Book Title: Zen Katha
Author(s): Nishant Mishr
Publisher: Nishant Mishr

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Page 188
________________ लंबे सफर में ईमानदारी शाह अशरफ अली बहुत बड़े मुस्लिम संत थे। एक बार वे रेलगाड़ी से सहारनपुर से लखनऊ जा रहे थे। सहारनपुर स्टेशन पर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि वे सामान को तुलवाकर ज्यादा वजनी होने पर उसका किराया अदा कर दें। वहीं पास में गाड़ी का गार्ड भी खड़ा था। वह बोला - "सामान तुलवाने कि कोई ज़रूरत नहीं है। मैं तो साथ में ही चल वह गार्ड भी शाह अशरफ अली का अनुयायी था। शाह ने उससे पूछा - "आप कहाँ तक जायेंगे।" "मुझे तो बरेली तक ही जाना है, लेकिन आप सामान की चिंता नहीं करें" - गार्ड बोला। "लेकिन मुझे तो बहुत आगे तक जाना है" - शाह ने कहा। "मैं दूसरे गार्ड से कह दूँगा। वह लखनऊ तक आपके साथ चला जाएगा।" "और उसके आगे?" - शाह ने पूछा। "आपको तो सिर्फ़ लखनऊ तक ही जाना है न। वह भी आपके साथ लखनऊ तक ही जाएगा" - गार्ड बोला। "नहीं बरखुरदार, मेरा सफर बहुत लंबा है" - शाह ने गंभीरता से कहा। "तो क्या आप लखनऊ से भी आगे जायेंगे?" "अभी तो सिर्फ लखनऊ तक ही जा रहा हूँ, लेकिन ज़िन्दगी का सफर तो बहुत लंबा है। वह तो खुदा के पास जाने पर ही ख़त्म होगा। वहां पर ज्यादा सामान का किराया नहीं देने के गुनाह से मुझे कौन बचायेगा?" यह सुनकर गार्ड शर्मिंदा हो गया। शाह ने शिष्यों को ज्यादा वजनी सामान का किराया अदा करने को कहा, उसके बाद ही वह रेलगाड़ी में बैठे। 187

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