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(ग) सूत्रकृतांग द्वितीय बालावबोध (त्रिपाठी)
यह प्रति 'धेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसके पत्र ६५ व पृष्ठ १३० है। मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ४ से १२ तक हैं व प्रत्येक में ४५ से ५० तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इच व चौड़ाई ४३ इंच करीब है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है---
मूलपाठ प्रशस्ति---सूयगडस्स बीयं खंधो सम्मत्ते । श्री सूगडांग द्वितीय श्रु तस्कन्धः सूत्र संपूर्ण समाप्तः ।। सुभं भवतु, कल्याणमस्तु । श्री रस्तुः ।। ब ।। ब ॥ पंड्या भवान सूत मेधज्जी लक्षतं ।। बालावरोध प्रशस्ति--सूत्रकृतं आदित: सर्वमध्ययनं २३। श्री साधुरत्तशिष्येण पाशचन्द्रेण वृत्तितः वालावबोधार्थ द्वितीयांगस्यवात्तिक सम्पूर्णः ॥ ब॥ सूभ भवतुः । कल्याणमस्तु: श्रीरस्तु ॥ संवत् ।। १६६३ वर्षे फागुणवदि ८ बुधे प्रति सूगडांगनी पूरी कोधी प्रति ठीक है। (क्व) सूत्रकृतांग बालावबोध पंचपाठी
यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से प्राप्त, पत्र संख्या ६८ व पष्ठ १३६ । पाठ की पंक्तियां एक से १३ तक व प्रत्येक पंक्ति में ३४ से ३७ करीव अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इंच व चौड़ाई ४३ इच करीब है । संवत् व प्रशस्ति नहीं है। आनुमानिक सं० १७वीं शदी। (क्व) सूत्रकृतांग (मूलपाठ) नियुक्ति सहित ___ यह प्रति 'गधया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ४२ व पृष्ठ संख्या ८४ है। प्रत्येक पत्र में १६ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ६३ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १३ इंच व चौड़ाई ४३ इंच है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति हैसयगडस्स निज्जुत्ती सम्मत्ता । पद्मोपमं पत्रपरं परान्वितं, वर्णोज्जलसूक्तमरदं सुन्दरं मुमुक्षभंगप्रकरस्यवल्लभं, जीयाच्चिरं सूत्रकृदंग पुस्तकं ॥ संवत १५१२ वर्षे आसोज
ऊएसगच्छे भट्टारक श्रीकक्कसूरीणां ।। विक्रमपुरे ।। (व) सूत्रकृतांग वृत्ति (हस्तलिखित)
यह प्रति 'गधया पुस्तकालय' सरदारशहर की है। इसके पत्र १० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६७ के करीब अक्षर है। इसकी लम्बाई १०३ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रति सुन्दर व सूक्ष्म अक्षरों में लिखी हई है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है--
शुभं भवतु संवत् १५२५ वर्षे श्री यवनपुर नगरे। श्रीखरतरगच्छे । श्रीजिनभद्रसूरिपट्रालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये! श्री कमल संयमे । महोपाध्यायः स्ववाचनार्थ ग्रंथोयं लेखितः
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