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समानुभूति
घरेलू जानवरों के एक दूकानदार ने दूकान में कुछ खूबसूरत पपी (पिल्ले) बिक्री के लिए रखे दूकान के बाहर वह एक बोर्ड लगा रहा था कि किसी ने उसकी शर्ट को आहिस्ता से खींचा। उसने नीचे देखा, सात-आठ साल का एक बच्चा उसकी ओर मुस्कुराता हुआ देख रहा
।
था।
"अंकल" बच्चे ने कहा
दूकानदार ने बेफिक्री से कहा
मंहगे हैं"।
"मैं एक पपी खरीदना चाहता हूँ" ।
"ठीक है, लेकिन ये पपी बहुत ऊंची नस्ल के और
बच्चे ने यह सुनकर सर झुकाकर एक पल को कुछ सोचा फिर अपनी जेब से ढेर सारी चिल्लर निकालकर उसने टेबल पर रख दी और बोला "मेरे पास सत्रह रुपये हैं। इतने में एक पपी आ जाएगा न?"
दूकानदार ने व्यंग्य भरी मुस्कान बिखेरी और कहा "हाँ, हाँ, इतने में तुम उन्हें देख तो सकते ही हो!" यह कहकर उसने पिल्लों को बुलाने के लिए सीटी बजाई।
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सीटी सुनते ही दूकान के भीतर से चार ऊन के गोलों जैसे प्यारे पिल्ले लुढकते हुए दूकानदार के पैरों के पास आकर लोटने लगे। उन्हें देखते ही बच्चे की आँखों में चमक आ गयी।
तभी बच्चे की नज़र दूकान के पीछे हिल रही किसी चीज़ पर पड़ी। भीतर अंधेरे से एक और पिल्ले की शक्ल उभरी। यह कुछ कमज़ोर सा था और घिसटते हुए आ रहा था। इसके दोनों पिछले पैर बेकार थे।
"अंकल" बच्चा बोला एक जगह बैठकर खूब खेलेंगे।"
"मुझे ये वाला चाहिए!" - बच्चे ने उस पपी की ओर इशारा करते हुए कहा।
दूकानदार को कुछ समझ नही आया। वह बोला "बेटा, वो पपी तुम्हारे काम का नहीं है। वो दूसरों की तरह तुम्हारे साथ खेल नहीं पायेगा। तुम्हें वो क्यों चाहिए?"
बच्चे की आंखों में बेतरह दर्द उभर आया। उसने अपनी पैंट के पांयचे ऊपर खींचे। उसके विशेष जूतों में लगी हुई लोहे की सलाखें उसके घुटनों तक जाती दिख रही थीं।
"मैं भी इसकी तरह भाग नहीं सकता। हम दोनों साथ में
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