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मछली की टोकरी
बहुत समय पहले भारत में गृहस्थ लोगों का यह धर्म था कि वे सदैव दूसरों की आवश्यकताओं का ध्यान रखें। इसलिए भोजन के समय गृहस्थ घर का मुखिया पुरूष बाहर जाकर देखता कि कहीं कोई व्यक्ति भूखा तो नहीं है।
एक बार एक गृहस्थ को घर के बाहर एक मछुआरा खड़ा दिखा। उसने मछुआरे से पूछा "भाई क्या तुम भोजन करोगे?"
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मछुआरे के 'हाँ' कहने पर गृहस्थ उसे घर के भीतर ले गया लेकिन उसने मछुआरे से कहा कि वह अपनी मछली की टोकरी घर के आँगन में ही रख दे क्योंकि उससे बहुत गंध आ रही थी। मछुआरे ने ऐसा ही किया ।
गृहस्थ ने मछुआरे से रात को वहीं विश्राम करने के लिए कहा। मछुआरा साथ के एक कमरे में सो गया। देर रात को जब गृहस्थ लघुशंका करने के लिए उठा तब उसने देखा कि मछुआरा बेचैनी में करवटें बदल रहा था।
गृहस्थ ने मछुआरे से पूछा - "क्या तुम्हें नींद नहीं आ रही? कोई समस्या है क्या?"
मछुआरे ने कहा "मैं हमेशा अपनी मछली की टोकरी के पास ही सोता हूँ। जब तक मुझे मछलियों की गंध न आए तब तक मुझे नींद नहीं आती।"
गृहस्थ ने कहा
"ऐसा है तो तुम अपनी टोकरी उठा कर ले आओ और सो जाओ" । मछुआरा अपनी टोकरी उठा लाया और फ़िर गहरी नींद सो गया ।
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