SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .܀ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी ( उटकमण्ड) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनू ( राजस्थान ) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को हाथ में लिया। कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० श्री के दर्शन प्राप्त हुए कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए । मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-- “ ऐसा हो प्रकाशन ईप्सित है ।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही- की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी २०१३ में लाइन में आचार्य दशर्वकालिक सूत्र के अपने १. आगम-मुल ग्रन्थमाला मूलपाठ, पाठान्तर शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । Jain Education International २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम कथा ग्रन्थमाला आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत - आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में - (१) दसवेआलिय तह उत्तरभवणाणि (२) आयारो तह आधारचूला, (३) निसीभयणं, (४) उबवाइये और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो ( प्रथम श्रुतस्कन्ध ) का मुद्रण कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए । दूसरी ग्रन्थमाला में – (१) दसवेलियं एवं (२) उत्तरभयणाणि (भाग १ और (भाग २) प्रकाशित हुए समवायांग का मुद्रण कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003557
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages381
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy