भवइ, “से समणविभंते समणविन्भते" ॥ ६७. पासहेगे' समण्णागएहिं असमण्णागए', णममाणेहि अणममाणे, विरतेहिं अविरते, दविएहिं अदविए। ६८. अभिसमेच्चा पंडिए मेहावी णिट्ठियढे वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि । –त्ति बेमि ।। पंचमो उद्देसो तितितक्खाधुत-पदं ६६. से गिहेसु वा गिहतरेसु वा, गामेसु वा गामंतरेसु वा, नगरेसु वा नगरंतरेसु वा, जणवएसु वा 'जणवयंतरेसु वा", संतेगइया जणा लूसगा भवंति, अदुवा---- फासा फुसंति ते फासे, पुट्ठो वीरोहियासए । धम्मोवदेसधुत-पदं १००. ओए समियदंसणे ॥ १०१. दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं, आइखे विभए किट्टे वेयवी॥ १०२. से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए --संति, विरति, उवसमं, णिव्वाणं", सोयवियं, अज्जवियं, मद्दवियं, लाघवियं, अणइवत्तियं ॥ १०३. सव्वेसि पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा ।। -- - १. लोए (च, छ)। अद्धाणपडिवन्नस्स अच्छतस्स वा जाव २. समणक्तिते (क, घ, चू); समणे भवित्ता __ काउसग्गं ठाणं वा ठियस्स (चू, वृ)। समणविन्भते (ख, ग); समणे भवित्ता विभते ७. धीरो (च)। विभंते (छ)। ८. नागार्जुनीया:-'जे खलु समणे बहुस्सुए ३. पास एगे (क); पासवेगे (च) । बब्भागमे आहारणहेउकुसले धम्मकहालद्धि४. सह असमण्णागए (ख, ग, छ)। संपन्ने खेत्तं कालं पुरिसं समासज्ज केयं पुरिसे ५. सवओ परिवएज्जासि (चू)। के वा दरिसणमभिसपन्नो? एवं गुण जाइए ६. जणवयंतरेसु वा जाव रायहाणीसु वापभू धम्मस्स आघवित्तए'। रायहाणीअंतरेसु वा गामणयरतरे वा गाम ६. अणु ट्ठिएसु वा जाव सोवट्ठिएसु वा (चू)। जणवयंतरे वा णगरजणवयंतरे वा जाव गाम- १०. जेव्वाणं (क, च)। रायहाणोअंतरे वा उज्जाणे वा उज्जाणंतरे ११. सोयं (ख, ग)। धा विहारभूमी गयस्स वा गच्छंतस्स बा १२. अणतिवातियं (च)। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो १०४. अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइवखमाणे--णो अत्ताणं आसाएज्जा, णो परं आसा एज्जा, णो अण्णाइं पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई आसाएज्जा ।। १०५. से अणासादए अणासादमाणे वुज्झमाणाणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं, जहा से दीवे असंदीणे, एवं से भवइ सरणं महामुणी ॥ कसायपरिच्चायधुत-पदं १०६. एवं से उठ्ठिए ठियप्पा', अणिहे अचले चले, अबहिलेस्से परिम्बए ॥ १०७. संखाय पेसलं धम्म, दि ट्ठिमं परिणिव्वुडे ॥ १०८. तम्हा संगं ति पासह ॥ १०६. गंथेहि गढिया' गरा, विसण्णा कामविप्पिया' । ११०. 'तम्हा लहाओ णो परिवित्तसेज्जा" ।। १११. जस्सिमे आरंभा सव्वतो सव्वत्ताए सुपरिणाया भवंति, 'जेसिमे लूसिणो णो परिवित्तसंति", से वता कोहं च माणं च मायं च लोभं च ।। ११२. एस तुट्टे वियाहिते त्ति बेमि ॥ ११३. कायस्स विओवाए, एस संगामसीसे वियाहिए। से हु पारंगमे मुणी, अवि हम्ममाणे फलगावयट्ठि', कालोवणीते कंखेज्ज कालं, जाव सरीरभेउ । -त्ति बेमि।। १. उट्रितप्पा (चू, च)। ६. तिउट्टे (चू)। २. गहिता (छ) ७. विवाघाए (ख, ग); विघाए (छ); विवायाए ३. कामक्कता (क, ख, ग, च, छ, वृ)। (च), व्याघातः (विआधाए) (वृ) ४. जंसि इमे लूसिणो णो परिवित्तसंति (चू); ८. हन्न° (क)। तम्हा लूहाओ णो परिवित्तसिज्जा (चूपा)। ६. ° तट्टि (क, छ) । ५. ४ (चू); जस्सि० (च, छ)। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं विमोक्खो पढमो उद्देसो असमणुण्णविमोक्ख-पदं १. से बेमि--समणुण्णस्स' वा असमणुण्णस्स' वा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा बत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा णो पाएज्जा, णो णिमंतेज्जा, णो कुज्जा वेयावडियं-परं आढायमाणे त्ति बेमि ।। २. धुवं चेयं जाणेज्जा -असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा, पायपुंछणं वा लभिय णो लभिय, भंजिय णो भुंजिय, पंथं विउत्ता' विउकम्म विभत्तं धम्म झोसेमाणे समेमाणे पलेमाणे", पाएज्ज वा, णिमंतेज्ज वा, कुज्जा वेयावडियं-परं अणाढायमाणे त्ति बेमि ।। असम्मायार-पदं ३. इहमेगेसि आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवति, ते इह आरंभट्ठी अणुवयमाणा हणमाणा' घायमाणा, हणतो यावि समणुजाणमाणा।। ४. अदुवा अदिन्नमाइयंति ।। ५. अदुवा वायाओ विउंजंति", तं जहा-अत्थि लोए, णस्थि लोए, धुवे लोए, अधुवे लोए, साइए लोए, अणाइए' लोए, सपज्जवसिते लोए, अपज्जवसिते १. अतः पूर्व से भिक्खू' इति गम्यमस्ति । (छ); मालेमाणा (चू) । २. अमणु ° (क, ख, ग। ६. द्रष्टव्यम्-६१६१ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. वियत्ता (क, छ); विवत्ताणं (ख, ग); ७. विप्पउंजंति (क, ख, ग, च, छ)। ___ विइयत्ता (च); विवत्तूण (चू)। ८. साइ (घ) । ४. जोसे ° (च)। ६. अणाइ (घ)। ५. मलेमाणा (घ); बलेमाणे (च); चलेमाणे Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ आयारो लोए, सुकडेत्ति वा दुक्कडेत्ति वा, कल्लाणेत्ति वा पावेत्ति वा, साहुत्ति वा असाहुत्ति वा, सिद्धीति वा असिद्धीति वा, णिरएत्ति वा अणि रएत्ति वा ।। ६. जमिणं विप्पडिवण्णा मामगं धम्मं पण्णवेमाणा।। ७. एत्थवि जाणह अकस्मात् ॥ ८. 'एवं तेसि णो सुअवखाए, णो सुपण्णत्ते धम्मे भवति" ।। विवेग-पदं ६. से जहेयं भगवया पवेदितं आसुपण्णेण जाणया पासया ॥ १०. अदुवा गुत्ती वओगोयरस्स ति बेमि ॥ ११. सव्वत्थ सम्मयं पावं ॥ १२. तमेव उवाइकम्म ।। १३. एस मह विवेगे वियाहिते ॥ १४. गामे वा अदुवा रणे ? व गामे णेव रण्णे धम्ममायाणह-पवेदितं माहणेण मईमया ।। १५. जामा तिग्णि उदाहिया', जेसु इमे आरिया' संबुज्झमाणा समुट्ठिया। १६. जे णिव्वुया पावेहि कम्मेहि, अणियाणा ते वियाहिया ॥ अहिंसा-पदं १७. उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, सव्वतो सव्वावंति च णं पडियक्कं 'जीवेहि कम्म समारंभे णं" ॥ १८. तं परिणाय मेहावी णेव सयं एतेहि काएहि दंडं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं एतेहि काएहिं दंडं समारंभावेज्जा, नेवण्णे एतेहिं काएहिं दंडं समारंभंते वि समणुजाणेज्जा ॥ जेवण्णे एतेहिं काएहि दंडं समारंभंति, तेसि पि वयं लज्जामो । २०. तं परिणाय मेहावी तं वा दंड, अण्णं वा दंडं, णो दंडभी दंडं समारंभेज्जासि । -त्ति बेमि ॥ १. पावइत्ति (क); पावएत्ति (ध, च, छ)। ६. आयरिया (घ, छ) । २. जाण (क, च); जाणे (घ)। ७. निम्बुडा (यू)। ३. अकम्हा (च)। ८. पाडेक्कं (क); पाडियक्कं (घ, धू)। ४. न एस धम्मे सुयक्खाए सुपन्नत्ते भवइ (चू)। ६. दंड समारभंते (चू)। ५. उदाहडा (ध, छ, चू); उदाहया (ख, ग)। १०. दंडभीरू (च)। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (विमोक्खो-बीओ उद्देसो) बीओ उद्देसो अणाचरणीय-विमोक्ख-पद से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिद्वेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयदृज्ज वा, सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलसि वा, कभारायतणंसि वा, हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकभित्तु गाहावती बूयाआउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्टाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं' अभिहडं आहट्टु चेतेमि', आवसह वा समुस्सिणोमि, से भुजह वसह आउसंतो समणा ! २२. भिक्खू तं गाहावति समणसं सवयसं पडियाइवखे-आउसंतो गाहावती ! णो खलु ते वयणं आढामि, णो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुम मम अट्टाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपंछणं वा पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएसि, आवसहं वा समुस्सिणासि, से विरतो आउसो गाहावती ! एयस्स अकरणाए। से भिक्ख परक्कमेज्ज बा, चिट्टेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयदृज्ज वा सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलसि वा, कुंभारायतगंसि वा°, हुरत्था वा कहिचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावती आयगयाए पहाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइ समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ, आवसहं वा समुस्सिणाति' तं भिक्खू परिधासे उं ।। २४. तं च भिक्खू जाणेज्जा-सहसम्मइयाए", परवागरणेणं, अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछण वा पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताई समारब्भ 'समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु १. सिट्ठ (ख, ग, घ)। २. आफुडं (च)। ३. वेतेमित्ति केयि भणंति करेमि, तं तु ण युज्जति (चू)। ४. आवसघं (ख, ग); आवसथं (छ)। ५. सं० पा०--परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था । ६. °स्सिणोति (क)। ७. सम्म (क, घ, च, छ)। ८. X (क, ग, घ, च, छ) । ६. सं० पा०-समारब्भ जाव चेएइ। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ξε आयारो एइ, आवसहं वा समुस्सिणाति', तं च भिक्खू पडिलेहाए' आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवाए' त्ति बेमि ॥ २५. भिक्खु च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे आहच्च गंथा फुसंति - "से हंता ! हणह, खणह, छिंदह, दहह, पचह, आलुपह, विलुपह, सहसाकारेह, विप्परामुसह" - ते फासे 'धीरो पुट्ठो" अहियासए || २६. अदुवा आयार-गोयरमाइक्खे, तक्किया ण मणेलिसं । 'अणुपुवेण सम्म पहा आयते || २७. अदुवा गुत्ती गोयरस्स" ॥ २८. बुद्धेहिं एयं पवेदितं - से समणुण्णे असमणुण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा डिग्ग्रहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा नो पाएज्जा, नो निमंतेज्जा, तो कुज्जा वेयावाडियं - परं आढायमाणे त्ति बेमि ॥ २६. धम्मनायाण, पवेइयं माहणेण मतिमया -- समगुण्णे समणुण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाएज्जा, णिमंतेज्जा, कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे' । - ---त्ति बेमि ॥ तइओ उद्देस पव्वज्जा-पदं ३०. मज्झिमेणं वयसा एगे, संबुज्झमाणा समुट्ठिता ॥ १. ० सिणोति ( क ) | २. संपडिलेहाए ( ख, ग, घ ) । ३. ० सेवणयाए (घ) 1 ४. सहसक्कारेह ( क ) 1 ५. पुट्ठो धीरो ( ख, ग, घ ); पुट्ठो वीरो (घ) । बोरो पुट्ठो (च) । ६. अदुवा वदगुत्तीए गोयरस्स अणुपुब्वैण सम्मं पडिलेहाए आयगुत्ते (क, ख, ग, घ, छ, वृ); चूर्णिव्याख्यातः पाठः सङ्गतोस्ति, यथा'असरिसं जं भणितं - अणण्णतुल्लं, अणुब्वणाणि सम्म, जं भणितं कम्मेण कित असरिसं, पडिलेहा पेक्खिता, आयमुत्ते तिहि गुत्तीहि उवउत्तो उत्तरेवि दिज्जमाणे कुप्पति णवा, सतं उत्तरसमत्थो भवति ताहे, अह गुत्ती एगंतेणं गुत्ती वयोगोयरे' । आदर्शेषु पाठपरिवर्तनं जातम् । वृत्तिकृतापि परिवर्तित पाठानुसारेण विवरण कृतम्, किन्तु अर्थमीमांसया नैतत् समीचीनं प्रतिभाति । अस्यैवाध्ययनस्य दशमे सूत्रे 'अदुवा गुत्ती वओगोयरस्त' इति पाठो लभ्यते । तेनास्माभिः चूर्णिसम्मतः पाठः स्वीकृतः । ७. ०मीणे (क, च) । ५. ० मी (क, च) । ६. मज्झ° ( ख ) । १०. वि एगे (क, ख, ग, च, छ, वृ); मिह एगे (घ) 1 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (विमोक्खो-तइओ उद्देसो) ३१. 'सोच्चा वई मेहावो", पंडियाणं निसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहि' पवेदिते ॥ अपरिग्गह-पदं ३२. ते अणवकखमाणा अणतिवाएमाणा अपरिग्गहमाणा णो 'परिग्गहावंतो सव्वा वंती" च णं लोगंसि !! ३३. णिहाय दंडं पाहि, पावं कम्मं अकुव्वमाणे, एस महं अगंथे वियाहिए । आहारहेउ-पदं ३४. ओए जुतिमस्स' खेयण्णे उववायं चवणं च णच्चा ॥ ३५. आहारोवचया देहा, परिसह-पभंगुरा ॥ ३६. पासहेगे सविदिएहिं परिगिलायमाणेहिं ।। ३७. ओए दयं दयइ॥ ३८. जे सन्निहाण -सत्थस्स खेयण्णे ।। ३६. से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खणण्णे विणयणे समयण्णे परिग्गहं अममाय अपडिपणे ॥ ४०. दुहओ छेत्ता नियाइ। अगणि-असेवण-पदं ४१. तं भिक्खं सीयफास-परिवेवमाणगायं उवसंकमित्तु गाहावई बूया आउसंतो समणा ! णो खलु ते गामधम्मा उव्वाहंति ? आउसंतो गाहावई ! णो खलु मम गामधम्मा उव्वाहति । सीयफास" णो खलु अहं संचाएमि अहियासित्तए । णो खलु मे कप्पति अगणिकायं उज्जालेत्तए वा पज्जालेत्तए वा, कायं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा अण्णेसिं वा वयणाओ। ४२. सिया से एवं वदंतस्स परो अगणिकायं उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता कायं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए। -त्ति बेमि ।। १. सोच्चा मेहावी वयणं (क, ख, ग, घ, छ); सह योजितोस्ति। सोच्चा मेहावी णं वयणं (चू) । ५. जुइमंतस्स (ख, ग, च); अहवा जुत्तिमं (चू)। २. समयाए (क)। ६. ओवायं (क, घ)। ३. आयरिएहिं (घ, छ)। ७. चयणं (घ, च)। ४. ०वंति सव्वावंति (ख, ग, घ, च, छ); ८. संनिहाणस्स (चू)। ०वती स सव्वा (चू); चूर्णिकृता 'स ६.x ()। सवावंति च णं लोगंसि' इति पाठस्य १०. अप्पं (च)। सम्बन्धः णिहाय दंडं पाणेहिं' अनेन सूत्रेण ११. ० फासं च (क, ख, च)। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ चो उद्देस उarरण- विमोक्ख-पदं ४३. जे भिक्खू तिहिं त्यहिं परिवसिते' पायचउत्थेहि, तस्स णं णो एवं भवतिचउत्थं वत्थं जाइस्सामि || ४४. से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा | ४५. अहापरिगहियाइं वत्थाई धारेज्जा | ४६. गो धोएज्जा', गो रएज्जा, गो धोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा ।। ४७. अपलिउंचमाणे ' गामंतरेसु || ४८. ओमचेलिए || ४६. एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं || ५०. अह पुण एवं जाणेज्जा - उवाइक्कते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाई परिवेज्जा, अहापरिजुण्णाई वत्थाई परिद्ववेत्ता ५१. अदुवा संतरुत्तरे' ॥ ५२. अदुवा एगसाडे ॥ ५३. 'अदुवा अचेले" ॥ ५४. लाघवियं आगममाणे || ५५. तवे से अभिसमन्नागए भवति ॥ ५६. जमेयं भगवया पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव" समभिजाणिया || सरीर-विमोक्ख पर्द आयारो ५७. जस्सगं भिक्खुस्स एवं भवति -पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीय- फासं अहियासितए से वसुमं सव्व समन्नागय पण्णाणेण अप्पाणेणं केइ अकरणाए आउट्टे || १. ० उसिते (घ) 1 २. वारिस्सामि ( ) ) ३. धावेज्जा ( ग ) ; धाएज्जा (घ) 1 ४. ओवमाणे (ख, च, छ) । ५. अवम ० ( क, ख, ग ) । ६. अथवावमचेल एककल्पपरित्यागात् द्विकल्प धारीत्यर्थः (वृ) | ७. x (च्) । ८. जयं (घ) । ६. सम्बया (घ ) ; सव्वताए (च); आवट्टे ( ख, ग ) 1 १०. सम्मत ० (वृपा) । ( ख, ग, घ, च, छ, वृ); समत्त Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठ मंअज्झयणं (विमोक्खो--पंचमो उद्देसो) ५८. तवस्सिणो हु तं सेयं, जमेगे' विहमाइए ॥ ५६. तत्थावि तस्स कालपरियाए। ६०. से वि तत्थ विअंतिकारए । ६१. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं', आणुगामियं । –ति बेमि ।। पंचमो उद्देसो उवगरण-विमोक्ख-पदं ६२. जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायतइएहि, तस्स णं णो एवं भवति–तइयं वत्थं जाइस्सामि ।। ६३. से अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाएज्जा ।। ६४. 'अहापरिमगहियाई वत्थाई धारेज्जा । ६५. णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोय-रत्ताइं वत्थाई धारेज्जा ॥ ६६. अपलिउंचमाणे गामंतरेसु।। ६७. ओमचे लिए ° ॥ ६८. एवं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गिय ।। ६६. अह पुण एवं जाणेज्जा-उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परि?वेज्जा, अहापरिजुषणाई वत्थाई परिद्ववेत्ता७०. अद्वा एगसाडे ॥ ७१. अदुवा अचेले ॥ ७२. लाधवियं आगममाणे ॥ ७३. तवे से अभिसमन्नागए भवति ॥ ७४. जमेयं भगवता' पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव' समभिजाणिया ।। गिलाणस्स भत्तपरिणा-पदं ७५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-"पुढो अबलो अहमंसि, नालमहमंसि 'गिहतर संकमणं" भिक्खायरिय-गमणाए" 'से एवं वदंतस्स परो अभिहडं असणं वा १. जंसेगे (क, घ, च)। २. वेहसादिए (छ)। ३. निस्सेम (ख, ग, घ, च); निस्सेसियं (चू)। ४. सं० पा० -जाएजा जाव एयं । ५. जहेयं (घ, छ)। ६. सम्मत्त ° (ख,ग,ध,च,छ.वृ); समत्त (वृपा) । ७. गृहाद्गृहान्तर समितुम्' इति वृत्तौ। ८. भिक्खायरियं (क, घ, च, छ)। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहटु दलएज्जा, से पुवामेव' आलोएज्जा आउसंतो ! गाहावती ! णो खलु मे कप्पइ 'अभिहडे असणे" वा पाणे खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा, पायएँ वा, अण्णे वा एयप्पगारे ।। वेयावच्चपकप्प-पदं ७६. जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगाणे-अहं च खलु पडिण्णत्तो अपडिण्णत्तेहि, गिलाणो अगिलाणेहि, अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं बेयावडियं सातिज्जिस्सामि। अहं वा वि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स, अगिलाणो गिलाणस्स, अभिकख साहम्मिअस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए । ७७. आहट्ट पइण्णं' आणखेस्सामि', आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्ट पइण्णं आणखेस्सामि, आहडं च णो सातिज्जिस्सामि, आहट्ट पइण्णं णो आणखेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आह१ पइण्णं णो आणखेस्सामि, भाइडं च णो सातिज्जिस्सामि ।। ७८. 'लाधवियं आगममाणे ।। ७६. तवे से अभिसमण्णागए भवति ।। ८०. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया॥ ८१. एवं से अहाकिट्टियमेव धम्म समहिजाणमाणे संते विरते सुसमाहितलेसे ॥ ८२. तत्थावि तस्स कालपरियाए ।। ८३. से तत्थ विअंतिकारए । ८४. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामिय" । -ति बेमि ।। - - - - - - - १. पुव ° (ख, ग, घ)। (४) भोत्तए वा पायए वा अन्ने वा तहप्प२. अभिहडं अमण (ख, ग, च) ! गारे (वृपा)। ३. भोइत्तए (ख, ग)। ७. करणयाए (क, च)। ४. पायत्तए (ख); पित्तए (ध); पातुए (छ); ८. परिणं (क, ख, ग, घ, च, छ); चूणिवृत्त्यपात्तए (च) 1 नुसारेण स्वीकृतोऽयं पाठः (सर्वत्र) । ५. तहप्पमारे (छ)। 6. आणिक्खि (ख, ग); अणिखि ० (च) । ६. तं भिक्खू के इ गाहावई उवसंकमित्तु बूया- १०. चिन्हान्तर्वर्ती पाठः चूर्णी वृत्तौ च समस्ति, आउसंतो समणा ! अहन्नं तव अट्ठाए असणं प्रतिषु नोपलभ्यते । चूर्ण्यनुसारेणायं पाठः वा (४) अभिहडं दलामि, से पूवामेव स्वीकृतः, वृत्तो 'समभिजाणमाणे' एतस्य जाणेज्जा-आउसंतो गाहावई ! जन्नं तुरं पश्चादसौ स्वीकृतोस्ति । मम अट्टाए असणं (४) अभिहडं चेतेसि, णो ११. अणु° (क ख, ग, च, छ)। य खलु मे कप्पइ एयप्पगार असण वा Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अ ( विमोक्खो -छट्टो उद्देसो) छट्टो उद्देसो ८५. जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवसिते पायबिइएण तस्स गो एवं भवइ – बिइयं वत्थं जाइस्सामि || ८६. से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा | ८७. अहापरिगहियं वत्थं धारेज्जा' ॥ ८८. णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोय-रत्तं वत्थं धारेज्जा ।। ८६. अपलिउंचमाणे गामतरेसु ॥ ६०. ओमचेलिए । ६१. एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं || ६२. अह पुण एवं जाणेज्जा -- उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुष्णं वत्थं परिवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिद्ववेत्ता ६३. 'अदुवा अचेले” ॥ ६४. लाघवियं आगममाणे ॥ ६५ ६५. " तवे से अभिसमण्णागए भवति ॥ ६६. जमेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव * समभिजाणिया || गत्तभावणा-पदं ६७. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ - एगो अहमंसि, न मे अस्थि कोइ, न याहमवि कस्सइ', एवं से एगागिणमेव' अप्पाणं समभिजाणिज्जा" || ६८. लाघवियं आगममाणे ॥ ६६. तवे से अभिसमन्नागए भवइ || १०० जमेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव ' समभिजाणिया || अणासायलाघव-पदं १०१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेमाणे १. सं० पा०-- धारेज्जा जाव गिम्हे । २. प्रदुवा एगसाडे अदुवा अचेले ( ख, ग, घ, च, छ, शु) । ३. सं० पा०-- आगममाणे जाव समत्तमेव । ४. द्रष्टव्यम् – ८५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ५. कस्सवि (घ ) | ६. एगाजिय° ( च, चू) । ७. एतेसु अट्ठसुवि उद्देसएस एस आलावओ सव्वत्थ भाणियव्वो ण मे अत्थि कोि हमविकसति, अहवा वेहाणसमरणउद्देशगातो आरम्भ एस आलावओ वत्तच्वो ण मम अस्थि को°ि (तू) । o ८. द्रष्टव्यम् - ६।१६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो णो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारेज्जा' आसाएमाणे, दाहिणाओ वा हणुयाओ वामं हणुयं णो संचारेज्जा आसाएमाणे, से अणासायमाणे । १०२. लाधवियं आगममाणे । १०३. तवे से अभिसमन्नागए भवइ ।। १०४. जमेयं भगवता पवेइयं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सम्वत्ताए समत्तमेव' समभिजाणिया ॥ संलेहणा-पदं १०५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-से 'गिलामि च" खलु अहं इमंसि समए' इमं सरीरगं अणुपुट्वेण परिवहित्तए, से आणुपुववेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुग्वेणं आहारं संवर्दृत्ता, कसाए पयणुए किच्चा, समाहियच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिनिव्वुडच्चे ॥ इंगिणिमरण-पदं १०६. अणपविसित्ता गामं वा, णगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंब वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, णिगमं वा, रायहाणि वा, 'तणाई जाएज्जा", तणाई जाएत्ता, से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिगपणग-दग मट्टिय-मक्कडासंताणए, 'पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय तणाई संथरेज्जा, तणाई संथरेत्ता" एत्थ वि समए इत्तरियं कुज्जा ।। १०७. तं सच्चं सच्चावादी' ओए तिपणे छिण्ण-कहकहे आतीतढे अणातीते वेच्चाण" भेउरं कायं, संविहूणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अस्सि 'विस्सं भइत्ता भेरवमणुचिण्णे ।। १. साहरेज्जा (चू)। ६. सच्चवादी (ख, ग, च, छ) । २. आढायमाणे (चुपा बृपा)। १०. अइअट्टे (क, घ, च)। ३. द्रष्टव्यम्-८.५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ११. चेच्चाण (ख, ग, घ, च, छ, वृ); वकार४. गिलाणा मिव (ख, ग); गिलाणमिव (छ,चू)। चकारयोलिपिसारश्यात् वर्णपरिवर्तनं जातम, ५. समये णो संचाएमि (ख, ग); न शक्नोमि तेन 'वेच्चाण' स्थाने 'चेच्चाण' इति रूप (वृ)। संवृत्तम् । वृत्तिकृता उपलब्धपाठाधारण ६. मंडबं (ग)। 'त्यक्त्वा' इति व्याख्यातम्, किन्तु भूणिकृता ७. ४ (क, ग, घ, च)। 'विइत्ता' इति व्याख्यातम् । प्रकरणसङ्गत्या८. पडिलेहिता संथारगं सथरेइ सधारगं स्माभिः 'वेच्चाण' इति पाठः स्वीकृतः । संथरेत्ता (चू)। १२. विस्संभणयाए (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ); Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयण (विमोक्खो-सत्तमो उद्देसो) १०८. तत्थावि तस्स कालपरियाए । १०६. से तत्थ विअंतिकारए । ११०. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयस, आणुगामियं । --ति बेमि ॥ सत्तमो उद्देसो उवगरण-विमोक्ख-पदं १११. जे भिक्खू अचेले परिवुसिते, 'तस्स ण एवं भवति-चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए, सीयफास अहियासित्तए, तेउफासं' अहियासित्तए, दंस-मसगफासं अहियासित्तए, एगतरे अण्णतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छादणं चहं णो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति कडि-बंधणं धारित्तए । ११२. अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सोयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले ।। ११३. लापवियं आगममाणे ।। ११४. तवे से अभिसमन्नागए भवति ।। ११५. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमे च्चा सब्बतो सव्वत्ताए समत्तमेव" समभिजाणिया । वेयावच्चपकप्प-पदं ११६. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति--अहं च खलु अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहटु दलइस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि ।। ११७. जस्स गं भिक्खुस्स एवं भवति --अहं च खलु अण्णेसि भिक्खूण असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहटु दलइस्सामि, आडं च णो सातिज्जिस्सामि । ११८. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-- अहं च खलु 'अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा वृत्ति कृता "विश्रंभणतया' इति व्याख्यातम्, ४. च (ख, ग, घ, च) ! किन्तु प्रकरणदृष्ट्या देहात्मभेदभावनाभि- ५. द्रष्टव्यम्-८।५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । धायकपाठः सुसङ्गतोस्ति, तेन चूर्णिकृता ६. आहट्ट पइण्णं (चू); चतुर्वपि सूत्रेषु असो व्याख्यातः पाठः स्वीकृतः ।। पाठभेदो द्रष्टव्यः । १. से वि (ख, ग, च, छ) 1 ७. दाहामि (चू)। २. तस्स णं भिक्खुस्स (वृ)। ८. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. चूर्णी असो पाठो न व्याख्यातो दृश्यते । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहदु नो दलइस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि ॥ ११६. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-अहं खलु अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आह१ नो दलइस्सामि, आहडं च णो सातिज्जिस्सामि। १२०. अहं च खलु तेण अहाइरित्तेणं' अहेसणिज्जेणं अहापरिग्गहिएणं असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा अभिकंख साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए॥ १२१. अहं वावि तेण अहातिरित्तेणं अहेसणिज्जेण अहापरिग्गहिएण असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा अभिकख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि ॥ १२२. लाघवियं आगममाणे || १२३. 'तवे से अभिसमण्णागए भवति । १२४. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए° समत्तमेव' समभिजाणिया ।। पाओवगमण-पदं १२५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-से गिलामि च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुन्वेणं आहारं संवदे॒त्ता कसाए पयणुए किच्चा समाहिअच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे ॥ १२६. अणुपविसित्ता गाम वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, णिगमं वा°, रायहाणि वा, तणाई जाएज्जा, तणाई जाएत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडासंताणए, पडिले हिय-पडिले यि पमज्जिय-पमज्जिय तणाई संथरेज्जा, तणाई संथरेत्ता एत्थ वि समए कायं च, जोगं च, इरियं च, पच्चक्खा एज्जा । १२७. 'तं सच्चं सच्चावादी ओए तिण्णे छिन्न-कहकहे आतीतट्टे अणातीते वेच्चाण' १. आहा' (क, च, छ)। २. सं० पा. -आगममाणे जाव समत्तमेव । ३. द्रष्टव्यम् -- ८।५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. गिलाएमि (ख, छ)। ५. सं० पा०-गाम वा जाव रायहाणि । ६. द्रष्टव्यम्---८।१०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (विमोक्खो—अट्ठमो उद्देसो) भेउरं कायं, संविहूणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अरिंस 'विस्सं भइत्ता" भेरव मणुचिण्णे ॥ १२८. तत्थावि तस्स कालपरियाए.।। १२६. से तत्थ विअतिकारए । १३०. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामिय। -ति बेमि॥ अट्ठमो उद्देसो अणसण-पदं १. 'आणुपुत्वी - विमोहाई', जाई धीरा' समासज्ज । वसुमंतों मइमंतो, सव्वं गच्चा अणेलिसं ॥ भत्तपच्चक्खाण-पदं २. दुविहं पि विदित्ताणं, बुद्धा धम्मस्स पारगा। ___अणुपुवीए संखाए, आरंभाओ तिउट्टति ।। ३. कसाए पयणुए किच्चा, अप्पाहारो तितिक्खए। अह भिक्खू गिलाएज्जा, आहारस्सेव अंतियं ।। ४. जीवियं णाभिकखेज्जा, मरणं णोवि पत्थए । दुहतोवि ण सज्जेज्जा, जीविते मरणे तहा ।। ५. मज्झत्थो णिज्जरापेही, समाहिमणुपालए । अंतो बहिं विउसिज्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥ ६. जं किचुवक्कम जाणे, आउखेमस्स अप्पणो । तस्सेव अंतरद्धाए, खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिए । ७. गामे वा अदवा रणे. थंडिलं पडिलेहिया। अप्पपाणं तु विण्णाय", तणाई संथरे मुणी ॥ ८. अणाहारो तुअट्टेज्जा", पुट्ठो तत्थहियासए। णातिवेलं उवचरे, माणुस्सेहिं वि पुटुओ" । १. द्रष्टव्यम् -८।१०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. विगिचित्ता दुट्ठादुट्ठाण जाणगा (चूपा)। २. नागार्जुनीया :-कट्टमिव आतडे तत्थ ७. ° पुव्वीइ (ग)। संचतितं सज्जीकरेत्ता उ पतिण्णे छिन्नकहं ८. कम्मुणाओ (घ, च, चूपा, वृपा)। कहेजा जाव आणुगामियं (चू)। ६. किंचिवुक्कम (च)। ३. अणुपुव्वेण विमोहाइं (क, ख, ग, ध, च, छ): १०. वियाणिता (न्) । ४. वीरा (क, च)। ११. णिवज्जेज्जा (चू, वृ)। ५. वुसिमंतो (चू)। १२. °पुटुवं (क, च, छ); पुट्ठए (ख, ग)। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ६. संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड्ढमहेचरा ! मंस-सोणियं, ण छणे ण पमज्जए || विहिंसंति, ठाणाओ ण विउब्भमे । विवित्तहि ", तिप्पमाणेऽहियासए || विवित्तहिं', आउ-कालस्स पारए । भुंजंति १०. पाणा देहं 'आसवेहि ११. गंथेहि इंगणिमरण-पदं पग्ग हियतरगं चेयं, १२. अयं से अवरे धम्मे, पडीयारं, आयवज्जं १३. हरिएसु ण णिवज्जेज्जा, विउसिज्ज' अणाहारो, पुट्ठो १४. इंदिएहि गिलायंते, समियं साहरें तहावि से अगरिहे", अचले जे १५. अभिक्कमे पडिक्कमे, संकुचए काय -साहारणट्टाए" एत्थ वावि १६. परक्कमे परिकिलते, अदुवा चिट्टे परिकिलते, णिसिएज्जा य इंदियाणि ठाण १७. 'आसीणे जेलिसं" मरणं, कोलावासं समासज्ज, वितहं १८. जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ ततो उक्कसे" अप्पाणं, सव्वे १. वि उब्भमे (क, ख, ग, घ, वृ ) । २. अवसब्बेहिं विचित्तेहिं (चू) । वियाणतो ॥ साहिए ! दवियस्स णायपुत्तेण विजहिज्जा तिहा तिहा ॥ थंडिलं 'मुणिआ सए" । तत्थहिया सए || ७ ३. तप्प (छ) । ४. विचिसेहि (क, ख, घ, च, छ, चू) । ५. ०तरागं ( क ); °तरं (च्) । ६. सुग्राहितो (चू) । ७. मुणि आसए ( च, चू) । ८. वियो ० ( ख, ग, च, छ) । ६. आहरे ( ख, ग, घ, च, छ, वृ) । मुणी । समाहिए || पसारए । अचेयणे || अहायते ! अंतसो ॥ समीरए । पाउरेसए || अवलंबए । फासेहियासए । १०. अगर हे ( क, ख, ग, छ) । ११. साहरण ० ( क, ग, छ); संधारण (चू); संहारण (च ) 1 आयारो १२. इत्थं (घ) । १३. परिक्क मे ( क, ख, ग, घ, च, छ) १४. आसीण मणेलिसं (क, घ, च); उदासीणो अलिसो (चू) | १५. उवक्कसे ( ग, घ, छ) । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ अट्ठम अज्झयणं (विमोक्खो—अट्टमो उद्देसी) १६. अयं चायततरे सिया, जो एवं अणुपालए। सव्वगायणिरोधेवि, ठाणातो ण विउब्भमे ।। २०. अयं से उत्तमे धम्मे, पुवट्ठाणस्स पग्गहे। अचिरं पडिले हित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ।। २१. अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कायं, ण मे देहे परीसहा ।। २२. जावज्जीवं परोसहा, उवसग्गा 'य संखाय। संवुडे देहभेयाए, इति पण्णेहियासए ।। २३. भेउरेसु न रज्जेज्जा, कामेसु बहुतरेसु' वि। इच्छा-लोभं ण सेवेज्जा, सुहुमं वणं सपेहिया । २४. सासएहि णिमंतेज्जा, 'दिव्वं मायं ण सद्दहे। तं पडिबुज्झ माहणे, सव्वं नूमं विधूणिया ।। २५. सव्वद्वेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए । तितिक्खं परमं णच्चा, विमोहण्णतरं हितं ।। -ति बेमि ।। पा, १. चायतरे (ख); चाततरे (चू, क); आयरे ४. इच्छ° (क)। द्रढम्माहतरे धम्मे (चूपा); यदि बा... ५. धुवं (धूव') (क, ख, ग, घ, च, छ, आत्ततरः (वृ)। वृपा)। २. तिति संखाते (क); इति संखया (ता) (ग, ६. दिव्यमाय (६., घ, च, चूपा) । घ, छ); इति संखाय (च, वृ)। ७. सव्वत्थेहिं (चू)। ३. बहुले सु (चूपा, वृपा)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं उवहाणसुयं पढमो उद्देसो भगवओ चरिया-पदं १. अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय । संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीयत्था' । २. णो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते । से पारए आवकहाए', एयं खु अणुधम्मियं तस्स ।। ३. चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाण-जाइया' आगम्म । अभिरुज्झ कायं विहरिसु, आरुसियाणं तत्थ हिसिसु ॥ ४. संवच्छरं साहियं मासं, जंण रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलए ततो चाई, तं बोसज्ज वत्थमणगारे ॥ ५. अदु पोरिसिं तिरियं भित्ति, चक्खमासज्ज अंतसो झाइ। अह चक्खु-भीया' सहिया, तं "हता हंता" बहवे कंदिसु ॥ ६. सयहिं वितिमिस्सेहि', इत्थीओ तत्थ से परिण्णाय । सागारियं ण सेवे, इति से सयं पवेसिया झाति ॥ १. रीइत्था (क, चू); रीयित्था (च); रीएत्था ५. आरुज्झ° (चू)। ६. ०भीय (ग, च, छ)। २. आवकहं (घ)। ७. विमिस्सेहिं (घ)। ३. आणु° (छ)। ८. साकारियं (ध, छ)। ४. जाती (क)। ७२ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ नवमं अज्झयणं (उवहाणसुयं----पढमो उद्देसो) ७. जे के इमे अगारत्था, मीसीभावं पहाय से झाति । प्ट्रो' वि णाभिभासिसु, गच्छति णाइवत्तई अंज ।। ८. णो सुगरमेतमेगेसि, णाभिभासे अभिवायमाणे। हयपुवो तत्थ दंडेहि, लूसियपुवो अप्पपुण्णेहिं ॥ ६. फरसाई दुत्तितिक्खाई, अतिअच्च मुणी परक्कममाणे । आघाय - णट्ट - गीताई, दंडजुद्धाइं मुट्ठिजुद्धाइं ।। गढिए मिहीं-कहासु, समयंमि णायसुए विसोगे अदक्खू । एताई सो उरालाई, गच्छइ णायपुत्ते' असरणाए ।। ११. अविसाहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा णिक्खंते । एगत्तगए' पिहियच्चे, से अहिण्णायदंसणे संते ।। पूढवि च आउकाय, तेउकायं च वाउकायं च । पणगाई बीय-हरियाई, तसकायं च सव्वसो णच्चा ॥ एयाइं संति पडिलेहे, चित्तमंताई से अभिण्णाय । परिवज्जिया" ण विहरित्था, इति संखाए से महावीरे ।। अदु' थावरा तसत्ताए, तसजीवा य थावरत्ताए। अदु सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणार कप्पिया पुढो बाला॥ १५. भगवं च एवं मन्नेसि", सोवहिए हु लुप्पती बाले । कम्मं च सव्वसो णच्चा, तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ।। १६. दुविहं समिच्च मेहावी, किरियमक्खायणेलिसिं" णाणी । आयाण-सोयमतिवाय-सोयं, जोगं च सब्वसो णच्चा ।। १७. अइवातियं अणाउट्टे', सयमण्णेसि अकरणयाए। जस्सित्थिओ परिणाया, सव्वकम्मावहाओ से अदक्खू । १. नागार्जुनीया : - पुट्ठो व सो अणुपुट्टो व, ६. पणगाय (ख)। णो अणुन्नाइ पावगं भगवं । पुढे व से अपुढे १०. वज्जिया (ख, ग)। वा (चू)। ११. अदुवा (ख, ग, च, छ); अदुव (क)। २. मिधु° (च); मिहु ° (छ) । १२. कम्मणा (चू)। ३. कहासु (क, घ)। १३. एवमन्नेसि (क, घ, च, छ, ब); एवमणि४. समतो (चू)। सित्ता (चू) ५. ° पुत्ते (ख, ग, वृ)। १४. मणेलिसं (ख, ग)। ६. णाइ° (छ)। १५. वत्तियं (छ)। ७. एगत्ति° (चू)। १६. अणाउट्टि (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ)। ८. कायं च (क, ग, च, छ)। १७. X (क, घ, च, छ)। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो १५. अहाकडं' न से सेवे, सव्वसो कम्मुणा 'य अदक्खू" । जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियर्ड भुजित्था ॥ १६. णो सेवती य परवत्थं, परपाए वि से ण भुजित्था। परिवज्जियाण ओमाणं, गच्छति संखडिं असरणाए । २०. मायणे असण-पाणस्स, णाणु गिद्धे रसेसु अपडिण्णे । अच्छिपि णो पमज्जिया', णोवि य कंड्यये मुणी गायं ।। २१. अप्पं तिरियं पेहाए, अप्पं पिट्टओ उपेहाए । अप्पं वुइएऽपडिभाणी, पंथपेही घरे जयमाणे ॥ २२. सिसिरंसि अद्धपडिबन्ने, तं वोसज्ज' वत्थमणगारे । पसारित्तु बाहुं परक्कमे, णो अवलंबियाण कंधंसि ।। २३. एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया। 'अपडिपणेण वीरेण, कासवेण -त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो भगवओ सेज्जा-पदं १ चरियासणाई सेज्जाओ, एगतियाओ जाओ बुइयाओ। आइक्ख ताई सयणासणाई, जाई सेवित्था से महावीरो॥ आवेसण - 'सभा-पवासु, पणियसालासु एगदा वासो। __ अदुवा पलियट्ठाणेसु, पलालपुंजेसु एगदा वासो ।। ३. आगंतारे आरामागारे, गामे णगरेवि" एगदा वासो। सुसाणे सुण्णगारे" वा, रुक्खमूले वि एगदा वासो॥ १. आहा° (च, छ)। (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ, चूपा)। २. बंधं अदक्खू (क); अदक्खू (ख, ग, च); य १०. अयं च श्लोकः चिरंतनटीकाकारेण न ___ दक्खू (घ)। व्याख्यातः (वृ)। ३. परं वत्थं (ख, ग)। ११. सयणाई (क, च)। ४. असरणयाए (घ, च)। १२. आएसण (चू)। ५. पमज्जिज्जा (ख)। १३. सभप्पवासु (क, घ, छ)। ६. व पेहाए (घ)! १४. ४ (क, च); तह य (घ, छ, ब)। ७. वोसरिज्ज (घ, चू)। १५. °वा (क)। ८. खंधंसि (क, च)। १६. सुण्णागारे (छ)। है. बहसो अपडिण्णेण, भगवया एवं रीयंति Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ नवमं अज्झयणं (उवहाणसुयं-बीओ उद्देसो) ४. एतेहिं मुणी सयणेहिं, समणे आसी' पतेरस' वासे । राइं दिवं पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति ।। ५. 'णिई पि णो पगामाए, सेवई' भगवं उट्टाए" । जग्गावती' य अप्पाणं, ईसि ‘साई या" सी अपडिण्णे ॥ ६. संबुज्झमाणे पुणरवि, आसिसु भगवं उट्ठाए। णिक्खम्म एगया राओ, बहिं चमिया मुहुत्तागं ।। सयणेहि तस्सुवसग्गा, भीमा आसी अणेगरूवा य । संसप्पगाय जे पाणा, अदुवा जे पक्खिणो उवचरति ॥ अदु कुचरा उवचरंति, गामरक्खा य सत्तिहत्था य । अदु गामिया उवसग्गा, इत्थी एगतिया पुरिसा य ॥ ९. इहलोइयाइं परलोइयाई, भीमाई अणेगरूवाई। अवि सुब्भि-दुब्भि-गंधाई, सद्दाइं अणेगरूवाई। १०. अहियासए सया समिए", फासाइं विरूवरूवाई। अरइं रइं अभिभूय, रीयई माहणे अबहुवाई ।। ११. स जणेहिं तत्थ पुच्छिसु, एगचरा वि एगदा राओ। अव्वाहिए कसाइत्था, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे ॥ १२. अयमंतरंसि को एत्थ, अहमंसि त्ति भिक्खू आहट्ट । अयमुत्तमे से धम्मे, तुसिणीए स कसाइए झाति ।। जंसिप्पेगे पवेयंति, सिसिरे मारुए पवायंते । तंसिप्पेगे अणगारा, हिमवाए णिवायमेसंति ॥ १४. संघाडिओ पविसिस्सामो', एहा य समादहमाणा। पिहिया वा सक्खामो", अतिदुक्खं हिमग-संफासा ।। १५. तंसि भगवं अपडिण्णे, अहे वियडे अहियासए दविए। णिक्खम्म एगदा राओ, चाएइ" भगवं समियाए । १. वासी (छ)। ८. चंकमित्ता (छ)। २. पतेलस (च)। ६. तत्थु ° (क, ख, ग, घ, छ) । ३. सेवइ य (ख, ग)। १०. अदुवा (क, छ)। ४. नागार्जुनीया:-णिहावि ण प्पगामा, आसो ११. सहिए, इति मंता भगवं अणगारे (चपा) । तहेव उठाए (चू)। १२. पहिरिस्सामो (चू)। ५. जगा° (ख, छ)। १३. पस्सामो (चू)। ६. साइ य (क, च, छ)। १४. च ठाएइ (ग)-अशुद्धं प्रतिभाति । ७. बहिं (च)। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ १६. एस विही 'अपडणेण भगवओ परीसह उवसग्ग-पदं १. तणफासे' सीयफासे २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ह. मईमया । अणुवकतो, माहणेण वीरेण, कासवेण महेसिणा " ॥ तइओ उद्देसो तेउफासे य फासाई वज्जभूमि च सुब्भ [ म्ह? ] भूमि च । आसणगाणि चेव पंताई ॥ य, अहियासए सया समिए, अह' दुच्चर-लाढमचारी, पंतं से ज्जं सेविसु, लाढेह तस्सुवसग्गा, बहवे जाणवया लूसिसु । कुक्कुरा वज्जभूमि अहेसि अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिसु णिवर्तिसु || अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए छुछुकारंति आहंसु, समणं एलिक्खए जणे भुज्जो, बहवे लट्ठ गहाय णालीय, समणा तत्थ एव एवं पि तत्थ विहरंता, पुटुपुब्वा संलुंचमाणा सुणएहिं दुच्चरगाणि निधाय दंड पाणेहि, तं अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए गाओ संगामसीसे वा, पारए तत्थ एवं पि तत्थ लाढेहि, अलद्धपुव्वो वि उवसंकमंतमपडिण्णं, गामंतियं पि कार्य दंस-मस य । विरूवरूवा ॥ १. बहुसो अपडिष्ण, भगवया एवं रीयंति (क, ख, ग, घ, छ, वृ, चुपा ) । २. ० फास (क, ख, ग, च) । ३. अवि (घू) । ४. समाणे (च) भसमाणे ( चू) 1 ५. जणा ( क, ख, ग, घ, च, छ, वृ) 1 दसमाणे* । उसंतुति ॥ फरुसासी । विहरिंसु || सुणएहि । तत्थ लाढेहिं ॥ वो सज्जमणगारे | अभिसमेच्चा ॥ पडिणिक्खमित्तु लूसिसु, एत्तो" परं पलेहित्ति ॥ १०. हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु' कुंता इ-फलेणं"। अदु लेलुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे दिसु ॥ से महावीरे । एगया गामो !! अप्पत्तं । ६. नालियं ( ख, ग, चू) । ७. दुच्चराणि (क, च, छ, वृ) । आयारो - त्ति बेमि ॥ ८. अदु (घ, छ) । ६. लूसिति (लू) । १०. एताओ (तो) (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. कुंतेण फलेण (घ) । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ नवमं अज्झयणं (उवहाणसुयं-उत्थो उद्देसो) ११. मंसाणि' छिन्नपुव्वाई, उभंति एगया कायं । परीसहाइं लुचिसु, अह्वा पंसुणा अवकिरिसु॥ १२. उच्चालइय णिहणि, अदवा आसणाओ खलइंस । वोसट्ठकाए पणयासी, दुक्खसहे भगवं अपडिपणे ॥ १३. सूरो संगामसीसे वा, संवुडे तत्थ से महावीरे । पडिसेवमाणे फरुसाइं, अचले भगवं रीइत्था ।। १४. एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया। "अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा" ! -त्ति बेमि ॥ चउत्थो उद्देसो भगवओ अतिगिच्छा-पदं १. ओमोदरियं चाएति, अपुढे वि भगवं रोगेहिं । पुढे वा से अपुढे वा, णो से सातिज्जति तेइच्छं । २. संसोहणं च वमणं च, गायन्भंगण सिणाणं च। संबाहणं 'ण से कप्पे', दंतपक्खालणं परिण्णाए ।। ३. विरए गामधम्मेहि, रीयति माहणे अबहुवाई। सिसिरंमि एगदा भगवं, छायाए झाइ आसी य ॥ भगवओ आहार-चरिया-पदं ४. आयावई य गिम्हाणं, अच्छइ उक्कुडुए अभिवाते । अदु जावइत्थं लू हेणं, ओयण - मंथु - कुम्मासेणं ॥ ५. एयाणि तिण्णि पडिसेवे, अट्ठ मासे य जावए भगवं । अपिइत्थ" एगया भगवं, अद्धमासं अदुवा मासं पि॥ १. मसूणि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. मभंगणं (घ)। २. उट्ट भिया (क, ख, ग, च, छ, वृ); उट्टभि- ६. ण सेवित्था (चू) । याए (घ)। ७. विरए य (क, घ, च, छ)। ३. उबकरिसु (क, ख, ग, घ, च, छ)--वृत्ति- ८. अभितावे (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ) । चूर्ण्यनुसारेण अशुद्ध प्रतिभाति । ६. जावद (ध)। ४. बहुसो अपडिण्णेण, भगवया एवं रोयंति (क, १०. अपियत्थ (चू) । ख, ग, घ, च, छ, वृ, चूपा)। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ६. 19. ८. ६. अवि साहिए दुबे मासे, छप्पि मासे अदुवा अपिवत्ता' । रायोवराय अपडणे, अन्नगिलाय मे गया भुजे ॥ छट्टेणं एगया भुंजे, अदुवा' अमेण दमेणं । दुवालसमेण एगया भुंजे, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे || णच्चाण से महावीरे, णो विय पावगं सयमकासी । अण्णेहिं वा ण कारित्था, कीरतं पि णाणुजाणित्था | १०. अदु वायसा घासेसणाए ११. अदु माहणं व समणं वा, सोवागं मूसियारं वा, १२. वित्तिच्छेद वज्र्ज्जतो, मंद परक्कमे भगवं १३. अवि सूइयं व" सुक्कं वा, अदु बक्कसं? पुलागं वा, गामं पविसे णयरं वा, घासमेसे कडं पट्ठाए । सुविसुद्ध मेसिया भगवं, आयत-जोगयाए सेवित्था ॥ दिगिछत्ता, जे अण्णे रसेसिणो सत्ता । चिट्ठते, सययं णिवतिते यहा ॥ गामपिंडोलगं च अतिहिं वा । कुक्कुरं 'वावि विहं ठियं " पुरतो || तेसप्पत्तियं" परिहरतो । अहिंसमाणो घासमेसित्था || (त्रिभिः कुलकम् ) सीर्यापिडं लद्धे पिंडे १४. अवि भाति से महावीरे, आसणत्थे उड्डमहे" तिरियं च, १५. अक्साई विग यही ", छउमत्थे वि परक्कममाणे, पेहमाणे" १. रीयित्था ( चू); विहरित्था (घ ) । २. अदु प्रट्ट ( ख ); अदुट्ठ ° ( ग ) । ३. णच्चाण (क, ख, ग, घ, च) । ४. पविस्स (शु) । ५. घासमा (चू) । ६. गवेसित्था ( चु) । ७. दिगिच्छित्ता ( ख, ग ) । पुराणकुम्मासं । अलद्धए दविए || अकुक्कुए झाणं । समाहिम पडणे || भाति । पमायं सई पि कुव्वित्था ॥ सद्दरूवे सुमुच्छिए " णो विविधं (वृ) | १०. तेसिमप्पत्तियं ( ख, ग ) ; तेसि पत्तिय (क, च); 'त्रासमकुर्वन्' (वृ) । ११. बा (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. बुक्कसं ( ख ) | १३. उड्ढं अहे य (यं ) ( ख, ग, घ, छ) । १४. लोए भाइ ( ख, ग ) ; भाइ (चू ) । ८. समयं (क, ख, ग, घ, च, छ); स्वीकृतपाठः १५. गेही य ( क, ख, ग, घ, च) । चूर्णिवृत्त्यनुसारी वर्तते । ६. वा विट्ठियं (क, ख ) ; वा विचिट्ठियं (घ); वा उवट्टियं (चू); वा चिट्ठियं (च); वा आयारो १६. अमुच्छिए ( ख, ग, च) १७. ण (च ) | Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (उबहाणस्य-चउत्थो उद्देसो) १६. सयमेव अभिसमागम्म, आयतजोगमायसोहीए । अभिणिव्वुडे अमाइल्ले, आवकहं भगवं समिआसी ।। १७. एस विही अणुक्कतो, माहणणं मईमया। 'अपडिण्णण वीरेण, कासवेण महेसिणा"। ---त्ति बेमि।। ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर २६६२७ अनुष्टुप् श्लोक-८४१ अक्षर १५ १. बहुसो अपडिण्णण, भगवया एवं रीयंति (क, ख, ग, घ, च, छ, वु, चूपा)। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं पिंडेसणा पढमो उद्देसो सचित्त-संसत्त-असणादि-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा-पाणेहिं वा, पणएहि वा, बीएहिं वा, हरिएहि दा–संसत्तं, उम्मिस्सं, सीओदएण वा ओसित्तं', रयसा वा परिवासियं', तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा—परहत्थंसि वा परपायंसि वा-अफासयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे वि' संते णो पडिग्गाहेज्जा ॥ २. से य आहच्च पडिग्गाहिए' सिया, से तं आयाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्क मेत्ता -- अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे, अप्प-पाणे, अप्प-बीए, अप्प-हरिए, अप्पोसे, अप्पुदए, अप्पुत्र्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए विगिचिय-विगिचिय, उम्मिस्सं विसोहिय-विसोहिय तओ संजयामेव भुजेज्ज वा पीएज्ज वा। ३. जं च णो संचाएज्जा भोत्तए वा पायए वा, 'से तमायाय" एगतमवक्कमेज्जा, प्रगतमवक्कमेत्ता-अहे झाम-थंडिलं सि वा, अद्वि-रासिसि वा, किट्ट-रासिसि १. से जं (क, ब)। २. उस्सितं (क); अभिसित्त (चू)। ३. घासियं (अ, क, घ, च, ब)। ४. ४ (चू)। ५. पडिगा (घ, छ, ब) । ६. गाहे (अ, घ, च, छ, ब)। ७. उम्मीसं (क, च)। ८. सेत्त° (अ, च, छ)। ६. किट्टि (छ)। ८ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वा,अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलसि' पडिले हिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव परिवेज्जा । ओसहि-आदि-पदं ४. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवितु समाणे सेज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा--कसिणाओ,सासिआओ, अविदल-कडाओ, अतिरिच्छच्छिन्नाओ, अव्वोच्छिन्नाओ, तरुणियं वा छिवाडि अणभिक्कंताभज्जियं' पेहाए-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्ठ समाणे सेज्जाओं' पुण ओसहोओ जाणेज्जा----अकसिणाओ, असासियाओ, विदल-कडाओ, तिरिच्छच्छिन्नाओ, वोच्छिण्णाओ, तरुणियं वा छिवाडि अभि क्कतं भज्जियं पेहाए-फासयं एसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।। ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्टे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जिय' वा, मथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलबं वा सई भज्जियं-अफासुर अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ७. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविटे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा—पिहुयं वा', 'बहुरजं वा, भुंज्जियं वा, मथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा असई भज्जियं-दुक्खुत्तो वा भज्जियं, तिक्खुत्तो वा भज्जियं—फासुयं एसणिज्ज *ति मण्णमाणे ° लाभे संते पडिगाहेज्जा। अण्णउत्थिय-गारत्थिय-सद्धि-पदं ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं" "पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे णो अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा" सद्धि गाहावइ-कुल पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा। १. थंडिल्लंसि (अ, छ)। हस्त ° वृत्तौ दुभियंति। २. से जाओ (क, ब, छ)। ८. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाव पविट्रे । ३. °क्कतभज्जियं (क, च); कंतम- ६. सं० पा०—पिहुयं वा जाव चाउलपलंवं । भज्जियं (घ)। १०. सं० पा०-एसणिज्ज जाव लाभे । ४. सं० पा०--भिक्खुणी वा जाव पविटे। ११. सं० पा०-गाहावइकूल जाव पविसितुकामे। ५. से जाओ (क, ग, छ, ब)। १२. परिहारिओ वा (अ, क, च, छ, ब)। ६. सं० पा.--भिक्खूणी वा जाव पवितु। १३. x (अ, क, च, छ, ब)। ७. भुंजियं (क, घ, च, छ, ब); भज्जियं (अ); Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पिडेसणा---पढमो उद्देसो) ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खम माणे वा पविसमाणे वा णो अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धि बह्यिा वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज' वा पविसेज्ज वा ॥ से भिक्खू वा भिक्खणी वा गामाणुगाम दुइज्जमाणे- णो अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्टे समाणे णो अण्णउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिअस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जा वा अणुपदेज्जा वा ।। अस्सिपडियाए-पदं १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अण पविटे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई 'समारब्भ समुद्दिस्स" कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकड वा अपरिसंतरकडं वा, वहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्रियं वा, परिभत्त वा' 'अपरिभुत्तं वा" आसेवियं वा अणासेवियं वा-- अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ॥ १" से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्रे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए बहवे साहम्भिया समुद्दिस्स, पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स काय पामिच्च अच्छेज्ज आणसट्ठ अभिहड आहटु चएइ। त तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंत रकडं वा अयुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभत्तं वा, आसे वियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्ज ति भण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ १३. १. न प्रविशेत् नापि ततो निष्कामेत् (व)। २, ३. सं० पा०-भिक्खूणी वा जाव पविट्ठ। ४. अस्सं° (क, च, छ, ब, वृ)। ५. समारंभमुद्दिस्स (च,च); समारभ (अ,घ)। ६. अबहिया अणीहड (क, च)। ७. X (चू) ८. x (क)।। ६. सं० पा०-अफामुयं जाव जो। १०. सं० पा०–एवं बहवे साहम्मिया एमं साह म्मिणि बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावगा भाणियन्वा। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ आयारचूला १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा--असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए एग साहम्मिणि समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसतरकड वा अपुरिसंतरकडं वा, वहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अगत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्त वा, आसेवियं वा अणासेविय वा-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाण लाभे संते णो पडिगाहज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए वहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स, पागाइं भूयाई जाबाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ । तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपरिसंतरकडं वा, बहिया णीहड वा अणोहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्त वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-अफासुर्य अणेस णिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ १५. समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-पदं १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्टे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स, पाणाई वा भूयाई वा जोवाइं वा सत्ताई वा समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ । तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरडं वा, वहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं'पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा बहवे समण-माण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्च अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अपुरिसंतरकडं, 'अबहिया १,२. सं० पा०—गाहावइकुलं जाव पविदे। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-बीओ उद्देसो) णीहडं', अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं-अफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा। १८. अह पुण एवं जाणेज्जा--पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्रियं, परिभुत्तं, आसेवियं----फासुय एसणिज्ज' "ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा ॥ कुल-पदं १६. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे, सेज्जाइं पुण कुलाई जाणेज्जा-इमेसु खलु कुलेसु णितिए पिंडे दिज्जइ, णितिए अग्ग-पिंडे दिज्जइ, णितिए भाए दिज्जइ, णितिए अवडभाए दिज्जइतहप्पगाराइं कुलाई णितियाइं णितिउमाणाई, णो भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा ।।। २०. एय" खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, जं सव्व?हिं समिए सहिए सया जए। --- त्ति बेमि॥ बीओ उद्देसो अठमी-आदि-पटव-पद २१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अमिपोसहिएसु वा, अद्धमासिएसु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तिमासिएसु वा, चाउमासिएसु वा, पंचमासिएमु वा, छमासिएसु वा उउसुवा, उउसंधीसु वा, उउपरियट्टेसु वा, बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगे एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, 'तिहि उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए" 'चउहि उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए', कुभीमुहाओ वा कलोवाइओं वा सण्णिहि-'सण्णिचयाओ वा परिएसिज्जमाणे पहाए-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा अपुरिसंतरकडं,१ १. बहिया अणीहडं (अ)। ७. x (च)। २. सं० पा० -अणेसणिज्जं जाव णो। ८. X (अ, क, घ, च, ब)। ३. सं० पा०—एसणिज्ज जाव पडिगाहेज्जा।। ६. कालओ वा ततो(छ);कालओ वा तिण्णो(ब)। ४. X (क, च)। १०. संणिचयाओ वा तओ एवं विहं जावतियं पिंड ५. एवं (घ, च, छ)। अशुद्ध प्रतिभाति । समणादीणं परिएसिज्जमाण पेहाए (ब)। ६. उदुसु (च)। ११. सं० पा०-अपुरिसंतरकडं जाव अणासेवितं ! Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ आयारचूला *अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं°, अणासेवितं--अफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ।। २२. अह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडं, 'बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं , आसेवियं –फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते' पडिगाहेज्जा ।। कुल-पदं २३. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविढे समाणे सेज्जाइं पुण कुलाई जाणेज्जा, तं जहा-उग्ग-कुलाणि वा, 'भोगकुलाणि" वा, राइण्ण-कुलाणि वा, खत्तिय-कुलाणि वा, इक्खाग-कुलाणि वा, हरिवंस-कुलाणि वा, एसिय-कुलाणि वा, वेसिय-कुलाणि वा, गंडाग-कुलाणि वा, कोट्टाग-कुलाणि वा, गामरक्खकुलाणि वा, पोक्कसालिय' कुलाणि वाअण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु कुलेसु अदुगुछिएसु अगरहिएसु, असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा फासुयं एसणिज्ज *ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा॥ महामह-पदं २४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा--असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएस वा, पिंड-णियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगंदमहेसु वा, भूय-महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, णाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग -महेसु वा, दह-महेसु वा, गई-महेसु वा', सर-महेसु वा, सागरमहेसु वा, आगर-महेसु वा-अण्णय रेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वद्रमाणेसु, बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहि" "उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, तिहिं उक्खाहि परिएसिज्जमाणे पहाए, चउहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पहाए, कंभीमहाओ वा कलोवाइओ वा° सण्णिहि-सपिणचयाओ वा परिएसिज्जमाणे पहाए-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अपरिसंतरकडं.२ १. सं० पा०-अणेसणिज्ज.."णो। ८. तलाग (घ, च, छ) । २. सं० पा०-पुरिसंतरकडं जाव आसेवियं । ६. वा असणमहेसु वा (क)। ३. सं० पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। १०. वणीमएसु (अ. क, च, छ, ब) अशुद्ध। ४. सं० पा०—भिक्खू वा जाव पवितु । ११. सं० पा०-दोहिं जाव सण्णि हिसण्णिचयाओ। ५. भोज-कुलाणि (चू)। ६. वोक्क • (अ, छ, ब, चू)। १२. गयं (अ, क, च); कयं (छ); ७. मं० पा०-एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा। सं० पा०-अपुरिसंतरकडं जाव णो। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं (पिंडेसणा- बीओ उद्देसो) "अबहिया णीह, अणत्तट्ठियं, अपरिभुक्तं, अणासेवितं - अफासुयं अणेसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ २५. अह पुण एवं जाणेज्जा - दिण्णं जं तेसिं दायव्वं । अह तत्थ भुंजमाणे पेहाए - गाहावइ-भारियं वा गाहावइ-भगिणि वा, गाहाव- पुत्तं वा गाहावइधूयं वा, सुहं वा, धाई वा, दासं वा, दासि वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा, से पुव्वामेव' आलोएज्जा' - आउसि ! त्ति वा भगणि! त्ति वा दाहिसि मे एतो अण्णयरं भोयणजायं ? से सेवं वदंतस्स परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलएज्जा - तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं' जाएज्जा, परो वा से देज्जा---फाय एस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा | संखडि-पदं २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए संखड णच्चा संखडि-पडियाए अभिसंधारेज्जा गमणाए || २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा- पाईणं संखड पच्चा पडीणं गच्छे, अणाढायमाणे, पडणं संखडि णच्चा पाईणं गच्छे, अणाढायमाणे, दाहिणं संखडि णच्चा उदीणं गच्छे, अणाढायमाणे, उदीणं संखडि णच्चा दाहिणं गच्छे, अणाढायमाणे || २८. जत्थेव सा संखडी सिया, तं जहा -- गामंसि वा, जगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वsसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा 'सण्णिवेसंसि वा रायहाणिसि वा" संखडि संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।। २९. केवली बूया आयाणमेयं - - - संखडि संखडि-पडियाए अभिसंधारेमाणे आहाकम्मियं वा, उद्देसियं वा, मौसजायं वा, कोयगडं वा, पामिच्चं वा, अच्छेज्जं वा, अणिसिद्धं वा अभिहडं वा आहट्टु दिज्जमाणं भुजेज्जा । असंजए भिक्खू - पडियार, खुड्डिय-दुवारियाओ महल्लियाओ" कुज्जा, महल्लिय १. पु० (, च ) 1 २. आलोएज्जा पभू वा पभूसंदिट्ठो (च); प्रभुं प्रभुसंदिष्टं वा ब्रूयात् ( वृ ) । ८६ ३. X (घ, छ) । ४. सं० पा० – फासूयं जाव पडिगाहेज्जा । ५. मंडबंसि ( ब ) । ६. रायहाणिसि वा सण्णिवेसंसि वा (वृ); चूर्णो- 'गामादि पुव्ववण्णिया' इति सङ्केतेन १८ १०६ अनुक्रमः अनुसृतः । ७. आययण ( वृपा) । ८०ज्जायं ( च, छ, ब ) । ६. अस्सं ० (घ, छ, ब ) । १०. महाद्वाराः (वृ) । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे० आधारचुला दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ शिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा, बहिं वा उवस्सयस्स' हरियाणि छिंदिय-छिदिय दालिय-दालिय, संथारगं संथरेज्जा - 'एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए।" तम्हा से संजए नियंट्ठे' तहृप्पगारं पुरे संखडि ' वा, पच्छा-संखड वा, संखडि संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए || ३०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणोए वा सामग्गियं, जं सव्बट्ठेहि समिए सहिए या जए । -त्ति बेमि ॥ तइओ उद्देस ३१. से एगइओ अष्णतरं संखड आसित्ता पिबित्ता छडेज्ज वा वमेज्ज वा, भुत्ते वासे णो सम्मं परिणमेज्जा, अण्णतरे वा से दुक्खे रोयातके समुपज्जेज्जा ।। ३२. केवली बूया आयाणमेयं - इह खलु भिक्खू गाहावइहिं वा, गाहावइणीहिं वा, परिवायएहिं वा, परिवाइयाहि वा, एगज्झ सद्धं सोंड पाउं भो ! वतिमिस्स हुरत्था वा, उवस्सय पडिलेहमाणे णो लभेज्जा, तमेव उवस्सयं सम्मिस्तिभावमावज्जेज्जा" || अण्णमण्णे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा किलोवे वा, तं भिक्खु उवसंकमित्तु बूया - आउसंतो ! समणा ! अहे आरामंसि वा, अहे उवस्यसि वा, राओ वा, वियाले वा, गामधम्म ' - णियंतियं कट्टु, रहस्सियं धम्म- परियारणाए आउट्टामो । तं चेगइओ सातिज्ज्ज्जा । अकरणिज्जं चेयं संखाए । एते आयाणा' संति संचिज्जमाणा, पच्चावाया भवंति" । तम्हा से संजय नियंठे तपगारं पुरे संखडि वा पच्छा-संखड वा, संखड संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा" गमणाए || १. कुज्जा उवासयस्स ( क, छ ) ; उवस्सयस्स कुज्जा (घ); उपाश्रयं संस्कुर्यात् (वृ ) | २. एस विलुंगयामो सिज्जाए अक्खाए ( अ, छ); एस खलु मयामो सेज्जाए अक्खाए ( क ) ; एस वि खलु गयामो सिज्जाए अक्खाए (च ); एस खलु गयामो सिज्जाए ( ब ) 1 ३. निम्गथे अण्णयरं वा (घ) । ४. X ( क, घ, च) । ५. सद्धि ( ब ) । ६. विति ( च, छ ) | ७. मिश्रीभावम् ( वृ) । ८. गाम ० ( चू); ग्रामासन्ने वा (वृ) । ६. आयतणाणि (घ, वृ) । १०. X ( अ, क, घ, च, छ) । ११. ० धारेज्ज ( अ ) 1 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पिडेसणा-तइओ उद्देसो) ३३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयर' संखडि सोच्चा णिसम्म संपरिहावइ उस्सुय-भूयेण अप्पाणेणं । धुवा संखडी । णो संचाएइ तत्थ इतरेतरेहिं कुले हिं सामुदाणिय' एसियं, वेसियं, पिडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेत्तए । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थितरेतरेहि कुलेहिं सामुदाणियं एसियं, वेसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा ।। ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण जाणज्जा-गाम वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वर्ड वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुह वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा,° रायहाणि वा । इमंसि खलु गामसि वा', 'णगरंसि वा, खेडसि वा, कव्वडसि वा भडंबंसि वा, पट्टणासि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेससि वा°, रायहाणिसि वा, संखडी सिया । तं पि य गाम वा जाव रायहाणि वा, 'संखडि-पडियाए' गो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३५. केवली बूया आयाणमेय –आइण्णावमाण संखडि अणुपविस्समाणस्स-पाएण वा पाए अक्कंतपुव्वे भवइ, हत्थेण वा हत्थे संचालियपुव्वे भवइ, पाएण वा पाए आवडियपुव्वे भवइ, सीसेण वा सीसे संघट्टियपुव्वे भवइ, काएण वा काए संखोभियपुव्वे भवइ, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा अभियपुवे भवइ, सीओदएण वा ओसित्तपुत्वे भवइ, रयसा वा परिघासियपुवे भवइ, अणेसणिज्जे वा परिभुत्तपुठवे भवइ, अण्णेसि वा दिज्जमाणे पडिगाहियपुबे भवइ-तम्हा से संजए णिग्गंथे तहप्पगारं आइण्णो माणं संखडि संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्ज गमणाए । विचिगिच्छा-समावण्ण-पदं ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा एसणिज्जे सिया, अणेसणिज्जे सिया-विचिगिच्छ-समावण्णेणं अप्पाणेणं असमाहडाए लेस्साए, तहप्पगारं असणं वा" पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। १. अण्णयरि (अ, च)। ७. आइण्णो° (अ, घ, ब) । अशुद्ध । २. संप्रधावति (व)। ८. परिज्जासित (क); परियासित (च,छ)। ३. समु° (अ, क, च, छ)। ६. °णिज्जेण (अ, छ)। ४. सं० पा०-गाम वा जाव रायहाणि। १०. वितिगिच्छ (ब); वितिगिछ (अ); विचि५. सं० पा०-सामंसि वा जाव रायहाणिसि। गिछ (छ)। ६. संखडि संखडि-पडियाए (ब)। ११. सं० पा०-असणं वा 'लाभे । ---.-.-.--. . .--- ---- - - Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ आयारचूला सध्वभंडगमायाए-पदं ३७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं' 'पिडवाय-पडियाए° पविसितुकामे सव्वं भंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा।। ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा णिक्खम माणे वा, पविसमाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहार-भूमि वा वियार भूमि वा णिक्ख मेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणु गाम दूइज्जेज्जा ।। ४०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अह पुण एवं जाणेज्जा-तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमाणि' पहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छे संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पहाए, से एवं णच्चा णो सव्वं भंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा। बहिया विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा पविसेज्ज वा, णिवखमेज्ज वा, गामाणुगामं वा दूइज्जेज्जा ।। कुल-पदं ४१. से भिक्खू वा भिवखुणी वा सेज्जाइं पुण कुलाई जाणेज्जा, तं जहा-खत्तियाण वा, राईण वा, कुराईण वा, रायपेसियाण वा, रायवंसट्ठियाण वा, अंतो वा बहि' वा गच्छंताण वा, सण्णिविट्ठाण वा, णिमंतेमाणाण वा, अणिमंतेमाणाण वा असणं वा 'पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। [एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वद्धेहि समिए सहिए सया जए। –ति बेमि ॥] १. स० पा०- गाहावइकुलपविसितुकामे। २. अह यं (छ, छ)। ३. ° माणं (अ, घ)। ४. तिरिच्छ (अ, क, घ, च)। ५. X (क, छ, ब); च (अ)। ६... वंसुट्टियाणं (घ)। ७. बहियं (अ, छ); बाहियं (च); बहिया (घ)। ८. सं० पा०--असणं वा "लाभे। ६. कोष्ठकवर्ती पाठ आदर्शपु नोपलभ्यते, किन्तु प्रस्तुताध्ययनस्य रचनाक्रमेणासो युज्यते । उद्देशकान्ते सर्वत्र एतस्य दर्शनात् । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-चउत्थो उद्देसो) चउत्थो उद्देसो संखडि-पदं ४२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविटे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा--मंसादियं वा, मच्छादिय वा, मस-खलं वा, मच्छखलं' वा, आहेण वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं' वा होरमाणं पहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिगपणग-दग-मद्रिय-मक्कडासंताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिथि-किवणवणीमगा उवागता उवागमिस्संति, तत्थाइण्णावित्तो । णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिताए । सेव' णच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्ज गमणाए । ४३. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविठू समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-मसादियं वा, मच्छादियं वा, मंस-खलं वा, मच्छ-खल वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं वा हीरमाणं पहाए, अंतरा से मग्गा अप्पंडा" अप्पपाणा अप्पबीया अप्पहरिया अप्पोसा अप्पदया अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, णो तत्थ" बहवे समण-माहण'. •अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता ° उवागमिस्संति, अप्पाइण्णावित्ती। पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह"-धम्माणुओगचिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरे-सखडि वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडि पडियाए अभिसंधारेज्ज गमणाए । खीरिणी-गावी-पदं ४४. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं" पिंडवाय-पडियाए ° पविसितकामे __सेज्ज पण जाणेज्जा----खीरिणीओ" गावीओ खीरिज्जमाणीओ पहाए, असणं १. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पवितु। ६. स एवं (क, च); से एवं (अ, घ)। २. मस' (घ)। १०. सं० पा०----अप्पंडा जाव संताणगा। ३. मज्जा (घ, ब)। ११. जत्थ (अ, क, च, छ, ब)। ४. मज्ज° (घ)। १२. सं० पा०-समण-माहण जाव उवागमि५. अहेणं (घ, ब)! स्सति । ६. समील (च, ब)। १३. ०पेहाए (क, ब); पेहा (च) | ७. अन्नाइण्णा (क, च); अच्चाइण्णा (चू)! १४. सं. पा०-गाहावइ-कूलं जाव पविसितुकामे। ८. ° पेहाए (क, च, ब); पेहा (घ)। १५. खीरिणियाओ (क, घ, च, छ, ब)। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवसंखडिउजमाण पहाए, पुरा अप्पजाहिए, सेवं णच्चा णो गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्ख मेज्ज वा, पविसेज्ज वा। से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा ।। ४५. अह पुण एवं जाणेज्जा - खोरिणीओ गावीओ खोरियाओ पहाए, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पेहाए, पुरा पजूहिए, से एवं णच्चा तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। माइट्ठाण-पदं ४६. भिक्खागा णामेगे' एवमाहंसू-'समाणे वा, वसमाणे" वा, गामाणुगामं दूइज्ज माणे-"खुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्धाए, णो महालए, से हंता ! भयंतारो ! वाहिरगाणि गामागि भिक्खायरियाए वयह।" संति तत्थेग इयस्स भिक्खुस्स पुरे-संथुया वा, पच्छा-संथुया वा परिवसंति, तं जहा-गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहाव इ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराई कुलाइं पुरे-संथुयाणि वा, पच्छा-संथुयाणि वा, पुवामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि अवि य इत्थ लभिस्सामि-पिडं वा, लोयं वा, वीरं वा, दधि वा, णवणीयं वा, घयं वा, गुलं वा, तेल्लं वा, महं वा, मज्जं वा, मंसं वा, संकुलिं वा, फाणियं वा, 'पूयं वा", सिहरिणि वा, तं पुवामेव भोच्चा पेच्चा, पडिग्गहं संलिहिय संमज्जिय, तओ पच्छा भिक्खूहि सद्धि गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिस्सामि, णिक्खमिस्सामि वा । भाइट्टाणं संफासे, तं णो एवं करेज्जा!। ४७. से तत्थ भिक्खूहि सद्धि कालेण अणुपविसित्ता, तत्थितरेतरेहि कुलेहिं सामुदा णियं, एसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा ॥ ४८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सवढेहिं समिए सहिए सया जए। –ति वेमि ॥ १. उवक्खडि ० (अ, क, घ, छ, ब, चू)। ५. पडियाए (घ, ब)। २. अप्पमूहितो (क); अप्पयूहिए (घ); अप्पबू- ६. सकुलि (घ, छ); सक्कुलि (क्व) । हिए (छ)। ७. X (घ, छ, वृ)। ३. नाम मेगे (ब)। ८. तत्थियराइयरेहिं (घ, ब) ४. समाणा वा वसमाणा (च)। ९. सं० पा०-सामग्गिय । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिडेसणा-पंचमो उद्देसो) पंचमो उद्देसो ४६. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु अपविढे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-अग्ग-पिंड उक्खिप्पमाणं पहाए, अग्ग-पिंड णिक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं हीरमाणं पेहाए, अग्ग-पिडं परिभाइज्जमाणं पहाए, अग्ग-पिडं परिभुज्जमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं परिवेज्जमाणं पहाए, पुरा असिणाइ' वा, अवहाराइ वा, पुरा जत्थपणे समण-माहण-अतिहि-किविणवणीमगा खद्धं-खद्धं उवसंकमंति-से हंता अहमवि खर्च उवसंकमामि । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा ॥ विसमट्ठाण-परक्कम-पदं से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविटे समाणे-अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा-सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा ॥ केवलो बूया आयाण मेयं-से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा, 'पक्षलेज्ज वा'', पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, 'पक्खलमाणे वा", पवडमाणे वा, तत्थ से काये उच्चारेण वा, पासवणेण वा, खेलेण वा, सिंघाणेण वा, वंतेण वा, पित्तण वा, पूरण वा, सुक्केण वा, सोणिएण वा उवलित्ते सिया । तहप्पगारं कायं णो अणंतरह्यिाए पुढवीए, णो ससिणिद्धाए पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्टिए सअंडे सपाणे 'सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मट्टियमक्कडा ° संताणा णो आमज्जेज्ज वा, णो पमज्जेज्ज वा, णो संलिहेज्ज वा, 'णो णिल्लिहेज्ज वा"",णो" उव्वलेज्ज वा, णो उवट्टेज्ज वा, णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा। से पुवामेव अप्पसस रक्खं तणं वा, पतं वा, कटुं वा, सक्करं वा जाइज्जा, जाइत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे झामथंडिलंसि १. सं० पा० -भिक्खू वा जाव पवितु। ६. पोगाराणि (अ); पोग्गलाणि (ब)। २. अयपिण्डो-निष्पन्नस्य शाल्योदनादेराहारम्य ७.४ (अ, क, घ, च, ब)। देवताद्यार्थं स्तोकस्तोकोद्धारस्तमुत्क्षिप्यमाणं ८. x (अ, क, घ, च, ब)। दृष्ट्वा (वृ)। ६. सं० पा०-सपाणे जाव संताणए। ३. असणाइ (क, व); असिणेइ (छ) । १०. x (छ)। ४. खद्ध खद्धं (छ, ब)। ११. X (अ, क, घ, च, ब) सर्वत्र । ५. सं० पा०-भिक्ख वा जाव पविटे। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ आयारचूला किट्ट-रासिंसि वा, तुस - रासिसि वा, गोमय - रासिंसि तहप्पगारंसि थंडिलंसि, पडिले हिय- पडिलेहिय संजयामेव आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उवट्टेज्ज वा आयावेज्ज वा, यावज्ज वा ॥ वा', 'अट्ठि - रासिंसि वा, वा, अण्णयरंसि वा मज्जिय- पमज्जिय तओ दियाल - परक्कम - पदं ५२. से भिक्खू वा' "भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा' -- गोणं वियालं पडिप' पेहाए, महिसं वियाल पडिप पेहाए, एवं - मणुस्सं, आस, हत्थि, सीहं, वग्धं, त्रिगं, दीवियं, अच्छं, तरच्छं, परिसर, सियाल, विराल, सुणयं, कोलसुणयं, कोकतियं, चित्ताचिल्लडयं - वियाल पडिपहे पेहाए, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जयं गच्छेज्जा ।। विसमट्ठाण - परक्कम-पदं ५३. से भिक्खू वा' "भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे ० समाणे - अंतरा से ओवाओ वा, खाणू वा, कंटए वा, घसी' वा, भिलुगा वा, विसमेवा, विज्जले वा परियावज्जेज्जा - सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा | कंटक - बोंदिया-पदं ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलस्स दुबार बाहं कंटक - बोंदियाए परिपिहि पेहाए, तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणणुग्णविय अपडिलेहिय अपमज्जिय अगुणिज्ज वा पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा । तेसिं पुब्वामेव उग्गहं अणुण्णविय, पडिलेहिय- पडिलेहिय, पमज्जिय-मज्जिय तओ संजयामेव अवंगुणिज्ज वा, पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा ॥ अणावायमसंलोय-चिट्ठण-पदं ५५. से भिक्खू वा' "भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे १. सं० प१० -झामथंडिलंसि वा जाव अण्णपरंसि | २. सं० पा० - भिक्खू वा जाव पविट्टे । ३. यधात्र किञ्चिद्गवादिकमास्त इति (वृ) | ४. पडिप ( अ, क, च) । ५. हत्थी ( अ, क, च, छ) । ६. वियाल - प्तम् (वृ) । ७. सं० पा० भिक्खु वा जाव समाणे । ८. घसा ( ब ) । ६. सं० पा०--- भिक्खू वा जाव समाणे । ० Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-पंचमो उद्दसो) १७ समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा'-समणं वा, माहणं वा, गामपिंडोलगं वा, अतिहि वा पुठ्वपविटुं पेहाए णो तेसि संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठज्जा । ५६. 'केवली बूया आयाणमेयं -पुरा पेहाए तस्सट्ठाए परो असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा आहट्ट दलएज्जा। अह भिक्खूणं पुब्वोवदिट्ठा एस पइण्णा एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जंणो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठज्जा" । से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा। परिभायण-संभुंजण-पदं ५७. से से' परो अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहटु दलएज्जा, सेयं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! इमे भे असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा सव्वजणाए निसिट्टे, तं भुजह वा" णं परिभाएह वा गं । तं चेगइओ पडिगाहेत्ता तुसिणीओ उवेहेज्जा, अवियाई एवं मम मेव सिया । एवं माइट्टाणं संफासे, णो एवं करेज्जा ! से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, तत्थ गच्छेत्ता से पुवामेव आलोएज्जा आउसंतो समणा ! इमे भे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सव्वजणाए णिसिद्धे, तं भुंजह वा णं, परिभाएह वा णं । 'से वं" वदंतं परो वएज्जा-आउसंतो समणा ! तुम चेव णं परिभाएहि । से तत्थ परिभाएमाणे णो अप्पणो खद्धं-खद्धं डायं-डायं ऊसद-ऊसढं रसियं-रसियं मणुण्णं-मणुण्णं णिद्धं-णिद्धं लुक्खं-लुक्खं, से तत्थ अमच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बहसममेव परिभाएज्जा। से णं परिभाएमाणं परो वएज्जा--आउसंतो समणा ! मा गं तुमं परिभाएहि, सव्वे वेगतिया भोक्खामो वा, पाहामो वा। से तत्थ भुंजमाणे णो अपणो खद्धं खलु डायं डायं ऊसढं ऊसद रसियं रसियं मणुण्णं मणुण्ण णिद्धं णिद्धं लुक्खं-लुक्खं, से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बहुसममेव भुंजेज्ज वा, पीएज्ज वा ॥ पुवपविठ्ठसमणादि-उवाइक्कमण-पदं ५८. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा—समणं वा, माहणं वा, गाम-पिंडोलगं वा, अतिहिं १. यथात्र गृहे श्रमणादिः कश्चित्प्रविष्टः (वृ)। ६. x (अ, घ, च) । २. X (अ, क, छ, वृ)। ७. एवं (घ); अथैनं साधुमेवम् (व)। ३. X (घ)। ८. न गृण्हीयादिति (वृ)। ४. से एव (घ)। ६- सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ५, व (अ, ब)। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला वा विट्ठ पेहाए जो ते उवाइक्कम्म पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा । से तमायाए एगतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिद्वेज्जा | ५६. अह पुणेव जाणेज्जा -- पडिसेहिए व' दिन्ने वा, तओ तम्मि नियत्तिए । संजयामेव पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा ॥ ६८ ६०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए या जए । -fa afg° 11 छट्ठो उद्देसो भत्तट्ठ-समुदितपाणाणं उज्जुगमण-पदं ६१. से भिक्खू वा "भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवाय- पडियार अणुपविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - रसेसिणो बहुवे पाणा), घासेसणाए संथडे सविइए पेहाए, तं जहा - कुक्कुड जाइयं वा, सूयर जाइयं वा, अग्गपिंडंसि वा वायसा संथा सणिवइया पेहाए- -सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा | गाहावइकुल- पविट्ठस्स अकर णिज्ज-पदं ६२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे - नो गाहावइ - कुलस्स 'दुवार- साहं'' अवलंबिय- अवलंबिय चिट्ठज्जा । नो गाहावर - कुलस्स दगच्छडुणमत्ताए चिट्ठेज्जा । नो गाहावइ-कुलस्स चंदणिउयए चिट्ठेज्जा । नो गाहावइ- कुलस्स सिणाणस्स वा वच्चस्स वा, संलोए पडिदुवारे चिज्जा । णो गाहावइ - कुलस्स आलोयं वा थिग्गलं वा, संधिवा, दग भवणं वा बाहाओ परिज्भिय-पगिज्भिय, अंगुलियाए वा उद्दिसियउद्दितिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय- उण्णमिय णिज्झाएज्जा । गो गाहावई अंगुलियाए उद्दिसिय उद्दिसिय जाएज्जा । णो गाहावई अंगुलियाए चालियचालय जाएज्जा | णो गाहावई अंगुलियाए तज्जिय-तज्जिय जाएज्जा । णो गाहावई अंगुलियाए उक्खलुंपिय' - उक्खलु पिय जाएज्जा । जो गाहावई वंदियवंदिय जाएज्जा । 'णो व णं" फरुसं वएज्जा | १. वा (छ) । २. एवं ( अ, क, छ, वृ ) । ३. सं० पा०-- सामग्गिय ४. सं० पा०-- भिक्खु वा जाव समाणे । ५. ताञ्च (वृ) 1 ६. सं० रा० --- भिक्खुणी वा जाव पविट्टे । ७. दुवारसामग्गियं ( अ ); दुवारवाहं (क. च, चू); वारसाहं (घ) । चाउगुलंपिय२ (अ); उक्खलंपिय २ (क, च); २ (घ) । ६. णो चेव णं ( अ ) : णो वय ं ( च, छ, ब ) । ८. ० Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-छट्टो उद्देसो) पुरेकम्म-आदि-पदं ६३. अह तत्थ कंचि' भुजमाणं पेहाए, तं जहा - गाहावई' वा', 'गाहावइ-भारिय वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ- पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाई वा, दावा, दासि वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा । से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं भोयणजाय ? से सेवं वयंतस्स परो हृत्थं वा, मत्तं वा, दव्वि वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा । से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुमं हत्थं वा, मत्तं वा, व्वा, भायणं वा, सीओदग - वियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पोएहि वा, अभिकंखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि । से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दव्वि वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदा विडे वा, उच्छोलेत्ता पहोइत्ता आहट्टु दलएज्जा - तहपगारेण पुरेकम्मकरण हत्थेण वा मत्तेण वा, दव्वीए वा, भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते " णो पडिगाहेज्जा | ६४. अह पुण एवं जाणेज्जा णो पुरेकम्मकरण, उदउल्लेण । तहप्पगारेण उदउल्लेण हत्थेण वा मत्तेण वा, दव्वीए वा, भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुर्य' "अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ६५. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो उदउल्लेण, ससिणिद्वेण । "तहप्पगारेण ससिणिद्धेन हत्थे वा ॥ ६६. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो ससिणिद्वेण, ससरक्खेण । तहप्पगारेण सस रक्खेण हत्थे वा ॥ ६७. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो ससरक्खेण, मट्टिया-संसद्वेण । तहप्पगारेण मट्टियासंसद्वेण हत्येण वा || ६८. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो मट्टिया-संसद्वेण, ऊस-संसद्वेण । तहप्पगारेण ऊस - संसण हत्थे वा ॥ १. किंचि (क, घ, छ ) । २. गाहावइयं (च छ) । ३. सं० पा० गाहावई वा जाव कम्मकरिं । ४. सं० पा० - अणेस णिज्जं जाव णो । ५. अतः ८१ सूत्रपर्यन्तं 'देज्जा' इति क्रियापदमध्याहार्यम् । ६. सं० पा०-अफासूर्य जाव णो । ε€ ७. सं० पा० –समिणिद्वेण सेस तं चेव एवं ससरक्खे मट्टिया ऊसे हरियाले हिंगुनए, मणोसिला अंजणे लोणे गेरुय वष्णिय सेडिय, सोरयि पिटु कुक्कस उक्कुट्ट संसद्वेण । ८. अतः ८० सूत्रपर्यन्तं पूर्णपाठार्थ १।६४ सूत्रं द्रष्टव्यम् ! Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला ६६. अह पुण एवं जाणेज्जा --णो ऊस-संसट्टेण, हरियाल-संसट्टेण। तहप्पगारेण हरियाल-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ७०. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो हरियाल-संसद्वेण, हिंगुलय-संसद्वेण । तहप्पगारेण हिंगुलय-संसद्रुण हत्थेण वा !! ७१. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो हिंगुलय-संसट्टेण, मणोसिला-संसटेण । तहप्पगारेण मणोसिला-संसट्टेण हत्थेण वा ॥ ७२. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो मणोसिला-संसट्टेण, अंजण-संसटेण ! तहप्पगारेण अंजण-संसटुंण हत्थेण वा ।। ७३. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो अंजण-संसट्टेण, लोण-संसट्टेण। तहप्पगारेण लोण संसटेण हत्थेण वा ॥ ७४. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो लोण-संसट्टेण, गेरुय-संसटेण । तहप्पगारेण गेरुय संसटेण हत्थेण वा । ७५. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो गेरुय-संसट्ठण, वणिया-संसद्वेण ! तहप्पगारेण वणिया-संसद्रुण हत्थेण वा ।। ७६. अह पुण एव जाणेज्जा—णो वणिया-संस?ण, सेडिया-संसद्वेण । तहप्पगारेण सेडिया'-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ७७. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो सेडिया-संसद्वेण, सोरहिया-संसद्वेण । तहप्पगारेण सोरट्ठिया-संसद्रुण हत्थेण वा ।। ७८. अह पुण एवं जाणेज्जा--णो सोरट्ठिया-संसट्टेण, पिट्ठ-संसट्टेण । तहप्पगारेण पिट्ठ संसद्रुण हत्येण वा ।। ७६. अह पुण एवं जाणेज्जा –णो पिट्ठ-संसट्टेण, कुक्कस-संसट्टेण। तहप्पगारेण कुक्कस-संसद्रुण हत्थेण वा॥ ८०. अह पुण एवं जाणेज्जा---णो कुक्कस-संसट्टेण, उक्कुटु'-संसद्वेण । तहप्पगारेण उक्कुटु-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ८१. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो 'असंसट्टे, संसट्टे'। तहप्पगारेण संसट्टेण हत्थेण वा, मत्तेण वा, दवीए वा, भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा फासुयं 'एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।। १. से ढिय (क)। २. उक्किट्ठ (क)। ३. पूर्वपरिपाट्या एनत् पदद्वयमपि तृतीयान्तं युज्यते, किन्तु आदर्शेषु प्रथमान्तं लिखित- मस्ति, वृत्तिकृतापि तथैव व्याख्यातमस्ति, तेन यथा लब्ध एव पाठः स्वीकृतः । ४. सं. पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा । ५. अह पुणेवं जाणेज्जा असंसढे तहप्पगारेण संसट्टेण हत्येण वा ४ असणं वा ४ फासुयं जाव पडिगाहेज्जा 'छ' प्रतौ एतत् सूत्रमधिकमस्ति । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-छ8ो उद्देसो) पिहुय-आदि-कोट्टण-पदं ८२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे.समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-पिहुयं वा, बहुरयं वा', 'भज्जियं वा, मथु वा, चाउलं वा°, चाउलपलंबं वा, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिलाए', 'चित्तमंताए लेलुए. कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्टिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय ° -मक्कडासंताणाए कोट्टसु वा, कोट्टिति वा, कोट्टिस्संति वा, उप्पणिसुवा, उप्पणिति वा, उप्पणिस्संति वा --तहप्पगार पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा-अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते गो पडिगाहेज्जा ॥ लोण-पदं ८३. से भिक्खू वा 'भिक्खु णी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-बिलं वा लोणं, उभियं वा लोणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिलाए', 'चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणाए भिदिसु वा, भिदंति वा, भिदिस्संति वा, रुचिंसु वा, रुचिति वा, रुचिस्संति वा-बिल वा लोणं, उभियं वा लोणं-अफासुयं *अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ० णो पडिगाहेज्जा ।। अगणि-णिक्खित्त-पदं ८४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे ° समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा अगणिणिक्खितं, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा अफासूयं" •अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।। ८५. केवली बूया आयाणमेयं - अस्संजए"भिक्खु-पडियाए उस्सिचमाणे वा, निस्सि चमाणे वा, आमज्जमाणे वा, पमज्जमाणे वा, ओयारेमाणे वा, उब्वत्तमाणे? वा, अगणिजीवे हिंसेज्जा। १. सं० पा०--भिक्खू वा सेज्ज । २. सं० पा०--बहुरयं वा जाव चाउलपलंबं । ३. सं० पा०-सिलाए जाव मक्कडा। ४. उप्फ° (अ, क, च। ५. सं० पा०--अफासुयं जाव णो। ६. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे। ७. सं० पा०--सिलाए जाव सताणाए। ८. सं० पा०-अफासुयं जाब णो। ६. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । १०, सं० पा०-अफासुयं लाभे । ११. असंजए (छ)। १२. ओयत्तेमाणे (अ, क); पवत्तेमाणे (छ) । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ आया रचूला अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे, तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा अगणि-णिक्खित्तं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ८६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणोए वा सामग्गियं, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जए। -ति बेमि ॥ सत्तमो उद्देसो मालोहड-पदं ८७. से भिक्खू वा' भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे ० समाण सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा खधंसि वा, थंभंसि वा, मंचंसि वा, मालसि वा, पासायसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णयासि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि उणिक्खित्ते सिया–तहप्पगार मालोहडं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुय' 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ।। ५८. केवलो बूया आयाण मेयं-अस्संजए भिक्खु-पडियाए पीढं वा, फलगं वा, णिस्सेणि वा, उद्हलं वा, अवहट्ट उस्सविय आरुहेज्जा' । से तत्थ दुरुहमाणे पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, पवडमाणे वा, हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा, अण्णयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा भूयाणि वा जोवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघसेज्ज वा, संघटेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा--तं तहप्पगारं मालोहडं असणं वा 'पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ८६. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा कोट्टियाओ वा, कोलज्जाओ' वा, अस्संजए भिक्खु-पडियाए उक्कुज्जिय, अव उज्जिय, १. स. पा०–अणेसणिज्ज लाभे। ५. दूहमाणे (घ)। २. सं० पा०--भिवखू वा जाव समाणे । ६. बाहं (अ, क, घ, ब)। ३. सं. पा.--अफासुयं जाव णो। ७. सं० पा०-असणं वा ४ लाभे। ४. दहेज्मा (अ, ब); दूहिज्जा (घ); दुरु- ८. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे । हेज्जा (च)। ६. कोलेजाओ (क, च); कोलिज्जाओ (घ)। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-सत्तमो उद्देसो) १०३ ओहरिय, आहटु दलएज्जा-तहप्पगार असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा मालोहड़' ति णच्चा लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। मट्टिओलित्त-पदं ६०. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि? समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा मट्टिओलित्तं-तहप्पगारं असणं वा* *पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासूयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।।। केवली बुया आयाणमेयं-अस्संजए भिक्खू-पडियाए मट्टिओलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उभिदमाणे पुढवीकार्य समारंभेज्जा, तह तेउ-वाउवणस्सइ-तसकायं समारंभेज्जा, पुणरवि ओलिंपमाणे पच्छाकम्मं करेज्जा। अह भिक्खूण पुटवोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो', जं तहप्पगारं मट्टिओलित्तं असणं वा' 'पाणं वा खाइमं वा साइम वा अफासुय अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पुढविकाय-पइट्ठिय-पदं ६२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहाव इ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अण पविटे समाणे मेज्जं पुण जाणज्जा--असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुढविकाय-पइट्ठियं---तहप्पगारं असणं वा पाण वा खाइमं वा साइमं वा पुढविकाय-पइट्ठियं-अफासुय' 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ आउकाय-पइट्ठिय-पदं ६३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा" गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु° पविढे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउकाय-पइट्ठियं-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउकायपइट्रियं--अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। १. माला° (छ)। २. सं० पा०--भिक्ख वा जाव समाणे। ३. ओवलित्तं (घ, छ)। ४, सं० पा०—असणं वा ४ जाव लाभे। ५. सं० पा०—पुव्वोव दिट्टा जाव जं। ६. सं० पा०—असण वा ४ लाभे। ७. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पविट्टे । ८. सं० पा०—असणं वा ४ अफासुयं । ६. स० पा०- अफासुयं जाव णो। १०. सं० पा०--भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्टियं तह चेव । एवं अगणिकायपइट्टियं लाभ। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ अगणिकाय पइट्ठिय-पदं ६४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिकायपइट्टियतहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिकायपट्टियं - अफासुयं असणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ६५. केवली बूया आयाणमेयं - अस्सजए भिक्खु -पडियाए अर्गाणि ओसक्किय', सिक्किय', ओहरिय, आह्ट्टु दलएज्जा । अह भिक्खूणं पुम्वोदिट्ठा' एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे, जं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिकाय पट्टियं - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | o अच्चु सिण-वीयण-पद ६६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा -- असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अच्चुसिणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए सूवेण' वा, विहुवणेण' वा, तालियंटेण वा, 'पत्तेण वा ँ, साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहृण हत्येण वा, चेलेण वा, चेलकन्ने वा हत्थेण वा, मुहेण वा फुमेज्ज वा, वीएज्ज वा । से पुण्वामेव आलोएज्जा आउसो ! ति वा, भगिणि! त्ति वा मा एवं तुमं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अच्चुसिणं सूवेण वा, विहुवणेण वा, तालियंटेण वा, पत्तेण वा, साहाए वा, साहा भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुणहत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्ने वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमाहि वा, वीयाहि वा, अभिकखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि । से सेवं वदंतस्स परो सूवेण वा जाव फुमित्ता वा, वीइत्ता वा आहट्टु दलज्जा - तहत्वगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुय" " अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | areesकाय पइट्ठिय-पदं ९७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे समाणे १. उस्सक्किय (क, घ, च); उस्सि क्किय (छ); ५. सुप्पेण ( अ, च) ; ओसिक्किय ( अ ) । आधारचूला २. णिस्सिक्किय ( अ, छ, ब ) । ३. सं० पा० - पुव्वोवदिट्ठा जाव णो । ४. सं० पा०-- भिक्खुणी वा जाव पविट्ठे । ६. वियणेण ( अ, क, घ, च) । ७. X (घ, वृ ) 1 ८. सं० पा०-- अफासुर्य जाव णो । ६. सं० पा० - भिक्खु वा जाव समाणे । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-सत्तमो उद्देसो) सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा वणस्सइकायपइट्टियं-तहप्पगार असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सइकाय पइट्ठियं -अफासुर्य अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे° लाभे सते णो पडिगाहेज्जा ।। तसकाय-पइट्ठिय-पदं ६८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुल पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा तसकायपइट्ठिय तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा तसकाय पइट्ठियं-- अफासुयं अणेसणिज्जं ति भण्णमाण लाभे संते णो पडिगाहेज्जा' ।। पाणग-जाय-पदं ६६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविद्वे समापे सेज्ज पुण 'पाणग-जायं" जाणेज्जा, तं जहा--उस्सेइम वा, संसेइम वा, चाउलोदगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं अहुणा-धोयं, अणबिलं, अव्वोक्कत', अपरिणयं, अविद्धत्थं--अफासुयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। १००. अह पुण एव जाणेज्जा---चिराधोयं, अंबिल, बुक्कंत', परिणयं, विद्धत्थं फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° पडिगाहेज्जा ।। १०१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्ठ समाणे सेज्ज पुण 'पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा--तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्ध-वियर्ड वा--अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं पुवामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भगिणी! त्ति वा, दाहिसि मे एत्तो अण्णायरं पाणग-जायं ? से सेवं वदंत परो वदेज्जा---आउसंतो! समणा ! तुमं चेवेदं पाणग-जायं पडिग्गहेण" वा उस्सिचियाणं, ओ यत्तियाणं गिण्हाहि-तहप्पगारं पाणग-जायं सयं वार गिण्हेज्जा, परो वा से देज्जा--फासुयं" 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।। १. सं० पा०-अणेसणिज्जे लाभे। ८. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पविढे ! २. सं० पा०-एवं तसकाए वि। ६. पाणगं (क, च)। ३. सं० पा0-भिक्खुणी वा जाव पविढे । १०. वयंतस्स (ध)। ४. पाणगं (घ, ब)। ११. पडिग्गहेण वा मत्तएण वा(च);पडिगाहेण (छ) ५. अवुक्कतं (घ); अवोक्कत (छ)। १२. वाणं (अ)। ६. वक्तं (छ)। १३. सं० पा०-फासुयं लाभे संते जाव पडिगा७. सं० पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। हेज्जा । - - - - - - - Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला १०२ से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि? ' समाणे सेज्जं पुण पाणग-जाय" जाणेज्जा - अर्णतरहियाए पुढवीए', 'ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंत्ताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए ओद्धटु' निविखत्ते सिया। असंजए भिक्खु-पडियाए उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा, सकसाएण वा, मत्तेण वा, सीओदएण वा संभोएत्ता आहटु दलएज्जा-तहप्पगारं पाणग-जायं-- अफासुर्य अणेसणिज्जे ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। १०३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, 'जं सवढेहि समिए सहिए सया जए। --ति बेमि ॥ अट्ठमो उद्देसो १०४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविटे समाणे सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा अंब-पाणगं वा, अंबाडगपाणगं वा, विट्ठ-पाणगं वा, मातुलिग'-पाणगं वा, मुदिया-पाणगं वा, दाडिमपाणगं वा, खजूर-पाणगं वा, णालिएर-पाणगं वा, करीर-पाणगं वा, कोलपाणगं वा, आमलग-पाणगं वा, चिचा-पाणगं वा–अग्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं सअट्ठियं सकणुयं सबीयगं अस्संजए भिक्खु-पडियाए छब्वेण" वा, दुसेण" वा, वालगेण वा, आवीलियाण वा, परिपीलियाण वा, परिस्सावियाण आहट्ट दलएज्जा-तहप्पगारं पाणग-जायं-- अफासुयं" 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ . गंध-आघायण-पदं १०५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा" *गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्ठ १. स० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे। २. पाणगं (चू, वृ, च)। ६. असंजए (क, च)। ३. सं० पा०---पुढवीए जाव संताणए । १०. छप्पेण (अ, च); छद्रुण (घ)। ४. ओहट्ट (क)। ११. दूयेण (छ)। ५. सं० पा०-अफासुय'लाभे । १२. परिसाइयाण (क,छ,ब); परिसावियाण (घ)। ६. स० पा०—सामग्गियं । १३. अहप्पगारं (घ)। ७. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाव पवितु। १४. सं० पा०--अफासुयं लाभे । ८. मातुलुंग (अ, छ); मातुलेंग (क); मातुलंग १५. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पवितु । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय (पिंडेसणा -- अट्टमो उद्देसो) १०७ समाणे से आगंतारे वा, आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसु वा परियावस हेसु वा -- अन्न-गंधाणि वा, पाण-गंधाणि वा, सुरभि-गंधाणि वा अग्घाय' - अग्धायसे तत्थ आसाय-पडियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्भोववन्ने अहोगंधो अहोगंधो णो गंधमाघाएज्जा ॥ सालय-आदि-पदं १०६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - सालुयं वा, विरालियं वा, सासवणालियं वाअण्णतरं वा तहृप्पगारं आमगं असत्यपरिणयं - अफासुयं' 'अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | पिप्पलि-आदि-पदं - १०७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिडवाय-पडियाए अणु पविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा – पिप्पलि वा, पिप्पलि चुष्णं वा, मिरियं वा, मिरिय-चुण्णं वा सिंगबेरं वा, सिंगवेर-चुण्णं वा - अण्णतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्यपरिणयं - अफासुर्य' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा | लंब - जाय-पदं १०८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "गाहावइ - कुलं पिडवाय-पडियाए अणु • विट्टे समाणे सेज्जं पुण पलंब' - जाये जाणेज्जा, तं जहा - अंब- पलंबं वा, अंबाडगपलंबं वा, ताल - पलंबं वा, भिज्भिरि - पलंब वा, सुरभि - पलंब वा, सल्लइपलंबं वा -- अण्णयरं वा तहप्पगारं पलंब जायं आमगं असत्यपरिणयं - अफासुयं असणिज्ज" ति मष्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | पवाल- जाय-पदं १०६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा" समाणे सेज्जं पुर्ण पवाल जायं १. आघाय ( अ, क, च) । २. सं० पा० भिक्खू वा जाव समाणे । ३. सं० पा० - अफासूयं जाव लाभे । ४. सं० पा० – भिक्खुणी वा जाव पविट्ठे ! ५. पिप्पलि (छ) । ६. सं० पा० - अफासूयं जाव णो । ७. सं० पा० - भिक्खुगी वा जाव पविट्टे । ० "गाहावइ कुलं पिडवाय-पडियाए अणु ° पविट्टे जाणेज्जा, तं जहा - आसोत्थ" पवालं वा, ८. पलंग (ब) । ६. झिल्लिर ( अ ) ; भिज्झिर ( ध छ) । १०. सुरघु (छ) 1 ११. सं० पा० - अणेसणिज्जं जाव लाभे । १२. सं० पा० - भिक्खुणी वा जाव पविट्टे । १३. आसोटू (क, घ); आसत्थ (छ); आसट्ट (वृ) 1 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ आयारचूला णग्गोह-पवालं वा, पिलख-पवालं वा, णीपूर-पवालं वा, सल्लइ-पवालं वा-. अग्ण यरं वा तहप्पगारं पवाल-जायं आमगं असत्थपरिणयं-अफासुयं अणेस णिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। सरडुय-जाय-पदं ११०. से भिक्खू वा' भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे सेज्ज पुण सरडुय-जायं जाणेज्जा, त जहा-अंब-सरडुयं वा, अंबाडगसरऽयं वा, कविट्ठ-सरडुयं वा, दाडिम-सरडुयं वा, विल्ल'-सरडुयं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं सरडुय-जायं आमगं असत्थपरिणयं-अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे सते ° णो पडिगाहेज्जा ॥ मंथु-जाय-पदं १११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अण ° पविटे समाणे सेज्जं पुण मथु-जाय जाणेज्जा, तं जहा उंबर-मथु वा, णग्गोह-मंथं बा, पिलुंखु -मंथु वा, आसोत्थ-मथु वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं मथु-जायं आमयं दुरुक्कं साणुबीयं-अफासुयं" 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिमाहेज्जा ॥ आमडाग-आदि-पदं ११२. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि१० समाणे सज्ज पुण जाणेज्जा–आमडागं वा, पूइपिण्णागं वा, महुं वा, 'मज्जं वा", सपि वा, खोलं वा पुराणगं । एत्थ पाणा अणुप्पसूया, एत्थ पाणा जाया, एत्थ पाणा संवुड्डा, एत्थ पाणा अवुक्कंता", एत्थ पाणा अपरिणया, एत्थ पाणा अविद्धत्था"--अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। उच्छु-मेरग-आदि-पदं ११३. से भिक्खू वा" भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ १. णिगोह (छ). १०. पिलक्खु (क, च)। २. गीयूर (अ, घ, छ, ब)। ११. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। ३. स० पा०-अणेसणिज्जं जाव णो। १२. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समायो । ४. सं० पा०-भिक्खु वा जाव समाणे। १३. x (चू)। ५. अबद्धास्थिफलम् (वृ)। १४. वकता (क, छ); ऽवक्कंता (च); दुक्कंता ६. फिल्ल (क); पिल्ल (घ)। (ब)। ७. वा पिप्पल्लि (च)। १५. णो विद्धत्था (घ, छ)। ८. सं० पा०- अफासुयं जाव गो । १६. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ६. सं. पा.--भिवखुणी वा जाव पविटे। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (पिंडेसणा----अट्ठमो उद्देसो) १०६ समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-उच्छु-मेरगं वा, अंक-करेलुयं वा, कसेरुगं वा, सिंघाडगं वा, पूतिआलुगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं •अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा ॥ उप्पल-आदि-पदं ११४. से भिक्खू वा' भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडबाय-पडियाए अणुपवि?' समाणे सेज्ज पुण जाणज्जा-उप्पलं वा, उप्पल-नाल वा, भिसं वा, भिसमुणालं वा, पोक्खलं वा, पोक्खल-विभंग' वा अण्णतरं वा तहप्पगारं' 'आमगं असत्थपरिणयं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगा हेज्जा !! अग्गबीय-आदि-पदं ११५. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-अरग-बीयाणि वा, मूल-बीयाणि वा, खंधबीयाणि वा, पोर-वीयाणि वा, अग्ग-जायाणि वा, मूल-जायाणि वा, खंधजायाणि वा, पोर-जायाणि वा, णण्णत्थ' तक्कलि-मत्थएण वा, तक्कलि-सीसेण वा, णालिएरि"-मत्थएण वा, खज्जूरि-मत्थएण वा, ताल-मत्थएण वा–अग्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थ परिणयं.---'अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा।। उच्छु-पदं ११६. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-उच्छु वा काणगं" अंगारियं संमिस्सं विगमिय", वेत्तरगं" वा, कंदलीऊसुयं" वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा ।। १. स. पा०-असत्यपरिणयं जाव गो। ११. काण (घ, ब)। २. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे। १२. वइदूमिय (अ}; विगदूसिय (घ, ब); वियि३. विभाग (क, च)। दूमियं (छ)। ४. सं० पा०-नहगार जाव णो। १३. वेत्तगं (अ); वित्तज्जगं (घ); वेत्तगागं (छ)। ५. सं० पा०..-भिखू वा जाव समाणे। १४. ° उस्सुगं (चू); °ऊसिगं (छ); चूर्णी ६. अण्णत्थ (चू)। अन्येपि शब्दा दृश्यन्ते-कल तो सिम्बाकलो ७. णालिएर (अ, च, ब)। चणगो, ओली सिंगा तस्स चेव, एवं मुग्ग ८. खजूर (ब)। मासाणावि। ६. सं० पा०-असत्थपरिणयं जाव णो। १५. सं० पा०-असत्थपरिणयं जाव णो। १०. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० आयारचूला लसुण-पदं ११७. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडबाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा--लसुणं वा, लसुण-पत्तं वा, लसुण-नाल वा, लसूण-कंदं वा, लसूण-चोयगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगार आमं असत्थपरिणयं' - अफ सणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते. णो पडिगाहेज्जा।। अत्थिय-आदि-पदं ११८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा माहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि? ' समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-अत्थियं वा कुंभिपक्कं, तिदुगं वा, वेलुयं वा, कासवणालियं वा --अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणय'- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। कण-आदि-पदं ११६. से भिक्खू वा "भिक्खुणी वा गाहाव इ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपबिट्टे ° समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-कणं वा, कण-कुंडगं वा, कण-पूलियं वा, चाउलं वा, चाउल-पिटुं वा, तिलं वा, तिल-पिटुं वा, तिल-पप्पडगं वा--- अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयंअफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा॥ १२०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं", "जं सवहि समिए सहिए सया जए । --ति बेमि ।। नवमो उद्देसो पच्छाकम्म-पदं १२१. इह खलु पाईणं वा, पडोणं वा, दाहिणं वा, उदोण वा संतेगइया सड्डा भवंति-- गाहावई वा," *गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ बा, कम्मकरा वा,° कम्मकरीओ वा तेसिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवंतो १. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । २. चोयं (क, घ, च, छ. ब)। ३. सं. पा०--असत्यपरिणय जाव णो। ४. सं. पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ५. अच्छियं (च)। ६. पेल्लुगं (क); पलुगं (च) । ७. सं० पा०—असत्थपरिणय जाव णो। ८. सं० पा०भिक्ख वा जाव समाणे । ६. पूर्याल (क, च छ, ब)। १७. सं० पा०--असत्थपरिणयं जाव णो। ११. सं० पा०–सामग्गियं । १२. सं. पा०–गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-नवमो उद्देसो) सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ, णो खलु एएसि कप्पइ आहाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा, पायत्तए वा। सेज्ज पुण इम अम्हं अप्पणो अट्ठाए' णिट्ठियं, तं जहा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा सव्वमेय समणाणं णिसिरामो, अवियाई वयं पच्छा वि अप्पणो अट्टाए असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा चेइस्सामो । एयप्पगार णिग्घोस सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा अफासुयं अणेसणिज्ज' ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पुरापच्छासंथुय-कुल-पदं १२२. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा, 'समाणे वा, वसमाणे वा', गामाणुगाम वा दुइज्जमाण सेज्ज पुण जाणेज्जा-गामं वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वर्ड वा, मडंब वा, घट्टणं वा, दोणमुहं का, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा,° रायहाणि वा। इमंसि खलु गामंसि वा,' 'णगरंसि वा, खेडंसि वा कव्वहंसि वा, मडबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा, रायहाणिसि वा–संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथया' वा, पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा—गाहावई वा, *गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुहाओ वा, धाईओवा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरोओ वा। तहप्पगाराइं कुलाई णो पुवामेव भत्ताए वा, पाणाए वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ केवली बूया आयाणमेय--पुरा पेहाए 'तस्स परो अट्ठाए" असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा उपकरेज्ज वा, उवक्खडेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुत्रोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ एस कारणं, एस उवएसो, जंणो नहप्पगाराइं कलाई पुवामेव भत्ताए वा, पाणाए वा पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा । से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा । से तत्थ कालेणं अणुपविसेज्जा, अणुपविसेत्ता तत्थियरेयरेहि १२३. १. असणं (क) ! ६. सं० पा० --गाम वा जाव रायहाणि । २. पात्तए (क); पायए (च); पाएतए (घ)। ७. सं० पा०—गामंसि वा जाव रायहाणिसि । ३. सयट्टाए (अ, क, च)। ८. पूव ° (ब)। ४. सं० पा०—अणेसणिज्जं जाव लाभे । १. सं. पा.-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। ५. समाणे वसमाणे वा (क, च, ब); समाणे १०. अस्य स्थाने ११५६ सूत्रे 'तस्सदाए परो' (घ, छ)। इत्येवं रूप: पाठः। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ आयारचूला कुले हिंसामुदाणियं,' एसियं, वेसियं, पिंडवायं एसित्ता आहारं आहारेज्जा | सिया से परो कालेन अणुपविट्ठस्स आहाकम्मियं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवकरेज्ज वा, उवक्खडेज्ज वा । तं चेगइओ तुसिणीओ उवेहेज्जा, आहडमेव पच्चाइक्खिस्सामि । माइट्ठाण संकासे, गो एवं करेज्जा से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भगिणि! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ आहाकम्मियं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा, पायए वा । मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि । से सेवं वयंतस्स परो आहाकम्मियं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेत्ता आहट्टु दलएज्जा । तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुर्य अणसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा || गिलाण-पदं १२४. से भिक्खू वा' भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे ० समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा -- मंसं वा मच्छं वा भज्जिज्जमाणं' पेहाए, ' तेल्लपूयं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए, णो खद्धं खद्धं उवसंकमित्तु ओभासेज्जा', णन्नत्य गिलाणाए । माइट्ठाण-पदं १२५ से भिक्खू वा' •भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे समाणे अण्णतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता सुब्भि-सुभि भोच्चा दुब्भि-दुब्भि परिवे । माइट्रासंफासे, गो एवं करेज्जा । सुभि वा दुभि वा सव्वं भुंजे न छड्डए ॥ १२६. से भिक्खू वा " "भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे समाणे अण्णतरं वा पाणग-जायं पडिगाहेत्ता पुष्कं पुप्कं" आविइत्ता" कसायंकसायं परिद्ववेइ । माइट्ठाणं संफासे, जो एवं करेज्जा । पुष्कं पुष्फेति वा, कसाय कसाए त्ति वा सव्वमेयं भुंजेज्जा, णो किंचि वि परिवेज्जा ।। १२७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुपरियावण्णं भोयण - जायं पडिगाहेत्ता" १. समुदा० (क, घ, च, छ. ब) । २. सं० पा०--- अफासुयं लाभे । ३. सं० पा० - भिक्खू वा जाव समाणे । ४. भिमाणं ( अ ) भज्जमानमिति (वृ) । ५. पेहाए सक्कुलि वा (चू) ६. याचेत (वृ) 1 ७. गिलाणीए ( अ, क, च); गिलाणणीसाए (छ)। o ८. सं० पा० - भिक्खू वा जाव समाणे । ६. साति ( ब ) । 0 O १०. सं० पा०-- भिक्खू वा जाव समाणे । ११. वर्णगन्धोपेतं पुष्पं तद् विपरीतं कषायम् (वृ) । १२. आवेइत्ता (च); आवीइत्ता (छ) । १३. पडिगाहेत्ता बहवे ( अ, छ, ब ) । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-~-दसमो उद्देसो) साहम्मिया तत्थ वसति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया । तेसिं अणालोइया' अणामंतिया' परिटुवेइ । माइट्टाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता से पुवामेव आलोएज्जा--आउसंतो! समणा ! इमे मे असणे' वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा बहुपरियावणे, तं भुजह णं । से सेवं वयंतं परो वएज्जा-आउसंतो ! समणा ! आहारमेयं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा जावइयं-जावइयं परिसडइ', तावइयं-तावइयं भोक्खामो वा, पाहामो वा । सव्व मेयं परिसडइ, सव्व मेयं भोक्खामो वा, पाहामो वा ॥ बहिया नीहड-पदं १२८. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्जं पण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पर समुद्दिस्स बहिया णीहडं, जं" परेहिं असमणुण्णायं अणिसिटुं-अफासुर्य •अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। जं" परेहि समणुण्णायं सम्म" णिसिटुं–फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे ' लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥ १२६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय", 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जए। –ति बेमि ॥ दसमो उद्देसो माइट्ठाण-पदं १३०. से एगइओ साहारणं वा पिंडवायं पडिगाहेत्ता, ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छइ तस्स-तस्स खद्धं-खद्धं दला ति"। माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता" वएज्जा"--आउसंतो ! १. ० इय (च, छ)। २. ० मते (घ)। ३. असणं (क)। ४. वणं (अ, ब)1 ५. सरइ (ध, च, छ)। ६. सरइ (घ, च)। ७. सं० पा०—भिक्खु वा सेज्ज। ८. तं (अ, क, घ, च)। ६. सं० पा०--अफासुयं जाव णो। १०. तं (अ, क, घ, च)। ११. सम (अ, के, घ, ब)। १२. सं० पा०-फासुयं लाभे संते जाव पडिगा हेज्जा । १३. सं० पा०-सामग्गियं । १४. दलयति (अ)। १५. गच्छेत्ता घुब्वामेव (अ, छ, ब) । १६. आलोएज्जा (ब)। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ आयारचूला समणा ! रांति मम पुरे-संथुया वा, पच्छा-संथुया वा, तं जहा--आयरिए वा, उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा, गणावच्छेइए वा । अवियाई एएसि खद्धं-खद्धं दाहामि । 'से णेव" वयंतं परो वएज्जा--काम खलु आउसो ! अहापज्जत्तं णिसिराहि। जावइयं-जावइयं परो वयइ, तावइयं-तावइयं णिसिरेज्जा । सव्वमेयं परो वयइ, सव्वमेयं णिसिरेज्जा ॥ १३१. से एगइओ मणुण्णं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता पंतेण भोयणेण' पलिच्छाएति मामेयं दाइयं संत, दळूणं सयमायए । आयरिए वा', 'उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा गणावच्छेइए वा । णो खलु मे कस्सइ किंचि वि दायव्वं सिया। माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुब्बामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कटु -- 'इमं खलु' इम खलु त्ति आलोएज्जा, णो किंचि वि णिगृहेज्जा ॥ १३२. से एगइओ अण्णतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता भयं-भद्दयं भोच्चा, विवन्न विरसमाहरइ। माइट्राणं संफासे, णो एवं करेज्जा॥ बहुउज्झिय-धम्मिय-पदं १३३. से भिक्ख वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे ° सेज्जं पुण जाणेज्जा--अंतरुच्छुयं वा, उच्छु-गंडियं वा, उच्छु-चोयगं वा, उच्छु-मेरुगं वा, उच्छु-सालगं वा, उच्छु-डगलं वा, सिंबलिं वा, सिंबलिथालगं वा । अस्सि खलु पडिग्गहियंसि, अप्पे सिया" भोयणजाए, बहुउज्झियधम्मिए। तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा जाव सिंबलि-थालगं वा-अफासुयं *अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ।। १. सेवं (घ): निशीथस्य षोडशोद्देशे डगलं' पाठो लभ्यते । २. णि सराहि (अ, छ)। तद् भाष्यचूर्णी डगलस्यार्थो विहितः । भाष्ये ३. भोयणे जाईण (घ)। यथा-"डगलं' चक्कनिछेदो (५४११); चूर्णी ४. सं० पा०-आयरिए वा जाव गणावच्छेइए। यथा .-चक्कलिछेदे छिण्णं डगलं भण्णति ५. x (क, ध, छ, ब)। (भा० ४ पृष्ठ ६६)। आचारांगे लिपि६. सं० पा०---भिक्खू वा सेज्जं । दोषतः परिवर्तन मिदं जातमिति संभाव्यते । ७. ° मेरगं (अ, ब)। ६. संबलि (अ, क, च, छ); संपलि (ब)। ८. आचाराङ्गस्य १११० वृत्तौ-'डालगं' ति १०. थालियं (अ) शाखैकदेशः! ७२ वृत्ती-'डालगं' ति ११. X (क, घ, च, छ)! आम्रश्लक्ष्णखण्डानि, इति लभ्यते, किन्तु १२. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा--दसमो उद्देसो) १३४. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा—बहु-अट्ठियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं ! अस्सि खलु पडिग्गहियंसि, अप्पेसिया भोयण-जाए, बहुउज्झियधम्मिए। तहप्पगारं बहु-अट्ठियं वा मंस, मच्छं वा बहु कंटगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। १३५. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे समाणे सिया णं परो बहु-अट्ठिएण मंसेण' उवणिमंतेज्जा–आउसंतो ! समणा ! अभिकंखसि बहु-अद्वियं मंस पडिगाहित्तए? एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा, भइणि ! त्ति वा, णो खलु मे कप्पइ से बहु-अट्टियं मंसं पडिगाहित्तए, अभिकखसि मे दाउं जावइयं, तावइयं पोग्गलं दलयाहि, मा अट्टियाइं। से सेवं वयंतस्स परो अभिहट्ट अंतो पडिग्गहगंसि बहु-अट्ठिय मसं परिभाएत्ता' णिहट्ट दलएज्जा । तहप्पगारं पडिग्गहगं' परहत्थसि वा, परपायंसि वा--- अफासुयं अणेसणिज्ज' ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णोहि त्ति वएज्जा, णो अणहित्ति वएज्जा। से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे आरामसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अप्पंडए' 'अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्पहरिए अप्योसे अप्पुदए अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए मंसगं मच्छगं भोच्चा अट्रियाई कंटए गहाय, से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे झामथंडिलंसि वा", "अट्ठि-रासिसि वा, किट्ट-रासिसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमयरासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेयि-पडिले हिय , पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव परिद्ववेज्जा ।। अजाणया लोण-दाण-पदं १३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सिया से परो अभिहट्ट अंतो-पडिग्गहए बिलं वा लोणं, उभियं वा लोणं १. सं० पा०—भिक्खू वा सेज्ज । ८. अणिहित्ति (छ) । २. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे । ६. सं० पा.--अप्पंडए जाव संताणए । ३. मसेण मच्छेण (अ, ब, छ)। १०. X (घ)। ४. पडिग्गहंसि (अ)। ११. सं० पा०--झामथंडिलंसि वा जाव पम५. परिभोउत्ता (अ); परियाभोएत्ता (क, च)। जिय । ६. गहणं (अ) १२. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे । ७. सं० पा०-अणेसणिज्ज लाभे संते जाव णो। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला परिभाएत्ता णीहट दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा-अफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। से आहच्च पडिग्गाहिए सिया, तं च णाइदूरगए जाणेज्जा, से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुवामेव आलोएज्जा-आउसो! ति वा भइणि ! त्ति वा 'इमं ते कि जाणया दिन्नं ? उदाहु अजाणया ? सो य भणेज्जा–णो खलु मे जाणया दिन्न, अजाणया। काम खलु आउसो ! इदाणि णिसिरामि । तं भुंजह च णं परिभाएह च णं । तं परेहि समणुण्णायं समणु सिटुं, तओ संजयामेव भुंजेज्ज वा, पीएज्ज वा। जं च णो संचाएति भोत्तए वा, पायए वा। साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया तेसि अणुपदातव्वं । सिया णो जत्थ साहम्मिया सिया, जहेव बहुपरियावण्णे कीरति, तहेव कायव्वं सिया ॥ १३७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जए। –ति बेमि° || एगारसमो उद्देसो माइट्ठाण-पदं १३८. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगाम 'वा दूइज्ज माणे'' मणु ग्णं भोयण-जायं लभित्ता "से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । से य भिक्ख णो भंजेज्जा। तूम चेव णं भंजेज्जासि ।" से एगइओ भोक्खामित्ति कट्ट पलिउंचिय-पलिउंचिय आलोएज्जा, तं जहाइमे पिंडे, इमे लोए, इमे तित्तए, इमे कडुयए, इभे कसाए, इमे अंबिले इमे महुरे, णो खलु एत्तो किचि गिलाणस्स सयति त्ति । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा। तहाठियं आलोएज्जा, जहाठियं" गिलाणस्स सदति -तं तित्तयं तित्तएत्ति वा, कडुयं कडुएत्ति वा, कसायं कसाएत्ति वा, अंबिलं अंबिलेत्ति वा, महुरं महुरेत्ति वा ।। १. सं० पा०-अणेसणिज्जं जाव णो। ७. गृहीत यूयम् (वृ)। २. अजाणया दिन्न (घ)। ८. ४ (क, च, छ)। ३. इमं (अ)। ६. लुक्खए (छ)। ४. सं० १०-सामग्गियं। १०. तहेव तं (अ, च, छ)। ५. दूइज्जमाणे वा (अ); दूइज्जमाणे (च,छ,ब)। ११. जहेव तं (अ, च, छ) । ६. से य (अ)। Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयण (पिंडेसणा-एगारसमो उद्देसो) ११७ मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३६. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगामं [वा ? ] दूइज्जमाणे मणुण्णं भोयण-जायं लभित्ता “से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । से य भिक्खू णो भुंजेज्जा । आहरेज्जासि' ण।" णो खलु मे अंतराए आहरिस्सामि । इच्चेयाई आयतणाई उवाइकम्म ।। सत्त पिडेसणा सत्त पाणेसणा-पदं १४०. अह भिक्खू जाणेज्जा सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ।। १४१. तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा-असंसट्ठे हत्थे असंस? मत्ते-तहप्पगारेण असंसटेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा [पाणं वा]" खाइमं वा साइम वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा--फासुर्य' 'एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते. पडिगाहेज्जा-पढमा पिडेसणा ।।। १४२. अहावरा दोच्चा पिंडेसणा-संसटे हत्थे संसटे मत्ते --- तहप्पगारेण संसट्रेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा सयं वा ण जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा--दोच्चा पिंडेसणा || ५४३. अहावरा तच्चा पिंडेसणा-इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीण वा संतेगइया सड्ढा भवंति-गाहावई वा', 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा°, कम्मकरीओ वा। तेसि च णं अण्णतरेसु विरूवरूवेसु भायण-जाएसु उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, तं जहा-थालसि वा, पिढरंसि' वा, सरगसि वा, परगंसि वा, वरगंसि वा। अह पणेवं जाणेज्जा-असंसट्रे हत्थे संसट्रे मत्ते, संसट्रे वा हत्थे असंसटे मते । से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए" वा, से पुन्या मेव आलोएज्जाआउसो ! ति वा भगिणि ! त्ति वा एएणं तुमं असंस?ण हत्थेण संसट्रेण मत्तेण, १. आहारज्जासि (अ, घ, छ, ब); आहारेज्जा वा साइमं वा' इति पाठा नापेक्षिताः सन्ति। ६. सं० पा०-फासुयं पडिगाहेज्जा। २. इमे (अ, क, च, छ, ब)। ७. सं० पा०—मत्ते तहेव दोच्चा पडिमा। ३. इच्चेइयाई (क, छ, ब) । ८. स० पा०--गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। ४. मत्तएण (अ, छ, ब)। ६. पिढरगसि (अ, च); पिठरगसि (घ); पिठ५. पिण्डषणायां 'पाणं वा' इति पाठो नापे- रसि (ब)। क्षितोस्ति । असौ प्रवाहपाती एव बोध्यः । १०. असंसट्र वा (क, च)। एवमेव पानेषणायामपि 'असणं वा खाइमं ११. पडिग्गहिए (छ, ब)। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ आयारचूला संसद्वेण वा हत्थेण असंसट्टण मत्तेण, अस्सि पडिग्गहगंसि वा पाणिसि वा free उवित्तु दयाहि । तहप्पगारं भोयण-जायं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा - फासूयं एसपिज्ज' "ति मण्णमाणे " लाभे संते पडिगाहेज्जातच्चा पिंडेसणा || १४४. अहावरा चउत्था पिंडेसणा-से भिक्खू वा', 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - पिहूयं वा " बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथुं वा, चाउलं दा, चाउल पलंबं वा । अस्सि खलु डिगहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए, तहप्पगारं पिहूयं वा जाव चाउल-पलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा --- "फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा - - चउत्था पिंडेसणा || १४५. अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिडवायपडियाए अणुपविट्टे • समाणे उवहितमेव भोयण-जायं जाणेज्जा, तं जहासरावंसि वा, डिंडिमंसि वा, कोसगंसि वा । अह पुण एवं जाणेज्जा - बहुपरियावन्ते पाणीसु दगलेवे । तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा" "परो वा से देज्जा — फासूयं एसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते • पडिगाहेज्जा - पंचमा पिंडेसणा || १४६. अहावरा छुट्ठा पिडेसणा से भिक्खू वा" "भिक्खुणी वा गावइ-कुलं पिंडवाय-पडिया अणुपविट्ठे समाणे पग्गहियमेव भोयण-जायं जाणेज्जा-ज़ं च सयद्वाए पग्गहियं, जं च परट्ठाए पग्गहियं तं पाय-परियावन्न, तं पाणिपरियावणं- फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा-छट्ठा पिंडेसणा ॥ o ० १४७. अहावरा सत्तमा पिडेसणा - से भिक्खू वा" "भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडिया अणुपविट्ठे समाणे बहुउज्झिय- धम्मियं भोयण जाय जाणेज्जा - जं चण्णे बहवे दुपय- चउप्पय-समण माहण अतिहि किवण वणीमगा णावकखंति, तहप्पगारं उज्भिय-धम्मियं भोयण-जायं सयं वा ण जाएज्जा परो वा से देज्जा – फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ० पडिगाहेज्जासत्तमा पिंडेसणा । इच्चेयाओ सत्त पिंडेसणाओ || १. सं० पा० - एसणिज्जं जाव लाभे । २. सं० पा० - भिक्खू वा सेज्जं ! ३. स० पा०-पिहूयं वा जाव चाउलपलंबं । ४. सं० पा० - देज्जा जाव पडिगाहेज्जा । ५. सं० पा० - भिक्खु वा जाव समाणे । ६. उग्गहिय° (घ) । 0 ७. सं० पा० जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । 5. सं० पा० - भिक्खु वा जाव परमहिय । ६. उग्गहय ( अ, क,च); उग्गहितं पग्गहितं (चू) 1 १०. सं० पा० फासूयं जाव पडिगाहेज्जा । ११. सं० पा० --- भिक्खू वा जाव समाणे । १२. सं० पा० - देज्जा जाव फासूयं पडिगाहेज्जा । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा - एगारसमो उद्देसो) ११६ १४८. अहावराओ सत्त पाणेसणाओ । तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा - असंसट्टे हत्थे असं मत्ते' || १४६. अहावरा दोच्चा पाणेसणा-संसद्वे हत्थे संसट्टे मत्ते ॥ १५०. अहावरा तच्चा पाणेसणा - इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीर्ण वा संतेगइया सड्डा भवंति || १५१. अहावरा चउत्था पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवायपडिया अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा -- तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा । अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए । तहपगारं तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा सयं वा णं जाज्जा, परो वा से देज्जा - फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते डिगाज्जा | १५२. अहावरा पंचमा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवायपडिया अणुपविट्ठे समाणे उवहितमेव पाणग-जायं जाणेज्जा | १५३. अहावरा छट्ठा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवायडिया अणुपविट्ठे समाणे पग्गहियमेव पाणग-जायं जाणेज्जा ।। ० १५४. अहावरा सत्तमा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्टे समाणे बहुउज्भिय- धम्मिय पाणग जायं जाणेज्जा ।। १५५. इच्चेयासि सत्तण्हं पिंडेसणाणं, सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं बज्जा - मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पविन्ने । जे ते भयंता एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सब्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्टिया, अण्णोष्णसमाहीए एवं च णं विहरति ॥ १५६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्टेहि समिए सहिए या जए । -- ति बेमि ॥ १. अतः १५४ सूत्रपर्यन्तं पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं १।१४१-१४७ सूत्राणि सं० पा० तं चैव भाणियव्वं णवरं चउत्थाए णाणत्तं से भिक्खु वा जाव समाणे सेज्जं पुण पाणग-जायं जाणेज्जा तं जहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियर्ड वा अस्सं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तव पडिगाज्जा । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोयं अजभयणं सेज्जा पढमो उद्देस उस्सएसणा-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा उवस्सयं एसितए', अणुपविसित्.. गामं वा', 'गरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा आसमं वा, सण्णिवेसं वा, रायहाणि वा, सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - सअंडं' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसे सउदयं सउत्तिंग पणगद- मट्टिय-मक्कडा संताणयं । तहप्पगारे उवस्सए णो 'ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा" !! २. o सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - अप्पंड अप्पपाणं' • अप्पीय अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग- पणगदग मट्टिय-मक्कडा' संताणगं । तहृप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा ॥] अस्सिपडियाए - उवस्सय-पदं ३. सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्वं अच्छेज्जं अणिस ट्टु चेतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतर कडे afras १. एसिसए से ( अ, ब ) | २. सं० पा०- गामं वा जाव रायहाणि । ३. सं० पा० - सअडं जाव संताणयं । ४. स्थानं - कायोत्सर्गः, शय्या - संस्तारकः, १२० निधिका - स्वाध्यायभूमिः, 'नो चेइज्ज' त्ति नो चेतयेत् -नो कुर्यात् इत्यर्थः (वृ) । ५. सं० पा०-अप्पपाणं जाव संताणगं । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (सेज्जा---पढमो उद्देसो) १२१ वा', 'अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसे विते वा° अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। "सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा -अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहड आहट्ट चेतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। ५. सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताइ समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगारे उबस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बवे साहम्मिणीओ समुहिस्स पाणाई भ्याइं जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंत रकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसे विते वा अणासे विते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-उवस्सय-पदं ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स' पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताई 'समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविए वा अणासेविए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।।। ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ । तहप्पगारे १. सं० पा०-अपुरिसंतरकडे वा जाव अणा- २. सं० पा०--एवं बहवे साहम्मिया एग साह सेविते: १११२ सूत्रे 'अपुरिसंतरकडं वा' इति म्मिणि बहवे साहम्मिणोओ। पदानन्तरं 'बहिया णीहडं वा अणीहडं वा' ३. समुद्दिस्स तं चेव भाणियव्वं (घ, च)। इति पाठो विद्यते, तथापि उपाश्रयप्रकरणे ४. सं० पाo-सत्ताई जाव चेएइ तहप्पगारे तेष प्राप्तोस्ति, तेन नासी ग्राह्यः । उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ आयारचूला उवस्सए अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते', अणासेविए णो ठाणं वा सेज्ज वाणिसीहियं वा चेतेज्जा। ६. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे', 'अत्तट्टिए, परिभुत्ते , आसेविए पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। परिकम्मिय-उवस्सय-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु पडियाए कडिए वा, उक्कबिए' वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घटे वा, मटे वा, संम? वा, संपधूमिए वा। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे', 'अणत्तट्ठिए, अपरि भुत्ते , अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। ११. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे', 'अत्तट्ठिए, परिभुत्ते °, आसेविए पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं बा, सेज्ज वा, णिसोहियं वा चेतेज्जा। १२. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, “महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहि वा उवस्सयस्स हरियाणि छिदियछिदिय, दालिय-दालिय° संथारगं संथारेज्जा', बहिया वा णिण्णक्खु', तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंत रकडे', 'अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते °, अणासेविते णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ १३. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसतरकडे', 'अत्तट्टिए, परिभुत्ते °, आसेविए पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। बहिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण [उवस्सयं ?] जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु-पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा ? ] %, पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे", १. सं० पा० -पुरिसतरकडे जाव आसेविए। ७. णिणक्खु (क, छ) । २. उक्कंपिए (क, घ, च, ब)। ८. सं० पा०-अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविते । ३. सं० पा०-अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए। ६. सं. पा०-पूरिसतरकडे जाव आसेविए । ४. सं० पा०-पुरिसंतरकडे जाव आसेविए। १०. यद्यप्ययमत्र प्रतिषु नोपलभ्यते, तथापि ५. सं० पा०.-जहा पिंडेसणाए जाव संथारगं । ३१३१५५ सूत्रमनुसृत्यासावत्र युज्यते । ६. सथारेज्जा (अ, के, घ, च, ब)। ११. सं० पा०- अपरिसंतरकडे जाव हो। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ बारं अज्झयणं (सेज्जा-पढमो उद्देसो) 'अणत्तदिए, अपरिभुत्ते, अणासेविते • णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । १५. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे', अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु पडियाए पीढं वा, फलगं वा, णिस्सेणि वा, उदूहलं वा ठाणाओ ठाणं साहरइ, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे', 'अणत्तट्टिए, अपरि भुत्ते, अणासेविए ° णो ठाणं वा सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। १७. अह पुणेयं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे 'अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। अंतलिक्ख-जाय-उवस्सय-पदं १८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-तं जहा-खंधंसि वा, मंचंसि वा, मालसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि, णण्णत्थ आगाढाणागाढेहि कारणेहि ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। से य आहच्च चेतिते सिया णो तत्थ सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा, पादाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहं वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा । णो तत्थ ऊसढं' पगरेज्जा, तं जहा-उच्चारं वा, पासवणं वा, खेल वा, सिंघाण वा, वंतं वा, पित्तं वा, पूर्ति वा, सोणियं वा, अण्णयरं वा सरोरावयवं ॥ १९. केवली बूया आयाणमेयं-से तत्थ ऊसढं पगरेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे' वा पवडमाणे वा हत्थं वा', 'पायं वा, बाहुं वा, ऊरुवा, ° उदरं वा, सीसं वा, अण्णतरं वा कायंसि इंदिय-जातं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा', 'वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ ° ववरोवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइण्णा, "एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो,' १. सं० पा०-पुरिसंतरकडे जाब चेतेज्जा । २. सं० पा०--अपुरिसंतरकडे जाव णो। ३. सं. पा.-.-पूरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा। ४. गाढा (क, च, ब); आगाढावगाढेहि (घ); आगाढादीहिं (छ)1 ५. 'उत्सृष्टम्' उत्सर्जनं त्यागमुच्चारादेः (वृ)। ६. पयले ° (क, च, छ)। ७. पवडे (क, च, छ)। ८. सं० पा०- हत्थं वा जाव सीसं । ६. सं० पा०-अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज। १०. सं० पा०-पइण्णा जाव जं। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला जं तहप्पगारे उवस्सए अंतलिक्नजाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। सागारिय-उवस्सय-पदं २०. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-सइत्थियं, सखुटुं, सपसुभत्तपाणं । तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ २१. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइ-कुलेण सद्धि संवसमाणस्स-अलसगे वा, विसूइया वा, छड्डो वा उव्वाहेज्जा'। अण्णतरे वा से दुक्खे रोगातके' समुप्पज्जेज्जा । अस्संजए कलुण-पडियाए तं भिक्खुस्स गातं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणोएण वा, वसाए वा, अब्भंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा । सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, आघसेज्ज बा, पघसेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उव्वट्टेज्ज वा । सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा, 'उच्छोलेज्ज वा', पहोएज्ज वा, सिणावेज्ज वा, सिंचेज्ज वा। दारुणा वा दारुपरिणाम' कटु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा, उज्जालेत्ता पज्जालत्ता कायं आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुत्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । २२. आयाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स--इह खलु गाहावई वा', 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइसहाओवा, धाईओवा, दासा वा, दासोओ वा, कम्मकरा वा०,कम्मकरोओ वा अण्णमणं अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुभंति वा, उद्दवेंति" वा। अह भिक्खू णं उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एते खलु अण्णमण्णं अक्कोसंतु वा मा वा अक्कोसंतु, बंधंतु वा मा वा बंधंतु, रुभंतु वा मा वा रुभंतु, उद्दवेंतु वा मा वा उद्दवतु। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा", "एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो' १. साकारिए (छ, ब)। २. उप्पा ° (क, च, ब)। ३. रोगे आयके (घ)। ४. लोद्देण (अ, ब)। ५. उच्छोलेज्ज पच्छोलेज्ज वा (ब)। ६. दारुणं परि (अ, च); दारुण ° (क)। ७. वसमाणस्स (ब)। ८. सं० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। ६. पहति (क); X (च, ब); वहंति (अ)। १०. उद्दति वा उद्दति (घ); उदृवंति वा उद्दवेति (छ)। ११. सं० पा०-पइण्णा जाय । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ बीअं अज्झयणं (सज्जा-पढमो उद्दे सो) जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । २३. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स'--इह खलु गाहावई अप्पणो सअट्टाए अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा, विज्झावेज्ज वा । अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एते खलु अगणिकायं उज्जालेंतु वा मा वा उज्जालेंतु, पज्जालेंतु वा मा वा पज्जालेंतु, विज्झावेंतु वा मा वा विज्झातु । अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो', जं तहप्पगारे [सागारिए ? ] उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ २४. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स कंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, 'हिरणे वा', 'सुवण्णे वा", कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणि' वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावलो वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयणावली वा, तरुणियं वा कुमारि अलंकिय-विभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एरिसिया वा सा णो वा एरिसिया-इति वा णं बूया, इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारे [सागारिए ? ] उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइणीओ वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, गाहावइ-धाईओ वा, गाहावइ-दासीओ वा, गाहावइ-कम्मकरीओ वा। तासि च णं एवं वृत्तपव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवंतो' सीलमंता वयमता गणमंता संजया संवुडा बंभचारी • उवरया मेहुणाओ धम्माओ, गो खलु एतेसिं कप्पइ मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्टित्तए। जा य खलु एएहिं सद्धि मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्टेज्जा, पुत्तं खलु सा १. वस (अ, घ, च, छ, ब)। २. सं० पा०-पुन्वोवदिट्ठा जाव जं । ५. तिसराणि (च)। ६. सं० पा०--पुव्वोवदिट्टा जाव जं । ७. सं० पा०-भगवंतो जाव उवरया। ४. x (छ)। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ आयारचूला लभेज्जा-ओयस्सि तेयरिंस वच्चस्सि जसस्सि संपराइयं आलोयणदरिसणिज्ज । एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म तासि च णं अण्णयरी सड्ढी' तं तवस्सि भिक्खु मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्टावेज्जा। अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा' *एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए गोठाणं वा,सेज्जवा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ २६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्वद्धेहिं समिए सहिए सया जए। —ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो २७. गाहावई णामेगे सुइ-समायारा भवंति, भिक्खू य असिणाणए' मोयसमायारे, ‘से तग्गंधे" दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि भवइ ।। जं पुव्वकम्मं तं पच्छाकम्म, जं पच्छाकम्मं तं पुवकम्मं । तं भिक्खु-पडियाए वट्टमाणे करेज्जा वा, नो 'वा करेज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा "एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा', 'सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ २८. आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स" अप्पणो सअट्ठाए विरूवरूवे भोयण-जाए उवक्खडिए सिया, अह पच्छा भिक्खुपडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेज्ज वा, उवकरेज्ज वा, तं च भिवख अभिकखेज्जा भोत्तए वा, पायए वा, वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा" "एस पइष्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा", सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। २६. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवाइं दारुयाई भिन्न-पुत्वाइं भवंति, अह पच्छा भिक्खुपडियाए विरूवरूवाइं दारुयाई भिदेज्ज बा, किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, १. संपहारियं (अ)। २. सहियं (अ); सहितं (छ)। ३. सं० पा०–मुब्वोवदिट्ठा जाव जं। ४. सं० पा०--सामग्गियं । ५. असिणाणाए (अ)। ६. से से गंधे (अ, क, घ, च, छ, ब, चू)। ७. करेज्जा (अ); करेज्जा वा (छ, ब)। ८. सं० पा०-पुव्वोवदिट्टा जाव जं। ६. सं० पा०-ठाणं वा जाव चेतेज्जा । १०. तत्रैवाहारगृद्धया वित्तितुम् आसितुमाका क्षेत् (वृ)। ११ तृतीयार्थे षष्ठी (वृ)। १२. सं० पा०—पुव्वोवदिट्ठा जाव जं। १३. सं० पा०--काणं वा चेतेज्जा! Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (सेज्जा-बीओ उद्देसो) दारुणा वा दारुपरिणाम कटु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा। तत्थ भिक्खू अभिकखेज्जा आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, वियट्टितए वा।। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा' एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएंसो', जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा', 'सेज्जं वा, मिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ३०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चार-पासवणेणं उध्वाहिज्जमाणे राओ वा विआले वा गाहावइ-कुलस्स दुवारवाहं अवंगुणेज्जा, तेणे य तस्संधिचारी अणुपविसेज्जा। तस्स भिक्खुस्स णो कप्पइ एवं वदत्तिए-अयं तेण पविसइ वा णो वा पविसइ, उवल्लियइ वा णो वा उवल्लियइ, अइपतति' वा णो वा अइपतति, वदति वा णो वा वदति, तेण हडं अण्णेण हडं, तस्स हडं अण्णस्स हडं, अयं तेणे अयं उवचरए, अयं हंता अयं एत्थमकासी तं तवस्सि भिक्खं अतेणं तेणं ति संकति । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। तण-पलालाच्छाइय-उवस्सय-पदं ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा--तण-पुंजेसु वा, पलाल-पुजेसु वा,सअंडे 'सपाणे सबीए सहरिए सउस सउदए सउत्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडा संताणए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ३२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्वं जाणेज्जा-तण-पुंजेसु वा, पलाल-पुंजेसु वा, अप्पंडे 'अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पदए अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए, तहप्पगारे उवस्सए पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। वज्जियव्व-उवस्सय-पदं ३३. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेस वा ___ अभिक्खणं-अभिक्खणं साहम्मिएहिं ओवयमाणेहि णोवएज्जा । १. दारुण ° (घ, च)। २. सं० पा०--पुत्वोवदिट्ठा जाव ज । ३. सं० पाo-ठाणं वा चेतेज्जा। ४. उव्वलियति (च); उवलियत्ति (घ) ५. आवयति (घ, च)। ६. भिक्खुयं (अ, छ)। ७. सं० पा० -पूवोवदिदा जाव चेतेज्जा। ८. चूर्णावत्र बहुवचनं लभ्यते--'संडेहिं': सं० पा०-सअडे जाव संताणए। है. चूर्णावत्र बहुवचनं लभ्यते-'अप्पंडेहि सं० पा०-अप्पडेहिं जाव चेतेज्जा। १०. गोयवएज्जा (अ); णो उवएज्जा (क,घ,च)। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ आयारचूला कालाइक्कंत-किरिया-पदं ३४. से आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा°, परियावसहेसु वा, जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तत्थेव भुज्जो' संवसंति, अयमाउसो ! कालाइक्कंत-किरिया वि भवइ ।। उवट्ठाण-किरिया-पदं ३५. से आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा°, परियावसहेसु वा, जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तं दुगुणा तिगुणेण' अपरिहरित्ता तत्थेव भुज्जो संवसंति, अयमाउसो' ! उवट्ठाण-किरिया वि भवइ । अभिक्कंत-किरिया-पदं ३६. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा-गाहावई वा', 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइधूयाओ वा, गाहावइ-सुव्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा°, कम्मकरीओ वा । तेसि च णं आयार-गोयरे णो सूणिसंते भवई। तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहि बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताई भवंति, तं जहा--आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा पवाओ" बा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाणसालाओ वा, सूहाकम्मताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध कम्मंताणि वा. वक्क"-कम्मताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि १. सं० पाo----प्रागंतारेसु वा जाव परियाव- ७. या वि (अ, ब) । सहेसु। ८. स. पा.-पाहावई वा जाव कम्मकरीओ। :. तिणित्ता (अ, क, ध, च, ब)। ६. साधूनामेवंभूतः प्रतिश्रयः कल्पते नैवंभूतः, ३. भुज्जो-भुज्जो (घ)। इत्येवं न ज्ञातं भवतीत्यर्थः, प्रतिश्रयदानफलं ४. स. पा.---आगतारेसु बा जाब परियाव- च स्वर्गादिकं तैः कुतश्चिदवगतम् (द)। सहेसु। १०. सहाणि (क, घ, छ, ब)। ५. दुगुणेण (अ, क, घ, च, ब)। स्वीकृतः पाठः ११. पवाणि (अ, क, घ, छ, ब)। वृत्त्यनुसारी वर्तते । १२. वस्थ ° (छ)। ६. अयमाउसो ! इतरा (अ, च, ब)। १३. वल्कज (वृ)। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अभयणं (सेज्जा - बीओ उद्देसो) १२६ वा, सुसाण-कम्मताणि वा, संति-कम्मताणि वा', गिरि-कम्मताणि वा, कंदरकम्मताणि वा, सेलोवट्ठाण - कम्मताणि वा भवणगिहाणि वा । जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहि ओवयमाणेहिं ओवयंति, अयमाउसो ! अभिक्कंत-किरिया वि' भवइ ॥ अभिक्कंत-किरिया - पदं ३७. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा - गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसि च णं आयार गोयरे णो सुणिते भवइ । तं सद्दहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहि बहवे समण - माहण - अतिहिfafar aणीमए समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहि अगाराई चेतिआई भवंति, तं जहा आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा । जे भयंतारी तह पगाराई आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहि अणोवयमाहिं ओवयति, अयमाउसो ! अणभिक्कत - किरिया विभवति ॥ वज्ज-किरियापदं ३८. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसि च णं एवं वृत्तपुब्वं भवइ-इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता" "वयमंता गुणमंता संजया संबुडा भचारी • उवरया मेहुणाओ धम्माओ, णो खलु एएसि भयंताराणं कप्पइ आहाकम्मिए उवस्सए वत्थए । ० सेज्जाणिमाणि' अम्हं अप्पणी सअट्ठाए" चेतिताई भवंति तं जहा आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा । सव्वाणि ताणि समणाणं णिसिरामो, अवियाई वयं पच्छा अप्पणी अट्ठाए चेतिस्सामो, तं जहा आएसणाणि वा जाब भवगिहाणि वा । एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा जिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव भवगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं' पाहुडे हिं वति, अयमाउसो ! वज्ज-किरिया विभवइ | १. वा सुण्णागारकम्मताणि वा ( अ ) । २. कंदरा (अ) 1 ३. वा सयण-गिहाणि वा (छ) 1 ४. या वि ( अ, क, घ, च, ब) 1 ५. सं० पा० - सीलमंता जाव उवरया | ६. ० इमाणि (च ) | ७. अट्टाए ( अ, छ, ब ) । ८. इतरातिरेहिं (क, घ); इयरातरेहि ( अ, च ) 1 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० आयारचूला महावज्ज-किरिया-पदं ३६. इह खलु पाईणं वा, पड़ीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संलेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसते भवइ । तं सदहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहि बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समूहिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहि अगाराइं चेतिताई भवति, तं जहा--आएसणाणि वा भवणगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहि पाहुडेहिं वटुंति, अयमाउसो ! महावज्ज-किरिया वि भवइ ।। सावज्ज-किरिया-पदं ४०. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा—गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिआई भवंति, तं जहा--आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहि पाहुडेहिं वटुंति, अयमाउसो ! सावज्ज-किरिया वि भवइ ।। महासावज्ज-किरिया-पदं इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्डा भवंति, तं जहा - गाहावई वा जाव कम्भकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ । तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहि अगाराइं चेतिताई भवंति, तं जहा-आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा ! महया पुढविकाय-समारंभेणं, "महया आउकाय-समारंभेणं, महया तेउकाय-समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वणस्सइकायसमारंभेणं °, महया तसकाय-समारंभेणं, महया संरंभेणं, महया समारंभेणं, महया आरंभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्म-किच्चेहि, तं जहा—छायणओ लेवणओ संथार-दुवार-पिहणओ । सीतोदए वा परिदृवियपुव्वे भवइ, अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवइ, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव ४१. इहल' १. इतरातरेहिं (अ); इयराइयरेहिं (घ)। २. सं० पा०-एवं आउतेउवाउवणस्सइ । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अन्झयणं (सेज्जा-तइओ उद्देसो) १३१ भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इयराइयरेहिं पाहुडेहिं दुपक्खं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो ! महासावज्ज-किरिया वि भवइ ।। अप्पसावज्ज-किरिया-पदं ४२. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्डा भवंति, तं जहा---गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ । तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहि अप्पणो सअढाए तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा-आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा। मया पुढविकाय-समारंभेणं' 'महया आउकायसमारंभेणं, मया तेउकाय-समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वणस्सइकाय-समारंभेणं, महया तसकाय-समारंभेणं, मह्या संरंभेणं, महया समारंभेण, महया आरभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्म-किच्चेहि, तं जहाछायणओ लेवणओ संथार-दुवार-पिहणओ। सीतोदए वा परिट्ठवियपुव्वे भवइ० अगणिकाए वा उज्जालियपूव्वे भवाइ। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इयराइयरेहिं पाहुडेहिं एगपक्खं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो ! अप्पसावज्ज-किरिया वि भवइ ।। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्धेहि समिए सहिए सया जए। -त्ति बेमि° ॥ तइओ उद्देसो उवस्सय-छलण-पदं ४४. सिय' णो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे, णो य खलु सुद्धे इमेहि पाहुडेहि, तं जहा-छायणओ, लेवणओ, संथार-दुवार-पिहणओं', पिंडवाएसणाओ। से भिक्खू चरिया-रए, ठाण-रए, निसीहिया-रए, सेज्जा-संथार-पिंडवाएसणारए। संति भिक्खुणो एवमक्खाइणो उज्जुया' णियाग-पडिवन्ना अमायं कुव्वमाणा वियाहिया । संतेगइया पाहुडिया उक्खित्तपुन्वा भवइ, एवं णिक्खित्तपुवा भवइ, परिभाइय २. सं० पा०-सामग्गियं । ३. से य (क, घ, च, छ, ब)। ४. पिहुणाओ (अ); पिहाणओ (क, च, छ, ब)। ५. मे य (अ)। ६. उज्जुअडा (अ, छ)। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ आयारचूला पुत्रा भवइ, परिभुक्तपुण्वा भवइ, परिट्ठवियपुव्वा भवइ, एवं वियागरेमाणे समियाए' वियागरेति ? हंता भवइ ॥ उवस्सय-जयण-पदं ४५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - खुड्डियाओ, खुड्डदुवाfरयाओ', निइयाओ' [ नीयाओ ? ] संनिरुद्धाओं भवति । तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण पच्छा पाएण तओ संजयामेव णिवखमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ ४६. केवली बूया आयाणमेयं o तत्थ समणाण वा, माहणाण वा, छत्तए वा मत्तए वा, दंड वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा 'नालिया वा, चेलं वा", चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म छेदणए वा दुब्बद्धे दुष्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले - भिक्खू य राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा । से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा, "बाहुं वा, ऊरु वा, उदरं वा, सीसं वा अण्णयरं वा कायंसि इंदिय - जायं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा", "वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा संघसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीवियाओ ववरोवेज्ज वा । अह भिक्खूर्ण पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए पुरा हत्थेणं पच्छा पाएणं तओ संजयामेव णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा || उवस्य जायणा-पदं ४७. आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसु वा परियात्रसहेसु वा अणुवीइ उवस्सयं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिद्वाए,' ते उवस्सयं अणुण्णवेज्जा - कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णातं वसिस्सामो जाव आउसंतो, जाव आउसंतस्स उवस्सए, जाव साम्मिया 'एत्ता, ताव" उवस्सयं गिहिस्सामा लेण परं विहरिस्सामो ॥ १. समय (घ ); समिया (छ) । २. दुवाराओ (घ ) । ३. नेरइयाओ ( अ ); निययाओ (घ) । ४. सनिरुद्विओ ( अ ) ! ५. नालिया वा चेले वा ( अ ); चेलं वा नालिया वा (घ, व); नालिया वा (छ) । सं० पा०- पायं वा जाव इंदिय । सं० पा० - अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज | ८. समाहिट्टाए ( अ, क, घ, छ); समाहिए ( ब ) । ६. एवाक्ता ( अ ) ; इत्ता त्ता ( क ); इत्ता वा (च); इं ताव (छ) । ६. ७. Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अभय (सेज्जा -- तइओ उद्देसो) सेज्जायर - नाम - गोय-जायणा-पदं ४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, तस्स पुव्वामेव णाम - गोयं जाणेज्जा । तओ पच्छा तस्स गिहे णिमंतेमाणस्स अणिमंतेमाणस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा - अफासुयं' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ उवस्सय विसुद्धि-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - ससागारिथं सागणिय सउदयं णो पण्णस्स निक्खमण - पवेसाए, णो पण्णस्स वायण पुच्छणपरियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग • चिंताए, तहप्पगारे उबस्सए जो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - गाहावइ-कुलस्स मज्झमज्भेणं गंतुं पंथं पडिबद्ध वा', णो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण- पुच्छण परियट्टणाणुपेह - धम्माणुओग - चिताए, तहप्पगारे उस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ५१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - इह खलु गाहावई ar', "गाहावइणीओ वा, गाहावइ- पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइसुहाओवा, धाईओवा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा., कम्मकरीओ TT oणमण्णमक्को संति वा', 'बंधंति वा, रुभंति वा, उद्दवेंति वा, णो पण्णस्स •णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण- पुच्छण - परियट्टणाणुपेहधम्माणुओग • चिताए । सेवं गच्चा तहपगारे उवस्सए णो ठाणं वा', 'सज्ज वा. णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ १३३ ५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा -- इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, बसाए वा अब्भंगे [गें ? ] ति वा, मक्खे [खें ? ]ति वा, णो पण्णस्स' 'णिक्खमणपवेसाए, णो पण्णस्स वायण- पुच्छण परियट्टणाणुपेह धम्माणुओग चिंताए । तहपगारे उवस्सए णो ठाणं वा', "सेज्जं वा, णिसोहियं वा चेतेज्जा ।। ५३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा -- इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा, अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्वेण १. सं० पा० - अफासुयं जाव णो । २. सं० पा०-- वायण जाव चिताए । ३. X ( अ ) । ४. स० पा० - पणस्स जाव चिताए । ५. सं० पा० गाहावई वा जाव कम्मकरीओ | ६. सं० पा०-- अण्णमण्णमक्कोसंति वा जाव उद्दति । ७, C. सं० पा० - पष्णस्स जाव चिताए । ८, १० सं० पा० - ठाणं वा जाव चेतेज्जा । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ आयारचूला वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, आघसंति वा, पघंसंति वा, उव्वलेंति वा, उबट्टेति वा णो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए, गो पण्णस्स वायण- पुच्छणपरिणाणुपे - धम्माणुओग चिताए, तहप्पगारे उवस्सए जो ठाणं वा', "सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ० ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा- इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेंति वा, पधोवेंति वा सिंचति वा, सिणावेति वा, गो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण- पुच्छण परियट्टणाणुपेहधमाणुओग चिताए, तहृप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, सीहियं वा चेतेज्जा ॥ ५५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - इह खलु गाहावई वा जावळ कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिआ, णिगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्मं विष्णवेति रहस्तियं वा मंतं मंतति, जो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए गो पण्णस्स वायण-पुच्छण परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग • चिताए, उवस्सए जो ठाणं वा', "सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा | तहप्पगारे 1 ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा -- आइष्णसंलेक्ख', णो पण्णस्स' 'णिक्खमण- पवेसाए णो पण्णस्स वायण- पुच्छण - परियट्टणाणुपेहधमाणुओग - चिताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, पिसीहियं वा चेतेज्जा | संथारग-पदं ५७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं एसित्तए । सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा -- सअंडं' 'सपाणं सबीअं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिगपणगदग मट्टिय-मक्कडा • संताणगं, तहप्पगारं संथारगं" - "अफासुयं अणेस णिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। ५८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा - अप्पंड" अप्पपाण अप्पati अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग- पण गदग मट्टिय-मक्कडा ० संताणगं, गरुयं, तहप्पगारं संथारगं - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ० लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा - अप्पंड अप्पपाणं १,३,५,८. सं० पा० - पण्णस्स जाव चिंताए । २,४,६. सं० पा० - ठाणं वा जाव चेतेज्जा । ७. संलिखे (घ); • संलेखे (छ) । ६. सं० पा०सअहं जाव संताणगं १०,१२. सं० पा० संधारगं लाभे । ११,१३. सं० पा० अप्पंडं जाव संताणगं । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (सेज्जा-तइओ उद्देसो) १३५ अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, लहुयं अपाडिहारियं, तहप्पगारं संथारगं'– अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ ६०. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड' 'अप्पपाणं अप्पबोअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, लहुयं पाडिहारियं णो अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारगं'- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ६१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण संथारगं जाणेज्जा---अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, लहुयं पाडिहारियं अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारयं' - 'फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे° लाभे संते पडिगाहेज्जा ।। संथारग-पडिमा-पदं ६२. इच्चेयाइं आयतणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणेज्जा, इमाहि चउहिं पडिमाहिं संथारगं एसित्तए ।। ६३. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमासे भिक्खू वा भिक्खणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय संथारगं जाएज्जा, तं जहा-इक्कडं वा, कढिणं' वा, जंतुयं वा, परगं वा, मोरगं वा, तणं वा, कुसं वा, 'कुच्चगं वा", पिप्पलगं वा, पलालगं वा । से पुवामेव आलोएज्जा–आउसो ! त्ति वा भगिणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं ? तहप्पगारं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा-फासुयं एसणिज्ज' ति मण्णमाणे • लाभे संते पडिगाहेज्जा-पढमा पडिमा ।। ६४. अहावरा दोच्चा पांडमा--से भिक्ख वा भिक्खणी वा पेहाए संथारंग जाएज्जा, तं जहा---गाहावई वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइपुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्डं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मरि" वा । से पुवामेव आलोएज्जा--आउसो ! त्ति वा भगिणि ! १. क्वचित 'सेज्जा संथारग' इति पाठोऽस्ति । ६. कठिणगं (घ)। तत्र 'सेज्जा' लिपिदोषेण प्रक्षिप्तः इति ७. पोरगं (घ)। सभाव्यते; सं० पा०--संथारगं लाभे। ८. तणगं (क, च, छ, ब) । २. सं० पा०-अप्पड जाव संताणगं । ६. कुच्चग वा वच्चग वा (चू)। ३. सं० पा०-संथारग लाभे । १०. सं० पा०--एसणिज्जं जाव लाभे । ४. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणगं । ११. कम्मकरी (अ,घ,ब); कम्मकरीयं (च,छ)। ५. सं० पा०--सथारयं जाव लाभे। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ आयारचूला त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वाणं जाएज्जा परो वा से देज्जा -- फासूयं एसणिज्ज" "ति मण्णमाणे लाभे संते ० पडिगाहेज्जा - दोच्चा पडिमा || ६५. अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, ते तत्थ अहासमण्णागए, तं जहा - इक्कडे वा कढिणे वा, जंतुए वा, परगे वा, मोरगे वा, तणे वा, कुसे वा, कुच्चगे वा, पिप्पले वा, पलाले वा । तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा, सज्जिए वा विहरेज्जापडिमा || -तच्चा ६६. अहावरा चउत्था पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहासंथडमेव संथारगं जाज्जा, तं जहा -- पुढबिसिलं वा, कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव । तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुड़ए वा सज्जिए वा विहरेज्जा -- चउत्था पडिमा || ६७. इच्चेयाणं चउन्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे' णो एवं वएज्जा मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अमेगे सम्म पडिवन्ते । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्टिया अण्णोष्णसमाहीए एवं च णं विहति ॥ संथारग-पच्चप्पण-पदं ६८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पञ्चप्पिणित्तिए । सेज्जं पुण संधारगं जाणेज्जा -- सअंडं' 'सपाणं सबीअं सहरियं सउसे सउदयं सउत्तिंगपण दग - मट्टिय-मक्कडा • संताणगं, तहप्पगारं संथारगं णो पच्चपिणेज्जा ॥ ६६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए । सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा -- अप्पंड अप्पपानं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्ति - पण-ग-मट्टिय-मक्कडा • संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिले हियपडिले हिय, पमज्जिय- पमज्जिय, आयाविय-आयाविय, विणिद्धणियविद्धिणिय तओ संजयामेव पच्चष्पिणेज्जा ॥ उच्चार पासवण भूमि-पदं ७०. १. सं० पा० २. सं० पा० एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा । इक्कडे वा जाव पलाले । ३. सं० पा० --- पष्ठिवज्जमाणे तं चैव जाव माहीए। , से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा गामाणुगामं दृइज्जमाणे वा पुव्वामेवणं पणस्स उच्चारपासवणभूमि पडिले हेज्जा ।। ४. सं० पा० सअंडं जाव संताणगं । ५. सं० पा० - अप्पंडं जाव संताणगं । ६. विहुणिय २ (क, च); विद्धणिय २ (घ, ब ) | ७. X (क, घ, च) । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (सेज्जा— तइओ उद्देसो) १३७ ७१. केवली बूया आयाणमेयं - अपडिलेहियाएं उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू' at भिक्खुणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिद्ववेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा । से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हृत्थं वा पायं वा "बाहुं वा, ऊरु वा, उदरं वा, सीसं वा अण्णयरं वा कार्यसि इंदिय जायं ० लूसेज्ज वा पाणाणि वा' 'भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा संघसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ ववरोवेज्ज वा । अभिक्खू पुव्ववदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं पुव्वामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेज्जा || सण-विहि-पदं ७२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा सेज्जा - संथारग-भूमि पडिले हित्तए, गणत्थ आरिएण वा, उवज्झाएण वा", "पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा°, गणावच्छेइएण वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण' वा, मज्भेण वा, समेण वा विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा 'तओ संजयामेव" पडिले हिय-पडिलेहिय, पमज्जिय- पमज्जिय बहु- फासूयं सेज्जा - संथारगं संथरेज्जा ॥ ७३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुयं सेज्जा- संथारगं संथरेत्ता अभिकखेज्जा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए, से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा- संथारए दुरुहमाणे, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कार्य पाए य पमज्जियमज्जिय तओ संजयामेव बहु- फासुए सेज्जा - संथारगे दुरुहेज्जा, दुरुहेत्ता तओ संजयामेव बहु- फासुए सेज्जा - संथारए सएज्जा ॥ ७४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु- कासुए सेज्जा - संथारए सयमाणे, णो अण्णमणस्स हत्थे हत्थे, पाएण पायं काएण कार्य आसाएज्जा। से अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु- फासुए सेज्जा- संथारए सएज्जा | ७५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा णीसासमाणे वा, कासमाणे वा १. से भिक्खु ( छ, ब ) | २. सं० पा० पायं वा जाव लूसेज्ज । ३. सं० पा० - पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज । ४. सं० पा०-उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेइएण । ५. गणावच्छेएण (च) । ६. अन्तेन वेत्यादीनां पदानां तृतीया सप्तम्यर्थे (वृ) 1 ७. x (क, ध, च, ब) 1 ८. मज्जिय तओ संजयामेव (क, घ, च, छ, ब ) 1 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ आयारचूला छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा, उड्डुए वा, वायणिसम्गे वा करेमाणे, पुवामेव आसयं वा, पोसयं वा पाणिणा परिपिहित्ता तओ संजयामेव ऊससेज्ज' वा, णीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छीएज्ज वा, जंभाएज्ज वा, उड्डुयं वा, वायणिसम्गं वा करेज्जा ॥ ७६. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा-समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सदस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा बेगया सेज्जा भवेज्जा-तहप्पगाराहिं सेज्जाहिं संविज्जमाणाहि पगहिततरागं विहारं विहरेज्जा, णो किंचिवि गिलाएज्जा ॥ ७७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि । ----त्ति बेमि ॥ १. उड्डोए (घ, च, छ)। २. उसासेज्ज (क, घ, च, छ)। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयणं इरिया पढमो उद्देसो वासावास-पदं १. अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपट्टे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया अहुणुब्भिन्ना', अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया' ' बहुहरिया बहु-ओसा बहुउदया बहु- उत्तिग- पणग दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा अणभिक्कता पंथा, णो विष्णाया मग्गा, सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दृइज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा | २. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा - गामं वा', 'णगरं वा, खेड वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णवेसं वा ० रायहाणि वा । इमंसि खलु गामंसि वा', 'णगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा, रायहाणिसि वाणो महती विहारभूमी, णो महती वियारभूमी, णो सुलभे पीढ-फलग - सेज्जासंथारए, णो सुलभ फासुए उछे अहेसणिज्जे, बहवे जत्थ समण - माहण - अतिहिकिवण - वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अच्चाइण्णा वित्ती- णो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए', 'णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह - धम्माणुओग १. ग्रहुणुभिया ( अ ); अहुणोन्भिन्ना (घ ) ; अणभिन्ना ( ब ) 1 २. सं० पा० - बहुबीया जाव संताणगा । ३. सं० पा० - गामं वा जाव रायहाणि । ४. सं० पा०-- गामंसि वा जाव रायहाणिसि । ५. सं०पा०—निक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु । १३६ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० आयारचूला चिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं गामं वा नगरं वा जाव रायहाणि वा णो वासावासं उवल्लिएज्जा | ३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा - गामं वा जाव रायहाणि वा । इमं स खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा - महती विहारभूमी, महती वियारभूमा, सुलभे जत्थ पीढ- फलग - सेज्जा-संथारए, सुलभे फासुए उछे अहेसपिज्जे, णो जत्थ बहवे समण'- 'माहण - अतिहि किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अप्पाण्णा वित्तो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स वायण- पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग चिताए । सेवं गच्चा तहप्पगारं गावा जाव रायहाणि वा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा | गामाणुगाम-विहार-पदं ४. अह पुणेव जाणेज्जा - चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कता, हेमंताण य पंच-दसरायकप्पे परिवुसिए अंतरा से मग्गा बहुपाणा' 'बहुवीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु- उत्तिग- पणग-दंग-मट्टिय-मक्कडा • संताणगा, जो जत्थ बहवे समण-माहण अतिहि किवण वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य । सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दृइज्जेज्जा | ५. अह पुणेव जाणेज्जा -- चत्तारि मासा वासाणं वोइक्कंता, हेमंताण य पंच-दसरायकप्पे परिवसिए अंतरा से मग्गा अप्पंडा' 'अप्पपाणा अप्पबोआ अप्पहरिया अपोसा अया अप्पुत्तिग-पणगदग मट्टिय-मक्कडा 'संताणगा, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्सति य । सेवं गच्चा तओ संजयामेव गामाणुगामं दृइज्जेज्जा | ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृइज्जमाणे पुरओ जुगमायं पेमाणे, दट्ठूण तसे पाणे उद्घट्टु पायं रीएज्जा, साहट्टु पायं रीएज्जा, उक्खिप्प पायं रोएज्जा, तिरिच्छ वा कट्टु पायं रीएज्जा । सति परक्कमे संजतामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दृइज्जेज्जा | 19. भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा, उदए वा, मट्टिया वा अविद्धत्था । सति परक्कमे • संजतामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं इज्जेज्जा ॥ १. सं० पा० समण जाव उवागया । २. सं० पा० - वित्ती जाव रायहाणि । ३. सं पा० - बहुपाणा जाव संताणगा । ४. सं० पा० समण जाव उवागया ५. सं० पा० अप्पंडा जात्र संताणगा । ६. वितिरिच्छं ( अ, घ, च, व) । ७. सं० पा० परवकमे जाव णो । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ तइयं अज्झयणं (इरिया-पढमो उद्देसो) ८. से भिक्ख वा भिक्खणी वा गामाणगाम दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दस्मुगायतणाणि मिलक्खूणि अणारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिवोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहि जणवएहिं, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए । है. केवली बूया आयाणमेयं ते णं वाला 'अयं तेणे' 'अयं उवचरए' 'अयं तओ आगए' त्ति कटु तं भिक्खं अक्कोसेज्ज वा', 'बंधेज्ज वा, भेज्ज वा, उद्दवेज्ज' वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं 'अच्छिदेज्ज वा', अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा "एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णो तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्वंतियाणि दस्सुगायतणाणि "मिलक्खणि अणारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्ण वणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहि °, विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहि जणवएहि, णो विहार-वत्तियाए पवजेज्ज गमणाए । केवली व्या आयाण मेयं-ते णं बाला 'अयं तेणे" "अयं उवचरए' 'अयं तओ आगए' त्ति कटु तं भिक्खं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज वा, रुंभेज्ज वा, उहवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंवलं पायपुंछणं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा---एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेटि जवएहि. विहार-बत्तियाए पवज्जेज्ज° गमणाए, तओ संजयामेव गामाणगाम दूइज्जेज्जा ।। १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया। सेज्ज पूण विहं जाणेज्जा---एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण १. सं. पा.----अकोसेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज । २. उववेज्ज (अ, क, च, ब)। ३. अच्छिदेज वा भिदेज्ज वा (च, छ, ब); ___ अच्छिदेज्ज वा अभिदेज्ज वा (अ)। ४. परिवेज (घ, च, ब)। ५. सं० पा.---पुत्रोवदिट्ठा जाव जं। ६. सं० पा०-दस्सुगायतणाणि जाव विहार वत्तियाए । ७. सं० पा०-अयं तेणे तं चेव जाव गमगाए। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ आधारचूला वा, पंचाहेण वा पाउणेज्ज वा, नो पाउणेज्ज वा । तहप्पगारं विहं अगाहमणिज्जं सति लाढे' "विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहार- वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए || , १३. केवली ब्रूया आयाणमेयं - अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा, पणएसु वा, बीएस वा, हरिसुवा, उदसु वा, मट्टियासु वा अविद्धत्थाए । अह भिक्खू पुट्ठा' एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो., जं तहप्पगारं विहं अणेगाह - गमणिज्जं", "सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहि, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए, तओ संजयामेव गामा गामं दूइज्जेज्जा । नावा - विहार-पदं o १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृइज्जमाणे अंतरा से णावासंतारिने उदए सिया । सेज्जं पुण णावं जाणेज्जा — अस्संजए भिक्खु-पडियाए किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा णावाए वा णाव'- परिणामं कट्टु थलाओ वा गावं जलंसि ओगाहेज्जा, जलाओ वा णावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुष्णं वा णावं उरिसज्जा, सण्णं वा णावं उप्पीलावेज्जा । तहप्पगारं गावं उड्डगामिणि वा, अगामिण वा तिरियगामिणि वा, परं जोयणमेराए अद्धजोयणमेराए वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा णो दुरुहेज्ज गमणाए || १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुव्वामेव तिरिच्छ-संपातिमं णावं जाणेज्जा, जाणेत्ता सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता मंडगं पडिलेहेज्जा", पडिलेहेत्ता एगाभोयं भंडगं करेज्जा, करेत्ता ससीसोवरियं कार्य पाए य पमज्जेज्जा, मज्जेत्ता सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, पच्चक्खाएता एगं पायं जले किच्चा, एगं पाय थले किच्चा, तओ संजयामेव णावं दुरुहेज्जा | १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णावं दुरूहमाणे णो णावाए पुरओ दुरुहेज्जा, णो णावाए मग्गओ दुरुहेज्जा, णो णावाए मज्झतो दुरुहेज्जा, जो बाहाओ परिज्भिय-पगिज्भिय, अंगुलिए' उवदंसिय उवदंसिय, ओणमिय-ओणमिय, उष्णमिय- उष्ण मिय णिज्झाएज्जा ।। १. सं० पा०- लाटे जाव णो । २. मट्टिसु ( क च ); मट्टियाएस (घ, छ) । ३. सं० पा० पुग्वोवदिट्ठा जात्र जं । ८. ● भायं (अ); • भोयण (छ) 1 ४. सं० पा० - अमेगाहगमणिज्जं जाव गमणाए । ६. अंगुलियाए ( च, छ, ब ) । ५. दूइज्जेज्जा (क, घ, च, छ, ब) 1 ६. गावं (क, घ, च, छ, ब) | ७. डिगाज्जा (घ, छ, ब ) । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. तइयं अज्झयण (इरिया-पढमो उद्देसो) १४३ १७. से णं परो णावा-गतो णावा-गयं वएज्जा -आउसंतो! समणा! एयं ता' तुमं णावं उक्कसाहि वा, वोक्कसाहि वा, खिवाहि वा, रज्जुयाए' वा गहाय आकसाहि । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा', तुसिणीओ उवेहेज्जा ।। .. १८. से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वएज्जा-आउसंतो ! समणा! णो संचाएसि तुमं णावं उक्कसित्तए वा, वोक्कसित्तए वा, खिवित्तए वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसित्तए। आहर एतं णावाए रज्जयं, रायं चेव णं वयं णावं उक्कसिस्सामो वा, बोक्कसिस्सामो वा, खिविस्सामो वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसिस्सामो। णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुरािणीओ उवेहेज्जा ।। से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वएज्जा-आउसंतो! समणा! एयं ता" तुम णावं अलित्तेण वा, पिहएण' वा, वसेण वा, वलएण वा, अवल्लएण वा वाडेहि णो से तं परिणं परिजाणेज्जा. तसिणीओ उवेहेज्जा ।। २०. से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वदेज्जा-आउसंतो ! समणा! एयं ता तुम णावाए उदयं हत्थेण वा, पाएण वा, मत्तेण वा, पडिग्गहेण वा, णावा-उस्सिच णेण वा उस्सिचाहि ! णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा ।। २१. से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वएज्जा-आउसंतो! समणा ! एतं ता तुम णावाए उत्तिगं हत्येण वा, पाएण वा, बाहुणा वा, ऊरुणा वा, उदरेण वा, सीसेण वा, काएण वा, णावा-उस्सिचणेण वा, चेलेण वा, 'मट्टियाए वा, कुसपत्तएण वा", कुर्विदेण" वा पिहेहि । गो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णावाए उत्तिगेणं उदयं आसवमाणं पेहाए, उवरुवरि" णावं कज्जलावेमाणं पेहाए णो परं उवसंकमित्तु एवं बूया-आउसंतो! गाहावइ ! एयं ते णावाए उदयं उत्तिगेणं आसवति, उवरुवरि वा णावा कज्जलावेति । एतप्पगारं मणं वा वायं वा णो पुरओ कटु विहरेज्जा, अप्पुस्सुए २२. १. x (अ, छ)। ८. अवल्लेण (च)। २. रज्जू ए (अ, क, घ, व)। ६. उरुणा (घ, च, छ, ब) । ३. जाणेज्जा (घ, ब)। १०. निशीथ-णि, भाग ४, पृष्ठ २०६ : 'मट्टि४. रज्जूए (च । याए वा कुसपत्तेण था' इत्यस्य स्थाने ५. X (छ)। 'कुसमट्टियाए वा' इति पाठोस्ति । ६. आलित्तेण (अ, क, घ, च, छ, )। ११. कुरुविदेण (अ, क, ध, च, छ, ब) । अयं ७. पोढेण (अ, क, घ, च, छ, ब)। अयं पाठो पाठो निशीथस्य तथा अप्रयुक्ताचाराङ्गादर्शनिशीथस्य तथा अप्रयूक्ताचारालादर्शस्या- स्थानुसारेण स्वीकृतः । नुसारेण स्वीकृतः। १२. उवरुवरि (घ)1 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ आयारचूला अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज' समाहीए, तओ संजयामेव णावा संतारिमे उदए अहारिय रीएज्जा ॥ २३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणोए वा सामग्गियं, जं सवढेहिं समिए सहिए सदा जएज्जासि । –त्ति बेमि ।। बीओ उद्देसो नावा-विहार-पदं २४. से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वदेज्जा-आउसंतो! समणा! एयं ता तुम छत्तगं बा', 'मत्तगं वा, दंडगं वा, लट्ठियं वा, भिसियं वा, नालियं वा, चेलं वा, चिलिमिलि वा, चम्मगंवा, चम्म-कोसगं वा, चम्म-छेयणगं वा सेण्डाहि, एयाणि तुमं विरूवरूवाणि सत्थ-जायाणि धारेहि, एवं ता तुमं दारगं वा 'दारिगं वा पज्जेहि । णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा ।। २५. से णं परो णावा-गए णावा-गयं वदेज्जा-आउसंतो! एस णं समणे णावाए भंडभारिए भवइ । से णं बाहाए गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवह। एतप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से य चीवरधारी सिया, खिप्पामेव चीवराणि उव्वेड्विज्ज वा, णिव्वेड्डिज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा ।। २६. अह पुणेवं जाणेज्जा-अभिक्कंत-कूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा। से पुवामेव वएज्जा-आउसंतो! गाहावइ ! मा मेत्तो बाहाए गहाय गावाओ उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं णावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि । से णव वयत परो सहसा बलसा बाहाहि गहाय गावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा. तंणो सुमणे सिया, णो दुम्मणे" सिया, णो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसिं बालाणं घाताए वहाए समुद्रुज्जा, अप्पुस्सुए' 'अब हिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं त्रियोसेज्ज ° समाहीए, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा ।। २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे णो हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कार्य, आसाएज्जा । 'से अणासायमाणे" तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा ॥ १. विउसज्ज (क)। २. सं० पा०-छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं। ३. x (क, घ, च) 1 ४. पक्खिवेज्जा (क, ग, च, छ, ब)। ५. दुमणे (घ, छ, ब)। ६. सं० पा–अप्पुस्सुए जाव समाहीए। ७. से अणासादए अणा (अ)। Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (इरिया-त्रीओ उद्देसो) १४५ २८. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे णो उम्मग्ग-णिमग्गियं करेज्जा। मामेयं उदगं कण्णंसु वा, अच्छोसुवा, पक्कसि वा, मुहंसि वा परियावज्जेज्जा, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा ।। २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे दोब्बलियं पाउणेज्जा। खिप्पामेव उहि विमिचेज्ज वा, विसोहेज्ज वा, णो चेव णं सातिज्जेज्जा ।। ३०. अह पुणेवं जाणेज्जा--पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा कारण उदगतीरे चिट्ठज्जा ।।। ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, संलिहज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उव्वट्टेज्ज वा, आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा ।। ३२. अह पुण एवं जाणेज्जा-विगओदए मे काए, वोच्छिन्न सिणेहे' मे काए । तहप्पगारं कायं आमज्जेज्ज वा जाब पयावेज्ज वा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दुइज्जेज्जा ।। 33. से भिक्ख वा भिक्खणो वा गामाणगाम दुइज्जमाणे णो परेहिं सद्धि परिजबिय परिजविय गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। जंघासंतारिम-उदग-पदं ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे उदए सिया। से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पादे य पमज्जेज्जा, पमज्जेत्ता *सागार भत्तं पच्चक्खाएज्जा, पच्चक्खाएत्ता ° एगं पायं जले किच्चा, एग पायं थले किच्चा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए' अहारियं रीएज्जा । ३५. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा जंघामंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे, णो 'हत्थेण इत्थं पाएण पायं, काएण' कायं, आसाएज्जा। 'से अणासायमाणे तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा ।। ३६. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा जंघासतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे णो साय वडियाए, णो परदाह-वडियाए, महइमहालयंसि उदगसि कायं विउसेज्जा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा ।। १. उम्मुग्ग (घ, च, ब) ! २. णिम्मुग्गियं (ध, च)। ३. सातिज्जेज्ज वा (छ)। ४. छिन्न (क, घ, च. ब)। ५. सं० पात-पमज्जेता जाव एगं । ६. उदगसि (क, घ, च)। ७. हत्थेण वा हत्थं (अ) (सर्वत्र) । ८. से अणासादए अणा (अ)। ९. साया (अ)। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला ३७. अह पुणेवं जाणेज्जा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्धेण' वा कारण दगतीरए' चिट्ठज्जा ॥ ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा कायं, ससणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा ॥ ३६. अह पुणेवं जाणेज्जा-विगतोदए मे काए, छिण्णसिणेहे मे काए, तहप्पगारं कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा संलिहेज्ज वा णिल्लिहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उबट्टेज्ज वा आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो मट्टियामएहिं पाएहिं हरियाणि छिदिय-छिदिय, विकुज्जिय-विकुज्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हरिय-वहाए गच्छेज्जा । “जहेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु" ! माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा। से पुवामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासमाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा। सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा ।। ४२. केवली बूया आयाणमेयं से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा । से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा रुक्खाणि वा, गुच्छाणि वा, गुम्माणि वा, लयाओ वा, वल्लीओ वा, तणाणि वा गहणाणि वा, हरियाणि वा, अवलंबियअवलंबिय उत्तरेज्जा', जे तत्थ पाडिपहिया' उवागच्छंति, ते पाणी जाएज्जा, तओ संजयामेव अवलंबिय-अवलंबिय उत्तरेज्जा , तओ गामाणुगामं दुइज्जेज्जा।। ४३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा, सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, परचक्काणि वा, सेणं वा विरूवरूवं सणिविटुं पेहाए, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छज्जा ॥ १. समिणिद्धेण (च)। ६. पाडिवधेया (क); पाडिवाहेया (घ); पाडि२. उदगतीरए (घ)। पडिया (छ)। ३. सं० पा०-आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज। ७. उत्तारेज्जा (अ)। ४. जमेतं (छ) 1 ८. सणिरुद्धं (ब)। ५. उत्तारेज्जा (अ)। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभय (इरिया - तइओ उद्देसो) अभिणिचारिय-पदं ४४. से णं परो सेणागओ वएज्जा--आउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिणिचारिय करेन्द्र । से णं वाहाए गहाय ग्रागसह । से णं परो बाहाहिं गहाय आगसेज्जा । तं णो सुमणेसिया, 'णो दुम्मणे सिया, गो उच्चावयं मणं नियच्छेज्जा, णो तेसि वालाण घाताए वहाए समुज्जा । अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाण वियोसेज्ज • समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा | पाडिपहिय-पदं ४५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा । तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा आउसंतो ! समणा ! केवइए एस गामे वा', "जगरे वा, खेडे वा, कवडे ना, मडंबे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, णिगमे वा, आसमे वा, सण्णिवेसे वा, रायहाणी वा ? केवइया एत्थ आसा हत्थी गामपिडोलगा मगुस्सा परिवर्तति ? से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजबसे ? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्प - जवसे ? 'एयप्पगाराणि परिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि परिणाणि नो पुच्छेज्जा" | ४६. एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियों, "जं सव्वट्ठेहि समिए सहिए सया जज्जासि । १. अभिनिवारिय ( अ, क, घ. च, ब) २. सं० पा० - सिया जाव ममाहीए । ३. सं० पा०-गामे वा जाव रायहाणी | x. X ( ब ) ; एषपगाराणि परिणाणि नो पुच्छेज्जा एवपगाराणि परिणाणि पुट्ठो वा अवाको वागरेज्जा (क, च, छ); १४७ तइओ उद्देस अंगचेट्ठापुव्वं निज्झाण-पदं ४७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा', 'तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल - पासगाणि वा, गड्डाओ वा०, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा णूम-गिहाणि वा, रुख-गिहाणि वा मन्त्रय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइयकडं, आएसणाणि वा', 'आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ - त्ति बेमि ॥ O एयपगाराणि परिणाणि नो पुच्छेज्जा एय पुट्ठो वा पुट्टो वा णो वागरेज्जा (घ) । ५. सं० पा० सामग्गियं । ६. सं० पा० - पागाराणि वा जाव दरीओ । ७. मुं० पा० - आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ आयारचूला दा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओवा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कमताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मताणि वा, सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा°, भवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलियाए उद्दिसिय-उद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से कच्छाणि वा दवियाणि वा, णूमाणि वा, वलयाणि वा, गहणाणि वा, गहण-विदुग्गाणि वा, वणाणि वा, वण-विदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वय-विदुग्गाणि वा, अगडाणि वा, तलागाणि वा, दहाणि वा, णदीओ वा, वावीओ वा, पोक्खरिणीओ वा, दीहियाओ वा, गुंजालियाओ वा, सराणि वा, सर-पंतियाणि वा, सर-सरपंतियाणि वा णो बाहाओ पगिभिय-पगिझिय', 'अंगुलियाए उद्दिसियउद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय, णिज्झाएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ! ४६. केवली बूया आयाणमेयं--जे तत्थ मिगा वा, पसुया वा, पक्खी वा सरीसिवा' वा, सीहा वा, जलचरा वा, थलचरा वा, खहचरा वा सत्ता, ते उत्तसेज्ज वा, वित्तसेज्ज वा, वाडं वा सरणं वा कखेज्जा । चारे त्ति मे अयं समणे । अह भिक्खणं पुवोवदिट्ठा' 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं जो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय', 'अंगुलियाए उद्दिसिय-उद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्ण मिय-उण्णमिय°, णिज्झाएज्जा, तओ संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। आयरिय-उवज्झाय-सद्धि-विहार-पदं ५०. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो आयरिय-उवज्झायस्स हत्थेण हत्थं', 'पाएण पायं, कारण काय आसाएज्जा । से ° अणासायमाणे तओ संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहि सद्धि गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। ५१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि दूइज्जमाणे अंतरा से १. सं. पा.--पगिझिय जाव णिज्झाएज्जा। ४. सं० पा०—पुव्वोवदिट्टा जाव । २. पसू (अ)। ५. सं० पा०—पगिझिय जाव णिज्झाएज्जा। ३. सिरीसिवा (अ, घ, च)। ६, स० पा०-हत्थं जाव अणासायमाणे। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयण (इरिया - तइओ उद्देसो) १४६ पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो ! समणा ! के तुब्भे ? कओ वा एह ? कहिं वा गच्छिहिह ? जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज्ज वा, वियागरेज्जा वा। आरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा णो अंतराभासं करेज्जा, तओ संजयामेव आहारातिणिए' दुइज्जेज्जा ॥ आहारातिणिय-सद्धि-विहार-पदं ५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आहारातिणियं गामाणुगाम दुइज्जमाणे णो रातिणियस्स हत्थेण हत्थं, 'पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा । से अणासायमाणे तओ संजयामेव आहारातिणियं गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। ५३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आहारातिणियं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा 1 ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसतो ! समणा ! के तुब्भे ? कओ वा एह ? कहिं वा गछिहिह ? जे तत्थ सव्व रातिणिए' से भासेज्ज वा, वियागरेज्ज वा । रातिणियस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा णो अंतराभासं भासेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। पाडिपहिय-पदं ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा ! ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा आउसंतो ! समणा ! अवियाई एत्तो पडिपहे पासह, तं जहा--मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, पसं वा, पक्खि वा, सरीसिव वा, जलयरं वा ? से आइक्खह, दंसेह । तं णो आइवखेज्जा, णो दसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छज्जा' । ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो! समणा ! अवियाई एत्तो पडिपहे पासह--उदगपसूयाणि कंदाणि वा. मूलाणि वा, 'तयाणि वा पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा", उदगं वा ५५. १. ०राइगियाए (अ, ब); अहा° (घ, च)। २. सं० पा.-हत्थं जाव अणासायमाणे। ३. रातिणिए (घ)। ४ आगच्छेज्जा (अ, च, छ) । ५. सिरीसिवं (अ, छ, ब); सिरीसवं (च)। ६. तस्स (क, च, छ)। ७. आगच्छेज्जा (अ, छ) । ८. तया पत्ता पुप्फा फला बीया हरिया (अ, के, ध, च, छ, ब)। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला संणिहियं, अगणि वा संणिक्खित्तं ? से आइक्खह', 'दंसेह । तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाण अतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा। ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो! समणा! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह-जवसाणि वा', 'सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, परचक्काणि वा, सेणं वा विरूवरूवं संणिविट्ठ ? से आइक्खह, दंसेह । तं णो आइक्खेज्जा, णो दसेज्जा, णो तेसिं तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ॥ ५७. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अतरा से पाडिपहिया "उवागच्छेज्जा। तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसैंतो ! समणा ! केवइए एत्तो गामे वा', 'णगरे वा, खेडे वा, कव्वड वा मडंवे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, णिगमे वा, आसमे वा, सण्णिवेसे वा°, रायहाणी वा ? से आइक्खह, दंसेह । तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। से भिक्खू वा भिवखुणी वा गामाणुगाम दुइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा । ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो ! समणा ! केवइए एत्तो गामस्स वा, णगरस्स वा', 'खेडस्स वा, कव्वडस्स वा, मडंबस्स वा, पट्टणस्स वा, दोणमुहस्स वा, आगरस्स वा, णिगमस्स वा, आसमस्स वा, सण्णिवेसस्स वा रायहाणीए वा मग्गे ? से आइक्खह, दंसेह । तं णो आइक्वेज्जा, णो दसेज्जा, णो तेसि तं परिण्णं परिजाणज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाणं दूइज्जेज्जा ॥ वियाल-पदं ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाणं दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिपहे पेहाए', 'महिसं वियाल पडिपहे पहाए, एवं-मणुस्स, आसं, हथि, सीहं, वग्छ, विगं, दीवियं, अच्छ, तरच्छं, परिसरं, सियालं, विरालं, सुणयं, ५८. १. सं० पा०–आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा। २. सं० पा०--जवसाणि वा जाव सेणं। ३. सं० पा.--पाडिपहिया जाव आउसतो। ४. सं० पा०-गाम वा जाव रायहाणी। ५. सं० पा०—णगररस वा जाव रायहाणीए। ६. सं० पा०—पहाए जाव चित्ताचिल्लडं। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइथं अज्भ.यणं (इरिया-तइओ उद्देसो) १५१ कोल-सुणयं, कोकंतियं, चित्ताचिल्लड–वियालं पडिपहे पहाए, णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमज्जा, गो गहणं.वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कायं वि उसेज्जा, गो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए' 'अबहिलेस्से एगंतएणं अप्पाणं वियोसेज्ज° समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। आमोसग-पदं ६०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया। सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा-इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवगरणपडियाए. संपिडिया मच्छेज्जा, णोतेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संक मेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्वंसि दुरुहज्जा, णो महइमहालयसि उदास कायं विउसेज्जा, णो वाडं वा. सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेजा।।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाभाणगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिडिया गच्छेज्जा। ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा-आउसंतो! समणा ! 'आहर एयं" वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुछणं वा--देहि, णविखवाहि। तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, णो अंजलि कट्ट जाएज्जा, णो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा । तण आमोसगा 'सयं करणिज्ज'' ति कटु अक्कोसंति वा', 'बंधति वा. रुभंति वा°, उद्दवंति वा। वत्थं वा, पायं वा, कबल वा, पायपूछणं वा अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज' वा । तं णो गामसंसारियं कूज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो ! गाहावइ ! एए खलु आमोसगा उवगरण-पडियाए सयं कणिज्ज ति कटु अक्कोसंति वा जाव परिभवेति वा । एयप्पगारं मणं वा वइं' वा णो पुरओ कटु, विहरेज्जा, १. सं० पा०-अप्पुस्सुए जाव समाहीए । २. आहारं एवं (छ); आहर एत्थ (अ,क,ब)! ३. सयं करणिज्जा कणिज्ज (च)। ४. सं० पा०-अक्कोसति वा जाव उद्दवति । ५. परिद्र (अक, घ, च. छ. ब)। ६. परि? ° (अ, क, घ, च, छ, ब) । ७. वायं (च); वयं (छ, ग) 1 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ आयारचूला अप्पुस्सुए' 'अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज ° समाहीए, तओ संजयामेव गामाणगाम दइज्जेज्जा॥ ६२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वढेहि समिते सहिए सया जएज्जासि । —त्ति बेमि ।। १. सं० पा०-अप्पुस्सुए जाव समाहीए। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं अभयणं भासज्जातं पढमो उद्देसो as - अणायार- पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाई वइ आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाई अणा याराई अणायरियपुव्वाइं जाणेज्जा - जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउजति, जे मायाए वा वायं विजंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं' सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए ॥ २. धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा -- असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वालभिय गोलभिय, भुजिय णो भुंजिय, अदुवा आगए अदुवा जो आगए, अदुवा एइ अदुवा णो एइ, अदुवा एहिति अदुवा जो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि णो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि णो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि णो एहिति ॥ सोडस- वयण-पदं ३. अणुवीइ गिट्ठाभासी, समियाए संजए भासं भासेज्जा, तं जहा - एगवयणं, दुवयणं, बहुवयणं, इत्थीवयणं, पुरिसवयणं, णपुंसगवयणं, अज्झत्थवयणं, उवणीयवयणं, अवणीयवयणं, उवणीय अवणीयवयणं, अवणीय-उवणीयवयणं तीयवयणं, पडुप्पन्नवयणं, अणारायवयणं, उच्चक्खवयणं, परोक्खवयणं ॥ ३. इत्थि ० ( अ ) । १. सव्वं वेयं (क, च, ब ) ; सव्वं चेयं (घ ) । २. अणुवीय (छ) । १५३ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला ४. से १. एगवयणं वदिस्सामीति एगवयणं वएज्जा', २. 'दुवयणं वदिस्सामीति दुवयणं वएज्जा, ३. बहुवयणं वदिस्सामीति वहुवयण बएज्जा, ४. इत्थीवयणं वदिस्सामीति इत्थीवयणं वएज्जा, ५. पुरिसवयण वदिस्सामीति पुरिसवयणं वएज्जा, ६. णपुंसगवयण वदिस्सामीति णपुंसगवयण वएज्जा, ७. अज्झत्थवयणं वदिस्सामीति अज्भत्थवयणं वएज्जा, ८. उवणोयववणं वदिस्सामीति उवणीयवयण वएज्जा, ६. अवर्णीयवयणं वदिस्सामीति अवणीयवयण वएज्जा, १०. उवणीय-अवणीयवयण वांदस्सामीति उवणीय-अवणीयवयण वएज्जा, ११. अवणीय-उवणीयवयणं वदिस्सामीति अवणीय-उवणीयवयणं वएज्जा, १२. तीयवयणं वदिस्सामीति तोयवयण वएज्जा, १३. पडुप्पन्नक्यण वदिस्सामोति पड़प्पन्नवयणं वएज्जा, १४. अणागयवयण वदिस्सामीति अणागयवयण वएज्जा, १५. पच्चक्खवयणं वदिस्सामीति पच्चक्खवयण वएज्जा, १६. परोक्खवयणं वदिस्सामीति परोक्खवयणं वएज्जा ।। अणुवीइ णिहाभासि-पदं ५. 'इत्थी वेस, पुरिस वेस, णपुंसग वेस", एवं' वा चेयं, अण्णं वा चेयं अणुवीइ __णिट्राभासी समियाए संजए भासं भासेज्जा, इच्चेयाई आयतणाई उवाति कम्मा भासज्जात-पदं ६. अह भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासज्जायाइ, तं जहा—सच्चमेग" पढम भासजायं, वीयं मोसं, तइयं सच्चामोसं, जणेव सच्चं वमोसं णव सच्चामोसं-असच्चा मोस णाम तं च उत्थं भासज्जात ॥ ७. से बेमि--जे अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एयाणि चेव चत्तारि भासज्जायाइं भासिंसु वा, भासंति वा, भासिस्संति वा, पण्णविसु वा, पण्णवति वा, पण्णविस्सति वा ।। ८. सव्वाइं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फास मंताणि चयोवचइयाई विपरिणामधम्माई भवंतीति अक्खायाई॥ ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा--पुथ्वं भासा अभासा, भासि___ जमाणी भासा भासा, भासासमयविइक्कंता भासिया भासा अभासा ।। १. सं० पा०--वएज्जा जाव परोक्खवयणं । २. इत्थीवेद पुंवेय णपुंसगवेय (घ, छ, ब)। ३. एय (घ, छ)। ४. अण्णहा (अ, च, छ, ब)। ५. मेय (अ, घ, छ); °मेत (क) । ६. चओवए (अ); चयोवचयाई (छ); चयो वचयमंताणि (ब)। ७. विविहपरिणाम ° (च, छ) । ८. समक्खयाइं (अ)। है. विइक्कंतं च णं (क, घ, च, छ)। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (भासज्जातं-पढमो उसो) १५५ सावज्ज-भासा-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-जा य भासा सच्चा, जा य भासा मोसा, जा य भासा सच्चामोसा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं सावज्ज सकिरियं कक्कसं कड्यं निरं फरुसं अण्यकरि छयणकरि भेयणकरि परितावणकरि उद्दवणकरि भूतोवधाइयं अभिकंख ‘णो भासेज्जा" ।। असावज्ज-भासा-पदं ११. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण जाणेज्जा-जा य भासा सच्चा सुहुमा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं असावज्ज अकिरिय' 'अकक्कसं अकडुयं अनिट्ठरं अफरुसं अणण्यकरि अछेयणकरि अभेयणकरि अपरितावण करि अणुद्दवणकरि° अभूतोवघाइयं अभिकख' भासेज्जा । आमंतणी-भासा-पदं १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिते वा अपडिसुणेमाणे णो एवं वएज्जा-'होले ति वा, गोले ति वा", वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा घडदासे ति वा, साण ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा 'इच्चयाइं तुम एयाई ते जणगा वा-एतप्पगारं' भासं सावज्जं सकिरियं जाव भूतोवघाइयं अभिकख नो भासेज्जा। १३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा-अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासग ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा-एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ॥ १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थि आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा होले ति वा, गोले ति वा', 'वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साण ति वा, तेण ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चेयाइं तुमं एयाई ते जणगा वा-एतप्पगारं भासं सावज्ज जाव भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा ॥ १. णो भासं भासज्जा (अ, ब); भासं णो ५. इतियाइं तुम इतियाइं (अ); एयाई तुम • ___ भासेज्जा (घ)। (क, च) एतिया तुम ° (ब)। २. सं० पा०–अकिरियं जाव अभूतोवधाइयं । ६. तहप्पगार (छ)। ३. अभिकख भासं (अ, ध, छ)। ७. आउसतारो (क, घ, छ)। ४. डोले इबा गोले इ वा (घ); होलि त्ति वा ८. सं० पा.---गोले ति वा इत्थीगमेण तवं । गोलि त्ति वा (छ)। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला १५. से भिक्खू वा भिक्खणी वा इथियं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी एवं वएज्जा-आउसो ति वा, 'भगिणी ति वा", भगवई ति वा, साविगे ति वा, उवासिए ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा-एतप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभूतोवघाइय अभिकंख भासेज्जा ।। विधि-निसिद्ध-भासा-पदं १६. से भिक्खू बा भिक्खुणी वा णा एवं वएज्जा–णभोदेवेति वा, गज्जदेवे ति वा, विज्जुदेवे ति वा, पट्टदेवे ति वा, निवुटुदेवे ति वा, पडउ वा वासं मा वा पडउ, णिप्फज्जउ वा सस्सं मा वा णिप्फज्जउ, विभाउ वा रयणी मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ, सो वा राया जयउ मा वा जयउ--णो एतप्पगार भासं भासेज्जा पण्णवं ।। १७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्खे ति वा, गुज्झाणुचरिए ति वा, संमुच्छिए ति वा, णिवइए ति वा 'पओए, वएज्ज" वा वुटुबलाहगे ति वा ।। १८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, ज सव्वट्ठहि समिए सहिए सया जएज्जासि । —त्ति बेमि ।। बीओ उद्देसो कक्कस-भासा-पदं १६. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा जहा वेगइयाई रूवाई पासेज्जा तहावि ताई गो एवं वएज्जा, तं जहा-गंडी गंडी ति वा, कुट्टी कुट्ठी ति वा, 'रायसी रायंसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिए ति वा, झिमियं झिमिए ति वा, कुणियं कुणिए ति वा, खुज्जियं खुज्जिए ति वा, उदरी उदरी ति वा, भूयं मूए ति वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिलासिणी ति वा, वेवई वेवई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिलिवयं सिलिवए ति वा, महमेहणी महुमेहणी" ति वा, हत्थछिन्नं हत्थछिन्ने ति वा, पादछिन्नं पादछिन्ने ति वा, नक्कछिन्नं नक्कछिन्ने ति वा, कण्णछिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओटु १. भगिण ति वा भोई ति वा (क, घ, च)। २. धम्मिणिए (क)। ३. णभं देवे (घ)। ४. गज्ज देव (ब)। ५. पवुटो (अ)। ६. सास (अ, ब)। ७. णिवडिए (च)। ८. तओ एवं वदेज्जा (छ)। ६. सं० पा०..-कुट्टी ति वा जाव महुमेहणो । १०. महुमेही (छ)। ११. सं० पा०---एवं पादणक्ककण्णउच्छिन्नेति वा। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (भासज्जातं-बीओ उद्देसो) १५७ छिन्नं ० ओछिन्ने ति वा" जे यावण्णे तहप्पगारे तहप्पगाराहि भासाहिं बुइया बुइया' कुप्पंति माणवा । ते यावि तहप्पगाराहिं भासाहि अभिकख णो भासेज्जा।। अकक्कस-भासा-पदं २०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं रूवाइं पासेज्जा तहावि ताइं एवं वएज्जा' तं जहा -ओयंसी ओयंसी ति वा, तेयंसो तेयंसी ति वा, बच्चसी वच्चंसी ति वा, जसंसी जसंसी ति वा, अभिरूवं अभिरूवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा, पासाइयं पासाइए ति वा, दरिसणिज्जं दरिसणीए ति वा, जे यावण्णे तहप्पगारा तहापगाराहि भासाहि बुझ्या-बुइया णो कुष्पंति माणवा । ते यावि तहप्पगारा एयप्पगाराहि भासाहिं अभिकख भासेज्जा' । सावज्ज-असावज्ज-भासा-पदं २१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाइं पासेज्जा, तं जहा-वप्पाणि वा', 'फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गलपासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, णूमगिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाणसालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल- कम्मताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदरकम्मंताणि वा, सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा,° भवणगिहाणि वा-तहावि ताई णो एवं वएज्जा, तं जहा-सुकडे ति वा, सुठुकडे ति वा, 'साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा", करणिज्जे ति वा-एयप्पगारं भासं सावज्ज सकिरियं कक्कसं कडुयं निठुरं फरुसं अण्यकरि छेयणकरि भेयणकरि परितावणकरि उद्दवणकरि भूतोवघाइयं अभिकंख ° णो भासेज्जा ।। २२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाई पासेज्जा, तं जहा-- १. एवं पाद नक्क कण ओटु° (अ); एवं जद कण्ण नक्क° (छ, ब)। २. एयप्प° (क, छ)। ३. x (अ)। ४. भायेज्जा (छ)। ५. एयप्प° (अ, घ, च) । ६. पूर्व सूत्रे 'तहप्पगाराहि विद्यते, किन्तु अत्र प्रतिषु तथा नास्ति । ७. भासेज्जा । तहप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा (अ, ब)। ८. सं० पा०-वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि । ६. साहुकल्लाणं ति वा (अ, छ) । १०. सं० पा०—सावज्जं जाव णो। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ आयारचूला वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि वा-तहावि ताइं एवं वएज्जा, तं जहाआरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणीयं दरिसणीए ति वा, अभिरूवं अभिरूवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा- एयप्पगारं भासं असावज्ज' 'अकिरिय अकक्कसं अकडुयं अनिठुरं अफरुसं अणण्यकरि अछेयणकरि अभेयणकरि अपरितावणकरि अणुद्दवणकरि अभूतोवघाइयं अभिकंख ° भासेज्जा । २३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पहाए तहावि तं गो एवं वएज्जा, तं जहा-सुकडे ति वा, सुठ्ठकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा - एयप्पगारं भासं सावज्ज जाव भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा ॥ २४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा–आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्दए ति वा, ऊसढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्णं मणुण्णे ति वा-एयप्पगारं' भासं असावज्ज जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा ॥ २५. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसं वा, पक्खि वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा, से तं परिवढकायं पहाए णो एवं वाज्जा-थूले ति वा, पमेइले ति वा, वट्टे ति वा, वझे ति वा, पाइमे ति वा--एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णो भासेज्जा ।। २६. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा मणुस्सं* *वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खि वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा, से तं परिवूढकायं पहाए एवं वएज्जा, तं जहा -परिवूढकाए ति वा, उवचियकाए ति वा, थिरसंघयणे ति वा, चियनंससोणिए ति वा, वहुपडिपुण्णइंदिए ति वा एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभूतोवधाइयं अभिकंख भासेजा।। २७. से भिक्ख वा भिक्खुणो वा विरूबरूवाओ गाओ पेहाए णो एवं वएज्जा, तं जहा-गाओ दोज्झाओ ति वा, दम्मे ति वा, गोरहे ति वा, 'वाहिमा ति वा ------------- - - १. सं० पा० असावज्ज जाव भासेज्जा। २. तहाविहं (घ, 4)। ३. तहप्प ° (अ, च। ४. माणुस्सं (घ, छ)। ५. तं (छ)। ६. थुल्ले (अ, क, च, छ)। ७. सं० पा०-मणुस्सं जाव जलयर। ८. दोज्झा (अ, क, च, छ, ब)। ६. दम्मा (अ, च, ब)। १०. गोरहा (अ, च, ब)। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०. चउत्थं अज्झयणं (भासज्जातं-बीओ उद्देसो) १५६ रहजोग्गाति वा"-एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णो भासेज्जा ॥ २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा-- जुवंगवे ति वा, घेणू ति वा, रसवती ति वा, हस्से ति वा, महल्लए' ति वा, महव्वए ति वा संवहणे ति वा-एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा॥ २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणाई यन्वयाइं वणागि य रुक्खा महल्ला पेहाए णो एवं वएज्जा, तं जहा–पासायजोग्गा नि बा, 'गिहजोग्गा ति वा, तोरणजोग्गा ति वा, 'फलिहजोग्गा ति वा, अग्गल-नावा-उदगदोणिपीढ-चंगबेर - णंगल-कुलिय-जंतलट्ठी-णाभि-गंडी-आसण-सयण-जाण-उवस्सयजोग्गा ति वा–एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवधाइयं अभिकख णो भासेज्जा ।। से भिक्ख वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणाई पव्वयाणि वणाणि य रुक्खा महल्ला पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा-जातिमंता ति वा, दोहबट्टा ति वा, महालया ति वा, पयायसाला ति वा, विडिभसाला ति वा, पासाइया ति वा, दरिसणीयाति वा, अभिरूवा ति वा, पडिरूवा ति वा-एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवधाइयं अभिकंख भासेज्जा। ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया वणफला [अंबा ?} पेहाए तहावि ते णो एवं वएज्जा, तं जहा~-पक्का ति वा, पायजा ति वा, वेलोचिया ति वा, टाला ति वा, वेहिया ति वा-एयप्पगारं भासं सावज्ज जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णो भासेज्जा॥ ३२. से भिक्ख वा भिवखुणी वा बहुसंभूया 'वणफला अंबा" पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा--- असंथडा इ वा, बहुणिवट्टिमफला ति वा, बहुसंभूया इ वा, भूयरूवा ति वा--एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ।। ३३. से भिक्ख वा भिक्खु णी वा वहुमभूयाओ ओसहीओ पहाए तहावि ताओ णो एवं वएज्जा, तं जहा--पक्का ति वा, नोलिया ति वा, छवीया ति वा, लाइमा ति वा, भज्जिमा ति वा, बहुखज्जा ति वा-एयप्पगारं भासं सावज जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णो भासेज्जा। १. वाहनयोग्यो रथयोग्यः (वृ) । २. हस्से (घ, छ); रहस्से (ब)। ३. महल्ले (छ, ब)। ४. वा (च, ब)। ५. तोरणजोग्गा ति वा गिहजोग्गा (अ, ब)। ६. अग्गल जोग्गा ति वा फलिह° (च)। ७. सिंगबेर (अ. ब)। ८. वेलोविगा (अ); वेलोतिया (क, घ, च); वेलोविया (ब)। ६. वणफणा (क, च, ब); फलअंबा (व)। १०. छवी (अ)। Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० आयारचूला ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पहाए एवं वएज्जा, तं जहा-रूढा ति वा, वहुसंभूया ति वा, थिरा ति वा, असहा ति वा, गम्भिया ति वा, पसूया ति वा ससारा ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ।। ३५. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं सद्दाइं सुणेज्जा, तहावि ताई णो एवं वएज्जा, तं जहा--सुसद्दे ति वा, 'दुसद्दे ति वा —एयप्पगारं भासं सावज्ज जाव भूतोवघाइय अभिकख णो भासेज्जा ॥ ३६. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई सद्दाइं सुणेज्जा", ताई एवं वएज्जा, तं जहा- सुसई सुसद्दे ति वा, 'दुसदं दुसद्दे ति वा"-एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ॥ ३७. एवं रूवाइं—कण्हे ति वा, गीले ति बा, लोहिए ति वा, हालिद्दे ति वा, सुकिल्ले ति वा, गंधाइं--सुबिभगंधे ति वा, दुब्भिगंधे ति वा, रसाई--तित्ताणि वा, कडुयाणि वा, कसायाणि वा, अंबिलाणि वा, महुराणि वा, फासाइं—कक्खडाणि वा, मउयाणि वा, गुरुयाणि वा, लहुयाणि वा, सीयाणि वा, उसिणाणि वा, णिद्धाणि वा, रुक्खाणि वा ।। अणुवीइ पिट्ठाभासि-पदं ३८. से भिक्खू वा भिवखुणी वा वंता 'कोहं च माणं च मायं च लोभं च", अणुवीइ णिद्वाभासी णिसम्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भास भासेज्जा॥ ३६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वदेहि समिए सहिए सया जएज्जासि । —त्ति बेमि ॥ १. मसारा (अ, छ)। २. ४ (च, छ)। ३. X (अ, क, च, छ, ब)। ४. ४ (च, छ)। ५. कोहवयणं माणं वा ४ (क, घ, च, ब)। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं वत्थेसणा पढमो उद्देसो वत्थजाय-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं एसित्तए, सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा, तं जहा--जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तगं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं'२. जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं वत्थं धारेज्जा, णो बितियं ।। ३. जाणिग्गंथो, सा चत्तारि संघाडीओ धारेज्जा-एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थाराओ, एगं चउहत्यवित्थारं, तहप्पगारेहि' वत्थेहि असंविज्ज माणेहि अह पच्छा एगमेगं संसीवेज्जा ॥ अद्धजोयण-मेरा-पदं ४. से भिक्ख वा भिक्खुणी बा परं अद्धजोयण-मेराए वत्थ-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए । अस्सिपडियाए वत्थ-पदं ५. से भिक्ख वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडिया साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई 'भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समूहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं १. धारयेदित्युत्तरेण सम्बन्धः (वृ)। २. जुववं (घ)। ३. एएहिं (अ, च, ब)। ४. अविज्ज (अ, ब)। ५. सं० पा०—पाणाई जहा पिंडेसणाए ! Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णोहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासुय अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ "से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जोवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहड आहटु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकर्ड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणोहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-~अफासयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णोपडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण वत्थं जाणेज्जा अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तद्वियं वा अणत्तट्ठिय वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा अफासूयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-वत्थ-पदं से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्च अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चेएइ । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहड वा अत्तट्टियं वा अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा–अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ १० से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा--बहवे समण-माहण १. सं० पा०-एवं बहवे साहम्मिया एग साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ बहवे समणमाहणस्स तहेव, पुरिसंतरं जहा पिंडेसणाए। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (वत्थेसणा–पढमो उद्देसो) अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ । तं तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। ११. अह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्टियं, परिभुत्तं, आसेवियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।। भिक्खु-पडियाए-कीयमाइ-वत्थ-पदं १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-असंजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घटुं वा, मटुं वा, संमटुं' वा, संपधूमिय' वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं', 'अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं- अफासुर्य अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगा हेज्जा ॥ १३. अह पुणेवं जाणेज्जा--पुरिसंतरकड', 'बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं, आसेवियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा॥ महद्धणमुल्लवत्थ-पदं १४. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जाई पुण वत्थाई जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धण भोल्लाइं तं जहा-आजिणगाणि वा, सहिणाणि' वा, सहिण-कल्लाणाणि वा, आयकाणि वा, कायकाणि वा, खोमयाणि वा, दुगुल्लाणि वा, मलयाणि वा, पत्तण्णाणि वा, अंसुयाणि वा, चीणंसुयाणि वा, देसरागाणि वा, अमिलाणि वा, गज्जलाणि वा, फालियाणि वा, कोयहा[वा? ] णि" वा, कंबलगाणि वा, पावाराणि वा-अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं वत्थाई महद्धणमोल्लाई *अफासुयाइं अणेस णिज्जाइं ति मण्णमाणे . लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ अजिणवत्थ-पदं १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण आईणपाउरणाणि वत्थाणि जाणेज्जा, १. समर्ल्ड (क)। १. वेसरागाणि (अ); देस राणि (छ); वेसराणि २. °धूवितं (अ, छ) 1 ३. सं० पा०-अरिसंतरकर्ड जाव अणासेवितं। १०. फलियाणि (क, च, छ, ब)। ४. सं० पा०—पूरिसंतरकर्ड जाव पडिगाहेज्जा। ११. कायहाणि (अ); कोहयाणि (घ); निशीथस्य ५. आतिणाणि (अ); अजिणमाणि (क, च)। १७ उद्देशकस्य चूर्णी 'कोतवाणि' इति पाठो ६. सहणाणि (छ)। लभ्यते। ७. आयाणाणि (अ, क, घ, च); आयाण (ब)। १२. सं० पा०---मद्धणमोल्लाइं"लाभे। ८. कायाणाणि (घ, व)। १३. वा वत्थाणि वा (क, छ)। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ आयारचूला तं जहा-उद्दाणिवा, पेसाणि' वा, पेसलेसाणि वा, किण्हमिगाईणगाणि वा, णील मिगाईणगाणि वा, गोरमिगाईणगाणि वा, कणगाणि वा, कणगकताणि' वा, कणगपट्टाणि वा, कणगखइयाणि वा, कणगफुसियाणि वा, वग्धाणि वा, विवग्याणि वा, आभरणाणि वा, आभरणविचित्ताणि वा-अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं आईणपाउरणाणि वत्थाणि - अफासुयाइं अणेसणिज्जाइं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ वत्थपडिमा-पदं १६. इच्चेयाइं आयतणाई उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए । १७. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा भिवखुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तुलकर्ड वा-तहप्पगार वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा फासुयं एसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा—पढमा पडिमा । १८. अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा-गाहावई वा', 'गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं बा, दासि वा, कम्मकरं वा°, कम्मरि वा। से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भगिणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं वत्थं ? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते पडिगाहेज्जा-----दोच्चा पडिमा ।।। १६. अहावरा तच्चा पडिमासे भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा, तं जहा–अंतरिज्जग वा उत्तरिज्जगं वा-तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा' परो वा से देज्जा—फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा--- तच्चा पडिमा ।। २०. अहावरा चउत्था पडिमा--से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झिय-धम्मियं वत्थं जाएज्जा, ज चऽग्णे बहवे समण-माण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावखंति, तहप्पगारं उझिय-धम्मियं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-- १. उद्दवाणि (घ); ओडाणि (छ)। २. पेसणाणि (छ)। ३. कणगकताणि ( अ, क, घ, च, छ, ब ); कनककान्तीनि (वृ)। ३. सं० पा०-वत्थाणि "लाभे। ५. सं० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरि। ६. सं० पा०--फासुयं"लाभे संते जाव पडिगा हेज्जा ! ७. सं० पा० -जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । क. णं (अ, ब)। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं अज्झयणं ( वत्थेसाणा -- पढमो उद्देसो) १६५ फासुय' "एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • पडिगाहेज्जा- -- चउत्था पडिमा || २१. इच्चेयाणं उन्हं परिमाणं' 'अण्णय रं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जामिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सव्वे वे ते उ जिणाणाए उबट्ठिया, अण्णोणस माहीए एवं च णं विहरति ॥ संगार-वयणपुब्वं वत्थ-पदं २२. सिया णं एयाए एसणाए एसभाणं परो वएज्जा - आउसंतो ! समणा ! जाहि तुमं मासेण वा, दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा, तो ते वयं आउसो ! अण्णयरं वत्थं दाहामो । एयप्पगारं णिग्वोस सोच्चा जिसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिणित्तए, अभिकखसि मे दाउ ? इणिमेव दयाहि । से सेव' वयंतं परो वएज्जा - आउसंतो ! समणा ! अणुगच्छाहि, तो ते वयं अण्णतरं वत्थं दाहामो । से पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार - वयणे पडिसुणेत्तए, अभिकंखसि मे दाउ ? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंतं परो णेत्ता वदेज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो । अवियाई वयं पच्छावि अप्पणी सयट्ठाए पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्त वत्थं चेइस्सामो । एयप्पगारं जिग्घोस सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं वत्थं अफासु" "अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। वत्थ- आघंसण-पदं २३. सिया णं परो णेत्ता वएज्जा - "आउसो ! त्ति वा भइणि! त्ति वा आहरेय वत्थं – सिणाणेण वा", "कक्केण वा, लोद्वेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, १. सं० पा० - फासूयं पडिगाहेज्जा । २. ०यं (अ) 1 ३. स० पा० - पडिमाणं जहा पिंडेसणाए । ४. °तराए (घ, च, छ, ब) 1 ५. दासामो ( अ, च, ब) 1 ६. तहप्प (अ) | ७. ०गारं (छ) । ८. णेवं (क, घ, च, छ ) ; एवं ( ब ) । ६. जाव ( अ, क, घ, च, छ, ब) 1 १०. सं० पा० - अफासुयं जाव णो । ११. सं० पा० - सिणाणेण वा जाव आघसिता । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्सणं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुमं वत्थं सिणाणेण वा जाव आघसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि ।" से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं-अफासुर्य' 'अणेसणिज्जे ति मण्णमाणे लाभे संते ° गो पडिगाहेज्जा वत्थ-उच्छोलण-पदं २४. से णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! ति वा आहरेयं वत्थं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा', पधोवेत्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा—"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुम वत्थं सिओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा पधोवेहि वा, अभिकंखसि* *मे दाउं ? एमेव दलयाहि ।" से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोवेत्ता वा दल एज्जा, तहप्पगारं वत्थं--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिगाहेज्जा ।। वत्थ-विसोहण-पदं २५. से णं परो णेत्ता वएज्जा- “आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं वत्थं-- कंदाणि वा', 'मूलाणि वा, [तयाणि वा ? ], पत्ताणि वा, पुष्पाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा', हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्धोसं सोचा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा--"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयाणि तुमं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहेहि, णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए।" से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं-अफासुर्य' 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा। वत्थ-पडिलेहण-पदं २६. सिया से परो णेत्ता वत्थं णिसिरेज्जा। से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतोअतेणं पडिले हिस्सामि ।। १. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। ४. सं० पा०–अभिकखसि सेसं तहेव जाव णो। २. ४ (छ)। ५. सं० पा०--कंदाणि वा जाव हरियाणि । ३. पच्छोलेत्ता (छ)। ६. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (वत्थेसणा-पढमो उद्देसो) १६७ २७. केवली बूया आयाणमेयं—'वत्थंतेण उ" बद्धे सिया कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा', 'मोत्तिए वा, हिरण्णे वा, सुवण्णे वा, कडगाणि वा, तुडयाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा ° रयणावली वा, पाणे वा, बीए वा, हरिए वा । अह भिक्खूणं पुवोव दिट्ठा' 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं पुवामेव वत्थं अंतोअंतेण पडिले हिज्जा ।। सअंडाइ-वत्थ-पदं २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-सअंड' 'सपाणं सबीयं ___ सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं वत्थं-अफासुय' 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे सते ° णो पडिगाहेज्जा ।। अप्पंडाइ-वत्थ-पदं २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा--अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अपहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ___संताणगं, अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्ज, रोइज्जतं ण रुच्चइ, तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिगाहेज्जा ॥ ३०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-अप्पंडं 'अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, अलं थिरं धुवं धारणिज्ज, रोइज्जतं रुच्चइ, तहप्पगारं वत्थं फासुयं 'एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा ।। वत्थ-परिकम्म-पदं ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा “णो णवए मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण" सिणाणण वा", 'कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णण वा, चुण्णण वा, पउमेण वा आघंसेज्ज वा°, पघंसेज्ज वा।। ३२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा “णो णवए मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण १. वत्थे ते उ (च); वत्थेण उ (घ, ब)। १०. निशीथे (१४:१५) 'बहुदेवसिएण' पाओ २. सं० पा०--मणी वा जाव रयणावली। लभ्यते । आचारांगस्य चूर्णावपि (पृ० ३६४) ३. सं० पा०--पुवोवदिट्ठा जाव जं । 'बहदेवसिएण' पाठोस्ति, किन्तु तस्य वृत्ती ४. सं० पा०-सअंडं जाव संताणगं । (पृ० ३६४) 'बहुदेसिएण' पाठो व्याख्या५. सं० पा०-अफासु जाव णो। तोस्ति । प्रतिषु चापि एष एव लभ्यते तेनात्र ६,८. सं० पा०-अप्पंडं जाद संताणगं । अयमेव पाठः स्वीकृतः । ७. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। ११. सं० पा०--सिणाणेण वा जाव पघंसेज्ज। है. सं० पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला सीओदग-वियडेण वा', 'उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा , पधोएज्ज वा ।। ३३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुन्भिगंधे मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण सिणाणण वा', 'कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुणेण वा, पउमेण वा आघसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ।। ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा ॥ वत्थ-आयावण-पदं ३५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं णो अणंत रहियाए पुढवीए, णो ससणिद्धाए' पुढवीए", •णो सस रक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, गो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइदिए सअंडे सपाणे सवीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मदिय-मक्कड़ा संताणए आयावेज्ज वा. पयावेज्ज वा ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए दा, तहप्पगारं वत्थं थूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयाल सिवा, कामजलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकपे चलाचले णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ।। ३७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं कुलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिलंसि वा, 'लेलुसि वा', अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए 'दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज वा°, णो पयावेज्ज वा।। से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए बा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं खंधंसि वा, मंचंसि वा, मालसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए 'दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज वा०, णो पयावेज्ज वा ॥ १. सं. पा.-सीओदग-वियडेण वा जाव पधो- ४. सं० पा०--पुढवीए जाव संताणए । एज्जा । २. सं० पा--- सिणाणेण वा तहेव सीओदग- ६. जाव (अ);x (छ)। वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा आला- ७. सं० पा०----अंतलिक्खजाए जाव णो। वओ। ८. सं० पा०---अंतलिक्खजाए जाव णो। ३. ससिणि ° (क, च)। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचम अज्झयणं (वत्थेसणा-वीओ उद्देसो) ३६. से तमादाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे झामर्थंडिलंसि वा', अद्विरासिसि किट्टरासिसि वा, तुसरासिसि वा, गोमय रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलं सि पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय पमज्जिय तओ संजयामेव वत्थं आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा ।। ४०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जएज्जासि। -त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो णो धोएज्जा रएज्जा-पदं ४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारेज्जा, णो धोएज्जा णो रएज्जा, णो धोयरत्ताई वत्थाई धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए । एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं ।। सव्वचीवरमायाए-पदं ४२. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। ४३. “से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा, विहार-भूमि वा णिक्खम__माणे वा, पविसमाणे वा सव्वं चीवरमायाए बहिया वियार-भूमि वा विहार भूमि वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ ४४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं चीवरमायाए गामाणुगाम दूइज्जेज्जा॥ अह पुणेवं जाणेज्जा -तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पहाए, तिव्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमाणि पेहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छं संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सवं चीवरमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा, बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा, गामाणुगामं वा दूइज्जेज्जा ॥ १. सं० पा०--झामथंडिलंमि वा जाव अण्ण यरंसि। २. सं० पाo---सामग्गियं । ३. सं० पा०-एवं बहिया विचारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम दूइज्जेजा अह पुणेवं जाणेज्जा तिब्वदेसियं वा वासं वास. माणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सव्वं चीवरमायाए। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० पाsिहारिय-वत्थ- पर्द ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा एगइओ 'मुहुत्तगं- मुहुत्तगं" पाडिहारियं वत्थं जाज्जा -- एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाण वा farafar - विपवसिय उवागच्छेज्जा, तहृप्पगारं वत्थं जो अप्पणा गिण्हेज्जा, जो अण्णमण्णस्स देज्जा, जो पामिच्चं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थ- परिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा -- “ आउसंतो ! समणा ! अभिसि वत्थं धारेत्तए वा परिहरितए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिटुवेज्जा । तहपगारं 'वत्थं ससंधियं तस्स चेव णिसिरेज्जा, ' णो णं" साइज्जेज्जा | ४७. से एगइओ एप्पगार' णिग्घोसं सोच्चा जिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि 'मुहुत्तगं- मुहुत्तगं" जाइत्ता' एमाहेण वा दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छंति, तहप्पगाराणि वत्थाणि णो अप्पणा गिव्हंति, णो अण्णमण्णस्स अणुवयंति", "णो पामिच्च करेंति, णो वत्थेण वत्थ- परिणामं करेंति, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदति---"आउसंतो ! समणा ! अभिकखसि वत्थं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?” थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिवेति । तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि तस्स चेव णिसिरेंति, णो णं सातिज्जति, 'से हंता' अवि मुत्तगं" पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता एगाहेण "वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय- विप्पवसिय उवागच्छित्सामि । अवियाई एवं ममेव सिया । माइट्ठाणं संफासे, गो एवं करेज्जा ॥ वत्थविक्किया-पदं ४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करेज्जा, विवण्णाई १. मुहुत्तगं (घ, च, छ, ब ) । २. जाव एगाहेण ( अ, क, घ, च, छ, ब) 1 ३. ०मित्ता (घ, च, छ, ब) ४. संधियं वत्थं ( अ ) ; वत्थं ससंधियं वत्थं ( च, छ) । ५. जो अत्ताणं ( अ, क, छ); न अत्ताणं ( ब ) ६. तह° ( ब ) । ७. मुहुत्तगं (छ) । आयारचूला ८. जाएजा (छ) । 8. जाव एग हिण ( अ, क, ध. च, छ, ब) । १०. तं चैव जाव णो साइज्जति बहुवयजेण भासियai ( क च छ); तं चैव जाव णो साइज्जति बहुमाणोए भासियव्वं (अ); तं चेव जाव णो साइज्जति बहुवयणेण भाषियव्वं (ध); तं चैव जाव णो साइज्जंति बहुमाणेणं भासियव्वं ( ब ) ; सं० पा० अणुवयंति तं चैव जाव णो सातिज्जति बहुardi भाणियव्वं । ११. मुहुत्तं ( अ, छ, ब) 1 १२. जाव एगाहेण ( अ, क, ध, च, छ, ब) 1 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (वत्थेसणा-बीओ उद्देसो) जो वण्णमंताई करेज्जा, “अण्णं वा वत्थं लभिस्सामि" त्ति कटु णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्चं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थ-परिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा--"आउसंतो! समणा ! अभिकखसि मे वत्थं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा णं संत गो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिदवेज्जा, जहा चेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ।। परं च णं अदत्तहार पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स णिदाणाए णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा', 'णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयसि कायं विउसेज्जा, णो वार्ड वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए °, तओ संजयामेव गामाणु गामं दूइज्जेज्जा ।। आमोसग-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया । सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा • इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा वत्थ-पडियाए संपिडिया गच्छेज्जा', 'णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकज्जा , जो गहणं वा, वणं वा, दम्ग वा अणपविसेज्जा. णो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयसि कायं विउसेज्जा, णो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कखेज्जा, अप्पुस्सुए अवहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा।। ५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिडिया' गच्छेज्जा । तेणं आमोसगा एवं वदेज्जा—ाउसंतो! समणा ! आहरेयं वत्थं, देहि, निक्खिवाहि' । 'तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदियवंदिय जाएज्जा, णो अंजलि कटु जाएज्जा, णो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा। ते णं आमोसगा सयं करणिज्ज ति कट्ट अक्कोसंति वा, बंधति वा, रुंभंति वा, उद्दवंति वा, वत्थं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा । तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया ५. सं० पा०---गच्छेज्जा जाव गामाणुगाम। ६. पडिया (अ); संपडिया (क,घ, च); संपडिया १. कुज्जा (च)। २. वेयं (अ, च); मेयं (क, घ, ब)। ३. सं. पा०-गच्छेज्जा जाव अप्पुस्सुए" तओ। ४. संपडिया (क, च, ब)। जहा इरियाए ७. सं० पा०---निक्खिवाहि णाणत्तं वत्थपडियाए। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ आयारचूला आउसंतो ! गाहावइ ! एए खलु आमोसगा वत्थ-पडियाए सयं करणिज्जं ति कट्टु अक्कोति वा, बंधंति वा, संभंति वा, उद्दवंति वा, वत्थं अच्छिदेति वा, अवहति वा परिभवेति वा । एयप्पगारं मणं वा, वई वा णो पुरओ कट्टु विहरेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तभ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा• ॥ ५१. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जज्जासि - त्ति बेमि ॥ १. सं० पा० सामग्गियं । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ अज्झयणं पाएसणा पढमो उद्देसो पायजाय-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा -- अलाउपाय' वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा तहप्पगारं पायं एगपाय-पदं २. जे निग्गंथे तरुणे जुगवं वलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, गो बीयं ॥ अद्धजोयण- मेरा-पदं ३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण - मेराए पाय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । अस्सिपडियाए पाय-पदं ४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई' "भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं प्रहट्टु चेएति । तं सहत्पगारं पायं १. लाउयपाय (क, च, छ ) : अलाउयपायं (घ ) । २. बितियं (च, छ. ब) । ३. सं० पा०-- पाणाई जहा पिंडेसणाए चत्तारि आलावगा | पंचमे बहवे समणमाहणा १७३ पगणिय-पगणिय तहेव से भिक्खू वा २ अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमाहणा वत्सणाला | Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ आयारचूला पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफा असणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | ५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएति । तं तहप्पगारं पाय पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुक्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-अफा अणेस णिज्जं ति मण्णमाणं लाभे संते जो पडिगाहेज्जा | ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पाये जाणेज्जा -- अस्सिपडियाए एवं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेति । तं तहपगार पाय पुरिसंतरकर्ड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्टियं वा परिभुक्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासूयं असणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पाये जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहमणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कोय पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्वं अभिहडं आहट्टु चेएति । तं तहृप्पगारं पाय पुरिसंतरकर्ड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्टियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुक्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफा अणणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | समण माहणाइ समुद्दिस्स पाय-पदं ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - बहवे समण - माहणअतिहि- किवण-वणीमए पगणिय- पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आहट्टु चेएइ । तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया पीहड वाणी वा अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुक्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा -- अफासुयं अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा | ६. से' भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - बहवे समण-माहण १. यद्यपि प्राप्तप्रतिषु 'बहवे समणमाहण' इति सूत्रात् पूर्वं 'अस्संजए भिक्खु पडियाएं एतत् सूत्रं लभ्यते, किन्तु वस्त्रेषणायाः ( १०-१३) क्रमेण पूर्व 'वहवे समण Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (पाएसणा-पढमो उद्देसो) १७५ अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चएति । तं तहप्पगारं पायं अपुरिसंतरकड, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणा सेवियं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति भण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ १०. अह पुणेवं जाणेज्जा-परिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्टियं, परिभत्तं, आसे वियं–फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।। भिक्खु-पडियाए कीयमाइ-पदं ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण पायं जाणेज्जा--अस्संजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घटुं वा, मटुं वा, संमटुं वा, संपधूमियं वातहप्पगारं पायं अपरिसंतरकडं, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवियं-अफासुयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ १२. अह पण एवं जाणेज्जा-परिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्रियं, परिभत्तं, आसेवियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा || महद्धणमुल्लपाय-पदं १३. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जाइं पुण पायाइं जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धण मुल्लाई, तं जहा-अय-पायाणि वा, तउ'-पायाणि वा, तंब-पायाणि वा, सीसग-पायाणि वा, हिरण्ण-पायाणि वा, सुवण्ण-पायाणि वा, रीरिय-पायाणि वा, हारपुड-पायाणि वा, मणि-काय-कंस-पायाणि वा, संख-सिंग-पायाणि वा, दंत-चेल-सेल-पायाणि वा, चम्म-पायाणि वा-अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं महद्धणमुल्लाइं पायाई-अफासुयाई 'अणेस णिज्जाइं ति मण्ण माणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा !! पाय-बंधण-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण पायाइं जाणिज्जा विरूवरूवाइं महद्धण बंधणाइं तं जहा-अयबंधणाणि वा', 'तउबंधणाणि वा, तंबबंधणाणि वा, सीसगबंधणाणि वा, हिरण्णबंधणाणि वा, सुवण्णबंधणाणि वा, रीरियबंधणाणि माहण ' सूत्र तत्पश्चात् 'अस्संजए भिक्खु- संकेतितम् । पडियाए' एतत् सूत्रं युज्यते, अतः एष एव १. तउय (घ)। क्रमोत्र स्वीकृतः । सूत्रस्य विपर्ययो लिपि- २. स० पा०- अफासूयाइं जाव णो। दोषेण जात इति प्रतीयते । चुर्णी वृत्तौ च न ३. सं० पा०-अयबंधणाणि वा जाव चम्मव्याख्याते इमे सूत्रे । प्राप्तविपर्ययं परिलक्ष्येव बंधणाणि । जयाचार्येण सूत्रस्य विचित्रा गतिरिति Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ . आयारचूला वा, हारपुडबंधणाणि वा, मणि-काय-कंस-बंधणाणि वा, संख-सिंग-बंधणाणि वा, दंत-चेल-सेल-बंधणाणि वा°, चम्मबंधणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई मद्धणबंधणाई---अफासुयाई 'अणेसणिज्जाई ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पाय-पडिमा-पदं १५. इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चहि पडिमाहिं पायं एसित्तए । १६. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्ख वा भिक्खणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय पायं जाएज्जा. तं जहा--लाउय-पायं वा, दारु-पायं वा, मट्रिया-पायं वा - तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा', 'परो वा से देज्जा-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा-पढमा पडिमा ।। १७. अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू बा भिक्खुणी वा पेहाए पायं जाएज्जा, तं जहा–गाहावई वा', 'गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणिं वा, गाहावइपुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुग्रहं वा, धाई वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरि वा । से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं पायं, तं जहा--लाउय-पायं वा, दारु-पायं वा मट्टिया-पायं वा ? तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा', 'परो वा से देज्जा फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा--दोच्चा पडिमा॥ १८. अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा, संगतियं वा, वेजयंतियं वा-तहप्पगारं पायं सयं वा 'णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा--फासुयं एसणिज्जं ति मग्ण माणे लाभे संते पडिगाहेज्जातच्चा पडिमा ।। १६. अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झिय-म्मियं पायं जाएज्जा, जं चऽण्ण बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकखंति, तहप्पगारं उभिय-धम्मियं पायं सयं वा णं' 'जाएज्जा, परो वा से देज्जाफासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा--चउत्था पडिमा ॥ इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिम' 'पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जामिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । २०. १. सं० पा०—अफासुयाईजाव णो। २. आया° (घ)। ३. सं० पा०--जाएज्जा जाब पडिगाहेज्जा। ४. सं० पा० गाहावई वा जाव कम्मकरि । ५. स. पा--जाएज्जा जाद पडिगाहेज्जा। ६. वेजयंति (अ, ब, क, घ, च, छ)। ७. सं. पा.---सयं वा जाव पडिगाहेज्जा। ८. सं० पा० -- मयं वा म जाव पडिगाहेज्जा। ६. सं० पा०-पडिमं जहा पिंडेसणाए। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (पाएसणा-पढमो उद्देसो) १७७ जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एवं पडिम पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्टिया, अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरंति ।। संगार-वयणपुव्वं पाय-पदं २१. से णं एताए एसणाए एसमाणं परो पासित्ता वएज्जा-आउसंतो! समणा ! एज्जासि तुमं मासेण वा,' 'दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा तो ते वयं आउसो ! अण्णयरं पायं दाहामो। एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु में कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकखसि मे दाउं ? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंतं परो वएज्जा आउसंतो! समणा ! अणुगच्छाहि तो ते वयं अण्णतरं पायं दाहामो । से पुत्वामेव आलोएज्जा--आउसो ! ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणेत्तए, अभिकखसि मे दाउं? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंतं परोणेत्ता बदेज्जा आउसो ! त्ति वा, भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं समणस्स दाहामो। अवियाई वयं पच्छावि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स पायं' चेइस्सामो । एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगार पायं-अफासुयं अणसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ पाय-अब्भंगण-पदं २२. से णं परो णेत्ता वएज्जा--"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं.. तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, 'वसाए वा" अब्भंगेत्ता वा', 'मक्खेत्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुम पार्य तेल्लेण वा जाव अभंगाहि वा मक्खाहि वा, अभिकंखसि मे दाउ ? एमेव दलयाहि ।" से सेव वयतस्स परो तेल्लेण वा जाव अभंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ पाय-आघंसण-पदं २३. से णं परोणेत्ता वएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं १. संपा० -- मासेण वा जहा वस्थेसणाए। २. जाव (अ, क, घ, च, छ, ब)। ३, ४ (क, च, ब)। ४. सं० पा०-अन्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणाह तहेव सीओदगादि कंदादि तहेव । Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ आयारचूला सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णण वा, चुप्णेण वा, पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगार णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुमं पायं सिणाणेण वा जाव आघसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि ।" से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेव वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । पाय-उच्छोलण-पदं २४. से णं परोणेत्ता वएज्जा–“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं सीओदग-वियडण वा. उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा. पधोवेत्ता वा समणस्स ण दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुम पायं सीओदगवियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पधोवेहि वा, अभिकखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि ।। से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा, पधोवेत्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुर्य अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। पाय-विसोहण-पदं २५. से णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्तिया आहरेयं पायं कंदाणि वा, मूलाणि वा [तयाणि वा? ] पत्ताणि वा, पुष्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयाणि तुम कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहेहि, णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे पाये पडिगाहित्तए।" से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । सपाण-भोयण-पडिग्गह-पदं से णं परो णेत्ता वएज्जा–आउसंतो! समणा ! मुहत्तगं-मुहुत्तगं अच्छाहि जाव ताव अम्हे असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा उवकरेंसु वा, उवक्ख डेसु वा, तो ते वयं आउसो! सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दासामो, २६. सण पर Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छुटुं अज्झयणं (पाएसणा-पढमो उद्देसो) १७६ तुच्छए पडिग्गहए दिण्णे समणस्स णो सुठु साहु भवइ । से पुवामेव आलोएज्जा–आउसो ! त्ति वा भइणि ! ति वा णो खलु मे कप्पइ आहाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा, पायए वा, मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि, अभिकखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि । से सेवं वयंतस्स परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवकरेत्ता उवक्खडेत्ता सपाणगं सभोयणं पडिग्गहगं दलएज्जा, तह पगारं पडिग्गहगं--- अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिगाहेज्जा ॥ पडिग्गह-पडिलेहण-पदं २७. सिया से परोणेत्ता पडिग्गहं णिसिरेज्जा, से पुवामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा तुमं चेव णं संतियं पडिग्गहगं अतोअंतेणं पडिलेहिस्सामि ।। २८. केवली बूया आयाणमेयं—अंतो पडिग्गहंसि पाणाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइण्णा', 'एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो. जं पुवामेव पडिग्गहगं अंतोअंतेणं पडिलहिज्जा ।। सअंडाइ-पाय-पदं २६. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण पायं जाणेज्जा-सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्क डासंताणगं, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मग्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। अप्पंडाइ-पाय-पदं ३०. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण पायं जाणेज्जा-अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पत्तिग-पण ग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं, अणलं अथिरं अधवं अधारणिज्ज, रोइज्जंतं ण रुच्चइ, तहप्पगारं पायं---अफासुर्य अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहज्जा ।। ३१. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा--अप्पंडं अप्पपाणं अप्पवीयं अपहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं, अलं थिरं धवं धारणिज्ज, रोइज्जंतं रुच्चाइ, तहप्पगारं पायं--फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥ १. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। २. उवणेत्ता (घ, च, ब)। ३. सं० पा०---पइण्णा जाव जं । ४, सं० पा०-सअंडादि सब्वे आलावगा जहा वस्थेसणाए जाणत्तं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा मिणाणादि जाव अण्णयरसि वा 1 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० आयारचूला पाय-परिकम्म-पदं ३२ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा “णो णवए मे पाये" त्ति कटु णो बहुदेसिएण तेल्लेण वा, घएणवा, णवणी एणवा, वसाए वा अन्भगंज्ज वा, मक्खेज्ज वा ॥ ३३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "णो णवए मे पाये" त्ति कटु णो बहुदेसिएण सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आघसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ।। ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा “णो णवए मे पाये' त्ति कटु णो बहुदेसिएण सोतोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा ।। ३५. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा “दुखिभगंधे मे पाये" त्ति कटु गो बहुदेसिएण तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अभंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा ।। ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे पाये" त्ति कटु णो बहुदेसिएण सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णण वा, पउमेण वा आघसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ।। ३७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे पाये" त्ति कटु णो बहुदेसिएण सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा ।। पाय-आयावण-पदं ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्ज पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं पायं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससिणिद्धाए पुढवीए, गो सस रक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए अण्णयरे ?] जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा।। ३६. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं पायं थूणसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुबद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ।। ४०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं पायं कूलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिलसि वा. लेलसि वा. अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ॥ ४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं पायं खंधसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ8 अज्झयण (पाएसणा-वीओ उद्देसो) हम्मियतलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ।। ४२. से तमादाए एगतमवक्कमेज्जा, एगंतवमक्क मेत्ता अहे झामथंडिलंसि वा, अट्टिरासिसि वा, किट्टरासिसि वा, तुसरासिसि वा, गोमयरासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय पमज्जिय तओ संजयामेव पायं आया वेज्ज वा, पयावेज्ज वा ।। ४३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वदेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि । -त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो पडिग्गह-पेहा-पदं ४४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसमाणे पुवामेव पहाए पडिग्गहगं, अवहट्ट पाणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। ४५. केवली बूया आयाणमेयं-अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा, बोए वा, रए वा परियावज्जेज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा', 'एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो जं पुवामेव पहाए पडिग्गह, अवहटु पाणे, पमज्जिय रयं तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा !! सीओदगादिसंजुत्तपाय-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविष्टुं समाणे सिया से परो आह?' अंतो पडिग्गहगंसि सीओदगं परिभाएत्ता णोहट्ट दलएज्जा, तहप्वगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायसि वा-अफासुयं •अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ।। ४७. से य आहच्च पडिग्गहिए सिया खिप्पामेव उदगंसि साहरेज्जा', सपडिग्गहमा याए पाणं परिवेज्जा, ससणिद्धाए 'वाणंभमीए णियमेज्जा ॥ ४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा, ससणिद्धं वा पडिग्गहं णो आमज्जेज्ज १. पवि? ° (क, च, चू)। २. सं० पा०—-पइण्णा जाव जं। ३. अभिटु (अ, क, च, छ, ब)। ४. सं० पा०-अफासुय जाव को। ५. सिया से (अ) ६. आहरेज्जा (च)। ७. वणं (अ); एवं (छ)। ८. वण (घ, च); च णं (छ)। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ आयारचूला वा', 'पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उवट्टेज्ज वा, आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा ॥ ४६. अह पुण एवं जाणेज्जा--विगतोदए मे पडिग्गहए, छिण्ण-सिणेहे मे पडिग्गहए, तहप्पगारं पडिग्गहं तओ संजयामेव आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज वा ॥ सपडिग्गहमायाए-पदं ५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे सपडिग्गहमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा ।। ५१. “से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खम माणे वा पविसमाणे वा सपडिग्गहमायाए बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्ख मेज्ज वा पविसेज्ज वा ।। ५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दुइज्जमाणे सपडिग्गहमायाए गामाणु गामं दूइज्जेज्जा ।। ५३. अह पुणेवं जाणेज्जा - तिव्वदेसियं वासं वासमाणं पहाए, तिव्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमाणि पेहाए, महावारण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छं संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पहाए, से एवं णच्चा णो सपडिग्गहमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा, वहिया वियार-भूमि वा, विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा, गामाणुगाम वा दुइज्जेज्जा । पाडिहारिय-पडिग्गह-पदं ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा एगइओ मुहुत्तगं-मुहुत्तगं पाडिहारियं पडिग्गहं जाएज्जा, एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छेज्जा,तहप्पगारं पडिग्गहं णो अप्पणा गिण्हेज्जा, णो अण्णमण्णस्स देज्जा, गो पामिच्चं कुज्जा, णो पडिग्गहेण पडिग्गह-परिणाम करेज्जा, णो परं उसंकमित्तु एवं वदेज्जा-"आउसंतो! समणा! अभिकखसि पडिग्गहं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा गं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिवेज्जा। तहप्पगारं पडिग्गहं ससंधियं तस्स चेव णिसि रेज्जा, णो णं साइज्जेज्जा । ५५. से एगइओ एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराणि १. सं० पा०—आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज। २. सं० पा०----11वं वहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम दूइज्जेज्जा । तिव्वदेसियादि जहा विइयाए वत्थेसणाए णवरं एत्थ पडिग्गहे। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घट्ट अभय ( पाएसणा -- बीओ उद्देसो) १८३ परिग्गहाणि ससंधियाणि मुहुत्तगं-मुहुत्तगं जाइत्ता एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा चउयाहेण वा, पंचाण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छंति, तहप्पगाराणि परियहाणि णो अप्पणा गिव्हंति णो अण्णमण्णस्स अणुवयंति, णो पामिच्च करेंति णो पडिग्गहेण पडिग्गह परिणाम करेंति, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदति – “आउसंतो ! समणा ! अभिकखसि पडिग्गहं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिवेति । तहप्पगाराणि पडिग्गहाणि ससंधियाणि तस्स चंव णिसिरेंति, णो णं सातिज्जंति, 'से हंता' अहमवि मुहुत्तगं पाडिहारियं पडिग्गहं जाइत्ता एगाहेण वा दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छिस्सामि । आवियाई एयं ममेव सिया । माइट्ठाणं संफासे, जो एवं करेज्जा ।। पायविविकया-पदं ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो वण्णमंताई पडिगहाई विवण्णाई करेज्जा, विवण्णाई णो वण्णताई करेज्जा, "अण्णं वा पडिग्गहगं लभिस्सामि" त्ति कट्टु णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्च कुज्जा, णो पडिग्गहेण पडिग्गहपरिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा - "आउसंतो ! समणा ! अभिकखसि मे पडिग्गहं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिद्ववेज्जा, जहा चेयं पडिग्गहं पावगं परो मन्नइ । परं च गं अदत्तहारि पडिप पेहाए तस्स पडिग्गहस्स णिदाणाए णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, गोरुक्खसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कार्य विउसेज्जा, णो वार्ड वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं इज्जेज्जा | आमोसग पदं ५७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहंसिया । सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा - इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा पडिग्गहपडियाए संपिंडिया गच्छेज्जा, णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कार्य विउसेज्जा, णो वार्ड वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्यं वा कखेज्जा, अप्पुस्सुए अवहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाण वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ५८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिडिया गच्छेज्जा । ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा -- " आउसंतो ! समणा ! Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधारचूला आहरेयं पडिग्गहं देहि, निक्खिवाहि।" तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, णो अंजलि कटु जाएज्जा, णो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा । ते णं आमोसगा सयं करणिज्जं ति कटु अक्कोसंति वा, बंधति वा, रुंभंति वा, उद्दवति वा, पडिम्गहं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज बा । तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूयाआउसंतो! गाहावइ ! एए खलु आमोसगा पडिग्गह-पडियाए सयं करणिज्जं ति कटु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुभंति वा, उद्दवंति वा, पडिग्गहं अच्छिदेति वा, अवहरेंति वा, परिभवेति वा ! एयरपगारं मणं वा, वई वा णो पुरओ कटु विहरेज्जा । अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ५६. एयं खलु तरस भिखुरस वा भिक्षुणीए वा सामगियं, जं सम्वहि समिए सहिए सया जएज्जासि । -त्ति बेमि ।। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदिन्नादाण - पच्चक्खाण - पदं १. समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुते अपसू परदत्तभोई पावं कम्मं णो करिस्सामित्ति समुट्ठाए सव्वं भंते ! अदिष्णादाणं पच्चक्खामि || २. से अणुपविसित्ता गामं वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, डबवा, पट्ट वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा सष्णिवेसं वा, रायहाणि वा ० --- णेव सयं अदिन्नं गिण्हेज्जा, जेवणेणं अदिण्णं गिण्हावेज्जा, णेवण्णं अदितिंपि समणुजाणेज्जा | सत्तमं अभयणं ओग्गह-पडिमा पढमो उद्देसो ओग्गह-पदं ३. जेहिं विसद्धि संपव्वइए, तेसि पि याई भिक्खू छत्तयं' वा, मत्तयं वा, दंडगं वा", • लट्ठियं वा, भिसियं वा, नालियं वा, चेलं वा, चिलमिलि वा, चम्मयं वा, चम्मकोसयं वा", चम्मछेदणगं वा - तेसिं पुव्वामेव ओग्गहं अणणुण्णविय अपडिलेहिय अपमज्जिय णो गिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज' वा । तेसि पुव्वामेव ओहं अणुवि पडलेहिय पमज्जिय तओ संजयामेव ओगिव्हेज्ज' वा, परहेज्ज वा ॥ ४. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा गाहावइ- कुलेसु वा परियावसहेसु वा अणुवी ओहं जाज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिद्वाए, ते ओग्यहं अणुण्णवेज्जा | कामं खलु आउसो ! अहालंद अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, १. सं० पा० गामं वा जाव २. वण्णेहिं (घ, छ) । ३. छत्तं (घ, च) । ४. सं० पा० दंडगं वा जाव चम्मछेदणगं । ५. परिगिव्हेज्ज ( अ ) 1 ६. उ० (घ ) ; उव° (छ) । १८५ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला जाव आउसंतस्स ओहे, जाव साहम्मिया 'एत्ता, ताव" ओग्गहं ओगिहिसामो, तेण परं विहरिस्सामो || ५. से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग् गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया संभोइया समगुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेण सयमेसियाए' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा तेण ते साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवणिमंतेज्जा, गो चैव णं पर-पडियाए उगिज्झिय-उगिज्झिय उवणिमंतेज्जा | १८६ ६. o से आगतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा गाहावइ - कुलेसु वा परियावसहेसु वा अणुवीर ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओम्हं अणुण्णवेज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालद अहापरिण्णातं वसामो जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिव्हिसामो, तेण परं विरिस्सामो || ७. से किं पुण तत्थोग्गहसि एवोग् गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया अण्णसंभोइया समण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेणं सयमेसियाए पोढे वा, फलए वा, सेज्जासंथारए वा तेण ते साहम्मिए अण्णसंभोइए समणुष्णे उवणिमंतेज्जा, णो चेव णं पर-वडियाए उगिज्झिय उगिज्भिय उवणिमंतेज्जा | ८. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा परियावसहेसु वा अणुवी ओग्गह जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिद्वार, ते ओग्गहं अवेज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालद अहापरिणात वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहे, जाव साम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्ताम || 0 ९. से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण वा सूई वा, पिप्पलए वा, कण्णसोहणए वा, महच्छेयणए वा, तं अप्पणी एगस्स अट्ठाए पाडिहारियं जाइत्ता णो अण्णमण्णस्स देज्ज वा अणुपदेज्ज वा, सयं करणिज्जं ति कट्टु से तमादाएं तत्थ गच्छेज्जा, गच्छत्ता पुव्वामेव उताणए हत्थे कट्टु भूमीए वा ठवेत्ता 'इमं खलु त्ति आलोएज्जा, णो चेव णं सयं पाणिणा परपाणिसि पच्चपिणेज्जा ।। 770 १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा - अनंत रहियाए पुढवीए, ससणिद्धा पुढवीए", "ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, १. एतावता ( अ, क, घ, च, छ व ) । २, ४. ० सित्तए ( अ, क, घ, च, छ ) । ३५. सं० पा० - से आगंतारेसु वा जाव । ८. ताए (छ) । ६. हत्थेति (छ) । १०. इमं खलु इमं खलु ( अ, ब ) । ६. सूती (अ); भूयी (च); सुई (छ); सुयी ( ब ) । ११. सं० पा० पुढवीए जाव संताणए । ७. पडि ० ( अ, छ, ब ) । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ सत्तमं अन्झयणं (ओग्गह-पडिमा-पढमो उद्देसो) चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए, तहप्पगारं ओग्गहं णो ओगिण्हेज्ज' वा, पगिण्हेज्ज वा ।। ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणिज्जा-थूणसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे' 'दुन्निक्खित्ते अणिकपे चलाचले ° णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा—कुलियंसि वा', 'भित्तिसि वा, सिलसि वा, लेलुसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकपे चलाचले ° णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ १३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पण ओग्गहं जाणेज्जा-खंधसि वा, मंचंसि वा, मालसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकपे चलाचले' णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा–ससागारियं सागणियं सउदयं सइत्थि सखुटुं सपसु सभत्तपाणं, गो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए' णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाप्युपेह-धम्माणुओगचिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए ससागारिए जाव सखुड्ड-पसु-भत्तपाणे णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा॥ १५. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा—गाहावइ-कुलस्स मज्झमझेणं गंतुं पंथे पडिबद्धं वा णो पण्णस्स "णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परिट्टणाणुपेह-धम्माणुओग° चिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा", *गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा , कम्मकरीओ वा अण्ण १. गिण्हेज्ज (च, छ, ब)। २. सं० पा०-दुब्बद्धे जाव णो । ३. सं० पाo--कुलियसि वा जाव णो। ४. सं० पा०-खंधसि वा अण्णयरे वा तहप्प- गारे जाव णो। ५. सं० पा०---णिक्खमण-पवेसाए जाव धम्मा____णुओम ! ६. सं० पा०—पण्णस्स जाव चिंताए। ७. सं० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ आयारचूला मण्णं अक्कोसंति वा', 'बंधंति वा, रुभति वा, उद्दवेंति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अभंगेति वा, मक्खेति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ।। १८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा- इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णण वा, चुण्णेण वा पउमण वा आघसंति वा, पघसंति वा, उबलेति वा, उव्वदृति वा, णो पण्णस्स णिवखमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेंति वा, पधोवेति वा, सिंचंति वा, सिणावेंति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपह-धम्माणुओगचिताए। सेवं गच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा॥ २०. से भिक्ख वा भिक्खणी वा सेज्ज पूण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खल गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिआ णिगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्म विष्णवेंति रहस्सियं वा मंतं मंतति, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायणपुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा । २१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज पुण ओग्गहं जाणेज्जा-आइण्णसंलेक्खं, णो पण्णस्स "णिक्खमण-पवेसाए णो पणस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए। [सेवं णच्चा ? ] तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ।। १. सं० पा.--अक्कोसति वा तहेव तेल्लादि वत्तव्वया। सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य २. सं० पा०---पण्णस्स जाव चिताए। जहा सिज्जाए आलावगा णवरं ओग्गह Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतम अझयणं (ऑग्गह-पडिमा -बीओ उद्देसो) १८६ २२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं' ज सव्वढेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि। त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो २३. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे' तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिवाए, ते ओग्गह अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया 'एत्ता, ताब" ओग्गह ओगिहिसामो, तेण परं विहरिस्सामो॥ २४. से कि पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा छत्तए वा', 'मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा°, चम्मछेदणए वा, तंणो अंतोहितो वाहि णीणेज्जा, बहियाओ वा णो अंतो पवेसेज्जा, णो सुत्तं वाणं पडिबोहेज्जा, णो तेसि किंचि अप्पत्तियं पडिणीयं करेज्जा ।। अंब-ओग्गह-पदं २५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा अंवत्रणं उबागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिलाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा ! कामं खलु “आउसो! अहालंदं अहापरिणायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं° विहरिस्सामा ।।। २६. से कि पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोगहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा, [पायए वा ? ] । सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा--सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं अंबंअफासुयं" "अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिगाहेज्जा ॥ १. सं० पा०-सामग्गिय । ७. किंचिवि (क, घ, च, ब) । २. X (अ)। ८. सं० पा०—खलु जाव विहरिस्सामो । ३. वित्ता (अ, क, च, ब)।। ६. भिक्खुणं (छ)। ४. एताव (अ.घ, च, ब); एतावता (क, छ)। १०. सं० पा०-सअंडं जाव संताणगं । ५. सं० पा०-छत्तए वा जाव चम्मछेदणए। ११. सं० पा.--अफासुयं जाव णो। ६. x (क, घ, च, छ)। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला २७. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण अंब जाणेज्जा-अप्पंड' अप्पपागं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा. संताणगं अतिरिच्छछिन्न अवोच्छिन्नं-अफासुयं' 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिगाहेज्जा। २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा-अप्पंड' 'अप्पपाणं अप्पबोयं अप्पहरिय अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा - संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्न-फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ° पडिगाहेज्जा ॥ २६. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अभिकखेज्जा अंबभित्तगं वा, अंबपेसियं वा, अंबचोयग वा, अंबसालगं वा, अंबडगल वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्ज पण जाणज्जा-अंबभित्तगं वा जाव अंबडगलं वा सअंडं 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगं-अफासुयं' "अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ॥ ३०. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-अंबभित्तगं वा जाव अंबडगलं वा अप्पंड 'अप्पाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं-अफास्यं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण जाणज्जा अंबभित्तगं" वा जाव अंबडगलं वा अप्पंड अप्पपाणं अप्पवीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पदयं अपत्तिा. पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं--फासुयं२ •एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते • पडिगाहेज्जा ।। उच्छु-ओग्गह-पदं ३२. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा उच्छवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे", 'जे तत्थ समहिलाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा । काम खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो ।। ३३. से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि ° एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा उच्छु भोत्तए वा, पायए वा। सेज्ज [पुण ? ] उच्छु जाणेज्जा-सअंड" १,३. स० पा०-अप्पडं जाव संताणगं । ८,११. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणग। २. सं० पा०–अफामुयं जाव णो। १०. अंबं वा अवचितगं (घ, च, छ)। ४. सं० पा०--फासुय जाव पडिगाहेज्जा। १२. सं० पा०---फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। ५. • डालग (अ, क, घ, छ, ब)। १३. सं० पा०--ईसरे जाव एवोग्गहियंसि । ६. सं० पा० --सअंडं जाव संताणगं । १४. सं० पा०-सअंडं जाव णो । ७,९. सं० पा०—अफासुयं जाव णो। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (ओग्गह-पडिमा–बीओ उद्देसो) १९१ *सपाणं सवीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मटिय-मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं उच्छु–अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ० णो पडिगाहेज्जा ! ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उच्छं जाणेज्जा-अप्पंडं' अप्पपाणं अप्पबीय अप्पहरियं अप्पोसं अप्युदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्न अवोच्छिन्नं---अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण उच्छू जाणेज्जा-अप्पंडं अप्पपाणं अप्पवीयं अपहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥ ३६. से भिक्ख वा भिक्खणी वा अभिकखेज्जा' अंतरुच्छ यं वा, उच्छगंडियं वा, उच्छुचोयगं वा, उच्छुसालगं वा, उच्छुडगलं वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्ज पण जाणेज्जा-अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ।। ३७. से भिक्खू वा भिक्वणी वा सेज्जं पुण लाणेज्जा---अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा अपंड अप्पपाणं अप्पबीयं अपहरियं अप्पोस अप्पदयं अप्पुत्तिग-पणग-दगमट्रिय-मक्कडासंताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवो रेछन्नं-अफासूयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। से भिक्खू का भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा---अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा अप्पंडं अपपाणं अप्पवीयं अपहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्न---फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाण लाभे संते पडिगाहेज्जा' ॥ लसुण-ओग्गह-पदं ३६. से भिक्खू वा भिक्षणी वा अभिकखेज्जा ल्हसुणवणं उवागच्छित्तए, "जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिलाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिणायं बसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, ३८. १. सं. पा०—अप्पड जाव संताणगं । २. सं० पा०-अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छ- च्छिन्नं तहेव। ३. सेज पूण अभिकज्जा (अ)। ४. सं० पा०—समंड जाव णो। ५. सं० पा०-अप्पंड जाव पडिगाहेज्जा अति रिच्छच्छिन्नं तिरिच्छच्छिन्नं तहेव ! ६. सं० पा०-तहेब तिन्निवि आलावगा णवरं लहसुण । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ आयारचूला जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो ।। ४०. से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा ल्हसुणं भोत्तए वा, [पायए वा ? ] । सेज्जं पुण ल्हसुणं जाणेज्जा-सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तहप्पगारं ल्हसुण अफासुयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ! ४१. से भिक्खू वा भिक्खु गो वा सेज्ज पुण लहसुणं जाणज्जा-अप्पंडं अप्पाणं अप्पबोयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्युदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ४२. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण ल्हसुणं जाणेज्जा-अप्पडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥ ४३. से भिक्खू वा भिक्खुणा वा अभिकंखेज्जा ल्हसुणं' वा, ल्हसुण-कंदं वा, ल्हसुण चोयगं वा, ल्हसुण-णालगं' वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्जं पुण जाणेज्जाल्हसुणं वा जाव ल्हसुण-णालगं' वा सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ' णा पडिगाहेज्जा ।। ४४. ५ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–ल्हसुणं वा जाव ल्हसुण णालगं वा अप्पड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं-अफासुयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ४५. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण जाणेज्जा-ल्हसुणं वा जाव ल्हसुण णालगं वा अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पदयं अप्पुत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्न-फासुयं सणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा ॥ ओग्गह-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ. कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाणेज्जा-जे तत्थ ईसरे, जे १. लहसुण (च): लसण (ब)। ५. सं.पा.--एवं अतिरिच्छच्छिन्नेवि तिरिच्छ२. डालग (अ, ध)। च्छिन्ने जाव पडिगाहेज्जा । ३. बीयं (क्व)। ६. सं० पा०--आगंतारेसु वा जावोग्गहियसि । ४. सं० पा०--सअंडं जाव णो। ... Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (ओग्गह-पडिमा -- बीओ उद्देसो) ४७. १६३ तत्थ समहिद्वार, ते ओग्गहं अणुष्णविज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालंद अहापरिणायं वसामो, जाव आउसा, जाव आउसंतस्स आग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो || से किं पुण तत्थ ओहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण वा इच्चेयाई आयतणाई' उवाइकम्म' ॥ ओह-पडिमा पर्द ४८. अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं ओग्गहं ओगिव्हित्तए || ४६. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा - से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा' - - " जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्टाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालंद अहापरिणायं वसामो जात्र आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहमिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो- पढमा पडिमा || ५०. अहावरा दोच्चा पडिमा -- जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ "अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णसिं भिक्खूण 'ओग्गहे ओग्गहिए" उवल्लिस्सामि " दोच्चा पडिमा || ५१. अहावरा तच्चा पडिमा - जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ “अहं च खलु अण्णेसि raai agre ओहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसि भिक्खूणं च ओग्गहे ओग्गहिए णो उवल्लिस्सामि" -- तच्चा पडिमा | ५२. अहावरा चउत्था पडिमा जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ "अहं च खलु अण्णेसि भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं णो ओगिहिस्सामि, अण्णेसि च ओग्गहे ओग्गहिए उवल्लिस्सामि " - चउत्था पडिमा || ५३. अहावरा पंचमा पडिमा - जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ, "अहं च खलु अप्पणो अाए ओहं ओगिहिस्सामि, जो दोन्हं, णो तिण्हं, णो चउन्हं, णो पंचंपंचमा पडिमा || ५४. अहावरा छट्टा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सेव ओग्गहे उवल्लि - एज्जा, जे तत्थ अहासमण्णागए, तं जहा---इक्कडे वा' "कढिणे वा, जंतुए वा, परवा, मोरगेवा, तणे वा, कुसे वा, कुच्चगे वा, पिप्पले वा, पलाले वा । १. आयाणाई ( क च ); आययाणाई (घ ) ; आयणाई (छ); आययणा (व) 1 २. त्यावग्रहमवग्रहीतुं जानीयात् (वृ ) 1 ३. सं० पा० - जाएज्जा जाव विहरिस्तामी । ४. ओग्गहिए ओग्गहे ( अ ) । ५. सं० पा० इक्कडे वा जाव पलाले । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ आयारचूला तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए' वा, सज्जिए वा विहरेज्जा--- छदा पडिमा। ५५. अहावरा सत्तमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहासंथडमेव ओग्गहं जाएज्जा, तंजहा—पुढविसिलं वा, कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुओ वा, णेसज्जिओ वा विहरेज्जा-सत्तमा पडिमा ॥ ५६. इच्चेतासि सत्तण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवद्विया अण्णो ण्णसमाहीए, एवं च णं विहरंति° ॥ पंचविह-ओग्गह-पदं । ५७. सुयं मे आउस ! ते णं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहि भगवंतेहिं पंचविहे ओग्गहे पण्णत्ते, तंजहा–देविदोग्गहे, रायोग्गहे, गाहावइ-ओग्गहे, सागारिय ओग्गहे, साहम्मिय-ओग्गहे ।। ५८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जएज्जासि । -त्ति बेमि ॥ ३. सं० पा०--सामग्गियं । १. उक्कडए (अ, ब)। २. सं० पा०-अण्ण यरं जहा पिंडेसणाए। Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं अज्झणं ठाण- सत्तिक्कयं ठाण-एसणा-प १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा' ठाणं ठाइत्तए, अणुविज्जा 'गामं वा, गगरं वा', 'खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, ग्रासमं वा, सण्णिवेसं वा, रायहाणि वा ", अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणि वा, सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - सअंड "सपाणं सवीयं सहरियं सउसे सउदयं सउत्तिग- पणग दग मट्टिय मक्कडासंताणयं तं तहप्पगारं ठाणं - अफासुयं अणेस णिज्जं" "ति मण्णमाणे • लाभे संते णो पडिगाज्जा | २. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा -- अप्पंडं अप्पपाण अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग पणगदग मट्टिय-मक्कडासंताणगं । तप्पगारे ठाणे पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा ॥ अस्सिपडियाए ठाण-पदं ३. सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ भिडं आहट्टु चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, १. ० कंखेइ ( अ, घ); ० कंखे ( च, ब ) 1 २. सं० पा० - नगरं वा जाव रायहाणि । ३. गामं वा जाव सण्णिवेसं वा ( अ, क, घ, च, छ, व)। ४. सयंडं ( अ, च); सं० पा० सअंडं जाव १६५ मक्कडा 1 ५. सं० पा० अणेस णिज्जं लाभे । ६. सं० पा० - - एवं रोज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगपसूयाईति । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ आयारचूला अत्तट्ठिए वा अणत्तद्विए वा, परिभुत्ते वा अपरिभत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। ४. सेज्ज पुण ठाणं जाणेज्जा---अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई भूगाई जीवाई सत्ताई समारभ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्टिए वा अणत्तढिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। ५. सेज्ज पुण ठाणं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिडं आहटु चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंत रकडे वा, अत्तढ़िए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चंतेज्जा ।। ६. सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जोवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्त वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। समण-माहणाइ-समुहिस्स-ठाण-पदं ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ठाणं जाणज्जा-बहने समण-माण अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भ्याइं जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ ! तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्टिए वा अणत्तट्टिए बा, परिभुत्ते वा अपुरिभुत्ते वा, आसेविए वा अणासेविए वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वाचतेज्जा || ८. से भिक्स्व वा भिक्खणी वा सेज्ज पण ठाणं जाणेज्जा...-बहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ । तहप्पगारे ठाणे अपरिसंतरकडे, अणत्तट्टिए, अपरिभुत्ते, अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। ६. अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंत रकडे, अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहिता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। परिकम्मिय-ठाण-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (ठाण-सत्तिक्कयं) १६७ पडियाए कडिए वा, उक्कंबिए वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घटे वा, मढे वा, संमढे वा, संपधूमिए वा । तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। ११. अह पूणेव जाणेज्जा पुरिसंतरकडे, अत्तट्रिए, परिभत्ते, आसेविए पडिलेहिता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु-पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियाओ दुवारियाओ खुडियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा ठाणस्स हरियाणि छिदिय-छिदिय दालियदालिय संथारगं संथारेज्जा, बहिया वा णि णक्ख, तहप्पगारे ठाणे अपूरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अणासेबिने णो ठाणं वा, सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेज्जा । १३. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंत रकडे, अत्तट्टिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। बहिया निस्सारिय-ठाण-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण [ठाणं ?] जाणेज्जा- अस्संजए भिक्ख पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, अणत्तहिए, अपुरिभुत्ते, अगासेविते णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ १५. अह पुणेवं जाणेज्जा - पुरिसंत रकडे, अत्तट्टिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहिता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ठाण-पडिमा-पदं १६. इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म, अह भिक्खू इच्छेज्जा चउहि पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए॥ १७. तत्थिमा पढमा पडिमा-अचित्तं खलु उवसज्जिस्सामि', अवलंबिस्सामि, कारण विपरिक्कमिस्सामि, सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति पढमा पडिमा ।। १. आयाणाई (क, घ, च)। २. आदर्शषु सूत्रचतुष्टयेऽपि 'उवसज्जेज्जा अव- लंबेज्जा, काएण विपरिक्कमादी' इति पाठो वर्तते । किन्तु प्रस्तुतपाठश्चूणिवृत्त्योराधारेण स्वीकृतः । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ आधारचूला अहावरा दोच्चा पडिमा-अचित्तं खलु उपसज्जिस्सामि, अवलंबिस्सामि, कारण विपरिक्कमिस्सामि, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति दोच्चा पडिमा ॥ १६. अहावरा तच्चा पडिमा अचित्तं खलु उक्सज्जिस्सामि, णो अवलंबिस्सामि, णो कारण विपरिक्कमिस्सामि, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति तच्चा पडिमा ।। २०. अहावरा चउत्था पडिमा--अचित्तं खलु उवसज्जिस्सामि, णो अवलंबिस्सामि, णो कारण विपरिक्कमिस्सामि, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, वोसटुकाए वोसटकेस-मंसू-लोम-णहे सण्णिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति चउत्था पडिमा ।। २१. इच्चेयासि चउण्हं पडिमाणं "अण्णयर पडिम पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरति ।। संथारग-पच्चप्पण-पदं २२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए । सेज्ज पुण संथारगं जाणेज्जा-सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं संथारगं णो पच्चप्पिणेज्जा ।। २३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड अप्पपाणं अप्पवीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहियपडिले हिय, पमज्जिय-पमज्जिय, आयाविय-आयाविय, विणिद्धणिय-विणिद्धणिय तओ संजयामेव पच्चप्पिणेज्जा ।। उच्चारपासवणभूमि-पदं २४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा वसमाणे वा, गामाणुगाम दूइज्जमाणे वा पुवामेव णं पण्णस्स उच्चार-पासवणभूमि पडिले हिज्जा ।। २५. केवली बूया आयाणमेयं-अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा, राओ वा विआले वा, उच्चारपासवणं परिवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा, हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरुवा, उदरं वा, सीसं वा, अण्णयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ ववरोवेज्ज वा। १. खलु णो (क, ब)। २. सं० पा०—पडिमाणं जाव पम्पहियतरागं । For private & Personal use only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठ मं अज्झयणं (ठाण-सत्तिक्कयं) १६६ अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं पुवामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेज्जा ।। ठाण-विहि-पदं २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा सेज्जा-संथारग-भूमि पडिलेहित्तए, णण्णत्थ आयरिएण वा, उवज्झाएण वा, पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा, गणावच्छेइएण वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाण वा, आएसेण वा, अंतेण वा, मज्झेण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा तओ संजयामेव पडिले हिय-पडिले हिय, पमज्जिय-पमज्जिय बहु फासुयं सेज्जा-संथारगं संथारेज्जा। २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकखेज्जा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए, से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहमाणे, से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जियपमज्जिय तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारगे दुरुहेज्जा, दुरुहेत्ता तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए चिट्ठज्जा ।। २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए चिट्ठमाणे, णो अण्ण मण्णस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, कारण कायं आसाएज्जा। से अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए चिट्ठज्जा। २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमाणे वा, छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा उड्डुए वा वायणिसग्गे वा करेमाणे, पुवामेव आसयं वा, पोसयं वा, पाणिणा परिपिहित्ता तओ संजयामेव ऊससेज्ज वा, णीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छोएज्ज वा, जंभाएज्ज वा, उड्डयं वा वाणिसग्गं वा करेज्जा । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा --समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-सस रक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सदसमसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, तहप्पगाराहिं सेज्जाहिं संविज्जमाणाहि पग्गहियतरागं विहरेज्जा, णेव किंचिवि वएज्जा। ३१. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खु णीए वा सामग्गिय, 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया° जएज्जासि । –त्ति बेमि॥ १. चरेज्जा (अ): २. सं० पा०-सामग्गियं जाव जएज्जासि । Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं णिसीहिया-सत्तिक्कयं णिसीहिया-एसणा-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अभिकखेज्जा णिसीहियं गमणाए, सेज्ज' पुण णिसीहियं जाणेज्जा-सअंडर सपाणं सबीयं सहरियं स उसं सउदयं सउत्तिगपणग-दग-मट्टिय-° मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं णि सीहियं-अफासुयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे ° लाभे संते णो चेतिस्सामि [चेएज्जा ?] से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा णिसीहियं गमणाए, सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अप्पंडं 'अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-• मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं णिसीहियं-फासुयं एसणिज्जति मण्णमाणे • लाभे संते चेतिस्सामि [चेएज्जा ?] । अस्सिपडियाए णिसीहिया-पदं ३. "सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एग साहम्मियं समुहिस्स पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए १. से (अ, क, ध, च, ब)। ६. सं० पा०-एसणिज्ज"ला भे। २. सं० पा०–सअंडं जाव मक्कडा । ७. वृत्तौ 'गलीयात्' इति संस्कृत-रूपं विद्यते ३. सं० पा०-अणेसणिज्ज'लाभे । 'चेतिस्सामि' इति पाठः सम्भवतो लिपिदोषण ४. वृत्ती परिगृह्णीयात्' इति संस्कृत-रूपं विद्यते जातः । प्रकरणानुसारेणात्र कोष्ठकान्तर्गतः 'चेतिस्सामि' इति पाठः सम्भवतो लिपिदोषेण पाठो युज्यते। जातः । प्रकरणानुमारेणात्र कोष्ठकान्तर्गतः ८. सं० पा०-एवं सेज्जागमेणं णेयध्वं जाव पाठो युज्यते। उदगप्पसूयाइति । ५. सं. पा०--अप्पंडं जाव मक्कड़ा। २०० Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (णिसीहिया-सत्तिक्कयं) २०१ वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। सेज्जं पुण इणसीहियं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्टियाए वा अणत्तट्टियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा--अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेषियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-णिसीहिया-पदं ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण णिसी हियं जाणेज्जा --वहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट चेएइ। तह पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्टियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिशुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समूहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ । तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अणत्तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ आयारचूला ६. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। परिकम्मिय-णिसीहिया-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण मिसीहियं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु पडियाए कडिए वा, उक्कबिए वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घटे वा, मट्रे वा, संम? वा, संपधूमिए वा, तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अणत्तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। ११. अह पुणेवं जाणेज्जा--पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया पडिलेहत्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बर्हि वा णिसीहियाए हरियाणि छिदिय-छिदिय, दालिय-दालिय संथारगं संथरेज्जा, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अणत्तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। १३. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया पडिले हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसोहियं वा चेतेज्जा ॥ बहिया निस्सारिय-णिसीहिया-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण [णिसीहियं? ] जाणेज्जा -अस्संजए भिक्खु-पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुष्पाणि वा, फलाणि वा, बोयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अण त्तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ १५. Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अज्झयणं (णिसीहिया-सत्तिक्कयं) २०३ १६. जे तत्थ दुवग्गा वा तिवग्गा वा चउवग्गा वा पंचवग्गा वा अभिसंधारेंति णिसीहियं गमणाए, ते णो अण्णमण्णस्स कायं आलिंगेज्ज वा विलिंगेज्ज वा, चुंबेज्ज वा, दंतेहि णहेहि वा अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज' वा।। १७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जएज्जा सेयमिणं मणेज्जासि । -त्ति बेमि ॥ १. वोच्छि° (च)। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अभयणं उच्चारपासवण - सत्तिक्कयं पाय- पुंछण-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चारपावसण - किरियाए उब्वाहिज्जमाणे' सयस्स पाय पुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाएज्जा | थंडिल - पदं २. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणज्जा - सअंडं सपा "सबीअं सहरियं सउसे सउदयं सउत्तिंग पणगदग मट्टिय- मक्कडासं ताणयं, तहप्पगारसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा | ३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा -अप्पंड अप्पपाण अप्पवीअ' 'अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग पणगदग मट्टियमक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा | ४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स' पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स की पामिच्चं अच्छेज्जं अणिस अभिहडं आहट्टु उद्देसियं चेएइ । तहप्पगार थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा १. उप्पा ( क ) । २. सं० पा०-- सपाणं जाव मक्कडा । ३. आदर्शपु एतत् पदं न दृश्यते, वृत्तौ च उल्लिखितमस्ति । 'सअंड' इति पदस्य प्रतिपक्षे 'अप्पड' इति पदं स्वतः प्राप्तमस्ति । ४. सं० पा०-- अपबीअं जाव मक्कडा । ५. सं० पा० अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया o २०४ समुद्दिस्स अस्सिपडियाए एवं साहम्मिणि समुद्दिस्स अस्सपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स अपिडियाए वहवे समणमाहण पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव उद्देसिय चेतेति तहप्पगार थंडिलं पुरिसंतरकड वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहड वा । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयण (उच्चारपासवण-सत्तिक्कय) २०५ अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।। ५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए वहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट उद्देसियं चेएइ । तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा जाव अणासेवियं वा, अण्णय रंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा–अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट उद्देसियं चेएइ । तहप्पगारं थंडिलं परिसंतरकडं वा जाव अणासे वियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसि रेज्जा ।। ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्च अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट उद्देसियं चेएइ । तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा जाव अणासेवियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भयाई जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु उद्देसियं चाइ। तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा जाव अणासे वियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलसि णो उच्चारपासवणं वोसि रेज्जा ।। ६. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा—बहवे समण-माहणकिवण-वणीमग-अतिही' समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आह? उद्देसियं चेएइ। तहप्पगार थडिलं अपुरिसंत रकड', 'अणत्तट्टियं, अपरिभुत्तं, अणासेविय, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं बोसिरेज्जा ।। १०. अह पुणवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडं', 'अत्तट्ठियं, परिभुत्त, आसेवियं, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।। १. पूर्वपाठेभ्यः (१।१७; २८; ५।१०) अस्य शब्द-विन्यासो भिन्नोस्ति । २. सं० पा० --अपुरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं वा अण्णयरंसि । ३. सं० पा०-पुरिसतरकडं जाव बहिया णीहडं वा" अण्णयरंसि । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारचूला ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा--अस्सिपडियाए कयं वा, कारियं वा, पामिच्चयं वा, छण्णं वा, घटुं वा, मटुं वा, लितं वा, संमटुं वा, संपधूमियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।। १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिल जाणेज्जा--इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा', '[तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा°, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ' वा अंतो साहरंति, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।।। १३. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अटुंसि वा, पासायंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा । १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-अणंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, मट्टियाकडाए', चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुयाए, कोलावासंसि वा दारुयंसि जीवपइट्टियंसि" "सअंडंसि सपाणंसि सबीअंसि सहरियंसि स उसंसि सउदयंसि सउत्तिग-पणग-दग-मद्रिय• मक्कडासंताणयंसि, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार पासवणं वोसि रेज्जा ॥ १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा', 'मूलाणि वा, [तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा°, बीयाणि वा परिसासु वा परिसाडिति वा परिसाडिस्संति वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा सालीणि वा, वीहीणि वा, मुग्गाणि वा, मासाणि वा, तिलाणि १. पामच्चियं (अ, क, घ, च)। शुद्धं प्रतिभाति । २. सं० पा०-मूलाणि वा जाव हरियाणि । ६. अस्मिन् सूत्रे प्रतिषु 'वा' शब्दस्य प्रयोगा ३. बाहीतो (अ, क)। अधिका दृश्यन्ते, यथा 'बा दारुयंसि वा जीव४. हम्मियतलसि (घ)। पइट्ठियंसि वा' किन्तु ११५१ सूत्रानुसारेण ५. एष पाठो निशीथस्य (१४।२३)। सूत्रानु- 'वा' शब्दः सकृदेव युज्यते ।। सारेण स्वीकृतः । सर्वासु आचाराङ्गप्रतिषु ७. सं० पा०-जीवपइट्ठियंसि जाव मक्कडा । 'मद्रिया मक्कडाए' इति पाठोस्ति । असो न ८. सं० पा०--कंदाणि जाव बीयाणि । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (उच्चारपासवण-सत्तिक्कयं ) २०७ वा, कुलत्थाणि वा, जवाणि वा, जवजवाणि वा 'पतिरिंसु वा पतिरिति वा " पतिरिति वा, अण्णयरंसि वा तहम्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ॥ १७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा- आमोयाणि वा घसाणिवा, भिलुयाणि वा, विज्जलाणि वा, खाणुयाणि वा, कडवाणि वा, पगत्ताणि वा, दरीणि वा, पदुम्गाणि वा, समाणि वा, विसमाणि वा, अणरंसि वा तप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ! १८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - माणुस - रंधणाणि वा, महिस करणाणि वा वसभ करणाणि वा, अस्स करणाणि वा कुक्कुड-करणाणि वा, लावय करणाणि वा, वट्टय करणाणि वा, तित्तिर-करणाणि वा, कवोयकरणाणि वा, कपिंजल करणाणि वा, अण्णयरंसि वा तहम्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा !! १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - वेहाणस - द्वाणेसु वा, feat-gar, रुपडण' - द्वाणेसु वा, ' मेरुपडण- द्वाणेसु" वा, विसभक्खणसुवा, अगणिफंड - ठाणेसु वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि [ थंडिलंसि ? ] णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा | २०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, पत्राणि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ॥ २१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - अट्टालयाणि वा, चरियाणि वा दाराणि वा, गोपुराणि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा | २२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा तियाणि वा, चउक्काणि वा, चच्चराणि वा, चउमुहाणि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ॥ २३. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - इंगालडाहेसु वा, खारडाहेसु वा, मडयंडाहेसु वा, मडयथूभियासु वा, मडयचेइएसु वा अण्णय रंसि वा तप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ।। सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - नदीआययणेसु वा, २४. १. परंसु वा पइति वा (घ, च, छ ) । २. कडंबाणि ( अ, ब ) । ३. पवडण ( अ, च, छ) । ४. X (छ) । ५. फड ( क, ख, घ, च); पडण (छ) 1 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ आयारचूला पंकाणे वा, ओघाययणेसु वा सेयणपहंसि' वा अण्णयरंसि वा तप्पगारसि थंडिलसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ॥ २५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - णवियासु वा मट्टियवाणियासु णवियासु वा गोप्पलेहियासु, गवायणीसु वा खाणोसु वा, अण्णरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलं सि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा | २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - डागवच्चसि वा, सागवच्चंसि वा मूलगवच्चंसि वा, हृत्थंकरवच्चंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा | २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा – असणवणंसि वा, सवर्णसि वा, धायइवणंसि वा, केयइवणंसि वा अंबवणंसि वा, असोगवणंसि वा, जागवणंसि वा, पुण्णागवणंसि वा अण्णयरेसु वा तहृप्पगारेसु पत्तोवएसु वा, पुप्फोवएसुवा, फलोवएसु वा, बीओवएसु वा, हरिओवएस वा णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा" || २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सपाययं वा परपाययं वा गहाय से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा अणावायंस असंलोयंसि अप्पपासि" "अप्पबीअसि अप्पहरियंसि अप्पोसंसि अप्पुदयंसि अप्पुत्तिंग पणग- दग-मट्टिय मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा उवस्यसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा' || से तमायाए एगंतमवक्कमे अणावायंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा, झामथंडिलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारसि थंडिलंसि अचित्तंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं परिद्ववेज्जा | २६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं", "जं सम्बट्ठेहि समिए सहिए सथा जज्जासि । -त्ति बेमि ॥ १. "वहंसि ( अ ) ° पथं (छ) । २. गवाणीसु ( अ, घ) 1 ३. वा पुण्णगवणंसि वा ( अ ) । ४. अस्मिन् सूत्रे चूर्णां 'गुत्तागारादयः' अनेके शब्दा व्याख्याताः सन्ति । ते वृत्तौ प्रतिषु च नोपलभ्यन्ते । ५. चूर्णी भिन्नरूपः पाठो व्याख्यातो दृश्यते--- 'से भिक्खु वा २ राओ वा वियाले वा, वारगं णाम उच्चारमत्तओ, अप्पणगं परायगं वा 0 जाइत्ता अभिग्ग्रहिओ धरेति न णिक्खवति विगिचति वोसिरति विसोहिति निल्लेवेति से तमादाए झामथंडिलादीसु परिद्वावेति' । ६. ० लोइयंसि ( अ ) ७. सं० पा० - अप्पपाणंसि जाव मक्कडा | ८. वोसिरेज्जा उच्चारपासवर्ण वोसिरिता ( क्व ) । द्रष्टव्यम् - ११३ । सं० पा० - सामग्गियं जाव जएज्जासि | ६. १० Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमं अज्झयणं सह-सत्तिक्कयं वितत-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा [अहावेगइयाइं सद्दाई सुणेइ, तं जहा ?] मुइंग सद्दाणि वा, 'नंदीमुइंगसद्दाणि वा", झल्लरीसद्दाणि वा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि वितताई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधा रेज्जा गमणाए । तत-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं २. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेइ, तं जहा-वीणा-सद्दाणि वा, विपंची-सहाणि वा, वद्धीसग-सद्दाणि वा, तुणय-सद्दाणि वा, पणव'-सद्दाणि वा, तुंबवीणिय-सद्दाणि वा, ढंकुण'-सद्दाणि वा, अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाई तताई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ताल-सह-कण्णसोय-पडिया-पद ३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेति, तं जहा-ताल-सद्दाणि वा, कंसताल-सहाणि वा, लत्तिय-सद्दाणि वा, गोहिय-सहाणि वा, किरिकिरियसहाणि वा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं तालसद्दाई कण्णसोय पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए॥ झुसिर-सद्द-कण्णसोय-पडिया-पदं ४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–संख-सदाणि १. ४ (क, च)। ३. पणय (अ, छ, ब)। २. वप्पी (घ, च); पप्पी (छ); बव्वी° ४. ढकुण (अ)। २०६ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० आयारचूला वा, वेणु-सद्दाणि वा, वंस-सद्दाणि वा, खरमुहि-सद्दाणि वा, पिरिपिरिय-सद्दाणि वा, अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं सद्दाइं झुसि राई कण्णसोय पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । विविह-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं ५. से भिक्ख वा भिक्खणी वा अहावेगइयाइं सहाई सुणेति, तं जहा- वप्पाणि वा, फलिहाणि वा', 'उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, णिज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दीहियाणि वा, गंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, अग्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेति, तं जहा-कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वणाणि वा, वणदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्व यदुग्गाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए॥ ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेति, तं जहा-गामाणि वा, णगराणि वा, णिगमाणि वा, रायहाणीणि वा, आसम-पट्टण-सन्निवेसाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए गो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।। ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेति, तं जहा-आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, पवाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६. से भिक्व वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाई सुणेति, तं जहा -अट्टाणि वा, अट्रालयाणि वा, चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा--तियाणि वा, नवकाणि वा. चच्चराणि वा, चउम्मूहाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराड *विरूवरूवाई सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १. परि (अ, वृ); परिपरिय (क, च, छ, ब)। पाठोस्ति । एवं विशेष्य विशेषणयोव्यत्व २. प्रथम-तृतीय-मूत्रयो: 'वितताई सद्दाई, ताल- योस्ति । सहाई' इति पाठोस्ति तथा द्वितीय-चतुर्थ- ३. सं० पा०-फलिहाणि वा जाव सराणि । सूत्रयोः सद्दाई तताई, सद्दाई झुसिराई' इति ४-३. सं० पा०-तहप्पगाराइ सहाई णो। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमं अज्झयणं (सह- सत्तिक्कयं ) २११ ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा - महिसट्ठाण - करणाणि वा वसभट्ठाण करणाणि वा अस्सद्वाण करणाणि वा हत्थिद्वाणकरणाणि वा', 'कुक्कुडट्ठाण करणाणि वा, मक्कडट्ठाण करणाणि वा, लावयद्वाणकरणाणि वा वट्टयद्वाण करणाणि वा, तित्तिरद्वाण करणाणि वा, कवोयद्वाणकरणाणि वा ०, कविजलट्ठाण करणाणि वा अण्णयराई वा तहपगाराई' • विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥ १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा - महिसजुद्धाणिवा, वसभ जुद्धाणि वा, अस्स-जुद्धाणि वा, हत्थि जुद्धाणि वा', 'कुक्कुडजुद्धाणि वा, मक्कड जुद्धाणि वा, लावय-जुद्वाणि वा वट्टय जुद्धाणि वा, तित्तिर- जुद्धाणि वा, कवोय - जुद्धाणि वा कविजल- जुद्धाणि वा अण्णवराई वा तहप्पगाराई' "विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए • णो अभिसंधारेज्जा o गमणाए || १३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा - 'जूहियद्वाणाणि वा यजू हिय-द्वाणाणि वा, गयजूहिय-द्वाणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए • णो अभिसंधारेज्जा ० गमणाए ॥ १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' "अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति, तं जहा - अक्खा इयद्वाणाणि वा माणुम्माणिय- द्वाणाणि वा महयाहय णट्ट-गीय-वाइय-तंति-तलताल - तुडिय पडुप्पवाइय-द्वाणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई' विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए • णो अभिसंधारेज्जा गमणाए || १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'अहावेगइयाई सद्दाई • सुणेति, तं जहा - कलहाणि वा, डिंबाणि वा, डमराणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा, अण्णयराई वा तप्पगाराई" "विरूवख्वाइं सद्दारं कण्णसोय-पडियाए • णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । o . १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा" "अहावेगइयाई • सद्दाई सुणेति तं जहा - खुड्डिय वारियं परिवृतं मंडियालकिय" निवुज्झमाणि पेहाए, एगं पुरिसं वा वहाए १. स० पा०-हत्थिद्वाण करणाणि वा जाव कविजल २. सं० पा० पगाराई सद्दाई णो । ६. सं० पा०-- भिक्खु वा २ जाव सुणेति । ३. सं० पा०-हत्थि जुद्धाणि वा जाव कविजल । १० मं० पा०-हपगाराई सद्दाई णो । ४. सं० पा०---तहप्पगराई जो । ११. सं० पा० - भिक्खू वा २ जाव सद्दाई | ५. निशीथे १२ उद्देशके २६ सूत्रे 'उज्जूहिया १२. परिभूयं ( क्व ); मण्डितालंकृता बहुपरिवृतां ठाणाणि' इति पाठो विद्यते ! (1) 1 ६. ० पा०-हप्पगाराई णो । १३. मंडिय० (घ, छ) । ७. स० पा० – भिक्खू वा २ जाव सुणेति । ८. सं० पा० तहप्पगाराई णो । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ आयारचूला १८. __णीणिज्जमाणं पेहाए, अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं सहाई कण्णसोय-पडियाए ' णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १७. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अण्णय राई विरूवरूवाई महासवाई एवं जाणेज्जा, तं जहा-बहुसगडाणि वा, बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खूणि वा, बहुपच्चंताणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाई महासवाइ कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अण्णयराइं विरूवरूवाई महुस्सचाई एवं जाणेज्जा, तं जहा--- इत्थीणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा, डहराणि वा, मज्झिमाणि' वा, आभरण-विभूसियाणि वा, गायंताणि वा, वायंताणि वा, णच्चंताणि वा, हसंताणि वा, रमंताणि वा, मोहंताणि वा, विउलं असणं पाणं खाइमं साइम परि जंताणि वा, परिभाइंताणि वा, विच्छड्डियमाणाणि वा, विगोक्यमाणाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महुस्सवाइं कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । सद्दासत्ति-पदं १९. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो इहलोइएहिं सद्देहि, णो परलोइएहि सद्देहि, णो सुएहि सद्देहि, णो असुएहि सद्देहिं, णो दिटुंहिं सद्देहि, णो अदिटुंहिं सद्देहि, णो इटेहिं सद्देहि, णो कंतेहिं सद्देहिं सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झज्जा, णो मुज्झेज्जा, णो अज्झोवबज्जेज्जा ॥ २०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं,' 'जं सव्व हि समिए सहिए सया' जएज्जासि । –त्ति बेमि ॥ ३, मं० पा०-सामग्गियं जाव जएज्जासि । १. सं० पा०-तहप्पगाराइं गो। २. मज्झ° (छ, ब)। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं रूव-सत्तिक्कयं २. विविह-रूव-चक्खुदंसण-पडिया-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं रूवाइं पासइ, तं जहा—गंथिमाणि वा. वेढिमाणि वा, पूरिमाणि वा, संघाइमाणि वा, कट्रकम्माणि वा, पोत्थकम्माणि वा, चित्तकम्माणि वा, मणि कम्माणि वा, दंतकम्माणि वा', पत्तच्छेज्जकम्माणि वा, विहाणि वा, वेहिमाणि वा', अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं [रूवाइं?] चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। __“से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रूवाई पासाइ, तं जहा-वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, णिज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दोहियाणि वा, गुंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रूवाइं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ३. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अहावेगइयाई रूवाइं पासइ, तं जहा-कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वणाणि वा, वणदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वयदुग्गाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं स्वाइं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १. कदाणि (क, घ, च)। निशीयस्य १२ उद्देशकस्य १७ सूत्रानुसारेण २. वा मालकम्माणि वा (अ, क, घ, च, छ, अयं पाठः स्वीकृतः । आचाराङ्ग-प्रतिषु लिपि ब); वृतौ चूर्मा च न व्याख्यातम्, अतोन दोषाद वर्णविपर्ययो जात इति प्रतीयते । गहीतम्। ४. सं० पाo----एवं णायव्वं जहा सद्द-पडियाए ३. विविहाणि वा वेढिमाई (अ, क, घ, छ, ब) सव्वा वाइतवज्जा रूव-पडियाए वि । कान २१३ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ४. ५. ६. ७. ८. ε. आयारचूला सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - गामाणि वा, नगराणि वा, णिगमाणि वा, रायहाणीणि वा, आसम-पट्टण - सन्निवेसाणि वा, अण्णयराई वा तप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए जो अभिसंधारेज्जा गमणाए । भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा – आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, पवाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरुवरुवाई रुवाई चक्खुदंसणपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए || सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पास तं जहा - अट्टाणि वा, अट्टायाणि वा चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा अण्णयराई वा सहपगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए || सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - तियाणि वा, चउक्काणि वा, चच्चराणि वा, चउम्मुहाणि वा अण्णयराई वा तहष्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमगाए || सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ ले जहा - महिसट्ठाणकरणाणि वा, वसभट्ठाण करणाणि वा, अस्सद्वाण करणाणि वा, हत्थिद्वापाकरणाणि वा, कुक्कुडट्ठाण करणाणि वा, मक्कडट्ठाण करणाणि वा, लावयद्वाणकरणाणि वा वट्टयट्ठाण करणाणि वा तित्तिरद्वाण करणाणि वा, कंबोयट्ठाणकरणाणि वा कविजलद्वाण करणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूबाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - महिसजुद्धाणि वा, वसभ जुद्धाणि वा अस्स-जुद्धाणि वा, हत्थि जुद्धाणि वा, कुक्कडजुद्धाणि वा, मक्कड - जुद्धाणि वा, लावय-जुद्धाणि वा, वट्टय जुद्धाणि वा, तित्तिर- जुद्धाणि वा, कवोय - जुद्धाणि वा कविजल - जुद्धाणि वा अण्णय राई वा तहृप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधा रेज्जा गमणाए ॥ १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - जूहियणिवा, हजू द्वाणाणि वा, गयजूहिय-द्वाणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए || ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - अक्वाइयद्वाणाणि वा, माणुम्माणिय-द्वाणाणि वा, महयाहय णट्ट- गीय-वाइय Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं (रूव-सत्तिक्कयं) तंति-तल-ताल-तुडिय-पडुप्पवाइय-ट्ठाणाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रूवाइं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रूवाइं पासइ तं जहा—कलहाणि वा, डिबाणि वा, डमराणि वा, दोरज्जाणि वा, वे रज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा, अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रूवाइं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। १३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रूवाइं पासइ, तं जहा-खुड्डियं दारियं परिवुतं मंडियालंकियं निवुज्झमाणि पेहाए, एगं पुरिसं वा वहाए गोणिज्जमाणं पेहाए, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रूवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए॥ से भिक्ख वा भिक्खणी वा अण्णयराई विरूवरूवाई महासवाई एवं जाणेज्जा, तं जहा-बहुसगडाणि वा, बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खूणि वा, बहुपच्चंताणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महासवाई चखुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयराइं विरूवरूवाई महस्सवाइं एवं जाणेज्जा, तं जहा-इत्थीणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा, डहराणि वा, मज्झिमाणि वा, आभरण-विभूसियाणि वा, गायंताणि वा, वायंताणि वा, णचंताणि वा, हसंतापिा वा, रमंताणि वा, मोहंताणि, वा विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंताणि वा, परिभाईताणि वा, विच्छड्डियमाणाणि वा, विगोवयमाणाणि वा, अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महुस्सवाइं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। स्वासत्ति-पदं १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो इहलोइएहि रूवेहि, णो परलोइएहिं रूवेहि, णो सुएहिं रूवेहि, गो असुएहि रूवेहि, गो दिद्वेहिं रूवेहि, णो अदिद्वेहि रूवेहि, णो इटेहिं रूवेहिं, णो कतेहिं रूवेहिं सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा ।। १७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणोए वा सामग्गियं जं सवढेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि । —त्ति बेमि॥ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं परकिरिया-सत्तिक्कयं किरिया-पदं १. परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं-णो तं साइए', णो तं णियमे ।। पाद-परिकम्म-पदं २. 'से से" परो पादाई आमज्जेज्ज वा, ‘पमज्जेज्ज वा'-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३. से से परो पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा -- णो तं साइए, जो तं णियमे ।। ४. से से परो पादाई फूमेज्ज वा, रएज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५. से से परो पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ६. से से परो पादाइं लोद्धण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ७. से से परो पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–णो तं साइए, गो तं णियमे ॥ ८. से से परो पादाइं अण्णयरेण विलेवण-जाएण आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६. से से परो पादाई अण्णयरेण धूवण-जाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १. सायए (घ)। २. सिया से (क, घ, च) सर्वत्र । ३. x (अ, क, च, छ, ब)। ४. निशीथे सर्वत्रापि 'तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा, णवणीएण वा' इति पाठो विद्यते । ५. भिलं ' (छ)। २१६ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसम अज्झयणं (परकिरिया-सत्तिक्कयं) २१७ १०. से से परो पादाओ खाणु' वा, कंटयं वा णोहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ११. से से परो पादाओ पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा----णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ काय-परिकम्म-पदं १२. से से परो कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १३. से से परो कार्य संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-णो तं साइए णो तं णियमे ॥ १४. से से परो कार्य तेल्लेण वा, धएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, अभंगेज्ज' वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १५. से से परो कार्य लोद्धेण' वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १६. से से परो कायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ १७. से से परो कार्य अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ १८. से से परो कार्य अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा-णो तं साइए, जो तं णियमे ॥ वण-परिकम्म-पदं १६. से से परो कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा --णो तं साइए, णो तं णियमे। २०. से से परो कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियम।। २१. से से परो कायंसि वणं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिगेज्ज वा–णोतं साइए, णो तं णियमे ।। २२. से से परो कार्यसि वर्ण लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा-गो तं साइए, णो तं णियमे ॥ २३. से से परो कार्यसि वणं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-णो तं साइए, जो तं णियम ।। ३. लोद्देण (अ, क)। १. खाणुयं (क, घ, च, ब)। २. भिल्लंगेज्ज (च)। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ आयारचूला २४. 'से से परो कायंसि वणं अग्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा--णो तं साइए, जो तं णियमे ।। २५. से से परो कायंसि वणं अपणयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज का, पधूवेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं णियमे ।। २६. से से परो कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं गियमे ।। २७. से से परो कार्यसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज का, विसोहेज्ज वा-- णो तं साइए, जो तं णियमे ।। गंड-परिकम्म-पदं २८. से से परो कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। २६. से से परो कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा संबाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-णोतं साइए, जो तं णियमे ।। ३०. से से परो कार्यसि गंड वा', 'अरइयं वा, पिडयं वा°, भगंदलं वा तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा णो तं साइए, णोतं णियमे ।। ३१. से से परो कायंसि गंडं वा', 'अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदल वा लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ३२. से से परो कार्यसि गंड वा', 'अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा सीओदग वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे। से से परो कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा-- जो तं साइए, णो तं णियमे। से से परो कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा--णो तं साइए, जो तं णियमे ॥ १. २४-२५ सूत्रे कोष्ठकोल्लिखित-प्रतिषु न सूत्रे 'पिडय' पाठः । अस्मिन् प्रकरणे स विद्यते (अ, क, घ, च, छ)। सम्यग, इति स पाठः स्वीकृतः । उक्त प्रति२. पुलयं (अ, च); पुलइयं (क, छ, ब); पुलई पाठा लिपिदोषेण विकृता इति प्रतीयते । (घ)। एवं सर्वासु प्रतिषु पिडयं' पाठः ३,४,५. सं० पा०-गंडं वा जाव भगंदलं । नोपलभ्यते, किन्तु उपलब्ध-पाठानां नार्थोऽव- ६. २४-२५ सूत्रानानुसारेण अत्रापि कोष्ठकागम्यते । निशीथे तृतीयोद्देशके चतुस्त्रिशत्तम- न्तर्गते सूत्रे युज्येते, परन्तु प्रतिषु नोपलभ्यते । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं (परकिरिया-ससिक्कयं) २१६ ३३. से से परो कार्यसि गंडं वा', 'अरइयं वा, पिडयं वा', भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा–णो तं साइए, जो तं णियमे ।। ३४. से से परो कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा गोहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा~णो तं साइए, णो तं णियमे ।। मल-णीहरण-पदं ३५. से से परो कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३६. से से परो अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, णहमलं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। वाल-रोम-पदं ३७ से से परो दीहाई वालाई, दोहाई रोमाइं, दीहाई भमुहाई, दीहाई कक्खरोमाई, दीहाइं वत्थिरोमाइं कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। लिक्ख-जूया-पदं ३८. से से परो सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। पाद-परिकम्म-पदं ३६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-~णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४०. "से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-~णो तं साइए, णों तं णियमे ॥ ४१. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई फूमेज्ज वा, रएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४२. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं तेल्लेण वा घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४३. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण था, चण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ १. सं० पा०-गड वा जाव भगंदलं। २. संबद्धज्ज (च); संवज्जेज्ज (छ) 1 ३. सं० पा०--एवं हिट्रिमो गमो पायादि भाणियग्यो। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० आयारचूला ४४. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा--जो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४५. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई अण्णयरेण विलेवण जाएण आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं अण्णयरेण धूवण-जाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४७. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाओ खाणु वा, कंटयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४८. स से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाओ पूयं वा, सोणियं वा पीहरेज्ज वा. विसोहेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। काय-परिकम्म-पदं ४६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५०. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५१. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं तेल्लेण वा, घाण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५२. से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं लोद्धेग वा, कक्केण वा, चण्णण वा, वण्णण वा उल्लालज्जवा, उबलेज्ज़ वा.-णो त साइए, णो त णियमे ।। ५३. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वाणो तं साइए, णोतं णियमे ॥ ५४. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं विलेवण ___ जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५५. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। यण-परिकम्म-पदं ५६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५७. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, लिमद्देज्ज वा-जो तं साइए, णो तं णियमे ॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं (परकिरिया-सत्तिक्कयं) २२१ ५८. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिगेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५६. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तयदावेत्ता कायंसि वणं लोद्रेण वा. कक्केण वा, चुण्णेण वा, वणेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६०. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६१. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णय रेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६२. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं धूवण जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा-गो तं साइए, णोतं णियमे ।। ६३. से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६४. से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तयट्रावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूर्व वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा--णो तं साइए. णो तं णियमे ।। गंड-परिकम्म-पदं ६५. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा—णो तं साइए, णोतं णियमे ।। ६६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिड्यं वा, भगंदलं बा संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६७. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ६८. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा, लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वणेण वा उल्लो लेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ आयारचूला [से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिज्ज वा, विलिपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ७०. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा. विच्छिदेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियम ॥ से से परो अंकसि वा. पलियंकसि वा तयट्रावेत्ता कायंसि गंड वा, अरइयं वा. पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, गोतं णियमे।। मल-णीहरण-पदं ७२. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ७३. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, णहमलं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ वाल-रोम-पदं ७४. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता दीहाई वालाई, दीहाई रोमाई, दीहाई भमुहाई, दीहाई कक्खरोमाई, दीहाई वत्थिरोमाइं कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वा–णोतं साइए, णो तं णियमे ।। लिक्ख-जया-पदं ७५. से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा णोहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा - जो तं साइए, णो तं णियमे ॥ आभरण-आबिधण-पदं ७६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टा वित्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं वा, मेवेयं वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्णसुत्तं वा आबिंधेज्ज वा, पिणिज्ज बा—णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १. सुवण्णगेवेयं (घ)। २. आबंधेज्ज (घ, च)। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं (परकिरिया सत्तिक्कयं ) पाद-परिकम्म पर्द ७७. से से परो आरामंसि वा, उज्जाणंसि वा णोहरेत्ता वा, पविसेत्ता वा पायाई आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ।' [ एवं यव्वा अण्णमण्णकिरियावि । ] ॥ तिमिच्छा-पदं ७८. से से परो सुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो असुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेतु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टेज्जा - णो तं साइए, णो तं नियमे ॥ ७६. कडुवेयणा' कट्टुवेयणा पाण-भूय जीव-सत्ता वेदणं वेदेति । ८०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वहिं समिते सहिते सदा जए सेयमिणं मण्णेज्जासि । -त्ति बेमि ॥ १.२. अस्मात् सूत्रात् पुरतोपि 'पादाई संवाहेज्ज वा' ( सू० ३) अतः प्रभृति 'सीमाओ लिक्ख वा' (सू ३८) पर्यन्तं सूत्राणि युज्यन्ते परन्तु नात्र कश्चित् पूरणीयः संकेतः प्रतिषु प्राप्यते । "एवं णेयब्वा अण्णमष्णकिरियावि" इति सूत्रमत्रानावश्यकं प्रतिभाति, किन्तु वृत्तावस्ति व्याख्यातम् । सम्भाव्यते प्रस्तुत सूत्रस्य पूरणीय संकेतो लिपिदोषेण अन्यथा जातः । इत्यपि सम्भाव्यते ' एवं णेयव्त्रा अण्णमण्ण २२३ किरियावि' इति सूत्र वाचनान्तरगतमस्ति । एकस्यां वाचनायां उक्तसूत्रेणैव त्रयोदशाध्ययनस्य पाठः प्रवेदितः, अपरस्यां च त्रयोदशाध्ययनस्य संक्षिप्तपाठः पृथग्रूपेण प्रतिपादित: । वर्तमाने समुपलब्ध: पाठो द्वयोरपि वाचनयोमिश्रणं प्रतीयते । तेनास्माभि रुक्तसूत्रं कोष्ठक एव स्वीकृतम् । ३. कम्मकय ० (च) | Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमं अज्झयणं अण्णुण्णकिरिया-सत्तिक्कयं किरिया-पदं १. अण्णमण्णकिरिय' अज्झत्थियं संसेसियं-णो तं साइए, णो तं णियमे !! पाद-परिकम्म-पदं २. से अण्णमण्णं पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ३. "से अण्णमण्णं पादाई संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४. से अण्णमण्णं पादाइं फूमेज्ज वा, एज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५. से अण्णमण्णं पादाई तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिगेज्ज वा-णो तं साइए, जो तं णियमे ।। ६. से अण्णमण्णं पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वणेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ७. से अण्णमण्णं पादाई सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ८. से अण्णमण्यं पादाई अण्णयरेण विलेवण-जाएण आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ है. से अण्ण मण्णं पादाइं अण्णयरेण धूवण-जाएण ध्वेज्ज वा, पधवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ अण्णोण ° (वृ) । त्रयोदशाध्ययने 'से भिक्खू वा २' इति पाठो नास्ति । चतुर्दशाध्ययने प्रतिषु विद्यते, किन्तु वृत्तौ उभयत्रापि नास्ति व्याख्यातः। २. सं० पा०-सेसं जइज्जासि । तं चेव, एयं खल. २२४ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमं अज्झयणं (अण्णुण्णकिरिया-सत्तिक्कयं) २२५ १०. से अण्णमण्णं पादाओ खाणुं वा, कंटयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ११. से अण्णमण्णं पादाओ पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णोतं साइए, णो तं णियमे ॥ काय-परिकम्म-पदं १२. से अण्णमण्णं कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १३. से अण्णमण्णं कायं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १४. से अण्णमण्णं कायं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, अभंगेज्ज वा-णो तं साइए, जो तं णियमे ।। से अण्णमण्णं कायं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १६. से अण्ण मण्णं कायं सोओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा –णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ १७. से अण्णमण्णं कायं अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिपज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १८. से अण्णमण्णं कायं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ वण-परिकम्म-पदं १६. से अण्ण मण्णं कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पम नेज्ज वा-जो तं साइए, ण तं णियमे। २०. से अण्णमण्णं कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे। २१. से अण्णमण्णं कायंसि वणं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिगेज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। २२. से अण्णमण्णं कायंसि वणं लोद्रेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वणेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । २३. से अण्ण मण्णं कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे। २४, से अण्णमण्णं कायंसि वर्ण अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ आयारचूला ३०. २५. से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा .. __णो तं साइए, जो तं णियमे ।। २६. से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ २७. से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोशियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, जो तं णियमे ।। गंड-परिकम्म-पदं २८. से अण्णमण्णं कायंसि गंड वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ २६. से अण्णमण्णं कायंसि गंड वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्वेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा--णो तं साइए, णोतं णियमे ॥ ३१. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३२. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा सीओदग वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं णियमे । [से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे । से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे । ।। से अण्णमण्णं कायंसि गंड वा, अरइयं बा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३४. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-गो तं साइए, णो तं णियमे ।। मल-णीहरण-पदं ३५. से अण्णमण्णं कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे ।। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमं अज्झयणं (अण्ण्ण्ण किरिया-सत्तिक्कयं) २२७ ३६. से अण्णमण्णं अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, णहमलं वा णीहरेज्ज बा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। वाल-रोम-पदं ३७. से अण्णमण्णं दीहाई वालाई, दीहाई रोमाइं, दीहाई भमुहाई, दोहाई कक्ख रोमाई, दीहाई वत्थिरोमाइं कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ लिक्ख-जूया-पदं ३८. से अण्णमण्णं सीसाओ लिक्खं वा, जयं वा णोहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा__णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ पाद-परिकम्म-पदं ३६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४०. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--जो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई फूमज्ज वा, रएज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे ।। से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं तेल्लेण वा, घएण ता बस वा मक्खेज्ज वा. भिलिंगेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे । ४३. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं लोद्धण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा - णो तं साइए, गो तं शियमे ॥ ४४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४५. से अण्णमण्णं अंकंसि बा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई अण्णयरेण विलेवण जाएण आलिंपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं अण्णयरेण धूवण जाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४७. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाओ खाणु वा, कंटयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४८, से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेना पादाओ पूयं वा, सोणियं वाणीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ आयारचूला काय-परिकम्म-पदं ४६. से अण्ण मण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५०. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, अभंगेज्ज वा-यो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५२. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५३. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं विलेवण जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा –णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं धूवण जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ वण-परिकम्म-पदं ५६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता काय सि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५७. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५८. से अण्णमण्ण अंकसि वा, पलियंकरि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुणेण वा वणेण वा, उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६०. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं सीओदग वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा--णो तं साइए, जो तं णियमे ।। ६१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमं अज्झयणं (अण्णुण्णकिरिया-सत्तिक्कयं) २२६ ६२. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ६३. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं वण-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णोतं णियमे ।। गंड-परिकम्म-पदं ६५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियम।। ६६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ६७. से अण्ण मण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदल वा तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ से अण्णमण्ण अंकसि वा, पलियकसि वा तुयद्रावेत्ता कायंसि गंड वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा, लोद्धण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदल वा सीओदग-वियडण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिपज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे । से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंड वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णय रेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा णो तं साइए, जो तं णियमे ॥ ७०. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा. पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णय रेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ७१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता ६५. सजण Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० मल-णीहरण-पदं ७२. में अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा --‍ -णो तं साइए, णो तं नियमे || आयारबूला - णो तं साइए, णो तं वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा --‍ जियमे || ७३. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, हमलं वा णाहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा -- णो तं साइए, जो तं नियमे || वाल- रोम-पदं ७४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता दीहाई वालाई, दीहाई रोमाई, दीहाई भमुहाई दीहाई कक्खरोमाई, दीहाई वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वाणी तं साइए, णो तं नियमे ॥ लिक्ख-ज्या-पदं ७५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वाणो तं साइए, जो तं नियमे ॥ ७७. आभरण- आबिधण-पदं ७६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं बा, गेवेयं वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्णसुत्तं वा आबिधेज्ज वा विणिधेज्ज वाणो तं साइए, जो तं नियमे ॥ पाद-परिकम्म-पदं अणमण्ण आरामसि वा, उज्जाणंसि वा णीहरेत्ता वा, पविसेत्ता वा पायाई आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वाणो तं साइए, जो तं नियमे । तिमिच्छा-पदं ७८. से अण्णमण्णं सुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे । से अण्णमण्णं असुद्वेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे । से अण्णमण्णं गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेत्तु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टेज्जा -- णो तं साइए, णो तं नियमे ॥ ७९. कडुवेणा कट्ट्वेयणा पाण- भूय-जीव सत्ता वेदणं वेदेति ॥ ८०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहि समिते सहिते सदा जए, सेमिणं मण्णेज्जासि । o -त्ति वेमि ॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं भावणा भगवओ-चवणादि-णक्खत्त-पदं १. तेणं कालेणं तेण समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यादि होत्था -- १. हत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गभं वक्कते २. हत्थुत्तराहि गभाओ गम्भ साहरिए ३. हत्थुत्तराहि जाए ४. हत्थुत्तराहि सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ५. हत्थुत्तराहि कसिणे पडिपुण्णे अव्वाधाए निरावरणे अणंते अणुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णं ।। २. साइणा भगवं परिनिव्वुए। गम्भ-पदं ३. समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए -सुसमसुसमाए समाए वीइक्कताए, सुसमाए समाए वीतिक्कताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बह वीतिक्कंताए--पण्णहत्तरीए वासेहि, मासेहि य अद्धणवमेहि सेसेहि, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे-- आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं', महाविजयसिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाई आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जंबुद्दीवे' दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्डभरहे दाहिणमाहणकुंडपुरसन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए सीहोब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिसि गभं वक्ते ।। १. पण्णत्तरीए (अ, क, ध, च)। २. ०णवमसेसेहि (क, घ, च)। ३. जोगोवगएणं (अ, च)। ४. अहाउयं (क, घ, च)। ५. दीवेणं (क, घ, च, छ, ब)। ६. वेसंमि (छ) ! २३१ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ आयारचूला चवण-पदं ४. समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था-चइस्सामित्ति जाणइ, चुएमित्ति जाण इ, चयमाणे न जाणेइ, सुहुमे णं से काले पण्णत्ते ॥ गब्भसाहरण-पदं तओ णं 'समणस्स भगवओ महावीरस्स' अणुकंपए णं देवे णं "जीयमेयं" ति कटु जे से वासाणं तच्चे मासे, पंचमे पक्खे - आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेण हत्थुत्तराहि नक्खत्तेहिं जोगमुवागएणं बासीतिहि राइदिएहि वीइक्कतेहिं तेसीइमस्स राइदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकंडपुर-सन्निवेसाओ उत्तरखत्तियकुडपुर-सन्निवेसंसि णायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसलाए खत्तियाणी ए वासिट्ठ-सगोत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करेत्ता, सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता कुच्छिसि गब्भं साहरइ॥ जेवि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भे, तंपि य दाहिणमाहणकुंडपुरसन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए कुच्छिसि साहरइ ।। ७. समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था--साहरिज्जिस्सामित्ति जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ, समणाउसो! जम्म-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह अण्णया कयाइ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं, अट्ठमाणं राइंदियाणं वीतिक्कताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे-चेत्तसुद्धे, तस्सणं चेत्तसुद्धस्स तेरसीपक्खेणं, हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगएणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया !! ६. जगणं राई तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया" अरोयं पसूया, तण्णं राइं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य १. समणे भगवं महावीरे (अ, क, घ, च, छ, २. हियअणु ° (छ)। ब); कल्पसूत्रे (३०) 'समणे भगवं महावीरे' ३. करेत्ता अव्वावाहं अव्वाबाहेणं (चू); कल्पसूत्रे इति पाठोस्ति, किन्तु 'हरिणेगमेसिणा' 'साह- (३०) प्येष पाठो दृश्यते। रिए' इति पदयोः सन्दर्भ स युक्तोस्ति, किन्तु ४. वि न (च); न (छ)। अशुद्ध प्रतिभाति । अत्र 'साहरइ' इति क्रियापदस्य सन्दर्भ ५. आरोया (क, घ, च)। प्रथमान्तोसौ नव युक्तः स्यात् । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्भायणं (भावणा) २३३ ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देव-सण्णिवाते देव कहक्कहे उप्पिजलगभूए यावि होत्था ॥ १०. जण्णं रणि तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं रणि बहवे देवा य देवीओ य एग महं अमयवासं च, गंधवासं च, चुण्णवासं च', हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिसु ।। ११. जणं रणि तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तपणं रणि भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स कोउगभूइकम्माई तित्थयराभिसेयं च करिसु ।। नामकरण-पदं १२. जओ णं पभिइ समणे भगवं महावीरे तिसलाए वत्तियाणीए कुच्छिसि मभं आहुए, तओ णं पभिइ तं कुलं विपुलेणं हिरणेणं सुवष्णेणं धणेणं धण्णणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्डइ ।। १३. तओ णं समणस्स भगवओ महाबीरस्स अम्मापियरो एयमढे जाणेत्ता णिव्वत्त दसाहंसि वोक्कतसि सुचि भूयंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, विपलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवणिमंतेति, मित्त-णाति-सयण संबंधिवगं उवणिमंतेत्ता बहवे समण-माणकिवण-वणिमग-भिच्छुडग-पंडरगातीण विच्छड्डेति विगोवेति' विस्साणेंति, दायारे ए?]सुणं दाय' पज्जभाएंति, विच्छड्डित्ता विगो वित्ता विस्साणित्ता दायारे [ए ? ] सु णं दायं पज्जभाएत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवगं भुजाति, मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवगं भजावेत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवगोणं इमेयारूवं णामधेज्जं करति ---जओ णं पभिइ इमे कुमारे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि १. य संपयतेहि य (क, ध, च)। पसेणइय' सूत्रे दाण दाइयाणं परिभाइत्ता' २. °वाते गं (अ, क, च, छ)। (सू० ६६५) इति पाठो विद्यते । 'कप्पसुत्ते' 'दाणं दायारेहिं परिभाएत्ता दाइयाण परिभा३. जं (च, छ)। एत्ता' (सू० १११) इति पाठोस्ति । आलोच्य४. तं (च, छ)। पाठस्य विविधरूपावलोकनेन इत्यनुमीयतेस्य ५. च पुप्फवासं च (क, घ, ब)। लिपिकाले परिवर्तनं जातम् । वस्तुत: 'दाया६. सुइ (छ)। एसु इति पाठः सङ्गतोस्ति । अस्मिन् पाठे ७. आहए (क्व) सत्येव 'पज्जभाएंति' इति विभागार्थस्य धातु८. पवि° (अ)। पदस्य क्षयपदस्य दायपदस्य च सार्थकता ९. विग्गो (अ, क, घ, च)। स्यात् । १०. 'ओवाइय' सूत्रे 'दाणं च दाइयाणं परिभाय- ११. दाणं (घ, छ)। इत्ता' (स०२३) इति पाठो दृश्यते । 'राय- १२. कारवेंति (क, च); करावेति (घ)। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ आयारचूला गब्भे आहुए', तओ णं पभिइ इमं कुलं, विउलेणं हिरण्णणं सुवण्णेणं धणेणं धणेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिववइ, तो होउ ण कुमारे "वद्धमाणे" ॥ बाल-पदं १४. तओ णं समणे भगवं महावीरे पंचधातिपरिवुडे, [तं जहा-खीरधाईए, मज्जणधाईए, मंडावणधाईए, खेल्लावणधाईए, अंकधाईएअंकाओ अंक साहरिज्जमाणे रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लोणे' व चंपयपायवे अहाणु पुवीए संवड्डइ ॥ विवाह-पदं १५. तओ णं समणे भगवं महावीरे विण्णायारिणये विणियत्तवाल-भावे अप्पुस्सुयाई उरालाई माणुस्सगाई पंचलक्खणाई कामभोगाइं सद्द-फरिस-रस रूव-गंधाइं परियारेमाणे, एवं च णं विहरइ ।। नाम-पदं १६. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते । तस्स णं इमे तिण्णि णामधेज्जा एवमा हिज्जति, तं जहा–१. अम्मापिउसंतिए "वद्धमाणे" २. सह-सम्मुइए "समणे" ३. "भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ” त्ति कटु देवेहिं से णाम कयं "समणे भगवं महावीरे" !! परिवार-पदं १७. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा-१. सिद्धत्थे ति वा २. सेज्जंसे ति वा ३. जसंसे ति वा ॥ १८. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्र-सगोत्ता। तीसेणं तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. तिसला ति वा २. विदेहदिण्णा ति वा ३. पियकारिणी ति वा।। १६. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए 'सूपासे' कासवगोत्तेणं ।। २०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेट्टे भाया ‘णंदिवद्धणे' कासवगोत्तेणं ।। २१. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेट्ठा भइणी 'सुदंसणा' कासवगोत्तेणं ॥ १. आहते (च)। ५. विणि वित्त (च)। २. असो कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांश: प्रतीयते। ६. अणस्सुयाई (अ, ब)। ३. समल्लोणे (अ, घ)। ७. कणिट्ठा (घ, च)। ४. परिणय (घ, च, छ, ब)। ८. कासवी (च)। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं (भावणा) २३५ २२. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा 'जसोया' कोडिण्णागोत्तेणं ।। २३. समणस्स णं भगवओ महावी रस्स धूया कासवगोत्तेणं । तीसे णं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा–१. अणोज्जा ति वा २. पियदसणा ति वा । २४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स णत्तुई कोसियमोत्तेण । तीसे णं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा–१. मेसवतो ति वा २. जसवती ति वा ।। माउ-पिउ-काल-पदं २५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासाच्चिज्जा समगोवासगा यावि होत्था । ते णं बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाल इत्ता, छह जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पञ्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पाहत्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तओ णं आउक्खपणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमत करिस्सति ।। अभिणिक्खमणाभिप्पाय-पदं २६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे णाते णायपुत्ते णायकुल विणिवत्ते विदेहे विदेह दिण्णे विदेहजच्चे विदेहसुमाले तीसं वासाइं विदेहत्ति कटु अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहि देवलोगमणुपत्तेहि समत्तपइण्णे चिच्चा हिरणं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं, चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सार-सावदेज्ज, विच्छड्डेत्ता विगोवित्ता विस्साणित्ता, दायारे [ए ? सुण 'दायं पज्जभाएत्ता", संवच्छरं दल इत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे --मम्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगएणं अभिणिक्खमणाभिप्पाए यावि होत्थासंगहणी-गाहा संवच्छरेण होहिति, अभिणिक्खमणं तु जिणवरिदस्स। तो अत्थ-संपदाणं, पव्वत्तई पुव्वसूराओ ||१॥ १. कोसिया (घ)। २. सारक्खण ° (घ, च)। ३. सुसिय° (अ, घ); झुसिय(च) झोसिय ४. द्रष्टव्यम्-१५।१३ सूत्रस्य द्वितीय पाद टिप्पणम् । ५. दाणं (अ)। ६. दाइत्ता परिभाइत्ता (छ) । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ १. उ (घ) 1 एगा हिरण्णकोडी, सूरोदयमाईयं, अट्टेव अणूणया सयसहस्सा | दिज्जइ जा पायरासो त्ति' ॥२॥ तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीति च होंति कोडीओ । असिति च सयसहस्सा, एयं संवच्छ रे दिण्णं ||३|| वेसमणकुंडलधरा, देवा लोगंतिया महिड्डीया । बोहिति यतित्थयरं, पण रससु कम्म-भूमिसु ॥४॥ बंभमि य कप्पमि य, बोद्धव्वा कण्हराइणो मज्भे । लोगंतिया विमाणा, अट्टसु वत्था असंखेज्जा ||५|| देवणिकाया, भगवं बोहिति जिणवरं वीरं । अरहं तित्थं पव्वत्तेह ||६|| एए सव्वजगजीवहियं देवागमण - पर्द २७. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमणाभिप्पायं जाणेत्ता भवणवइ-वाणमंतर - जोइसिय विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहिं सहि रूवेहिं, सएहिं-सएहिं जेवत्येहि, सहि-सएहिं चिधेहि, सव्विड्डीए सव्वजुती ए सम्वबलसमुदएणं सयाई-सयाई जाण विमाणाई दुरुहंति, सयाई-सयाई जाणविमाणाई दुरुहित्ता अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेंति, अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेत्ता अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाइति, अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्धाए चलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाई दीवसमुद्दाई वीतिक्कममाणा वीतिक्कममाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर - सन्निवेसस्स उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए तेणेव भत्तिवेगेण उवट्टिया || अलंकरण - सिवियाकरण-पदं २८. तओ णं सक्के देविंदे देवराया सणियं सनियं जाणविमाणं ठवेति, सणियं सनियं जाणविमाणं ठवेत्ता सणियं सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरति, सनियं-सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरित्ता एगंतमवक्कमेति, एगंमवक्कमेत्ता महया वेव्विणं समुग्धाएणं समोहह्मणति, महया वेउब्विणं समुग्धाएणं समोहणित्ता एगं महं णाणामणिकयरयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं देवच्छंदयं विउव्वति । तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्भदेसभाए एगं महं सपायपीढं णाणामणिकणय आधारचूला २. असियं ( अ, घ, छ, ब) । Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं (भावणा) २३७ रयण भत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं सिंहासणं विउव्व इ, विउव्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ. समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता समणं भगवं महावोरं वदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सणियं-सणियं पुरत्थाभिमुहे सीहासणे णिसीयावेइ, सणियं-सणियं पुरत्थाभिमुहे सीहासणे णिसीयावेत्ता सयपाग-सहस्सपागेहि तेल्लेहि अब्भंगेति, अब्भंगेत्ता गंधकसाएहिं' उल्लोलेति, उल्लोलित्ता सुद्धोदएणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता जस्स जंतपलं स यसहस्सेणंति पडोलतित्तएणं साहिएणं सीतएणं' गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिं पति, अणुलिपित्ता ईसिणिस्सासवातवोज्झं वरणगरपट्टणुग्गयं कुसलणरपसंसितं अस्सलालापेलवं छेयायरियकणगखचियंतकम्मं हंसलक्खणं पट्ट जुयलं णियंसावेइ, णियंसावेत्ता हारं अद्धहारं उरत्थं एगावलि पालंबसुत्त-पट्ट-म उड-रयणमालाई आविधावेति, आविधावेत्ता मंथिम-दिम-परिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परक्खमिव समालंकेति, समालंकेत्ता दोच्चपि महया वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता एग महं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि विउव्वइ, तं जहा-ईहामिय-उसभ-तुरग-गर-मकरविहग-वाणर - कुंजर - रुरु-सरभ-चमर-सद्लसीह-वणलय-विचित्तविज्जाहरमिहण-जूयल-जंत-जोगजुत्तं, अच्चीसहस्समालिणीयं, सूणिरूवित-मिसिमिसित रूवगसहस्सकलियं, ईसिभिसमाण, भिब्भिस माणं, चक्खुल्लोयण लेस्सं, मुत्ताहलमुत्तजालंतरोवियं, तवणोय-पवरलंबूस-पलबंतमुत्तदाम, हारद्धहारभूसणसमोणयं, अहियपेच्छणिज्ज, पउमलय भत्तिचित्तं, 'असोगलय भत्तिचित्तं, कंदलयभत्तिचित्तं" गाणालयभत्ति-विरइयं सुभं चारुकंतरूवं णाणामणिपंचवण्णघंटापडाय-परिमंडियस्गसिहरं पासादीयं दरिसणीयं सुरुवं । संगहणी-गाहा सीया उवणीया, जिणव रस्स जरमरणविप्पमुक्कस्स । ओसत्तमल्लदामा, जलथलयदिव्वकुसुमेहिं ।।७।। १. कासायिएहि (च, छ) । २. णं मुल्लं (अ, घ, च, ब)। ३. सरसीएण (क, घ, च)। ४. लालपेसियं (घ); लालपेलवं (छ); ° लालप्पेसलब (ब)। ५. मसूरियकणयकणयंत° (ध)। ६. X (अ); असोगलयभत्तिचित्तं (क)। ७, सुभं चारुकंतरूवं पासादीयं (अ,क,घ,च,ब)। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ भासुरबोंदी वराभरणधारी । जस्सय मोल्लं सयसहस्सं ॥६॥ अज्भवसागण सोहण' जिणो । आरुहइ उत्तमं सोयं ॥ १० ॥ सिवियाए सज्झयारे, दिव्वं सीहासणं महरिहं, सपादपीढं आलइयमालमउडो, खोमयवत्थणियत्थो, छट्ठे उ भत्तेणं, साहि विसुज्भंतो, सीहासणे णिविट्ठो, सक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं । वीर्यति चामराहिं, मणिरयणविचित्तदंडाहि ॥ ११ ॥ पुव्वि उक्खित्ता, माणुसेहिं साहदुरो मपुल एहि । पच्छा वहंति देवा, सुरअसुर गरुलणागिदा ॥१२॥ पुरओ सुरा वहंती, असुरा पुर्ण दाहिणंमि पामि । अवरे वहति गरुला जागा पुणे उत्तरे पासे ||१३|| वणसंडे व कुसुमियं पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ||१४|| सिद्धत्थवणं व जहा, कणियारवणं व चंपगवणं वा । सोहइ कुसुमभरेण इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥ १५ ॥ वरपड भेरिज्भल्लरि-संखसयस हस्सिएहि तूरेहि । गणतले धरणितले, तुर- णिणाओ परमरम्मो ||१६|| ततविततं घणभुसिरं, आउज्जं चउविहं बहुविहीयं । वायंति तत्थ देवा, वहूहि एहि ||१७|| अभिविखमण-पदं २६. तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढने मासे पढमे पक्खे -- मग्गसिरवहुले, तस्स णं मग्गसिरवहुलस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, 'हृत्थुत्तराहि णक्खत्तेणं'" जोगोवगएणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए' पारिसीए, छद्वेण भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए, चंदप्पहाए सिवियाए सहस्वाहिणीए सदेवमणुयासुराए परिसाए समण्णिज्ज माणेसमणिज्जमार्ण 2 १. ० चित्रइयं (घ) 1 २. खोमिय° (क, छ, व ) । ३. सुंदरे (क, घ, चव) ४. साह (अ, क, च, ब) । वररयणरूवचेवइयं' | जिणवरस्स ||८|| ५. हत्थुत्तर ० ( अ, घ, छ) । ६. बीयाए (छ) 1 ७. ० वाहिणीयाए (क, घ, व) 1 आयारचूला Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अजभयणं (भावणा) २३६ उत्तरखत्तिय कुंडपुर-संणिवेसरस मज्भमज्भेणं णिगच्छर, णिगच्छित्ता जेणेव णायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ईसिरयणिप्पमाणं अच्छुष्पेणं भूमिभागेणं सणियं सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि ठवेइ, ठवेत्ता सणियंसणियं चंद्रभाओ सिवियाओ सहस्सवाहिणोओ पच्चोयर, पच्चोयरिता सणियं सनियं पुरत्याभिमुहे सीहासणे णिसीयइ, आभरणालंकारं ओमुयइ । तओ णं वेसमणे देवे जन्नुव्वायपडिए समणस्स भगवओ महावीरस्स हंस लक्खणं पडेणं' आभरणालंकारं पडिच्छइ ॥ लोय-पदं ३०. तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणंणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेइ ॥ ३१. तओ गं सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स जन्नुव्वायपडिए वयरामण थालेणं साइं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता " अणुजाणेसि भंते " त्ति कट्टु खीरोयसायरं साहरइ ॥ सामाइयचरित-गहण-पदं ३२. तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेइ, करेत्ता, "सव्वं मे अकरणिज्जं पावकम्म" ति कट्टु सामाइयं चरितं पडिवज्जइ, सामाइयं चरितं पडिवज्जेत्ता देवपरिसं परिसंच आलिक्ख - चित्तभूयमिव टुवेइ | संगहणी-गाहा दिव्वो मणुस्सघोसो, तुरियणिणाओ य सक्कवयणेण । खिप्पामेव णिलुक्को, जाहे पडिवज्जइ चरितं ॥ १८ ॥ पडिवज्जित्तु चरितं अहोणिसिं सव्वपाणभूतहितं । साहठूलो मपुलया, पयया देवा निसामिति ॥ १६ ॥ मणपज्जवनाण-लद्धि-पदं ३३. तओ गं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरितं पडिवन्नस्स मणपज्जवणाणे णामं जाणे समुप्पन्ने- अड्डाइज्जेहिं दीवेहिं दोहिय समुद्देहि सण्णीणं पंचेंद्रियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाई भावाई जाणेइ || १. पडिसाडणं (छ) । २. साह० ( अ, क, ब) । ३. मणुस्साणं (छ) । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० आयारचूला अभिग्गह-पदं ३४. तओ गं समणे भगवं महावीरे पन्वइते समाणे मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इम' एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-"बारसवासाइं वोसटकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति', तं जहा-दिवावा, माणुसा वा, तेरिच्छिया बा, ते सव्वे उवसरगे समुप्पणे समाणे 'अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविह्मणवयणकायगुत्ते सम्म सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि ॥" विहार-पदं ३५. तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिगह अभिगिण्हेत्ता 'वोसट्टकाए चत्तदेहे दिवसे मुहत्तसेसे कम्मारं गाम समणुपत्ते ।। ३६. तओ णं समणे भगवं महावीरे वोसटुचत्तदेहे अणुत्तरेणं आलएणं, अणुत्तरेणं विहारेणं, अणुत्तरेणं संजमेणं, अणुत्तरेणं प्रगहेणं, अणुत्तरेणं संवरेणं, अणुत्तरेणं तवेणं, अणुत्तरेणं बंभचेरवासेणं, अणुत्तराए खंतीए, अणुत्तराए मोत्तीए, अणुत्तराए तुट्ठीए, अणुत्त राए समितीए, अणुत्तराए गुत्तीए, अणुत्तरेणं ठाणेणं, अणुत्तरेणं कम्मेणं', अणुत्तरेणं सुचरियफलणिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ३७. एवं विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुपज्जिसु-दिव्वा वा माणुसा" वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पन्ने समाण अणाइले अन्वहिए अदीण. माणसे तिविहमण वयणकायगुत्ते सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। केवलनाण-लद्धि-पदं ३८. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स बारस वासा विइक्कंता, तेरसमस्स य वासस्स परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे-वइसाहसुद्धे, तस्सणं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं, सुब्बएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, हत्युत्तराहि णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, जंभियगामस्स णगरस्स बहिया णईए १. तओण इमं (छ)। २. चियत्त ° (च, छ, ब)। ३. समुप्पज्जति (घ, छ, य)। ४. तेरिच्छा (च, ब)। ५. X (अ, क, घ, च, ब) । ६. वोसटुचत्त देहे (क,घ); कोसट्टचियत्तदेहे (छ)। ७. कुमार (क, घ, च, छ, ब) । ८. कम्मेण (क, घ, च, छ)। ९. °पज्जति (क, घ, व) । १०. माणुस्सा (च)! ११. अद्दीण (अ, घ, च)। Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसम अज्झयण (भावणा ) उजुवालिया' उत्तरे कूले, सामागस्स गाहावइस्स कटुकरणंसि, वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, सालरुक्खस्स अदूरसामंते, उक्कुडुयस्स, गोदोहिया आयावणाए आयावेमाणस्स छणं भत्तेणं अपाणएणं, उड्ढजाणुअहो सिरस्स, धम्मज्भाणोवगयस्स, झाणकोट्ठोवगयस्स, सुक्कज्भाणंतरियाए माणस, निव्वाणे, कसिणे, पडिपुण्णे, अव्वाहए, णिरावरणे, अनंते, अणुत्तरे, केवल वरणाणदंसणे समुप्पण्णे || ३६. से भगवं अरिहं जिणे जाए, केवली सव्वष्णू सव्वभावदरिसी, सदेवमणुयासुररस लोस्स पज्जाए जाणइ, तं जहा -- आगतिं गतिं ठिति चयणं उववायं भुत्तं पीयं कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं लवियं कहियं मणोमाणसियं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावाई' जाणमाणे पासमाणे, एवं च णं विहरइ || देवागमण-पदं ४०. जण्णं दिवस समणस्स भगवओ महावीरस्स णिब्वाणे कसिणे" "पडिपुणे अव्वाहए णिरावरणे अणते अणुत्तरे केवलवरणाणदंसणे • समुप्पण्णे तण्णं दिवसं भवणवइ-वाणमंतर जोइसिय विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य ओवयंतेहि य" • उपयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवज्जोए देव-सण्णिवाते देव कहक्क हे उप्पिजलगभूए यावि होत्या ॥ धम्मोवदेस-पदं ४१. तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमेक्ख पुव्वं देवाणं धम्ममा इक्खति, तओ पच्छा मणुस्साणं ॥ ४२. तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे गोयमाईणं समणाणं णिग्गंथाणं पंच महत्वयाई सभावणाई छज्जीवनिकायाई आइक्खइ भासइ' परूवेइ, तं जहा - पुढविकाए 'आउकाए, तेउकाए, वाउकाए, वणस्सइकाए, तसकाए || २४१ अहिंसामहन्वय-पदं ४३. पढमं भंते ! महव्वयं - पच्चक्खामि सव्वं पाणाइवायं - से सुहुमं वा बायरं वा, तसं वा थावरं वा --- णेव सयं पाणाइवायं करेज्जा, ठेवण्णेहिं पाणाइवायं १. उज्जु ० (घ, ब ) | २. अरहा ( अ, छ, ब ) ; अरहं (क, घ) ३. जाणए (घ, च) ४. भावेणं ( अ ) । ५. सं० पा० - कसिणे जाव समुप्पणे । ६. ओवयतेहि २ ( अ. ब) 1 ७. सं० पा० ओश्यतेहि य लगभूए । ८. भाइ पण्णव (ब) 1 ६. सं० पा०-- पुढविकाए जाव तसकाए । जाव उप्पिज Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ आयारचूला कारवेज्जा, णेवण्णं पाणाइवायं करतं समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।। अहिंसामहन्वयस्स भावणा-पदं ४४. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा-इरियासमिए से णिग्गंथे, णो इरियाअसमिए' त्ति। केवली बूया-इरियाअसमिए से णिग्गंथे, पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा । इरियासमिए से णिग्गंथे, णो इरियाअसमिए त्ति पढमा भावणा।। ४५. अहावरा दोच्चा भावणा–मणं परिजाणाइ से णिग्गंथे, जे य मणे पावए सावज्जे सकिरिए अण्हयकरे छेयकरे भेदकरे अधिकरणिए' पाओसिए, पारिताविए पाणाइवाइए भूओवघाइए-तहप्पगारं मणं णो पधारेज्जा। मणं परिजाणाति से णिगंथे, 'जे य मणे अपावए त्ति दोच्चा भावणा ॥ ४६. अहावरा तच्चा भावणा-वइं परिजाणइ से णिग्गंथे, जा य वई पाविया सावज्जा सकिरिया 'अण्हयकरा छेयकरा भेदकरा अधिकरणिया पाओसिया पारिताविया पाणाइवाइया° भूओवघाइया-तहप्पगारं वइं णो उच्चारिज्जा। जे वई परिजाणइ से णिग्गंथे, जा य वई अपावियत्ति तच्चा भावणा ॥ ४७. अहावरा चउत्था भावणा-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए । केवली बूया-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए से णिग्गंथे पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइ अभिहणेज्ज वा', 'वत्तेज्ज वा, परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा°, उद्दवेज्ज वा, तम्हा आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए त्ति चउत्था भावणा !! ४८. अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गथे, णो अणालोइय पाणभोयणभोई। केवली बूया- अणालोइयपाणभोयणभोई से णिगंथे पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताई अभिहणेज्ज वा', 'वत्तेज्ज वा परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा, तम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गथे, जो अणालोइयपाण भोयणभोई त्ति पंचमा भावणा ॥ १. अइरियासमिए (अ);अणइरियासमिते (छ)। ४. सं० पा०-सकिरिया जाव भूओवघाइया । २. अहिगरणकरे कलहकरे (घ, वृ)। ५. सं० पा०-अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज । ३. णो जे अमणे पावए (च)। ६. सं० पा०-अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतरसमं अज्झयणं (भावणा) २४३ ४६. एतावताव महब्बए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्टिए आणाए आराहिए यावि भवइ । पढमे भंते ! मह पर पाणाइवायाओ वेरमणं ।। सच्चमहन्वय-पदं ५०. अहावरं दोच्चं भंते ! महन्वयं - पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं वइदोसं -से कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, व सयं मुसं भासेज्जा, णेवण्णेणं मुसं भासावेज्जा, अण्णं पि मुसं भासंतं ण समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं---मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि' निंदामि गरिहामि अप्पाण' बोसिरामि ।। सच्चमहव्वयस्स भावणा-पदं ५१. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा --अणवीइभासी से णिग्गंथे, णो अणणुवीइभासी! केवली बूया-अणणुवी इभासी से णिग्गंथे समावदेज्जा मोसं वयणाए । अणुवीइभासी से णिग्गंथे, णो अणणुवीइभासित्ति पढमा भावणा॥ ५२. अहावरा दोच्चा भावणा-कोहं परिजाणइ से णिग्गंथे, जो कोहणे सिया । केवली बूया -कोहपत्ते कोही समावदेज्जा मोसं वयणाए । कोहं' परिजाणइ से णिगंथे, ण य कोहणे सियत्ति दोच्चा भावणा॥ ५३. अहावरा तच्चा भावणा--लोभ परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य लोभणए सिया। केवलो बूया-लोभपत्ते लोभी समावदेज्जा मोसं वयणाए । लोभं परिजाणइ से णिगंथे, णो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा ॥ ५४. अहावरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो भयभीरुए सिया । केवली बूया-भयप्पत्ते भीरू समावदेज्जा मोसं वयणाए। भयं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य भयभीरुए सियत्ति चउत्था भावणा ॥ ५५. अहावरा पंचमा भावणा-हासं परिजाणइ से गिग्गंथे, णो य हासणए सिया। फेवली बूया -हासपत्ते हासी समावदेज्जा मोसं वयणाए। हासं परिजाणइ से णिगंथे, णो य हासणए सियत्ति पंचमा भावणा ।। ५६. एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए' पालिए तीरिए किट्टिए अवदिए । आणाए आराहिए यावि भवति । दोच्चे भंते ! महत्वए' 'मुसावायाओ वेरमणं ।। १. सं० पा०-पडिक्कमामि जाव वोसिरामि। ४. सं० पा०–फासिए जाव आणाए। २. ° वज्जेज्जा (क, घ, च, छ, ब)। ५. सं० पा०—महव्वए। ३. कोवं (च, ब)। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ अते गमहत्वय-पदं ५७. अहावरं तच्चं भंते ! महवयं--पच्चक्खामि सव्वं अदिण्णादाण - से गामे वा, गरे वा, अरण्णे वा अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा व सयं अदिण्णं गेण्हिज्जा, ठेवणेहिं अदिष्णं गेण्हावेज्जा, अण्णंपि अदिणं हतं न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए' 'तिविहं तिविहेणं - माणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं • वोसिरामि ॥ अते गमहव्वयस्स भावणा-पदं ५८. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा--: | - अणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे, णो अणणुवी इमिओग्गहजाई । केवली बूया - अणणुवी इमि ओहजाई से णिग्गंथे, अदिण्णं गेण्हेज्जा । अणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे, अणुवीमि ओगहजाई ति पढमा भावणा ॥ ५६. अहावरा दोच्चा भावणा अणुण्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणुण्णविपाणभोयणभोई । केवली बूया -अणणुष्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे अदिण्णं भुजेज्जा', तम्हा अणुष्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणुष्णविपाणभोयणभोईत्ति दोच्चा भावणा ।। आयारचूला I ६०. अहावरा तच्चा भावणा - णिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्यहियंसि एतावताव ओग्गहसीलए सिया । केवली बूया - णिग्गंथे णं ओग्गहंसि अणोग्ग हियंसि एतावताव अणोहणसीलो अदिण्णं ओगिव्हेज्जा । णिग्गणं ओगहंसि ओग्गहियंसि एतावताब ओग्गहणसीलए सियत्ति तच्चा भावणा || ६१. अहावरा चउत्था भावणा -- णिग्गंथे णं ओग्गहसि ओग्गहियंसि अभिक्खणंअभिक्खणं ओग्गहणसीलए सिया । केवली बूया - णिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं अभिक्खणं अणोग्गहणसीले अदिण्णं गिण्हेज्जा | सिंथे ओहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं - अभिक्खणं ओग्गहणसीलए सियत्ति चउत्था भावणा || ६२. अहावरा पंचमा भावणा- अणुवोइमितोग्गहजाई से णिग्गंथे साहम्मिएसु, जो arratoमिओ हजाई । केवली बूथा अणणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे साहम्मिसु अदिणं ओगिण्हेज्जा । अणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे साहम्मिसु, णो अणुवीsमिओग्गहजाई–इइ पंचमा भावणा ॥ ६३. एतावताव महम्वए सम्म' 'काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्टिए • १. सं० पा० - जावज्जीवाए जाव वोसिरामि । २. गिव्हेज्जा (घ ) । ३. सं० पा०सम्मं जाव आणाए । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं (भावणा) २४५ आणाए आराहिए यावि भवइ । तच्चे भंते महब्बए' 'अदिण्णादाणाओ वेरमणं ।। बंभचेरमहन्वय-पदं ६४. अहावरं चउत्थं भंते ! महब्वयं--पच्चवखामि सव्वं मेहुणं-से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, णेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा,' 'णेवण्णेहि मेहुणं गच्छावेज्जा, अण्णंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविह तिविहेणं-- मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।। बंभचेरमहव्वयस्स भावणा-पदं ६५. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा... णो णिग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया । केवली बूया-णिग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । णो णिग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कह कहित्तए सियत्ति पढमा भावणा।।। ६६. अहावरा दोच्चा भावणा- णो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराई' इंदियाई आलोएत्तए णिज्माइत्तए सिया। केवली बूया-णिग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराई इंदियाई आलोएमाणे णिज्झाएमाणे, संतिभेया संतिविभंगा' 'संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। णो णिगंथे इत्थीणं मणोहराइं इंदियाइं आलोएत्तए णिज्झाइत्तए सियत्ति दोच्चा भावणा ॥ ६७. अहावरा तच्चा भावणा-णो णिगथे इत्थीणं पुन्वरयाई पुश्वकीलियाई सरित्तए' सिया। केवली बूया--णिग्गंथे णं इत्थीणं पुवरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे, संतिभेया' 'संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा। णो णिगंथे इत्थीणं पुव्वरयाइं पुष्वकीलियाई सरित्तए सियत्ति तच्चा भावणा।। ६८. अहावरा चउत्था भावणा-णाइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो पणीयरस भोयणभोई । केवली बूया-अइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे पणीयरसभोयणभोई ति, संतिभेदा 'संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ • भंसेज्जा । १. सं० पा०-महव्वए। २. सं० पा० ---गच्छेज्जा तं चेव अदिण्णादाण- वत्तव्वया भाणियम्वा जाव वोसिरामि । ३. मणोहराई २ (क, घ); मणोहराइ रुवाई मणोहराई (छ)। ४. सं० पा०--सतिविभंगा जाव धम्माओ। ५. सुमरित्तए (अ, क, घ, छ, ब)। ६. स. पा.---संसि भेया जाव भसज्जा । ७. सं० पा०-संतिभेदा जाव भंसेज्जा। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ आयारचुला णो अतिमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे णो पणीयरसभोयणभोई त्ति चउत्था भावणा ॥ ६६. अहावरा पंचमा भावणा-णो णिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सिया । केवली बूया - णिग्गथे णं इत्थीप सुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवेमाणे, संतिभेया' 'संतिविभंगा संतिकेवली पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा | णो णिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा ॥ ७०. एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्टिए आणाए • आराहिए यावि भवइ । चउत्थे भंते ! महव्वए' मेहुणाओ वेरमणं ॥ अपरिग्रहमहन्वय-पदं ७१. अहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं सव्वं परिग्ग पच्चक्खामि - से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा णेव सयं परिग्गहं गिण्हेज्जा, वष्णेहि परिग्गहं गिण्हावेज्जा, अण्णपि परिम्यहं गिव्हतं ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं - मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं • वोसिरामि || अपरिग्रह महव्वयस्स भावणा-पदं ७२. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा - सोयओ' जीवे मणुणामणुष्णाई सद्दाई सुणेइ । मणुण्णा मणुष्णेहि सद्देहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्भेज्जा, णो मुज्भेज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिग्धायमाज्जेज्जा । केवली बूया - णिग्गंथे णं मणुण्णामणुष्णेहि सद्देहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्धायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । ण सक्का ण सोउं सद्दा, सोयविसयमागता । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ||२०|| सोओ जीवो मणुष्णामणुण्णाई सद्दाइ सुणेइ त्ति पढमा भावणा ॥ ७३. अहावरा दोच्चा भावणा- - चक्खूओ जीवो मणुण्णामणुष्णाई रुवाई पासइ । १. सं० पा० - संतिभेया जाव भंसेज्जा | २. सं० पा० - फासिए जाव आराहिए। ३. सं० पी० - महत्वए । ४. पच्चा इक्खामि ( अ, क, घ, च) । ५. सं० पा० - समणुजाणिज्जा जाव वोसिरामि ६. सोतत्ते ( अ, क, छ, ब) 1 ७. तं ( अ, क, घ, ब ) । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं (भावणा) २४७ मणुण्णामणुष्णेहि रूवेहिं णो सज्जेज्जा, पो रज्जेज्जा', 'णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिग्यायमावज्जेज्जा । केवली बयानिगंथे णं मणुग्णामणुण्णेहिं रूवेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे' गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्यायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा' *संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा । णो सक्का रूवमदर्छ, चक्खुविसयमागयं । 'रागदोसा उ जे तत्थ, ते" भिक्खू परिवज्जए ॥२१॥ चक्खूओ जीवो मणुग्णामणुण्णाई रूवाई पासइ त्ति दोच्चा भावणा ॥ ७४. अहावरा तच्चा भावणा-घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई गंधाई अग्घायइ। मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा', *णो गिज्झज्जा, णो मुझेज्जा, णो अझोववज्जेज्जा, णो विणिग्यायमावज्जेज्जा। केवली ब्रूया-.. निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्यायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा' 'संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। णो सक्का [ गंधमग्घाउं, णासाविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए॥२२॥ घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं गंधाइं अग्घायति त्ति तच्चा भावणा ।। ७५. अहावरा च उत्था भावणा—जिब्भाओ जीवो मणुग्णामणुण्णाई रसाइं अस्सादेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं रसेहि णो सज्जेज्जा", *णो रज्जेज्जा, णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा , णो विणिग्घायमावज्जेज्जा । केवली ब्रूयाणिग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहि रसेहिं सज्जमाणे 'रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेदार संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा। णो सक्का रसमणासाउं, जीहाविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥२३॥ जीहाओ जीवो मणुण्णामणुग्णाई रसाइं अस्सादेइ त्ति चउत्था भावणा ।। १. सं० पा०-रज्जेज्जा जाव णो। २. सं० पा०-रज्जमाणे जाव विणिग्धाय । ३. सं० पा०-संतिविभंगा जाव भंसेज्जा । ४. रामो दोसो उ जो तत्थं, तं (अ, क)। ५. सं० पा०--रज्जेज्जा जाव णो। ६. सं० पा.-रज्जमाणे जाव दिणिग्याय । ७. सं.पा.-.-संतिविभंगा जाव भंसेज्जा । ८. सक्को (छ)। ६. X (अ, क, च, ब)। १०. सं० पा०--सज्जेज्जा जाव णो। ११. सं० पा०--सज्जमाणे जाव विणिग्धाय । १२. सं० पा०-संतिभेदा जाव भंसेज्जा। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ आयारचूला अहावरा पंचमा भावणा-फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई फासाई पडिसंवेदे। मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झेज्जा, णो मुझेज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिग्यायमावज्जेज्जा । केवली बूयाणिग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिं सज्जमाणे 'रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे° विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। णो सक्का ण संवेदेउं, फासविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ।।२४।। फासओ जीवो मणुण्णाभणुण्णाई फासाई पडिसंवेदेति त्ति पंचमा भावणा ।। ७७. एतावताव महब्बए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्टिए' आगाए आराहिए यावि भवइ । पंचमे भंते! महब्बए' 'परिग्गहाओ वेरमणं० ।। ७८. इच्चेतेहिं महन्वएहिं, पणुवीसाहि य भावणाहिं संपण्णे अणगारे अहासुयं अहाकप्पं अहामग्गं सम्म काएण फासित्ता, पालित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता आणाए आराहित्ता यावि भवइ। –त्ति बेमि ।। १. सं० पा०-सज्जमाणे जाब विणिग्घाय । त्रापि 'अवट्टिए' इति पाठो युज्यते, तेन स २. अहिटिए (अ, क, घ, च, छ, ब); प्रथम स्वीकृतः । महात्रतसूत्रे (४६) 'किट्टिए अवट्ठिए' इति ३. सं० पाo-महन्वए"। पाठोस्ति, अब 'किट्टिए अहिटिए' इति पाठो ४. पण ° (छ, ब)। लभ्यते, किन्तु उक्तसूत्रस्य वृत्तश्चानुसारेणा Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणिच्च-पद १. ३. पव्य-दिट्ठत-पदं २. तहागअं भिक्खुमणंतसंजय, तुदति वायाहि अभिद्दवं णरा, तहप्पगारेहिं जणेहिं हीलिए, तितिक्खए णाणि अदुट्ठचेयसा, रुप- विट्ठत-पदं ४. उहमाणे कुसले हिं संवसे, अकंतदुक्खी तस्थावरा दुही। अलूसए सम्वसहे महामुनी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए | विदू णते धम्मपयं अणुत्तरं विणीयतण्हस्स मुणिस्स झाओ । समाहियस्सऽग्मिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वड्डइ || दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू सियरा उदीरिया, सितेहि भिक्खू असिते परिव्वए, afra लोगमिण तहा परं, तमं व तेजो तिदिसं पगासया ॥ असज्जमित्थीसु चएज्ज पुणं । ण मिज्जति कामगुणेहिं पंडिए ॥ ५. ६. ७ सोलसमं अभयणं विमुत्ती अणिच्चमावास मुर्वेति जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं । विऊसिरे' विष्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए ॥ अणेलिसं विष्णु चरंतमेसणं । सरेहि संग्रामगयं व कुंजरं ॥ ससद्दफासा फरुसा उदीरिया । गिरिव्व वाएण ण संपवेवए || १. विउ (क, च, व ) ; वियो (घ); °षिओ (छ) । ० २४६ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ८. तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो | विसुभई जंसि मलं पुरेकर्ड, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा' ।। भुजंगलय- दिट्ठत-पदं ε. से हु परिष्णा समयमि वट्टइ, भुजंगमे जुष्णतयं जहा जहे, समुद्द-विट्ठत पदं १०. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, ११. जहा हि बद्धं इह 'माणवेहिय", अहाता बंधविमो जे विऊ, १२. इमभि लोए 'परए य दोसुवि", से ह णिरालंबणे अप्पइट्ठिए, १. जोइणो ( अ, घ, ब ) । २. मेहुणा (क, वृ) 1 ३. चए (घ ) । णिराससे विमुच्चइ से उवरय- मेहुणे' चरे । दुहसेज्ज माहणे || महासमुद्दे व भुयाहि दुत्तरं । से हु मुणी अंतकडे त्ति बुच्चइ ॥ जहा य तेसि तु विमोक्ख आहिओ । से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ ण विज्जइ बंधण जस्स किंचिवि । कलंकली भावपहं विमुच्चइ || ग्रन्थ- परिमाण कुल अक्षर - ६६६१० अनुष्टुप् श्लोक - ३००६, अक्षर १८ ४. व ( अ, क, ब ) । ५. माणवेहिं ( अ, क ) । ६. परलोयते सुवि (च) । आयारचूला -fa afa 11 Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टः Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल आयारो पूर्त-स्थल ११३ ८।९५,६६,१२३,१२४ ५०१०१ पूर्ति प्राधार-स्थल १११ ८.७८,८० ५।१०१ संक्षिप्त-पाठ, अहमसी जाव अण्णयरीओ आगममाणे जाव समत्तमेव एवं जं परिघेतव्वं ति, मन्नसि जं एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए नहाए ण्हारुणीए अट्ठीए अट्टिमिजाए अट्ठाए अणट्टाए गामं वा जाव रायहाणि जाएज्जा जाव एवं धारेज्जा जाव गिम्हे परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था समारभ जाव चेएइ १।१४० ८।१२६ ८६४-६७ ८.८८-६२ पा२३ १११४० ८.१०६ ८४४-४८ ८।४६-५० ८।२१ सा२३ ८।२४ ४११० २१२२ आयारचूला अंतलिक्खजाए जाव णो ५२३७,३८ अकिरियं जाव अभूतोवघाइय ४।११ अक्कोसंति वा जाव उद्दवति ३१६१ अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य जहा सिज्जाए आलावगा णवर ओग्गहवत्तव्वया ७१६-२० अक्कोसेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज ३६ अणुवयंति तं चेव जाव णो सातिज्जति बहुवयणणं भाणियन्वं ५१४७ २१५१-५५ रा२२ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११२ १:४ १४ ११४ ११४ २।२२ १११५५ ७२७,२८ १६१७ १।१७:११४ श१७ १।१७ २८ १।१२ २२ अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए ३.१३ अणेसणिज्ज जाव णो १।१७,६३,१०६,१३६ असणिज्जं जाव लाभे १।१०८,१२१ अणेसणिज्ज.."णो श२१ अणेसणिज्ज"लाभे ११८५,९७,८।१६।१ अणेसणिज्ज"लाभे संते जाव' णो १४१३५ अण्णमण्णमक्कोसंति वा जाव उद्दवेंति २०५१ अण्णयरं जहा पिंडेसणाए ७१५६ अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव ७४३४,३५ अपरिसंतरकडं जाव अणासेवितं ११२१,११२ अपुरिसंतरकडं जाव णो १।२४ अपरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं वा... अन्नयरंसि १०६ अपूरिसंतरकडे जाव अणासेविए (ते) २।१०,१२ अपुरिसंतरकडे जाव णो २११४,१६ अपूरिसंतरकडे वा जाव अणासे विते २१३ अप्पंडए जाव संताणए १।१३५ अप्पंडं जाव पडिगाहेज्जा अतिरिच्छच्छिन्नं तिरिच्छच्छिन्न नहेव ७१३७,३८ अप्पडं जाव मक्कडा ६२ अप्पंडं जाव संताणगं (य) रा५८-६१,६६,५।२६,३०,७४२७,२८,३०,३१,३४ अप्पंडा जाव संताणगा ११४३,३१५ अप्पडे जाव चेतेज्जा २१३२ अप्पापाणं जाव संताणगं २०२ अप्पपाणंसि जाव मक्कडा १०।२८ अप्पवीयं जाव मक्कडा १०१३ अप्पुस्सुए जाव सयाहीए ३1२६,५९,६१ अफासुयं जाव णो १११२,६४,८२,८३,८७,६२,६६, १०७,११०,१११,१२८,१३३; २१४८,५।२२,२३,२५,२८,२६; ६।२६,४६,७।२६,२७,२६,३० अफासुय जाव लाभे १११०६ अफासुयं 'लाभे ११८४,१०२,१०४,१२३ अफासुयाई जायणो ६।१३,१४ १. अत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते। ७।३०,३१ १२ श२ १२ १२२ ३१२२ १४४ ११४ ११४ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ ५।२३-२५ १२३ १५६४४ ६१२२-२५ ५।२४ १५१४७,४८ २११६,४६ ३३११ ६।१४ ११६२ ११९० ११३६,४१,८८,६१ १।११३,११५-११६ ४/२२ श५८ ३९,१० ६४१३ १२९७ ११४ १४ १९२११४ ४।११ अब्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणाइ सहेव सीओदगादि कंदादि तहेब अभिकख सि सेसं तहेव जाव गो अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज अयं तेण तं चेव जाव गमणाए अयवंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि असणं वा ४ अफासुयं असणं वा ४ जाव लाभे असणं वा ४ लाभे असत्थपरिणयंजाव णो असावज्जं जाव भासेज्जा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियसमुहिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समूहिस्स अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणोओ समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे समणमाहण पगणियपगणिय समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव उद्देसिय चेतेति, तहप्पगार थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अयुरिसंतरकडं वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा आश्मणाणि वा जाव भवणगिहाणि आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु आगंतारेसु वा जावोग्गहियंसि आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज आयरिए वा जाय गणावच्छेइए इक्कडे वा जाव पलाले ईसरे जाव एवोग्गहियसि उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेइएण एवं अतिरिच्छच्छिन्ने वि तिरिच्छच्छिन्ने जाव पडिगाहेज्जा एवं आउतेउवाउवणस्सइ १०१४-८ ३.४७ २॥३४,३५ ७:४६,४७ ३१३६६।४८ १११३१ २१६५,७१५४ ७३२,३३ २१७२ १।१२-१६ ३३५४ २०३६ रा३३ ७।२३,२४ ११५१ १११३० २०६३ ७।२५,२६ १११३० ७.४४,४५ २१४१ ७१३०,३१ २।४१ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।२-१७ १६८ ४।१६ ११॥५-२० १६२ ४११६ २१४,५,६ २३ २०१३-१८ एवं णायव्वं जहा सद्द-पडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रूव-पडियाए वि एवं तसकाए वि एवं पादणक्ककण्णउच्छिन्नेति वा एवं बहवे साहम्मियया एग साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ बहवे समणमाहणस्स तहेव, पुरिसंतरं जहा पिंडेसणाए एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावगा भाणियव्या एवं बहिया विचारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम दूइज्जेज्जा अहपुणेवं जाणेज्जा तिबदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सब्वं चीवरमायाए एवं वहिया बियारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणगाम दूइज्जेज्जा । तिव्वदेसियादि जहा बिइयाए वत्थेसणाए णवरं एत्थ पडिग्गहे एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगपर १२१२ ५१४३-४५ १३८-४० ६१५१-५८ ५२४३-५० याई ति ८१२-१५ २१२-१५ २।३-१५ १३.३-३८ ११५ .... एवं सेज्जागमेणं गेयव्वं जाव उदगप्पसूयाइंति एवं हिट्रिमो गमो पायादि भाणियब्वो एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा एसणिज्जं जाव लाभे एसणिज्ज"लाभे एस पइन्ना "जं ओवयंतेहि य जाव उप्पिजलगभूए कंदाणि वा जाव बीयाणि कंदांणि वा जाव हरियाणि कसिणे जाव समुप्पणे १३१४०-७५ १।१८,२३,२०६४ १७,१४३ २।६३६२ ६।२८,४५ १५४० .१०।१५ ५।२५ १५४० १९५६ १५ २१४ २०१४ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुट्ठीति वा जाव महुमेहणी कुलियंसि वा जाव णो खंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे जाव णो खलु जाव विहरिस्सामो मंडे या जान भगंद गच्छेजा जाव अपुत्सुए ती गच्छेजा जाय गाभाणुनाम गच्छेज्जा तं चैव अदिण्णादाणवत्तव्वया भाणियध्वा जाव वोसिरामि गामं वा जाव गामं वा जाव रायहाणि गामंसि वा जाव रायहा रणिसि गामे वा जान रायहाणी माहावई वा जाव कम्मकर गाहाबद-कुल जान पविद्वे गाहाव- कुलं जाव पविसितुकामे गाहाब- कुलं पविसितुकामे गाहावई वा जाव कम्मकरीओ गोलेति वा इत्पी गमेणं तवं छत्तए वा जाव चम्म छेदणए छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं जनसाणि वा जाब सेणं जहा पिंडेसणाए जाव संचारण जाएजा जाव परिगाज्जा जाएजा जाव विहरिस्सामो जावज्जीवाए जाव वोसिरामि जीवपट्टियंसि जाब मक्का झामथंडिलंसि वा जाव अण्णयरसि झामथंडिलसि वा जाव पमज्जिय ठाणं तेज्जा ठाणं वा जाव चेतेज्जा जगरं वा जाव रायहाणि ५ ** ७/१२ ७११३२ ७ २५ १३०३०-३३ ५४८ ५४६ १५।६४ ७२ ११३४,१२२:२११:३१२:६११ १०३४, १२२,३१२ ३:४५, ५७ ११६३,५११८६११७ १।१६,१७ ११८,४४ १/३७ ११२१, १२२, १४३; २।२२,३६,५१७१६ ४/१४ ७१२४ ३।२४ ३१५६ २।१२ १।१४५: ५। १९६०१६, १७ ७१४६ १५।५७ १०।१४ १५/१५/३६ १।१३५ २२८,२६ २१२७.५१-५५ ८१ आयारो ६८ ५। ३७ ५३८ ७।२३ १३।२८ ३।५९ २०५१ १५।५७ ११२८ ११२८ ११२८ ११२८ १२५ ११ १११६ tree ११४६ ४१२ २४६ २।४६ ३१४३ १।२६ १।१४१ ७/२२ १५४४३ १५१ ११३ १।३ २।१ २१ ११२५ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगरस्स वा जाव रायहाणीए णिक्खमणपवेसाए जाव धम्माणुओग तं चैव भाणियव्वं गवरं चउत्थाए ret से भिक्खू वा जाव समाणे सेज्जं पुण पाणग जाय जाणेज्जा तंजहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा अस्सि खलु परिगहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तहेव पडिगाज्जा तहप्पगार जाव णो तहप्पगाराई णो तहप्पगाराई सहाई णो तव तन्निवि आलाधगा गवर लहसुन दंडगं वा जाव चम्म छेदणगं दस्सुगायतणाणि जाव विहारखत्तियाए दुब्बद्धे जाव णो देज्जा जाव पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासूयं पडिगाहेज्जा देज्जा जाव फासूर्य लाभे दोहिं जाव सष्णिसिष्णिचयाओ निक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु० निक्खिवाहि जहा इरियाए णाणत्तं वत्थपडियाए पइण्णा जाव जं परिज्भिय जाव णिज्भाएज्जा पक्किमामि जाव वोसिरामि पमि जहा पिंडेसणाए परिमाणं जहा पिंडेसणाए पडिमा जाव पर हियतरागं पडिवज्जमाणे तं चैव जाव अण्णोष्णसमाहीए १२. यत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते । ६ ३१५८ ७११४ १११४८-१५४ ११११४ ११।१२-१४,१६ १११७-११,१५ ७१३६-४२ ७३ ३६ ७।११ १११४४ १।१४७ ५।१८ ११२४ ३२ ५३५० २११६,२२,६२८, ४५ ३४८, ४६ १५५० ६/२० ५२१ ८२१-३० २/६७ ११२८ ११४२ १।१४१-१४७ ११४,६२ १११५ ११॥५ ७।२५-२८ २४६ ३१८ ५/३६ १११४१ ११४१ १११४१ १।२१ १४२ ३/६१ १।५६ ३४७ १५।४३ १।१५५ ११५५ २/६७-७६ १/१५५. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णस्स जाव चिताए मज्जेत्ता जाव एवं परक्कमे जाव णो पागाराणि वा जाव दरीओ पापिहिमा जान आउगंतो पाणाई जहा पिडेसणाए पावाद जहा पिटेसणाए पसारि आलावा | पंचमे बहवे समणमाहणा पणिय-गणिय तब से भ वा २ अस्संजए भिक्खुपहियाए बहवे सममणा वत्थेसणाला ओ पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज पायं वा जाव इंदिय पायं वा जाव भेज्ज पिया जाव चाललंय पुढविकाए जाव तसकाए पुढबीएजाय संताणए पुरिसंतरकड जान आसे वियं पुरिसंतरकडं जाव पडियाहेजा पुरिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं अण्णयरंसि पुरिसंतरकडे जाव आसेविए पुरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा योवा जायतेजा ज्योदिट्टा नाक जं पुव्ववदिट्ठा जाव णो पेहाए जाव चित्ताचिल्लड फलिहाणि वा जाव सराणि फासिए जाव आणाए फासिए जाब आराहिए फासुयं जाव पडिगाहेज्जा फासूर्य पहिगाहेग्ना फासुर्य लाभे संते जाव' पडिगाहेज्जा बहुकंटगं लाभे संते जाव' मो २१५०-५६७।१५,२१ १२. प्रत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते । ३।३४ ३७ ३।४७ ३५७ ५।५ ६१४- १२ २/७१ २१४६ २७१ ११७, १४४ १५।४२ १०१०२५ ३५७ १० १।२२ ५।१३ १०/१० २६.११,१३ २।१५.१७ २१३० १।११:२।२३, २४, २५, २७, २८, २१:३१,१३,४६,५।२७ १/६५ ३।५६ ११.५ १५।५६ १५/७० ११२२,२५,८१,१००, १४६:५।२०, ३०,७२८, ३१ ik १११०१,१२८५११८ १।१३४ ११४२ ३।१५ ३६ २०४१ ३५४ १९२ १।१२- १८,५१५-१३ ११८८ 2155 १८६ १६ २४१ १।५१ १।१८ ५१११ १।१८ १/१८ २६ २।२७ ११५६ १६१ २०५२ नि० १७१४१ १५४९ १५३४९ १३५ १।५ १५ ११४ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३॥४ १२२ १२२ बहुपाणा जाव संताणगा बहुवीया जाव संताणगा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब भगवंतो जाव उवरया भिक्खुगी वा जाव पबिट्रे १२६ ३३१ ११८२ २।२५ ११५,६,७,११,१२,४२,६२,६२,६६,६६, १०१,१०४,१०५,१०७-१०६,१११ १।१२१ ११ १२९३,६४ शहर भिक्खूणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्रियं तह चेव । एवं अगणिकायपइद्रियं लाभे भिक्खू वा जाव पग्गहिय. भिक्खू वा जाव पविढे भिवत्र वा २ जाव सद्दाई भिक्खू वा जाव समाणे १११४५ ११२३,४६,५०,५२ ११०२ १३५३,५५,५८,६१,८३,८४,८७,८६, ६०,६७,१०२,१०६,११०,११२-११६, १२४,१२५,१२६,१३५,१३६, १४५,१४७,१५१ ११.१४,१५ ११८२,१२८,१३३,१३४,१४४ ५२७ ११ ११ रा२४ ४।२५ १२१४२ भिक्खू वा २ जाव सुणेति भिक्खू वासेज्ज मणी वा जाव रयणावली मणुस्सं जाव जलयर मत्ते तहेव दोच्चा पिंडेसणा महद्धणमोल्लाई.."लाभे महन्वए" मासेण वा जहा वत्थेसणाए मूलाणि वा जाव हरियाणि रज्जमाणे जाव विणिग्घाय रज्जेज्जा जाव गो लाढे जाव णो वएज्जा जाव परोक्खवयणं वत्थाणि..'लाभे वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि वायण जाव चिताए वित्ती जाव रायहाणि सअंडं जाव णो १५१५६,६३,८४,९१ ६१२१ १०११२ १५७३,७४ १५०७३,७४ ३१२ ४४ ५१५ ४।२१ २०४६ १११४१ १६४ १५१४६ श२२ २।१४ १५१७२ १५१७२ ३ ४१३ ११४ ३१४७ ३।३ ७.३३ १४३,३१२ ७।२६ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७.२६ १२ १२२ ५।२८-३४ ११२ १५०६५ १५।६५ ११५ १५१४५ १५७२ १५२७२ सअंडं जाव णो ७१३६,४३ सअंडं जाव मक्कडा ८।१६।१ सअंडं जाव संताणयं (गं) २।१,५७,६८,५।२८,७१२६,२६ सअंडादि सब्बे आलावगा जहा वत्थेसणाए णाणत्तं तेल्लेण वा धएण वा णवणीएण वा बसाए वा सिणाणादि जाव अग्णयरसि वा ६२६-४२ सअंडे जाव संताणए संतिभेया [दा] जाव भंसेज्जा १५॥६७,६८,६९,७५ संतिविभंगा जाव धम्माओ संतिविभंगा जाव भंसेज्जा १५५७३,७४ संथारगं."लाभे २।५७,५८,५६,६० संथारयं जाव लाभे सकिरिया जाव भूओवघाइया १५:४६ सज्जमाणे जाव विणिग्घाय १५।७५,७६ सज्जेज्जा जाव णो १५७५ सत्ताई जाव चेएइ तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए २१७,८ सपाणं जाव मक्कडा १०१२ सपाणे जाव संताणए १३५१ समण जाव उवागया समणमाहण जाव उवागमिस्संति ११४३ समगुजाणिज्जा जाव वोसिरामि समारंभेणं जाव अगणिकाए २०४२ सम्म जाव आणाए १५१६३ सयं बा जाव पडिगाहेज्जा सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा ६।१६ ससिणिद्धेण सेसं तं चेव एवं ससरक्खे मट्टिया ऊसे, हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे गेरुय वणिय सेडिय, पिटु कुक्कस उक्कुट्ट संसद्वेण ११६५-८० सामग्गिय १६४८,६०,८६,१०३,१२०,१२६,१३७; २।२६,४३ सामग्गियं ३.४६५१४०,५१७१२२,५८ सामग्गियं जाव जएज्जासि ८१३१,१०।२६।११।२० १।१६,१७ ३१२ ११४२ १५१४३ २१४१ १५१४६ १११४१ १३१४१ १६६४ ११२० २।७७ २।७७ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साव जान पो सिणामेण वा जाव आपसित्ता सिणाणेण वा जाव पसेज्ज सिणाणेण वा तहेव सीओदगवियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा आलावओ सिया जाव समाहीए सिलाए जाव मक्कडासं ताणए सिलाए जाव संताणए सीओदन वियद्वेण वा जाव पधोएग्ज सीलमता जाव उबरया से आगतारेसु वा जाव सेसं तं चेत्र, एयं खलु० जइज्जासि हत्थं जाव अणासायमाणे हत्थं वा जाव सीसं हस्थिजुद्धाणि वा जाब कविजल हरियाणकरणाणि वा जाव कविजल अकेवले जाव असवदुक्स ० अकोहे जाव अलोभे अण्णा जाव परक्कमण्णू अगाराज जाव पव्वइत्तए अन्भारोहसंभवा जाव कम्माणियाण अणारिए जाव असय्यदुक्ख ० अणारिया वेगे जाव दुरुवा अणि जाव णो सुहं अणिट्टाओ जाव णो सुहाओ अमिट्टे जाव णो सुहे अणिट्टे जाव दुक्खे अणपुट्टिए जाब पि अपुट्टियं जाय पढिस्यं अणुपुब्वेणं जाव सुपण्णत्ते अगभवणसयस णिविद्रा जान पटिरुवा अपच्छिम जाव विहरितए १० ४२१ ५।२३ ५।३१ ५०३३,३४ ३।४४ ११८२ १८३ ५/३२ ३८ ७१६,८ १४/३-८० ३५०, ५२ २।१६ ११.१२ ११।११ सूयगडो २५७,६२ ४|२४ १२६,१० ७/२१ ३०७,८,१ २/७५ १४९ १।५१ ११५१ १५१ १।५१ १५ (10,5,2 १।२३-२५ ७२ ७२६ ४१० २।२० २।२१ ५३१,३२ ३।२६ १ ५१ ११५१ २१२१ १।१२१ ७४ १३।३-५० २७४ १८५ १०।१८ १०।१८ २३२ २/५८ १८ ७/२० ३।२ ३।३२ १।१३ १६५० 2120 ११५० ११५० १३ ११६ १।१३-१५ ७५ ७/२१ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ २०५८ २।७२ २।२४ २१५८ अपत्ते जाव अंतरा १११० अपत्ते जाव सेयंसि १६ अप्पडिविरया जाव जे यावण्णे २२७१ अभिगयजीवजीवे जाव विहरइ ७.४ अवहरइ जाव समणुजाणइ २।२५,२६,३० अहम्मिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वाओ परिगहाओ ७२२ अहावर पुरक्खायं इहेगइया सत्ता तेहिं चेव (१) पुढविजोणिएहिं रुक्खेहि (२) रुक्खजोणिएहि रुक्खेहि (३) रुक्खजोणिएहिं मूलेहि जाव बीएहि (४) रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहि (५) अज्झोरुहजोणिएहिं अज्झोरहेहि (६) अज्झोरुहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं (७) पुढविजोणिएहि तणेहिं (८) तण जोणिएहिं तणेहिं (६) तणजोणिएहि मूर्ताह जाव बीएहिं (१०-१२) एवं ओसहीहिं वि तिण्णि आलावगा' (१३-१५) एवं हरिएहि वि तिण्णि आलावगा (१६) पुढविजोणिएहि वि आएहिं जाव कूरेहिं । (१) उदगजोणिएहिं रुक्षेहि (२) रुक्खजोणिएहिं स्वखेहि (३) रुक्ख जोणिएहि मूलेहिं जाव बीएहि (४-६) एवं अज्झोरहेहिं वि तिणि (७-६) तणेहिं वि तिषिण आलावगा (१०-१२) ओसहीहि वि तिषिण (१३-१५) हरिएहि वि तिषिण (१६) उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहि तसपाणत्ताए बिउटति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं, उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं १. येषां चत्वार इचत्वार पालापकास्तेषां तुतीय पालापको न ग्राह्यः । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरियजोणियाणं स्त्रखाणं अज्भोरुहाणं तणाणं ओसहीण हरियाणं मूला जाव बीयाणं आयाणं कायाणं जाव कूरवाण उदगाणं जाय पुच्छिभगाणं सिणेहमाहारेति जीवा आहारेति पुढविसरीरं जान संत अवरे वि य णं तेसि रुक्खजोणियाणं 1 अज्भोरुह जोणियाण तणजोणियाण ओस हिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं जाव वीयजोणियाणं आयजोणियाणं कावजीणियाणं जाय कूरवजोगियान उदगजोणियाणं अवमजोणियाणं जाव पुनखल भगणियाणं तसपाणाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । अहोणं जाव मोहरगाणं आतोडिजमाणस्स वा जाव उवद्विज्ज० आहे वा जाय परिवारहेड आयाण जाव कूराणं जाया जाव दिवाओ आरिए जाव सव्वदुक्ख • अट्टालाओ वा जाव गर्भ० उदगजोणिया जाय कम्म० उदगसंभवा जाव कम्म० उदाहू......संवेगइया उस्साणं जाव सुद्धोदगाणं ऊसियं जाव पडिरूवं एमसुराणं जाव सणफयाणं एवं उदगबुब्बुए भणियब्वे एवं ओसहीण विचत्तारि आलावगा एवं जहा मणुस्सा जाब वि एवं जाव तसकाए ति भाणियन्व एवं तपजोगिएसुतणेगु तणस्साए विउति तणजोणियंतपसरीरं च आहारेति जाव मक्खाय १२ ३४४-७९९ ३१७६ ४२१ २६ ३।२२ ११३५ २७०, ७५ २२२६ ३१८७,८८ ३।२३,४३,८६ ७१२० ३१८५ १६ ३।७८ १३४ ३१४-१७ ३२७८ ४।११-१५ ३१२ ३।२-४३ ३.७६ १५६ २३ ३/२२ नंदी सू० ८० २/३२ २।२३ ३१६६ ३१२ ७१७ ३२८५ ११३ 3105 ११३४ ३।२-५ ३।७६ ४११०,३ ३।४ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ ३१८२, चूणि, वृत्ति ११५१ ११२१,२२ ३।२-५ २१४१ १२१७ ११४६-७० २१४ २०१४ एवं तणजोणिएसु तणेसु मूलत्ताए जाव बीयत्ताए विउति ते जीवा जाव मक्खायं ३१३ एवं दुरूव संभवत्ताए एवं खुरदगताए ३२८३,८४ एवं पुढविजोगिएसु तणेसु तणत्ताए विउट्ट ति जाव मक्खायं ३३११ एवं विष्णू वेदणा ११५१ एवं सद्दहमाणा जाद इति ११३७,३८ एवं हरियाण वि चत्तारि आलावगा ३११८-२१ एवमाइक्खंति जाव परूवेति २२७८,७६;७१११ एवमेव जाव सरीरे १११७ एसो आलोगो तहा यवो जहा पोंडरीए जाव सब्दोवसंता सब्दत्ताए परिणिबुड त्तिबेमि २।३३-५४ कच्छसि वा जाव प०वयविदुग्गंसि २०६ कण्हुईरहस्सिया जाव तओ २०५६ कम्म जाव मेहुणवत्तिए ३१७८ कम्म तहेव जाव तओ ३१७७ किंचिदि जाव आसंदीपेढियाओ १२१ किब्बिसियाई जाव उववत्तारो ७२५ किरिया इ वा जाव अणिरऐ श२६,३६ किरिया इ वा जाव णिरए इवा जाव चउत्थे ११४५-४७ कुसले जाव पउमवरपोंडरीयं १७ केइ जाव सरीरे १।१७ केवले जाव सव्वदुक्ख० २१५५ कोहाओ जाव मिच्छा० २।५८ कोहे जाव मिच्छा. ४१३ खेत्तण्णे जाव परक्कमण्णू १।६,१० गाहावइपुत्ताण वा जाव मोतियं ।२६ गाहावइस्स जाव तस्स ४६ गोहाण जाव मक्खायं ३८० चम्मपक्खीणं जाव मक्खायं ३१८१ चाउद्दसट्ठमुद्दिट्टपुण्णमासिणीसु जाव अणुपालेमाणा ७२१ ३१७६ ७.२० २।१४ १।२० १०२६-३१ १२६ १७ २१३२ वृत्ति २१५८ २६ २।२४ ४।५ ३१८०,२ ३८१,२ ७१२० Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ३१८६-६२ ३२७६ ३३७६ ३१३-२१ २११२ २१५५ ओ० सू० १६३ ४।१६ २१२१ २।२३ રૂર २७७ २१७७ जहा अगणीणं तहा भाणियव्वा चत्तारिगमा ३६३-६६ जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियव्वं जाव सारूविकडं ३१८० जहा उरपरिसप्पाणं नाणतं ३१८१ जहा पुढविजोणियाणं रुक्खाणं चत्तारिगमा अज्झारोहणवि तहेव, तणाणं ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियब्वा एक्केक्के ३१२४-४२ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिते २।५८ जावज्जीवाए जाव जे यावण्णे २०६३ जावज्जीवाए जाव सव्वाओ २१५८ जीवणिकाहि जाव कारवेइ ४।१६ झामेइ जाव झामतं २।२६ झामेइ जाव समणुजाभइ २०२८ जाणागंधा जाब णाणाविह. ३५ जाणापण्णा जाव गाणाझवसाण० रा७७ जाणापण्णे जाव णाणाझवसाण. २।७७ जाणावण्णा जात ते जीवा ३४ णाणावण्णा णाव भवंति ३७६ णाणादण्णा जाव मक्खायं ३॥६-६,२२,२३,४३,७७-७६, ८२,८५-८६,६७ णाणाविहजोणिया जाव कम्म० ३.८५,८६,९३,९७ जो पाराए जाव सेयंसि ११८ तं चेव जाव अगारं वएज्जा ७.१६ तं चेव जाव उवट्ठावेत्तए ७१६ तालिजमाणा वा जाव उद्दविज्जमाणा ४.२१ ते तसा'ने चिर जाव अपि भेदे से... ७.२६ दंडगं वा जाव चम्मछेयणगं २०३० दंडणाणं जाव नो बहूर्ण રાહ दंडेण वा जाव कवालेण ११५६;४।२१ दुक्खइ वा जाव परितत्पइ दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु दुक्खामि वा जाव परितप्पामि १२४३ धम्माणं जाव णाणाझवसाण. ર૭૭ ३.२ श२ ३८२ ७१८ ७.१८ १९५६ ७२० રા २१७८ ११४२ ११४२ १४२ २७७ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७१ ओ० सू० १६१ २०६३ ओ० सू० १६१ ७.२० श२१,२२ ७.१६ ११२३-२५ ११५६ ओ० सू० १७१ ११४७ ११४७ धम्माणुया जाव एग्गच्चाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया २४ धम्माणुया जाव धम्मेणं २०७१ धम्माणुया जाव सव्वाओ ७२३ धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं १६३ पउमवरपोंडरीयं जाव सव्वं परिग्गहं १११० पच्चक्खाइस्सामो जाव सव्वं परिग्गहं ७१२१ पत्तियमाणा जाव इति २३०,३१ परियाए जाव णो धोयाउए ७३० पवालाणं जाव बीयाण ३१५ पाईण वा जाव सुयक्खाते २३२-३४,३६-४१ पाणाइवाए जाव परिग्गहे ४।३ पाणाइवायाओ जाव विरए १५५६ पाणा जाव सत्ता ११५६,५७,२।७८ पाणा जाव सत्वे ४.२१ पाणाणं जाव सत्ताण ४।१७ पाणाणं जाव सम्वेसि ४।५,६,१७ पाणावि जाव अयं....... ७।२६ पाणावि जाव अयं पिभे..... ७।२६ पाणा वि जाव अय पिभेदे ... ७.२६ पासादिए जाव पडिरूवे ११३ पासादीया जाव पडिरूवा पुढविकाइया जाव तसकाइया ४१३,२१ पूढविकाइया जाव वणस्सइकाइया ४।१७ पुढविकाए जाव तसकाए ११५६ पुढविकाए जाव पुढविमेव १३३४ पुढविसंभवा जाव कम्म ३।२२ पुढविसंभवा जाव गाणाविह ३।१० पुढविसरीरं जाव संतं ३।२२.२३,४३,७७-७६ ८१,८२,८५-८६, १७ पुढविसरीरं जाव सारूविकड ३६,७,८,७६ पुढवीणं जाव सूरकताणं ३१६७ पुरिसत्ताए जाव विउट्ट ति ३७८ परिसस्स जाव एत्थ णं मेहणे एवं तं चेव नाणत्तं ३७६ ११४७ ७१२० ७२० કાર ११ ७५ १।१ ११५६ ठाणं ७।७३ ११३४ ३०२ ३३२ ३।६७ ३१७६ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ११३४ ११३४ १॥३४ ७२२७ ७१३४ ७।२६ २०१६ ३१७७ श३४ ११३४ ११३४ ७१६ ७।३४ ७.२० २११६ पष्ण०१ २०७३,७४ २१६६ ७४२० २१२५,३० ७१२८ २१२२,२३,२४,२६ ३.६ ३९ २।६९,७० २०६६ ७१६ २०१६ ७१६ १११६ ३३५ पुरिसादिया जाव अभिभूय पुरिसादिया जाव चिट्ठति पुरिसादिया जाब पुरिसमेव बहुयरगा जाव णो णेयाउए बोहिए जाव उवधारियाणं भवित्ता जाव पव्वइत्तए भेत्ता जाव इति मच्छाणं जाव सुंमुमाराणं महज्जुइएसु जाव महासोक्खेस सेसं तहेव जाव एस ढाणे आयरिए जाव एगंतसम्मे महज्जुझ्या जाव महासोक्खा महया""जं णं तुम्भे वयह त चेव जाव अयं महया जाव उवक्खाइत्ता महया जाव णो णेयाउए मह्या जाव भवति मूलत्ताए जाव बीयत्ताए मूलाणं जाव बीयाणं रुइला जाव पडिरूवा वुच्चंति जाव अयं दूच्चंति जाव णो णेयाउए वुच्चंति ते तसा ए महा ते चिर ते बहुतरगा आयाणसो इती से महता जेणं तुम्भे णो णेयाउए समणुजाणइ"""1 समणोवासगस्स जाव णोणेयाउए सरीरं जाव सारूविकडं सव्वपाणेहि जाव सत्तेहिं सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहिं सिज्झिस्संति जाव सन्ध० सिणेहमाहारेंति जाव अवरे सिणेहमाहारति जाव ते जीवा सिया जाव उदगमेव सिया जाव पुढविमेव सेए जाव विसपणे ७२१ ७।२३,२४,२५ ७।२० ७/२० ७.२० २।१६ ७.२२ २१२७ ७।२६ ३१५ ७११८, ७.१८,२६ २१७६ २२ ११४७ १२४७ २१८० ३२ ३२२ ३।१० ११३४ १३४ ११३४ १।३४ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ३१८६-८८ ४।१७ ११५२ सेए जाव सेयंसि सेसा तिणि आलावणा जहा उदगाणं सोयण जाव परितप्पण सोयाओ जाव फासाओ सोयामि वा जाव परितप्पामि हंतव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा हंतव्वा जाव कालमासे हंता जाव आहार हंता जाव उवक्खाइत्ता ३१९०-१२,९८-१०० ४.१७ ११५२ ११५६ ४।२१ ७१२५ २०१६ २।१६,२० २२४२ ११५६ २।१४ २०१६ २०१६ ठाणं ७।२६ ४|४५० अइवाइत्ता भवति जाव जधावाती अगारातो जाव पव्वतिते अट्ठ एवं चेव अड्डाई जाव बहुजणस्स अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे अणत्तरे जाव केवलवर० अणुत्तरे जाव समुप्पणे अणुत्तरे जाव समुप्पणे अणुसोतचारी जाव सब्वचारी अत्थि जाव समुप्पणे अपढमसमयणेरतिता एवं जाव अपढम० अपढमसमयणेरतिता जाव अपढमसमयदेवा अब्भोवगमिओ जाव सम्म अमणुण्णा सदा जाव फासा अमणण्णे जाव साइमे अमुच्छिए [ते] जाव अणज्झोववणे अयगोलस माणे जाव सीसगोल. अरहतेहि तं चेव अरहा जाव अयं अवट्टिते जाव दव्वओ अवलेहणित जाव देवेसु अविसेस जाव पुव्वविदेहे ८।१० ४.४५१ ५२९७ ६।१०५ १०।१०३ ५।१६६ ७२ ८।१०५ ६१०:१०११५३ ४।४५१ १०११४० ८.४२ ३१३६२४१४३४ ४१५४६ ७.२८ ३२५२३ ८.६५ वृत्ति ४।४५० ५१८४ ५१८४ १०।१०३ १६६ ७२ ५१७५ ५११७५ ४.४५१ ८४२ ४१५४६ १०११०६ ५२१७४ ४।२८२ २।२७० ५११९५:१०।१०६ ५।१७० ४।२८२ २।२६८ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ २१२७२ ७.१३१ ४।५४८ २११०२ अविसेस मणाणत्ता जाव सहावाती २।२७४ असावज्जे जाव अभूताभिसंकणे ७।१३३ असिपत्त समाणे जाव कलंबचीरिया ४/५४८ असूयणिस्सिते वि एमेव २२१०३ असुरकुमाराणं वग्गणा चउवीसं दंडओ जाव १४१४३-१६३ असोगवणं जाव चूयवणं ४॥३४० अहासुत्तं जाव अणुपालिता ८.१०४ अहासुत्तं जाव आराहिया ७.१३;६।४१:१०:१५१ अहीणस्सरे जाव मणामस्सरे ८५१० आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइकाइओगाहणा १११ आउखएणं जाव चइत्ता पा१० आग मे जाव जीते ५१२४ आममेणं जाव जीतेणं ५१२४ आघवइत्ता जाव ठावतिता ३१८७ आढाति जाव बहुं ८.१० आधाकम्मितं वा जाव हरितभोयणं हा६२ अभिणिबोहियणाणावरणिज्जे जाव केवल० ५२१६ आभिणिवोयि |त] णाणी जाव केवल आमलग महुरफलसमाणे जाव खंडमहर० ४।४११ आयार जाव दिट्टिवायं १०।१०३ आरंभिता जाव मिच्छादसणवत्तिता ५११७ आलोएज्जा जाव अस्थि ८.१० आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा ३१३४२,३४३,८।१० आलोयणारिहे जाव अणवट्टप्पारिहे १०१७३ आलोयणारिहे जाव मूलारिहे ६।४२ आवत्ते जाव पुक्खलावती ८।६६ आसपुरा जाव वीतसोगा ८७५ २१३५४-३६२,४१३६६ ४॥३३६ ७।१३ वृत्ति ८.१० ७।१३ ८.१० ५।१२४ ५५१२४ ३।८७ ८।१० ६.६२ ५२२१८ ५२२१८ ४।४११ समवाओ ११२ ५३११२ ८१० ३१३३८ ६४२ ८.२० २।३४० २।३४१ १. वृत्तो किम्वद् भेदने लभ्यते-१३-प्रहामुत्तं यावत्करणात अहाअत्यं महातच्च अहामगो महाकल्प सम्म कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया पाराहिया ति (पन्न ३६८) 1८1१०४--'अहासुता ग्रहाकप्पा अहामरगा प्रहातना सम्म कारण फासिया पालिया सोहिया तोरिया किट्ठिया आराहिया' इति यावत्करणात् दृश्य अणुपालिय' ति (पत्र ४१७) । ६।१४१ --यथासूत्रं यथाकल्प यथामार्ग' यथातत्त्वं सम्यक् कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीत्तिता पाराधिता चापि भवतीति । (पत्र ४३०) १०.१५१ --ग्रहासुतं ....."यावस्करणात् अहा अत्थं प्रहातच्चं महामन्मं महाकप्पं सम्यक्कायेन, फासिया पालिया शोधिता शोभिता वा तीरिया कीत्तिता अराधिता भवति (पन्न ४६२) । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ४।४५० ४।४५० ४।४५० ४।४५० ४१४५० १०७२ १०११०५ १०.२६ १४ ५२२० ५।१०५,१०६ ४१४३४ १०.१४ १०११४६ हा६२ ४६५६ ४४ ४।४५० पा१८ ४।५७८ ५॥२२३ है।३ ५।१६ ५।१०४ ४१४३४ १०११३ २।३८०-३८४ वृत्ति ४१६५४ ४१४ आसाएइ [ति जाव अभिलस ति आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे आसाएमाणे जाव मणं आहारवं जाव अवातदंसी आहारसण्णा जाव परिग हसण्णा इदा जाव महाभोगा इ दियाई जाव णिज्झा इत्ता इदेथावरकाताधिपती जाव पातावच्चे इच्चेतेहिं जाव णो धरेज्जा इच्चेतेहि जाव संचातेति इरिताऽसमिती जाव उच्चार० ईसाणे जाव अच्चुते उज्जलं जाव दुरहियासं उत्तरासाढा एवं चेव उण्णए णाम उण्णत्तावत्तसमाणं माणं एवं चेव गूढावत्तसमाणं मातमेवं चेव उप्पण्णाण जाव जाणति उप्पायणविसोहि जाव सारक्खणविसोहि उम्मीवीची जाव पडिबुद्धे उरगजाति पुच्छा उवचिण जाव णिज्जरा उरि जाव पडिबुद्ध उवहिअसंकिले से जाव चरित्त० एगिदितेहिंतो वा जाव पंचिदिय० एगिदियत्ताते वा जाव पंचिदियत्ताते एगिदियअसंजमे जाव पंचिदिय० एगिदियणिवित्तिते जाव पंचिदिय० एगिदियसंजमे जाव पंचिदिय० एगिदिया जाव पंचिंदिया एते चेव एते तिण्णि आलावगा भाणितव्वा ४१६५३ ७७८ १०८५ १०११०३ ४।५१४ ८।१२६६७२ १०।१०३ १०॥८७ ५।२०५ ५।२०५ ५११४५ ५२२३८ ५११४४ श१८०,२०४।६।११ ५॥१७६ १०।१५६ २।१६८ २२५६ ५११६५ १०८४ १०११०३ ४।५१४ ३१५४० १०।१०३ १०१८६ भ० २११३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ ५१७८ १०।१५६ २।१६७ २।२५५ एवं Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० २१४६२ ३१३२२ ३१४७५ २।४६१ ३१३२१ ३१४७४ एवं ६३८ ६।३५ २।१० ३।४२२ ४११६६-२१० २।८४ एवं अग्गिच्चावि एवं रिट्ठावि ६.३६,३७ एवं अजोगिभवत्थकेवलणाणे वि २।६१ एवं अणुण्णवेत्तए उवाइणित्तए ३१४२३,४२४ एवं अजरूवे अज्जमणे अज्जसंकप्पे अज्जपण्णे अज्जदिट्ठी अज्जसीलाचारे अज्जववहारे अज्जपरक्कमे अज्ज वित्ती अज्जजाती अज्जभासी अज्जओभासी अज्जसंवी अज्जपरियाए अज्जपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेण भणिया तहा अजेण वि भाणियब्वा । ४।२१३-२२७ एवं अणभिग्गहितमिच्छादसणे वि रा८५ एवं असंकिलेसे वि एवमतिक्कमे वि वइक्कमे वि अइयारे वि अणायारे वि ३।४३६-४४३ एवं असंयमो वि भाणितव्यो १०१२३ एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३ एमीतेगे सु३ एस्सामीति एगे सुमणे भवति ३।१९५-१९७ एव उवसंपया एवं विजहणा ३।३५३,३५४ एवं एएणं अभिलावेणं-- संगहणी-गाहा गंता य अगता य, आगंता खलु तहा अणागंता । चिद्वित्तमचिद्वित्ता', णिसितिता' चेव णो चेव ॥१॥ हता य अहंता य, छिदित्ता खलु तहा अछिदित्ता। बुतित्ता अबुत्तिता, भासित्ता चेव णो चेव ।।२।। 'दच्चा य अदच्चा" य, जित्ता खलु तहा अभुंजित्ता। लभित्ता अलभित्ता, पिबइत्ता' चेव णो चेव ॥३॥ ३१४३८ १०१२२ ३।१८६-१६१ ३२३५१ १. चिट्टित्त न चिट्ठित्ता (क) । २. णिसिंतत्ता (क, ख)। ३. दत्ता प्रदत्ता (क) ! ४. पिवइत्ता (क, ग); पिइता (क्व) । Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ सुतित्ता असुतित्ता, जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झिता । जतित्ता अजयिता य, पराजिणित्ता चेव णो चेव ||४|| सद्दा रूवा 'गंधा, रसा य" फासा तहेव ठाणा य । णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पुण सीलवंतस्स || ५ || एवमिahar तिथिण उ तिष्णि उ आलावगा भाणियब्वा । एवं एसा गाहा फासेतव्वा, जावससरीरी चेव असरीरी चैव सिद्धसइंदियकाए, जोगे वेए कसाय लेसा य । णाणुवओगाहारे, भासग चरिमे य ससरीरी ॥ १ ॥ एवं ओप्पणीए नवरं पण्णत्ते आगमिस्सा उस्सप्पिणीए भविस्सति एवं कंता पिया मणुण्णा मणामा एवं कुलसंपणेण य बलसंपणेण य कुलसंपणेण य रूवसंपणेण य कुलसंपण्णेण य जयसंपण्णेण य एवं कुलेण य रूवेण य कुलेण य सुतेण य कुलेण त सीलेण य कुलेण य चरितेण य एवं गंधाई रसाई फासाई जाव सव्वेण वि एवं गंधा रसा फासा एवमिक्किवके छ-छ आलावगा भाणियव्वा एवं भंगो एवं चक्कवट्टिवसा दसारवंसा एवं चक्वट्टी एवं बलदेवा एवं वासुदेवा जाव उपज्जिस्संति एवं चिति एस दंडओ एवं चिणिस्संति एस दंडओ एवमेतेणं तिष्णि दंडगा एवं चेव एवं चैव एवं चेव एवं चेव एवं चैव १. रसगंधा (ग) 1 ३।१६८- ९८४ २४१० ३१११०,१११ २/२३३ ४१४७४-४७६ ४१३६७-४०० १०१३ २१२३०-२३८ ४:२५० २।३१०,३११ २।३१३-३१५ ४१६३, ६४ ३१४८४ ४४२७ ४६१७ ४१६१६ ५:१६१ संग्रहणी-गाहा; ३।१८६-१९४ संग्रहणी - गाहा ३|१०६ २२३२ ४/४७१-४७३ ३।३६६ १०।३२।२०३,२०४ २।२३४ ४२५० २।३०६ २३१२ ४६२ ३२४८३ ४४२६ ४२६१७ ४:६१८ ५११५६ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।२५ ८१४८ का१२३ ४१४८३ ६२८१ ५1८४ ६।२५ एवं चेव ५।१६२ एवं चेव ६२६ एव चेव ८.४६,५० एवं चेव का१२४ एवं चेव १०१६४ एवं चेव एवं तिरियलोए वि ४१४८४,४८५ एवं चेव एवं फासामातो वि ६८१ एवं चेव एवमेतेणं आभिलावेणं इमातो गाहातो अणुगंतव्वातो-- पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पुवाइं आसाढा, सीयलस्सुसर विमलस्स भद्दवता ॥१॥ रेवतित अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवतीतो य ॥२॥ मुणिसुब्वयस्स सवणो, आसिणी णमिणो य णेमिणो चित्ता। पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्यूत्तरे वीरो ॥३॥ १८६-६६ एवं चेव जाव छच्च ६१२७ एवं चेव णवर खेत्तओ लोगालोग्गपमाणमिते मुणतो अवगाहणागुणे सेसं तं चेव ५११७२ एवं चेव णवर गुणतो ठाणगुणे ५।१७१ एवं चेद णवर दवओणं जीवस्थिगाते अणंताई दवाइं अरूवि जीवे गुणतो उवओगगुणे सेसं तं चेव ५।१७३ एवं चेव मणस्सावि ४।६१५ एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ जाव दूसमदूसमा ३.६० एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ जाव सुसमसुसमा ३१६२ एवं जधा अटुट्ठाणे जाव खते १०७१ एवं जधा छुट्टाणे जाव जीवा ८।१४ एवं जधा पंचट्ठाणे जाव आयरिय एवं जघा पंचट्ठाणे जाव बाहिं ७८१ एवं जहण्णोगाहणगाणं उक्कोसोगाहणगाणं अजहणुक्कोसोगाहणगाणं जहण्णठितियाणं उक्कस्सटुितियाणं अजहण्णुक्कोसठितियाणं ५।१७० ५।१७० ४१६१४ १।१२८-१३३ १११३५-१४० ८.१६ ५४८ ५।१६६ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ १२३८-२४६ ११२३५.२३७ ४।१२-२१ ४॥२.११ ३।२७ ३।२६ ४१३७६-३७८ ४।३७२-३७४ ४।४४२-४४६ ३७६-८६ ५१५७ ३१७० ३७१ जहण्णगुणकालगाणं उक्कस्सगुणकालगाणं अजहष्णुक्कस्सगुणकालगाणं एवं जहा उण्णत पणतेहिं गमो तहा उज्जु वकेहि वि भाणियव्यो जाव परक्कमे एवं जहा गरहा तहा पच्चक्खाणे वि दो आलावगा एवं जहा जाणेण चत्तारि आलावगा तहा जग्गेणवि पडिवेक्खो तहेव पूरिसजाया जाब सोभेति एवं जहा तिट्राणे जाव लोगतिता देवा माणुस्सं लोग हव्वमागच्छेज्जा तं जहा अर इंतेहिं जायमाणेहिं जाव अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु एवं जहा पंचट्ठाणे जाव किण्णरे एवं जहा विज्जुतारं तहेव थणियसपि एवं जहा हयाणं तहा गयाणं वि भाणियव्वं पडिवेक्खो तहेब पुरिसजाया एवं जाइस्सामीतगे सुमण भवति एवं जातीते य रूवेण य चत्तारि आलावगा एवं जातीते य सुएण य एव जातीते य सीलेण य एवं जातीते य चरित्तेण य एवं जाव अपढमसमयपंचिदिता एवं जाव एगा एवं जाव कम्मगसरीरे एवं जाव काउलेसाणं एवं जाव केवलणाणं एवं जाव घोसमहाघोसाणं णेयव्वं एवं जाव जहा से एवं जाव तिणिस० एवं जाव दुविहा एवं जाव पच्चुप्पणाणं एवं जाव फासाई एवं जाव फासामतेणं एवं जाव फासामातो एवं जाव फासामातो ४।३८५-३८७ ३११६१ ४।३८१-३८३ ३॥१८६ ४१३६२-३६५ १०।१५२ १२१६-२२६ ५।२७-३० २।१६८ २१५३-६२,३।१६३-१७२ ७।११७,११८ ५६१२४ ४।२८३ २११२४-१२६ ७१७ १०१४ १०१२२ ८.३३ ५।१४५ पण्ण०१ ५।२५,२६ १।१६२ २१४२.५१ ५२६२,६३ ५।१२४ ४२८२,२८३ ७७३ ७१६ १०१३ ८।३३ ६।८१ ६१८२ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७५,७६ ४१७५,८० ४७५,८४ ४७५,८८ २११२४-१२७ १०३ ५११७५ समवाओ ६१ ४१३५४ ४३७२-३७४ ४१५८ एवं जाव मणपज्जवणाणं २१४०४ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ४७७-७६ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ४१८१-८३ एवं जाव लोभे देमाणियाण ४१८५-८७ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ४८६-६१ एवं जाव वणस्सइकाइया २११२६-१३२,१३४-१३७ १३०-१४३ एवं जाव सव्वेण वि १०१५ एवं जाब सिद्धिगती १०६६ एवं जाव सुक्कलेसाणं १११६३-१६५ एवं जाव सेलोदग ४१३५५ एवं जुत्तपरिणते जुत्तरूवे जुत्तसोभे सन्वेसि पडिवेक्खो पुरिसजाता ४३८१-३८३ एवं णिरयाउअंसि कम्मंसि अक्खीणंसि जाव जो चैव ४/५८ एवं गैरइयाणं जाव वेमाणियाणं एवं जाव मिच्छादसणसल्लाणं २०४०७ एवं सत्थियावि २।२८ एवं णो केवलं बभचेरवासमावसेज्जा णो केवलं संजमेणं संजमेज्जा णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा एवं सुयणाणं ओहिणाणं मणपज्जवणाणं केवलाणं २०४४-५१ एवं तिरियलोग उड्वलोगं केवल कप्पं लोगं २।१९४-१९६ एवं तिरियलोग उनलोगं केवलकप्पं लोग २।१९८-२०० एवं तेइ दियाणं वि चरिंदियाणं वि ११८१-१८४ एवं थावरकाए वि २११६६ एवं दसणाराहणा वि चरिताराहाणा वि ३१४३६,४३७ एवं दीणजाती दीणभासी दीणोभासी ४२०५-२०७ एवं दीण मणे दीणसंकप्पे दीणपण्णे दीणदिट्री दीणसीलाचारे दीणववहारे ४.१६७-२०२ एवं दीणे णाम मेगे दीणपरियाए एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाले सम्वत्थ चउभंगो ४।२०६,२१० १।६७-१०७:२।४०६ २१२७ २१४३ २।१६३ २११६७ १।१७६,१८० ।१६५ ३१४३५ ४११६५ ४१६५ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं देवंधगारे देवुज्जोते देवसण्णिवाते देवक्कलिता देवकहकहते एवं देवाणं भाणियव्वं एवं देवकलिया देवकहकहए एवं दोग्गतिगामिणीओ सोगतिगामिणीओ किलिट्ठाओ अकिलिद्वाओ अमणुष्णाओ माओ अविसुद्धा विसुद्धा अपसत्थाओ सत्थाओ सीतलुक्खाओ णिगुहाओ एवं पडिसति विद्धसंति एवं परिणते नाव परक्कमे एवं परिग्गहिया वि एवं परसे वि एवं पुट्टियावि एवं पुवफग्गुणी उत्तराफग्गुणी एवं रित्ताणं एवं डित्ताणं एवं संवट्ट इताणं एवं णिवट्टतिताणं एवं बलसंपणेण य रूवसंपणेण य बलसंपणेण य जयसंपण्णेण य सव्वत्थ पुरिसजाया पडिवनखो एवं बलेण य सुतेण य एवं बलेण य सीलेण य एवं बलेण य चरितेण य एवं मणुस्सावि एवं मोहे मुढा एवं मोहे मूढा एवं रज्जंति मुच्छंति गिज्भति अज्झोववज्र्ज्जति एवं रुवाई गंधाई रसाइ फासाई एक्केक छ-छ आलावगा भाणियव्वा एवं रुवाई पासइ गंधाई' अग्घाति रसाइ आसादेति फासाइ पडिसंवेदेति एवं रुवेण य सीलेण य एवं रुवेण य चरितेण य एवं वइकमाणं अतिचाराणं अणावाराणं एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेद · २५ ४।४३७-४४१ २१५४ ३७७,७८ ३१५१७,५१८ २।२२४,२२५ ५।३६-४४ २१६ ३।५३३ २२२ २१४४५,४४६ २।३६६-४०२ ४१४७७,४७८ ४१४०२-४०४ ३/६५,६६ २४२२,४२३ ३।१७८, १७६ ५।७-१० ३।२६१-३१४ २२०२-२०५ ४१४०६, ४०७ ३।४४५-४४७ ४१११२ ४१४३५, ४३६ २।१५३ ३।७६ ३।५१५, ५१६ २२२३ ४३-११ २१५ ३१५३२ २/२१ २१४४३ २३६८ ४/४७२, ४७३ ४१४० १ ३।६३,६५ २४०१ ३।१७६ ५/६ ३१२८५-२६०,२२०२-२०५ २।२०१ ४/४०५ ३।४४४ ४१११ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७।१०७,१०५ रा२१७ ७।१०६ २।२१६ ३।४३२ २।३६५ २१३६६,३६७ ६.४१२-४१५ ३।४११ ४१५ ४।११३-११६ ४।१११ एवं वाणमंतराणं एवं जोइसियाणं एवं विततेवि एवं विसोही एवं वेदेति एव णिज्ज रेंति एवं वेयावच्चे अणुरगहे अणुसट्टी उवालंभे एवमेक्केके तिण्णि-तिण्णि आलावगा जहेव उवक्कमे एवं संकप्पे पणे दिट्टी सीमाचारे ववहारे परक्कमे एगे पुरिसजाए पडिवक्खो नत्थि एवं सक्कारेइ सम्माणेति पूएइ वाएइ पडिच्छति पुच्छइ वागरेति एवं सम्माहिट्रि परित्ता पज्जत्तम सुहम सण्णि भवियाय एवं सब्वेसि च उभंगो भाणियव्वो एवं सामंतोवणिवाइयावि एवं सुंदरी वि एवं सुत्तेण य चरित्तेण य एवं मझोवज्जणा परियावज्जणा एवमणारंभे वि एवं सारंभे वि एवमसारंभे वि एवं समारंभे वि एवं असमारंभे वि जाव अजीवकाय असमारंभे एवमणुण्णवत्तते उवातिणित्तते एवमभेज्जा अडज्झा अगिज्झा अणडा अमज्झा अपएसा एवमाधारातिणिताते एवमासणाई चलेज्जा सीहणातं करेज्जा चेलुक्खेवं करेज्जा एवमिट्ठा जाव मणामा एवमिमीसे ओसप्पिणीए जाव पण्णत्ते एवं आगमिस्साए उस्सप्पिणीए जाव भविस्सति एवमेगसमयठितिया ३।३१८ ४।२०३ २।२५ ५१६३ ४१४०६ ३१५०६,५१० ३१३१८ ४१६५ २।२४ ५११५६ ४१४०८ ३१५०८ ७१८४ ७८५-८६ ३१४२०,४२१ ३१४१६ ३१३२६-३३४ ५।४६ ३।३२८ ५१४८ ३८२-८४ २।२३४,२३५ २।२३३ २१३१०,३११ १।२५५ २३०६ १४२५४ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवमेतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्दा - सवर्ण गाणे य विष्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे । अण्हते तवे चेव वोदाणे अकिरिय णिव्वाणे | जाव से णं भंते ! एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरिसप्पावि भाणिव्वा भुजपरिसप्पा वि भाणियव्वा एवं चेव एवमेतेनं गमएणं दित्तचित्ते जक्खाति उम्मायपत्ते एवमेतेणमभिलावेणं चत्तारि कसाया पं तं कोहकसाए ४ पंचकामगुणे पं तं सद्द ५ छज्जीवनिकाता पं तं पुढविकाइया जाव तसकाइया एवामेव जाव तसकाइया कंते जाव मणामे कंदे जाव पुप्फे कक्खडे जाव लक्खे कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा कालोभासे जाव परमकिन्हे किण्हा जाव सुविकला किण्हे जाव सुक्कि किरियावादी जाव वेणइयावादी कुंडला चेव जाव रयण संजया कुलमतेण वा जाव इस्सरिय० केवली जाणइ पासर जाव गंध अपडली जाव लोभ० कोहकसाई जाव लोभकसाई कोहणिव्यत्तिए जाव लोभ० कोहमुंडे जाव लोभमंडे कोहविवेगे जावमिच्छादंसण सल्ल० कोहसण्णा जाव लोभसण्णा कोहे जाव एगे खिप्पमवेति जाव असंदिद्ध० खेमपुरी जाव पुंडरीगिणी २७ ३।४१८ ३१४२-४७ ५१०८ ६/६२ ८|१० १०/१५५ ११८४-८६ ६/४७,४८,७१७३ हा६२ ५१२३, २२५ ५/२६,२२६ ४/५३१ ८।७४ १०।१२ ८।२५ ४/१६१ ५२०८ ४६२५ १०६६ ११११५-१२५ १०।१०५ १।६७,६८ ६/६३ ८/७३ ३।४१५ ३।३६-६८ ५/१०८ हा६२ ८१० ८३२ ८१३ समवाओ ६११ वृत्ति ५३ ५/३ ४|५३० २३४४ ८२१ ७ ७८ ४१६० ४/७५ ४/७५ ५।१७७ १२६७-१०७ ४/७५ ४/७५ ६।६१ २३४१ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ७५६ ८।११५ ७।१३६ ४।२५२ ३१४४४ ४।३ ४।१२ ४१४५ ४१४६८ ४.६११ ७१५२ पइण्णगसमवाय सू०४५ ७१३५ ४१२८२ ३१३३८ ४३ ४११२ ४।२४ ४१४६८ ४.४५-५४ ४१२४-२६ ४२७-३३ गंगा जाव रत्ता गतिकल्लाणं जाव आगमे० गमणं जाव अणाउत्तं गोमुत्ति जाव कालं गरहेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो एवं जहेव सुद्धेणं वत्थेणं भणित तहेव सुतिणा वि जाव परक्कमे चउभंगो एवं परिणतरूवे वत्था सपडिवक्खा चउभंगो एवं संकप्पे जाव परक्कमे चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे चिण जाव मिज्जरा चित्तविचित्तपक्खगं जाव पडिबुद्धे चुल्ल हिमवंते जाव मंदरे जधा सालीणं जाव केवतितं जह पंचट्ठाणे जाव परिहरणोवघाते जहा दोच्चा णवरं दीहेणं परितातेणं जहेव णेसत्थियाओ जाणइ जाव हे जाणइ (ति) जाव हेउणा जाणइ जाव अहेउ जाणति जाव अहेउणा जातिणामणिहत्ताउते जाव अणुभाग० जातिसंपण्णे जाव रूवसंपण्णे जायमाणेहिं जाव तं चेव जाव केवलणाणंउप्पाडेज्जा जाव चउरिदियाणं जाव दवा जिणे जाव सव्वभावेणं जीवणिकाएहिं जाव अभिभवई ४१२४-३३ ४॥२-४ ४१५-११ ७७६ ३१५४० १०।१०३ ७१५१ ३३१२५ ५।१३१ ७१५३ १०.१०३ ७५५ ५।२०६ १०१८४ ४१ २।३०,३१ ভও ५७६,७८ ५७६,८१ ५।००,८२ ६.११७ ४२२६ ३५१ २०६४-७३ १२।१५७,१५८ २।१४६-१५० रा२८ ५/७५ ५७५ १७५ ५७५ ४।२२६ ३१७६ २।४२-५१ १।१५८,२११५६ २११४०-१४४ ५।१६५ ३३५२३ ३१५२३ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ५.१०७ ५३४ ५११०७ ५।१०३ श२२ ५११०४ आयारचूला ११२८ RREEEEE ठाणं वा जाव णातिक्कमंति ५।१०७ ठाणाइं जाव अब्भणुण्णायाई ५।३७-४२ ठाणाइजाव भवंति ५.४२,४३ ठाणेहि जाव णातिक्कमति ठाणेहिं जाव धरेज्जा ५।१०३ ठाणेहि जाव को खंभातेज्जा ५२२ ठाणेहिं जाव णो धरेज्जा ५।१०४ जगरंसि वा जाव रायहाणिसि ५।१०७ जग्गभावं जाव लद्धावलद्धवित्ती ६४६२ णमसामि जाव पज्जुवासामि णाणत्तं जाव विउवित्ता ७.२ मासि जाव णिच्चे ५१७४ णिक्कखिए जाव परिस्सहे ३३५२४ णिग्गथीण दा जाव णो समुप्प० ४।२५४ णिग्गंथीण वा जाव समुप्प० ४।२५५ णिग्गंथे जाव णातिक्कम ५१०२ णियमं जाव परति ६।१२२ णिस्संकिते जाव णो कलुससमावणे ३३५२४ णिस्संकिते जाव परिस्सहे. ३१५२४ जेरइयत्ताए वा जाव देवत्ताए ४१६१४ णेरइया जाव देवा ५।२०८ रतिआउते जाव देवाउते ४।२८६ णेरतिते जाव णो चेव ४।५८ रतियणिव्वत्तिते जाव देवणिवत्तिते ७.१५३ णेरतिय भवे जाव देवभवे ४१२८७ रतियसंसारे जाव देवसंसारे ४।२८५ णो आलोएज्जा जाव गोपडिवज्जेज्जा ३।३४०८।१० णो आसाएति जाव अभिलसति ४१४५१ णो चेव णं जाव करिस्सति ४.५१४ गो पडिक्कमेज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा ६।३३६८९ णो महिड्डिए जाव णो चिरद्वितिते बा१० णो महिड्डिएसु जाव णो दूरंगतितेसु ८.१० तं चेव ४॥२३८ तं चेव ४।२३६ ३१३६२ ७२ ५११७० ३३५२४ ४१२५४ ४।२५५ ५१०२ ६१११६ ३३५२३ ३१५२४ ४१६१४ ४.६०८ ४।६०८ ४१५८ ७१७१ ४।६०८ ४॥६०८ ३।३३८ ४।४५० ४१५१४ ३१३३८ ८.१० २।२७१ ४।२३ ४१२३ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० तं चेव जाव संकिण्णे ४।२४० तं चेव विवरीतं जाव मणुण्णा फासा १०।१४१ तंजहा जाव मिच्छादसणवत्तिया ५११३ तत्थेगओ जाव णातिक्कमति ५११०७ तयक्खायसमाणे जाव सारक्खायसमाणे तलवर जाव अण्णमण्ण ६६२ तहेव ४१४२८ तहेव ४।५६३ तहेव Y1 ୫୪ तहेव चउभंगो ४॥४ तहेव चत्तारिगमा ४।४२६ तहेव जाव अवहरति ५७३,७४ तहेब जाव पणते ४.२ तहेव जाव हलिद्द० ४।२८४ तित्ता जाव मधुरा ५५४,३३ तित्ते जाव मधु (हु) रे ५२६,२२८ तिरियगती जाव सिद्धिगती दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं चेव २।४२५ दिणयरं जाव पडिबुद्धे १०११०३ दुभिक्खंसि वा जाव महता ५१९१ दुस्समदुस्समा जाव एगा १११३६-१३६ दस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा ६२४ देवलोगे [ए] सु जाव अणभोववणे ३१३६२,४।४३४ दो अदाओ एवं भाणियन्वं-- संगहणी-गाहा कत्तिया रोहिणिमगसिर 'अद्दा य' पुणव्वसू अ पूसो य । तत्तोऽवि' अस्सलेसा महा य दो फरगुणीओ य ॥१॥ हत्थो चित्ता साई विसहिा तह य होति अणुराहा । जेट्ठा मूलो पुत्वाऽऽसाढा तह उत्तरा चेव ॥२॥ ४।२४० १०.१४० ५३११२ ५.१०७ ४/५६ ६।६२ ४१४२६ ४१५६३ ५५६४ ४४ ४।४२६ ५।७३ ४।२ ४१२८४,२८२ ११७६-८१ २४ ५।१७५ २।४२४ १०।१०३ ५८ १११३६-१३६ १. कत्तिय (कप)। २. अद्दाओ (क, ग)। ३. तत्तो य (क, ग)। ४. साई य (क, ख, ग)। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ अभिई सवणे धणिट्ठा, सयमसया दो य होंति भद्दवया । रेवति अस्सिणि भरणी, जेयव्वा अणुपुन्वीए ॥ ३ ॥ एवं गाहानुसारेण णेयव्वं जाव दो भरणीओ । २३२३ दोसे जाव एमे धणिट्टा जाव भरणी धम्मत्यिकांत जाव परमाणुपोग्गलं धम्मत्थिकातं जाव सद्दं धम्मत्थिकार्य जाव गंध धम्मत्थिगातं जाव वातं पउमसरं जाव पडिबुद्धे पचमवतितं जाव अचेलगं पंचाणुव्वतितं जाव सावगधम्मं पडिक्कमेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा पढमसमयए गिदियणिव्वत्तिए जाव पंचिदियणिव्वत्तिए पढमसमयणेरतितणिव्वत्तिते जाव अपढम० पण सुहुमे जाब सिणेहसुहुमे पण्णवेति जाव उवदंसेति पण वेहिति पमिलायति जाव जोणी मिलायति जाव तेण परं पम्हकुडे जाव सोमणसे म्हे जाव सलिलावती परिताले जाव पूतासक्कारे पल्ला उत्ताणं जाव पिहियाणं पाणावायवे रमणे जाव परिग्गहवेरमण पाणातिवाए जाव एगे पाणातिवातवेरमणे जाव परिग्गह० पाणातिवाते जाव परिग्गहे पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं पाणातिवायाओ जाव सव्वाती पातीणाते जाव अधाते पायत्ताणिते जाव उसभाणिते १११०२-१०४ ६।१६ ५/१६५ ६४ ७१७८८२५ १०/१०६ १०/१०३ हा६२ हा६२ ३।३४१ १०/१७३ १२६ १०१२४ १०।१०३ हा६२ ७६० ५। २०६ १०/१४५ ८।७१ ६/३३ ७६० १।११०-११२ ११६२-६४ ५:१७, १२६ १०।१४ ५१६,१२८ ५।१ ६।३८ ५/६४ संग हणीगाहा वृत्ति चंद्र० १० ११ ५।१६५ ६१४ ७७८ ८।२५ १०११०३ हा६२ ६२ ३।३३८ १०/१५२ ८१०५ ८१३५ १०।१०३ हा६२ ३।१२५ ३।१२५ ५।१५०,१५१ २/३४० ६।३२ ३।१२५ १०११३ १०।१३ १०/१३ १०।१३ १०/१३ १०।१३ ६।३७ ५/६५ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५।५८ ७.१३४ ५११७ ७.१३२ ७।७३ ६६ ७ है। १२ ६८ ६।१२८ ६७ ७१७३ हा७२ ६१६,८ ६७,१०११५३ ७८३ ५।१४१ ७१८४ पायत्ताणिते जाव रघाणिते पावते जाव भूताभिसंकणे पुढविकाइएहिंतो वा जाव तस० पुढविकाइएहितो वा जाव पंचिदिएहितो पुढविकाइएत्ताए जाव पंचिदियत्ताए पुढविकाइएताए वा जाव पंचिदियत्ताते पुडविकाइयणिव्वत्तिमे जाव तस० पुढविकाइयणिव्वत्तिते जाव पंचिदियणिवत्तिते पुढविकाइया जाव तसकाइया पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया पुढविकातितअसं जने जाव तस० पुढविकातितअसंजमे जाव वणस्सति० पुढविकातितआरंभे जाव अजीव० पुढविकातितत्ताते वा जाव तस० पुढविकातितसंज मे जाव तस० पुढविकातित [य] संजमे जाव वणस्सति० पुप्फए जाव विमलवरे पुरिसे जाव अवहरति पुवासाढा एवं चेव पोतगत्ताते वा जाव उब्भिगताते पोतगत्ताते वा जाव उववातितत्ताते पोतगा जाव उब्भिगा पोतजेहितो वा जाव उभिगेहितो पोततेहिंतो वा जाव उववातितेहितो फरिस जाव गंधाई फुसित्ता जाव विकुन्वित्ता बहुमीहति जाव असंदिद्ध मीहति बेइंदिया जाव पंचिदिया बेदिता जाव पंचेंदिता भरहे जाव महाविदेहे भवति जाव फासामतेणं भवित्ता जावं पन्धइए [तिते] भवित्ता जाव पव्वयाहिति १७ ७७३ ७७३ ७७३ ७१७३ ७८२ ७७३ ७७३ ७७३ ८.१०३ ५७३ ४१६५४ ६९ ७१८२ ५।१४०१०१८ १०।१५० ५७४ ४१६५५ ७४ ८।३ ८२ ८२ ७४ ८.३ ७१३ ७१३ s૨ १०७ ७२ ६४६१ १०७ ७२ ६१६२ हा७ १०११५३ ७१५४ ६५८२ ३१५३२,४११,४५०,५१६७,९।६२ ६६२ ६।११ ९।११ ७३५० ६।८१ ३१५२३ ३११२३ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवेत्ता जाव पव्वतिता भाषासमिती जाव पारिद्रावणियासमिती भिण्णे जाव अपरिस्साई मंडुक्कजातिआसीविसस्स पुच्छा मणअपडिललीणे जाव इंदिय० मण दुप्पणिहाणे जाव उवकरण. मणसुप्पणि हाणे जाव उवगरण. मणुस्सजाति पुच्छा मणुस्साणं वि एवं चेव मणस्सा भाभियव्वा १०२८ ५।२०३ ४१५६५ ४१५१४ ४१६३ ४११०६ ४।१०५ ४१५१४ २११६० ४.३२३,३२४,३२५,३२६ ८१७ ४१५६५ ४।५१४ ४.१६२ ४।१०४ ४११०४ ४१५१४ २१५६ ४।३२२,३२३, ३२४,६२५,३२६ २।४११ २१४१३ ५१३५ ८.१० ८.१० ५।२१ २०२७११६१ ३१३६२,४१४३४ ७२ ५।२३४ मरणाइं जाब पो णिच्च महावीरेणं जाव अब्भणण्णायाई महिड्डिए जाव चिरद्वितिते महिड्डिएसु जाव चिरट्ठितिएसु महिड्डियं जाव महासोक्खं महिड्डिया जाव महासोक्खा माताति वा जाव सुण्हाति माहणस्स वा जाव समुप्पज्जति मुंडा जाव पव्वतिता मुंडे जाव पव्वइए तिते] मुच्छिते जाव अज्झोववणे मुत्ते जाव सव्वदुक्ख० मुसाबाते जाव परिस्महे रत्ताओ जाव अट्ठउसभकूडा रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा रूवा जाव मणुण्णा लोगविजओ जाव उवहाणसुयं वंजण जाव सुरूवं वंदामि जाव पज्जुवासामि वंशीमूलकेतणासमाणा जाव अवलेह० ४।४५०,४५१६७९,१०४ ११२४६ ६।२६ ८1८४ ८.१० ८.१० २।२७१ वृत्ति सूय०१२।२१७ ७२ ३१५२३ ३१५२३ ३।३६१ वृत्ति १०११३ ८८२ ७।२४ ५१५ वृत्ति ओ०सू० १४३ ३।३६२ ४/२८२ ८.१०८ ७।१४३ ६२ ६६२ ४।४३४ ४।२८२ स्थानाङ्गवृत्ती-'पिपा इ वा भज्जा इ वा भाया इवा भगिणी इ वा पुत्ता इ वा घूया इवे' ति यावच्छब्दाक्षेपः (पत्र १३४) । 'भाया इ वा मज्जाइ वा भदणी इ वा पुत्ता ६ वा घूया इवे' त्ति यावच्छताक्षेपः (पन्न २३३)। Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१४ वणियाई जाव अब्भणुष्णायाई वणस्सतिकातितअसं जामे जाव अजीवकाय० १०१६ ५।१३४ बदमाणे जाब faaक्कतव ० वसित्ता जाव पव्वाहिती विज्जुप्पभे जाव गंधमातणे ६ ६२ वीइक्कंते जाव वारसाहे वेजयंति जाव अउज्झा वेडु... वेरमणं जाव सव्वतो संकिते जाव कलुसमावण्णे संजमवले जाव तस्स गं संच्छराई जाव वावत्तरिवासाई संवरबहुले जाव उवहाणव संवाण जाव गातु० सक्के जाव सहस्सा रे सत्त भयद्वाणापं तं सद्दं सुत्ताणामेगे सुमणे भवति ३ एवं सुणमीति ३ एवं सुणेस्सामीति ३ एवं असुत्ताणामेगे सु ३ ण सुणमीति ३ ण सुणिस्सामीति सद्द जाव अवहरिसु सद्द जाव अवहरिस्सति सद्द जाव उवहरिसु सद्द जाव उवहरिस्सति सद्द जाव गंधाई सद्दहति जाव णो से सद्दा जाव फासा सद्दा जाव वतिदुहता सदेह जाव फासेहिं सभासुहम्मा जाव ववसातसभा समणस्स जाव समुपज्जति समणेणं जाव अब्भणुष्णायाई सव्वरयणा जाव पडिबुद्धे १. सुणेमाणे (ख); सुणेमीति ( ग ) । ३४ १०।१४६ ६२ ८७६ ६१५३ ४|१३७ ३।५२३ ४१ हा६२ ४११ ४४५० ८। १०२ हा६२ ३१२८५-२६० १०१७ १०१७ १०१७ १०/७ १०/७ ३।५२३ ५।१२-१५, १२५-१२७ ७। १४४ ५६,११ ५।२३६ ७२ ५।३६ १०/१०३ ४११ १०१८ ५।१३३ ६२ ५।१५२,१५३ ओ०सू० १४४ २१३४१ ६/४३ ४|१३६ ३/५२३ ४|१ ६२ ४|१ ४।४५० २।३८०-३८३ ७/२७ ३११८६-१९४ १०१७ १०/७ १०/७ १०/७ १०१७ ३।५२३ ५।५ ७/१४३ ५५ ५।२३५ ७२ ५।३४ १०११०३ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२४८ ४।४५१ ५१७३ २०७४ ५७३,७४ ७१५७ ४१ हा६१ ६।६२ ४११४१ ८५३ १०॥७५,७६,७८,७६ सव्वदीवसमुदाणं जाव अद्धंगुलगं सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स सहिस्संति जाव अहियासिस्संति सहेज्जा जाव अहियासेज्जा सिंघु जाव रत्तावती सिझति जाव मंतं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण. सिज्झिहिंति जाव अंतं सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाण. सिन्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाण सिद्धसुग्गता जाव सुकुल. सिद्धाइं जाद सव्वदुक्ख० सिद्धाओ जाव सव्वदुक्ख० सिद्धे जाव प्पहीणे सिद्धे जाव सब्वदुक्ख. सुंबकडसमाणे जाव कंबलकड० सुक्किलपक्खगं जाव पडिबुद्धे सुभाते जाव आणुगामियत्ताए सुमिणे जाव पडिबुद्धे सुवच्छे जाव मंगलावती सुवप्पे जाव गंधिलावती सुसमसुसमा जाव एमा सुसमसुसमा जाव दूसमदूसमा से जहाणामते ...... सेलथंभसमाणे जाव तिणिस० सेसं जहा पंचट्ठाणे एवं जाव अच्चुतस्सवि तन्वं सेसं तं चेव जाव करिस्संति सेसं तहेव जाव भवणगिहेसु सेसं तहेव जाव भासं ४/४५१ ५।७२ ५७३ ५७३ ७१५३ ४१ ४१ ४१ ४१ ४।१ ४।१३६ ११२४६ १२२४६ ११२४६ ११२४६ ४१५४६ १०१०३ ५।१२ १०११०३ २१३२६ २१३२६ वृत्ति १।१२६-१३२ ६६२ ४।२८३ ४१५४६ १०।१०३ १०११०३ ८.७० ८७२ १२१२६-१३२ ६२२३ है।६२ ४१२८३ ७१२१,१२२ ४।५१४ ५२२ १०।१५६ ५१६६,६७ ४१५१४ ५२२ १०।१५४ १. वृत्तो अस्य पाठस्य पूर्ति निम्नप्रकारा विद्यते-यावदुग्रहण देव सूत्रं द्रष्टव्यम्-सबभतरए सन्बखुडुडाए बट्टे बेल्लापुयसंठाणसंठिए एगें जोयण सयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयण सयसहस्साई सोलससहस्साई दोन्नि सयाई सत्तावीसाई तिन्नि कोसा अट्टावीसं धणु सयं तेरस अंगलाई (पन्न ३३) । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।१४ ६६८ ५।१३५ ८।११ १०.११ १०१५ १०६६ पण्ण० १५१ समवायाओ २८३ पुष्ण० १५०१ पण्ण०१५६१ १०१० पण्ण० १५१ पण्ण० १३१ पण्ण०११ पण्ण० १५१ ८५११ पण १५११ सोइंदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदिय० सोइंदियपडिसलीणे जाव फासिं दिय० सोइंदियसंवरे जाव फासिं दिय. सोतिदितअसंवरे जाव सूचीकुसग्ग० सोतिदितबले जाव फासिदितवले सोतिदितमुंडे जाव फासिदित. सोतिदियअपडिसंलीणे जाव फासिदिय० सोतिदियअसंजमे जाव फासिदिय. सोतिदियअसंवरे जाव काय असंवरे सौतिदियअसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियअसाते जाव णोइंदियअसाते सोतिदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोतिदियमडे जाव फासिदिय० सोतिदियसंजमे जाव फासिदिय० सोतिदियसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियसाते जाव णोइंदिथसाते सोहम्मे जाव सहस्सारे हरिवेरुलित जाव पडिबुद्धे हव्वमागच्छति...... हिताते जाव आणुगामित[य]त्ताते हिरण्णगोलसमाणे जाव वइरगोल. हेमवए" ५।१४३ ८.१२ ५११३८,६११६ ६.१८ ५११७७ ५।१४२ ५।१३७६१५,१०११० ६१७ ८.१०१:१०।१४८ १०११०३ ३.८० ३३५२४६१३३ ४१५४७ पण्ण० १५१ पण्ण० १५१ पण्ण० १२१ पण्ण० १५१ ६।१४ २३८०-३८४ १०।१०३ ३१७६ ३२५२३ ४१५४७ ६।८३ अक्खराइं जाव एवं चरण अक्खरा जाव एवं चरण अक्खरा जाव चरण-करण अक्खराणि जाव एवं चरण अक्खराणि जाव सेत्तं समवाओ प०६५ प०६६ प०६१,६४ प० ६७,६६ प०६२ १.पण्णगसमवाय-सून्न । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ प० ८६ १६५ अ० सू० २२७ १०८६ प० ८६ प० ८६ प०६१ अ० सू०२२७ वृत्ति आवरा तंत्र जाव परित्ता प०१० अगाराओ जाव पब्वइए ६७४ अजित जच बद्धमाणे २४.१५० २२२ अणंतागमा जाव चरण-करण प०६८ अणंतागमा जाव सासया प०६३ अगुओगदारा जाव संखेज्जाओ प०६४,६५,६८,६६,१३१ अणुओगदारा संखेज्जाओ प०६७ अभिणंदण जाव पास २३१३,४ अयले जाव रामे प० २४१ अवसेसाई परिकम्माई पाढाइयाई एक्कारसविहाई पण्णत्ताई प०१०४-१०८ अस्सगीवे जाव जरासंधे प० २४६ अहासुतं जाव आराहिया ४६।१६४१८१४११००१ आधविज्जति जाव उवदंसिज्जति प०१० आपविजंति जाव एवं प०६३ आघविज्जति जाव नाया० प०६४ आपविज्जति० प० १०,६१,६३-६६,१३१ आहारय जह देसूगारयणि उ पडिपुण्णारयणी प० १६६ आहारयसरीरे समचउरंससंठाण सठिते प० १६५ उववाएणं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियवाणि जहा नंदीए ८८.२ एवं गतिनाम"ओगाहणानाम १० १७६ एवं चउदिसिपि नेयवं ५८४ एवं चउसुवि दिसासु नेयव्वं' ८८।४,५,६ एवं चेव दोमासिया आरोवणा सचराय दोमासिया आरोवणा एवं तेमासिया आरोवणा एवं चउमासिया आरोवणा २८१ एवं चेव मंदरस्स ८७४ प० १०१,१०२ वृत्ति वृत्ति' प० ८६ प० ८६ वृत्ति; प० ६६ प० ८६ पण्ण० २१ पण्ण० २१ पग्ण०६ नंदी १०२ प०१७६ ५८1३,५२१३ ८८.३ २८.१ ८७११ १. वृतौ किञ्चिद् भेदेन लभ्यते, यथा ---६४।१ यावत्करणात् 'महाकप्पं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया सम्म प्राणाए प्राराहियावि भवति । ५११ जाव' तिकरणाद्य थाकल्पं यथामार्ग यथातत्व समय कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीत्तिता आज्ञयाऽऽराधितेति । २. नायव्वं (क); नातव्वं (ख, ग)। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं जइ मणुस्स कि गम्भवतिय समुच्छिम गो गम्भवक्कतिय णो संमुम जइ गम्भ वक्कंतिय किं कम्मभूमग अकम्मभूमग गो कम्मभूमग जो अकम्मभूमग जइ कम्मभूमग किं संखेज्जवासाज्य असंवेग्नवासाय गो संवेज्जवासाउय णो असंखेज्जवासाउय जद संखेज्जवासाज्य कि पज्जत्तय अपज्जतय गोयमा पज्जत्तय णो अपज्जत्तय जइ पज्जत्तय कि सम्म मिच्छ सम्मामिच्छ गो सम्मदिट्टि नो मिच्छदिठ्ठि तो सम्मामिच्छदिट्टि ज सम्म विट्टि कि संजतं असंजत संजता संजय गो संजय णो असंजय णो संजतासंजत जति संजय किं प्रमत्तसंजय अपमत्तसंजय गो मलसंजय गो अपमत्तमं जद पमतसंजय कि डिपत्त पपिडित गोपित नो श्रणिड्डित्त अनिपित्त वयणविभतिपय एवं मेरे व अज्जम्मे एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे एवं दिवसोऽवि नायब्यो एवं पणू नालिया जुगे अनले मुसले वि एवं पंचवि एवं पंचवि इंदिया एवं पंचवि रसा एवं दुष्व अणा एवि एवं मंदरस्स परियमिलाओ परियंताओ संसस्स पुरथिमिल्ले च एवं माणे माया लोभे एवं संतिस्त्रवि एवं सगरे वि राया चाउरंत चरबट्टी एकसतरि पुब्व जाव पद कंतं वण्णं लेस जाव णंदुत्तरवडेंसगं कालगए जाव सव्वदुरखप्पहीने कालगाई जीव सचदुक्ख ० कीयं की आहट्टु जाव अभिक्खर्ण १० १६४ १००१५ LI १२/६ ६६।४-८ २७।१ २५ १ २२१६ प० १३२ ८७।३ १६।२:२१।२ ६०१३ ७१/४ १५।१३ ६१।२ प० ६३ २१११ ५० १६४ १००१४ २ १२८ ६६/३ ५२ पण १५।१ ठा० १७८-६२ प० १३२ ८७।१ अस्य पूर्ति अर्थव ६०१२ ७१।३ ३।२१ ८१।१ ६१।१ दसा० २ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोहवियेये जाय लोभ चउरंसा जाव असुभा जातिनाम जान ओगाहणानाम जुवे जाव माउया जितिया जाब णिच्चा ताई चैव माउया पयाणि जाव नंदावत्तं तिबिट्टू जाव कण्हे धम्मत्किाए जाव अद्धासम नेरश्या पज्जत्तगाणं० o तू जावचक्के हि पढभाए पढमं भागं जाय पण्णरसे सु पहले जाव पसरवडेस परूवेई जान से णं पुढवीकायसं जमे एवं जाव काय संजमे बलिस्तणं...... बुद्धे" बुढे जाव प्पहोणे बुढे जाव यदुक्त पंच भवए गं माझे कित्तिए गं पोसे णं फग्गुणे णं वइसाहेणं मासे भवित्ता जाव पठाइए भवित्ता पं जाव पब्चइए भविस्सइ य जाव अवट्ठिए भूयानंदे जाव घोसे महूराजान हत्यिणपुरं मुंडे जाव पव्वइए मुंडे जाव परवइया मुसावादाओ जान सल्बाओ इल्लप्पर्भ जाव रुदल्नुत्तरवडेंस ग लोगप्पभं जाव लोगुत्तरवडेंसगं बदराव जान वरुतरवडेंसन वायणा जाव अंगाए ३६ २७ १ प० १४१ प० १७७ प० २४५ १० १३३ प० १०३ १० २४१ १० १३७ प० १७३ प० १५५ प० २४६ १५/३ ६।१७ प० ६६ १७/२ १७/८ ६२/२ ५५१,४७२१३८४२६५४५० ४० ३०१२:५१०४, ५०६१ प० १६७ २६/३-७ ७११३,७५२ ८३१४ १० १३३ ३२/२ प० २४४ ५हा२ ७७१२ ५२ ६/१७ १३।१४ १३।१४ पृ० ६३ वृत्ति प० १७६ वृत्ति प० १३३ प० १०२ वृत्ति पण्ण० १ पृष्ण० ३५ प० १५४ वृत्ति केवलं संख्यापूरिता ર? प० ६५ १७.१ ठा० ४।१५१ ४२/१ ४२।१ ४२११ ५० १६७ २६ २ १९५ १६.५ प० १३३ ठा० २।३५५-३६१ वृत्ति X १६/५ ५।६ ३२१ ३।२१ ३।२१ १० ११ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा जाव संखेज्जा वायणा जाव से णं विजया एवं चैव जाव वासुदेवा वीक्कते जाग सम्दुक्तप्पहीणे सकुमारे जाव पाणए सतगाए नं पुढवीए पृच्छा सवणी जाव भरणी सिज्भिस्संति जाव अंत सिस्सिति जान सब्वदुक्खाण सिखाई जाय यहीणाई सिद्धे जाव प्पहीणे सिद्धे जाय सम्बदुक्ख ० सुज्जतं जाय मुज्जुतरवडे सगं सेवा [सेविता] जाव सावासोक्व० सेहस्स जाव सेहे राइणियस्स सोइदियधारणा जाव गोदियपारणा सोइ दियनिय जाव फासि दिय० सोलिदिया जान फासिंदिया सोविदियावा जाव पोइदिवावाते हंता गोसमा - ४० प० ६१ प० ६२ ६८।४-६ दहा१ ३२/२ ५० १४३ १८६ ५।२२; ७१२३८११८ १०१२५; १३ । १७:१५ । १६ १६ १६ ३१२४;४११८, ६।१७;९ २०; ११११६; १२/२०१४।१८ १७२१:१०१८३ १६।१५ २०१७:२१:१४; २२।१७३ २३।१३ २४।१५:२५ १८ २६।११: २७।१५ २८१५:२९।१५ ३०११६ ३१।१४३२।१४:३३।१४ ४४/२ ७२८४७३।२७४११७८१२८३३ ८४४१५५; १०० ४ ४२।१ Æâ હાર ३३।१ २८/३ २७।१ २८/३ २५/३ ५० १७५ सभ्यते यथा- ४२।१ जावलिकरणात् 'बुद्धे मुते अंतगर्ड परिनिन्दुडे सञ्चदुक्खप्पहीणे 'सि दृश्यम् । किरण बुढाई मुताई अंतयलाई दुपट्टीनाइति दृश्यम् १] जातिकरणात् अंतरा सिद्धे बुद्ध मुले ति दृश्यम् । ४४ 1 प० ८६ प० ६१ ६६१-३ जं० २ ठा० २३०१-३८४ प० १४१ चंद० १० ११ ११४६ ११४६ ४२।१ ४२।१ वृत्ति' ३।२१ ६।१ दसा० ३ २८/३ २८१३ २८/३ २८/३ ५० १७५ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२ आलोच्य पाठ तथा वाचनान्तर आलोच्य पाठ परियाणं [आया २२, पृ० १७] यद्यपि चूर्णो वृत्तौ च 'परियावेणं' इति पाठो व्याख्यातोऽस्ति, आदर्शेष्वपि एष एव पाठो लभ्यते । तथापि 'माया मे, पिया मे' इत्यादि पदानां अर्थप्रसंगतया 'परियारेणं' इति पाठस्थ परिकल्पना सहजमेव जायते । प्राचीन लिप्यां रकारवकारयोः सादृश्यात् एतत् परिवर्तनं नास्वाभाविकमस्ति । मानवा [आया ५/६३, पृ० ४३ ] वृत्तिकृता 'मानवा' मनुजाः इति विवृतम् । चूर्णिकृता च नैतत् पदं विवृतम् । किन्तु ' एवं थंभे मायाए वि लोभे वि जोएयव्वं' इति निर्देशः कृतः । तेन 'माणवा' इति पदस्य स्थाने 'माणओ' इति पाठस्य परिकल्पना जायते । अचिरं [आयारोमा २०, पृ० ७१] चूर्णी वृत्तौ च 'अचिरं पदं स्थानार्थे व्याख्यातमस्ति । यद्येतत् स्थानावाची स्यात् तदा 'अइर' मिति पाठ: संगच्छते । 'अजिरं प्रांगणम्' इति तस्यार्थो भवेत् । 'अइर' इति अतिरोहितार्थवाची देशीशब्दोपि विद्यते । केनापि कारणेन इकारस्य चकारो जात इति प्रतीयते । अथवा चूर्णिकारेण वैकल्पिकरूपेण कालायें अचिरशब्दस्य प्रयोगों निर्दिष्टः, सोपि युक्तः स्यात् । एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए [आयारचूला ११२६, पृ० ६० ] आयारबूलाया: पाठ-संशोधने षड् आदर्शाः प्रयुक्ताः, चूर्णिवृत्तिश्च । तत्र पञ्चादशॆषु उक्त पाठस्य ये पाठ भेदास्ते तत्रैव पादटिप्पणे प्रदर्शिताः सन्ति । वृत्ती ( पत्र ३०० ) 'एस विलुंगयामो सेज्जाए' इति पाठो व्याख्यातोस्ति - " गृहस्थश्चानेनाभिसन्धानेन संस्कुर्याद्य साधुः शय्यायाः संस्कारे विधातव्ये 'विलुंगयामो' त्ति निर्ग्रन्थः अकिञ्चन इत्यतः स गृहस्थः कारणे संयतो वा स्वयमेव संस्कारयेदिति ।" अस्माभिः 'घ' प्रत्यनुसारी पाठ: स्वीकृतः । चूर्णावपि (पू० ३३२) 'एस खलु भगवया' इति पाठो लभ्यते । 'सेज्जाए अक्खाए ' ४१ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अत्र दोषशब्द: अध्याहर्तव्यः । वस्तुतः उक्तपाठः व्याख्यागतः प्रतीयते । 'संथरेज्जा' इति पाठस्यानन्तरं 'तम्हा से संजए' इत्यादि पाठः स्यात्तदानीमपि स खण्डितो न प्रतिभाति । वृत्तिकृता उक्तपाठस्य या व्याख्या कृता, तथापि पूर्वानुमानस्य पुष्टिर्जायते । वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'विलुंग्यामो' पाठ आसीत् स केषुचिदेव आदर्शेषु उपलभ्यते नतु सर्वेषु । कप्पस [ इण्णगसमवाय सू० २१५, पृ० ९४१ ] अत्र 'कप्पस्स' इति पाठस्याशयो वृत्तिकृता कल्पभाष्यत्वेन सूचितः, वाचनान्तरे च पर्युषणा कल्पत्वेन सूचितः, यथा -- ' कप्पस्स समोसरणं नेयन्त्र' ति इहावसरे कल्पभाष्यक्रमेण समवसरण काव्येया, सा चावश्यकोक्काया न व्यतिरिच्यते, वाचनान्तरे तु पर्युषणाकल्पोक्तक्रमेणेत्यभिहितम् (वृत्ति, पत्र १४४ ) । पर्युषणाकल्पे समवसरणवक्तव्यता इत्थमस्ति-- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥ २०१ || सेकेणट्ठे भंते ! एवं दुच्चइ - - समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्या ? समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे इंदभूई अणगारे गोयमे गोतेणं पंच समणसयाइ वाइ, मज्झिमे अणगारे अग्गिभूई नामेण गोयमे गोतेणं पंच समणसयाइ वाएइ, कणीयसे अणगारे वाभूई नामें गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाइ वाएइ, येरे अज्जवियत्ते भारदाये गोतेणं पंच समणसयाइ वाएइ, थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गोते पंच समणस्याइ वाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिट्ठे गोते अधुलाई समणसयाई वाएइ, थेरे मोरियपुत्ते कासवगतेणं अधुट्ठाइ समणसयाई वाएइ, थेरे अकंपिए गोयमे गोत्तेणं थेरे अयनभाया हारियायणे गोते ते दुन्निव थेरा तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाइति, थेरे मेयज्जे थेरे य प्पभासे एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोते तिन्नि तिन्ति समणसयाई वाएंति, से एतेणं अट्ठेणं अज्जो ! एवं वुच्चइ -- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्या ॥ २०२॥ सव्वे एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्का रस वि गणहरा दुवाल संगिणो चोद्दसपुब्विणो मतगणपिडगधरा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्तिएणं पाणणं कालगया जाव सव्वदुक्खप्पहीणा । थेरे इंदभूई थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परिनिब्बुया || २०३ || जे इमे अज्जत्ताते समणा निग्गंथा विहरंति एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवञ्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना || २०४ || कल्पसूत्र, पृ० ६०, ६१ प्रस्तुताङ्गस्य उपसंहारसूत्रे ऋषि-यति-मुनि वंशानां वर्णनस्योल्लेखोस्ति । वृत्ति कृतास्य संबन्धः पर्युषणाकल्पगतसमवसरणप्रकरणेन सहयोजितः, यथा - गणधरव्यतिरिक्ताः शेषा निशिष्या ऋषयस्तद्वंशप्रतिपादकत्वादृषिवंश इति च तत्प्रतिपादनं चात्र पर्युषणाकल्पस्य ऋषिवंशपर्यवसानस्य समवसरणप्रक्रमेण भणितत्त्वादत एव यतिवंशो मुनिवंशश्चैतदुच्यते, यतिमुनिशब्दयोः ऋषिपर्यायत्वात् । वृत्ति, पत्र १४७, १४८ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वोक्तसमर्पणेन पर्युषणाकल्पस्य २०१ सूत्रात् २०४ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणं जायते, किन्तु वृत्तिकृता ऋषिवंशस्य यद् व्याख्यानं कृतं तेन २०१ सूत्रात् २२३ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणामावश्यक भवति । अत्र महती समस्या वर्तते । यदि पुर्ववर्ति समर्पणं मान्यं क्रियेत तदा ऋषिवंशस्य वर्णनं नान्यत्र क्वापि समुपलभ्यते । यदि च ऋषिवंशस्य वर्णनं समवसरणप्रक्रमेण सह संबध्यते तदा पूर्वोक्तसमर्पणस्याप्रयोजनीयता सिध्यति । वृत्तिकारेण नास्या असंगतेः कापि चर्चा कृता । किमत्र रहस्यमिति निश्चयपूर्वक वक्तुं न शक्यते, तथापि संभाव्यते समवसरणस्य संक्षेपीकरणसमये किंचित् परिवर्तनं जातम् । ऋषिवंशवर्णनम् -- समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अज्जमूहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबूनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते। थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायगसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसेज्जभवस्स मणगपि उणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायणसगोत्ते ॥२०॥ संखितवायणाए अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तं०--थेरस्स णं अज्जजसभइस्स तुंगियायणसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोत्ते, थेरे अज्ज भद्दबाहु पाइणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढर सगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्जथूलभदस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोते थेरे अज्जसुहत्थी वासिटसमोत्ते। थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-सुट्टियसुपडिबुद्धा कोडियकाकंदगा वाघावच्चसगोत्ता । थेराणं सुट्रियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदगाणं वग्यावच्चसमोत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्जइददिन्ने कोसियमोत्ते। थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जदिन्ने गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्ज दिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते । थेरस्स ण अज्जसीहगिरिस्स जातिसरस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले थेरे अज्जपोगिले थेरे अज्जजयते थेरे अज्जतावसे । थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया, थेराओ अज्जपोगिलाओ अज्जपोगिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताजो अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥२०६।। वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभद्दाओ परओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा-थेरस्स गं अज्जजसभहस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जभहवाह पाईणसगोत्ते, थेरे अज्जसंभूयविजये माढरसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जभबाहस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिण्णाया होत्या, तं०-थेरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जण्णदत्ते थेरे सोमदत्ते कासवगोते णं । थेरेहितो णं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एत्थ णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्स ण इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहातामलित्तिया कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासी खब्बडिया ॥२०७॥ थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयम्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा--- नंदणभद्दे उवनंदभद्द तह तीसभद्द जसभद्दे । थेरे य सुमिणभद्दे मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य ॥११॥ थेरे य थूलभद्दे उज्जुमती जबुनामधेज्जे य । थेरे य दीहभद्दे थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥ थेरस्स णं अज्जसंभूइविजयस्स माढरस गोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिन्नाताओ होत्था, तं जहा जक्खा य जक्खदिन्ना भूया तह होइ भूयदिन्ना य । सेणा वेणा रणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥१॥ ॥२०८।। थेरस्स णं अज्जथूलभहस्स गोयगोत्तस्स इमे दो थेरा अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहाथेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगात्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्टसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्छसगोत्तस्स इमे अट्ट थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं०-थेरे उत्तरे थेरे बलिस्सहे थेरे धण थेरे सिरिड थेरे कोडिन्ने थेरे नागे थेरे नागमित्त थेरे छलुए रोहगुत्ते कोसिए गोत्तेणं। थेरेहितो गं छलुएहितो रोहगुत्तेहिंतो कोसियगोत्तेहितो तत्थ णं तेरासिया निग्गया। थेरेहिंतो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्थ गं उत्तरबलिस्सहगणे नाम गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहा- कोसंबिया सोतित्तिया कोडवाणी चंदनागरी ।।२०६॥ थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिट्टसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-- थेरे स्थ अज्जरोहण भद्दज से मेहगणी य कामिड्ढी। सुट्ठियसुप्पडिबुद्धे रक्खिय तह रोहगुत्ते य ॥१॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते गणी य बंभे गणी य तह सोमे । दस दो य गणहा खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ ॥२१॥ थेरेहितो णं अज्जरोहणेहितो कासयतेहितो तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए। तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ छच्च कुलाइएवमाहिज्जति । से कि तं साहाओ? एवमाहिज्जंति --उदंबरिज्जिया मासपूरिया मतिपत्तिया सुवन्नपत्तिया, से तं सहाओ से किं तं कुलाइ ? एवमाहिज्जति, तं जहा पढमं च नागभूयं बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं चउत्थयं हथिलिज्ज तु ॥१॥ पंचमगं नंदिज्जं छ8 पुण पारिहासियं होइ । उद्देहगणस्सेते छच्च कुला होति नायव्वा ॥२॥ ॥२११॥ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेरेहितो णं सिरिगुतेहितो णं हारियसगो तेहितो एत्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ सत्त य कुलाई एवमाहिज्जति । से किं तं साहातो ? एवमाहिज्जति, तं जहा - हारियमालागारी संकासिया गवेधूया वज्जनागरी से तं साहाओ । से किं तं कुलाई ? एवमाहिज्जेति तं जहा - ४५ पढमेत्य वत्थलिज्जं बीयं पुण वीचिधम्मकं होइ । तइयं पुण हालिज्जं चउत्थगं प्रसमितेज्जं ॥ १ ॥ पंचम मालिज्जं द्धं पुण अज्जवेडयं होइ । सत्तमग कण्हसह सत्त कुला चारणगणस्स ॥ २ ॥ ॥२१२॥ थेरेहितो भद्दजसेहितो भारद्दायसगोत्तेहितो एत्थ णं उडवाडियगणे नामं गणे निग्गए । तस् इमाओ चत्तारि साहाओ तिन्नि कुलाई एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? एवमाहिज्जेति तं० - चंपिज्जिया भद्दिज्जिया काकंदिया मेहलिज्जिया, से त्तं साहाओ से किं तं कुलाई ? एवमाहिज्जति ॥ २१३॥ भद्दजसियं तह भद्दगुत्तियं तदयं च होइ जसभद्दं । एयाई उड्डवाडियगणस्स तिन्नेव य कुलाई ॥१॥ थेरेहितो णं कामिड्ढिहितो कुंडिल सगोत्तेहितो एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निगए । तस्स णं इमाओ चत्तारि सहाओ चत्तारि कुलाई एवमाहिज्जेति । से किं तं साहाओ ? एव०सावत्थिया रज्जपालिया अन्तरिज्जिया खेमलिज्जिया, से तं साहाओ । से कि तं कुलाई ? एव०-गणिय मेहिय कामदियं च तह होइ इ दपुरग च । एयाई वेवाडिगणस्स चत्तारि उ कुलाइ ॥१॥ ।।२१४ ।। रोहतो णं इसिगोत्तेहितो णं काकंद एहितो वासिट्सगोत्तेहितो एत्थ णं माणवगणे नाम गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिष्णि य कुलाइ एव० । से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जे ति कासविज्जिया गोयमिज्जिया वासिट्टिया सोरट्ठिया, से त्तं साहाओ से किं तं कुलाई ? २ एवमा हिज्जति, तं जहा इसिगोत्तियत्थ पढमं बिइयं इसिदत्तियं मुणेयध्वं । तइयं च अभिजसंत तिन्नि कुला माणवगणस्स ॥ १ ॥ ॥ २१५ ॥ थेरेहितो णं सुट्टियसुप्पडिबुद्धेहितो कोडियकाकंदिएहिंतो वग्घावच्चसगोत्तेहितो एत्थ गं कोडियगणे नामं गणे तिग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाई एव० । से कि तं साहाओ ? २ एवमाहिज्जति, तं जहा -- से किं तं कुलाइ ? २ एव० तं जहा उच्चानामरि विज्जाहरी य वइरी य मज्झिमिल्ला य । कोडिगणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाओ || १ || पढमेत्थ बंभलिज्जं बितियं नामेण वच्छलज्जं तु । ततियं पुण वाणिज्जं चउत्थयं पन्नवाहणयं ॥ १॥ ॥२१६॥ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेराणं सुट्टियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदाणं वग्धावच्चसगोत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या तं जहा-थेरे अज्जइंददिन्ने थेरे पियगथे थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्ते णं थेरे इसिदते थेरे अरहदत्ते। थेरेहिंतो गं पियगंथेहितो एत्थ ण मज्झिमा माहा निग्गया । थेरेहितो णं विजाहरगोवाहितो तत्थ ण विज्जाहरी साहा निम्मया ॥२६७।। थेरस्त णं अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिन्ने थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया वि होत्या, तं०-थेरे अज्जसंतिमेणिर माढरसगोते थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोते । थेरेहितो ए अज्जसतिसेणिएहितो णं माढरसगोत्तेहितो एत्थ ण उच्चानागरी साहा निग्गया ॥२१८।। थेरस्स ण अज्ससंतिसेणियस्स माढरसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं० ---थेरे अज्जसे णिए थेरे अज्जतावसे थेरे अज्जकुबेरे येरे अज्जकुबेरे थेरे अज्जइसिपालिते । थेरेहिनो णं अज्जसेणितेहिंतो एत्थ णं अज्जोणिया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जतावसे हिनो एत्य णं अज्जतावासी साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्ज कुबेरेहितो एत्थ णं अज्ज कुवेरा साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जइसिपालेहितो एत्थ णं अज्जइसिपालिया साहा निग्गया ॥२१॥ थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जातीसरस्स कोसियगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं० ----थेरे धणगिरी थेरे अज्जवइरे थेरे अज्जसमिए थेरे अरहदिन्ने । थेरेहितोपं अज्जसमिएहितो एत्थ णं बंभदेवीया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जवहरेहितो गोयमसगोत्तेहितो एत्थ णं अज्जव इरा साहा निग्गया ॥२२॥ थेरस्स अज्जवइरस्स गोत्तमसगोत्तमस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिन्नाया होत्था, तं० ----थेरे अज्जवइरसेणिए थेरे अज्जपउमे थेरे अज्जरहे । थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिहितो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। थेरेहिंतो णं अज्जरहेहितो एत्य णं अज्जजयंती साहा निम्मया ॥२२१।। थेरस्म णं अज्जरहरा बच्छसगोत्तस्स अज्जपूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते । थेररस णं अज्जयूस गिरिरस कोसियगोत्तस्स अज्जफरगुमित्ते थेरे अंतेवासी गायमसगुत्ते ।।२२२॥ वंदामि फरगुमित्तं च गोयपं धणगिरि च वासिटुं । कोच्छि सिवभूइ पि य कोसिय दोज्जितकंटे य॥१॥ त वंदिऊण सिरसा चित्तं वदामि कासवं गोत्त । णक्खं कासवगोत्तं रक्खं पि य कासवं वदे ।।२।। वंदामि अज्जनागं च गोयम जेहिलं च वासिदें। विण्ठं माढरगोतं कालगवि गोयमं वंदे ॥३॥ गोयमगोत्तभारं सप्पलयं तह य भयं वंदे। थेरं च संघवालियकासवगोत्तं पणिक्यामि ॥४॥ वंदामि अज्ज हत्थिं च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण' पढममासे कालगयं चेतसुद्धस्स ॥५॥ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदामि अज्जधम्मं च सुव्वयं सीसलद्धिसंपन्न । जस्स निक्खमणे देवो छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥६॥ हत्थं कासवगोतं धम्म सिवसाहगं पणिवयामि । सीहं कासवगोतं धम पि य कासवं बंदे ॥७॥ सुत्तत्यरयणभरिए खमदममद्दव गुणेहि संपन्ने । देविडिढखमासमणे कासवगोत्ते पणिवयामि ॥ ॥२२३॥ कल्पभाष्ये समवसरणवक्तव्यता--- गाथा १९७७-१२१७ वृहत्कल्पसूत्र, भाग २, पृ० ३६६-३७७ आवश्यकनियुक्ती समवसरणवक्तव्यता---गा० ५४५-६५८ आवश्यकनियुक्तिमलयगिरीया वृत्ति, पत्र ३०१-३३६ वाचनान्तर [आयारचूला १५॥३५ के पश्चात् प० २४०] स्थानाङ्गसूधे महापद्मप्रकरणे (६२) वृत्तिकारप्रदर्शिते वाचनान्तरे "कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जान सुहुपहुयास गेति व तेयसा जले।” इति पाठे आया रचूलाया भावनाध्ययनस्य समर्पणं सूचितमस्ति। वृत्तिकृता श्रीमदभय देव (रिणाऽपि एत। संवादि समुल्लिखितम्-"यया भाबनायामाचाराद्वितीयश्रुतस्कन्ध-पञ्चदशाध्ययने तथा अयं वर्णको व.'च्य इति भावः, कियदरं यावदित्याह-'जाव सुहुये' त्यादि" (वृत्ति, पत्र ४४०)। औपपातिकसूत्रे (सूत्राङ्क २७, वृत्ति पृष्ठ ६६) “वरमाणपदानां च भावनाध्ययनायुक्ते इमे संग्रहगाथे-- कसे सखे जीवे, गयणे वाए य सारए सलिले ।। पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे । कुंजर बसहे सोहे, नगराया चेव सागरमखोहे । चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव मुहुयहुए ॥" इति वृत्तिकृता भावनाध्ययनगतसंग्रहगाश्रयोः सूचनं कृतमस्ति । एतयोद्वयोः समर्पण-सूचनयोः सन्दर्भ भावनाध्ययनं दृष्टं तदा क्वापि समर्पितः पाठो नोपलल्यः । भावनाध्ययनस्य वृत्तिरत्यन्तं संक्षिप्ताऽसि, तत्र तस्य पाठय नास्ति कोपि संकेत: आदर्शषु चापि जस्थानपलब्धिरेव । चुगौं उक्तपाठस्य व्याख्या समुपलब्धा तेनेति निर्णयः कर्तुं शक्यते---णिव्याख्याताज पाठात् आदर्शतः पाठो भिन्नोस्ति । अयं वाचनाभेदः चूर्णिकारस्य समक्षमासीन्नवेति नानुमान क किञ्चित् साधन लभ्यते । स्थानाङ्गस्य वाचनान्तर-पाठे भावनाध्ययनस्य समर्षणमस्ति तस्यं सम्बन्धः चण्यं नुसारीपाटेनव विद्यते, तथैव औपपातिकवृत्तेः सूचनस्यापि सम्बन्धस्तेनैव । Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ स्थानाङ्ग महापद्मप्रकरणे एव स्वीकृतपाठेपि 'जहा भावणाते' इति समर्पणमस्ति । तस्यापि सम्बन्धश्चयॆनुसारिपाठेन विद्यते । आलोच्यमानपाठः किञ्चिद् भेदेनानेकेषु आगमेषु लभ्यते । तस्य तुलनात्मकमध्ययनमत्र प्रस्तूयते । आचाराङ्गचूर्णी पूर्णः पाठो विवृतो नास्ति । स. स्थानाङ्गस्य, कल्पसूत्रस्य, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः, आचाराङ्गचूर्णेश्च सम्बन्ध-समीक्षा-पूर्वक संयोजित: । स च इत्थं सम्भाव्यते--- संयोजित पाठः तए णं से भगवं अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए जाव गुत्तबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नसोते निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव अप्पडिहयगई जच्चकणगं पिव जायरूवे आदरिसफलगे इव पागडभावे कुमो इव गुत्तिदिए पुखरपत्तं य निरुवले वे गमणमिव निरालंबणे अणिलो इव निरालए चंदो इव सोमलेसे सूरो इव दित्ततेए सागरो इव गंभीरे विहग इव सव्वओ विप्पमुक्के मंदरो इव अप्पकंपे सारयसलिलं व सुद्धहियए खग्गविसाणं व एगजाए भार डपक्खी व अप्पमत्ते कुंजरो इव सोंडीरे वसभे इव जायत्थामे सीहो इव दुद्ध रिसे वसुंधरा इव सव्वभासविसहे सुहुयहुयासणे इव तेयसा जसंते। [कंसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कूम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥शा कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे । चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥] नस्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भवइ । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तंजहा--- अंडरा वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जंणं दिसं इच्छइ तं तं गं दिसं अपडिबद्धे सूचिभूए लहुभूए अणप्पगथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरई। तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुतरेणं दसणेणं अणुतरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं महदेणं लाघवेणं खंतीए मुत्तीए सक्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोवचिय-फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने । तर णं से भगवं अरहे जिणे जाए केवली सन्दन्न सव्वदरिसी सनेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जेव जाणइ पास इ, तं जहा-आगति गति ठिति चयणं उववायं तक्कं मणोमाणसियं भूत्तं कर्ड परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी, तं तं कालं मणसवयसकाएहि जोगेहि बदमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे अजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहरह। तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुयासुरं लोग अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं पंचमहन्वयाई सभावणाई छजीवनिकाए धम्म अक्खाइ देसमाणे बिहरइ], तंज हा--पुढविकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्नानाङ्ग (६।६२): तस्स णं भगवंतस्स' साइरेगाई दुवालसवासाइं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जिहिति तं दिव्वा वा माणसा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते सव्वे सम्म सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्स इ अहियासिस्सइ।। तए णं से भगवं अणगारे भविस्सइ इरियासमिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभडमत्तनिक्खेवणासमिए, उच्चारपासवणखेलजल्लसिंधाणपारिद्वावणियासमिए, मणगुत्ते, वय गुत्ते, काय गत्ते, गुत्ते, गतिदिए गूतबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नगंथे [.पा. किन्नगंथे] निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहयद्यासणे तिव तेयसा जलते। कसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे। चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥ नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबधे भविस्सई, सेय पडिबधे घउब्विहे पन्नत्ते, तंजहाअंडएइ वा पोयएइ वा उम्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं गं तं गं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणुप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेण अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंतिए मुत्तीए गुत्तीए सच्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोय-विय-[चिय ?]-फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाण भावेमाणस्स झागंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुतरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे समुप्पज्जिहिति । तए णं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति, केवली सव्वण्णसव्वदरिसी सदेवमणआसूरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासुइ सबलोर सव्व जीवाणं आगई गति ठियं चयणं उववाय तक्क मणोमाणसियं भूतं कडं परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सञ्चलोहे सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ ।। तए णं से भगवं तेण अणुत्तरेणं केवलवरनाणदसणेणं सदेवमणुआसुरं लोगं अभिसमिच्चा समणाण निगथाण सणेरइए जाव पंचमहत्वयाइ सभावणाई छजीवनिकाया धम्म देसेमाणे विहरिस्सति । कल्पमूत्र : तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए इरियासभिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभडमत्तनिवखेवणासमिए, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिए, मणसमिए, वइसमिए, कायसमिए, मणगुते, वयगुत्ते, कायगुत्ते, गुते, गुत्तिदिए, गुत्तबंभयारी, अकोहे, अमाणे, अमाए, अलोभे, संते, पसंते, उवसते परिनिव्वुडे, अणासवे, अममे, अकिंचणे, छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोये १, संखो इव निरंजणे २, जीवो इव अप्पडिहयाई ३, गगणं पिव निरालंबणे ४, १. अस्य स्थाने से णं भगवं' युज्यते । Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायुरिव अप्पडिबद्धे ५, सारयसलिलं व सुद्धहियए ६, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे ७, कुम्मो इव गुक्ति दिए ८, खग्गि विसाणं व एगजाए ६, विहग इव विप्पमुक्के १०, भारुडपक्खी इव अप्पमत्ते ११, कुंजरो इव सोंडीरे १२, वसभो इव जायथामे १३, सीहो इव दुद्धरिसे १४, मंदरो इव अप्पकंपे १५, सागरो इव गभीरे १६, चंदो इव सोमलेसे १७, सूरो इव दित्तनेए १८, जच्चकणगं व जायस्वे १६, वसुंधरा इव सब्वभासविसहे २०, सुहुयहुयासणी इव तेयसा जलंते २१ । एतेसि पदाणं इमातो दुन्नि संघयणगाहाओ कंसे संखे जीवे, गगणे वायू य सरयसलिले य । पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे ॥१॥ कंजरे बसभे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे ।। चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥ नत्थि णं तरस भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधो भवति । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालो भावओ। दवओ णं सचित्ताचित्तमीसिएसु दन्वेसु । खेत्तओ ण गामे वा नगरे वा अरणे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा । कालओ णं समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरते वा पक्खे वा मासे वा उवा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकालसंजोगे वा । भावओ णं कोहे वा माणे वा मायारा वा लोभे या भये वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अन्भक्खाणे वा पेसन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा। तस्स गं भगवंतस्स नो एवं भव। से णं भगवं वामावासवज्जं अट्ट गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराईए वाचीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेढुकचणे समदुवखसुहे इहलोगपरलोगअपडिवद्ध जीवियमरणे रिवकखे संसारपागामी कम्पसंगनिग्घायणट्टाए अब्भुट्टिए एवं च णं विपरइ । तस्स णं भगवंतस्स अणु त्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेरेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुतरेणं वोरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेण महवेणं अणत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणु त्तराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए तुवीए अणत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचिरियसोवचक्ष्यफलपरिनिव्वाण मग्गेणं अप्पाणं भावेमाणरस दुवालस संवच्छराई विइक्कताइ। तेरसमस संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पवखे वसाहमुद्धे तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीए पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिभिवटाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स बहिया उजवालियाए नईए तीरे वियावत्तस्म चेईयस्स अदूरसामंते सामागस्स गाहावइस्स कट्रकरणसि सालपायवस्स अहे गोदोहियाए उक्कुडुयनिसिज्जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्युत्तराहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवल वरनाणदसणे समुन्पने । । तए णं से भगवं अरहा जाए जिणे केवली सम्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणयासुररस लोगस्स परियायं जाणइ पासइ, सव्यलोए सव्वजीवाणं आगई गई लिइ चवणं उववायं तवक मणो Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणसियं भुत्तं कडं पडिसेवियं आविकम्म रहोकम्म अरहा अरहस्सभागी तं तं कालं मणवयणकायजोगे वट्टमाणाणं सब्वलोए सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्ष २ (पत्र १४६) तए णं से भगवं समणे जाए इरिआसमिए जाव परिट्ठावणिआसमिए मणसमिए क्यसमिए कायसमिए मण गुत्ते जाव गुत्तबंभयारी अकोहे जाव अलोहे संते पसंते उवसते परिणिबुडे छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे जच्चकणगं व जायरूवे आदरिसपडिभागे इव पागड भावे कम्मो इव गुत्तिदिए प्रक्खरपत्तमिव निरुवलेवे गगणमिव निरालंबणे अणिले इव णिरालए चंदो इव सोमदंसणे सुरो इव तेअंसी विहग इव अपडिबद्धगामी सागरो इव गंभीरे मंदरो इव अपे पूढवी विव सब्वफासविसहे जीवो विव अप्पडिहयगइत्ति । णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कधइ पडिबंधे, से पडिवंबे चउविहे भवंति, तंजहा-दवओ खित्तओ कालओ भावओ, दव्वओ इह खलु माया मे माया मे भगिणी में जाव संगथसंथुआ मे हिरणं मे सुवण्णं मे जाव उवगरणं मे, अहवा समासओ सचित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दव्वजाए सेवं तस्स ण भवइ, खित्तओ गामे वा णगरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगणे वा एवं तस्स ण भवइ, कालओ थोवे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊए वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा अन्नयरे वा दीहकालपडिबंधे एवं, तस्स ण भवइ, भावओ कोहे वा जाव लोहे वा भए वा हासे वा एवं तस्स न भवइ, से णं भगवं वासावासवज्ज हेमंतगिम्हासु गामे एगराइए णगरे पंचराइए ववगयहा ससोगअरइभवपरित्तासे णिम्भमे णिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणं अट्ठठे चंदणाणुलेवणे अरत्ते लेटेठुमि कंत्रणमि असमे इह लोए अपडिवद्ध जीवियमरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्घायणाए अन्भुदुिए विहरइ। तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्य एगे वाससहस्से विइकते समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिआ सगडमुहंसि उज्जाणंसि णि गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरिआए वटमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कारसिए पुवण्ह कालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अणुत्तरेणं ताणेणं जाव चरित्तेणं अणुत्तरेण तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएण विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीरा मुत्तीए तुदीए अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं सुचरिअसोवचिअफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणंते अणत्तरे णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपणे केवल-वरनाणदंसणे समुप्पण्णे जिणे जाए केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सरइअतिरियनरामरस्स लोग्गरस पज्जवे जाणइ पासइ, तंजहा-आगई गई टिइं उबवायं भूतं कडं पडिसेविअं आवीकम्म रहोकम्मं तं तं कालं मणवयकायजोगे एयमादी जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग म्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे एस खलु मोक्खमयो मम अण्णेसि च जीवाणं हियसुहणिस्सेसकरे सव्वदुक्खविमोक्खणे परम सुहसमाणणे भविग्सइ । तते णं से भगवं समणाणं निग्गंथाणं य णीगंथीण य पंच महब्वयाइ सभावणगाई छच्च जीवणिकाए धम्म देसेमाणे विहरति, तंजहापूढविकाइए भावणागमेणं पंच महव्वाईसभावणागाई भाणिअव्वाइति । सुत्रकृतांगे (२१६४-६६) प्रश्नव्याकरणे (संवरद्वार ५।११) रायपसेणइयसूत्रे (सुत्रांक ८१३८१६) औपणातिकसूत्रे (सूत्र २७-२६, १५२,१५३,१६४,१६५) चालोच्यमानपाठेनांशिकी क्वचिच्च तदधिकापि तुलना जायते। किन्तु एतेषां सूत्राणां पाठा: अनगार-वर्णन-संबद्धाः सन्ति, ततः पूर्णा तुलना प्रस्तुतपाठेन न नाम जायते । Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १३ १५ १६ २१ ४२ ४५ ४८ ५२ ५५ ६५ ७१ ५४ ८६ ६१ १०३ ११५ १६४ १७४ १७८ १८१ १८७ २६६ ३४८ ३४८ ३६३ ५३७ ६२२ ६५२ ८६५ २६६ ३१० ३२० ३२१ ४०० ४३४ ==== पंक्ति १ २७ 22 " १८ २२ १७ १५ "1 ६ १ १ १८ १५ १० १६ ७ पा० २६ २ २६ २१ ११ १८ १२ " २१ ६ ३ १५ १२ १२ १७ ११ २३ وا १ शुद्धि-पत्र अशुद्ध मंदस सत्थ नियंति जाणे पाव समण० णियाणाओ निज्मोसदत्ता णियद्वैति तितिक्खा ० X X भुज्जियं अणासेविय पट्टणसि जणआ उवाणिमतेज्जा ज अणतणिज्जं विषण पहाए पण सोर्स परक्कमण्ण गंधमंत मारत्धा मच्छा-पदं अलमंथ मु निगर० पाठान्तर विधीत समक्खाय आय तेज अतोमतेण पत शुद्ध मंदस्स सत्यं वयंति जाण पावं समणु० णियाणओ णिज्कोस इता विट्टति तितिक्खा 'उवगरण-पदं पाओवगमण-पदं भुज्जियं अणा से वियं पट्टणंसि जाणेज्जा उवणिमंतेज्जा जं अणेस णिज्जं वियडेण पेहाए पुण सोसं परक्कमण्ण गंधमतं गारत्था मुच्छा-पदं अलमंथू मुंडे नगर० विधंति समस्वातं आयं तेउ अतोमतेणं धृतं Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education temational For Priyale & Personal use only www.jalnelibrary.org