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आयारो
हिंसाविवेग-पद १४०. से बेमि-अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति,' अप्पेगे मंसाए
वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, अप्पेगे हिययाए वहंति, अप्पेगे पित्ताए वहंति, अप्पेगे वसाए वहंति, अप्पेगे पिच्छाए बहंति, अप्पेगे पुच्छाए वहंति, अप्पेगे बालाए वहंति, अप्पेगे सिंगाए वहंति, अप्पेगे विसाणाए वहंति, अप्पेगे दंताए वहंति, अप्पेगे दाढाए वहंति, अप्पेगे नहाए वहंति, अप्पेगे हारुणीए वहंति, अप्पेगे अट्ठीए वहंति, अप्पेगे अट्ठिमिजाए वहंति, अप्पेगे अट्टाए वहंति, अप्पेगे अणट्ठाए ° वहंति, अप्पेगे 'हिंसिसु मेत्ति वा" वहंति, अप्पेगे हिंसंति मेत्ति
वा वहंति, अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति ॥ १४१. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ।। १४२. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति ॥ १४३. तं परिणाय मेहावी व सयं तसकाय-सत्थं समारंभेज्जा, गेवण्णेहिं तसकाय
सत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे तसकाय-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा । १४४. जस्सेते तसकाय-सत्थ-समारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे ।
-~~-त्ति बेमि ।। सत्तमो उद्देसो अत्ततुला-पदं १४५. 'पहू एजस्स" दुगंछणाए ॥ १४६. आयंकदंसो अहियं ति नच्चा ॥ १४७. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ । जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ ।। १४८. एयं तुलमण्णेसि ॥ १४६. इह संतिगया दविया, णावखंति वीजि ॥ वाउकाइयहिंसा-पदं १५०. लज्जमाणा पुढो पास ॥ १. हणंति (च); वधंति (क); हिंसंति (घ)। ६. इति (चूपा)। २. सं. पा.----एवं हिययाए पित्ताए वसाए ७. जीवियं (क, छ); जीविङ (ख, ग, घ, च, पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए वृ); मूलपाठः चूधिारेण स्वीकृतोस्ति । दंताए दाढाए नहाए हारुणीए अट्रीए अट्रि- 'दसवेआलिय' सूत्रम्य (६३७) श्लोकेनास्य मिजाए अट्ठाए अणट्टाए ।
पुष्टिर्जायते । ३. हितयाए (क, च)।
८. अटा परिजण्णा आकंपिता जाव आतूरा ४. हिसिम इति वा (ख, ग)।
परिताविता धुवगंडिया (चू)। ५. पहू य एगस्स (वृ); पभू एयस्स (क) ।
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