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८.
तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो | विसुभई जंसि मलं पुरेकर्ड, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा' ।।
भुजंगलय- दिट्ठत-पदं
ε. से हु परिष्णा समयमि वट्टइ, भुजंगमे जुष्णतयं जहा जहे,
समुद्द-विट्ठत पदं
१०. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, ११. जहा हि बद्धं इह 'माणवेहिय", अहाता बंधविमो जे विऊ, १२. इमभि लोए 'परए य दोसुवि", से ह णिरालंबणे अप्पइट्ठिए,
१. जोइणो ( अ, घ, ब ) । २. मेहुणा (क, वृ) 1 ३. चए (घ ) ।
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णिराससे विमुच्चइ से
उवरय- मेहुणे' चरे । दुहसेज्ज माहणे ||
महासमुद्दे व भुयाहि दुत्तरं । से हु मुणी अंतकडे त्ति बुच्चइ ॥ जहा य तेसि तु विमोक्ख आहिओ । से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ ण विज्जइ बंधण जस्स किंचिवि । कलंकली भावपहं विमुच्चइ ||
ग्रन्थ- परिमाण
कुल अक्षर - ६६६१० अनुष्टुप् श्लोक - ३००६, अक्षर १८
४. व ( अ, क, ब ) । ५. माणवेहिं ( अ, क ) । ६. परलोयते सुवि (च) ।
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आयारचूला
-fa afa 11
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