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पिता और पुत्र
बहुत समय पहले एक नगर में एक बहुत धनी सेठ रहता था। उसके पास कई मकान और सैंकड़ों खेत थे। सेठ का इकलौता पुत्र किशोरावस्था में ही घर छोड़कर भाग गया और किसी दूसरे नगर में जाकर छोटा-मोटा काम करके जीवन गुजरने लगा। वह बेहद गरीब हो गया था। दूसरी ओर, उसका पिता उसको सब ओर ढूंढता रहा पर उसका कोई पता नहीं चल पाया।
कई साल बीत गए और उसका पुत्र अपने पिता के बारे में भूल गया। एक नगर से दूसरे नगर मजदूरी करते और भटकते हुए एक दिन वह अनायास ही सेठ के घर आ गया और उसने उनसे कुछ काम माँगा। सेठ ने अपने पुत्र को देखते ही पहचान लिया पर वह यह जानता था कि सच्चाई बता देने पर उसका बेटा लज्जित हो जाएगा और शायद फ़िर से घर छोड़कर चला जाए। सेठ ने अपने नौकर से कहकर अपने पुत्र को शौचालय साफ करने के काम में लगा दिया।
सेठ के लड़के ने शौचालय साफ करने का काम शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद सेठ ने भी मजदूर का वेश धरकर अपने पुत्र के साथ सफाई का काम शुरू कर दिया। लड़का सेठ को पहचान नहीं पाया और धीरे-धीरे उनमें मित्रता हो गई। वे लोग कई महीनों तक काम करते रहे और फ़िर एक दिन सेठ ने अपने पुत्र को सब कुछ बता दिया। वे दोनों रोते-रोते एक दूसरे के गले लग गए। अपने अतीत को भुलाकर वे सुखपूर्वक रहने लगे।
पिता ने अपने पुत्र को अपनी जमीन-जायदाद का रख-रखाव और नौकरों की देखभाल करना सिखाया। कुछ समय बाद पिता की मृत्यु हो गई और पुत्र उसकी गद्दी पर बैठकर अपने पिता की भांति काम करने लगा।
इस कहानी में पिता एक ज्ञानप्राप्त गुरु है, पुत्र उसका उत्तराधिकारी है, और नौकर वे आदमी और औरत हैं जिनका वे मार्गदर्शन करते हैं।
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