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गुम हुई कुल्हाड़ी
लाओत्जु ने अपने शिष्यों से एकदिन कहा "एक आदमी की कुल्हाड़ी कहीं खो गयी। उसे घर के पास रहनेवाले एक लड़के पर शक था कि कुल्हाड़ी उसने ही चुराई है। जब भी आदमी उस लड़के को देखता, उसे लगता कि लड़के की आंखों में अपराधबोध है। लड़के के हाव-भाव, बोलचाल, और आचरण से आदमी का शक यकीन में बदल गया कि वह लड़का ही चोर है।
एक दिन आदमी अपने घर में साफ़-सफाई कर रहा था तो उसे अपनी खोयी हुई कुल्हाड़ी घर में ही कहीं रखी मिल गई। उसे याद आ गया कि वह अपनी कुल्हाड़ी उस जगह पर रखकर भूल गया था। उसी दिन उसने उस लड़के को देखा जिसपर वह कुल्हाड़ी चुराने का शक करता था। उस दिन उसे लड़के के हाव-भाव, बोलचाल, और आचरण में जरा सा भी अपराधबोध नहीं प्रतीत हो रहा था।"
लाओत्जु ने शिष्यों से कहा
"सत्य को देखने की चाह करने से पहले यह देख लो कि तुमने मन की खिड़कियाँ तो बंद नहीं कर रखी हैं"।
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