Book Title: Zen Katha
Author(s): Nishant Mishr
Publisher: Nishant Mishr

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Page 205
________________ अभागा वृक्ष एक बहुत बड़ा यात्री जहाज समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दो व्यक्ति किसी तरह अपनी जान बचा पाए और तैरते हुए एक द्वीप पर आ लगे विराट महासागर के बीच स्थित उस छोटे से द्वीप पर एक महाकाय वृक्ष के सिवाय कुछ भी नहीं था, न कोई प्राणी, न कोई पाँधे वृक्ष पर स्वादिष्ट रसीले फल । लगते थे। उसकी घनी छाँव के नीचे पत्तियों का नरम बिछौना सा बन जाता था। वह वृक्ष उन्हें धूप और बारिश से बचाता था। उसकी छाल और पत्तियों का प्रयोग करके उन दोनों ने अपने तन को ढकने लायक आवरण बना लिए थे। समय धीरे-धीरे गुजरता गया । वे दोनों व्यक्ति उस द्वीप में स्वयं के अलावा अपने आश्रयदाता वृक्ष को ही देखते थे। दोनों उस वृक्ष में बुराइयां ढूँढने लगे। "इस द्वीप पर यही मनहूस पेड़ है" - दोनों दिन में कई बार एक दूसरे से यह कहते। "सच है, यहाँ इस वाहियात पेड़ के सिवाय और कुछ नहीं है"। उन दोनों को पता नहीं था, लेकिन जब भी वह वृक्ष उनकी ये बातें सुनता था, वह भीतर ही भीतर कांप जाता था। धीरे-धीरे वह दयालु वृक्ष अपनी सारी शक्ति खोता गया। उसकी पत्तियां पीली पड़कर मुरझा गईं। उसने शीतल छाया देना बंद कर दिया। उसमें फल लगने बंद हो गए। वृक्ष शीघ्र ही निष्प्राण हो गया। 204

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