Book Title: Zen Katha
Author(s): Nishant Mishr
Publisher: Nishant Mishr

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Page 198
________________ माइकल फैराडे की कहानी क्या आप विद्युत् के बिना जीवन की कल्पना कर सकते हैं? एक घंटे के लिए बिजली गोल हो जाए तो लोग बुरी तरह से परेशान हो जाते हैं। एक दिन के लिए बिजली गोल हो जाने पर तो हाहाकार ही मच जाता है। विद्युत् व्यवस्था की खोज में कई लोगों का योगदान है लेकिन इसमें सबसे बड़ी खोज माइकल फैराडे ने की। फैराडे ने डायनेमो का आविष्कार किया जिसके सिद्धांत पर ही जेनरेटर और मोटर बनते हैं। विज्ञान के इतिहास में माइकल फैराडे और थॉमस अल्वा एडिसन ऐसे महान अविष्कारक हैं जो गरीबी और लाचारी के कारण ज़रूरी स्कूली शिक्षा भी नहीं प्राप्त कर सके। प्रस्तुत है डायनेमो की खोज से जुड़ा फैराडे का प्रेरक प्रसंग: डायनेमो या जेनरेटर के बारे में जानकारी रखनेवाले यह जानते हैं कि यह ऐसा यंत्र है जिसमें चुम्बकों के भीतर तारों की कुंडली या कुंडली के भीतर चुम्बक को घुमाने पर विद्युत् बनती है। एक बार फैराडे ने अपने सरल विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के प्रयोग की प्रदर्शनी लगाई। कौतूहलवश इस प्रयोग को देखने दूर-दूर से लोग आए। दर्शकों की भीड़ में एक औरत भी अपने बच्चे को गोदी में लेकर खड़ी थी। एक मेज पर फैराडे ने अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया। तांबे के तारों की कुंडली के दोनों सिरों को एक सुई हिलानेवाले मीटर से जोड़ दिया। इसके बाद कुंडली के भीतर एक छड़ चुम्बक को तेजी से घुमाया। इस क्रिया से विद्युत् उत्पन्न हुई और मीटर की सुई हिलने लगी। यह दिखाने के बाद फैराडे ने दर्शकों को बताया कि इस प्रकार विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। यह सुनकर वह महिला क्रोधित होकर चिल्लाने लगी - "यह भी कोई प्रयोग है!? यही दिखाने के लिए तुमने इतनी दूर-दूर से लोगों को बुलाया! इसका क्या उपयोग है?" यह सुनकर फैराडे ने विनम्रतापूर्वक कहा - "मैडम, जिस प्रकार आपका बच्चा अभी छोटा है, मेरा प्रयोग भी अभी शैशवकाल में ही है। आज आपका बच्चा कोई काम नहीं करता अर्थात उसका कोई उपयोग नहीं है, उसी प्रकार मेरा प्रयोग भी आज निरर्थक लगता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरा प्रयोग एक-न-एक दिन बड़ा होकर बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।" यह सुनकर वह महिला चुप हो गई। फैराडे अपने जीवनकाल में विद्युत् व्यवस्था को पूरी तरह विकसित होते नहीं देख सके लेकिन अन्य वैज्ञानिकों ने इस दिशा में सुधार व् खोज करते-करते उनके प्रयोग की सार्थकता सिद्ध कर दी। 197

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