Book Title: Zen Katha
Author(s): Nishant Mishr
Publisher: Nishant Mishr

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Page 207
________________ कलाकार की करुणा महान फ्रांसीसी मूर्तिकार ऑगस्त रोदाँ (August Rodin) को एक सरकारी इमारत का प्रवेश द्वार सुसज्जित करने के लिए कहा गया। उस द्वार पर और उसके इर्दगिर्द मूर्तियाँ लगाई जानी थीं। ज्यों-ज्यों रोदाँ काम करते गए, दरवाजे का आकार भी बढ़ता गया। छोटी-बड़ी मूर्तियों की संख्या १५० से भी ज्यादा हो गई। सरकार उस द्वार पर अधिक धन खर्च नहीं करना चाहती थी। लेकिन रोदाँ पर सर्वश्रेष्ठ काम करने का जुनून सवार था। वे ऐसा द्वार बनाने में जुटे थे जो अद्वितीय हो। वे बीस साल तक काम करते रहे लेकिन द्वार फ़िर भी अधूरा था। इस बीच निर्माण की लागत कई गुना बढ़ गई। फ्रांस की सरकार ने रोदाँ पर मुकदमा किया कि वे द्वार को शीघ्र पूरा करें अन्यथा पैसे लौटा दें। रोदाँ ने पूरे पैसे लौटा दिए और पूर्ववत काम करते रहे। इस बीच उस द्वार की ख्याति देश-विदेश में फ़ैल चुकी थी। दूर-दूर से लोग उस द्वार को देखने के लिए आने लगे। इंग्लैंड के तत्कालीन सम्राट एडवर्ड सप्तम भी उसे देखने के लिए आए। दरवाजे के सामने लगी चिन्तक (The Thinker) की मूर्ति को देखकर वे मुग्ध हो गए। यह विश्व की सबसे प्रसिद्द और श्रेष्ठ मूर्तियों में गिनी जाती है। सम्राट की इच्छा हुई कि वे मूर्ति को करीब से देखें। उन्होंने एक सीढ़ी मंगवाने के लिए कहा। वे सीढ़ी पर चढ़ने वाले ही थे कि रोदाँ ने उन्हें रोक दिया क्योंकि वहां एक चिड़िया ने घोंसला बना रखा था। रोदाँ नहीं चाहते थे कि चिड़िया के नन्हे बच्चे किसी भी वजह से परेशान हो जायें। 206

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